यह बड़ी पुरानी कहावत है कि हमारे देश में दूध की नदियां बहती थीं यानी पहले भी दूध का उत्पादन बहुतायत में होता था. दूध व उस का इस्तेमाल हमारे जीवन में इस तरह रचाबसा था कि ‘दूधो नहाओ पूतो फलो’ व ‘दूध का कर्ज उतारने’ जैसे बहुत से मुहावरे रोजमर्रा की आम बोलचाल में बखूबी इस्तेमाल किए जाते हैं.

खानपान में बदलाव के बावजूद दूध आज भी ज्यादातर लोगों की सब से बड़ी जरूरत है इसलिए डेरी उद्योग में पैर जमाने, आगे बढ़ने व कमाने की बहुत गुंजाइश है. दूध जल्दी खराब होने वाली बड़ी नाजुक चीज है इसलिए इस के उत्पादन, भंडारण, रखरखाव व बिक्री में जल्दी, पुख्ता इंतजाम, बहुत साफसफाई और सूझबूझ की जरूरत होती है.

चाहे खेती हो या डेरी, ज्यादा कमाई के लिए किसानों को उद्यमी बनना होगा. दरअसल, ज्यादातर किसानों को उन के दूध की वाजिब कीमत नहीं मिलती. इसलिए दूध का बेहतर इस्तेमाल उस की चीजें बना कर बेचने से हो सकता है. मसलन, कुछ पशुपालक दूध से दही, मावा, पनीर, मक्खन व घी वगैरह चीजें बनाते रहे हैं, लेकिन ये तो सिर्फ 5 चीजें हैं, जबकि अमूल कोआपरेटिव दूध से छाछ, लस्सी, दही, चीज व आइसक्रीम वगैरह 50 चीजें बना कर बेच रही है.

जरूरत है नए नजरिए की. ग्राम नबीपुर, जिला शाहजहांपुर, उत्तर प्रदेश के प्रगतिशील किसान ज्ञानेश तिवारी सुधरे तरीकों से अपनी डेरी में 400 लिटर दूध का उत्पादन कर के लाखों रुपए हर महीने कमा रहे हैं.

मसलन, अब आइसक्रीम की मांग तेजी से बढ़ रही है. इसलिए डेरी का काम करने वालों को ध्यान दे कर इस नए काम में अपना हाथ आजमाना चाहिए.

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