आज के समय में किसान ज्यादा उपज लेने के लिए कैमिकल खादों का बेतहाशा मात्रा में इस्तेमाल करते हैं. इस वजह से मिट्टी की उपजाऊ कूवत पर उलटा असर पड़ता है, इसलिए मिट्टी के इन गुणों को सुधारने के लिए किसान अपने खेत में हरी खाद का इस्तेमाल कर के मिट्टी की उपजाऊ कूवत बढ़ाने के साथसाथ अधिक उपज ले सकेंगे.

हरी खाद बनाने की विधियां

खेत में हरी खाद की फसल उगा कर मिट्टी में दबाना : इस विधि का इस्तेमाल उन्हीं इलाकों में किया जाता है, जहां सिंचाई का सही इंतजाम होता है.

इस विधि में हरी खाद बनाने के लिए जिस खेत में हरी खाद वाली फसलें उगाई जाती हैं, उसी खेत में पलट कर दबा दी जाती हैं. हरी खाद के लिए दलहनी और अदलहनी फसलें उगाई जाती हैं. जल्दी पकने वाली फसलें जैसे सनई, ढैंचा, मूंग, उड़द, लोबिया वगैरह की बोआई की गई फसल को फूल आते ही खेत में दबा देते हैं.

हरी खाद की हरित पर्ण विधि : इस विधि में पेड़ों या झाडि़यों की कोमल पत्तियों, शाखाओं व टहनियों को दूसरे खेत से तोड़ कर वांछित खेत में डाल कर जुताई कर के दबाते हैं.

यह विधि उन इलाकों में ज्यादा चलन में है, जहां सालाना बारिश कम होती है. इस विधि में दूसरे खेतों में उगाई गई हरी खाद की फसल को काट कर वहीं खेतों में डाल कर मिट्टी में दबा देते हैं.

अनेक पौधों को मेंड़ों और बेकार पड़ी मिट्टी में हरी पत्तियों के मकसद से उगाया जाता है. इन झाडि़यों की हरी पत्तियों को तोड़ कर खेत में डाल देते हैं. मिट्टी पलटने वाले हल से जुताई कर जमीन में दबा देते हैं. इस विधि में दलहनी या अदलहनी दोनों तरह के पौधे हो सकते हैं, जैसे सदाबहार, बबूल, अमलताश, सफेद आक वगैरह.

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