राजस्थान के नागौर जिले की कुचामन सिटी का एक गांव है राजपुरा. इसी गांव के एक नौजवान ने 2 बार सरकारी नौकरी में चुन लिए जाने के बावजूद खेतीकिसानी से जुड़े रहने की सोच रखी थी. जड़ीबूटियों की खेती में आज यही नौजवान देशभर के किसानों के लिए आइडियल बन कर उभरा है. ‘हर्बल किंग’ और ‘हर्बल राजा’ जैसी उपमाओं से पुकारे जाने वाले इस किसान को दुनिया राकेश कुमार चौधरी के नाम से जानती है.

राकेश कुमार चौधरी ने बताया साल 2005 में ‘राजस्थान स्टेट मैडिसिनल बोर्ड’ की एक विज्ञप्ति जारी हुई. उस में लिखा था कि रुचि रखने वाले किसान ‘कौंट्रैक्चुअल फार्मिंग’ के लिए संपर्क करें. मैं ने अपने 14 जानकारों के परियोजना प्रस्ताव जमा करवाए.

मुझ में तजरबे की कमी थी. कलिहारी, सफेद मूसली, स्टीविया, जो हमारे इलाके में हो ही नहीं सकती थी, हम ने इसे भी उगा दिया. हम ने वे फसलें चुनीं, जो हमारे लोकल आबोहवा के खिलाफ थीं. सारी फसलें चौपट हो गईं.

फिर लोगों ने बताया कि मुलैठी में काफी मुनाफा होता है. मैं ने इस की खेती की और बेहतरीन पैदावार हुई. मैं इलाके का पहला किसान बना, जिस ने पहली बार कामयाबी का स्वाद चखा.

मैं ने साल 2007 में पक्का मन बना लिया कि चाहे जो हो जाए, औषधीय खेती करूंगा और करवाऊंगा, किसानों की फसलों को सीधे फार्मेसी को दूंगा ताकि उन को उपज की वाजिब कीमत मिल सके. पहला फोकस ग्वारपाठा यानी एलोवेरा की खेती पर रहा.

यह वह दौर था, जब किसान आधा बीघा खेत में एलोवेरा की खेती करते थे. पूरे राज्य में घूमने पर 20-22 किसान ऐसे मिले जिन्होंने ग्वारपाठा की खेती कर रखी थी. ये किसान भी लापरवाह थे, क्योंकि तब ग्वारपाठा का कोई क्रेज नहीं था. किसान इसे पानी तक नहीं देते थे क्योंकि ग्वारपाठा का कोई खरीदार नहीं होता था.

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