देश में कृषि क्षेत्र को लेकर अनेक शोध चलते रहते हैं, ताकि कृषि पैदावार बढ़ सके. और बीज खेती का मूल आधार है, इसलिए बीजों की कुछ उन्नत प्रजातियाँ भी आती रहती हैं. खेती में पानी का भी अहम् रोल है. भारत की मौसमी अनिश्चितताओं, प्रदूषण और पानी की कमी की चुनौतियों से निपटने के लिए भारत सरकार एक तरफ जहां जल संचयन, पेड़-पौधे लगाने पर जोर दे रही है. वहीं देश के कृषि विश्वविद्यालय भी किसानों की आय में बढ़ोतरी लाने के लिए बीज पर अनुसंधान कर रहे हैं.

हाल के दिनों में कोटा कृषि विश्वविद्यालय से किसानों के लिए एक अच्छी खबर आई है कि इस विश्वविद्यालय के कृषि वैज्ञानिकों ने अरहर की नई प्रजाति विकसित कर ली है. अरहर की इस किस्म का नाम एएल 882 है. यह उन्नत किस्म सवा से डेढ़ गुना तक मुनाफा बढ़ा सकती है. ऐसा कृषि वैज्ञानिकों का मानना है.

ऐसे इलाके जहां पानी की काफी कमी है, इस अरहर किस्म की खेती  वहां भी की जा सकती है क्योंकि इस नई किस्म के लिए पानी की काफी कम जरूरत पड़ती है.

किस्म की खोज में 2 साल लगे

कोटा के कृषि वैज्ञानिक इस किस्म की खोज में 2 साल से लगे हुए थे. 2 साल की कोशिशों के बाद आखिरकार सफलता हाथ लगी है. चूंकि बीज किसी भी खेती का आधार होता है. अगर बीज अच्छे नहीं होंगे, बीज पर रिसर्च नहीं किए जाएंगे तो किसानों को खेती में मुश्किलों और समय के साथ कम उत्पादन का सामना करना पड़ेगा. उन्नत किस्म के बीजों को तैयार करने कृषि वैज्ञानिकों को कुछ चुनिन्दा बीजों को चुनना होता है उसके बाद उन्हें अपने देखरेख में उगाना पड़ता है, जिसमें सफलता मिलने में कई कई साल भी लग जाते हैं.

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