उदयपुर : डा. अजीत कुमार कर्नाटक, कुलपति महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय ने 12 जून, 2025 को विकसित कृषि संकल्प अभियान के समापन समारोह में कहा “कृषि व्यवसाय नहीं है बल्कि, यह हमारी जीवन पद्धति है. देश में 65 फीसदी किसान परिवार हैं और सभी खेत में ही पलेबढ़े हैं. अब जरूरत इस बात की है कि अब खेतीकिसानी को बाजार आधारित बनाया जाए. साल 1947 में हम आजाद हुए और 2047 यानी 100 साल बाद विकसित राष्ट्र की श्रेणी में आ रहे हैं. आजादी के बाद देश के कृषि वैज्ञानिकों ने खाद्यान्न उत्पादन को 354 मिलियन टन पहुंचा दिया यानी 7 गुना की वृद्धि. लेकिन इधर जनसंख्या में भी 4 गुना वृद्धि के साथ देश की आबादी 140 करोड़ हो चुकी है.
विकसित कृषि संकल्प अभियान का समापन समारोह उदयपुर के समीप बिनोता पंचायत के कोटड़ी गांव में आयोजित हुआ. जहां बड़ी संख्या में किसान महिलाओंपुरूषों ने भाग लिया.
इस कार्यक्रम में डा. अजीत कुमार कर्नाटक ने ग्रामीणों से कहा कि हमारे पूर्वज ‘खेतीबाड़ी’ किया करते थे यानी गेंहूंमक्का के साथसाथ फलफूल व सब्जियां भी बोते थे. जिस का लाभ पूरे परिवार को मिलता था. समय के साथ कई नई तकनीक भी आ गईं, लेकिन किसानों तक सुगमता से नहीं पहुंच पाई. देशभर के कृषि तंत्र को ‘लेब से लैंड’ तक ले जाने संबंधी इस अभियान के तहत महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के अधीन आठ कृषि विज्ञान केंद्रों ने 15 दिन में एक लाख 20 हजार किसानों तक अपनी पहुंच बनाई व उनको तकनीकी जानकारी दी. जिस का लाभ आने वाले खरीफ सीजन के दौरान मिलेगा.
कुलपति डा. अजीत कुमार कर्नाटक ने कहा कि कृषि के साथ गोवंश पालन, बकरी पालन, मुर्गी पालन, मधुमक्खी पालन भी करना चाहिए. इस से किसानों को आर्थिक संबल मिलेगा. वहीं गोवंश पालन से खेतों को कंपोस्ट और लोगों को शुद्ध दूध व दही मिलेगा.
“गेहूं छोड़ मक्का खाणों – मेवाड़ छोड़ न कठैई नी जाणों’’ कहावत का जिक्र करते हुए कुलपति ने कहा कि आने वाले समय में मक्का दुनिया की सब से महंगी फसलों में शुमार होने वाली है. मक्का को आरंभ में पशुचारे के रूप में बोया जाता था लेकिन वैज्ञानिकों ने रातदिन प्रयोग कर मक्का से पोपकौर्न, स्वीट कौर्न, बेबीकौर्न जैसी कई प्रजातियां तैयार कर दी.
इतना ही नहीं मक्का के दाने में जर्म से अब तेल व स्टार्च निकाला जाने लगा है. स्टार्च से इथेनौल बन रहा है जिसे पेट्रोल में मिलाने की अनुमति भी सरकार ने दी है. बांसवाड़ा में मक्का की तीन फसलें ली जाती है.
डा. अजीत कुमार कर्नाटक ने कहा कि आप को अपने किसान होने पर गर्व होना चाहिए. जब तक सृष्टि है आदमी की भूख कभी खत्म होने वाली नहीं है और इस भूख को केवल अन्नदाता किसान ही शांत कर सकता है. अनाज के अलावा शेष जरूरतों को पूरा करने के लिए किसानों को नई तकनीक जैसे मोबाइल एप, ड्रोन से उर्वरक छिड़काव आदि का प्रयोग ज्यादा से ज्यादा करना चाहिए. साथ ही, प्राकृतिक खेती, कंपोजिट किस्मों में 20 फीसदी बीजों का बदलाव, क्रांतिक अवस्था में सिंचाई जैसी कई युक्तियां अपना कर किसान अतिरिक्त आय ले सकता है.
इस समापन समारोह के अध्यक्ष निदेशक प्रसार शिक्षा डा. आरएल सोनी ने कहा कि नवाचारों की जानकारी देने के लिए एक पखवाड़े तक चले अभियान में दक्षिणी राजस्थान के 9 जिलों में 13 टीमों ने लगभग 550 शिविर आयोजित कर एक लाख बीस हजार किसानों से संपर्क साधा और भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान व एमपीयूएटी में विभिन्न शोध के बारे में किसानों को बताया.
डा. आरएल सोनी ने किसानों से कहा कि वे कृषि में नवाचारों का इस्तेमाल करें. मृदा परीक्षण करा सिफारिश के अनुसार ही अपने खेतों में उर्वरक दें. फसल की सघनता को बढ़ावा देते हुए अच्छा बीज काम में लें. इस मौके पर उन्होंने 15 किसानों को फ्री मक्का बीज मिनीकिट देने की घोषणा भी की.
इस कार्यक्रम के शुरुआत में कृषि विज्ञान केंद्र, राजसमंद के प्रभारी डा. पीसी रेगर ने 15 दिन के अभियान के दौरान हुई कृषि गतिविधियों की जानकारी दी. सहायक कृषि अधिकारी रंजना औदिच्य ने कृषि विभागीय योजना जैसे पाइप लाईन, तारबंदी, खेत तलाई, कृषि यंत्र पर सरकारी अनुदान की जानकारी दी.
मृदा वैज्ञानिक डा. महावीर नोगिया, नवल सिंह झाला, गोपाल सिंह राणा, राम किशोर यादव, डा. लतिका व्यास, डा. आदर्श शर्मा आदि ने भी किसानों से चर्चा कर उन को आमदनी बढ़ाने के तरीके बताए.