Agri Clinic And Agri Business Centre : हमारे देश में पढ़ेलिखे बेरोजगारों की एक बड़ी फौज है. बहुत सारे पढ़ेलिखे युवा ऐसे हैं जो अपना खुद का कारोबार खड़ा कर के दूसरों को भी रोजगार देने का जोश और जज्बा रखते हैं, मगर पैसे और जानकारी न होने के कारण वे अपनी इच्छाओं को पूरा नहीं कर पाते हैं. नतीजतन बड़ी से बड़ी डिगरी लेने वाले नौजवान भी कई बार बेरोजगार रह जाते हैं या कम पगार पर दूसरों के यहां नौकरी कर लेते हैं.

हालांकि खेतीकिसानी के क्षेत्र में बेहद खुशी की बात है कि कृषि और उस से जुड़े दूसरे क्षेत्रों के पढ़ेलिखे नौजवानों के लिए केंद्र सरकार ने एक खास योजना चलाई है, जिस का नाम है ‘एग्री क्लीनिक एंड एग्री बिजनेस सेंटर’ यानी एसीएबीसी यह ट्रेनिंग नाम के अनुसार ही कामधंधों की जानकारी देती है. यह कृषि व उस से जुड़े क्षेत्रों की शिक्षा पाए छात्रों के लिए पूरी तरह से मुफ्त है.

योजना की खास बात यह है कि सेंटर खोलने के लिए दोहरी सब्सिडी है. पहली सब्सिडी आने वाली लागत पर यानी कि पूंजी सब्सिडी है, तो दूसरी दी गई पूंजी पर ब्याज सब्सिडी यानी ब्याज में छूट है. सोने पे सुहागा यह है कि सरकार इस समय स्टार्टअप ट्रेनिंग प्रोग्राम भी मुहैया करा रही है. जो नौजवान टे्रनिंग ले चुके हैं, वे खासतौर से स्टार्टअप ट्रेनिंग प्रोग्राम लोन भी संबंधित इकाई को लगाने के लिए ले सकते हैं.

क्या है एसीएबीसी : एग्री क्लीनिक एंड एग्री बिजनेस सेंटर द्वारा 2 महीने का मुफ्त प्रशिक्षण कोर्स होता है. यह राष्ट्रीय कृषि विस्तार संस्थान(मैनेज), हैदराबाद और राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) के वित्तीय सहयोग से चल रहा है.

इस के तहत कृषि व इस से जुड़े क्षेत्रों के छात्रों को व्यावहारिक रूप से प्रशिक्षित कर के वित्तीय सहयोग के साथ कृषि उद्यमी बनाने की योजना है. योजना का खास मकसद प्रशिक्षण प्राप्त युवाओं के जरीए न्याय पंचायत स्तर पर पेशेवर कृषि प्रसार संबंधी जानकारी ज्यादा किसानों तक पहुंचाना है.

प्रशिक्षण लेने वाले कृषि छात्र, कृषि क्लीनिकों में कृषि विशेषज्ञ के रूप में कृषि प्रौद्योगिकी, फसलों की कीटों और रोगों से सुरक्षा, बाजार का रुझान देने, विभिन्न फसलों के मूल्य बताने, कृत्रिम गर्भाधान करने और पशु स्वास्थ्य के लिए क्लीनिक सेवाएं चलाने के साथ अन्य चीजों पर किसानों को जानकारी देंगे.

सरकार का मानना है कि इस से फसलों, पशुओं की उत्पादकता व किसानों की आमदनी में इजाफा होगा. इस के जरीए उन्नत कृषि उपकरणों को किराए पर दिया जाएगा और कृषि उत्पादों की बिक्री भी की जाएगी.

शैक्षणिक योग्यता : सभी कृषि शिक्षा प्राप्त छात्र जिन में 10+2 से ले कर कृषि में पीएचडी तक इस के प्रशिक्षण हेतु योग्य हैं. मतलब यह है कि कोई युवा कृषि से संबंधित क्षेत्रों जैसे बागबानी, कृषि अभियांत्रिकी, वानिकी, डेरी, मछलीपालन, पशुचिकित्सा संबंधी अन्य किसी भी विषय में स्नातक है, तो भी प्रशिक्षण लेने के योग्य होगा, भले ही उस के पास तजरबा न हो.

Agri Clinic And Agri Business Centre

कोर्स से जुड़ी जानकारी : मैनेज द्वारा निर्धारित कोर्स में कृषि उद्यमिता और कृषि व्यापार प्रबंधन की जानकारी दी जाती है, साथ में उद्यम हेतु चुने गए क्षेत्र में कौशल विकास की सैद्धांतिक और व्यावहारिक जानकारी उस क्षेत्र के माहिरों द्वारा दी जाती है.

लागत : एसीएबीसी शुरू करने में आने वाली लागत की बात की जाए तो यह आप के द्वारा चुने हुए प्रोजेक्ट पर निर्भर है. अगर प्रोजेक्ट बड़ा होगा तो लागत भी ज्यादा होगी, प्रोजेक्ट छोटा होगा तो लागत कम होगी.

सरकारी मदद : कृषि उद्यमियों की लागत को कम करने और लाभ को बढ़ाने के लिए योजना के तहत केंद्र सरकार मदद देती है, वह बैंक द्वारा एक निश्चित सीमा तक कर्ज मुहैया कराती है और मुहैया कराए गए कर्ज पर लगने वाले ब्याज में खासी छूट देती है.

मौजूदा समय में व्यक्तिगत प्रोजेक्ट के लागत की उच्चतम सीमा सीलिंग 20 लाख रुपए है, जबकि 5 लोगों के ग्रुप प्रोजेक्ट के लिए लागत की उच्चतम सीमा 1 करोड़ रुपए है. कर्ज में मिलने वाली छूट की बात की जाए तो सामान्य वर्ग के लोगों को 36 फीसदी तक और पहाड़ी या कठिन भौगोलिक क्षेत्रों, एससी, एसटी वर्ग के लोगों को 42 फीसदी तक की छूट मिलती है.

असीमित संभावनाएं : एसीएबीसी ट्रेनिंग ले चुके लोगों के पास असीमित व्यापार बढ़ाने, असीमित कृषि प्रसार का कार्य कर के किसानों की सेवा करने, पैसा और नाम कमाने की अपार संभावनाएं हैं. इस की वजह सरकार द्वारा सधी हुई ट्रेनिंग मुहैया कराया जाना और हर तरह से भरपूर वित्तीय सहायता पहुंचाना है.

ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि अगर उद्यमी के अंदर अपना काम शुरू करने का जुझारू जज्बा और जोश कायम हो तो उसे शोहरत की बुलंदियों पर पहुंचने से कोई रोक नहीं सकता है. यही नहीं एसीएबीसी का उद्यमी दूसरे लोगों को भारी मात्रा में आसानी से रोजगार भी दे सकता है.

माहिरों का मशविरा : इस संबंध में वाराणसी (उत्तर प्रदेश) स्थित श्री मां गुरु ग्रामोद्याग सेवा संस्थान जो कि एसीएबीसी की ट्रेनिंग का एक बड़ा और पुराना संस्थान है के नोडल आफिसर डा. शैलेंद्र प्रताप सिंह कहते हैं, ‘आज जब खेती की लागत तेजी से बढ़ रही है तब कृषि क्षेत्र के डाक्टरों की दरकार भी बढ़ रही है, क्योंकि इनसानों और जानवरों के डाक्टरों के साथ ही साथ खेतीकिसानी के डाक्टरों की भी बहुत जरूरत है.

एसीएबीसी मालिकों को सरकारी सुविधाएं मुहैया होती हैं जिस से एसीएबीसी चलाने वाले कृषि प्रसार के सारे काम कर सकते हैं, उन्हें हर मोर्चे पर सहयोग दिया जाएगा. इस योजना से कृषि उद्यमी को असीमित पैसा कमाने और व्यापार बढ़ाने की सुविधा मिलेगी.’

इसी तरह नाबार्ड लखनऊ के उपमुख्य प्रबंधक और जनसंपर्क अधिकारी नवीन राय कहते हैं कि नाबार्ड द्वारा देश में अपनी तरह की यह अनोखी योजना चलाई गई है. कृषि छात्र ज्यादा से ज्यादा इस का लाभ लें. इस से देश के कृषि क्षेत्र में तेज विकास होगा.

कथा सफल कारोबारी की

संकर्शण शाही : संकर्शण पूर्वी उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले के गरेर गांव के रहने वाले हैं. साल 1995 में कृषि स्नातक होने और दिल्ली से एमबीए करने के बाद उन्होंने दिल्ली, देवरिया और गोरखपुर में 3 अलगअलग नौकरियां कीं. तीनों से असंतुष्ट होने पर साल 2009 में वाराणसी स्थित श्री मां गुरु ग्रामोद्योग सेवा संस्थान से एसीएबीसी का प्रशिक्षण लिया. प्रशिक्षण लेने के बाद संकर्शण ने अपना एसीएबीसी सेंटर खोला. वर्तमान में वे तकरीबन 15 से ज्यादा ग्राम पंचायतों के 6 हजार से अधिक किसानों को अपनी सेवाएं दे रहे हैं.

उन की सेवाओं से क्षेत्र में कृषि विविधीकरण 30 से 35 फीसदी बढ़ गया है, जब कि क्षेत्र का उत्पादन 40 फीसदी तक बढ़ चुका है. इस समय उन के व्यवसाय का सालाना टर्नओवर 60 लाख रुपए के लगभग पहुंच चुका है. संकर्शण के कामों से प्रभावित हो कर उन्हें राज्य सरकार ने आत्मा योजना का रिसोर्स पर्सन बनाया है. वर्तमान में संकर्शण एसीएबीसी से पूरी तरह खुश हैं और क्षेत्र के लोग उन्हें सम्मान से खेती के ‘डाक्टर’ पुकारते हैं.

अमर जीत यादव

अमरजीत यादव पूर्वी उत्तर प्रदेश के गांव पतेपुर जिला गाजीपुर के रहने वाले हैं. साल 1989 में पीजी कालेज से कृषि स्नातक करने के बाद, साल 1991 से 1996 तक छत्तीसगढ़ स्थित भिलाई इंजीनियरिंग कार्पोरेशन लिमिटेड में फार्म मैनेजर की नौकरी की. 1996 में पिता की असामयिक मौत के बाद उन्हें वापस घर लौटना पड़ा. अपने एक मित्र के कहने पर साल 2009 में वाराणसी स्थित श्री मां गुरु ग्रामोद्योग सेवा संस्थान से एसीएबीसी का प्रशिक्षण लिया.

प्रशिक्षण लेने के बाद स्थानीय करीमुद्दीनपुर गांव के यूनियन बैंक आफ इंडिया से योजना के तहत 5 लाख रुपए का शुरुआती लोन ले कर हरित क्रांति एसीएबीसी नाम से सेंटर खोला. इस समय अमरजीत के बिजनेस का सालाना टर्नओवर तकरीबन 70-80 लाख रुपए तक पहुंच चुका है और वे 25 से ज्यादा ग्राम पंचायतों के तकरीबन 7 हजार किसानों को कृषि प्रसार सेवाएं दे रहे हैं. अपने बड़े कारोबार के कारण वे इस समय कुल 6 लोगों को स्थाई नौकरी पर रखे हुए हैं, जबकि सीजन पर इस से ज्यादा लोगों को रोजगार देना होता है. मौजूदा समय में अमरजीत की मासिक आमदनी तकरीबन 30 से 50 हजार रुपए आसानी से हो जाती है. एसीएबीसी से मिले हौसले को देखते हुए अमरजीत ने अब डेरी क्षेत्र में भी बेहतर काम करने की ठान ली है.

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