भारत में किसान परिवारों की संख्या बहुत सारे पश्चिमी देशों की कुल जनसंख्या से भी ज्यादा है. ऐसे में किसानों को अधिक पैदावार के लिए अच्छी क्वालिटी वाले बीज सही मात्रा में सही समय पर सही कीमतों के साथ मुहैया कराना जरूरी है.

कुछ सब्जियां, जिन का इस्तेमाल किचन गार्डन के रूप में भी किया जाता है, जैसे टमाटर, बैगन, मिर्च, मटर, मूली, चुकंदर, लहसुन, प्याज, मेथी, चौलाई, पत्ता गोभी, फूल गोभी, भिंडी वगैरह के बीज उत्पादन की तकनीक व उन की क्वालिटी के बारे में वैज्ञानिक तरीके यहां बताए जा रहे हैं:

टमाटर

बीज के लिए टमाटर की खेती उसी तरह से होती है, जिस तरह सब्जी के लिए करते हैं.  बीज के लिए स्वस्थ पौधे का चुनाव करते हैं और पूरी तरह से पक जाने के बाद बीज के लिए फल को तोड़ते हैं. फल तोड़ने के बाद 2 तरीकों से बीज को अलग करते हैं:

किण्वन विधि : इस विधि का इस्तेमाल छोटेछोटे फलों, जिन में ज्यादा बीज होते हैं, के लिए किया जाता है. इस में टमाटर के गुच्छे को मिट्टी या लकड़ी के बरतन में 1-2 दिनों के लिए रख देते हैं.

इस के बाद उस बरतन में पानी भर देते हैं, जिस में पके टमाटर के गुच्छे रखे होते हैं. इस में टमाटर का गूदा और छिलका तैरने लगता है और बीज नीचे तली में बैठ जाते हैं. इन्हें छान कर अलग कर लिया जाता है. इस काम में टमाटर का कोई भी भाग खाने के काम में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है. इस विधि से मिले बीजों में अंकुरण अच्छा होता है.

अम्लोपचार विधि : बड़े स्तर पर बीज हासिल करने के लिए इस विधि का इस्तेमाल होता है. इस में टमाटर का गूदा खाने में इस्तेमाल किया जा सकता है. इस के लिए 14 किलोग्राम पके टमाटर के फल में 100 मिलीलिटर हाइड्रोक्लोरिक एसिड गूदे के साथ अच्छी तरह मिला कर 30 मिनट तक रख देते हैं.

इस तरह बीज व गूदा लसलसे पदार्थ से अलग हो जाता है. उस के बाद बीज व गूदे को साफ पानी से अच्छी तरह साफ कर लेते हैं और बीज को सुखा लेते हैं.

बैगन

फूल आने के पहले, फूल आते समय और फूलों के तैयार होते समय पौधों की जांच करते रहें. अच्छे स्वस्थ पौधों पर लगे फूलों को बीज के लिए छोड़ते हैं. बीमार पौधों को पहली जांच में ही हटा देना चाहिए.

बीज के लिए छोड़े गए फल जब पक कर पीले पड़ जाते हैं तब उन्हें तोड़ लेना चाहिए. फल का छिलका हटा दें और फल के चाकू से पतलेपतले टुकड़े कर के बीज को गूदे से निकाल कर पानी में डुबो देते हैं.

इस के बाद बीज को धूप में सुखा लेते हैं, नहीं तो बीज के फूटने का डर बना रहेगा.

मटर

बीज के लिए मटर की खेती उसी तरह की जाती है जैसे सब्जी फसल के लिए की जाती है.

बीमारी व कीट वाले पौधों को भी उखाड़ कर खत्म कर देना चाहिए.

पकी हुई फलियों को तोड़ कर दानों को छिलकों से अलग कर लें. बीज से टूटेफूटे दानों को अलग कर देना चाहिए.

मूली

मूली की एशियाई किस्मों से मैदानी और पहाड़ी इलाकों में बीज तैयार हो सकता है, परंतु यूरोपियन किस्मों के बीज केवल पहाड़ी इलाकों में ही होते हैं. जापानी व्हाइट किस्म का बीज मैदानी इलाकों में भी तैयार किया जा सकता है.

मूली के बीज तैयार करने के 2 तरीके

बीज से बीज : इस विधि में मूली को खेत में ही छोड़ देते हैं. जड़ पकने के बाद फूल आते हैं और बीज बनते हैं. इस विधि में बीज अधिक बनते हैं, परंतु बीज की क्वालिटी अच्छी नहीं होती है, क्योंकि इस विधि में बीज पौधों का चुनाव संभव नहीं हो पाता है.

जड़ से बीज : इस विधि में मूली की स्वस्थ और पूरी तरह तैयार जड़ों को नवंबरदिसंबर महीने में, जब मूली खाने के लिए तैयार हो जाती है, तो उखाड़ लिया जाता है. आधे से तीनचौथाई भाग जड़ का और एकतिहाई हिस्सा पत्तियों का काट दिया जाता है. पत्ती सहित कटी हुई जड़ों को तैयार खेत में 75×30 सैंटीमीटर की दूरी पर फिर से लगाते हैं. इन्हें लगाने का सही समय मध्य नवंबर से दिसंबर मध्य तक का होता है. देरी से लगाने के कारण बहुत सी जड़ें सड़ जाती हैं. इन में से कुछ ही जड़ें फूटती हैं जिस के कारण कम बीज मिलता है.

नवंबरदिसंबर माह में लगाई जड़ों में मार्चअप्रैल में फलियां तैयार हो जाती हैं. फलियों को कुछ समय तक छाया में सुखा लेते हैं. इस विधि से उन्नत बीज हासिल किया जा सकता है.

मूली की तरह ही गाजर और शलजम के भी बीज तैयार कर सकते हैं.

भिंडी

बीज वाले खेत से बीमार पौधों को उखाड़ कर खत्म कर दें. बीज के लिए स्वस्थ फल को पकने के लिए छोड़ देते हैं. अगर भिंडी को 2-3 बार तोड़ने के बाद बीज के लिए पकने के लिए छोड़ा जाता है तो बीज की मात्रा और क्वालिटी में कमी आ जाती है. भिंडी की बोआई करते समय पौधे से पौधे की दूरी 45×15 सैंटीमीटर रखनी चाहिए.

लहसुन

लहसुन की बोआई बीज से नहीं होती है. बोआई के लिए इस के जवों का इस्तेमाल करते हैं और बीज के लिए कोई खास तकनीक इस्तेमाल नहीं की जाती है. सब्जी या मसालों के लिए उपजाई गई फसल में से स्वस्थ, अच्छे और बड़े कंदों को बीज के लिए रखते हैं.

बीज वाली फसल के लिए लाइन से लाइन की दूरी 40 सैंटीमीटर और पौधे से पौधे की दूरी 10-12 सैंटीमीटर रखते हैं.

सभी फसलों के बीज के लिए खेती करते समय खेती के वैज्ञानिक तरीकों को ही अपनाना चाहिए. खाद व पानी का भी इस्तेमाल इलाकेवार वैज्ञानिकों द्वारा तय मात्राओं के मुताबिक ही करना चाहिए. बीज उत्पादन के लिए केवल संबंधित फसल के लिए संस्तुत की गई दूरियों पर खास ध्यान देना चाहिए. इन तरीकों को अपना कर किसान अपनी जरूरतों के लिए बीज तैयार कर सकते हैं.

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