हमारे देश में उन्नत बीज का संकट आज भी बना हुआ है जबकि नए व उन्नतशील बीजों की खोज में कृषि वैज्ञानिक लगातार लगे हुए हैं. अगर खरीफ सीजन में उगाई जाने वाली फसलों की बात करें, तो इस सीजन में धान की खेती प्रमुख स्थान रखती है.

देश की जलवायु के हिसाब से धान की अलगअलग किस्म बोई जाती हैं, फिर भी किसानों को अगर किसी किस्म से उत्पादन ज्यादा मिलता है तो उस का स्वाद उतना अच्छा नहीं होता.

धान की पतली वैराइटी की बात की जाए तो इस का स्वाद खाने में तो अच्छा होता है लेकिन उस का उत्पादन मोटे धान की अपेक्षा कम मिलता है. धान की बहुत कम ऐसी किस्में हैं, जिन में उत्पादन और स्वाद के साथसाथ उन में पोषक तत्त्वों की प्रचुर मात्रा मौजूद हो.

धान की ऐसी ही एक किस्म को खोज निकालने का काम किया है बस्ती जिले के रुधौली ब्लौक के कचारी कलां गांव के पूर्वांचल बैंक के रिटायर्ड बैंक कर्मी बृजेंद्र बहादुर पाल ने.

बैंक से रिटायर होने के बाद उन्होंने अपने गांव में पुरखों की जमीन पर खेती करने का फैसला लिया. चूंकि उन के खेतों की मिट्टी खेती के नजरीए से बहुत उपजाऊ है, ऐसे में वे साल में एक खेत से 3-3 फसलें तक लेते हैं.

खरीफ फस्ल में वे धान की बड़े स्तर पर खेती करते हैं. वे धान की अलगअलग कई वैराइटियों की फसलें लेते हैं. उन्होंने साल 2014 में धान की कई वैराइटियों की फसल ले रखी थी और उसी धान की बोई गई फसल में उन्होंने देखा कि धान के कुछ पौधे बोई गई फसल से अलग हट कर हैं.

उन्हें लगा कि हो सकता है कि यह आसपास धान की बोई गई दूसरी प्रजातियों के परागण के चलते हुआ हो. ऐसे में उन्होंने धान के उन पौधों की विशेष देखभाल शुरू कर दी और धान के उन पौधों में बाली फूटी तो वह आसपास की सभी वैराइटियों से अलग हट कर थी.

इस धान की वैराइटी की बालियां दूसरी किसी भी वैराइटी से बड़ी होने के साथसाथ इस के दाने काले रंग के सूरजमुखी के बीज जैसे बड़ेबड़े और चमकीले थे. जब इन पौधों से धान पक कर तैयार हुआ तो उस से उन्हें आधा किलो बीज मिले. इस के बाद उन्होंने दूसरे साल 1 बिस्वां जमीन में फसल ली. इस से उन्हें इतना उत्पादन हासिल हुआ कि वे अगले साल बोआई के अलावा खा भी सके. उन्होंने इस खोजी गई वैराइटी को अपने नाम के पहले अक्षर ब नाम के पूरे अक्षरों की संख्या को जोड़ कर बी-6 नाम दिया है.

बृजेंद्र बहादुर पाल ने खोजी गई प्रजाति बी-6 को जलभराव व सिंचित अवस्था में उगा कर देखा तो पाया कि इस के पौधों की लंबाई 10 सैंटीमीटर है. इस के चलते यह बाढ़ व जलभराव की स्थिति में भी आसानी से उगाई जा सकती है. जबकि पानी की सही उपलब्धता में सिंचित दशा में भी इस बी-6 वैराइटी को आसानी से उगाया जा सकता है. इस की फसल को दोनों ही अवस्थाओं में उगा कर अच्छा उत्पादन लिया जा सकता है.

यह वैराइटी दोमट, चिकनी या बलुई दोमट मिट्टी सही पाई गई है. इस फसल में धान की सामान्य प्रजातियों की तरह खाद व उर्वरक की जरूरत पड़ती है.

धान (Paddy)

इन विधियों से बोएं इस वैराइटी को : उन्होंने धान की खोजी गई इस नई किस्म बी-6 को बोई जाने वाली सभी विधियों से आजमा कर देखा है. यह वैराइटी छिटकाव विधि, नर्सरी विधि और ड्रम सीडर व लाइनिंग विधियों से उगाई जा सकती है.

यह प्रजाति सभी विधियों से उगाए जाने में कामयाब रही है. अगर इस को नर्सरी में उगा कर रोपाई करना चाहते हैं तो जून के दूसरे हफ्ते तक नर्सरी डाल दें और तैयार नर्सरी को 21 दिन बाद खेत में रोप देना चाहिए. अगर इस की बोआई छिटकाव विधि या लाइनिंग विधि से करना चाहते हैं तो जुलाई के दूसरे हफ्ते तक बोआई कर दें.

प्रमाणन के लिए कर चुके हैं आवेदन : बृजेंद्र बहादुर पाल द्वारा खोजी गई धान की बी-6 किस्म खाने में स्वाद से भरपूर होने के साथ ही साथ पोषक तत्त्वों से भी भरपूर है. इस में उन्होंने स्थानीय स्तर पर इस की जांच करवा ली है और इस के प्रमाणन के लिए उन्होंने भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली व राइस रिसर्च इंस्टीट्यूट, कोयंबटूर को भी भेज रखा है.

इस वैराइटी के धान के चावल चौड़े, चमकीले व खाने में बहुत ही स्वादिष्ठ पाए गए हैं. बृजेंद्र बहादुर पाल द्वारा खोजी इस बी-6 वैराइटी के धान की खूबी यह है कि इस धान की कुटाई में इस के चावल टूटते नहीं हैं. इसलिए पकाने पर यह चावल न केवल देखने में अच्छे लगते हैं, बल्कि बहुत स्वादिष्ठ भी होते हैं.

अगर आप भी इस वैराइटी को उगाना चाहते हैं तो आप बृजेंद्र बहादुर पाल के मोबाइल नंबर 8795798979 पर संपर्क कर सकते हैं या उन्हें चिट्ठी भी लिख सकते हैं. पता है: ग्राम-पचारी कलां, पोस्ट-खंभा, जनपद-बस्ती, उत्तर प्रदेश, पिन-272151.

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