धान, मक्का, गन्ना, कपास, अरहर, बाजरा खरीफ मौसम की प्रमुख फसलें हैं. इस मौसम में तापमान व नमी ज्यादातर कीटों की बढ़ोतरी के लिए अनुकूल होने के चलते ये फसलें विभिन्न प्रकार के कीटों का शिकार हो जाती हैं, पर कुछ कीट न केवल इन फसलों की उपज में भारी कमी कर देते हैं, बल्कि इन की क्वालिटी पर भी बुरा असर डालते हैं.

वहीं दूसरी ओर कुछ कीट फसलों पर हमला करने के साथसाथ रोग फैला कर भी नुकसान की मात्रा में काफी बढ़ोतरी कर देते हैं. ज्यादा पैदावार देने वाली नई किस्मों के इस्तेमाल, खाद व उर्वरक, सिंचाई और कीटनाशकों का अंधाधुंध इस्तेमाल कीटों की तादाद बढ़ाने और इन से होने वाले नुकसान की मात्रा में बढ़ोतरी करने में मददगार बन जाते हैं, इसलिए खरीफ की इन फसलों की अच्छी उपज लेने के लिए हानिकारक कीटों का समयसमय पर नियंत्रण करना जरूरी हो जाता है, जबकि ज्यादातर किसान इस ओर ध्यान ही नहीं देते हैं.

खरीफ फसलों में लगने वाले हानिकारक कीटों और उन की रोकथाम के उपायों की जानकारी इस तरह है:

धान

पत्ता लपेट सूंड़ी : यह छोटे आकार की हरे रंग की सूंड़ी होती है जो जुलाई से अक्तूबर तक अपने ऊपर पत्तों को लपेट कर उस के हरे भाग को खाती रहती है.

रोकथाम : फसल पर इस कीट का हमला होने पर 10 किलोग्राम मिथाइल पैराथियान 2 फीसदी चूर्ण प्रति एकड़ की दर से बुरकें या 200 मिलीलिटर मोनोक्रोटोफास 36 एसएल को 200 लिटर पानी में मिला कर प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें.

जड़ की सूंड़ी : इस कीट की सूंडि़यां जमीन में रह कर पौधों की जड़ों को खाती रहती हैं. इस का हमला जुलाईअगस्त में होता है. इस वजह से फुटाव कम होता है और पौधे आकार में छोटे रह जाते हैं. बाद में पौधे पीले पड़ जाते हैं.

रोकथाम : सही जल प्रबंधन अपनाएं यानी फसल की बढ़वार में प्रति सप्ताह ताजा पानी भरें.

कीट से ग्रसित खेतों में 10 किलोग्राम कार्बारिल 4 जी या सेविडोल 4जी प्रति एकड़ की दर से डालें.

खरीफ फसलों (Kharif Crops)

पत्ती व पौधों का तेला (हापर बर्न) : ये रस चूसने वाले कीट हैं. पत्ती का तेला पत्तों से और पौधे का तेला तने के निचले भाग से रस चूसता है. शुरू में इन के आक्रमण से गोलाकार टुकडि़यों में फसल पीली पड़ कर सूखने लगती है और धीरेधीरे पूरा खेत सूख जाता है. इस स्थिति को हापर बर्न नाम दिया गया है.

रोकथाम : 1.5 लिटर पानी में डाईक्लोरोवास 250 मिलीलिटर को मिला कर इसे 20 किलोग्राम रेत में मिलाएं और प्रति एकड़ फसल के खड़े पानी में बुरकाव करें.

मक्का

तना बेधक : इस कीट का लार्वा 2.5 सैंटीमीटर लंबा होता है, जो भूरे रंग का होता है और पीठ पर पूरी लंबाई में बैगनी रंग की धारियां पाई जाती हैं.

यह कीट पत्तियों में छोटेछोटे गोल छेद बना देता है, फिर पर्ण चक्र के अंदर से तने में घुस कर के एक सुरंग सी बना देता है. इस के छोटे पौधों की पत्तियां सूख जाती हैं.

प्रकोप ज्यादा होने पर भुट्टों व दानों को भी खा जाता है.

रोकथाम : इस से फसल को बचाने के लिए प्रभावित पौधों को उखाड़ कर जला देना चाहिए. बाद में बची कड़वी को वहीं जला देना चाहिए.

बोआई के 15 दिन बाद थायोडान 35 फीसदी ईसी का 0.03 फीसदी (3 मिलीलिटर प्रति लिटर) की दर से छिड़काव करना चाहिए.

तना मक्खी : इस मक्खी के मैगट तराई क्षेत्र में वसंत के मौसम में बोई जाने वाली मक्का की फसल को ज्यादा नुकसान पहुंचाते हैं. मैगट सफेद रंग के होते हैं, जो छोटे पौधों को प्ररोह माध्यम से घुस कर ये बीच के ऊतकों को मार देते हैं. इस के चलते वर्धन शिखा मर जाती है इसलिए कल्ले फूटने शुरू हो जाते हैं.

रोकथाम : खेत की सफाई बहुत जरूरी है. पानी निकालने का सही इंतजाम होना चाहिए. बोआई से पहले कूंड़ों में 6 किलोग्राम 10 फीसदी फोरेट जी प्रति एकड़ डाल कर मिट्टी से ढक देना चाहिए, फिर बीज बोने चाहिए.

कटुवा कीट : यह मटमैले रंग का लार्वा होता है. दिन के समय मिट्टी में छिपा रहता है और रात में निकल कर छोटे पौधों को जड़ के पास से काट देता है.

रोकथाम : खरीफ फसलों की कटाई के बाद गहरी जुताई करनी चाहिए ताकि इस कीट के प्यूपों को पक्षी खा कर नष्ट कर दें.

इस की बड़ी सूंडि़यों की रोकथाम के लिए 250 मिलीलिटर मोनोक्रोटोफास 36 ईसी को 250 लिटर पानी में घोल कर फसल पर छिड़काव करें.

गन्ना

दीमक : गन्ने की फसल में इस का प्रकोप बोआई के तुरंत बाद शुरू हो जाता है. बीजी गई पोरियों की आंखों व सिरों को खा कर उन्हें खोखला कर देती है, जो बाद में मिट्टी से भर जाती है. उगे हुए पौधों का भीतरी भाग खा कर दीमक काफी नुकसान पहुंचाता है. प्रभावित पौधे सूख जाते हैं और खींचने पर आसानी से निकल जाते हैं.

कंसुआ (प्ररोह बेधक) : इस कीट की सूंडि़यां मटमैले सफेद रंग की होती हैं. इस की पीठ पर 5 लंबी गहरी धारियां होती हैं. इस कीट की सूंडि़यां जमीन की सतह के पास या जमीन में घुस कर खाना शुरू कर देती हैं. प्रभावित गन्ने की गोभ सूख जाती है और खींचने पर आसानी से निकल जाती है. प्रभावित गन्ने से एल्कोहल जैसी बदबू आती है.

मूल बेधक : इस कीट की सूंडि़यां जमीन के अंदर वाले भाग में छेद बना कर पौधे को खाती हैं. इस के चलते छोटे पौधों की गोभ सूख जाती है, लेकिन यह सूखी गोभ आसानी से बाहर नहीं निकाली जा सकती. प्रभावित पौधे धीरेधीरे सूख जाते हैं. इस कीट का प्रकोप बारिश के मौसम के बाद ज्यादा होता है.

रोकथाम : दीमक, कंसुआ व मूल बेधक की रोकथाम के लिए बोआई के समय 2.5 लिटर क्लोरोपाइरीफास 35 ईसी को 600-1000 लिटर पानी में मिला कर फव्वारे द्वारा कूंड़ों में पोरियों पर छिड़कें.

माड़ी (रेटून) फसल में भी क्लोरोपाइरीफास दवा डाली जा सकती है. खेत में हर 10 दिन बाद पानी दें.

शीर्ष बेधक : इस कीट के प्रौढ़ सफेद रंग के होते हैं. इस की मादा पत्तियों की निचली सतह पर समूह में अंडे देती है. इस कीट की नवजात सूंडि़यां हलके भूरे रंग की होती हैं और पत्तियों की मध्य शिराओं में घुस कर सफेद रेखा बनाती हैं. यह रेखा बाद में लाल रंग की हो जाती है.

ये सूंडि़यां मध्य शिराओं से होती हुई पौधे की बढ़वार बिंदु तक पहुंच कर उसे खा जाती हैं. प्रभावित गन्ने की नीचे वाली आंखों में फुटाव होने से गन्ने की चोटी गुच्छानुमा हो जाती है, जिसे बंचीटौप कहा जाता है.

रोकथाम : बीज के लिए सदैव स्वस्थ गन्ने का ही इस्तेमाल करें. मार्च और मई में फसल पर अंडों व प्रौढ़ों को जला कर खत्म करें.

अप्रैल से जून तक कीट से ग्रसित पौधों को खेत से उखाड़ कर जला दें. जून के आखिर में 13 किलोग्राम कार्बोफ्यूरान 3जी प्रति एकड़ की दर से खाद के साथ मिला कर डालें और हलकी सिंचाई करें.

पायरिल्ला : इस कीट के शिशु व प्रौढ़ दोनों ही पत्तियों के नीचे की ओर बैठ कर रस चूसते रहते हैं जिस से पत्तियां पीली पड़ जाती हैं. ज्यादा हमला होने की अवस्था में पत्तियों पर काली फफूंदी भी लग जाती है. इस वजह से पौधों की बढ़वार रुक जाती है और गन्ने में चीनी की मात्रा कम हो जाती है.

रोकथाम : इस कीट की रोकथाम के लिए जैविक नियंत्रण को प्राथमिकता दी जानी चाहिए. इस कीट के अंडों के परजीवी (टेट्रास्टिकस पायरिल्ली, आयनसिर्टस पेपीलिओनस और कालीन्यूरस पायरिल्ली) और शिशु व प्रौढ़ के परजीवी (एपीरिको मैलेनिल्यूका) द्वारा इस की रोकथाम प्रभावी ढंग से संभव है.

परजीवी उपलब्ध न होने की दशा में प्रभावित फसल पर 400-500 मिलीलिटर मैलाथियान 50 ईसी को 400-600 लिटर पानी में मिला कर प्रति एकड़ के हिसाब से छिड़काव करें.

शल्क कीट : यह कीट विशेषकर गन्ने की निचली पोरियों पर सफेद पपड़ी की तरह दिखाई देता है और पोरियों का रस चूसता रहता है. ग्रसित गन्ना अंदर से खोखला हो जाता है और सिकुड़ जाता है. प्रभावित गन्ने में चीनी की मात्रा कम हो जाती है.

रोकथाम : बोआई के लिए स्वस्थ बीज लें या बीज को 0.1 फीसदी मैलाथियान के घोल में 20 मिनट तक उपचारित कर के बोएं.

खरीफ फसलों (Kharif Crops)

गन्ने की सीओ 7314 नामक किस्म ही उगाएं क्योंकि इस में कीड़ा कम ही लगता है. अगस्तसितंबर में गन्ने की नीचे से सूखी पत्तियां उतार कर 0.1 फीसदी मैलाथियान का छिड़काव करें.

कपास

दीमक : यह कीट छोटेबड़े पौधों की जड़ों को काट कर खाता है, प्रभावित पौधे सूख जाते हैं और थोड़ा खींचने पर आसानी से निकल आते हैं.

रोकथाम : खेत की तैयारी के समय पिछली फसल के ठूंठों, जड़ों व पौधों के दूसरे भागों को निकाल कर खत्म कर दें.

कपास के खेत में गोबर की कच्ची खाद कभी भूल कर भी नहीं डालें. बीज बोने से पहले 10 मिलीलिटर क्लोरोपाइरीफास 20 ईसी प्रति किलोग्राम बीज दर से उपचारित करें.

सफेद मक्खी : इस कीट के उड़ने वाले सफेद रंग के छोटेछोटे कीट और चपटे अंडाकार शिशु पत्तियों की निचली सतह से रस चूसते रहते हैं. इस के चलते पत्ते पीले काले हो जाते हैं और नीचे की ओर मुड़ जाते हैं. प्रभावित पत्तों पर काली फफूंदी लग जाती है. ज्यादा हमला होने पर खिल रही कपास भी काली और चिपचिपी हो जाती है. यह कीट पत्ती मोड़क विषाणु रोग भी फैलाता है.

रोकथाम : खाद और उर्वरकों का संतुलित मात्रा में इस्तेमाल करें. सिंचाई जरूरत के मुताबिक करें.

फसल पर कीटों की स्थिति जानने के लिए समयसमय पर फसल का निरीक्षण करें. सफेद मक्खी के 6 प्रौढ़ प्रति पत्ती दिखाई देने पर कीटनाशक दवा का छिड़काव करें.

इस की रोकथाम के लिए 250-500 मिलीलिटर डाईमेथोएट 30 ईसी को 120-150 लिटर पानी में घोल कर छिड़काव करें.

गुलाबी सूंड़ी : इस कीट का प्रकोप खड़ी फसल में और भंडारित कपास में 2 जुड़े बीजों में होता है. इस सूंड़ी से प्रभावित कलियां गिर जाती हैं या उन पर गुलाबनुमा फूल बन जाते हैं जो अकसर बाद में गिर जाते हैं. छोटी सूंडि़यां टिंडे के अंदर प्रवेश कर के खाती रहती हैं और इन का प्रवेश छिद्र बंद हो जाता है.

सूंड़ी काल पूरा होने पर बड़ा छेद बना कर वह बाहर निकल जाती है. प्रभावित फल या तो गिर जाते हैं या उन पर कम या घटिया कपास बनती  है. सर्दी शुरू होने पर ये सूंडि़यां अकसर 2 बीजों को जोड़ कर अंदर बैठ जाती हैं. यह उन की सुषुप्तावस्था कहलाती है.

अमेरिकन सूंड़ी : भारी बारिश, बादल वाले मौसम और ज्यादा तापमान (30-35 डिगरी सैल्सियस) होने की अवस्था में इस कीट का हमला ज्यादा होता है.

यह कीट फलों को ज्यादा नुकसान पहुंचाता है. पूरी तरह विकसित सूंडि़यां हलके गहरे हरे रंग की होती हैं. इन के दाएंबाएं दोनों ओर टूटीफूटी सफेद धारियां पाई जाती हैं. कलियां इन का मनभावन भोजन है. बड़े आकार की सूंडि़यां टिंडों के बाहर रह कर उन के अंदर के हिस्से को खाती हैं. प्रभावित फल खोखले हो जाते हैं और गिर जाते हैं.

रोकथाम : जल्दी तैयार होने वाली सिफारिश वाली किस्में ही बोएं. खाद और उर्वरक का संतुलित मात्रा में इस्तेमाल करें. नाइट्रोजनधारी उर्वरकों का ज्यादा मात्रा में इस्तेमाल करने से कीटों का हमला ज्यादा होता है.

प्रत्येक खेत का समयसमय पर निरीक्षण और आवश्यकतानुसार कीटों से फसल को बचाने के लिए कारगर उपाय करें.

अमेरिकन सूंड़ी और सफेद मक्खी के प्रकोप की अवस्था में क्विनालफास 25 ईसी को 200-250 लिटर पानी में घोल कर प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें.

अरहर

फल छेदक : इस कीट की सूंडि़यां कलियों, फूलों व फलियों को खा कर नुकसान पहुंचाती हैं. एक सूंड़ी कई फलियों को खराब कर देती है. इस कीट का हमला अरहर की अगेती किस्मों पर ज्यादा होता है.

रोकथाम : अरहर की बोआई समय पर करें और पौधों व पंक्तियों का फासला सही रखें. जल्दी फलियां बन जाने पर क्विनालफास 25 ईसी को 300 लिटर पानी में घोल कर प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें.

अगर जरूरी हो तो 15 दिन के बाद एक छिड़काव और करें. छिड़काव की सुविधा के लिए 7 मीटर अरहर की पट्टी के बाद 3 मीटर खाली जगह छोड़ें, जिस में खड़े हो कर छिड़काव आसानी से किया जा सके. इस 3 मीटर खाली जगह में मूंग या उड़द की फसल लें.

बाजरा

सफेद लट : इस कीट के भूरे रंग के प्रौढ़ मानसून की पहली बारिश के बाद जमीन में से निकलते हैं और बाजरे की फसल पर इकट्ठा हो कर पत्तियों को खाते हैं.

इस कीट का शरीर सफेद व और मुंह भूरा होता है जो बाजरे की जड़ों को काट कर अगस्त से अक्तूबर तक भारी नुकसान पहुंचाते हैं. प्रभावित पौधे पीले पड़ कर सूख जाते हैं.

रोकथाम : कीटों से ग्रसित इलाकों में मानसून की पहली बारिश के बाद पहली या दूसरी रात को पौधों को इकट्ठा कर प्रौढ़ पौधों को हिला कर नीचे गिरा देते हैं और एकत्रित कर के मिट्टी के तेल के घोल में डाल देते हैं या पहली, दूसरी या तीसरी बारिश होने के बाद पौधों पर 0.04 फीसदी मोनोक्रोटोफास 36 एसएल को 250 लिटर पानी में घोल कर पत्तियों पर छिड़काव करना चाहिए.

बालों वाली सूंड़ी : ये छोटी सूंडि़यां छोटी अवस्था में ही झुंड में रह कर बाद में अकेले रह कर पौधों की पत्तियों को खा कर छलनी कर देती हैं.

रोकथाम : पहली बारिश के बाद 1 महीने तक लाइट ट्रेप लगा कर इन सूंडि़यों के प्रौढ़ों को खत्म करें. पत्तों को अंड समूह या छोटी सूंडि़यों के समूह सहित तोड़ कर जमीन में गहरा दबा दें या मिट्टी के तेल में डाल कर खत्म कर दें.

बड़ी सूंडि़यों की उचित रोकथाम के लिए 250 मिली मोनोक्रोटोफास 36 एसएल को 250 लिटर पानी में घोल कर प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें.

भूंडी : यह सलेटी रंग का कीट होता है. इस का मुंह सूंड़ जैसा होता है. यह सूंड़ी पत्तियों के किनारों को खा कर अगस्त से अक्तूबर तक फसल को नुकसान पहुंचाती है.

रोकथाम : कीट से ग्रसित फसल पर 400 मिलीलिटर मैलाथियान 50 ईसी को 250 लिटर पानी में घोल कर छिड़काव करें.

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