मधुमक्खीपालन से किसानों को फायदा

मधुमक्खीपालन से किसानों को दोहरा फायदा होगा. एक तो मधुमक्खीपालन से तैयार होने वाले शहद और मोम की बिक्री से अतिरिक्त आमदनी होगी और दूसरी फसल का उत्पादन भी बेहतर होगा.

मधुमक्खीपालन से शहद, मोम, रौयल जैली में दूसरे कई उत्पाद किसान हासिल कर सकते हैं जो उन की आमदनी बढ़ाने के लिए मददगार साबित होते हैं.

वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक डाक्टर आनंद सिंह का कहना है कि पारंपरिक फसलों में प्राकृतिक मार के चलते कई बार फसल खराब होने से किसानों को नुकसान उठाना पड़ता है.

ऐसे में मधुमक्खीपालन के जरीए किसान अपनी पैदावार और आमदनी को बढ़ा सकते हैं. किसान एपीकल्चर यानी मधुमक्खीपालन की ट्रेनिंग ले कर और इसे अपना कर दोहरा फायदा ले सकते हैं.

Honeyदुनिया में मधुमक्खियों के तकरीबन 20,000 प्रकार हैं. इन में से केवल 3 प्रकार की मधुमक्खी ही शहद बना पाती हैं. आमतौर पर मधुमक्खी का जो छत्ता होता है, उस में एक रानी मक्खी होती है. इस रानी मक्खी के अलावा छत्ते में कई हजार श्रमिक मक्खी और कुछ नर मधुमक्खी भी होती हैं. मधुमक्खी श्रमिक मधुमक्खियों की मोम ग्रंथि से निकलने वाले मोम से अपना घर बनाती हैं, जिसे आम भाषा में शहद का छत्ता कहा जाता है.

मधुमक्खीपालन में रखें खास ध्यान

विशेषज्ञों के मुताबिक, मधुमक्खियां अपने कोष्ठक का इस्तेमाल अंडे सेने और भोजन इकट्ठा करने के लिए करती हैं, इसलिए किसानों को मधुमक्खीपालन के समय कुछ बातों का ध्यान रखने की जरूरत है.

दरअसल, मधुमक्खी छत्ते के ऊपरी भाग का इस्तेमाल शहद जमा करने के लिए करती हैं. ऐसे में किसानों को यह चाहिए कि छत्ते के अंदर परागण इकट्ठा करने, श्रमिक मधुमक्खी, डंक मारने वाली मधुमक्खियों के अंडे सेने के कोष्ठक बने होने चाहिए. कुछ मधुमक्खियां खुले में अकेले छत्ते बनाती हैं, जबकि कुछ अन्य मधुमक्खियां अंधेरी जगहों पर कई छत्ते बनाती हैं. मधुमक्खीपालन में उपकरणों की बड़ी महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है. ऐसे में किसानों को एपीकल्चर के विशेषज्ञ या फिर ऐसे किसान से टे्रनिंग ले कर मधुमक्खीपालन को अपनाना चाहिए जो इस की अच्छी जानकारी रखता हो.

बिरसा कृषि विश्वविद्यालय में कैंसर जागरूकता कार्यशाला

रांची : भारत में कैंसर से प्रतिदिन 1,300 लोगों की मृत्यु होती है, इसलिए इस बीमारी से बचाव के लिए और हो जाने पर इस के सामयिक और प्रभावी इलाज के लिए समुचित कदम उठाना आवश्यक है.

भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद यानी आईसीएमआर द्वारा एकत्रित आकंड़ों के अनुसार, देश में वर्ष 2022 में 14.61 लाख लोगों में कैंसर के मामले सामने आए, जिन में लगभग एकतिहाई लोगों की मौत हो गई.

परिषद के अनुसार, प्रत्येक 9 में से एक व्यक्ति को जीवन के किसी चरण में कैंसर होता ही है, इसलिए इस के कारणों के प्रति सतत सचेत रहना जरूरी है.

कांके स्थित टाटा ट्रस्ट द्वारा पोषित रांची कैंसर अस्पताल एवं अनुसंधान केंद्र के चिकित्सा निदेशक डा. (कर्नल) मदन मोहन पांडेय ने बिरसा कृषि विश्वविद्यालय में जागरूकता व्याख्यान देते हुए उक्त बातें कहीं.

उन्होंने आगे कहा कि बीमारी का देर से पता लगना, विशेषज्ञता वाले बड़े अस्पतालों का महानगरों में केंद्रित रहना, विशेषज्ञ डाक्टरों, नर्सों एवं ढांचागत सुविधाओं की कमी, महंगा इलाज, तंबाकू, शराब का उपयोग, भोजन में रेशे की कमी, मोटापा, गतिहीन जीवनशैली, रसायन उद्योगों से निकलने वाला प्रदूषण आदि इस के प्रमुख कारण हैं. जिन लोगों में कैंसर की पारिवारिक पृष्ठभूमि रही है, यानी मातापिता, दादादादी या भाईबहन में से कोई कैंसर का मरीज रहा हो, तो उन में कैंसर होने की संभावना 10-15 फीसदी रहती है, किंतु उन्हें कैंसर होगा ही, यह जरूरी नहीं है.

डा. मदन मोहन पांडेय ने बताया कि सुकुरहुट्टू, कांके में टाटा ट्रस्ट के सहयोग एवं संरक्षण से निर्मित आधुनिकतम सुविधाओं और मशीनों से लैस रांची कैंसर अस्पताल पिछले एक वर्ष से कार्यरत है, जो महानगरों में अवस्थित किसी भी कारपोरेट अस्पताल से कम विशेषज्ञता वाला नहीं है.

यहां केंद्र सरकार स्वास्थ्य योजना (सीजीएचएस) की दर पर इलाज होता है. आयुष्मान भारत कार्ड वालों का इलाज मुफ्त में होता है. अब तक 20,000 टेस्ट, 300 सर्जरी, 4,000 रेडियोथेरेपी और 1,100 कीमोथेरेपी हो चुकी है. टाटा ट्रस्ट का उद्देश्य लाभ कमाना नहीं है, इसलिए यहां जांच और इलाज के लिए काफी कम शुल्क लिया जाता है. ‘अपने स्वास्थ्य को जानिए’ पैकेज के तहत 30 वर्ष तक की उम्र के लोगों को 1,000 रुपए में और 30 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों को 1,500 रुपए में कई तरह की जांच कर दी जाती हैं, जिस में कुछ अंगों का कैंसर स्क्रीनिंग भी शामिल है. दूसरे अस्पतालों और डाक्टरों द्वारा अनुशंसित सीटी स्कैन, एमआरआई, मेमोग्राफी, अल्ट्रासाउंड और पैथोलौजिकल जांच भी यहां कम लागत पर की जाती है.

रांची कैंसर अस्पताल की मैडिकल आंकोलोजिस्ट डा. रजनीगंधा टुडू ने कैंसर के कारणों, लक्षण, वार्निंग सिग्नल, विभिन्न स्टेज, इलाज के चरण, बचाव के लिए सावधानियां, निदान के उपायों आदि पर विस्तृत प्रकाश डाला.

इस अवसर पर अस्पताल प्रबंधन की प्रियदर्शिनी और मुकुल कुमार घोष ने भी अपने विचार रखे. बीएयू के निदेशक छात्र कल्याण डा. बीके अग्रवाल ने धन्यवाद ज्ञापन किया.

बीएयू के कुलसचिव डा. एमएस मलिक ने कहा कि अगले चरण में टाटा ट्रस्ट के सहयोग से विश्वविद्यालय के छात्रछात्राओं के लिए कैंसर जागरूकता कार्यशाला आयोजित की जाएगी.

खाद्यान्न जरूरतों के मामले में भारत सरप्लस

रांची : कृषि, पशुपालन एवं सहकारिता विभाग के सचिव और बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति अबूबकर सिद्दीकी ने कृषि वैज्ञानिकों का आह्वान किया है कि वे जलवायु के अनुकूल खेती पर अपना अनुसंधान प्रयास केंद्रित करें.

उन्होंने यह भी कहा कि अपनी खाद्यान्न जरूरतों के मामले में भारत सरप्लस है, लेकिन बायोसेफ्टी, पोषण सुरक्षा और जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से निबटने के लिए अब भी बहुत काम करने की जरूरत है.

वह भारतीय आनुवंशिकी एवं पौधा प्रजनन सोसाइटी, नई दिल्ली के रांची चैप्टर द्वारा बिरसा कृषि विश्वविद्यालय में ‘फसल सुधार के लिए पौधा विज्ञान की चुनौतियां, अवसर एवं रणनीतियां’ विषय पर आयोजित दोदिवसीय राष्ट्रीय सैमिनार को संबोधित कर रहे थे. उन्होंने कहा कि जो लोग अपने ज्ञान को साझा नहीं करते, उन के ज्ञान की कोई उपयोगिता नहीं रह जाती है, इसलिए वैज्ञानिकों को पढ़ना, सुनना, देखना, विश्लेषण करना और नवोन्मेष (इनोवेशन) करना सतत जारी रखना चाहिए. ज्ञानकौशल की गति और गुणवत्ता दुनिया के साथ मिला कर रखना होगा, तभी हम प्रतिस्पर्धा और रोजगार बाजार में टिक पाएंगे.

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के सहायक महानिदेशक (खाद्य एवं चारा फसलें) डा. एसके प्रधान ने कहा कि देश में इस वर्ष 330 मिलियन टन खाद्यान्न का उत्पादन हुआ, जो वर्ष 2030 का लक्ष्य था यानी इस मोरचे पर हम 7 वर्ष आगे हैं, किंतु इस से हमें आत्मसंतुष्ट नहीं होना है. मक्का और मिलेट्स उत्पादन का वर्तमान स्तर 37 और 15 मिलियन टन है, जिसे वर्ष 2047 तक बढ़ा कर क्रमशः 100 मिलियन टन एवं 45 मिलियन टन करना है. बायोफ्यूल के लिए भी मक्का फसल की जरुरत है. उत्पादन वृद्धि का भावी लक्ष्य भी हमें कम पानी, कम उर्वरक, कम रसायन और कम भूमि का प्रयोग करते हुए हासिल करना होगा.

Surplus Foodसोसाइटी के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं भारतीय बीज विज्ञान संस्थान, मऊ (उत्तर प्रदेश) के निदेशक डा. संजय कुमार ने अपने औनलाइन संबोधन में कहा कि भारत में दुनिया की लगभग 18 फीसदी आबादी रहती है, किंतु इस के पास विश्व का केवल 2.4 फीसदी भूमि संसाधन और 4 फीसदी जल संसाधन उपलब्ध है, इसलिए भविष्य की चुनौतियों का सामना करने के लिए हमें अपनी फसल प्रजनन और बीज प्रजनन नीतियों, योजनाओं और रणनीतियों में बदलाव लाना होगा.

शुरू में स्वागत भाषण करते हुए आयोजन सचिव और बीएयू के आनुवंशिकी एवं पौधा प्रजनन विभाग की अध्यक्ष डा. मणिगोपा चक्रवर्ती ने सोसाइटी के रांची चैप्टर की गतिविधियों और उपलब्धियों पर प्रकाश डाला.

आयोजन हाईब्रिड मोड में किया जा रहा है, जिस में देश के विभिन्न कृषि विश्वविद्यालयों, शोध संस्थानों और कृषि उद्योगों से आनुवंशिकी, पौधा प्रजनन, पादप जैव प्रौद्योगिकी, फसल दैहिकी, बीज प्रौद्योगिकी, बागबानी एवं सब्जी विज्ञान से जुड़े डेढ़ सौ से अधिक कृषि वैज्ञानिक औफलाइन एवं औनलाइन मोड में भाग लिया. औनलाइन भाग लेने वालों में बीएयू के पूर्व कुलपति डा. एमपी पांडेय, डा. ओंकार नाथ सिंह और बीएचयू के स्कूल औफ बायोटैक्नोलौजी के पूर्व प्रोफैसर डा. बीडी सिंह शामिल हैं.

कृषि सचिव ने इस अवसर पर बीएयू के आनुवंशिकी एवं पौधा प्रजनन विभाग के पूर्व अध्यक्ष डा. जेडए हैदर एवं डा. वायलेट केरकेट्टा और पूर्व अनुसंधान निदेशक डा. ए. वदूद को उन के विशिष्ट योगदान के लिए सम्मानित किया. सोसाइटी की कोषाध्यक्ष डा. नूतन वर्मा ने धन्यवाद ज्ञापन किया.

कैसे करें फूलों का उत्पादन

रांची : बिरसा कृषि विश्वविद्यालय में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के सहयोग से चल रही फूलों से संबंधित अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना की जनजातीय उपयोजना के तहत बागबानी विभाग में ‘व्यावसायिक पुष्पोत्पादन तकनीक’ विषय पर एकदिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन किया गया.

इस में रांची जिला के नगड़ी प्रखंड के चिपरा पंचायत के 2 गांवों- कोलांबी और पंचडीहा की 30 किसान महिलाओं ने भाग लिया. ये महिलाएं झारखंड स्टेट लाइवलीहुड प्रमोशन सोसाइटी द्वारा गठित कृषक समूह की अगुवा शांति तिर्की, नीतू तिर्की और किसान मित्र फूलमनी खलखो के नेतृत्व में आई थीं.

कार्यक्रम को संबोधित करते हुए बीएयू के अनुसंधान निदेशक डा. पीके सिंह ने कहा कि झारखंड में कृषि संबंधी अधिकांश काम महिलाएं ही करती हैं, इसलिए फूलों की खेती के परिदृश्य में भी वे बड़े बदलाव ला सकती हैं. झारखंड की जरूरत का अधिकांश फूल भी दूसरे राज्यों से आता है, इसलिए इस राज्य में फूलों के उत्पादन और लाभकारी विपणन की काफी संभावनाएं हैं.

उन्होंने प्रशिक्षण के दौरान अर्जित ज्ञान का व्यावहारिक उपयोग करने की सलाह किसान महिलाओं को दी.

बागबानी विभाग की डा. पूनम होरो, डा. शुभ्रांशु सेनगुप्ता, डा. सविता एक्का, डा. सुप्रिया सुपल सुरीन और डा. अब्दुल माजिद अंसारी ने प्रशिक्षणार्थियों को गेंदा, ग्लेडियोलस, जरबेरा और गुलाब की वैज्ञानिक खेती, उत्पादन क्षमता, झारखंड के लिए उपयुक्त उन्नत प्रभेदों, फसल संरक्षण तकनीक आदि के बारे में विस्तृत जानकारी दी.

दुनिया की सब से बड़ी जंगल सफारी

चंडीगढ़: हरियाणा में वाटर स्पोट्र्स गतिविधियों के साथसाथ अब पर्यटक हौट एयर बैलून सफारी का भी मजा उठा सकेंगे. मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने पिछले दिनों गेट वे औफ हिमाचल कहे जाने वाले पिंजौर में हौट एयर बैलून सफारी का शुभारंभ किया गया. उन्होंने स्वयं हरियाणा विधानसभा अध्यक्ष ज्ञान चंद गुप्ता और स्कूल शिक्षा और विरासत एवं पर्यटन मंत्री कंवर पाल के साथ सब से पहले हौट एयर बैलून सफारी की सवारी की.

इस अवसर पर मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने कहा कि पहली सफारी का अनुभव बेहद अच्छा रहा और सुरक्षा की दृष्टि से भी यह काफी सुरक्षित है. हौट एयर बैलून संचालित करने वाली कंपनी ने सुरक्षा सर्टिफिकेट प्राप्त किए हुए हैं. उन्होंने कहा कि इस क्षेत्र में हौट एयर बैलून सफारी की शुरुआत होने से न केवल पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा, बल्कि रोजगार के अवसर भी मिलेंगे.

Safariउन्होंने कहा कि हरियाणा में पर्यटन की अपार संभावनाएं हैं और राज्य सरकार लगातार पर्यटन गतिविधियां बढ़ा रही है. उन्होंने बताया कि इस हौट एयर बैलून सफारी की व्यावहारिकता को देखते हुए राज्य सरकार कंपनी को 2 साल के लिए वीजीएफ के तौर पर 72 लाख रुपए देगी. कंपनी की ओर से इस का रेट 13,000 रुपए प्रति व्यक्ति प्रति राइड निर्धारित किया गया है.

मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने यह भी कहा कि हरियाणा अब वाटर स्पोट्र्स और साहसिक खेल गतिविधियों की ओर अग्रसर हो रहा है. सरकार द्वारा मोरनी हिल्स के पास टिक्करताल क्षेत्र में भी पैराग्लाइडिंग, वाटर स्पोट्र्स एक्टिविटी, जेट स्कूटर, पैरा सेल्लिंग और ट्रेकिंग जैसे एडवेंचर खेलों की शुरुआत की गई है. इस के अलावा ट्रैक, माउंटेन बाइकिंग ट्रैक और कई अन्य गतिविधियों की भी पहचान की गई है. साथ ही, मोरनी हिल्स में इकोटूरिज्म को बढ़ाने के लिए वन विभाग को भी जोड़ा गया है.

अरावली क्षेत्र को भी पर्यटन की दृष्टि से किया जा रहा विकसित

मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने आगे कहा कि राज्य सरकार शिवालिक पर्वत क्षेत्र के साथसाथ अरावली क्षेत्र को भी पर्यटन के रूप में विकसित कर रही है. हरियाणा में विश्व के पर्यटकों को अपनी ओर लुभाने के लिए बड़े पैमाने पर रोडमैप तैयार किए जा रहे हैं. इसी कड़ी में राज्य सरकार द्वारा अरावली पर्वत श्रृंखला में पड़ने वाले गुरुग्राम व नूंह जिलों की 10,000 एकड़ भूमि पर दुनिया का सब से बड़ा जंगल सफारी पार्क विकसित किया जा रहा है. इस से अरावली पर्वत श्रृंखला को संरक्षित करने में मदद मिलेगी, वहीं दूसरी ओर गुरुग्राम व नूंह क्षेत्रों में पर्यटन को भी बढ़ावा मिलेगा.

Safariअग्रोहा में भी मिली खुदाई की अनुमति, राखीगढ़ी की तर्ज पर अग्रोहा को किया जाएगा विकसित
मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने आगे बताया कि ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण राखीगढ़ी में भी म्यूजियम बनाया जा रहा है. साथ ही, अब राखीगढ़ी की तर्ज पर अग्रोहा में भी खुदाई की अनुमति मिल चुकी है. इस से इस क्षेत्र में पुरातात्विक विरासत को पहचान मिलेगी. इस के अलावा ढोसी के पहाड़ को भी तीर्थस्थल के रूप में विकसित किया जा रहा है. यहां पर रोपवे की शुरुआत की गई है. यहां पर चवन ऋषि जैसे महान तपस्वी हुए हैं, इसलिए इस की अपनी आध्यात्मिक पहचान भी है. इस के अलावा यहां एयरो स्पोट्र्स को बढ़ावा देने के लिए भी पैराग्लाइडिंग की संभावनाओं का अध्ययन किया जा रहा है.

इस अवसर पर एडीजीपी सीआईडी आलोक मित्तल, पंचकूला के उपायुक्त सुशील सारवान, डीसीपी सुमेर प्रताप सिंह, अतिरिक्त उपायुक्त वर्षा खंगवाल, पूर्व विधायक लतिका शर्मा सहित अन्य अधिकारी मौजूद थे.

सेहत के लिए फायदेमंद है मोटा अनाज

चंडीगढ़: राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में ‘मोटे अनाज का उपयोग स्वस्थ मानव जीवन व सुरक्षित पर्यावरण’ विषय पर तीनदिवसीय राष्ट्रीय सैमिनार आयोजित किया गया, जिस में हरियाणा के राज्यपाल बंडारू दत्तात्रेय ने शिरकत की.

उन्होंने भोजन में मोटे अनाज के उपयोग पर बल देते हुए कहा कि मोटा अनाज सेहत के लिए अत्यंत फायदेमंद है, इसलिए इसे अपने दैनिक भोजन में जरूर शामिल करें.

राज्यपाल बंडारू दत्तात्रेय ने कहा कि हरियाणा सरकार मोटा अनाज विशेषकर बाजरा की पैदावार बढ़ाने पर जोर दे रही है और इस दिशा में किसान को समृद्ध करने के लिए बाजरे को भावांतर भरपाई योजना में शामिल किया गया है. प्रदेश में बाजरे की खेती को बढ़ावा देने के लिए पहले कदम के रूप में, इस वर्ष भिवानी जिला में एक पोषक-अनाज अनुसंधान केंद्र बनाया जा रहा है.

Milletsउन्होंने बताया कि मोटे अनाज का प्रयोग कई तरह की बीमारियों, जिन में शुगर, ब्लडप्रेशर, हार्ट, किडनी, कैंसर आदि शामिल हैं, से बचाव हो सकता है. राज्यपाल बंडारू दत्तात्रेय ने कहा कि जब तक भोजन में अनाज नहीं बदलेंगे, तो देश का स्वास्थ्य नहीं बदल सकता है, इसलिए मोटे अनाज का प्रयोग हमें बड़े पैमाने पर करना होगा.

राज्यपाल बंडारू दत्तात्रेय ने आगे कहा कि मोटे अनाज को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिली है और संयुक्त राष्ट्र ने भी भारत के आग्रह पर मोटे अनाज को ‘अंतर्राष्ट्रीय मिलेट्स वर्ष‘ के रूप में घोषित किया है. मोटे अनाज को विश्व स्तर पर पहचान दिलाने के इस अभियान में केंद्र सरकार की ओर से इसी वर्ष इसे प्रोत्साहित करने का फैसला किया गया है और केंद्र ने एक नई योजना ‘श्रीधान्य‘ की शुरुआत की है.

समकलित खेती पर पांचदिवसीय प्रशिक्षण

अविकानगर (राजस्थान): भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली के संस्थान केंद्रीय भेड़ एवं ऊन अनुसंधान संस्थान, अविकानगर, तहसील मालपुरा, जिला टोंक (राजस्थान) के दक्षिण क्षेत्रीय अनुसंधान केंद्र, माननावनूर जिला- कोडईकनाल राज्य-तमिलनाडु  द्वारा राज्य के पहाड़ी जिलों के एससी तबके के किसानों को अनुसूचित जाति उपयोजना के माध्यम से किसानवैज्ञानिक संवाद द्वारा समकलित खेती पर पांचदिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन किया गया.

वैज्ञानिक संवाद एवं स्थापना दिवस के कार्यक्रम मे मुख्य अतिथि संस्थान के निदेशक डा. अरुण कुमार तोमर, प्रशासनिक अधिकारी भीम सिंह, माननावनूर सैंटर के प्रभारी डा. पी थिरूमुरुगान, वैज्ञानिक डा. एस. जगवीरा पांडेयन एवं केंद्र के समस्त कर्मचारियों द्वारा कार्यक्रम में हिस्सा लिया गया.

कार्यक्रम में पधारे मुख्य अतिथि निदेशक डा. अरुण कुमार तोमर एवं अन्य अतिथि का केंद्र द्वारा दक्षिण परंपरा से स्वागतसत्कार किया गया.

Farmingकार्यक्रम को संबोधन करते हुए निदेशक डा. अरुण कुमार तोमर ने सभी को समेकित खेती की ओर जाने का निवेदन करते हुए कहा कि इस से सालभर परिवार की आजीविका बनी रहेगी.

उन्होंने जानकारी देते हुए यह भी बताया कि आप भेड़, खरगोश, गाय आदि पशुओं के पालन के साथ ही सब्जी, फल और मसाले का और्गैनिक तरीके से उत्पादन कर के अच्छी आमदनी ले सकते हैं.

डा. अरुण कुमार तोमर ने आगे कहा कि आप उत्तरी भारत के हिमाचल प्रदेश के किसानों की बागबानी, सब्जी और टूरिस्ट आधारित पारिवारिक आजीविका से सीख कर कुछ अपने फार्मिंग सिस्टम को ऐसी दिशा देने की जरूरत है.

इस अवसर पर तमिलनाडु राज्य के किसानों के खरगोश मांस संगठन के साथ एमओयू किया गया, जिस से अविकानगर संस्थान की खरगोशपालन उन्नत तकनीकी को राज्य के पहाड़ी क्षेत्र के सभी तबके के लोगों तक पहुंचाया जाएगा.

केंद्र के कार्यालय प्रभारी डा. पी. थिरूमुरुगान ने बताया कि अनुसूचित जाति के  तबके के किसानों को तमिलनाडु राज्य की कृषि और पशुपालन संस्थान के साथ उन्नत खेती और पशुपालन पर भ्रमण और लेक्चर्स करवाया जाएगा.

’ग्रीन कान्हा रन का आयोजन’

उदयपुर: 19, नवंबर, 2023. जलवायु परिवर्तन के चलते दिनोंदिन आबोहवा में अनेक बदलाव आ रहे हैं, जिन के प्रति सजग रहना जरूरी है. इसी कड़ी में पर्यावरण की सुरक्षा और वृक्षारोपण के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए हार्टफुलनेस संस्थान की ओर से ग्रैन्यूल्स ग्रीन कान्हा रन का आयोजन पिछले दिनों फतेह सागर में आयोजित किया गया. इस रन का आयोजन कान्हा शांति वनम के साथ ही विश्व के अनेक देशों में आयोजित किया गया था.

उदयपुर केंद्र समन्वयक डा. राकेश दशोरा ने बताया कि सुबह 7.30 बजे फतेह सागर की पाल पर देवली छोर से 2 किलोमीटर की दौड़ का आयोजन किया गया.

ग्रैन्यूल्स ग्रीन कान्हा रन के यूथ समन्वयक दीपक मेनारिया ने बताया कि इस दौड़ में डा. राजेश भारद्वाज, एडिशनाल एसपी (विजिलेंस), उदयपुर, सलोनी खेमका सीईओ, नगरनिगम उदयपुर, पुनीत शर्मा, डायरेक्टर, प्लानिंग उदयपुर, डा. एचपी गुप्ता, शल्य चिकित्सक, डा. उमा ओझा, सेवानिवृत्त प्रो. आरएनटी, मधु मेहता, जोनल कार्डिनेटर हार्टफुलनेस, नरेश मेहता, प्रशिक्षक आशा शर्मा, महेश कुलघुडे, मोहन बोराणा, डा. सुबोध शर्मा पूर्व डीन मात्स्यिकी महाविद्यालय के साथ ही लगभग 100 से अधिक प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया.

इस इवेंट की श्रेणियों में 2 किलोमीटर, 5 किलोमीटर, 10 किलोमीटर व 21 किलोमीटर की दूरी तय की गई, जिस में अलगअलग लोगों ने हिस्सा लिया.

’कृषि पीएचडी के लिए 6 दिसंबर तक आवेदन’

हिसार: चैधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार में विभिन्न पीएचडी कार्यक्रमों में दाखिले के लिए आवेदन प्रक्रिया शुरू हो चुकी है. विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने बताया कि आवेदन की प्रक्रिया 6 दिसंबर, 2023 तक जारी रहेगी.

उन्होंने जानकारी देते हुए आगे बताया कि पीएचडी कार्यक्रमों में दाखिला एंेट्रेंस टैस्ट में हासिल मैरिट के आधार पर होगा. औनलाइन आवेदन फार्म एवं प्रोस्पैक्टस विश्वविद्यालय की वैबसाइट पर उपलब्ध है.

उन्होंने यह भी कहा कि आवेदन करने से पहले और कांउसलिंग के समय आने से पूर्व उम्मीदवार प्रोस्पैक्टस 2023-24 में दिए गए दाखिला संबंधी सभी हिदायतों व नियमों को अच्छी तरह से पढ़ लें.

सामान्य श्रेणी के उम्मीदवार के लिए आवेदन की फीस 1,500 रुपए है, जबकि अनुसूचित जाति, पिछड़ी जाति, आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग, पीडब्ल्यूडी (दिव्यांग)के उम्मीदवारों के लिए 375 रुपए होगी. इस के अलावा उपलब्ध सीटों की संख्या, महत्वपूर्ण तिथियां, न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता, दाखिला प्रक्रिया आदि संबंधी सभी जानकारियां विश्वविद्यालय की वैबसाइट पर उपलब्ध प्रोस्पैक्टस में मौजूद है.

उन्होंने उम्मीदवारों को दाखिला संबंधी नवीनतम जानकारियों के लिए विश्वविद्यालय की वैबसाइट  ींन.ंब.पद ंदक ंकउपेेपवदे.ींन.ंब. पद पर नियमित रूप से चेक करते रहने को कहा है.

पीएचडी प्रोग्राम में दाखिले की ये होगी प्रक्रिया

स्नातकोत्तर शिक्षा अधिष्ठाता डा. केडी शर्मा ने बताया कि विश्वविद्यालय के विभिन्न महाविद्यालयों में पीएचडी में दाखिला कौमन ऐंट्रेंस टैस्ट के आधार पर होगा. कृषि महाविद्यालय में एग्रीकल्चरल इकोनोमिक्स, एग्रोनोमी, इंटोमोलौजी, एग्रीकल्चरल ऐक्सटेंशन एजुकेशन, हार्टिकल्चर, नेमोटोलौजी, जैनेटिक्स ऐंड प्लांट ब्रीडिंग, प्लांट पेथोलौजी, सीड साइंस एवं टैक्नोलौजी, सौयल साइंस, वेजीटेबल साइंस, एग्री. मेटीयोरोलौजी, फोरैस्ट्री, एग्री बिजनैस मैनेजमेंट व बिजनैस मैनेजमेंट विषय शामिल हैं, जबकि मौलिक एवं मानविकी महाविद्यालय में कैमिस्ट्री, बायोकैमिस्ट्री, प्लांट फिजियोलौजी, एनवायरमेंटल साइंस, माइक्रोबायोलौजी, जूलौजी, सोशियोलौजी, स्टैटिक्स, फिजिक्स, मैथमैटिक्स व फूड साइंस एंड टैक्नोलौजी विषयों में दाखिले होंगे.

इसी प्रकार बायोटैक्नोलौजी महाविद्यालय में मोलिक्यूलर बायोलौजी ऐंड बायोटैक्नोलौजी, बायोइनफर्मेटिक्स विषय शामिल होंगे. सामुदयिक विज्ञान महाविद्यालय में फूड्स %

पोषक तत्त्वों से भरपूर करेला

अकसर घरों में दादी, नानी या मां करेले के गुणों का बखान करती मिलती हैं. कई बुजुर्गों को आप ने करेले का जूस मजे से पीते देखा होगा, मगर करेले का नाम सुनते ही नौजवानों के मुंह का जायका बिगड़ जाता है. बच्चे तो उस के नाम से ही नाकभौं चढ़ा लेते हैं. करेले की कड़वाहट झेलना सब के बस की बात नहीं है.

करेला भले ही एक कड़वी सब्जी हो, लेकिन इस में कई गुण होते हैं. करेला खून तो साफ करता ही है, साथ ही डायबिटीज के मरीजों के लिए बेहद फायदेमंद है.

करेला डायबिटीज में अमृत की तरह काम करता है. इस से खून में शुगर लेवल कंट्रोल में रहता है. दमा और पेट के मरीजों के लिए भी यह लाभदायक है. इस में फास्फोरस पर्याप्त मात्रा में होता है जो कफ की शिकायत को दूर करता है.

करेले का इस्तेमाल एक नैचुरल स्टेरायड के रूप में किया जाता है, क्योंकि इस में कैरेटिन नामक रसायन होता है जो खून में शुगर का लैवल नियंत्रित रखता है. करेले में मौजूद ओलिओनिक एसिड ग्लूकोसाइड शुगर को खून में घुलने नहीं देता है.

करेला जितना शुगर लैवल को संतुलत करता है, शरीर को उतने ही पोषक तत्त्व मिलते हैं. इस के अलावा करेले में तांबा, विटामिन बी, अनसैचुरेटैड फैटी एसिड जैसे तत्त्व मौजूद होते हैं. इन से खून साफ रहता है और किडनी व लिवर भी सेहतमंद रहता है.

करेला खाने के फायदे

* कफ के मरीजों के लिए करेला बहुत फायदेमंद होता है.

* दमा होने पर बिना मसाले की सब्जी लाभदायक होती है.

* पेट में गैस की समस्या या अपच होने पर करेला राहत देता है.

* लकवे के मरीजों को कच्चा करेला खाने से फायदा होता है.

* उलटी, दस्त या हैजा होने पर करेले के रस में पानी और काला नमक डाल कर सेवन करने पर तुरंत फायदा होता है.

* पीलिया के रोग में भी करेला लाभकारी है. मरीजों को इस का रस पीना चाहिए.

* करेले के रस का लेप लगाने से सिरदर्द दूर होता है.

* गठिया रोगियों के लिए करेला फायदेमंद होता है.

* मुंह में छाले पड़ने पर करेले के रस का कुल्ला करने से राहत मिलती है.