भारत में उगाई जाने वाली खाद्यान्न फसलों में गेहूं एक प्रमुख फसल है, जो पूरे भारत में तकरीबन 30.31 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्रफल में उगाई जाती है. यह कुल फसल क्षेत्रफल का तकरीबन 24.25 फीसदी है.

फसल सत्र 2019-20 के दौरान भारत में 107.59 मिलियन टन गेहूं का उत्पादन हुआ है. कृषि उत्पादकता और उत्पादन में लगातार बढ़ोतरी के लिए बीज एक महत्त्वपूर्ण आवक है, क्योंकि तकरीबन 90 फीसदी खाद्यान्न फसलें बीज से ही तैयार की जाती हैं.

बीजजनित और शुरुआती मौसम के रोग व कीड़ों का समय पर प्रबंधन न करने पर विनाशकारी नतीजे सामने आते हैं. बीज की गुणवत्ता बनाए रखना कई पर्यावरणीय कारकों पर निर्भर होता है, जिन में से नमी, तापमान व भंडारण की हालत ज्यादा खास है. भले ही इन कारकों का आकलन सही से लगाया गया हो, फिर भी बीज की गुणवत्ता व उपज की क्षमता अभी भी कुछ बीजजनित रोगों व कीड़ों द्वारा प्रभावित होती है.

गेहूं व दूसरी फसलों में बीजोपचार की प्रथा सदियों पुरानी है. अनुसंधानों से पता चलता है कि बीजजनित रोगों व कीटों से बीज की हिफाजत करने, बीज की गुणवत्ता में सुधार लाने व उपज क्षमता को बनाए रखने के लिए एक या ज्यादा कीटनाशकों के साथ बीज का उपचार सब से ज्यादा किफायती व कुशल तकनीक है. कवकनाशक व कीटनाशक जहरीली होती हैं, इसलिए बीज उपचारित करने के बाद बिजाई करने व बीज के रखरखाव में खास सावधानी बरती जानी चाहिए.

गेहूं का अनावृत्त कंडुआ रोग, ध्वज कांड (फ्लैग स्मट) फ्यूजेरियम हैड स्कैब व दीमक आदि का प्रभावी प्रबंधन बीजोंपचार द्वारा आसानी से किया जा सकता है.

बीजोपचार की विधि

बीज की व्यवहार्यता व अंकुरण क्षमता को प्रभावित किए बिना बीज के ऊपर या अंदर मौजूद बीजजनित कवक के इनोकुलम स्तर व रोग विकास को कम करने के लक्ष्य को तय करते हैं. बीजोपचार के लिए बीज डै्रसिंग व बीज कोटिंग तकनीक से इस्तेमाल में लाई जाती हैं.

बीज डै्रसिंग

यह बीजोपचार का सब से प्रचलित तरीका है. इस तकनीक के तहत बीजों को आधुनिक फफूंदीनाशक व कीटनाशकों के साथ मिलाया जाता है, जिस में रसायनों को सूखे पाउडर या घोल के रूप में बीज की ऊपरी सतह पर लगाया जाता है.

डै्रसिंग तकनीक को खेत और औद्योगिक दोनों स्तरों पर अपनाया जा सकता है. कम लागत वाले मिट्टी के बरतनों का उपयोग कीटनाशकों को बीज के साथ मिलाने के लिए कर सकते हैं या बीज को एक पौलीथिन शीट पर फैला कर शोधित किया जा सकता है.

गांवों में आमतौर पर हावड़ा का उपयोग रसायनों के मिश्रण के लिए किया जाता है. हालांकि यह तरीका असमान है और इसे एक मानक विधि नहीं माना जाता है.

बीज के साथ रासायनिक मिश्रण का सब से अच्छा तरीका मोटर या हाथ से संचालित बीजोपचार ड्रम है. ड्रम के अंदर क्षमता के अनुसार बीज व अनुशंसित मात्रा में रसायन को डाल कर ड्रम का ढक्कन बंद कर के बीज के ऊपर रसायन की समान परत चढ़ने तक घुमाया जाता है और बीजोपचार की यह प्रक्रिया तकरीबन 12 से 15 मिनट में पूरी हो जाती है.

Seed Treatment
Seed Treatment

बीज कोटिंग के लिए एक खास तरह की मशीन की आवश्यकता होती है. कवकनाशी के साथ बीजोपचार के शुरुआती तरीके अपेक्षाकृत कम असरदार थे.

शुरुआती दौर में बीज और रसायन को ठोस सतह पर डाल कर ठीक तरह से लेपित होने तक हाथ से मिलाया जाता है. बाद में एक घूर्णन ड्रम का इस्तेमाल तांबा कार्बोनेट जैसे सामग्री के धूल योगों के साथ बीज को मिलाने के लिए किया जाता था. इस में एक कोण पर एक बैरल बढ़ते हुए लगी रहती थी, जिसे हाथ से चलाया जाता था.

इस तरह कवकनाशी के साथ बीज की कोटिंग की जाती थी. बाद में कवकनाशकों से बीजोपचार करने वाली मशीनों को विकसित किया गया.

यह कवकनाशी तरल पदार्थ या धूल/डस्ट के रूप में उपलब्ध थे. अब इस तरीके से बीजोपचार के लिए नई प्रौद्योगिकियां विकसित की जा रही हैं, जिन में विशेषतौर पर डिजाइन किए गए उपकरण हैं, जो उपचार को संभालने वाले आदमी के बारे में सुरक्षा का पूरा ध्यान रखते हैं.

बड़े पैमाने पर बीजोपचार में स्वचालित बीजोपचार संयंत्र का उपयोग किया जाता है. इस मशीन में बीज और रासायनिक दोनों के लिए स्वचालित कैलीब्रेशन की सुविधा है. तकनीकी व्यक्ति निर्माता द्वारा प्रदान किए गए दिशानिर्देशों की मदद से इस का उपयोग कर सकते हैं. कारबाक्सी मिथाइल सैलूलोज डेक्स्ट्रांस, गम अरबी, वनस्पति/पैराफिनोल जैसे चिपकने वाले अवयवों का उपयोग किया जाता है.

 बीमारियों व कीटों में बीजोपचार के लिए रसायनों की बताई गई मात्रा

बीमारी : अनावृत कंडुआ रोग/कंडुआ रोग (लूज स्मट), ध्वज कंडुआ (फ्लैग स्मट) और फ्यूजेरियम हैड स्कैब वगैरह.

उपचार : इन रोगों के प्रबंधन के लिए कार्बंडाजिम 50 डब्ल्यूपी की 2.0 से 2.5 ग्राम दवा प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें और बायोएजेंट कवक (ट्राइकोडर्मा विरिडी) की 5.0 ग्राम मात्रा प्रति किलोग्राम बीज की दर से इस्तेमाल करें.

ट्राइकोडर्मा विरिडी से बीजोपचार करने से अंकुरण अच्छा होता है और बाद की अवस्थाओं में रोगों से बचने की क्षमता भी बढ़ जाती है.

या थायोफिनेट मिथाइल 70 डब्ल्यूपी की 2.0 ग्राम दवा प्रति किलोग्राम बीज की दर से बीजोपचार करें.

या थीरम 2.0 से 2.5 ग्राम मात्रा से प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें.

या टैबूकोनाजोल (फालीकर) की 1.5 ग्राम दवा प्रति किलोग्राम बीज की दर से बीजोपचार करें.

कीट व दीमक

उपचार : इन कीटों के उपचार के लिए बैबेरिया बेसियाना 4 से 5 किलोग्राम और 50 से 60 किलोग्राम सड़ी गोबर की खाद में मिला कर गेहूं की बोआई के एक दिन पहले शाम के समय प्रति हेक्टेयर की दर से खेत में फैला कर आखिरी जुताई करा दें. या क्लोरोपाइरीफास 20 ईसी की 4.0 से 5.0 मिलीलिटर मात्रा या फिपरोनिल 5 एससी की 1.5 से 2.0 ग्राम मात्रा अथवा इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एसएल की 1.0 मिलीलिटर दवा प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें.

बीजोपचार से लाभ

रसायनों द्वारा गेहूं बीजोपचार करने से कई तरह के फायदे होते हैं, जिन की जानकारी इस तरह है :

* बीजजनित रोग प्रबंधन के लिए बीजोपचार अच्छी तकनीक है.

* बीजजनित रोगजनकों, मृदा रोगजनकों व कीटों से बीजोपचार सुरक्षा देता है, जिस के चलते बीजों का बेहतर अंकुरण होता है.

* आम सक्रिय अवयवों का उपयोग कवक, कीड़े और निमेटोड के प्रति सुरक्षा देने के लिए किया जा सकता है.

* बीजोपचार से दानों की गुणवत्ता में बढ़ोतरी होती है, जिस के चलते बाजार में गेहूं ऊंची दरों पर खरीदा जाता है और किसानों की आमदनी में बढ़ोतरी होती है.

* बीजोपचार से फसल की उत्पादकता व उत्पादन में बढ़ोतरी का आकलन किया गया है.

* यह एक विस्तृत रोगजनक स्पैक्ट्रम के साथसाथ बीज और अंकुर के नुकसान को रोकने के लिए उच्च स्तर की सुरक्षा देता है.

* बीजोपचार द्वारा प्रदान किए गए लाभों को दूसरी तकनीक से हासिल नहीं किया जा सकता है, क्योंकि ज्यादातर रोग व कीटों को स्थापित होने के बाद कंट्रोल करना बहुत मुश्किल होता है.

* यह एक विश्वसनीय तकनीक है, जो विभिन्न प्रकार के वातावरण, मिट्टी और शस्य क्रियाओं में एकसमान फसल स्थापना की गारंटी देती है.

बीजोपचार से ले कर बीजाई तक बरतें सावधानियां

* रोग व कीट के अनुसार ही सिफारिश किए गए रसायन का प्रयोग करना चाहिए.

* रसायन का इस्तेमाल बताई गई मात्रा में ही करें, कम या ज्यादा मात्रा में कभी न करें.

* बीजोपचार के लिए खरीदे गए रसायनों के इस्तेमाल की आखिरी तारीख जरूर देख लें.

* बीज शोधन के समय मुंह को कपड़े से ढकें या मास्क लगाएं व हाथों में दस्तानों का इस्तेमाल जरूर करें.

* बीज शोधन का काम पूरा होने पर हाथ, पैर व मुंह को साफ पानी से साबुन के साथ अच्छी तरह से धोएं.

* बीजोपचार के बाद उपचारित बीज को छायादार जगह पर ही सुखाएं, खिली धूप वाली जगहों का इस्तेमाल कभी न करें.

* उपचारित बीजों को ज्यादा समय तक घर पर न रखें. हो सके, तो 4 से 6 घंटे के अंदर बीजाई कर दें.

* बीजोपचार में इस्तेमाल किए जाने वाले ज्यादातर रसायन/उत्पाद इनसानों और जानवरों के लिए नुकसानदायक होते हैं, इसलिए उपचारित बीज को बच्चों व जानवरों की पहुंच से दूर रखें.

* खाली बैग या बचे हुए उपचारित बीज को इधरउधर न फेंकें. तय करें कि दूसरे कामों के लिए खाली बीज/बैग का इस्तेमाल न किया जाए.

* पक्षियों व पशुओं की सुरक्षा के लिए पंक्तियों के आखिर में खुले पड़े उपचारित बीजों को मिट्टी से ढक देना चाहिए.

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