झांसी : कृषि वानिकी अनुसंधान के क्षेत्र में कार्यरत देश के एकमात्र शोध संस्थान केंद्रीय कृषि वानिकी अनुसंधान संस्थान, झांसी का स्थापना दिवस 8 मई को मनाया गया. इस केंद्र की स्थापना सब से पहले राष्ट्रीय कृषि वानिकी अनुसंधान केंद्र के रूप में 8 मई, 1988 की गई थी, लेकिन 1 दिसंबर, 2014 को इस का नाम बदल कर केंद्रीय कृषि वानिकी अनुसंधान संस्थान कर दिया गया. यह संस्थान भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के अधीन एग्रोफोरेस्ट्री के मसले पर शोध का काम करता है.

उत्तर प्रदेश के झांसी में स्थित यह केंद्र कुल 254.859 एकड़ में फैला हुआ है. यह संस्थान छोटे और मझोले किसानों के लिए विभिन्न कृषि जलवायु स्थितियों के लिए मजबूत कृषि वानिकी मौडल विकसित करने और उस से जुड़ी तकनीकियों के प्रसार को बढ़ावा देने का काम करता है. साथ ही, ग्रामीणों और किसानों के जीवन स्तर में सुधार भी लाना इस केंद्र का मुख्य उद्देश्य है.

कृषि वानिकी आधारित एफपीओ बनाए जाने की आवश्यकता
एग्रोफोरेस्ट्री को बढ़ावा देने के क्षेत्र में काम कर रहे इस संस्थान ने 8 मई को अपना 36वां स्थापना दिवस मनाया. इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि कुलपति, रानी लक्ष्मी बाई केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, झांसी, प्रो. एके सिंह रहे. इस मौके पर उन्होंने कहा कि कृषि वानिकी यानी एग्रोफोरेस्ट्री आज आदर्श गांव की बुनियादी जरूरत बन चुकी है.

उन्होंने आगे कहा कि जलवायु परिवर्तन को देखते हुए पेड़ों की कमी महसूस हो रही है. इसलिए कृषि वानिकी आधारित कृषक उत्पादक संगठन यानी एफपीओ बनाए जाने की आवश्यकता है.

प्रो. एके सिंह ने बताया कि किसानों को कृषि वानिकी की जानकारियां समयसमय पर देने की आवश्यकता है और सजावटी पौधों के साथसाथ बड़े पेड़ भी लगाना जरूरी है, जो पर्यावरण संतुलन बनाए रखने में योगदान करते हैं.

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