सफेद लट एक बहुभक्षी लट है जो किसानों के खेत में आमतौर पर खरीफ की फसलों जैसे मूंगफली, मूंग, मोठ, बाजरा, सब्जियों वगैरह की जड़ों को काट कर हानि पहुंचाती है. राजस्थान जैसे हलके बालू मिट्टी वाले क्षेत्रों में होलोट्राइकिया नामक भृंगों की सफेद लटें एक साल में केवल एक ही पीढ़ी पूरी करती हैं.
सफेद लट की पहचान व जीवनचक्र
* किसानों को सफेद लट के जीवनचक्र के बारे में जानकारी होना जरूरी है. सफेद लट के प्रौढ़ का रंग बादामी होता है. मानसून की पहली बारिश या मानसून से पहले की पहली अच्छी बारिश के बाद इस कीट के भृंग शाम को गोधूलि वेला के समय रोजाना जमीन से बाहर निकलते व आसपास के परपोषी वृक्षों जैसे नीम, अमरूद, आम वगैरह पर बैठ जाते हैं.
* कुछ समय तक प्रजनन की क्रिया करने के बाद वे पत्तों को खाना शुरू कर देते हैं. सुबह जल्दी मादा प्रौढ़ जमीन में पहुंचने के बाद अंडे देने का काम करती है.
* एक मादा भृंग 25-30 अंडे देती है. अंडों से 7 से 10 दिन के बाद पहली अवस्था की लटें निकल जाती हैं और तकरीबन 10-15 दिन बाद दूसरी अवस्था की लटें बन कर फसलों की जड़ों को तेजी से खाना शुरू कर देती हैं, जिस से पौधा सूख कर मर जाता है.
* यह कीट 3-4 हफ्ते तक दूसरी अवस्था में रहने के बाद तीसरी अवस्था की अंग्रेजी के ‘सी’ अक्षर के आकार की मुड़ी हुए अर्द्धचंद्राकार रूप में लट बन जाती है, जो फसलों की जड़ों के फैलाव क्षेत्र तक पहुंच जाती है. इस अवस्था में इस कीट को मारना मुश्किल काम है. यह अवस्था तकरीबन 6 हफ्ते तक रहती है. उस के बाद ये लटें प्यूपों में बदल जाती हैं और तकरीबन 2-3 हफ्ते के बाद प्रौढ़ बन जाती हैं.