ड्रिप या टपक सिंचाई भारत ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में धीरेधीरे पानी की कमी हो रही है. अगर पानी की इसी तरह कमी होती रही तो वह दिन दूर नहीं जब खेतीबारी करने वाले ज्यादातर किसान अपने खेतों में पानी देने के लिए तरस जाएंगे. पर चूंकि दुनियाभर को खाना देने का काम किसान करते हैं इसलिए खेती के लिए सिंचाई का पानी तो चाहिए ही. तो फिर क्या किया जाए इस के लिए जरूरी है कि किसान कम से कम पानी का इस्तेमाल कर के अपनी उपज को उगाएं. इस के लिए ड्रिप यानी टपक सिंचाई बड़ी कारगर रहती है.

सिंचाई का यह तरीका सूखे इलाकों के लिए बेहद उपयोगी होता है, जहां इस का इस्तेमाल फल के बगीचों की सिंचाई के लिए किया जाता है. टपक सिंचाई ने लवणीय जमीन पर फलों के बगीचों को कामयाब बनाया है. इस सिंचाई विधि में खाद को घोल के रूप में दिया जाता है. टपक सिंचाई उन इलाकों के लिए बहुत ही सही है, जहां पानी की कमी होती है.

सिंचाई पर आधारित खेती को अपनाए जाने की कई वजहें हैं. भारत की कुल जमीन के रकबे का महज 45 फीसदी भाग ही अभी तक सिंचाई सुविधा के तहत आता है, जबकि खेती में पानी का इस्तेमाल कुल पानी के इस्तेमाल का 83 फीसदी है. घरेलू उपयोग, उद्योग और ऊर्जा यानी बिजली के सैक्टर में पानी की खपत बढ़ने से जाहिर है कि खेती के लिए पानी की मौजूदगी पर आने वाले समय में दबाव और बढ़ेगा.

पानी के संकट का एक मुख्य कारण जमीन के पानी के स्तर का लगातार गिरते जाना भी है. कोलंबो स्थित इंटरनैशनल वाटर मैनेजमैंट इंस्टीट्यूट के अनुसार, साल 2025 तक विश्व की एकतिहाई आबादी पानी की कमी से जूझ रही होगी. विश्व में मौजूद इस्तेमाल लायक पानी का महज 4 फीसदी पानी भारत में है, जबकि भारत की आबादी दुनिया की आबादी का महज 16 फीसदी है. जाहिर है कि पानी का दबाव बढ़ता जा रहा है. ऐसे में जरूरी है कि खेती में भी पानी के इस्तेमाल को ले कर नई तकनीकों को आजमाया जाए. ड्रिप यानी टपक सिंचाई तकनीक में पानी की हर बूंद के ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल समेत कई लाभ हैं.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
सब्सक्राइब करें
अधिक जानकारी के लिए क्लिक करें...