भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान राष्ट्रीय विस्तार कार्यक्रम कार्यशाला

नई दिल्ली : भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई) द्वारा खरीफ 2024 की ट्रांसफर औफ टैक्नोलौजी (ToT) गतिविधियों की समीक्षा कार्यशाला का सफल आयोजन 16, मई 2025 को वर्चुअल माध्यम से किया गया.

इस कार्यशाला की अध्यक्षता आईएआरआई के निदेशक डा. सीएच श्रीनिवास राव ने की. इस अवसर पर आईसीएआर संस्थानों, कृषि विश्वविद्यालयों, झांसी स्थित केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय और 16 स्वयंसेवी संगठनों सहित विभिन्न हितधारकों ने हिस्सा लिया.

यह पहल आईएआरआई का प्रमुख साझेदारी कार्यक्रम है, जिस का उद्देश्य प्रगतिशील कृषि अनुसंधान और जमीनी स्तर पर उस के कार्यान्वयन के बीच की खाई को पाटना है. उल्लेखनीय है कि इस साल 3 नए स्वयंसेवी संगठनों को कार्यक्रम में शामिल किया गया, जो विभिन्न जलवायु क्षेत्रों और सामाजिक व आर्थिक परिस्थितियों का प्रतिनिधित्व करते हैं. इस से कार्यक्रम की पहुंच और समावेशिता को और अधिक बल मिला है.

इस कार्यशाला को संबोधित करते हुए डा. सीएच श्रीनिवास राव ने कहा कि तकनीकी जानकारी के प्रसार के जरीए भारत के किसानों को मजबूत बनाया जा सकता है, जिस से कृषि का सतत विकास संभव है. उन्होंने जोर देते हुए कहा कि अनुसंधान संस्थानों, कृषि विश्वविद्यालयों और स्वयंसेवी संगठनों की यह अनोखी साझेदारी ही किसानों तक सही समय पर सही तकनीक पहुंचाने का मूलमंत्र है.

उन्होंने सभी सहभागियों की सक्रिय भागीदारी और योगदान की सराहना की और बताया कि कार्यशाला में 28 विस्तृत प्रस्तुतियां दी गईं, जिन में पूर्व सीजन की उपलब्धियां और आगामी सीजन की योजनाएं शामिल थीं. डा. सीएच श्रीनिवास राव ने सभी हितधारकों से इस गति को बनाए रखने और आईएआरआई की नवीनतम किस्मों एवं तकनीकों के प्रभावी हस्तांतरण को सुनिश्चित करने का आग्रह किया.

उन्होंने यह भी कहा कि स्थानीय आवश्यकताओं के अनुसार तकनीकों को ढालने के लिए मजबूत फीडबैक तंत्र और सहभागी दृष्टिकोण को अपनाना आवश्यक है. उन्होंने आगे कहा कि भारतीय कृषि का भविष्य साझेदारी आधारित नवाचार और खेतस्तर की सहभागिता में शामिल है. आईएआरआई इस आंदोलन का नेतृत्व वैज्ञानिक उत्कृष्टता और जमीनी भागीदारी के साथ करता रहेगा.

इस कार्यक्रम की शुरुआत में डा. एके सिंह, प्रभारी, कैटैट, आईएआरआई ने सभी प्रतिभागियों का स्वागत किया और डा. आरएन पडारिया, संयुक्त निदेशक (प्रसार), आईएआरआई ने कार्यक्रम की रूपरेखा एवं रणनीतिक दृष्टिकोण प्रस्तुत किया.

इस कार्यशाला के अंतर्गत एक विशेष संवाद सत्र भी आयोजित किया गया, जिस में प्रतिभागियों ने अपने अनुभव और सुझाव साझा किए. कार्यशाला का समापन तकनीकी हस्तांतरण में कार्यक्षमता, समावेशिता और नवाचार को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जाएगी, के साथ हुआ, जिस से आईएआरआई की कृषि विकास और विस्तार क्षेत्र में लीडरशिप की भूमिका और मजबूत होगी.

Brinjal : बैगन की खेती

Brinjal : मजाक में अकसर लोग बैगन को बेगुन कह देते हैं, मगर हकीकत में ऐसा नहीं है. तमाम तरकारियों की तरह बैगन की भी अपनी खूबियां हैं.

यह स्वादिष्ठ सब्जी सेहत के लिहाज से भी खासी कारगर होती है. महिलाएं अपनी रसोई में बैगन को पूरीपूरी अहमियत देती हैं.

वे इस की सूखी व रसेदार तरकारी बनाने के साथसाथ इस का भरता भी बनाती हैं. भरवां बैगन व बैगनी यानी बैगन के पकौड़ों की भी भारतीय घरों में खूब मांग रहती है. कुल मिला कर हर उम्र के लोग हमेशा बैगन के पकवानों को चाव से खाते हैं, इसी वजह से बाजार में हमेशा बैगन की मांग बनी रहती है.

सब्जी के व्यापारी बैगन की बिक्री से खूब कमाई करते हैं, लिहाजा बैगन की खेती करना हमेशा फायदे का सौदा रहता है. इस लेख में संकर बैगन उगाने के बारे में जानकारी दी जा रही है.

आबोहवा:  संकर बैगन की खेती करने के लिए औसत तापमान 22 से 30 डिगरी सेंटीग्रेड के बीच होना मुनासिब होता है. इस तापमान में बैगन की फसल की बढ़वार सही तरीके से होती है और फल भी भरपूर तादाद में हासिल होते हैं.

बैगन की फसल ज्यादा गरम और सूखा मौसम नहीं सह पाती है. ज्यादा गरम आबोहवा में फलों की तादाद घट जाती है. जमीन बैगन की खेती के लिहाज से दोमट मिट्टी ज्यादा मुनासिब होती है.

अलबत्ता मिट्टी पानी की सही निकासी वाली होनी चाहिए. जमीन का पीएच मान 5.5 से 6.0 होना चाहिए. मिट्टी सही किस्म की होने से पैदावार पर बहुत ज्यादा माकूल असर पड़ता है. बीज की मात्रा बैगन की खेती के लिए 125 से 150 ग्राम बीजों की प्रति हेक्टेयर के हिसाब से दरकार रहती है.

बहुत ज्यादा या कम मात्रा में बीजों का इस्तेमाल करना ठीक नहीं रहता है. पौधे उगाना बैगन के पौधे उगाने के लिए 3 मीटर लंबी, 1 मीटर चौड़ी और 0.15 मीटर ऊंची क्यारियां बनानी चाहिए. इस साइज की 20-25 क्यारियों में इतने पौध तैयार हो जाते हैं, जो 1 हेक्टेयर खेत के लिहाज से काफी होते हैं. हर क्यारी में 25 किलोग्राम अच्छी तरह से सड़ी हुई गोबर की खाद या कंपोस्ट खाद मिलाएं.

इस के अलावा 200 ग्राम सिंगल सुपर फास्फेट व 10 ग्राम फुराडान डाल कर मिट्टी में अच्छी तरह मिलाएं. तैयार क्यारी में बीजों को 5 सेंटीमीटर गहराई में बोएं. बोआई के बाद बीजों को आधी मिट्टी और आधी सड़ी गोबर की खाद के मिश्रण से ढक दें.

इस के बाद क्यारी को घास से ढकें. जब अंकुरण होने लगे तो घास हटा दें.

शुरुआत में फुहारे से पानी दें और कुछ दिनों बाद सामान्य तरीके से सिंचाई करें.

बोआई के 2 दिनों बाद से हर 5 दिनों के अंतराल पर 3 मिलीलीटर एकोमिन या 2 ग्राम केपटाफ 50 डब्ल्यू पाउडर का प्रति लीटर पानी की दर से घोल बना कर क्यारियों को भिगोएं. बोआई के 15 दिनों बाद और पौधे उखाड़ने से 3-4 दिनों पहले 1 मिलीलीटर थायोडान का प्रति लीटर पानी की दर से घोल बना कर छिड़काव करें.

खाद व उर्वरक खेत तैयार करते वक्त 25-30 टन अच्छी तरह से सड़ीगली गोबर की खाद या कंपोस्ट खाद प्रति हेक्टेयर के हिसाब से खेत में मिलाएं. इस के अलावा 7.50 क्विंटल नीम की खली भी प्रति हेक्टेयर की दर से खेत में मिलाएं. इन के अलावा 200 किलोग्राम नाइट्रोजन, 100 किलोग्राम फास्फोरस और 100 किलोग्राम पोटाश का भी प्रति हेक्टेयर की दर से इस्तेमाल करना चाहिए. खेत की तैयारी के वक्त नाइट्रोजन की आधी मात्रा और पोटाश व फास्फोरस की पूरी मात्रा जमीन में मिलाएं. नाइट्रोजन की बची मात्रा का आधा भाग रोपाई के 25 दिनों बाद और बाकी भाग रोपाई के 50 दिनों बाद खेत में इस्तेमाल करें.

रोपाई बोआई के 4 से 6 हफ्तों के दौरान पौधे रोपाई के लिए तैयार हो जाते हैं. जब रोपाई के लिए पौधे उखाड़ने हों, उस से 2-3 घंटे पहले क्यारियों में भरपूर पानी डालें ताकि वे आसानी से निकल सकें. पौधों को 90 सेंटीमीटर की दूरी पर बनी मेंड़ों के बाजू में 60 सेंटीमीटर के फासले पर लगाएं. रोपाई के बाद फौरन हलकी सिंचाई करें.

खयाल रखें कि पौधों की रोपाई का काम शाम के वक्त करना बेहतर रहता है.

खास बीमारियां व बचाव

फाइटोपथोरा फलसड़न रोग : इस से बचाव के लिए रिडोमिल एमजेड या इंडोफिल एम 45 की 2.5 ग्राम मात्रा का प्रति लीटर पानी की दर से घोल बना कर छिड़काव करें. जरूरत के मुताबिक 10 दिनों बाद दोबारा छिड़काव करें.

फायोप्सिस सड़न और ब्लाइट : इस से बचाव के लिए इंडोफिल एम 45 की 2.5 ग्राम मात्रा का प्रति लीटर पानी की दर से घोल बना कर 7-8 दिनों के अंतराल पर छिड़काव करें.

डैंपिंग आफ (पौधविगलन) : इस से बचाव के लिए सेरेसान दवा की 2 ग्राम मात्रा से प्रति किलोग्राम बीज की दर से बीजोपचार करें. पौधों को 3 फीसदी फाइटोलान या डाइथेन एम 45 द्वारा अच्छी तरह भिगोएं. नर्सरी में ज्यादा पासपास पौधे न रखें और बहुत ज्यादा सिंचाई भी न करें.

लिटिल लीफ रोग : इस रोग की चपेट में आने वाले पौधों को उखाड़ कर जला दें. इस के अलावा रोगोर 0.03 फीसदी का 10 से 15 दिनों के अंतराल पर फल आने तक छिड़काव करें. रोपाई के वक्त पौधों की जड़ों को टैट्रासाइक्लिन 1000 पीपीएम में भिगोने के बाद रोपाई करें.

खास कीट व बचाव

तनाछेदक व फलछेदक : कीड़े लगे भागों को सूंडि़यों सहित पौधों से अलग कर के जला दें. फसल की छोटी अवस्था में दानेदार सिस्टेमिक कीटनाशक का इस्तेमाल करें. इंडोसल्फान या मेटासिस्टाक्स की 2 मिलीलीटर मात्रा का प्रति लीटर पानी की दर से घोल बना कर 10 दिनों के अंतराल पर छिड़काव करें.

हरा मच्छर (जैसिड) : 10 ग्राम थायमेट का प्रति लीटर पानी की दर से घोल बना कर छिड़काव करें. मेटासिस्टाक्स या मोनोक्रोटोफास की 2 मिलीलीटर मात्रा का प्रति लीटर पानी की दर से घोल बना कर 10 दिनों के अंतराल पर छिड़काव करें.

माहू (एफिड) : इस से बचाव के लिए इंडोसल्फान या मोनोक्रोटोफास के 0.05 फीसदी घोल का छिड़काव करें. लाल मकड़ी : लाल मकड़ी से बचाव के लिए मैलाथियान के 0.02 फीसदी घोल का छिड़काव करें. इस के अलावा फसल पर सल्फर धूल का बुरकाव करें या बैटेवल सल्फर के 0.05 फीसदी घोल का छिड़काव करें.

इस प्रकार कीड़ों व रोगों से बैगन की फसल की हिफाजत करते हुए भरपूर पैदावार हासिल की जा सकती है. उम्दा नस्ल के बैगनों की मांग हमेशा बनी रहती है, लिहाजा इस की खेती करना बेहद फायदे का सौदा होता है.

कीटों व रोगों की रोकथाम के लिए दवाओं का इस्तेमाल करते वक्त दवाओं में चिपटाक या सेंडोविट जैसे चिपकने वाले पदार्थ जरूर मिलाएं. दवाओं का छिड़काव करते वक्त इस बात का खयाल रखें कि पूरा पौधा दवा से भीग जाना चाहिए.

Arvi Crop : अरवी की फसल का कीड़ों व रोगों से बचाव

Arvi crop :  अरवी (कोलोकेसिया) यानी घुइयां एक कंदीय पौधा है. इस की खेती खासकर कंदों के लिए की जाती है.

अरवी की पैदावार काफी अच्छी यानी 30-40 टन प्रति हेक्टेयर तक होती है. अरवी के मूल स्थान के बारे में लोगों की राय अलगअलग है.

भारत में इस की खेती कब और कहां शुरू हुई, इस का किसी को पक्का पता नहीं है. उत्तरी भारत में इसे खासतौर से उगाते हैं. अन्य प्रदेशों में भी इस का उत्पादन बढ़ रहा है.

इस में कार्बोहाइड्रेट की उच्च मात्रा के अलावा अन्य कंदों वाली सब्जियोें के मुकाबले ज्यादा मात्रा में प्रोटीन, खनिज लवण, फास्फोरस व लोहा पाया जाता है.

अरवी पर लगने वाले कीट व रोग इस की पैदावार को प्रभावित करते हैं. अन्य सब्जियों की तरह अरवी की फसल पर भी कीटों का हमला होता है, जिन में तंबाकू का इल्ली कीट और लाही खास हैं.

अरवी के खास हानिकारक कीड़े

तंबाकू की सूंड़ी : इस के पतंगे भूरे रंग के 15-18 मिलीमीटर लंबे होते हैं. इन का अगला पंख कत्थई रंग का होता है, जिस पर सफेद लहरदार धारियां होती हैं, जबकि पिछले पंख सफेद रंग के होते हैं. पूरी तरह विकसित पिल्लू 35-40 मिलीमीटर लंबा पीलापन लिए हुए हरा भूरा होता है. इस के निचले हिस्से में दोनों ओर पीली धारी होती है.

मादा कीड़ा पत्तियों की निचली सतह पर 200 से 300 अंडे झुंड में देती है, जो भूरे रंग के बालों से ढके रहते हैं. 3 से 5 दिनों में अंडों से पिल्लू निकल कर झुंड में पत्तियों को खाते हैं. 20 से 30 दिनों में पिल्लू पूरी तरह बड़े हो कर मिट्टी के अंदर प्यूपा में बदल जाते हैं. प्यूपा काल गरमी व जाड़ों में क्रमश: 7-9 और 25-30 दिनों का होता है. इस के बाद प्यूपा से बड़े कीट बन जाते हैं. अंडे से बड़े होने में इस कीट को 30 से 56 दिनों का समय लगता है. 1 साल में इस की 8 पीढि़यां होती हैं.

अरवी के पौधों पर इस कीट का हमला जून से सितंबर तक होता है.

इस कीड़े के पिल्लू ही पौधों को नुकसान पहुंचाते हैं. शुरू में अंडों से निकले पिल्लू अरवी की कोमल पत्तियों की निचली सतह पर झुंड में हमला कर के हरे भाग को खाते हैं. बाद में जवान पिल्लू अलगअलग पौधों पर हमला कर के पत्तियों को खा कर नुकसान पहुंचाते हैं. बहुत ज्यादा प्रकोप होने पर ये पूरे पौधों की पत्तियों को खा जाते हैं, जिस से पौधे ठूंठ हो जाते हैं और कंद पर रोग लग जाता है. इस कीट का हमला रात के समय ज्यादा होता है.

रोकथाम

* फसल की कटाई के बाद खेत की अच्छी जुताई कर देनी चाहिए.

* अंडों के गुच्छों व पिल्लुओं को पत्तियों समेत तोड़ कर नष्ट कर दें.

* रोशनी द्वारा जवान कीड़ों को जमा कर के नष्ट कर दें.

* ज्यादा हमला होने पर इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एसएल या डायमिथोएट (30 ईसी) दवा का 1.0 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी की दर से पौधों पर 15 दिनों के अंतर पर 2 बार छिड़काव करना फायदेमंद होता है.

* मिश्रीकंद के बीज के घोल का 5 फीसदी की दर से छिड़काव करने पर इस कीड़े से बचा जा सकता है.

अरवी के लाही कीट : लाही कीट 2 से 3 मिलीमीटर लंबा हरेपीले रंग का होता है. जवान कीड़े पंखदार व बिना पंख दोनों प्रकार के होते हैं. लेकिन इस कीट के बच्चे बिना पंख के होते हैं.

मादा कीट अपने जीवन काल में 32 से 50 अंडे पैदा करती है. 7 से 8 दिनों में 3 से 4 निर्मोचन के बाद ये पूरी तरह जवान हो जाते हैं. इन का जीवनकाल 23 से 28 दिनों में पूरा हो जाता है.

इस कीट के जवान व बच्चे दोनों ही पौधों को नुकसान पहुंचाते हैं. ये झुंड में अरवी की पत्तियों की निचली सतह और नई निकलती पत्तियों के बीच में रह कर लगातार रस चूसते हैं. इसलिए पत्तियां पीली पड़ कर सूख जाती हैं, जिस से पौधे बड़े नहीं हो पाते व कमजोर हो जाते हैं.

कंद अच्छी तरह बढ़ नहीं पाते जिस से पैदावार में भारी कमी आ जाती है.

रोकथाम

* माहू का प्रकोप होने पर पीले चिपचिपे ट्रैप का इस्तेमाल करें ताकि माहू ट्रैप पर चिपक कर मर जाएं.

* परभक्षी काक्सीनेलिड्स या सिरफिड या क्राइसोपरला कार्निया का संरक्षण कर 50,000 से 10,0000 अंडे या सूंड़ी प्रति हेक्टेयर की दर से छोड़ें.

* नीम का अर्क 5 फीसदी या 1.25 लीटर नीम का तेल 100 लीटर पानी में मिला कर छिड़कें.

* बीटी का 1 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए.

* यदि पौधे पर लाही कीट लगा हो तो किसी एक तरल कीटनाशी दवा जैसे डाइमिथोएट (30 ईसी) का 1.0 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी की दर से या मिश्रीकंद बीज के घोल के 5 फीसदी का छिड़काव 15 दिनों के अंतर पर 2 बार करें.

अरवी के खास रोग

अरवी का झुलसा रोग : इस रोग का प्रकोप फाइटोफ्थोरा कोलोकेसियाई नाम के कवक से होता है. यदि रात का तापमान 20-22 डिगरी सेंटीग्रेड व दिन का तापमान 25-27 डिगरी सेंटीग्रेड के बीच हो, नमी दिन में 65 फीसदी और रात में 100 फीसदी हो व आकाश में बादल छाए हों और बीचबीच में बारिश होती रहे तो इस रोग का फैलाव और भी तेजी से होता है.

पूरी फसल 5-7 दिनों के अंदर इस रोग से झुलस जाती है. यदि तापमान 20 डिगरी सेंटीग्रेड से कम या 28 डिगरी सेंटीग्रेड से ज्यादा हो तो यह रोग ज्यादा नहीं बढ़ पाता है.

यह अरवी का एक भंयकर रोग है, जो पत्तियों पर छोटेछोटे हलके भूरे रंग के धब्बों के रूप में शुरू होता है. जल्दी ही ये छोटेछोटे धब्बे आकार में बड़े और भूरे रंग के हो जाते हैं व अगलबगल के पौधों को भी प्रभावित कर देते हैं. यदि समय पर रोकथाम नहीं की जाए तो 1 हफ्ते के अंदर पूरी की पूरी फसल झुलस कर बरबाद हो जाती है.

खोज से यह साबित हो गया है कि रोग की तेजी व पैदावार में होने वाली कमी का आपस में सीधा संबंध है.

बिहार में इस रोग का प्रकोप अगस्त व सितंबर महीनों में होता है. रोकथाम भारत में अरवी की कई रोग न लगने वाली किस्में मौजूद हैं, जिन में जाखड़ी, टोपी व मुक्ताकेशी कुछ खास किस्में हैं.

रोग न लगने वाली किस्मों में रोग लगने वाली किस्मों की तुलना में रोग की शुरुआत देर से होती है और उस का फैलाव भी धीमा होता है. लिहाजा जहां यह बीमारी हर साल होती है, वहां मुक्ताकेशी वगैरह रोग न लगने वाली किस्मों का लगाना ठीक रहता है.

कंदों की रोपाई के समय में इस तरह बदलाव करें, जिस से कंद को रोग न लगे. इस तरह इस से होने वाले नुकसान से बचा जा सकता है. लिहाजा जिस इलाके में इस बीमारी का असर ज्यादा या हमेशा होता है, वहां अरवी की रोपाई फरवरी से मार्च के बीच करें ताकि फसल पूरी तरह से बढ़ सके व उपज पर इस का कोई बुरा असर न पड़े.

रोपाई के बाद कंदों को शीशम की पत्तियों या काले पौलीथिन या सूखी घासफूस से ढक देने पर इस रोग का असर कम होता है व खेतों में नमी बनी रहती है. इस से खरपतवारों की संख्या में भी कमी होती है.

ताम्रयुक्त कवकनाशी दवा डाइथेन एम 45 (0.2 फीसदी) के 4-5 छिड़काव 1 हफ्ते के अंतर पर करने से रोग की काफी हद तक रोकथाम हो जाती है. मटलैक्सिल (0.05 फीसदी) का छिड़काव करने पर पैदावार 50 फीसदी तक बढ़ सकती है.

Snacks : आगरा के भल्ले (Bhalle) कुरकुरे व टैस्टी

Snacks : आलू की टिक्की को उत्तर भारत में सब से ज्यादा पसंद किया जाता है. इसे कई अलगअलग नाम और तरह से चाट के तौर पर तैयार भी किया जाता है. दिल्ली और आगरा में इसे ‘आलू भल्ला’ (Bhalle) के नाम से जाना जाता है. आगरा, दिल्ली के हर बाजार, चाट की दुकानों में देशी घी से तैयार भल्ले खाने को मिलते हैं. आगरा के आलू भल्ले को दूसरे शहरों में आलू की टिक्की कहते हैं.

उत्तर प्रदेश में आगरा पर्यटकों के लिए सब से ज्यादा घूमने वाला शहर समझा जाता है. यहां आने वाला हर पर्यटक शाम को भल्ले जरूर खाना पसंद करता है. भल्ले भले ही आलू की टिक्की के रूप में दूसरे शहरों में मिलते हों, पर ‘आगरा के भल्ले’ अलग ही स्वाद देते हैं. कुछ चाट दुकानदार भल्ले के साथ काबुली चने और चटनी का इस्तेमाल भी करते हैं.

आगरा में शाम के समय हर सड़क पर ऐसी चाट की दुकानें मिल जाती हैं. सदर बाजार, आगरा में चाट की दुकानों पर भल्ले खाने वालों की लाइन लगी होती है. इस के अलावा फतेहाबाद रोड और ताजमहल के आसपास सड़कों पर स्ट्रीट फूड के रूप में भल्ले सभी जगह मिलते हैं. बड़े होटल और रैस्टोरैंट में भी भल्ले खाने को मिलते हैं. चटपटी चाट के रूप में भल्ले की दुकान लगाना रोजगार का बड़ा साधन हो गया है. यहां दुकान चलाने वाले लोग बताते हैं कि वैसे तो भल्ले आलू टिक्की की ही तरह होते हैं, पर आगरा में इन का स्वाद और भी ज्यादा टेस्टी हो जाता है. इस की वजह पश्चिम उत्तर प्रदेश में पैदा होने वाले आलू को माना जाता है. इस का स्वाद बाकी देश से अलग होता है.

आगरा की रहने वाली अर्चना श्रीवास्तव कहती हैं, ‘‘आगरा घूमने वाले पर्यटक ताजमहल देखने के साथ यहां के भल्ले जरूर खाना पसंद करते हैं. इस का स्वाद खाने वालों को बहुत भाता है. यही वजह है कि भल्ले की दुकानें आप को हर जगह मिल जाती हैं. आलू किसानों को भी आज एक नई पहचान मिल रही है. पश्चिम उत्तर प्रदेश का यह इलाका आलू की खेती के साथ देशी घी के लिए काफी जाना जाता है. देशी घी में तले हुए भल्ले का स्वाद बहुत अच्छा लगता है.’’

आवश्यक सामग्री: आलू 300 ग्राम उबले छिले हुए, हरी मटर के दाने 1 कप दरदरे पिसे हुए, तेल टिक्की सेंकने के लिए, गरम मसाला छोटी चम्मच, नमक स्वादानुसार, अमचूर पाउडर छोटी चम्मच, लाल मिर्च पाउडर छोटी चम्मच, धनिया पाउडर आधा छोटी चम्मच, अरारोट 2 चम्मच, दही, हरी चटनी, मीठी चटनी, चाट मसाला.

बनाने की विधि: आलू को कद्दूकस कर लें. इस में 2 छोटी चम्मच अरारोट डाल कर अच्छी तरह से मिलाते हुए एकदम गुंथे आटे जैसा तैयार कर लें. आलू के साथ मिक्स करने के लिए मटर में गरम मसाला, स्वादानुसार नमक, अमचूर, लाल मिर्च पाउडर और धनिया पाउडर डाल कर सारी चीजों को अच्छी तरह से मिला लीजिए. जितना बड़े भल्ले बनाना है, उतना बड़े गुंथे आलू से निकाल कर गोले बना लीजिए. इसी पिसी मटर को भी तैयार कर लीजिए. एक गोला उठाइए और इस के बीच में जगह बना कर एक भाग मटर इस में भर दीजिए. चारों तरफ से आलू ले कर मटर को बंद कर दीजिए.

तवा गरम कर के उस पर एक टेबल स्पून तेल डाल कर चारों ओर फैला दीजिए. एकएक कर के तवे पर जितनी टिक्की आ जाए, सिंकने के लिए लगा कर रख दीजिए. धीमी आग पर आलू टिक्की सेंकिए. टिक्कियों को उलटपलट कर दोनों ओर से ब्राउन होने तक सेंकें. टिक्कियां सिंकने के बाद और कुरकुरा करने के लिए इन्हें तवे के किनारे लगा कर रख दीजिए. बाकी टिक्कियां भी इसी तरह सेंक लें. लीजिए, आलू भल्ले तैयार हैं.

आलू भल्ले को खाने के लिए देने से पहले टिक्की को तवे पर बीच में ला कर दबा कर और कुरकुरा कर लीजिए. एक या 2 टिक्की प्लेट में निकाल कर रखिए. टिक्की के ऊपर दही, हरी चटनी, मीठी चटनी डालिए और ऊपर से चाट मसाला भी डालिए. गरमागरम आलू भल्ला परोसिए. कई जगहों पर इसे हरेभरे पत्तों से बने दोने में दिया जाता है, तो कई जगह पर मिट्टी के कुल्हड़ में भल्ले खाने को दिए जाते हैं. प्रयोग के तौर पर इस में ऊपर से महीन सेव भी डाल दी जाती है.

Paddy : सही समय पर करें काम अच्छा पैदा हो धान

Paddy : सही तकनीक का इस्तेमाल कर के किसान न केवल इस तरह की समस्याओं से बच सकते हैं, बल्कि ज्यादा उपज भी ले सकते हैं.

यहां हम बासमती धान की खेती कलैंडर पर रोशनी डाल रहे हैं, ताकि किसान अपने कामों को समय पर अंजाम दें और अच्छी उपज पाएं.

1 से 15 जून

बीज भरोसेमंद जगह से ही खरीदें. बीजोपचार जरूर करें. 5 किलो बीज के लिए 5 ग्राम एमीसान व एक ग्राम स्ट्रैप्टोसायक्लीन का 10 लिटर पानी में घोल बनाएं. 24 घंटे तक बीज को उस में डुबोएं. टब एल्यूमिनियम का न हो. थोड़ा बीज का नमूना और थैला सुरक्षित रखें.

16 से 30 जून

अगर पौध पीली पड़ती दिखाई दे तो 3 फीसदी फेरस सल्फेट का छिड़काव करें. पौध उखाड़ने के एक हफ्ते पहले एक बार किसी फफूंदीनाशक का छिड़काव करें. पौधशाला में सिंचाई शाम के समय में करें.

1 से 15 जुलाई

जिन किसानों की धान की पौध 20-25 दिन की हो गई हो, वे सिंचाई करें और सावधानी से पौध उखाड़ कर उस की रोपाई करें. रोपाई के समय 4-5 सैंटीमीटर से ज्यादा पानी न रखें. एक वर्गमीटर में 25-30 पौधे लगाएं. रोपाई 15 जुलाई से पहले खत्म कर लें. पूसा बासमती-1509 की रोपाई 15 जुलाई के बाद ही करें.

16 से 31 जुलाई

सिंचाई व खरपतवार का ध्यान रखें. नाइट्रोजन की पहली खुराक का बुरकाव करें. जहां पौध मर गए हैं, वहां नई पौध लगा दें. खेत की मेंड़ को साफ रखें. अच्छा रहेगा कि फफूंदीनाशक का छिड़काव मेंड़ पर भी कर दें.

1 से 15 अगस्त

इस समय धान की फसल पर तना छेदक, पत्ती मोड़क, हरा तेला, सफेद पीठ वाला तेला कीट का हमला हो सकता है इसलिए किसान खेत की लगातार जांच करें. फैरोमौन प्रपंच यानी ट्रैप फसल के बीचोंबीच लगा सकते हैं ताकि पीला तना छेदक नर पतंगे खत्म हो जाएं. कीटों के पाए जाने पर ट्राइकोग्रामा कार्ड 1-3 प्रति एकड़ की दर से लगा सकते हैं. दवा का छिड़काव तभी करें, जब उन की तादाद ज्यादा हो.

16 से 31 अगस्त

खरपतवार की समय से पहले रोकथाम करें और नाइट्रोजन की बाकी बची मात्रा डालें. मेंड़ को साफ रखें व एक बार फिर किसी फफूंदीनाशक का छिड़काव करें.

इस दौरान धान में पत्ती लपेटक कीट का हमला देखा जाता है. अगर हमला ज्यादा हो तो कार्बोफ्यूरान 3जी/6 किलोग्राम प्रति एकड़ की दर से बुरकाव करें.

1 से 30 सितंबर

धान में पत्ती लपेटक कीट की जांच करें. इस समय धान की फसल को चौपट करने वाले ब्राउन प्लांट होपर यानी भूरा फुदका का हमला शुरू हो सकता है.

किसान खेत के अंदर जा कर पौधों के तनों के निचले भाग पर मच्छर जैसे कीट की जांच करें.

धान में ब्लास्टर यानी बदरा बीमारी का हमला होने की निगरानी भी हर 2-3 दिन के अंतर पर करें. शुरू में पत्तियों पर सूई की नोक के बराबर गोल तांबे के रंग के धब्बे बनना इस बीमारी की निशानी है. 2-3 दिन के अंदर ये धब्बे लंबाई में बढ़ कर आंख के आकार के हो जाते हैं.

अगर इस कीट की समय पर रोकथाम न की जाए तो बाली के नीचे के हिस्से पर इस का असर पड़ता है. इसे आम भाषा में गरदन तोड़ कहते हैं.

इस की रोकथाम के लिए बाविस्टीन 2 ग्राम प्रति लिटर की दर से 3 बार छिड़काव करें. पहली बार रोपाई के 30-40 दिन बाद, दूसरा छिड़काव पहले छिड़काव से 20-25 दिन बाद और तीसरा, दूसरे छिड़काव से 20-25 दिन बाद करने से बीमारियों की रोकथाम की जा सकेगी. जैसे ही बीमारी का लक्षण दिखाई दे, तुरंत छिड़काव करें.

इस समय धान में आभासी कंड यानी हलदी बीमारी आने की काफी संभावना है. इस बीमारी के आने से धान के दाने फूल जाते हैं और पीले रंग के हो जाते हैं. इस की रोकथाम के लिए ब्लाइटौक्स-50 की 500 ग्राम प्रति हेक्टेयर मात्रा को पानी में मिला कर 10 दिन के अंतर पर 2 बार बालियां आने से पहले छिड़काव करें. खेत में पानी जमा न होने दें.

इसी समय ब्राउन प्लांट होपर यानी भूरा फुदका का हमला शुरू हो सकता है. किसान खेत की नियमित निगरानी करते रहें और कीटों की ज्यादा तादाद होने पर मोनोक्रोटोफास 2 एमएल प्रति लिटर पानी की दर से जहां कीट हो, वहां छिड़काव करें.

1 से 30 अक्तूबर

दाना पकने पर खेत में दूसरी किस्मों के पौधे दिखाई दें तो उन्हें निकाल दें. अगर फसल में दूसरी जाति के दाने होते हैं तो भाव कम कर दिया जाता है.

पछेते धान में इस मौसम में एक सिंचाई जरूर करें. मौसम को ध्यान में रखते हुए किसानों को यह सलाह है कि धान की पकने वाली फसल को कटाई से 2 हफ्ते पहले सिंचाई लगाना बंद कर दें. फसल कटाई के बाद फसल को 2-3 दिन खेत में सुखा कर गहाई कर लें. उस के बाद दानों को अच्छी तरह से सुखा कर ही मंडी ले जाएं या स्टोर करें.

Workshop : प्याज एवं लहसुन पर अनुसंधान परियोजना की कार्यशाला

Workshop : भाकृअनुप-विवेकानंद पर्वतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, हवालबाग, अल्मोड़ा में प्याज एवं लहसुन पर अखिल भारतीय नैटवर्क अनुसंधान परियोजना की 16वीं सालाना कार्यशाला का शुभारंभ अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना (एआईओनआरपीओजी) के अंतर्गत किया गया. इस कार्यशाला के मुख्‍य अतिथि अजय टम्‍टा, केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग राज्य मंत्री ने अपने संबोधन में संस्थान के निदेशक एवं सभी वैज्ञानिकों को कृषि क्षेत्र में प्राप्त उपलब्धियों के लिए बधाई दी. उन्होंने कहा कि इस कार्यशाला में देश के विभिन्न क्षेत्रों से आए वैज्ञानिक अपने अनुभवों को साझा करेंगे.

मंत्री अजय टम्टा ने केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान के निर्देशन में 29 मई से 12 जून, 2025 तक चलने वाली ‘विकसित कृषि संकल्प अभियान : अनुसंधान किसान के द्वार’ कार्यक्रम में किसानों से अधिक से अधिक संख्या में भागीदारी कर कार्यक्रम को सफल बनाने का आह्वान किया.

इस कार्यशाला के अध्यक्ष डा. संजय कुमार सिंह, उपमहानिदेशक (बागबानी विज्ञान), भाकृअनुप ने बताया कि कार्यशाला के दौरान 3 साल के लिए बनाए जाने वाले इस कार्यक्रम में ‘किसानों को कैसे आगे बढ़ाया जाए’ विषय पर गहन चर्चा की जाएगी. उन के मुताबिक, देवभूमि में ऐसी क्षमता है कि यहां बेमौसमी एवं दुर्लभ सब्‍जी उत्‍पादन कर अत्यधिक लाभ लिया जा सकता है.

उन्होंने जानकारी देते हुए बताया कि हमारा देश आज प्याज एवं लहसुन की उत्पादकता में दूसरे स्थान पर है. यदि युवा तबका इस की खेती अच्छी क्वालिटी के बीज, तकनीकी एवं आधुनिक तरीका अपना कर करें, तो कम लागत पर अधिक मुनाफा ले सकते हैं.

इस से पूर्व संस्थान के निदेशक डा. लक्ष्‍मी कांत ने संस्थान की उपलब्धियां भी बताईं. उन्होंने कहा कि संस्थान द्वारा ही प्याज की पहली संकर किस्म वीएल प्‍याज 67 का विकास किया गया. उन्होंने बताया कि संस्थान द्वारा प्याज की 2 एवं लहसुन की 2 किस्मों का विकास कर उन्हें अधिसूचित किया गया और प्याज की 1 व लहसुन की 2 किस्मों का व्यावसायीकरण भी किया गया है.

इस दौरान डा. विजय महाजन, निदेशक, प्याज एवं लहसुन अनुसंधान निदेशालय, पुणे ने अखिल भारतीय प्याज एवं लहसुन परियोजना की सालाना उपलब्धियों से सभी को अवगत कराया.

इस संस्थान के 3 प्रकाशनों बुलबिल ऐज प्लांटिंग मैटिरियल: नोवल अप्रोच टू कल्‍टीवेट लौग डे गार्लिक इन नौर्थ वैस्‍टर्न हिमालयाज, पर्वतीय क्षेत्रों में प्‍याज का बीजोत्‍पादन एवं पर्वतीय इलाकों में लहसुन का बीज उत्पादन और प्याज एवं लहसुन अनुसंधान निदेशालय की पुस्तिका गाइडलाइंस फौर आइडेंटिफिकेशन औफ औनियन एंड गार्लिक वैरायटी/हाइब्रिड इवैल्‍यूएटेड अंडर एआईएनपीओआरजी फौर रिलीज का भी विमोचन किया गया.

प्रगतिशील किसानों को कार्यशाला के दौरान किया गया सम्मानित

इस अवसर पर अजय वर्मा, महापौर, अल्‍मोड़ा, डा. सुधाकर पांडे, सहायक महानिदेशक (बागबानी संभाग), भाकृअप, डा. केई लवांडे, पूर्व कुलपति, डा. बीएसकेकेवी, जलगांव एवं पूर्व निदेशक डीओजीआर, पुणे, डा. प्रवीण मलिक, सीईओ, एग्रीइनोवेट, नई दिल्‍ली, डा. संजय कुमार, डा. बीएस पाल, डा. विक्रमादित्य पांडे, डा. बीएस तोमर, डा. पीके गुप्ता एवं देश के विभिन्‍न संस्‍थानों और कृषि विश्वविद्यालयों के 70 से भी अधिक लोग उपस्थित रहे.

Financial Assistance : नागालैंड में कृषि क्षेत्र के विकास के लिए सहायता

Financial Assistance : केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण व ग्रामीण विकास मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय (इंफाल), जलुकी, नागालैंड के पशु चिकित्सा विज्ञान एवं पशुपालन महाविद्यालय के प्रशासनिक सह शैक्षणिक भवन का उद्घाटन किया. इस मौके पर नागालैंड के उपमुख्यमंत्री टी.आर. जेलियांग, राज्य के ग्रामीण विकास मंत्री मेत्सुबो जमीर, केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय (इंफाल) के कुलपति डा. अनुपम मिश्रा भी मौजूद थे.

इस मौके पर कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कृषि एवं पशुधन क्षेत्र की प्रगति और नागालैंड के विशिष्ट उत्पादों पर प्रकाश डाला. उन्होंने कृषि क्षेत्र के विकास और वृद्धि के लिए नागालैंड राज्य को 338.83 करोड़ रुपए की वित्तीय सहायता देने की घोषणा भी की है. उन्होंने नागालैंड सरकार से राज्य के कृषि और ग्रामीण विकास के लिए कार्य योजना बनाने को कहा और इस संबंध में केंद्र सरकार से पूर्ण सहयोग का भरोसा भी दिया.

कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने राज्य सरकार के अधिकारियों को सलाह दी कि वे नागालैंड के हर एक जिले के लिए वैज्ञानिकों, केवीके अधिकारियों, विश्वविद्यालय के पेशेवरों और किसानों की एक कोर वैज्ञानिक टीम बनाएं, जो महीने में कम से कम दो बार गांवों में किसानों से बातचीत कर के उन की समस्याओं का पता लगाए. इस से जमीनी स्तर पर नीति निर्माण और किसानों तक कृषि संबंधी तकनीक पहुंचाने में मदद मिलेगी. साथ ही, उन्होंने नागालैंड राज्य में प्राकृतिक खेती के अवसरों पर जोर दिया. उन्होंने कहा कि इस मामले में केंद्र सरकार मदद के लिए भी तैयार है.

केंद्रीय मंत्री ने पशु चिकित्सा विज्ञान एवं पशुपालन महाविद्यालय के प्रयासों की प्रशंसा की और यहां के छात्रों को अपने नवीन विचारों को उन के साथ साझा करने के लिए दिल्ली आमंत्रित किया. उन्होंने विद्यार्थियों के स्टार्टअप विकास के लिए हर संभव सहयोग एवं आर्थिक सहायता देने का भरोसा भी दिया. उन्होंने किसानों और छात्रों से बातचीत करने के लिए दोबारा नागालैंड आने का वादा भी किया. उन्होंने इस मौके पर आयोजित किसान मेले एवं प्रदर्शनी स्टालों का भी अवलोकन किया और किसानों से बातचीत की.

इस मौके पर नागालैंड के राज्यपाल ला. गणेशन ने समारोह की अध्यक्षता की और क्षेत्र के लोगों के लिए पशु स्वास्थ्य देखभाल और कृषि सुधार में मदद करने के लिए केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, इंफाल और कालेज की भूमिका की सराहना की. उन्होंने भारत के विकास के लिए वैज्ञानिक दृष्टिकोण और किसानों एवं स्टेट होल्डर्स की भागीदारी की भूमिका पर जोर दिया ताकि 2047 तक विकसित भारत का सपना साकार किया जा सके.

नागालैंड के उपमुख्यमंत्री टी.आर. जेलियांग ने राज्य में कृषि प्रगति और आर्थिक उत्थान के लिए क्षेत्र में तकनीकी विशेषज्ञता और रिसर्च आधारित खेती की भूमिका पर जोर दिया. इस कार्यक्रम में 639 किसान समेत राज्य एवं केंद्र सरकार के 84 अधिकारी शामिल हुए.

Mizoram’s Flower : मिजोरम की फूलों की खेती की सुगंध सारी दुनिया में

Mizoram’s Flower: केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण व ग्रामीण विकास मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने पिछले दिनों पूर्वोत्तर दौरे के पहले दिन मिजोरम, इंफाल के थेनजोल स्थित बागबानी महाविद्यालय के दो नए भवनों का वर्चुअल माध्यम से उद्घाटन किया. बागवानी महाविद्यालय, केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय का ही हिस्सा है, जिस के प्रशासनिक सह अकादमिक और भवन का केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा उद्घाटन किया गया.

कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि मिजोरम अद्भुत प्रदेश है. पूर्वोत्तर को आगे बढ़ाना हमारा संकल्प है. विकसित भारत के लिए विकसित मिजोरम और विकसित मिजोरम के लिए, विकसित खेती और समृद्ध किसान जरूरी है.

उन्होंने कहा कि चाहे मिजोरम की फसलें हो, चाहे फल, पैशन फ्रूट्स, अदरक, हल्दी, गोभी, बैंगन, टमाटर इत्यादि सब का बहुत महत्व है. यहां के फूल की सुगंध सारी दुनिया को आकर्षित करती है. अब हमारा लक्ष्य है कि इन फसलों को केवल मिजोरम तक ही सीमित नहीं रहने देना है बल्कि, इन की मार्किटिंग, ब्राडिंग कर के देश और दुनिया में भेजना है. इस में हम कोई कमी नहीं छोड़ेंगे. हमें किसानों को आत्मनिर्भर बनाना है.

केंद्रीय मंत्री श्री चौहान ने सभी से मिजोरम राज्य को विकसित बनाने में सहयोग करने का आह्वान भी किया.

इस अवसर पर मिजोरम के राज्यपाल जनरल डा. वीके सिंह, मुख्यमंत्री पु. लालदुहोमा और विश्वविद्यालय कुलपति डा. अनुपम मिश्रा भी उपस्थित रहे.

इस कार्यक्रम में किसानों और केवीके की भागीदारी के साथ नवीनतम बागबानी विकास को प्रदर्शित करने वाली एक प्रदर्शनी भी लगाई गई. जिस में 1,500 से अधिक किसानों ने भाग लिया.

Trolley : छोटी ट्रौली से करें काम, बोझ ढोना हुआ आसान

Trolley : कृषि क्षेत्र में महिलाओं की भी भागीदारी अहम है. पशुपालन में भी महिलाओं की तकरीबन 70 फीसदी भागीदारी है. महिलाओं द्वारा पशुओं के लिए चारा काटना और उसे लाना, दूध दुहना, गोबर डालना व उस के उपले बनाना और पशुओं की देखरेख करना ये सभी काम शामिल हैं.

ये सभी काम मेहनत वाले हैं जिन से थकावट होती है इसलिए अब कृषि में अनेक प्रयोग होने लगे हैं जो खेती से जुड़े कामों को आसान बना रहे हैं.

इसी दिशा में चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार के ‘पारिवारिक संसाधन प्रबंधन विभाग’ द्वारा एक बहुद्देशीय ट्रौली को बनाया गया है जिस पर सामान लादना व ढोना आसान है. इस ट्रौली से किसी भी सामान को एक जगह से दूसरी जगह ले जाया जा सकता है जैसे गोबर, ईंधन, पानी वगैरह. इस ट्रौली को हाथों से धक्का दे कर चलाया जाता है. बोझ को सिर पर उठा कर नहीं चलना पड़ता इसलिए इस ट्रौली के इस्तेमाल में आराम रहता है.

यह ट्रौली खेतिहर महिलाओं के लिए काफी आरामदायक है. इस ट्रौली को लोहे की चादर और पाइपों से बनाया गया है जिस में तकरीबन 17-18 किलो वजन होता है. इस की अनुमानित कीमत 2,000 रुपए है.

आप इसे स्थानीय बाजार से भी ले सकते हैं या हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार के ‘पारिवारिक संस्थान प्रबंधन विभाग’ से संपर्क कर सकते हैं.

Farming Schemes : खेती योजनाओं की भरमार,किसानों को जानकारी नहीं

Farming Schemes : सरकारें किसानों की हिमायती बनने का दिखावा कर के उन को लुभानेरिझाने में लगी हैं, इसलिए हर रोज नई स्कीमों के फरमान जारी हो रहे हैं. नेता गाल और अफसर खड़ताल बजा रहे हैं. यह बात अलग है कि ज्यादातर किसान आज भी बदहाल हैं, क्योंकि बहुत से किसानों को सरकारी स्कीमों का फायदा मिलना तो दूर उन्हें पता तक नहीं चलता, क्योंकि निकम्मे व भ्रष्ट सरकारी मुलाजिम किसानों को उन के फायदे की योजनाओं की कानोंकान खबर तक नहीं लगने देते.

सरकारी योजनाओं के ज्यादातर घोड़े कागजों पर दौड़ते हैं. छुटभैए नेता और बिचौलियों की मिलीभगत से हिस्साबांट हो जाता है. सरकारी स्कीमों की छूट व सहूलियतों का फायदा लेने के लिए किसानों को खुद ही जागना होना. अपनी जानकारी बढ़ाने के लिए उन्हें पत्रपत्रिकाओं का सहारा लेना पड़ेगा.

नईनई तकनीकें सीख कर खेती की लागत घटे, बेहतर इंतजाम से नुकसान घटे व प्रोसैसिंग से आमदनी बढ़े, ऐसी बातें सीखनी होंगी. खेती में कम आमदनी की अहम वजह सही जानकारी की कमी भी है.

दर्जनों स्कीमें

खाद, बीज, कीड़ेमार दवा व खेती की मशीनें उधार लेने के लिए हर बार किसानों को कर्ज लेने के पहले अपनी खेती के कागज जमा कराने पड़ते हैं, लेकिन उत्तर प्रदेश में अब ऐसा नहीं है. ज्यादातर किसान नहीं जानते हैं कि उत्तर प्रदेश में खेती महकमे की स्कीमों का फायदा लेने के लिए ह्वश्चड्डद्दह्म्द्बष्ह्वद्यह्लह्वह्म्द्ग.ष्शद्व पर महज एक बार औनलाइन रजिस्ट्रेशन कराना जरूरी है. फिर इस के बाद बारबार कागज जमा कराने का झंझट खत्म.

किसान अपनी जमीन की खतौनी, आधारकार्ड व बैंक पासबुक की फोटोकौपी ले कर अपने जिले में खेती महकमे के दफ्तर, जनसेवा केंद्र या साइबर कैफे में यह काम करा सकते हैं.

अगर इस तरह की बुनियादी जानकारी किसानों को मिले तो सरकारी स्कीमों का फायदा आसानी से लिया जा सकता है.

उत्तर प्रदेश में किसान अपने खेत से मिट्टी का नमूना ले कर बिना कुछ खर्च किए ही खेती महकमे की लैब से उस की जांच करा सकते हैं. इस की जानकारी ब्लौक दफ्तर के सहायक विकास अधिकारी, कृषि से ली जा सकती है. मृदा स्वास्थ्य कार्ड पर दर्ज जांच रिपोर्ट के आधार पर खेत की मिट्टी में जिन चीजों की कमी हो, जरूरी खुराक खेत में डाल कर किसान अपनी पैदावार व आमदनी में इजाफा कर सकते हैं.

Farming Schemesमशीनों पर छूट

खेती में समय और मेहनत बचा कर बेहतर काम के लिए मशीनों का इस्तेमाल करना बहुत ही फायदेमंद साबित हुआ है इसलिए सरकार उन की खरीद पर माली इमदाद देती है ताकि ज्यादा से ज्यादा किसान उन्हें खरीद सकें.

छोटे किसानों को खेती की मशीनें किराए पर मुहैया कराने के लिए अगर 8-10 किसान मिल कर अपना एक समूह बनाएं तो वे अपना खुद का कस्टम हायरिंग सैंटर या फार्म मशीनरी बैंक खोल सकते हैं.

सिंचाई में सहायता

गांव में अमूमन बिजली कम ही आती है. बिजली आए भी तो वोल्टेज कम आती है. उधर डीजल की बढ़ती कीमतों ने फसलों की सिंचाई को महंगा कर दिया है. ऐसे में सोलर पंप सैट का इस्तेमाल करना फायदेमंद है.

किसान अगर बोरिंग खुद करा लें तो 2, 3 व 5 हौर्सपावर का सोलर पंप लगाने पर उत्तर प्रदेश का खेती महकमा 40 से 70 फीसदी तक की छूट देता है.

जमीन के अंदर का पानी सब से ज्यादा फसलों की सिंचाई में खर्च होता है. पानी की कमी वाले इलाकों में फव्वारा यानी स्प्रिंकलर सिस्टम को बढ़ावा दिया जा रहा है.

Farming Schemes

केंचुआ खाद में माली इमदाद

कैमिकल खाद के अंधाधुंध इस्तेमाल ने जमीन की सेहत को काफी हद तक खराब कर दिया है इसलिए केंचुओं की खाद यानी वर्मी कंपोस्ट के उत्पादन व इस्तेमाल पर खासा जोर दिया जा रहा है.

खेती का कचरा यानी अवशेष (पराली) का इस्तेमाल कंपोस्ट बना कर जमीन की उपजाऊ ताकत को बढ़ाने में बखूबी किया जा सकता है, जबकि इस को जलाने से माहौल खराब होता है.

प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना से अलग राष्ट्रीय पशुधन बीमा योजना में पशुपालक जानवरों के नजदीकी अस्पताल में  बीमा करा सकते हैं.

सावधानी

गौरतलब है कि सभी स्कीमों में दी जाने वाली छूट किसानों के बैंक खातों में जमा की जाती है इसलिए अपना बैंक खाता जरूर चालू रखें. साथ ही, जो भी चीज नकद या उधार कृषि विभाग के स्टोर से खरीदें, उस की पक्की रसीद जरूर लें वरना छूट नहीं मिलेगी. किसान गूगल प्ले स्टोर से यूपी पारदर्शी किसान नामक मोबाइल एप भी डाउनलोड कर सकते हैं.

Farming Schemes

दूसरे राज्यों में भी हैं ये सुविधाएं

उत्तर प्रदेश में 1 लाख रुपए तक, महाराष्ट्र में डेढ़ लाख रुपए तक, राजस्थान, कर्नाटक, मध्य प्रदेश व पंजाब में 2-2 लाख रुपए तक किसानों के कर्ज माफ किए गए हैं. महाराष्ट्र में कर्ज चुकाने वालों को 25,000 रुपए तक की माली इमदाद दी जाती है. पंजाब में खुदकुशी करने वाले किसानों के परिवारों को 5 लाख रुपए का मुआवजा दिया जाता है.

ओडि़सा में रबी खरीफ की फसल पर 5-5 हजार रुपए प्रति एकड़ खेती से जुड़े कामधंधों के लिए 12,500 रुपए, 2 लाख रुपए का दुर्घटना बीमा, बूढ़े किसानों को 10,000 रुपए व 50,000 रुपए तक बिना ब्याज के कर्ज की सहूलियत दी जा रही है. झारखंड में खरीफ की फसल पर 5,000 रुपए प्रति एकड़ की इमदाद दी जा रही है.

तेलंगाना में किसानों के लिए 24 घंटे मुफ्त बिजलीपानी मिलता है. बीते दिनों 7 अरब रुपए के पानी के बिल माफ किए गए हैं. साल में 2 फसलों के लिए 4,000 रुपए प्रति एकड़ की माली इमदाद व 5 लाख रुपए की दुर्घटना बीमा की सहूलियत दी जाती है. पश्चिम बंगाल में किसानों की फसल बीमा का प्रीमियम व किसानों की मौत पर उन के परिवार को 2 लाख रुपए का मुआवजा दिया जाता है. खेती महकमे के दफ्तर से किसान ज्यादा जानकारी हासिल कर सकते हैं.