Potash : भारत में चावल के बाद सब से ज्यादा उत्पादन गेहूं का होता है. दुनियाभर के गेहूं उत्पादन और गेहूं के कुल फसल क्षेत्र का लगभग 11 फीसदी भारत में ही है, जो खाद्यान्न के सकल उत्पादन का 35 फीसदी है.

गेहूं के शानदार उत्पादन के पीछे उर्वरकों के इस्तेमाल का एक खास हाथ है. अंदाजा है कि गेहूं की फसल में कुल 28 फीसदी नाइट्रोजन, 29 फीसदी फास्फोरस और 15 फीसदी पोटाश (Potash) उर्वरकों का इस्तेमाल होता है.

हरीभरी लहलहाती फसलें पाने के लिए किसान कड़ी मेहनत और खेती के आधुनिक तरीके अपनाते तो हैं, लेकिन आमतौर पर एक खास बात पर ध्यान नहीं देते… वह है पोटाश (Potash) खाद का इस्तेमाल.

कृषि विकास के परीक्षणों ने यह साबित कर दिया है कि पौधों की खुराक में नाइट्रोजन और फास्फेट के साथ पोटाश (Potash) का होना भी बहुत जरूरी है. इस की अहमियत न ही सिर्फ सिंचित खेतों में है, बल्कि असिंचित व सूखे क्षेत्रों में बारानी खेतीबारी के लिए भी है.

हालांकि, धरती में पोटाशियम की मात्रा होती है, पर वह पौधों को तुरंत और आसानी से नहीं मिल पाती. गेहूं की फसल के अच्छे विकास के लिए पौधों को अनेक मुख्य, सहायक और सूक्ष्म पोषक तत्त्वों की जरूरत होती है. इस बारे में रासायनिक खादों के संतुलित उपयोग का बहुत गहरा महत्त्व है. हर फसल उगाने के बाद धरती से दूसरे पोषक तत्त्वों के साथ पोटाश की भी काफी मात्रा में कमी हो जाती है. खासतौर पर गेहूं की अधिक उपजाऊ किस्में (एचवाईवी) जमीन से ज्यादा ही पोटाश (Potash) लेती हैं. अपनी फसल की अच्छी उपज के लिए धरती की उर्वराशक्ति बनाए रखने के लिए पोटाश का इस्तेमाल करना ही चाहिए.

गेहूं की फसल प्रति टन अनाज उत्पादन के लिए औसतन 67 किलोग्राम नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश का शोषण करती है. प्रमाणित सूत्रों के अनुसार 4.6 टन अनाज और 6.9 टन भूसे वाली फसल में 128 किलोग्राम नाइट्रोजन, 46 किलोग्राम फास्फोरस और 219 किलोग्राम पोटाश (Potash) की खपत होती है.

पोटाश की खासीयतें

पोटाश (Potash) के इस्तेमाल से गेहूं के हर पौधे में ज्यादा कल्ले निकलते हैं, जिस से ज्यादा बालियां बनती हैं. बालियां व दाने बनने के समय पोटाश की मदद से पूरी खुराक मिलने पर ज्यादा दाने बनते हैं, जिस का नतीजा होता है ज्यादा उपज.

पोटाश (Potash) नाइट्रोजन व फास्फेट वाली रासायनिक खादों से पूरापूरा लाभ दिलाती है और अतिरिक्त नाइट्रोजन से होने वाले नुकसान को रोकती है. इस के प्रयोग से गेहूं में प्रोटीन व कार्बोहाइड्रेट्स की मात्रा अधिक होती है, जिस का नतीजा होता है मोटे, चमकदार व वजनी दाने.

पोटाश (Potash) से पौधों में अनेक पदार्थों का परिचलन होता है. पौधों की वृद्धि के लिए यह बहुत जरूरी है. पोटाश जड़ों के विकास में, उन्हें भरपूर लंबी, मजबूत और स्वस्थ बनने में मदद करती है. जड़ें घनी और लंबी होने से पौधे धरती से पानी व खुराक अच्छी तरह ले सकते हैं और मजबूती से खड़े रहते हैं.

पोटाश (Potash) पौधों में मजबूती ला कर उन्हें नुकसान पहुंचाने वाले कीड़ों व बीमारियों का सामना करने की ताकत देती है.

पोटाश (Potash) पौधों में पानी के उपयोग को नियमित करती है, जिस से पौधा गरमी, सूखे और पाले को सह सकता है. इस तरह सूखे क्षेत्रों में बारानी खेतीबारी के लिए पोटाश बहुत जरूरी और फायदेमंद है.

नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश (Potash) के बढ़ते अनुपात से पोषक तत्त्वों में असंतुलन पैदा होता है, भूमि के उपजाऊपन में कभी आने लगती है और भूमि खेती के लिए अयोग्य हो जाती है, जो एक चिंता का विषय है. पोटाशियम की कमी के कारण नाइट्रोजन या नाइट्रोजनफास्फोरस की उपलब्धता भी प्रभावित होती है.

याद रखिए कि गेहूं की फसल को पोटाश न मिलने का मतलब है :

-अविकसित पौधे.

-अविकसित जड़ें, जिस से पौधों को पूरी खुराक और पानी नहीं मिलता.

-फसलों में बीमारियों, कीड़ेमकोड़ों और सूखा आदि का मुकाबला करने की ताकत कम हो जाती है.

-फसलें गिरने और सड़ने लगती हैं.
गेहूं के दाने कम, छोटे और बदरंग होते हैं.

-कम पैदावार.

नुकसान से बचने के लिए पोटाश (Potash) की कमी के लक्षणों का इंतजार नहीं करना चाहिए. पोटाश के प्रयोग से आमतौर पर नतीजे तत्काल दिखने में नहीं आते हैं. पोटाश की कमी का सब से आम लक्षण है पुराने पत्तों की नोकों और किनारों का समय से पहले मुरझा कर पीला पड़ जाना. इस की अधिक कमी होने से पत्तों के बीच में पीलापन आ जाता है. बहुत अधिक कमी होने पर नन्हे पत्ते पनपते नहीं और छोटी अवस्था में ही मुरझा कर गिर जाते हैं.

पोटाश का प्रयोग कब और कैसे करें

हाल ही में किए गए अनुसंधान के नतीजों से पता चलता है कि उर्वरक और खासकर पोटाशियम वाले उर्वरक इस्तेमाल करने के परंपरागत ढंग से बदलाव की जरूरत है. यह साबित हो गया है कि फसल पर पोटाश (Potash) के एक बार इस्तेमाल के बजाय उस का अलगअलग 2-3 बार इस्तेमाल करना फायदेमंद है, क्योंकि फसलों को पूरे समय पोटाशियम की लगातार क्रम से जरूरत होती है, इसलिए इंडियन पोटाश लिमिटेड (आईपीएल) के पोटाश का सही समय पर सही मात्रा में इस्तेमाल कर के ही तय किया जा सकता है कि पौधों को पोषक तत्त्वों की पूर्ति हो रही है. इस प्रबंध से ही फसलों से लाभ लिया जा सकता है.

पोटाश (Potash) की सारी मात्रा, यूरिया की आधी मात्रा और फास्फेट की पूरी मात्रा के साथ बोआई के समय डाली जा सकती है, लेकिन पोटाश को यूरिया के साथ 1:1 के अनुपात में 2-3 भागों में बांट कर इस्तेमाल करने से ज्यादा फायदा होता है. इस के लिए पौधे की पूरी पोटाश खुराक में से 50 फीसदी बोआई से पहले, 25 फीसदी अंखुए निकलते समय पहली टौप ड्रैसिंग के रूप में और बाकी 25 फीसदी बालियां निकलने के समय दूसरी टौप ड्रैसिंग के रूप में देनी चाहिए. उर्वरक की मात्रा मिट्टी, जलवायु व क्षेत्र के आधार पर बदल सकती है.

उपज बढ़ाने के गुर

क्षेत्र और जलवायु के अनुसार सही किस्म को चुनें. बोआई के लिए उपचारित और प्रमाणित बीज प्रयोग करें. हर किस्म को उस के सही समय पर बोएं. उर्वरक को उचित मात्रा में अलंगाना तरकीब से प्रयोग करें. खरपतवारों को नियंत्रण में रखें. सिंचाई सही मात्रा में और उचित समय पर दें. बीमारियों और कीटों की रोकथाम के लिए अनुमानित तरीकों को अपनाएं.

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