चाय की दुकान का नाम लेते ही आंखों के सामने फुटपाथ पर लगी गंदी सी चाय की दुकान की तसवीर घूम जाती है. चाय की ऐसी दुकानों की तसवीर अब बदल चुकी है. अब चाय की ब्रांडेड दुकानों की तादाद तेजी से बढ़ रही है.

लखनऊ शहर में बनी नई कालोनियों के आसपास और प्रमुख बाजारों में ‘चाय डौट कौम’, ‘चाय पीनी है’, ‘फेवरिट टी स्टाल’ जैसी बहुत सी चाय की दुकानें हो गई हैं.

‘चाय डौट कौम’ में कई तरह की चाय मिलती हैं. यहां चाय के साथ स्पैशल मैगी भी मिलती है.

चाय पीने के लिए मिट्टी के कुल्हड़ों और छोटेछोटे गिलासों का इस्तेमाल किया जाता है. यहां आने वाले ग्राहक शौकिया चाय पीने आते हैं. लखनऊ में ‘शर्मा टी स्टाल’ एक तरह से पर्यटन स्थल सा बन गया है.

लखनऊ आने वाले पर्यटक जब तक शर्मा की चाय नहीं पीते, उन के यहां आने का मकसद पूरा नहीं होता है.

यह केवल लखनऊ की बात नहीं है, बल्कि पूरे देश में शायद ही कोई ऐसी जगह हो जहां पर चाय की दुकान न मिले. कई बार हम इन दुकानों को बहुत ही गरीबों की नजर से देखते हैं. सचाई इस से बहुत अलग होती है. छोटी दिखने वाली ये चाय की दुकानें मुनाफे में कम नहीं होती हैं.

चाय की दुकान चलाना आसान कारोबार होता है. इस में लागत भी कम आती है. जरूरत इस बात की होती है कि दुकान खोलने का मौका वहां मिल जाए जहां भीड़भाड़ रहती हो. अगर किसी चाय की दुकान से हर दिन 500 से 600 चाय रोज बिकती हों तो उस दुकान से 50,000 रुपए से ज्यादा का महीने में मुनाफा मिल सकता है. इस मुनाफे में केवल चाय की बिक्री का मुनाफा जुड़ा है.

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