हमारे देश के 19 राज्यों में बड़े रकबे में गन्ने की खेती होती है. गन्ने की खेती से हरी, सूखी पत्तियां, अगोला, पेराई के बाद खोई व गन्ने की प्रोसैसिंग से शीरा, स्पेंट वाश व मैली का कचरा बचता है. जानकारी न होने की वजह से ज्यादातर किसान इस कचरे का बेहतर इस्तेमाल नहीं कर पाते. वे उन्हें बेकार समझ कर फेंक देते हैं. इस से गंदगी बढ़ती है. कुछ किसान व ईंट भट्टे वाले गन्ने का कचरा बतौर ईंधन में इस्तेमाल कर लेते हैं.

आसान बचत

भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान, लखनऊ के वैज्ञानिकों ने पता लगाया है कि गन्ने का कचरा कीमती और फायदेमंद है, क्योंकि इस का इस्तेमाल बढि़या कार्बनिक खाद के तौर पर मिट्टी की सेहत सुधारने में किया जा सकता है. गन्ने का कचरा मल्चिंग, ऊसर खेतों को ठीक करने के काम आ सकता है. इस से किसानों का पैसा बचेगा और मिट्टी को पोषक खुराक मिलेगी. किसान थोड़ा ध्यान दे कर अगर इस तकनीक को समझ लें तो वे आसानी से अपना काफी पैसा बचा सकते हैं.

जाहिर है कि नाइट्रोजन, फास्फोरस व पोटाश वाले अकार्बनिक और महंगी खादों के अंधाधुंध इस्तेमाल से मिट्टी की संरचना व संतुलन दोनों बिगड़ रहे हैं. एक तरफ फसलों पर इन का खराब असर पड़ रहा है, तो वहीं दूसरी तरफ किसानों की जेब हलकी होती है. खेती की लागत बढ़ती है. खेतों से ले कर कोल्हू, खांडसारी क्रेशरों व चीनी मिलों तक में हर साल गन्ने का लाखों टन कचरा बचता है. इस के सही इस्तेमाल से मिट्टी में जरूरी तत्त्वों की कमी पूरी की जा सकती है.

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