Research : भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली द्वारा कृषि विश्वविद्यालय, कोटा को गेहूं और जौ पर अनुसंधान (Research) के लिए अखिल भारतीय समन्वित परियोजना के स्वैच्छिक केंद्र के रूप में स्वीकृति प्रदान की गई है. यह विश्वविद्यालय के लिए एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि है, जिस से कोटा संभाग में गेहूं और जौ की फसल पर अनुसंधान (Research) को नई दिशा मिलेगी, साथ ही इन के उच्च गुणवत्ता के बीज का उत्पादन भी किया जा सकेगा.

कोटा देशप्रदेश के गेहूं उत्पादन में विशेष महत्त्व रखता है. राजस्थान में उत्पादित कुल गेहूं में से लगभग 15-20 फीसदी योगदान अकेले कोटा, बूंदी, बारां और झालावाड़ जिलों का है. यह क्षेत्र उर्वर चंबल घाटी और उच्च उत्पादकता के लिए विख्यात है और यहां के किसानों ने राष्ट्रीय स्तर पर गेहूं उत्पादन में अपनी अलग पहचान स्थापित की है.

विश्वविद्यालय के कुलगुरु डा. अभय कुमार व्यास ने इस अवसर पर हर्ष जताते हुए बताया कि विश्वविद्यालय में गेहूं और जौ की भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद की अखिल भारतीय समन्वित परियोजना साल 1983 से चल रही थी,पर साल 2017 में किन्हीं प्रशासनिक कारणों से यह परियोजना बंद हो गई थी. विश्वविद्यालय द्वारा पिछले 3 सालों से इस परियोजना को दोबारा शुरू किए जाने के प्रयास किए जा रहे थे, जिस के फलस्वरूप अब जा कर इस परियोजना के लिए स्वीकृति प्राप्त हुई है.

नए केंद्र के रूप में स्वीकृति मिलने से कोटा खंड में गेहूं और जौ की नई किस्मों के विकास पर अनुसंधान (Research) को गति मिलेगी, क्षेत्र विशेष की जलवायु और मिट्टी के अनुरूप उन्नत किस्मों और तकनीकों का परीक्षण और विस्तार होगा, किसानों को बेहतर उत्पादकता व गुणवत्ता के साथसाथ सीधा लाभ मिलेगा और गेहूं व जौ की उन्नत किस्मों के प्रजनक और फाउंडेशन बीज के उत्पादन में बहुत वृद्धि होगी.

याद रहे कि कि हाल ही में विश्वविद्यालय के उद्यानिकी एवं वानिकी महाविद्यालय, झालावाड़ के लिए आईसीएआर, नई दिल्ली द्वारा फलों (संतरा व नारंगी) की अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान (Research) परियोजना शुरू किए जाने की स्वीकृति प्राप्त हुई है.

कृषि विश्वविद्यालय, कोटा ने अपनी स्थापना से ले कर अब तक क्षेत्रीय कृषि विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है और यह नया दायित्व विश्वविद्यालय की उपलब्धियों में एक और स्वर्णिम अध्याय जोड़ता है.

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