कृषि 24/7 – कृषि का अजब उपकरण

कृषि एवं किसान कल्याण विभाग (डीएएंडएफडब्ल्यू) ने वाधवानी इंस्टीट्यूट फौर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (वाधवानी एआई) के सहयोग से कृषि 24/7 प्लेटफार्म को विकसित किया है, जो कृषि सूचना निगरानी एवं विश्लेषण के लिए Google.org की सहायता से चलने वाला स्वचालित पहला कृत्रिम बुद्धिमता-संचालित समाधान है. कृषि 24/7 प्लेटफार्म, कृषि एवं किसान कल्याण विभाग को प्रासंगिक सूचनाओं की पहचान करने, समय पर सावधान करने और किसानों के हितों की रक्षा के उद्देश्य से त्वरित कार्रवाई करने और बेहतर निर्णय लेने के माध्यम से स्थायी कृषि विकास को बढ़ावा देने में सहायता पहुंचाएगा.

कृषि 24/7 का कार्यान्वयन सही समय पर उचित निर्णय लेने में सहायता के उद्देश्य से कृषि संबंधित रुचि के कृषि समाचार, लेखों की पहचान और प्रबंधन करने के लिए एक कुशल तंत्र की आवश्यकता को पूरा करता है.

यह प्लेटफार्म कई भाषाओं में समाचार, लेखों को स्कैन करता है और उन का इंगलिश में अनुवाद करता है. कृषि 24/7 समाचार व लेखों से आवश्यक जानकारी को ढूंढ़ कर निकालता है. इन में शीर्षक, फसल का नाम, कार्यक्रम का प्रकार, तिथि, स्थान, गंभीरता, सारांश और स्रोत का आधार शामिल होता है.

कृषि 24/7 यह सुनिश्चित करता है कि कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय को वैब पर प्रकाशित होने वाली प्रासंगिक घटनाओं की समय पर जानकारी प्राप्त हो जाए.

कृषि एवं किसान कल्याण विभाग के सचिव मनोज आहूजा ने इस पहल की शुरुआत करते हुए कहा कि सूचना निगरानी की यह प्रणाली न केवल हमें जानकारी प्रदान करती रहेगी, बल्कि हमें अपना विचार तय करने के लिए सशक्त माध्यम देगी.

उन्होंने निरंतर सुधार की बात भी की और अपना सुझाव देते हुए कहा कि जैसेजैसे हम आगे बढ़ेंगे, वैसेवैसे इस प्रणाली को विस्तार देने के लिए तैयार रहेंगे.

मनोज आहूजा ने कहा कि जिस तरह से दुनिया विकसित होती जा रही है, उसी तरह से हमारे उपकरण एवं माध्यम भी विकसित होने चाहिए.

सचिव मनोज आहूजा ने कहा कि आइए, हम यह सुनिश्चित करने के लिए मिल कर काम करें कि यह निगरानी प्रणाली एक गतिशील उपकरण बन जाए, जो सूचना के बदलते परिदृश्य के अनुकूल हो और हमारे किसानों को बेहतर सेवाएं देने के हमारे मिशन में एक मूल्यवान संपदा के तौर पर उपलब्ध हो.

संयुक्त सचिव (प्रसारण) सैमुअल प्रवीण कुमार ने सूचनाओं के इस घटक के कार्यों के बारे में संक्षेप में बताया, जिस का उद्देश्य कृषि इकोसिस्टम पर औनलाइन प्रकाशित समाचार, लेखों की लगभग वास्तविक समय की निगरानी प्रदान करना है, जो कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के हित की खबरों की पहचान करने और सूचनाओं का चुनाव करने, चेतावनी जारी करने और समय पर कार्रवाई करने के लिए एक विस्तृत तंत्र तैयार करने में सहायता करेगा.

वाधवानी इंस्टीट्यूट फौर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के संयुक्त निदेशक (एजी) जेपी त्रिपाठी ने कहा कि हम मौजूदा चुनौतियों के लिए कृत्रिम बुद्धिमता से संचालित होने वाला तंत्र बनाना चाहते हैं, जहां सूचनाओं की निगरानी और सत्यापन हस्तचालित व समय लेने वाला रहा है.

उन्होंने बताया कि उन के संस्थान द्वारा बीमारी के प्रकोप के लिए एकसमान घटनाओं को परखने वाले और विश्लेषण संबंधी प्लेटफार्म को राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र (एनसीडीसी) के साथ सफलतापूर्वक संचालित किया गया है.

जेपी त्रिपाठी ने यह भी कहा कि हम कृषि एवं किसान कल्याण विभाग और केंद्र सरकार के नियंत्रण वाले अन्य निकायों के साथ सहयोग कर के, उन्हें प्रभावी उपकरणों से लैस करने के लिए प्रतिबद्ध हैं, जो उन्नत डेटा संचालित निर्णयों के माध्यम से सूचना प्रवाह को बेहतर बना देते हैं.

एपीडा का लुलु हाइपरमार्केट के साथ तालमेल

नई दिल्ली: खाड़ी के सहयोगी देशों (जीसीसी) में कृषि उत्पादों के निर्यात को बढ़ावा देने के लिए भारत सरकार के वाणिज्य मंत्रालय के कृषि एवं प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीडा) ने वैश्विक खुदरा बाजार की प्रमुख कंपनी लुलु हाइपरमार्केट एलएलसी के साथ एक समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर किए हैं.

नई दिल्ली में आयोजित वर्ल्ड इंडिया फूड (डब्ल्यूआईएफ), 2023 में 3 नवंबर, 2023 को एपीडा के अध्यक्ष अभिषेक देव और लुलु समूह के अध्यक्ष सहप्रबंध निदेशक यूसुफ अली एमए के बीच इस समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गए. इस समझौता ज्ञापन का उद्देश्य वैश्विक स्तर पर ब्रांड इंडिया को बढ़ावा देना है.

इस समझौता ज्ञापन के साथ एपीडा पूरे जीसीसी में मोटे अनाजों (मिलेट्स) सहित भारतीय कृषि उत्पादों को बढ़ावा देगा, क्योंकि लुलु ग्रुप इंटरनेशनल (एलएलसी) की जीसीसी, मिस्र, भारत और सुदूर पूर्व में 247 लुलु स्टोर और 24 शापिंग मौल के साथ मौजूदगी है.

लुलु समूह मध्य पूर्व और एशिया में सब से तेजी से बढ़ती खुदरा श्रृंखला है.

Luluयह समझौता ज्ञापन लुलु हाइपरमार्केट रिटेल श्रृंखला के साथ एपीडा के निर्धारित उत्पादों के लिए प्रचारात्मक गतिविधियों की भी सुविधा प्रदान करेगा.

समझौता ज्ञापन के दस्तावेज के अनुसार, लुलु समूह अपने खुदरा दुकानों में कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पादों की एपीडा की टोकरी में उत्पादों की एक विस्तृत श्रृंखला को सक्रिय रूप से बढ़ावा देगा और प्रदर्शित करेगा.

एपीडा के उत्पादों को प्रमुखता से प्रदर्शित करने और उन की दृश्यता बढ़ाने के लिए लुलु समूह के स्टोर के भीतर एक समर्पित शेल्फ स्थान (विशेष खंड या गलियारे) आवंटित किए जाएंगे.

एपीडा और लुलु समूह संवादात्मक कार्यक्रमों, नमूनाकरण/चखने के अभियानों, मौसम के अनुसार फलसब्जियों के लिए विशिष्ट अभियानों, नए उत्पाद लौंगच और हिमालयी/उत्तरपूर्वी राज्यों से आने वाले उत्पादों, जैविक उत्पादों आदि के प्रचार के जरीए उपभोक्ताओं के साथ जुड़ेंगे.

एपीडा ने हिमालयी और उत्तरपूर्वी राज्यों की निर्यात संबंधी संभावनाओं को बढ़ावा देने के उद्देश्य से लुलु समूह के साथ अरुणाचल प्रदेश विपणन बोर्ड, जम्मू स्थित शेर ए कश्मीर कृषि विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय और मेघालय कृषि विपणन बोर्ड के समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर करने में भी मदद की.

प्रचार संबंधी गतिविधियां गंतव्य देश में उपभोक्ताओं के लिए प्रजातीय, अनूठे और जीआई-टैग वाले कृषि उत्पादों के लाभों के बारे में जानकारी एवं जागरूकता का अधिकतम प्रसार करने में सक्षम होगी.

उत्पाद संबंधी पेशकशों को बेहतर बनाने के लिए उपभोक्ताओं से सक्रिय रूप से प्रतिक्रियाएं मांगी जाएंगी.

इस समझौता ज्ञापन में यह भी कहा गया है कि एपीडा और लुलु समूह संयुक्त रूप से अपने स्टोरों के अंतर्राष्ट्रीय नेटवर्क के जरीए कृषि उत्पादों के निर्यात को सुविधाजनक बनाने के अवसरों का पता लगाने के लिए काम करेंगे, जिस से भारतीय कृषि उत्पादों की वैश्विक पहुंच और उपभोक्ताओं तक इस की सुलभता में विस्तार होगा.

एपीडा और लुलु समूह, दोनों संयुक्त रूप से विदेश में स्थित भारतीय मिशनों और संबंधित हितधारकों के सहयोग से क्रेताविक्रेता बैठक (बीएसएम), आर-बीएसएम/बी2बी बैठकें, व्यापार मेले/रोड शो जैसे निर्यातोन्मुखी प्रचार कार्यक्रमों की सुविधा प्रदान करेंगे.

इस समझौता ज्ञापन के दस्तावेज में यह कहा गया है कि लुलु समूह विभिन्न आयातक देशों की आवश्यकताओं के अनुरूप उत्पादों की लेबलिंग में अपनी सहायता प्रदान करेगा. साथ ही, इस में यह भी कहा गया है कि दोनों पक्ष वाणिज्यिक मामलों और लागू शर्तों को पारस्परिक रूप से तय करेंगे.

विश्व के सब से विश्वविद्यालय में है गोविंद बल्लभ पंत कृषि विश्वविद्यालय

पंतनगर (उत्तराखंड) : राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने उत्तराखंड के पंतनगर में स्थित गोविंद बल्लभ पंत कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के 35वें दीक्षांत समारोह में भाग लिया और उसे संबोधित किया.

इस अवसर पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने कहा कि देश में कृषि शिक्षा को बढ़ावा देने और कृषि क्षेत्र के विकास के लिए गोविंद बल्लभ पंत कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय की स्थापना की गई थी. स्थापना के बाद से यह कृषि शिक्षा, अनुसंधान और विकास के लिए एक उत्कृष्ट केंद्र बन गया है.

उन्होंने आगे कहा कि 11000 एकड़ क्षेत्र में फैला यह विश्‍व के सब से बड़े विश्वविद्यालयों में से एक है.

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने कहा कि नोबल पुरस्कार विजेता डा. नौर्मन बोरलौग ने पंतनगर विश्वविद्यालय को ‘हरित क्रांति का अग्रदूत’ नाम दिया था.

Pant Universityइस विश्वविद्यालय में नौर्मन बोरलौग द्वारा विकसित मैक्सिकन गेहूं की किस्मों का परीक्षण किया गया था. इस ने हरित क्रांति की सफलता में प्रभावी भूमिका निभाई है. कृषि क्षेत्र से जुड़ा हर व्यक्ति ‘पंतनगर बीज’ के बारे में जानता है. पंतनगर विश्वविद्यालय में विकसित बीजों का उपयोग देशभर के किसानों द्वारा फसल की गुणवत्ता और उपज बढ़ाने के लिए किया जाता है.

उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि पंतनगर विश्वविद्यालय देश के कृषि क्षेत्र के विकास में अग्रणी भूमिका निभाता रहेगा.

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने यह भी कहा कि कृषि के क्षेत्र में हो रहे अनुसंधानों को किसानों तक पहुंचाना कृषि विकास के लिए आवश्‍यक है. उन्हें यह जान कर प्रसन्‍नता हुई कि यह विश्वविद्यालय विभिन्न जलवायु अनुकूल प्रौद्योगिकियों के माध्यम से ग्रामीण समुदाय की सहायता कर रहा है.

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने जोर दे कर कहा कि शिक्षा प्रणाली को वैश्विक स्तर पर हो रहे प्रौद्योगिकीय, आर्थिक और सामाजिक विकास के साथ तालमेल बिठाने की आवश्‍यकता है.

उन्होंने कहा कि शैक्षणिक संस्थानों को ऐसे स्नातक तैयार करने चाहिए, जो उद्योग के लिए तैयार हों और जो रोजगार सृजित कर सकें एवं प्रौद्योगिकी केंद्रित विश्‍व में प्रतिस्पर्धा कर सकें.

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने साफ शब्दों में कहा कि आज दुनिया जलवायु परिवर्तन और मृदा क्षरण जैसी समस्याओं से निबटने के लिए प्राकृतिक और जैविक खेती की ओर बढ़ रही है. पर्यावरणअनुकूल भोजन की आदतों को भी बढ़ावा दिया जा रहा है.

Pant Universityउन्होंने कहा कि इस विश्वविद्यालय के शोधकर्ता, वैज्ञानिक और संकाय सदस्य हमारे भोजन की आदतों में मोटे अनाज को प्राथमिकता देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे.

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने कहा कि वैश्विक चुनौतियों का सामना करने के लिए नवीनतम प्रौद्योगिकी का उपयोग आवश्यक है.

उन्होंने फसल प्रबंधन, नैनो-प्रौद्योगिकी, जैविक खेती आदि के माध्यम से कृषि में डिजिटल समाधान शुरू करने के लिए पंतनगर विश्वविद्यालय की सराहना की. उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय कृत्रिम आसूचना के उपयोग के लिए भी कदम उठा रहा है. उन्हें यह जान कर प्रसन्‍नता हुई कि इस विश्वविद्यालय ने अपना स्वयं का कृषि ड्रोन विकसित किया है, जो कुछ ही मिनटों में कई हेक्टेयर भूमि पर छिड़काव कर सकता है. उन्होंने विश्वास जताया कि ड्रोन प्रौद्योगिकी का लाभ शीघ्र ही किसानों को मिल सकेगा.

विश्वकर्मा योजना के तहत मास्टर प्रशिक्षकों का प्रशिक्षण

नई दिल्ली : प्रधानमंत्री विश्वकर्मा योजना को लागू करने की दिशा में एक रणनीतिक कदम के रूप में कौशल विकास और उद्यमिता मंत्रालय (एमएसडीई) ने तय किए गए ट्रेडों में कारीगरों और शिल्पकारों के समुदाय को सशक्त बनाने के लिए पीएम विश्वकर्मा योजना के तहत मास्टर ट्रेनर्स और मूल्यांकनकर्ताओं के प्रशिक्षण कार्यक्रम की शुरुआत की.

6 से 10 नवंबर, 2023 तक राष्ट्रीय उद्यमशीलता और लघु व्यवसाय विकास संस्थान (निस्बड)) में आयोजित होने वाले इस पांच दिवसीय आवासीय प्रशिक्षण कार्यक्रम के दौरान दिल्ली, गुजरात, हरियाणा, मध्य प्रदेश, पंजाब, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पश्चिम बंगाल और छत्तीसगढ़ सहित 10 विभिन्न राज्यों के 41 मास्टर प्रशिक्षकों को प्रशिक्षित किया जा रहा है.

मास्टर प्रशिक्षकों का पहला बैच निम्नलिखित व्यवसायों को पूरा करेगा :

नाई, दर्जी, राजमिस्त्री, बढ़ई (सुथार/बधाई), गुड़िया और खिलौना निर्माता (पारंपरिक) और लुहार. मास्टर ट्रेनर्स ट्रेनिंग प्रोग्राम का लक्ष्य इन मास्टर ट्रेनर्स को आधुनिक प्रौद्योगिकी कौशल और उद्यमशीलता ज्ञान में निपुण बनाना है. प्रतिभागियों को उद्यमशीलता दक्षताओं, व्यवसाय योजना की तैयारी, सरकारी सहायता पारिस्थितिकी तंत्र, वित्तीय साक्षरता, डिजिटल और सोशल मीडिया मार्केटिंग, ब्रांडिंग और मार्केटिंग पर प्रशिक्षण दिया जाएगा.

इस के अतिरिक्त, मास्टर प्रशिक्षकों को अपने कौशल को बढ़ाने और वर्तमान में चल रहे ट्रेंड्स को अपनाने के लिए एक आधुनिक टूल किट प्रदान की जाएगी.

कार्यक्रम का उद्घाटन कौशल विकास और उद्यमिता मंत्रालय के सचिव अतुल कुमार तिवारी ने किया. उद्घाटन के दौरान उन्होंने प्रधानमंत्री विश्वकर्मा योजना के महत्वपूर्ण घटकों पर जोर दिया और कहा, “एक कुशल और सशक्त कार्यबल के निर्माण की खोज में, प्रधानमंत्री विश्वकर्मा योजना के तहत मास्टर ट्रेनर्स और असैसर्स प्रोग्राम, हमारे देश को ज्ञान से लैस करने की और इस के लिए आवश्यक विशेषज्ञता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है.”

ये मास्टर प्रशिक्षक (ट्रेनर), ज्ञान और नवाचार के पथप्रदर्शक के रूप में, हमारे देश के भविष्य को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करेंगे.

उन्होंने आगे कहा, “उन का समर्पण और विशेषज्ञता न केवल हमारे कार्यबल के कौशल को समृद्ध करेगी बल्कि आत्मनिर्भर, तकनीकी रूप से उन्नत और समृद्ध भारत के लिए प्रधान मंत्री विश्वकर्मा योजना के दृष्टिकोण को साकार करने में भी योगदान देगी. साथ मिल कर, हम अपने नागरिकों को सशक्त बनाएंगे और सामूहिक रूप से 21वीं सदी के लिए एक कुशल भारत का निर्माण करेंगे.”

पीएम विश्वकर्मा योजना के अंतर्गत पीएम विश्वकर्मा प्रमाणपत्र और आईडी कार्ड के माध्यम से मान्यता, कौशल सत्यापन के माध्यम से कौशल उन्नयन, बुनियादी कौशल, उन्नत कौशल प्रशिक्षण, उद्यमशीलता ज्ञान,15,000 रुपए तक टूलकिट प्रोत्साहन, 3,00,000 तक क्रेडिट सहायता और डिजिटल लेनदेन के लिए प्रोत्साहन सुनिश्चित करती है. यह कार्यक्रम राष्ट्रीय विपणन समिति (एनसीएम) द्वारा विपणन और ब्रांडिंग सहायता भी प्रदान करेगा.

कारीगरों और कुशल शिल्पकारों द्वारा तैयार किए गए उत्पादों और सेवाओं की गुणवत्ता बढ़ाने और पहुंच का विस्तार करने पर ध्यान देने के साथ प्रधानमंत्री विश्वकर्मा योजना को वितरित करने के लिए मास्टर प्रशिक्षकों को प्रशिक्षित किया जाएगा. उन का प्राथमिक उद्देश्य घरेलू और वैश्विक मूल्य श्रृंखलाओं में विश्वकर्माओं का निर्बाध एकीकरण सुनिश्चित करना होगा. इस पहल का महत्वपूर्ण लक्ष्य कारीगरों और शिल्पकारों को व्यापक सहायता प्रदान करना है जिस से उन के संबंधित व्यापार की मूल्य श्रृंखला में प्रगति को सुविधाजनक बनाया जा सके.

इन प्रशिक्षकों को विभिन्न पहलुओं पर प्रशिक्षण प्राप्त होगा, जिस में कार्यक्रम के लाभार्थियों के लिए विशेष ओरिएंटेशन सत्र आयोजित करना, उन के काम के दायरे को समझना और व्यवहार अभ्यास और वास्तविक जीवन के मामले के अध्ययन के माध्यम से उद्यमशीलता गुणों को पहचानने में प्रतिभागियों की सहायता करना शामिल है.

Vishwakarma Yojnaइस के अलावा, मास्टर प्रशिक्षकों को कई सरकारी सहायता योजनाओं से परिचित कराया जाएगा जिन का लाभ विश्वकर्मा वित्तीय सहायता के लिए उठा सकते हैं. उन्हें आगे प्रशिक्षित करने के लिए भी प्रशिक्षित किया जाएगा ताकि विश्वकर्मा बैंक वित्तपोषण से जुड़ी प्रक्रियाओं और औपचारिकताओं में अच्छी तरह से पारंगत हो सकें. यह प्रशिक्षण उन्हें वित्तीय संस्थानों और ऋण देने की प्रक्रियाओं द्वारा अपनाई जाने वाली नीतियों और दिशानिर्देशों को संरचित और व्यवस्थित तरीके से समझने में सशक्त बनाएगा.

इस के अलावा ये प्रशिक्षक प्रतिभागियों को व्यवसाय योजना के विभिन्न घटकों को समझने में सहायता करने के लिए सुसज्जित होंगे. वे व्यवसाय की प्रकृति को स्पष्ट करने, एक अच्छी बिक्री और विपणन रणनीति विकसित करने, वित्तीय पृष्ठभूमि की रूपरेखा तैयार करने और अनुमानित लाभ और हानि विवरण तैयार करने में कुशल होंगे.

गुरुशिष्य परंपरा पर प्रकाश डालने वाले पीएम विश्वकर्मा दिशानिर्देशों के अनुसार, मास्टर प्रशिक्षकों को व्यावहारिक प्रशिक्षण के लिए व्यापार विशिष्ट उपकरणों और उन का उपयोग करने के तरीके पर उन्मुख किया जाएगा. आधुनिक प्रशिक्षण श्रव्यदृश्य उपकरण प्रशिक्षण के पूरक होंगे. प्रत्येक उपकरण के उपयोग का व्यावहारिक प्रशिक्षण प्रदान किया जाएगा. आधुनिक डिजाइन और समय अनुकूलन को विकसित कर के कैसे सुधार किया जाए इस पर दिशा दिखाई जाएगी.

मास्टर ट्रेनर को प्रत्येक ट्रेड के लिए बनाई गई प्रशिक्षु और ट्रेनर हैंडबुक का उपयोग करने के तरीके के बारे में बताया जाएगा. प्रत्येक ट्रेड प्रशिक्षण कक्षा मोड में दिया जाएगा. व्यापार प्रशिक्षण के दौरान उद्योग विशेषज्ञों को एक सत्र के लिए बुलाया जा सकता है.

सभी पंजीकृत लाभार्थियों के लिए कौशल मूल्यांकन करने के लिए मास्टर टेनर्स को प्रशिक्षित किया जाएगा, ताकि उन के मौजूदा कौशल स्तरों का आकलन किया जा सके.

यह आकलन सभी 12 क्षेत्रीय भाषाओं में तैयार किया गया है. यह कौशल को बढ़ाने की प्रक्रिया में पहली महत्वपूर्ण गतिविधि होगी और कौशल के वर्तमान स्तरों का आकलन कर के, पीएम विश्वकर्मा योजना में कौशल उन्नयन के भविष्य के मार्ग को एक सूचीबद्ध तरीके से तैयार किया जाएगा. यह विश्वकर्मा के मौजूदा कौशल, आधुनिक उपकरणों और तकनीकों से परिचित होने और किसी भी अंतराल का व्यापक मूल्यांकन करने के लिए एक सरल, संक्षिप्त परीक्षण होगा.

प्रशिक्षण के बाद उम्मीदवारों का मूल्यांकन दिए जा रहे 40 घंटे के बुनियादी प्रशिक्षण के आधार पर किया जाएगा. यह आधुनिक उपकरणों, प्रशिक्षण अवधि के दौरान उन के उपयोग और डिजिटल और वित्तीय साक्षरता, ब्रांडिंग और मार्केटिंग, स्व-रोजगार मौड्यूल के उन के ज्ञान पर किया जाएगा. यह एक समयबद्ध मूल्यांकन होगा जिसे सभी विश्वकर्माओं को करना होगा.

इस कार्यक्रम में, एमएसडीई की संयुक्त सचिव सुहेना उस्मान, एनआईएसबीयूडी कीनिदेशक (ईई) डा. पूनम सिन्हा और एनएसडीसी केसीपीओ महेंद्र पायल भी उपस्थित थे.

पीएम विश्वकर्मायोजना एक केंद्रीय क्षेत्र योजना है जो 17 सितंबर, 2023 को प्रधानमंत्री द्वारा हाथों और उपकरणों से काम करने वाले कारीगरों और शिल्पकारों को शुरू से अंत तक सहायता प्रदान करने के लिए शुरू की गई थी. अधिक जानकारी के लिए कृपया www.pmvishwakarma.gov.inपर जाएं. किसी भी प्रश्न के लिए कारीगर और शिल्पकार 18002677777 पर फोन कर सकते हैं या pm-vishwakarma@dcmsme.gov.in पर ईमेल कर सकते हैं.

27.50 रुपए प्रति किलोग्राम पर ‘भारत’ आटा

नई दिल्ली : केंद्रीय उपभोक्ता मामले, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण, वस्त्र और वाणिज्य तथा उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने कर्तव्य पथ, नई दिल्ली से पिछले दिनों ‘भारत’ ब्रांड के अंतर्गत गेहूं के आटे की बिक्री के लिए 100 मोबाइल वैन को हरी झंडी दिखाई. यह आटा 27.50 रुपए प्रति किलोग्राम की एमआरपी पर उपलब्ध होगा.

यह भारत सरकार द्वारा आम उपभोक्ताओं के कल्याण के लिए उठाए गए कदमों की श्रृंखला में नवीनतम है. ‘भारत’ ब्रांड आटा की खुदरा बिक्री से बाजार में किफायती दरों पर आपूर्ति बढ़ेगी और इस महत्वपूर्ण खाद्य पदार्थ की कीमतों में निरंतर कमी लाने में सहायता मिलेगी.

‘भारत’ आटा केंद्रीय भंडार, नेफेड और एनसीसीएफ के सभी फिजिकल और मोबाइल आउटलेट पर उपलब्ध होगा और इस का विस्तार अन्य सहकारी/खुदरा दुकानों तक किया जाएगा.

ओपन मार्केट सेल स्कीम (ओएमएसएस (डी)) के अंतर्गत 2.5 लाख मीट्रिक टन गेहूं 21.50 रुपए प्रति किलोग्राम की दर से अर्धसरकारी और सहकारी संगठनों यानी केंद्रीय भंडार, एनसीसीएफ और नेफेड को आटा में परिवर्तित करने और इसे जनता को बेचने के लिए आवंटित किया गया है. ‘भारत आटा’ ब्रांड के अंतर्गत एमआरपी 27.50 रुपए प्रति किलोग्राम से अधिक नहीं होगी.

मंत्री पीयूष गोयल ने इस अवसर पर कहा कि केंद्र के हस्तक्षेप से आवश्यक वस्तुओं की कीमतें स्थिर हो गई हैं. पिछले दिनों टमाटर और प्याज की कीमतें कम करने के लिए अनेक कदम उठाए गए थे. इस के अतिरिक्त उपभोक्ताओं को राहत देने के लिए केंद्र द्वारा केंद्रीय भंडार, नेफेड और एनसीसीएफ के माध्यम से 60 रुपए प्रति किलोग्राम की दर पर ‘भारत दाल’ को भी उपलब्ध कराया जा रहा है.

उन्होंने कहा कि इन सभी प्रयासों से किसानों को भी काफी फायदा हुआ है. किसानों की उपज केंद्र द्वारा खरीदी जा रही है और उस के बाद उपभोक्ताओं को रियायती दर पर उपलब्ध कराई जा रही है.

उन्होंने जोर दे कर कहा कि केंद्र के हस्तक्षेप से विभिन्न वस्तुओं की कीमतें स्थिर हो गई हैं. प्रधानमंत्रीमोदी का विजन उपभोक्ताओं के साथसाथ किसानों की भी मदद करने का है.

भारत सरकार ने आवश्यक खाद्यान्नों की कीमतों को स्थिर करने के साथसाथ किसानों को उचित मूल्य सुनिश्चित करने के लिए अनेक कदम उठाए हैं.

भारत दाल (चना दाल) पहले से ही इन 3 एजेंसियों द्वारा अपने फिजीकल और/या खुदरा दुकानों से एक किलोग्राम पैक के लिए 60 रुपए प्रति किलोग्राम और 30 किलोग्राम पैक के लिए 55 रुपये प्रति किलोग्राम की दर से बेची जा रही है. प्याज भी 25 रुपए प्रति किलोग्राम की दर पर बेचा जा रहा है.

अब, ‘भारत’ आटे की बिक्री प्रारंभ होने से उपभोक्ता इन दुकानों से आटा, दाल के साथसाथ प्याज भी उचित और किफायती मूल्यों पर प्राप्त कर सकते हैं.

भारत सरकार के नीतिगत हस्तक्षेपों का उद्देश्य किसानों के साथसाथ उपभोक्ताओं को भी लाभ पहुंचाना है. भारत सरकार किसानों के लिए खाद्यान्न, दालों के साथसाथ मोटे अनाज और बाजरा का एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) तय करती है. पीएसएस (मूल्य समर्थन योजना) को लागू करने के लिए राष्ट्रव्यापी खरीद अभियान चलाया जाता है. यह किसानों को एमएसपी का लाभ सुनिश्चित करता है. आरएमएस 23-24 में 21.29 लाख किसानों से 262 लाख मीट्रिक टन गेहूं घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य 2125 रुपए प्रति क्विंटल पर खरीदा गया. खरीदे गए गेहूं का कुल मूल्य 55679.73 करोड़ रुपए था. केएमएस 22-23 में 124.95 लाख किसानों से ग्रेड ‘ए’ धान के लिए घोषित एमएसपी 2060 रुपये प्रति क्विंटल की दर पर 569 लाख मीट्रिक टन चावल खरीदा गया. खरीदे गए चावल का कुल मूल्य 1,74,376.66 करोड़ रुपये था.

खरीदा गया गेहूं और चावल प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना (पीएमजीकेएवाई) के तहत देश में लगभग 5 लाख एफपीएस के नेटवर्क के माध्यम से लगभग 80 करोड़ पीडीएस लाभार्थियों को पूरी तरह से निशुल्क प्रदान किया जाता है. इस के अलावा तकरीबन 7 लाख मीट्रिक टन मोटे अनाज/बाजरा भी एमएसपी पर खरीदा गया और 22-23 में टीपीडीएस/अन्य कल्याण योजनाओं के अंतर्गत वितरित किया गया.

टीपीडीएस के दायरे में नहीं आने वाले आम उपभोक्ताओं के लाभ के लिए अनेक उपाय किए गए हैं. किफायती और उचित मूल्य पर ‘भारत आटा’, ‘भारत दाल’ और टमाटर, प्याज की बिक्री एक ऐसा उपाय है. अब तक 59,183 मीट्रिक टन दाल की बिक्री हो चुकी है, जिस से आम उपभोक्ताओं को लाभ हुआ है.

भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) ओएमएसएस (डी) के अंतर्गत गेहूं की बिक्री के लिए राष्ट्रव्यापी साप्ताहिक ई-नीलामी चला रहा है. इन साप्ताहिक ई-नीलामी में केवल गेहूं प्रोसैसर (आटा चक्की/रोलर आटा मिल) ही भाग ले सकते हैं.

एफसीआई सरकार द्वारा निर्धारित मूल्य के अनुसार, एफएक्यू और यूआरएस गेहूं क्रमशः 2,150 रुपए और 2125 रुपए प्रति क्विंटल की दर से बिक्री के लिए पेशकश कर रहा है. व्यापारियों को ई-नीलामी में भाग लेने की अनुमति नहीं है, क्योंकि सरकार यह सुनिश्चित करना चाहती है कि खरीदे गए गेहूं को सीधे संसाधित किया जाए और आम उपभोक्ताओं को सस्ती कीमतों पर जारी किया जाए. साप्ताहिक ई-नीलामी में प्रत्येक बोलीदाता 200 मीट्रिक टन तक ले सकता है.

एफसीआई ओएमएसएस (डी) के अंतर्गत साप्ताहिक ई-नीलामी में बिक्री के लिए 3 लाख मीट्रिक टन गेहूं दे रहा है. सरकारी निर्देशों के अनुसार, एफसीआई अब तक 65.22 लाख मीट्रिक टन गेहूं खुले बाजार में जारी कर चुका है.

भारत सरकार ने गेहूं की कीमतों को कम करने के लिए उठाए गए उपायों की श्रृंखला के हिस्से के रूप में ओएमएसएस (डी) के अंतर्गत बिक्री के लिए पेश किए जाने वाले गेहूं की कुल मात्रा को दिसंबर, 2023 तक 57 लाख मीट्रिक टन के बजाय मार्च 2024 तक 101.5 लाख मीट्रिक टन तक बढ़ा दिया है.

यदि आवश्यक हुआ, तो 31 मार्च, 2024 तक बफर स्टाक से 25 लाख मीट्रिक टन (101.5 लाख मीट्रिक टन से अधिक) तक गेहूं की अतिरिक्त मात्रा उतारने का एक महत्वपूर्ण निर्णय लिया गया है.

जमाखोरी पर लगाम

पर्याप्त घरेलू उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए गेहूं के निर्यात पर पहले ही प्रतिबंध लगा दिया गया है. सरकार ने जमाखोरी को रोकने के लिए थोक विक्रेताओं/व्यापारियों, प्रोसैसरों, खुदरा विक्रेताओं और बड़ी श्रृंखला के खुदरा विक्रेताओं जैसी विभिन्न श्रेणियों की संस्थाओं द्वारा गेहूं के स्टाक रखने पर भी सीमाएं लगा दी हैं. गेहूं के स्टाक होल्डिंग की नियमित आधार पर निगरानी की जा रही है, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि व्यापारियों, प्रोसैसरों और खुदरा विक्रेताओं द्वारा नियमित तौर पर गेहूं/आटा बाजार में जारी किया जाता है और कोई भंडारण/जमाखोरी नहीं होती है. यह कदम गेहूं की आपूर्ति बढ़ा कर उस की बाजार कीमतों में बढ़ोतरी रोकने के लिए उठाए गए हैं.

गैरबासमती चावल के निर्यात पर रोक

सरकार ने गैरबासमती चावल के निर्यात पर भी प्रतिबंध लगा दिया है और बासमती चावल के निर्यात के लिए 950 डालर का न्यूनतम मूल्य लगाया है. एफसीआई ओएमएसएस (डी) के तहत घरेलू बाजार में चावल की उपलब्धता बढ़ाने के लिए साप्ताहिक ई-नीलामी में बिक्री के लिए 4 लाख मीट्रिक टन चावल की पेशकश कर रहा है. सरकार द्वारा निर्धारित कीमतों के अनुसार एफसीआई 29.00-29.73 रूपये प्रति किलोग्राम की दर से चावल बिक्री के लिए प्रस्तुत कर रहा है.

गन्ना किसानों पर फोकस

सरकार ने गन्ना किसानों के साथसाथ घरेलू उपभोक्ताओं के कल्याण के प्रति अटूट प्रतिबद्धता दिखाई है. एक ओर किसानों को 1.09 लाख करोड़ रुपए से अधिक के भुगतान के साथ पिछले चीनी सीजन का 96 फीसदी से अधिक गन्ने के बकाए का पहले ही भुगतान किया जा चुका है, जिस से चीनी क्षेत्र के इतिहास में सब से कम गन्ना बकाया लंबित है. वहीं दूसरी ओर विश्व में सब से सस्ती चीनी भारतीय उपभोक्ताओं को मिल रही है. जहां वैश्विक चीनी मूल्य एक वर्ष में लगभग 40 फीसदी बढ़कर 13 साल के उच्चतम स्तर को छू रहा है, वहीं भारत में पिछले 10 वर्षों में चीनी के खुदरा मूल्यों में सिर्फ 2 फीसदी की वृद्धि हुई है और पिछले एक वर्ष में 5 फीसदी से कम वृद्धि हुई है.

खाद्य तेलों पर भी नजर

भारत सरकार खाद्य तेलों की घरेलू खुदरा कीमतों पर बारीकी से नजर रख रही है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि अंतर्राष्ट्रीय कीमतों में कमी का पूरा लाभ अंतिम उपभोक्ताओं को मिले. सरकार ने घरेलू बाजार में खाद्य तेलों की कीमतों को नियंत्रित और कम करने के लिए निम्नलिखित उपाय किए हैं:

– कच्चे पाम तेल, कच्चे सोयाबीन तेल और कच्चे सूरजमुखी तेल पर बेसिक शुल्क 2.5 फीसदी से घटा कर शून्य कर दिया गया. इस के अलावा इन तेलों पर कृषि उपकर 20 फीसदी से घटा कर 5 फीसदी कर दिया गया. यह शुल्क संरचना 31 मार्च, 2024 तक बढ़ा दी गई है.

– 21 दिसंबर, 2021 को रिफाइंड सोयाबीन तेल और रिफाइंड सूरजमुखी तेल पर बेसिक शुल्क 32.5 फीसदी से घटा कर 17.5 फीसदी कर दिया गया और रिफाइंड पाम तेल पर बेसिक शुल्क 17.5 फीसदी से घटा कर 12.5 फीसदी कर दिया गया. इस शुल्क संरचना को 31 मार्च, 2024 तक बढ़ा दिया गया है.

– सरकार ने उपलब्धता बनाए रखने के लिए रिफाइंड पाम तेल के खुले आयात को अगले आदेश तक बढ़ा दिया है.

– सरकार द्वारा की गई नवीनतम पहल में रिफाइंड सूरजमुखी तेल और रिफाइंड सोयाबीन तेल पर आयात शुल्क 15 जून, 2023 से 17.5 फीसदी से घटा कर 12.5 फीसदी कर दिया गया है.

– कच्चे सोयाबीन तेल, कच्चे सूरजमुखी तेल, कच्चे पाम तेल और रिफाइंड पाम तेल जैसे प्रमुख खाद्य तेलों की अंतर्राष्ट्रीय कीमतों में पिछले वर्ष से गिरावट की प्रवृत्ति देखी जा रही है. यह सुनिश्चित करने के लिए कि सरकार द्वारा किए गए निरंतर प्रयासों के कारण खाद्य तेलों की अंतर्राष्ट्रीय कीमतों में कमी का असर घरेलू बाजार में पूरी तरह से हो. रिफाइंड सूरजमुखी तेल, रिफाइंड सोयाबीन तेल और आरबीडी पामोलीन की खुदरा कीमतों में 2 नवंबर, 2023 तक एक वर्ष में क्रमशः 26.24 फीसदी, 18.28 फीसदी और 15.14 फीसदी की कमी आई है.

Bharat Attaउपभोक्ता मामले विभाग 34 राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों में स्थापित 545 मूल्य निगरानी केंद्रों के जरीए 22 आवश्यक खाद्य वस्तुओं के दैनिक खुदरा और थोक मूल्यों की निगरानी करता है. मूल्यों को कम करने के लिए बफर स्टाक जारी करने, जमाखोरी रोकने के लिए स्टाक सीमा लागू करने, आयात शुल्क को युक्तिसंगत बनाने, आयात कोटे में परिवर्तन, वस्तु के निर्यात पर प्रतिबंध आदि जैसे व्यापार नीति उपायों में परिवर्तन करने के लिए उचित निर्णय लेने के लिए मूल्यों की दैनिक रिपोर्ट और सांकेतिक मूल्य प्रवृत्तियों का विधिवत विश्लेषण किया जाता है.

उपभोक्ताओं को होने वाली कठिनाइयों को कम करने के लिए कृषिबागबानी वस्तुओं की कीमतों में अस्थिरता की जांच करने के लिए मूल्य स्थिरीकरण कोष (पीएसएफ) की स्थापना की गई है. पीएसएफ के उद्देश्य हैं (i) फार्म गेट/मंडी पर किसानों/किसान संघों से सीधी खरीद को बढ़ावा देना; (ii) जमाखोरी और अनैतिक सट्टेबाजी को हतोत्साहित करने के लिए एक रणनीतिक बफर स्टाक बनाए रखना और (iii) स्टाक की कैलिब्रेटेड रिलीज के माध्यम से उचित कीमतों पर ऐसी वस्तुओं की आपूर्ति कर के उपभोक्ताओं की रक्षा करना. उपभोक्ता और किसान पीएसएफ के लाभार्थी हैं.

वर्ष 2014-15 में मूल्य स्थिरीकरण कोष (पीएसएफ) की स्थापना के बाद से आज तक सरकार ने कृषिबागबानी वस्तुओं की खरीद और वितरण के लिए कार्यशील पूंजी और अन्य आकस्मिक खर्च प्रदान करने के लिए 27,489.15 करोड़ रुपए की बजटीय सहायता प्रदान की है.

दालों का बफर स्टाक

वर्तमान में पीएसएफ के तहत दालों (तूर, उड़द, मूंग, मसूर और चना) और प्याज का गतिशील बफर स्टाक बनाए रखा जा रहा है. दालों और प्याज के बफर से स्टाक की कैलिब्रेटेड रिलीज ने उपभोक्ताओं के लिए दालों और प्याज की उपलब्धता सुनिश्चित की है और ऐसे बफर के लिए खरीद ने इन वस्तुओं के किसानों को लाभकारी मूल्य प्रदान करने में भी योगदान दिया है.

कम कीमत पर टमाटर

टमाटर की कीमतों में उतारचढ़ाव रोकने और इसे उपभोक्ताओं को सस्ती कीमतों पर उपलब्ध कराने के लिए सरकार ने मूल्य स्थिरीकरण निधि के तहत टमाटर की खरीद की थी और इसे उपभोक्ताओं को अत्यधिक रियायती दर पर उपलब्ध कराया गया था.

राष्ट्रीय सहकारी उपभोक्ता महासंघ (एनसीसीएफ) और राष्ट्रीय कृषि सहकारी विपणन महासंघ (नेफेड) ने आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और महाराष्ट्र की मंडियों से टमाटर की खरीद की है और दिल्ली व एनसीआर, बिहार, राजस्थान आदि के प्रमुख उपभोक्ता केंद्रों में सब्सिडी देने के बाद उपभोक्ताओं को सस्ती कीमतों पर उपलब्ध करा रहे हैं. टमाटरों को शुरुआत में खुदरा मूल्य 90 रुपए प्रति किलोग्राम पर बेचा गया था, जिसे उपभोक्ताओं के लाभ के लिए क्रमिक रूप से घटा कर 40 रुपए प्रति किलोग्राम कर दिया गया है.

प्याज की कीमतों पर लगाम

प्याज की कीमतों में भी उतारचढ़ाव रोकने के लिए सरकार पीएसएफ के तहत प्याज बफर बनाए रखती है. बफर आकार को वर्ष दर वर्ष 2020-21 में 1.00 लाख मीट्रिक टन से बढ़ा कर वर्ष 2022-23 में 2.50 लाख मीट्रिक टन कर दिया गया है. कीमतों को कम करने के लिए बफर से प्याज सितंबर से दिसंबर तक कम खपत वाले सीजन के दौरान प्रमुख खपत केंद्रों में एक कैलिब्रेटेड और लक्षित तरीके से जारी किया जाता है. वर्ष 2023-24 के लिए प्याज बफर लक्ष्य को और बढ़ा कर 5 लाख मीट्रिक टन कर दिया गया है.

जिन प्रमुख बाजारों में कीमतें बढ़ी हैं, वहां बफर से प्याज का निबटान शुरू हो गया है. 28 अक्तूबर, 2023 तक लगभग 1.88 लाख मीट्रिक टन निबटान के लिए गंतव्य बाजारों में भेजा गया है. इस के अलावा सरकार ने वर्ष 2023-24 के दौरान पीएसएफ बफर के लिए पहले से खरीदे गए 5 लाख मीट्रिक टन से अधिक 2 लाख मीट्रिक टन अतिरिक्त प्याज खरीदने का निर्णय लिया है. सरकार ने मूल्य वृद्धि पर अंकुश लगाने और घरेलू बाजार में आपूर्ति में सुधार के लिए 28 अक्तूबर, 2023 को प्याज पर 800 डालर प्रति टन का न्यूनतम निर्यात मूल्य (एमईपी) लगाया है.

दालों को रखा मुक्त श्रेणी में

दालों की कीमतों को नियंत्रित करने के लिए तुअर और उड़द के आयात को 31 मार्च, 2024 तक ‘मुक्त श्रेणी’ के तहत रखा गया है और मसूर पर आयात शुल्क शून्य कर दिया गया है. सुचारु और निर्बाध आयात की सुविधा के लिए तुअर पर 10 फीसदी का आयात शुल्क हटा दिया गया है. वहीं जमाखोरी को रोकने के लिए आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955 के तहत 31 दिसंबर, 2023 तक तुअर और उड़द पर स्टाक सीमा लगाई गई है.

कीमतों को नियंत्रित करने के लिए मूल्य समर्थन योजना (पीएसएस) और मूल्य स्थिरीकरण कोष (पीएसएफ) बफर से चना और मूंग के स्टाक लगातार बाजार में जारी किए जाते हैं. कल्याणकारी योजनाओं के लिए राज्यों को चने की आपूर्ति 15 रुपए प्रति किलोग्राम की छूट पर भी की जाती है. इस के अलावा सरकार ने चना स्टाक को चना दाल में परिवर्तित कर के उपभोक्ताओं को सस्ती कीमतों पर उपलब्ध कराने के लिए 1 किलोग्राम के पैक के लिए 60 रुपए प्रति किलोग्राम और 30 किलोग्राम पैक के लिए 55 रुपए प्रति किलोग्राम की अत्यधिक रियायती दर पर “भारत दाल” ब्रांड नाम के तहत खुदरा निबटान के लिए चना दाल में बदलने की व्यवस्था शुरू की.

‘भारत’ दाल का वितरण नेफेड, एनसीसीएफ, एचएसीए, केंद्रीय भंडार और सफल के खुदरा बिक्री केंद्रों के माध्यम से किया जा रहा है. इस व्यवस्था के तहत चना दाल राज्य सरकारों को उन की कल्याणकारी योजनाओं के तहत पुलिस, जेलों में आपूर्ति के लिए और राज्य सरकार द्वारा नियंत्रित सहकारी समितियों और निगमों की खुदरा दुकानों के माध्यम से वितरण के लिए भी उपलब्ध कराई जाती है.
भारत सरकार किसानों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य, अंत्योदय और प्राथमिकता वाले परिवारों के लिए पीएमजीकेएवाई के तहत निशुल्क राशन (गेहूं, चावल और मोटे अनाज/बाजरा) और गेहूं, आटा, दाल और प्याज/टमाटर के साथसाथ चीनी और तेल की उचित और सस्ती दरों को सुनिश्चित कर के अपने किसानों, पीडीएस लाभार्थियों के साथसाथ सामान्य उपभोक्ताओं के कल्याण को सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध है.

सरकारी नौकरी छोड़  किसानी से कमाए लाखों

जैविक खेती की दौड़ में  नौकरीपेशा भी कूद पड़े हैं. नए तौरतरीकों से इन किसानों ने न केवल खेती शुरू की, बल्कि आमदनी भी अच्छीखासी कर रहे हैं. यह एक ऐसे नौकरीपेशा किसान की कहानी है, जिस ने हिस्से में आए जमीन के छोटे से टुकड़े को ही अपनी आजीविका का साधन बना लिया.

बात मध्य प्रदेश के सतना जिले के महज 700 की आबादी वाले गांव पोइंधाकला की है. यहां के किसान अभयराज सिंह ने परिवार की चिंता किए बिना 17 साल पहले सहकारी समिति की सरकारी नौकरी छोड़ दी. बंटवारे में आई एक हेक्टेयर जमीन को इस लायक बनाया कि इस में अनाज या फिर फलदार पौधे उग सकें.

वे बताते हैं कि सहकारी समिति में सेल्समैन की नौकरी करते समय उचित मूल्य की 5 दुकानों का जिम्मा था. इस के बाद भी तनख्वाह वही 15,000 रुपए, इस से पत्नी और 2 बच्चों का गुजारा ही चल पा रहा था. उन्हें आगे कोई भविष्य नहीं दिखाई दे रहा था. सो, साल 2005 में उन्होंने नौकरी छोड़ दी. बंटवारे में मिली जमीन में फलों की खेती शुरू की.

पारिवारिक बंटवारे में मिली 0.72 हेक्टेयर की छोटी सी जमीन में पपीते लगाए. साथ ही, सब्जियां भी. पर पपीते ने दूसरे साल ही साथ छोड़ दिया. इस में चुर्रामुर्रा रोग लग गया था. इस रोग के कारण पत्तियां सूख गईं और फल नहीं आए.

50 रुपए में लाए थे पौधे

Lemonअभयराज सिंह बताते हैं कि साल 2008 में उन्होंने नीबू के महज 20 पौधे लगाए थे. आज 300 पेड़ हैं. तब उन के महज 50 रुपए ही खर्च हुए थे. नीबू का पेड़ तैयार होने में तकरीबन 3 साल लग जाते हैं, इसलिए इंटरक्रौपिंग के लिए गन्ना भी लगा दिया था. इस से यह फायदा हुआ कि परिवार के सामने भरणपोषण का संकट नहीं आया. जब नीबू के पेड़ तैयार हो गए, तो इंटरक्रौपिंग बंद कर दी. उन 20 पेड़ों से तब तकरीबन 25,000 से 30,000 रुपए कमाए थे.

बिना ट्रेनिंग तैयार किया 300 पेड़ों का बगीचा

अभयराज सिंह कहते हैं कि नीबू एक ऐसा पेड़ है, जिसे बाहरी जानवरों और पक्षियों से कोई खतरा नहीं है. चिडि़या भी आ कर बैठ जाती हैं, पर कभी चोंच नहीं मारती हैं. गांव के आसपास भी आम के बगीचे हैं, जिन में बंदर भी आते हैं. इस से पपीता, गन्ना और हरी सब्जियों को खतरा रहता है, पर नीबू को छूते तक नहीं हैं, इसलिए खेती करना आसान हुआ.

आज पूरा बाग तैयार है. यहां जितने पेड़ हैं, कलम विधि से तैयार किए गए हैं. यह काम भी उन्होंने खुद किया है. इस के लिए कोई ट्रेनिंग नहीं ली है.

साल में 2-3 लाख की आमदनी

सालाना उत्पादन के बारे में अभयराज सिंह बताते हैं कि नीबू के एक पेड़ में 3,000 से 4,000  फल आते हैं. इस हिसाब से 300 पेड़ों में तकरीबन एक लाख नीबू आते हैं. उन की अगर एक रुपए भी कीमत लगाई जाए, तो एक लाख रुपए होती है.

वे यह भी बताते हैं कि गांव से तकरीबन 16 किलोमीटर दूर सतना शहर है, जहां वे अपनी उपज बेचते हैं. खुली मंडियों की जगह शहर के 6 होटलों और इतने ही ढाबों में सप्लाई है. यहां पैसा फंसने की गुंजाइश कम है, इसलिए ज्यादातर होटलों और ढाबों को ही नीबू सप्लाई करते हैं. इस के अलावा दुकान वाले भी डिमांड करते हैं. इस से तकरीबन सालभर सप्लाई जारी रहती है.

इंटरक्रौपिंग भी अपनाई

नौकरी छोड़ किसानी से आजीविका चलाने के लिए अभयराज सिंह के पास यही एकमात्र जमीन है, इस के अलावा कुछ नहीं. वे आय बढ़ाने के लिए इंटरक्रौपिंग का सहारा ले रहे हैं. नीबू से बची क्यारियों में केला, अमरूद के पेड़ तैयार कर रहे हैं. केला और अमरूद तैयार भी हैं. इस के अलावा हलदी, शहतूत, बरसीम आदि भी हैं, जिस से रोजमर्रा के खर्चों के लिए कोई दिक्कत नहीं आती.

पोटैटो डिगर से आलू की खुदाई

हमारे देश के कई हिस्सों में आलू की खुदाई शुरू हो चुकी है. लेकिन इस बार भी आलू की बंपर पैदावार के चलते किसानों को आलू की सही कीमत नहीं मिल पा रही है. यही वजह है कि कुछ किसानों ने तो कुछ दिनों के लिए अपने खेत से आलू की खुदाई रोक दी है. उन्हें इंतजार है कि आलू का बाजार भाव कुछ ठीक हो तो खुदाई करें.

हालांकि आलू की अगेती खेती लेने वाले किसान अपने खेत में आलू की फसल लेने के तुरंत बाद गेहूं की बोआई कर देते हैं. अभी जो बाजार में आलू आ रहा है, वह कच्चा होता है. उस का छिलका भी हलका रहता है, इसलिए इस में टिकाऊपन नहीं होता. इसे स्टोर कर के नहीं रखा जाता.

फरवरी महीने तक आलू पूरी तरह से तैयार होता है. इसे किसान बीज के लिए व आगे बेचने के लिए भी कोल्ड स्टोरेज में रखते हैं. इस के लिए किसान आलू की अलगअलग साइजों में छंटाई कर ग्रेडिंग कर के रखें, तो अच्छे दाम भी मिलते हैं और आगे के लिए स्टोर करने के लिए सुविधा रहती है.

आलू की फसल आने के बाद उस के रखरखाव की भी खासा जरूरत होती है, क्योंकि आलू को खुला रखने पर उस में हरापन आ जाता है.

आलू की फसल तैयार होने के बाद आलू की खुदाई मजदूरों द्वारा और आलू खुदाई यंत्र (पोटैटो डिगर) से की जाती है. हाथ से खुदाई करने पर काफी आलू कट जाते हैं और मंडी में आलू की सही कीमत नहीं मिलती है.

इसी काम को अगर आलू खोदने वाली मशीन से किया जाए, तो कम समय में आलू की खुदाई कर सकते हैं. मशीन के द्वारा आलू खुदाई करने पर आलू साफसुथरा भी निकलता है. उस के बाद आने वाली फसल की बोआई भी समय पर कर सकते हैं.

आलू की फसल खुदाई करने लायक होने पर आलू के पौधों को ऊपर से काट दें या उस पर खरपतवारनाशी दवा का छिड़काव कर दें, ताकि पौधों के पत्ते सूख जाएं और फसल की खुदाई ठीक से हो सके.

आलू खुदाई यंत्र

केंद्रीय कृषि अभियांत्रिकी संस्थान, भोपाल द्वारा तैयार आलू खुदाई यंत्र एकसाथ 2 लाइनों की खुदाई करता है. इस यंत्र में 2 तवेदार फाल लगे होते हैं, जो मिट्टी को काटते हैं. इस में नीचे एक जालीदार यंत्र भी लगा होता है, जो मिट्टी में घुस कर आलू को मिट्टी के अंदर से निकाल कर बाहर करता है. साथ ही, इस यंत्र पर एक बैड लगा होता है, जिस पर जाल के घेरे से आलू निकल कर गिरते हैं.

यह बैड लगातार हिलता रहता है. इस बैड के हिलने से मिट्टी के ढेले टूट कर गिरते रहते हैं और साफ आलू खेत में मिट्टी की सतह पर गिरते हुए निकलते हैं. इस के बाद मजदूरों की सहायता से आलुओं को बीन कर खेत में जगहजगह इकट्ठा कर लिया जाता है.

संस्थान द्वारा निर्मित पोटैटो डिगर को 35 हौर्सपावर के ट्रैक्टर के साथ जोड़ कर चलाया जाता है. एक हेक्टेयर जमीन की आलू खुदाई में 3 घंटे का समय लगता है और 12 लिटर डीजल की खपत होती है.

इस यंत्र की अधिक जानकारी के लिए आप केंद्रीय कृषि अभियांत्रिकी संस्थान, नवी बाग, भोपाल से संपर्क कर सकते हैं या आप अपने नजदीकी कृषि विभाग से भी आलू खुदाई यंत्र के बारे में जानकारी ले सकते हैं.

महेश एग्रो का पोटैटो डिगर

महेश एग्रो वर्क्स के पोटैटो डिगर में 56 इंच और 42 इंच के बैड लगे होते हैं. 2 लाइनों में आलुओं की खुदाई होती है. 45 हौर्सपावर के ट्रैक्टर में आलू खुदाई यंत्र को जोड़ कर चलाया जा सकता है.

प्रकाश पोटैटो डिगर

यह मशीन भी सभी प्रकार के आलू खुदाई के लिए उत्तम है. 35 हौर्सपावर या उस से अधिक क्षमता वाले ट्रैक्टर के साथ इसे चलाया जाता है. मशीन में डबल जाल लगा होने के कारण आलू भी साफसुथरा निकलता है.

नवभारत इंडस्ट्रीज के प्रकाश ब्रांड के कृषि यंत्र आज भी खेती के क्षेत्र में अच्छी पकड़ बना रहे हैं.

इस के अलावा अनेक पोटैटो डिगर बाजार में मौजूद हैं. इस के लिए आप कृषि विभाग या अपने नजदीकी कृषि यंत्र निर्माता से पता कर सकते हैं.

मिट्टीपानी की जांच कराएं अधिक मुनाफा पाएं

समयसमय पर किसानों को अपने खेत की मिट्टी की जांच जरूर करानी चाहिए, ताकि मिट्टी जांच से मिलने वाले नमूने के आधार पर अपनी खेती में जरूरी खाद, उर्वरक, बीज आदि की मात्रा तय कर सकें. ऐसा करने से किसानों को अपने खेत में अंधाधुंध खाद, उर्वरक देने से नजात तो मिलेगी ही, बल्कि खेत की मिट्टी को सही पोषक तत्त्व सही मात्रा में मिल सकेंगे.

मिट्टी का नमूना  लेने की विधि

* सब से पहले अपने खेत को उर्वराशक्ति के अनुसार 2 या 2 से ज्यादा भागों में बांट कर रैंडम आधार पर 8-10 स्थानों से मिट्टी का एकएक नमूना लें.

* मिट्टी का नमूना लेने से पहले ऊपर की सतह से घासफूस साफ कर लें और एक लंबी खुरपी से ‘ङ्क’ आकार का गड्ढा खोदने के बाद उस के एक तरफ से एक इंच मोटी मिट्टी की परत निकाल कर किसी बरतन में डालें.

* इस तरह से पूरे खेत के 8-10 स्थानों से मिट्टी ले कर अच्छी तरह से मिला कर उस का एक ढेर बनाएं और उस ढेर पर + का निशान बनाएं.

* अब इस के आमनेसामने के 2 भागों की मिट्टी को हटा दें और बची हुई मिट्टी को दोबारा इकट्ठा कर लें. यह प्रक्रिया तब तक करें, जब तक कि मिट्टी तकरीबन 500 ग्राम न रह जाए.

* इस 500 ग्राम मिट्टी को एक साफ कपड़े की थैली में भरें व कागज पर अपना नाम सहित पूरा पता, विगत में ली गई और भविष्य में ली जाने वाली फसलों के नाम अंकित कर के उस थैली में डाल दें. इसी प्रकार की एक परची थैली के ऊपर बांध कर मिट्टी परीक्षण प्रयोगशाला में जांच के लिए भेजें.

सिंचाईपानी का नमूना लेने की विधि

किसान सिंचाई के लिए अपने खेत में जिस पानी का उपयोग करते हैं, उस पानी का नमूना लेने के लिए यदि नलकूप है, तो पंप को 8-10 मिनट चलाने के बाद व यदि खुला कुआं है, तो बालटी से पानी निकालते समय उसे 8-10 बार डुबो लें और पानी के नमूने को एक साफ बोतल में नलकूप या कुएं के पानी से अच्छी तरह धो कर पूरा भर लें और बोतल के ऊपर किसान अपना पूरा नाम व पता लिख कर प्रयोगशाला को जांच के लिए भिजवाएं.

अधिक जानकारी हासिल करने के लिए अपने निकटतम कृषि कार्यालय में संपर्क करें या फिर किसान काल सैंटर के नि:शुल्क दूरभाष नंबर 18001801551 पर बात कर के अपनी समस्या का समाधान करें.

पालक के पकवान 

पालक में मैग्नीशियम, पोटैशियम, फोलेट, विटामिन ए, विटामिन सी, विटामिन के, विटामिन बी2, विटामिन बी और विटामिन ई जैसे विटामिन और मंडल होते हैं, जो एंटीऔक्सीडैंट का काम करते हैं. साथ ही, शरीर की इम्यूनिटी को बढ़ाते हैं.

पालक में पाया जाने वाला विटामिन के हैल्दी हार्ट के लिए जरूरी होता है. हाईपोटैशियम इंटेक स्ट्रोक हौट के खतरे को कम कर के ब्लडप्रैशर नौर्मल रखता है. इस में अल्फा लिपाइसी एसिड नाम का एंटीऔक्सीडैंट होता है. इस का सेवन करने से ब्लड शुगर का लैवल कम होता है. साथ ही, यह शरीर में इंसुलिन सेंसिटिविटी को बढ़ाता है.

पालक का सेवन वजन घटाने में मदद करता है, क्योंकि इस में वजन घटाने से संबंधित गुण पाए जाते हैं. वजन घटाने के लिए जरूरी है कि कैलोरी की मात्रा का सेवन कम किया जाए. पालक कम कैलोरी वाला खाद्य पदार्थ है, जिसे आहार में शामिल कर के वजन को नियंत्रित किया जा सकता है.

100 ग्राम पालक में पाए जाने वाले पोषक तत्त्व

कैलोरी             :  2.3 किलो कैलोरी

पानी               :   91 फीसदी

प्रोटीन             :   2.9 ग्राम

कार्बोहाइड्रेट    :  3.6 ग्राम

शुगर              :  0.4 ग्राम

फाइबर          :  2.2 ग्राम

फैट              :   0.41 ग्राम

कैल्शियम     :   30 मिलीग्राम

आयरन        :   0.81 ग्राम

मैग्नीशियम   :   24 मिलीग्राम

पोटैशियम   :   167 मिलीग्राम

किसान महिलाएं अपने खानपान में पालक से निम्न प्रकार की रैसिपी तैयार कर सकती हैं :

पालक के हरेभरे परांठे

पालक के परांठे एक पौष्टिक और स्वादिष्ठ व्यंजन है, जो पालक में गेहूं का आटा और दूसरे मसालों का उपयोग कर के बनाए जाते हैं. यह सुबह के नाश्ते में चाय के साथ देने के लिए बहुत ही पौष्टिक आहार है, क्योंकि यह झटपट बन जाता है और इसे बनाना बहुत ही आसान है. इस परांठे में पालक के साथ लहसुन व हरी मिर्च, अदरक, धनिया का इस्तेमाल होता है, जो इसे एक बढि़या स्वाद देता है.

पालक का परांठा बनाने के लिए जरूरी सामग्री

2 कप गेहूं का आटा

3/4 कप मोटा कटा हुआ पालक

आधा चम्मच कटा हुआ अदरक

3 लहसुन की कलियां

एक हरी मिर्च कटी हुई

एक चम्मच कटा हुआ हरा धनिया

3 चम्मच तेल

नमक स्वाद के अनुसार

पालक का परांठा बनाने की विधि

पालक और धनिए को पानी से धो कर साफ कर लें. उस के बाद पालक, हरा धनिया, अदरक, लहसुन और हरी मिर्च को मोटे टुकड़ों में काट लें. मिक्सी के जार में पालक, हरी मिर्च, लहसुन, अदरक, हरा धनिया डालें और पीस लें.

आटे में पिसी हुई सामग्री और नमक को मिला कर के आटा गूंद लें. जब तैयार हो जाए, तो गोलगोल परांठे तवे पर धीमी आंच पर सेंकने के बाद इस को लहसुन की चटनी या मट्ठे के साथ सुबह के समय अपने परिवार को दें, जिस से पूरे परिवार को पौष्टिक आयरनयुक्त आहार मिलना शुरू हो जाए.

ओट्स रवा पालक ढोकला

रवा पालक ढोकला बनाने की सामग्री : 50 ग्राम ओट्स पाउडर. 100 ग्राम रवा. 100 ग्राम दही. हरी मिर्च. नमक स्वाद के अनुसार.

रवा पालक ढोकला बनाने की विधि : आधा कप पानी डाल कर अच्छी तरह मिक्स कर लीजिए. उस के बाद 15 मिनट के लिए रख दीजिए. उस में पालक और 2 चम्मच पानी डाल कर अच्छी तरह से मिला लीजिए और इतना पानी मिलाइए कि मिश्रण गाढ़ा हो. स्टीम करने से तुरंत पहले बाउल में थोड़ा सा लगभग एक चुटकी ईनो पाउडर डाल दीजिए. जब यह फुल जाए, तो एक कड़ाही में या भगोने में थोड़ा पानी डालिए. उस के ऊपर कोई कटोरी रख कर एक छोटे से कटोरे में या किसी छोटे भगोने में तेल लगा कर इस मिश्रण को डाल दीजिए. 15 मिनट के बाद देखेंगे कि मिश्रण फूल कर डबल हो जाएगा और हमारा ढोकला तैयार हो जाएगा. ढोकले की पहचान करने के लिए उस में चाकू की सहायता से छेद कर के देखेंगे. अगर चाकू चिपकता नहीं है, तो समझें कि ढोकला तैयार हो गया है.

ढोकले को हरी मिर्च की चटनी के साथ सुबह के नाश्ते में सर्व करें. यह तेलरहित पोषक नाश्ता बहुत ही लाभकारी है.

Palakपालक पनीर बनाने के लिए जरूरी सामग्री

350 ग्राम पालक

मध्यम आहार का टमाटर

5 कली लहसुन की

2 लौंग

अदरक थोड़ी सी

हरी मिर्च स्वाद के अनुसार

एक बड़ा चम्मच तेल

प्याज कटा हुआ

गरम मसाला

हलदी पाउडर

मिर्च पाउडर

नमक स्वादानुसार

एक चम्मच मलाई

पालक पनीर

बनाने की विधि

सब से पहले पालक को गरम पानी में नमक डाल कर उबालें. जब पालक उबल जाएगा, तब उस को पानी से निकाल कर मिक्सी में महीन पीस लें. तत्पश्चात टमाटर, लहसुन, अदरक, लौंग, प्याज इत्यादि को पीस कर पेस्ट बना लें. जब पेस्ट तैयार हो जाएगा, तब मध्यम आंच पर पैन को चढ़ा कर गरम कर लें और उस में थोड़ा सा तेल डाल कर पकने दें. जब तेल गरम हो जाएगा तो इस में पिसा हुआ मसाला डाल दें. मसाला भुन जाने पर पालक को डाल दें.

जब पालक और मसाला तेल छोड़ने लगे, तब इस में नमक डाल दें. जब यह एकदम क्रीम टाइप का होने लगे, तब इस में पनीर के आधेआधे इंच के टुकड़े काट कर डाल दें.

5 मिनट तक पनीर के टुकड़ों को पालक के साथ पकने दें. और उस के बाद आंच पर से उतार कर मलाई को फेंट कर मिला दें. गरमागरम बेसन की रोटी, नान या मिक्स आटे की रोटी के साथ इस को खाएं.

पालक का जूस बनाने के लिए जरूरी सामग्री

पालक 100 ग्राम

खीरा एक

पुदीना 8-10 पत्तियां

काली मिर्च पाउडर एक चुटकी

नमक स्वाद के अनुसार

नीबू आधा

पालक का जूस बनाने की विधि

पालक को महीनमहीन काट लें और खीरे को भी महीनमहीन काट कर मिक्सी में पीसने के लिए डाल दें. इस में पुदीना भी मिला दें. जब यह फेस तैयार हो जाए, तो इस को जार से निकाल कर छान लें. इस पदार्थ में 2 गिलास पानी मिलाएं. नमक और काली मिर्च को सर्व करने के पहले मिला दें और ऊपर से नीबू स्वाद के अनुसार मिला लें. यह जूस रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने के लिए बहुत ही कारगर है.

जाड़े में अधिक वर्षा से खेती को नुकसान या फायदा

रबी की खेती किसानों के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण होती है. इसी से उस के सारे काम व विकास निर्धारित होते हैं. इन दिनों अच्छीखासी ठंड होती है और अगर बारिश हो जाए तो कहीं तो ये फायदेमंद होती है, लेकिन कई दफा ओला गिरने आदि से फसल को बहुत ज्यादा नुकसान होता है. किसानों की मेहनत और कीमत दोनों ही जाया हो जाती हैं.

जाड़े की वर्षा को महावट कहा जाता था. फसल के लिए इसे अमृत वर्षा कहा जाता है, परंतु जब ये जाड़े की वर्षा इतनी अधिक हो जाए, जो खेत को नमी देने के बजाय उस में जलभराव हो जाए या ओला पड़ जाए, तो यह किसानों की फसल के लिए नुकसानदेह साबित होती है.

जिस खेत में जितनी अधिक लागत की खेती की गई है, उस में उतने नुकसान की संभावना होती है.

ऐसी बरसात से दलहनी व तिलहनी फसलें पूरी तरह से बाधित हो जाती हैं और अब तो सारी फसलें यहां तक गेहूं को भी नुकसान होने की संभावना हो जाती है.

जब ऐसी प्राकृतिक आपदा आती है, वास्तव में किसानों की सारी उम्मीदों पर पानी फिर जाता है. चना, मटर, मसूर, अरहर, सरसों, आलू आदि में अधिक नुकसान होता है. कई जगहों पर तो सरसों व अरहर की जो फसलें गिर जाती हैं, उन्हें भी खासा नुकसान होता है.

ऐसे समय में ढालू भूमि जैसे यमुना, गंगा व नदियों के किनारे की खेती में जलभराव से नहीं जल बहाव से नुकसान होता है.

फूलों की खेती करने वाले किसानों को भी खासा नुकसान होता है. फूल की अवस्था की समस्त फसलों में फूल गिरने व क्षतिग्रस्त होने से उत्पादन गिर जाता है.

मौसम नम होने व कोहरा होने से रोग व कीटों का प्रकोप भी बढ़ जाता है, जिस से फसल को नुकसान होना तय है.

वर्षा के बाद के उपाय

* खेतों में जो पानी भरा है, उसे निकालने की तुरंत कोशिश की जाए.

* खेत की निगरानी नियमित करते हुए रोग व कीट नियंत्रण के लिए दवाओं का छिड़काव करें.

* झुलसा रोग का उपचार करें.

* माहू कीट का नियंत्रण करें.

* चना, मटर में फली छेदक कीट का निदान करें.

* गन्ना की फसल को विभिन्न तना छेदक कीटों से बचाव के उपाय अपनाएं.

* आलू बीज उत्पादन वाली फसल की बेल को काट दें.

* देरी से बोई जाने वाली गेहूं की प्रजातियों हलना, उन्नत हलना नैना की बोआई कर सकते हैं.

खाली खेतों के लिए फसल योजना

* अधिक वर्षा से फसलें क्षतिग्रस्त होने पर खेत को तैयार कर तुरंत गेहूं की बोआई की जा सकती है.

* टमाटर की ग्रीष्म ऋतु की फसल और प्याज की रोपाई कर सकते हैं.

* जायद की भिंडी व मिर्च के लिए खेत की तैयारी कर के फरवरी माह में बोआई व रोपाई कर सकते हैं.

* गन्ने की 2 कतारों के बीच मूंग व उड़द की बोआई कर सकते हैं.

* सब्जी की बोआई के लिए खेत को तैयार कर सकते हैं.

* आलू के खेत में गरमी की मूंगफली की बोआई कर क्षति पूर्ति कर सकते हैं.

दिए गए सुझाव के साथ  यदि इस विपरीत परिस्थिति में खेती का प्रबंधन करें तो कुछ हद तक नुकसान की भरपाई हो सकती है.