मक्के की एक ऐसी किस्म है जिसे बेबीकौर्न नाम से जाना जा रहा है. इस की खूबी यह है कि यह कम समय में तैयार हो जाती है इसलिए पिछले कुछ सालों से किसानों का रुझान बेबीकौर्न की खेती की तरफ तेजी से बढ़ा है.

बेबीकौर्न की बोआई पूरे साल किसी भी महीने में की जा सकती है. इस समय रबी फसल कट चुकी है. अगर किसान बेबीकौर्न बोएं तो कम समय में ही इस से मुनाफा कमा कर दूसरी फसलें भी बो सकते हैं.

ध्यान दें कि इस की एकसाथ पूरे खेत में बोआई नहीं करनी चाहिए. इसे 10-10 दिन के अंतराल में खेत के कुछ हिस्सों में बोना चाहिए, क्योंकि अगर किसान एकसाथ पूरे खेत में बोआई करता है तो पूरी फसल एकसाथ तैयार हो जाती है.

एक तरफ जहां इस की फसल से किसानों की भुट्टे बेच कर आमदनी होगी, वहीं बेबीकौर्न के डंठल और पत्ते से किसान आमदनी कर सकते हैं, क्योंकि इन के पत्ते और डंठलों में भरपूर मात्रा में पोषक तत्त्व मौजूद होते हैं, जो जानवरों के लिए फायदेमंद होते हैं. जानवरों के लिए सालभर चारा मुहैया हो सकेगा.

बेबीकौर्न की खेती के बारे में भारतीय मक्का अनुसंधान संस्थान के कृषि वैज्ञानिक डाक्टर योगेंद्र यादव कहते हैं, ‘‘यह एक ऐसी फसल है जो हर मौसम में उगाई जा सकती है. इसे साल में 3 बार उगा सकते हैं. एक हेक्टेयर में 40 से 50 हजार रुपए तक का मुनाफा होता है.’’

बेबीकौर्न उत्पादन का शोध सब से पहले साल 1993 में मक्का अनुसंधान निदेशालय द्वारा हिमाचल प्रदेश, कृषि विश्वविद्यालय के क्षेत्रीय अनुसंधान केंद्र, बजौरा (कुल्लू घाटी) में शुरू हुआ था. तभी से बेबीकौर्न के रूप में मक्के की खेती का प्रचलन बढ़ता जा रहा है. उत्तर भारत में दिसंबर, जनवरी को छोड़ कर पूरे साल बेबीकौर्न की खेती की जा सकती है.

उन्नत बीज

बीज जितना उन्नत किस्म का होगा, उत्पादन भी उसी अनुपात में होगा इसलिए बोआई से पहले इस बात पर ध्यान दें कि कौन सी किस्म से कम समय में ज्यादा उत्पादन होगा.

किसानों को मध्यम ऊंचाई की जल्दी तैयार होने वाली किस्म और एकल क्रौस संकर को चुनना चाहिए. संकर बीएल, संकर एमईएच 133, संकर एमईएच 114 और अर्ली कंपोजिट बेबीकौर्न की उन्नत किस्में होती हैं.

खेत तैयार करना

चूंकि बेबीकौर्न की बोआई एकसाथ पूरे खेत में नहीं करनी चाहिए, वरना बाजार में सही कीमत नहीं मिल पाती इसलिए खेत के कुछ हिस्सों को एक मेंड़ बना कर अलग कर लें और इस की चौड़ाई एक फुट रखें.

बोने से पहले खेतों में 60 किलोग्राम नाइट्रोजन, 40 किलोग्राम फास्फोरस व 40 किलोग्राम पोटाश का छिड़काव करें. मेंड़ पर बोने से पानी कम लगता है और पैदावार अच्छी होती है.

सिंचाई

पहली सिंचाई बेबीकौर्न बोने से पहले करें, क्योंकि बीज अंकुरण के लिए सही नमी होना जरूरी होता है. बोआई के 15-20 दिन बाद मौसम के मुताबिक जब पौधे 10-12 सैंटीमीटर के हो जाएं तो दूसरी सिंचाई करनी चाहिए. उस के बाद 8-10 दिन के अंतराल पर ग्रीष्मकालीन फसल में पानी देते रहना चाहिए.

खरपतवार पर नियंत्रण

इस मौसम में बोई गई फसल में खरपतवार या जंगली घास उग जाती हैं, इन्हें निकालना जरूरी होता है. इन्हें निकालने के लिए खुरपी से 2-3 गुड़ाई करें. साथ ही, हलकीहलकी मिट्टी भी पौधों पर चढ़ा दें, जिस से पौधे हवा से गिरें नहीं.

बेबीकौर्न के साथ किसान दूसरी फसलें भी लगा सकते हैं. इस से एकसाथ उन्हें दोगुना फायदा हो जाता है. अभी किसान बेबीकौर्न के साथ लोबिया, उड़द, मूंग जैसी फसलें लगा सकते हैं.

तुड़ाई : बेबीकौर्न के भुट्टे को 1 से 3 सैंटीमीटर सिल्क आने पर तोड़ लेना चाहिए. भुट्टा तोड़ते समय उस के ऊपर की पत्तियों को नहीं हटाना चाहिए, क्योंकि ज्यादा गरमी की वजह से भुट्टे जल्दी खराब हो सकते हैं. अगर वे पत्तियों से ढके रहेंगे तो भुट्टे ज्यादा दिनों तक अच्छे बने रहेंगे.

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