•  प्रधानमंत्री के नाम से जुड़ी किसानों की लगभग सभी योजनाओं की बजट राशि में भारी कटौती की गई है. यही वजह है कि कई कृषि व किसान योजनाएं बंद होने की कगार पर हैं.
    • कर्जमाफी और एमएसपी कानून का कहीं कोई जिक्र तक नहीं है.
    • प्राकृतिक खेती के लिए 366 करोड़ रुपए, जबकि रासायनिक उर्वरकों के लिए 1.64 लाख करोड़ रुपए यानी प्राकृतिक खेती की तुलना में तकरीबन 500 गुना ज्यादा का प्रावधान.

‘हजारों ख्वाहिशें ऐसी कि हर ख्वाहिश पर दम निकले, बहुत निकले मेरे अरमां फिर भी कम निकले..' बजट 2024 के संदर्भ में मिर्जा गालिब का यह शेर देश के किसानों पर बिलकुल सटीक बैठता है. इस बजट से सब से ज्यादा निराशा देश के किसानों को हुई है.

यों तो पिछले कुछ सालों से सरकार दूसरे सैक्टरों की तुलना में कृषि एवं किसानों की योजनाओं और अनुदानों पर लगातार डंडी मारती आई है, किंतु चूंकि यह बजट आगामी लोकसभा चुनाव के ठीक पहले का बजट था, इसलिए देश की आबादी के सब से बड़े तबके के किसानों ने इस बजट से कई बड़ी उम्मीदें लगा रखी थीं.

जले पर नमक यह है कि अपने बजट भाषण में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने यों तो कई बार देश के अन्नदाता किसानों का जिक्र किया और उन्हें देश की तरक्की का आधार भी बताया, किंतु उन के बजट का अध्ययन करने पर यह साफ हो जाता है कि उन के इस जिक्र का और किसानों को ले कर उन की तथाकथित फिक्र का बजट आबंटन पर रत्तीभर भी असर नहीं है. सच तो यह है कि कृषि से जुड़ी अधिकांश योजनाओं के बजट में इस बार बड़ी बेरहमी से कटौती की गई है.

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