मत्स्यपालन (Fisheries) के लिए सब से अधिक आवंटन

नई दिल्लीः मत्स्यपालन (Fisheries) विभाग को वित्तीय वर्ष 2024-25 के लिए 2,584.50 करोड़ रुपए की राशि आवंटित की गई है, जो मत्स्यपालन विभाग के लिए अब तक का सब से अधिक वार्षिक आवंटन है. बजटीय आवंटन चालू वित्तीय वर्ष की तुलना में 15 फीसदी ज्यादा है. आवंटित बजट विभाग के लिए अब तक की सब से अधिक वार्षिक बजटीय सहायता में से एक है.

पहली पंचवर्षीय योजना से 2013-14 तक मत्स्यपालन क्षेत्र पर केवल 3,680.93 करोड़ रुपए खर्च किए गए. हालांकि वर्ष 2014-15 से ले कर 2023-24 तक देश में विभिन्न मत्स्य विकास गतिविधियों के लिए 6,378 करोड़ रुपए पहले ही जारी किए जा चुके हैं. इस क्षेत्र में पिछले 9 वर्षों में लक्षित निवेश 38,572 करोड़ रुपए से अधिक है, जो इस उभरते क्षेत्र में अब तक का सब से अधिक निवेश है.

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने क्षेत्र के विकास पर प्रकाश डाला. अंतरिम बजट में अर्थव्यवस्था को औपचारिक बनाने के लिए डिजिटल सार्वजनिक बुनियादी ढांचे की स्थापना पर भी जोर दिया गया है. उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि मछुआरों की सहायता के महत्व को समझने के लिए एक अलग मत्स्यपालन विभाग की स्थापना की गई, जिस के परिणामस्वरूप वर्ष 2013-14 के बाद से अंतर्देशीय और जलीय कृषि उत्पादन और समुद्री खाद्य निर्यात दोगुना हो गया है.

प्रधानमंत्री मस्त्य संपदा योजना यानी पीएमएमएसवाई जैसी प्रमुख योजना को मौजूदा 3 से 5 टन प्रति हेक्टेयर तक जलीय कृषि उत्पादकता बढ़ाने, निर्यात को दोगुना कर के एक लाख करोड़ रुपए करने और 55 लाख रोजगार के अवसर पैदा करने के साथसाथ 5 एकीकृत एक्वापार्क स्थापित करने के बड़े बुनियादी ढांचे में बदलाव के लिए आगे बढ़ाया जा रहा है. इस के अलावा जलवायु लचीली गतिविधियों, बहाली और अनुकूलन उपायों को बढ़ावा देने और एकीकृत और बहुक्षेत्रीय दृष्टिकोण के साथ तटीय जलीय कृषि और समुद्री कृषि के विकास पर ध्यान केंद्रित करने के लिए ब्लू इकोनौमी 2.0 लौंच किया जाएगा.

भारतीय अर्थव्यवस्था में मत्स्यपालन क्षेत्र एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. यह राष्ट्रीय आय, निर्यात, खाद्य और पोषण सुरक्षा के साथसाथ रोजगार सृजन में योगदान देता है. मत्स्यपालन क्षेत्र को ‘सनराइज सैक्टर‘ के रूप में मान्यता प्राप्त है. यह भारत में तकरीबन 30 मिलियन विशेष रूप से हाशिए पर रहने वाले और कमजोर समुदायों के लोगों की आजीविका को बनाए रखने में सहायक है.

वित्त वर्ष 2022-23 में 175.45 लाख टन के रिकौर्ड मछली उत्पादन के साथ भारत दुनिया का तीसरा सब से बड़ा मछली उत्पादक देश है, जो वैश्विक उत्पादन का 8 फीसदी हिस्सा है. देश के सकल मूल्यवर्धित (जीवीए) में तकरीबन 1.09 फीसदी और 6.724 फीसदी से अधिक का योगदान कृषि जीवीए के लिए देता है. इस क्षेत्र में विकास की अपार संभावनाएं हैं, इसलिए टिकाऊ, जिम्मेदार, समावेशी और न्यायसंगत विकास के लिए नीति और वित्तीय सहायता के माध्यम से ध्यान देने की आवश्यकता है.

5 फरवरी, 2019 को पूर्ववर्ती पशुपालन, डेयरी और मत्स्यपालन विभाग से मत्स्यपालन विभाग को अलग कर के मत्स्य पालन क्षेत्र को आवश्यक बढ़ावा दिया गया था और इसे प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (पीएमएमएसवाई), मत्स्यपालन बुनियादी ढांचा विकास निधि (एफआईडीएफ) और किसान क्रेडिट कार्ड (केसीसी), जैसे गहन योजनाओं और कार्यक्रमों से सुसज्जित किया गया है. विभाग अब अमृतकाल में नई ऊंचाइयां हासिल करने के लिए तैयार है.

हाईब्रिड मोड में मत्स्यपालन और ऐक्वाकल्चर इंश्योरैंस

नई दिल्ली: मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्री परषोत्तम रूपाला ने पूसा, नई दिल्ली में हाईब्रिड मोड (Hybrid Mode)  में मत्स्यपालन ( Fisheries ) और ऐक्वाकल्चर इंश्योरैंस (Aquaculture Insurance)  पर राष्ट्रीय सम्मेलन की अध्यक्षता की. केंद्रीय मंत्री परषोत्तम रूपाला ने कुछ लाभार्थियों को समूह दुर्घटना बीमा योजना (जीएआईएस) ( Group Accident Insurance Scheme) के चैक भी बांटे. इस अवसर पर मत्स्यपालन विभाग के सचिव डा. अभिलक्ष लिखी, संयुक्त सचिव सागर मेहरा और नीतू कुमारी प्रसाद भी उपस्थित थे.

अपने संबोधन में मंत्री परषोत्तम रूपाला ने सभी हितधारकों से वेसल्स इंश्योरैंस योजनाओं के लिए दिशानिर्देश तैयार करने के लिए अपने सुझाव और इनपुट के साथ आगे आने का आह्वान किया. साथ ही, उन्होंने कहा कि ग्रुप ऐक्सीडेंट इंश्योरैंस स्कीम (जीएआईएस) काफी सफल रही है और इसी तरह की सफलता को मछुआरा समुदाय के बीच फसल बीमा और वेसल्स बीमा के लिए भी इस्तेमाल होना चाहिए. उन्होंने यह भी कहा कि नई योजनाएं बनाते समय जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न मुद्दों को ध्यान में रखा जाना चाहिए.

उन्होंने सम्मेलन के आयोजन के लिए विभाग की सराहना की, जो सभी हितधारकों को संवेदनशील बनाने में काफी मददगार साबित होगा. मंत्री परषोत्तम रूपाला ने बीमा लाभार्थियों से भी बात की और उन की प्रतिक्रिया ली.

मत्स्यपालन विभाग के सचिव डा. अभिलक्ष लिखी ने अपनी टिप्पणी में कहा कि विभाग जापान और फिलीपींस जैसे अन्य देशों में मछुआरों के लिए सफल बीमा मौडल का अध्ययन करेगा और उन के अनुभवों को स्थानीय परिस्थितियों के अनुसार अनुकूलित किया जाएगा.

डा. अभिलक्ष लिखी ने यह भी रेखांकित किया कि सरकार कंपनियों से वेसल्स बीमा योजनाओं को बढ़ावा दे रही है और ऐसी योजनाओं के लिए सामान्य मापदंडों पर काम करने के लिए एक समिति बनाई गई है. उन्होंने आगे यह भी कहा कि मछुआरा समुदाय के साथ विश्वास की कमी को दूर करने के लिए फसल बीमा के तहत योजनाओं की समीक्षा की जा रही है.

सचिव अभिलक्ष लिखी ने उल्लेख किया कि ग्रुप ऐक्सीडैंट इंश्योरैंस स्कीम (जीएआईएस) ‘प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना‘ (पीएमएमएसवाई) के तहत सब से पुरानी और सब से कामयाब योजना है.

ऐक्वाकल्चर और वेसल्स बीमा सम्मेलन में बीमा के साथसाथ मत्स्यपालन क्षेत्र के विभिन्न हितधारकों को शामिल किया गया. कार्यक्रम का उद्देश्य मत्स्यपालन बीमा से संबंधित सभी हितधारकों के बीच साझेदारी को बढ़ावा देना, सहयोगी पहल, सर्वोत्तम प्रथाओं और इनोवेशंस को प्रोत्साहित करना, अनुसंधान और विकास में लक्ष्य निर्धारित करना, किसानों और मछुआरों को प्रभावशाली अनुभवों एवं सफलता की कहानियों के माध्यम से बीमा कवरेज अपनाने के लिए प्रेरित करना और जागरूकता बढ़ा कर मत्स्य समुदाय के भीतर ऐक्वाकल्चर बीमा अपनाने की दर को बढ़ावा देना है.

मछुआरों और मछलीपालन करने वाले किसानों के हितों की सुरक्षा के बारे में जागरूकता पैदा करने और मत्स्यपालन क्षेत्र, बीमा कंपनियों, बीमा मध्यस्थों और वित्तीय संस्थानों में विभिन्न हितधारकों के साथ उत्पादक विचारविमर्श करने की आवश्यकता को पहचानते हुए मत्स्यपालन विभाग ने इस राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया. कार्यक्रम में विचारविमर्श एक व्यापक कार्यान्वयन ढांचे, सहयोगात्मक प्रयास और अभिनव समाधान (प्रोत्साहन, उत्पाद नवाचार इत्यादि) विकसित करने में सहायता करेगा, जो मछुआरों और जलीय कृषि किसानों के लिए बीमा पैकेज को अधिक किफायती और आकर्षक बना सकता है.
एफएओ के अधिकारियों, सीएमएफआरआई और सीआईबीए के वैज्ञानिकों, आईसीआईसीआई लोम्बार्ड, ओरिएंटल इंश्योरैंस कंपनी लिमिटेड, मत्स्यफेड, केरल और द न्यू इंडिया इंश्योरैंस कंपनी लिमिटेड के प्रतिनिधियों सहित उद्योग विशेषज्ञों और शोधकर्ताओं के साथ भी विचारविमर्श किया गया. किसानों और मत्स्य संघों ने ऐक्वाकल्चर इंश्योरैंस का लाभ उठाने में आने वाली चुनौतियों से संबंधित अपने अनुभव साझा किए.

 

Fisheries

 

सम्मेलन में इन मुद्दों पर हुई चर्चा

– मत्स्यपालन में बीमा के माध्यम से जोखिम को न्यूनतम करना.
– भारत में जलीय कृषि और वेसल्स बीमा की कमियां, चुनौतियां और संभावनाएं.
– विभिन्न बीमा उत्पाद और उन की विशेषताएं, जिन्हें मत्स्यपालन क्षेत्र में लागू किया जा सकता है.
– मत्स्यपालन के लिए फसल बीमा में क्षतिपूर्ति आधारित और सूचकांक आधारित बीमा अवसर.
– मत्स्यपालन में पुनर्बीमा की भूमिका.
– मत्स्यपालन क्षेत्र में सूक्ष्म बीमा की भूमिका.
– न्यूनतम परेशानी में त्वरित दावा निबटान प्रक्रिया के लिए सर्वोत्तम अभ्यास.

सम्मेलन में भाग लेने वालों में मछली किसान और मछुआरे, मत्स्यपालन सहकारी समितियां और उत्पादक कंपनियां, मत्स्यपालन प्रबंधन में शामिल राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों के सरकारी अधिकारी, शोधकर्ता और शिक्षाविद, केवीके, बीमा कंपनियां और वित्तीय संस्थान, ट्रेसेबिलिटी और प्रमाणन सेवा प्रदाता आदि शामिल थे. इस के अलावा संबंधित ग्राम पंचायतों, कृषि विज्ञान केंद्रों (केवीके), मत्स्यपालन विश्वविद्यालयों और कालेजों, राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों के डीओएफ अधिकारियों ने भी वीसी (वीडियो कौंफ्रैंसिंग) के माध्यम से इस में भाग लिया. सम्मेलन में कुल 300 (फिजिकल-100 एवं वर्चुअल-200) प्रतिभागी शामिल हुए.

मत्स्यपालन और जलीय कृषि भोजन, पोषण, रोजगार, आय और विदेशी मुद्रा के महत्वपूर्ण स्रोत हैं. यह क्षेत्र प्राथमिक स्तर पर 3 करोड़ से अधिक मछुआरों और मछली किसानों और मूल्य श्रंखला के साथ कई लाख से अधिक मछुआरों और मछली किसानों को आजीविका, रोजगार एवं उद्यमशीलता प्रदान करता है. वैश्विक मछली उत्पादन में तकरीबन 8 फीसदी हिस्सेदारी के साथ भारत तीसरा सब से बड़ा मछली उत्पादक देश है. पिछले 9 वर्षों के दौरान भारत सरकार ने देश में मत्स्यपालन और जलीय कृषि क्षेत्र के समग्र विकास के लिए परिवर्तनकारी पहल की है.

भारत की अर्थव्यवस्था में मत्स्यपालन क्षेत्र एक महत्वपूर्ण योगदान करने वाला है, जो लाखों लोगों को आजीविका प्रदान करता है. इस क्षेत्र में सतत और जिम्मेदार विकास को बढ़ाने के लिए, भारत सरकार ने मई, 2020 में ‘प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना‘ (पीएमएमएसवाई) की शुरुआत की. इस पहल का उद्देश्य मछली उत्पादन, बाद के बुनियादी ढांचे, ट्रेसेबिलिटी में महत्वपूर्ण अंतराल को संबोधित कर के और मछुआरों का कल्याण सुनिश्चित कर के एक ब्लू रैवोल्यूशन को उत्प्रेरित करना है.

राष्ट्रीय मत्स्य विकास बोर्ड (एनएफडीबी) को बीमा योजनाओं सहित पीएमएमएसवाई कार्यान्वयन के लिए नोडल एजेंसी के रूप में नामित किया गया है. इस के महत्व के बावजूद मत्स्यपालन क्षेत्र को प्राकृतिक आपदाओं और बाजार में उतारचढ़ाव जैसी कमजोरियों का सामना करना पड़ता है, जो इस में शामिल लोगों की भलाई पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है.

पारंपरिक मछुआरों को प्राकृतिक आपदाओं के दौरान मछली पकड़ने से जुड़े जोखिमों से बचाने की जरूरत है. इस दिशा में पीएमएमएसवाई के तहत मछली पकड़ने वाले जहाजों और समुद्री मछुआरों के बीमा कवर के लिए सहायता का प्रावधान किया गया है. हालांकि मैरीन संबंधी खतरे, पुराना बेड़ा और रखरखाव के मुद्दे, विनाशकारी घटनाएं आदि चुनौतियां भी सामने हैं.

भारत में जलीय कृषि विभिन्न जोखिमों जैसे बीमारियों, पीक सीजन की घटनाओं और बाजार में उतारचढ़ाव से भी घिरी रहती है. जलीय कृषि उद्योग की गतिशील प्रकृति के कारण इन जोखिमों का आकलन और प्रबंधन चुनौती भरा हो सकता है. किसानों ने पायलट ऐक्वाकल्चर फसल बीमा योजना में ज्यादा दिलचस्पी नहीं दिखाई, क्योंकि यह केवल बुनियादी कवरेज प्रदान करती थी और बीमारियों सहित व्यापक कवरेज प्रदान नहीं करती थी.

बीमा कंपनियों के पास जलीय कृषि फसल के नुकसान पर लिगेसी डेटा नहीं है. हालांकि बीमा कंपनियां ऐक्वा फसलों के व्यापक कवरेज की उम्मीद करती हैं, लेकिन उत्पाद अधिक महंगा होने के कारण इस की स्वीकार्यता फिलहाल कम है. कई जल कृषि संचालकों को बीमा के लाभों के बारे में जानकारी नहीं हो सकती है या उपलब्ध उत्पादों के बारे में समझ की कमी हो सकती है. बीमा कंपनियों को पुनर्बीमा सहायता की बहुत जरूरत है.

अंतर्देशीय मछली उत्पादन में बढ़त

नई दिल्ली: पिछले 5 वर्षों के दौरान देश में अंतर्देशीय मछली उत्पादन में 7.94 फीसदी की सालाना वृद्धि देखी गई. वर्ष 2022-23 में 131.13 लाख टन का उच्चतम मछली उत्पादन दर्ज किया गया.

पिछले 5 वर्षों के दौरान वर्षवार साल 2018-19 में अंतर्देशीय मछली उत्पादन 8.62 फीसदी वार्षिक वृद्धि दर्ज करते हुए 97.2 लाख टन रहा, जबकि वर्ष 2019-20 में 7.37 फीसदी वृद्धि दर्ज करते हुए 104.37 लाख टन रहा.

इसी प्रकार वर्ष 2020-21 में 7.8 फीसदी वार्षिक वृद्धि दर्ज करते हुए 112.49 लाख टन और वर्ष 2021-22 में 7.76 फीसदी वार्षिक वृद्धि दर्ज करते हुए 121.21 लाख टन और वर्ष 2022-23 में 8.18 फीसदी वार्षिक वृद्धि दर्ज करते हुए 131.13 लाख टन रहा.

भारत सरकार के मत्स्यपालन, पशुपालन और डेरी मंत्रालय के मत्स्यपालन विभाग ने देश में मछली उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न पहल और कार्यक्रम शुरू किए हैं, जिन में शामिल हैं :

(i). केंद्र प्रायोजित योजना (सीएसएस) का कार्यान्वयन: नीली क्रांति: एकीकृत विकास और वर्ष 2015-16 से 2019-20 की अवधि के दौरान मत्स्यपालन का प्रबंधन, 3,000 करोड़ रुपए के कुल परिव्यय के साथ.

(ii). “प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (पीएमएमएसवाई) – भारत में मत्स्यपालन क्षेत्र के सतत और उत्तरदायी विकास के माध्यम से नीली क्रांति लाने की योजना” का कार्यान्वयन 20,050 करोड़ रुपए के निवेश के साथ वित्तीय वर्ष 2020-21 से 2024-25 तक 5 वर्षों की अवधि के लिए सभी राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों को कवर करेगा.

प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना का उद्देश्य भारत की निर्यात प्रतिस्पर्धात्मकता को बढ़ाना, गुणवत्तापूर्ण मछली उत्पादन, प्रजातियों के विविधीकरण, निर्यात उन्मुख प्रजातियों को बढ़ावा देना, ब्रांडिंग, मानकों और प्रमाणन, प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण, उत्पादन के बाद के बुनियादी ढांचे, निर्बाध कोल्ड चेन और आधुनिक मछली पकड़ने के बंदरगाहों और मछली लैंडिंग केंद्रों के विकास पर जोर देते हुए निर्माण के लिए सहायता प्रदान करना है.

(iii). 7522.48 करोड़ रुपए के कुल फंड आकार के साथ मत्स्यपालन और एक्वाकल्चर इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट फंड का कार्यान्वयन, वर्ष 2018-19 से 2023-24 तक रियायती वित्त प्रदान करने के लिए 5 वर्ष की अवधि के लिए लागू किया गया.

(iv). मछुआरों और मछली किसानों की पूंजी की आवश्यकता को पूरा करने के लिए वर्ष 2018-19 में किसान क्रेडिट कार्ड (केसीसी) योजना का विस्तार.

वर्ष 2018 के बाद से देश में अंतर्देशीय मछली उत्पादन में तेजी से वृद्धि हुई है, जो वर्ष 2018-19 में 97.20 लाख टन से बढ़ कर वर्ष 2022-23 में 131.13 लाख टन हो गया, जो वर्ष 2018-19 से 2022-23 के दौरान कुल अंतर्देशीय मछली उत्पादन में 34.9 फीसदी की रिकौर्ड वृद्धि दर्शाता है.

मत्स्यपालन के लिए ढेरों योजनाएं

नई दिल्ली : देश में मत्स्यपालन क्षेत्र की क्षमता का भरपूर इस्तेमाल करने के लिए केंद्रीय मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय के अधीन मत्स्यपालन विभाग मछलीपालन के आमूल विकास और मछुआरों के कल्याण के लिए विभिन्न पहल कर रहा है. इन पहलों में अन्य बातों के साथसाथ 3 प्रमुख योजनाओं का कार्यान्वयन शामिल है, जिस में पहला नीली क्रांति पर केंद्र प्रायोजित योजना (सीएसएस): मत्स्यपालन का एकीकृत विकास और प्रबंधन वर्ष 2015-16 से 2019-20 की अवधि के दौरान 3,000 करोड़ रुपए के केंद्रीय परिव्यय के साथ कार्यान्वित किया गया. उपरोक्त अवधि के दौरान इस योजना के तहत 5,000 करोड़ रुपए स्वीकृत किए गए, जबकि दूसरा प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (पीएमएमएसवाई) वर्ष 2020-21 से 2024-25 तक 5 वर्षों की अवधि के लिए लागू की गई, जिस में कुल 20,050 करोड़ रुपए का निवेश और परियोजनाएं शामिल हैं. इस के लिए अब तक 7209.31 करोड़ रुपए की केंद्रीय हिस्सेदारी के साथ 17527.22 करोड़ रुपए स्वीकृत किए गए हैं और

तीसरा, रियायती वित्त प्रदान करने के लिए 7522.48 करोड़ रुपए की निधि के साथ वर्ष 2018-19 से मत्स्यपालन और एक्वाकल्चर इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट फंड (एफआईडीएफ) लागू किया गया है. इस योजना के तहत मत्स्यपालन बुनियादी सुविधाओं के निर्माण के लिए राज्य सरकारों/केंद्र शासित प्रदेशों सहित विभिन्न कार्यान्वयन एजेंसियों को 5588.63 करोड़ रुपए की मत्स्यपालन अवसंरचना परियोजनाओं को मंजूरी दी गई है.

इस के अलावा केंद्रीय बजट 2023-24 में सरकार ने 6,000 करोड़ रुपए के लक्षित निवेश के साथ पीएमएमएसवाई की एक नई उपयोजना की घोषणा की गई है, जिसएनका लक्ष्य मछुआरों, मछली विक्रेताओं और सूक्ष्म व लघु उद्यमों की गतिविधियों को और सक्षम बनाने, मूल्य श्रृंखला दक्षता में सुधार करने और बाजार का विस्तार करना है.

पारंपरिक मछुआरों के लाभ के लिए योजनाओं के तहत समर्थित सुविधाओं में अन्य बातों के अलावा शामिल हैं-

– मछली पकड़ने पर प्रतिबंध की अवधि के दौरान सामाजिक व आर्थिक रूप से पिछड़े सक्रिय पारंपरिक मछुआरों के परिवारों के लिए आजीविका और पोषण संबंधी सहायता, मछुआरों और मछली पकड़ने वाले जहाजों को बीमा कवर, पारंपरिक मछुआरों को नावें और जाल प्रदान करना, संचार/ट्रैकिंग उपकरण. पीएमएमएसवाई समुद्र में मछुआरों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए समुद्री सुरक्षा किटों की आपूर्ति, गहरे समुद्र में मछली पकड़ने वाले जहाजों की खरीद के लिए पारंपरिक मछुआरों को समर्थन, समुद्री शैवाल संस्कृति और बाइवाल्व संस्कृति जैसी वैकल्पिक आजीविका गतिविधियों, प्रशिक्%

पशुपालन आंकड़े हुए जारी

गुवाहाटी: केंद्रीय मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी मंत्री परषोत्तम रूपाला ने पिछले दिनों गुवाहाटी में राष्ट्रीय दुग्ध दिवस के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में पशु एकीकृत नमूना सर्वे (मार्च, 2022-फरवरी, 2023) पर आधारित बुनियादी पशुपालन आंकड़े 2023 (दूध, अंडा, मांस और ऊन उत्पादन 2022-23) जारी किए. बुनियादी पशुपालन आंकड़ों की प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित हैं:

दूध, अंडा, मांस एवं ऊन उत्पादन

केंद्रीय मंत्री परषोत्तम रूपाला ने बताया कि देश में दूध, अंडा, मांस और ऊन के उत्पादन का अनुमान वार्षिक एकीकृत नमूना सर्वे (आईएसएस) के परिणामों के आधार पर लगाया जाता है, जो देशभर में 3 मौसमों यानी गरमी (मार्चजून), बरसात (जुलाईअक्तूबर) और सर्दी (नवंबरफरवरी) में आयोजित किया जाता है. वर्ष 2022-23 के लिए दूध, अंडा, मांस और ऊन के उत्पादन का अनुमान सामने लाया गया है और इस सर्वे के परिणामों को संक्षेप में प्रस्तुत किया गया है.

दूध उत्पादन

केंद्रीय मंत्री परषोत्तम रूपाला ने बताया कि वर्ष 2022-23 के दौरान देश में कुल दूध उत्पादन 230.58 मिलियन टन अनुमानित है, जिस में पिछले 5 वर्षों में 22.81 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई, जो वर्ष 2018-19 में 187.75 मिलियन टन थी. इस के अलावा वर्ष 2021-22 के अनुमान से वर्ष 2022-23 के दौरान उत्पादन 3.83 फीसदी बढ़ गया है. पूर्व में, वर्ष 2018-19 में वार्षिक वृद्धि दर 6.47 फीसदी, वर्ष 2019-20 में 5.69 फीसदी, वर्ष 2020-21 में 5.81 फीसदी और वर्ष 2021-22 में 5.77 फीसदी थी.

केंद्रीय मंत्री परषोत्तम रूपाला ने कहा कि वर्ष 2022-23 के दौरान सब से अधिक दुग्ध उत्पादक राज्य उत्तर प्रदेश था, जिस की कुल दुग्ध उत्पादन में हिस्सेदारी 15.72 फीसदी थी. इस के बाद राजस्थान (14.44 फीसदी), मध्य प्रदेश (8.73 फीसदी), गुजरात (7.49 फीसदी) और आंध्र प्रदेश (6.70 फीसदी) का स्थान था. वार्षिक वृद्धि दर (एजीआर) के संदर्भ में, पिछले वर्ष की तुलना में सब से अधिक वार्षिक वृद्धि दर कर्नाटक (8.76 फीसदी) में दर्ज किया गया, इस के बाद पश्चिम बंगाल (8.65 फीसदी) और उत्तर प्रदेश (6.99 फीसदी) का स्थान रहा.

अंडा उत्पादन

केंद्रीय मंत्री परषोत्तम रूपाला ने कहा कि देश में कुल अंडा उत्पादन 138.38 बिलियन होने का अनुमान है. वर्ष 2018-19 के दौरान 103.80 बिलियन अंडों के उत्पादन के अनुमान की तुलना में वर्ष 2022-23 के दौरान पिछले 5 वर्षों में 33.31 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई. इस के अलावा, वर्ष 2021-22 की तुलना में वर्ष 2022-23 के दौरान उत्पादन में 6.77 फीसदी की वार्षिक वृद्धि हुई है. पूर्व में वर्ष 2018-19 में वार्षिक वृद्धि दर 9.02 फीसदी, वर्ष 2019-20 में 10.19 फीसदी, वर्ष 2020-21 में 6.70 फीसदी और वर्ष 2021-22 में 6.19 फीसदी थी.

उन्होंने बताया कि देश के कुल अंडा उत्पादन में प्रमुख योगदान आंध्र प्रदेश का रहा है, जिस की हिस्सेदारी कुल अंडा उत्पादन में 20.13 फीसदी है. इस के बाद तमिलनाडु (15.58 फीसदी), तेलंगाना (12.77 फीसदी), पश्चिम बंगाल (9.94 फीसदी) और कर्नाटक (6.51 फीसदी) का स्थान है. वार्षिक वृद्धि दर (एजीआर) के संदर्भ में, सब से अधिक वृद्धि दर पश्चिम बंगाल में (20.10 फीसदी) दर्ज की गई और उस के बाद सिक्किम (18.93 फीसदी) और उत्तर प्रदेश (12.80 फीसदी) का स्थान रहा.

मांस उत्पादन

केंद्रीय मंत्री परषोत्तम रूपाला ने कहा कि वर्ष 2022-23 के दौरान देश में कुल मांस उत्पादन 9.77 मिलियन टन होने का अनुमान है, जिस में वर्ष 2018-19 में 8.11 मिलियन टन के अनुमान की तुलना में पिछले 5 वर्षों में 20.39 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई है. वर्ष 2021-22 की तुलना में वर्ष 2022-23 में 5.13 फीसदी की वृद्धि हुई. इस से पहले वर्ष 2018-19 में वार्षिक वृद्धि दर 5.99 फीसदी, वर्ष 2019-20 में 5.98 फीसदी, वर्ष 2020-21 में 2.30 फीसदी और वर्ष 2021-22 में 5.62 फीसदी थी.

उन्होंने आगे कहा कि कुल मांस उत्पादन में प्रमुख योगदान 12.20 फीसदी हिस्सेदारी के साथ उत्तर प्रदेश का है और इस के बाद पश्चिम बंगाल (11.93 फीसदी), महाराष्ट्र (11.50 फीसदी), आंध्र प्रदेश (11.20 फीसदी) और तेलंगाना (11.06 फीसदी) का स्थान है. वार्षिक वृद्धि दर के संदर्भ में, उच्चतम वार्षिक वृद्धि दर (एजीआर) सिक्किम में (63.08 फीसदी) दर्ज की गई है, इस के बाद मेघालय (38.34 फीसदी) और गोवा (22.98 फीसदी) का स्थान है.

ऊन उत्पादन

मंत्री परषोत्तम रूपाला ने बताया कि वर्ष 2022-23 के दौरान देश में कुल ऊन उत्पादन 33.61 मिलियन किलोग्राम अनुमानित है, जिस में वर्ष 2018-19 के दौरान 40.42 मिलियन किलोग्राम के अनुमान की तुलना में पिछले 5 वर्षों में 16.84 फीसदी की नकारात्मक वृद्धि दर्ज की गई है. हालांकि वर्ष 2021-22 की तुलना में 2022-23 में उत्पादन 2.12 फीसदी बढ़ गया है. इस से पूर्व में वर्ष 2018-19 में वार्षिक वृद्धि दर -2.51 फीसदी, वर्ष 2019-20 में -9.05 फीसदी, वर्ष 2020-21 में -0.46 फीसदी और वर्ष 2021-22 में -10.87 फीसदी थी.

उन्होंने बताया कि कुल ऊन उत्पादन में 47.98 फीसदी हिस्सेदारी के साथ राजस्थान का प्रमुख योगदान है, इस के बाद जम्मूकश्मीर (22.55 फीसदी), गुजरात (6.01 फीसदी), महाराष्ट्र (4.73 फीसदी) और हिमाचल प्रदेश (4.27 फीसदी) का स्थान है. वार्षिक वृद्धि दर के संदर्भ में सब से अधिक वार्षिक वृद्धि दर अरुणाचल प्रदेश (35.75 फीसदी) में दर्ज किया गया है, इस के बाद राजस्थान (6.06 फीसदी) और झारखंड (2.36 फीसदी) का स्थान है.

समुद्री नौकाओं को आधुनिक बनाने के लिए अनुदान

अहमदाबाद: भारत के मत्स्यपालन उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए उठाए गए एक महत्वपूर्ण कदम में, मत्स्यपालन, पशुपालन एवं डेरी राज्य मंत्री डा. एल. मुरुगन ने पिछले दिनों नीली क्रांति और प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (पीएमएमएसवाई) के माध्यम से पारंपरिक मछुआरों को गहरे समुद्र में मछली पकड़ने की तरफ परिवर्तन में समर्थन देने के लिए केंद्र सरकार की अटूट प्रतिबद्धता पर जोर दिया.

उन्होंने गुजरात साइंस सिटी, अहमदाबाद में आयोजित ग्लोबल फिशरीज कौंफ्रैंस इंडिया 2023 में ‘गहरे समुद्र में मछली पकड़ना: प्रौद्योगिकी, संसाधन और अर्थशास्त्र‘ विषय पर एक तकनीकी सत्र में यह बात कही.

डा. एल. मुरुगन ने कहा कि सरकार पारंपरिक मछुआरों को अपने जहाजों को गहरे समुद्र में मछली पकड़ने वाली नौकाओं में बदलने के लिए 60 फीसदी तक वित्तीय सहायता प्रदान कर रही है. इस के अतिरिक्त इस परिवर्तन को सुविधाजनक बनाने के लिए ऋण सुविधाएं भी उपलब्ध हैं.

उन्होंने टूना जैसे गहरे समुद्र के संसाधनों के लिए अंतर्राष्ट्रीय गुणवत्ता मानकों को बनाए रखने के लिए अंतर्निर्मित प्रसंस्करण सुविधाओं से लैस आधुनिक मछली पकड़ने वाले जहाजों की आवश्यकता पर जोर दिया. यह स्वीकारते हुए कि पारंपरिक मछुआरों में वर्तमान में इन क्षमताओं की कमी है. सरकार इस अंतर को दूर करने के लिए प्रतिबद्ध है.

डा. एल. मुरुगन ने आगे कहा कि टूना मछलियों की दुनियाभर में काफी मांग है और भारत में अपनी टूना मछली पकड़ने की क्षमता बढ़ाने की शक्ति है. उन्होंने अधिक स्टार्टअप को गहरे समुद्र में मछली पकड़ने के क्षेत्र में प्रवेश करने व ईंधन की लागत को कम करने और मछली पकड़ने वाली नौकाओं में हरित ईंधन के उपयोग की खोज पर ध्यान केंद्रित करने के लिए अनुसंधान का आह्वान किया. गहरे समुद्र में मछली पकड़ने की क्षमता का स्थायी तरीके से प्रभावी ढंग से उपयोग कर मछली पकड़ने वाले जहाजों को उन्नत करने के लिए अनुसंधान और डिजाइन की आवश्यकता है.

गहरे समुद्र के संसाधनों के उच्च मूल्य पर प्रकाश डालते हुए भारत सरकार के मत्स्यपालन के उपायुक्त डा. संजय पांडे ने कहा कि हिंद महासागर येलोफिन टूना का अंतिम मूल्य 4 बिलियन अमेरिकी डौलर से अधिक है.

विश्व बैंक के सलाहकार डा. आर्थर नीलैंड ने कहा कि भारत के ईईजेड में 1,79,000 टन की अनुमानित फसल के साथ येलोफिन और स्किपजैक टूना की आशाजनक क्षमता के बावजूद वास्तविक फसल केवल 25,259 टन है, जो केवल 12 फीसदी की उपयोग दर का संकेत देती है.

उन्होंने गहरे समुद्र में मछली पकड़ने में सार्वजनिक और निजी क्षेत्र से निवेश की आवश्यकता पर जोर दिया, जिस से आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरणीय लाभ हो सके.

डा. आर्थर नीलैंड ने आगे कहा, ‘‘विशेषज्ञ मत्स्यपालन विज्ञान और प्रबंधन, मछली प्रोसैसिंग और बुनियादी ढांचे के साथ भारत के मजबूत संस्थागत आधार का उपयोग गहरे समुद्र में मछली पकड़ने की विकास योजनाओं के लिए भी फायदेमंद होगा.‘‘

Fishermanउन्होंने जानकारी देते हुए आगे कहा कि हितधारकों की भागीदारी और निवेश, प्रौद्योगिकी और विशेषज्ञता एवं क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और साझेदारी को प्रोत्साहित करने के लिए एक माहौल बनाना भी उतना ही महत्वपूर्ण है.

इस विषय पर आयोजित एक पैनल चर्चा में प्रस्ताव दिया गया कि गहरे समुद्र में मछली पकड़ने के विकास के लिए एक व्यवस्थित ढांचा विकसित करने के लिए सभी हितधारकों की चिंताओं को संबोधित करने वाले सामूहिक और समावेशी प्रयास आवश्यक हैं. गहरे समुद्र के सलाहकार, एनआईओटी, चेन्नई, डा. मानेल जखारियाय, वैज्ञानिक-जीएमओईएस, डा. प्रशांत कुमार श्रीवास्तव, आईसीएआर-केंद्रीय समुद्री मत्स्य अनुसंधान संस्थान (सीएमएफआरआई) के वरिष्ठ वैज्ञानिक, डा. पी. शिनोजय और सीएमएलआरई के वैज्ञानिक डी, डा. हाशिम पैनलिस्ट थे.

गहरे समुद्र में मछली पकड़ने का काम प्रादेशिक जल की सीमा से परे किया जाता है, जो तट से 12 समुद्री मील की दूरी पर है, और तट से 200 समुद्री मील के विशेष आर्थिक क्षेत्र (ईईजेड) के भीतर है.

जलीय कृषि में नवाचारों के लिए ब्लू फाइनेंस को बढ़ाने का आह्वान

जलवायु परिवर्तन और खाद्य एवं पोषण सुरक्षा की बढ़ती मांग से उत्पन्न गंभीर खतरों को देखते हुए संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) के वरिष्ठ मत्स्य अधिकारी साइमन फ्यूंजस्मिथ ने जलकृषि क्षेत्र में नवाचारों और विकास के लिए ब्लू फाइनेंस बढ़ाने का आह्वान किया.

उन के अनुसार, वैश्विक जलीय कृषि साल 2030 तक मानव उपभोग के लिए 59 फीसदी मछली प्रदान करेगी. साइमन फ्यूंजस्मिथ ने कहा कि एशिया 82 मिलियन टन के साथ वैश्विक जलीय कृषि उत्पादन का 89 फीसदी प्रदान करता है. एशिया में अधिकतर छोटे पैमाने के उद्यम कुल उत्पादन में 80 फीसदी से ज्यादा का योगदान दे रहे हैं. यह क्षेत्र प्राथमिक क्षेत्र में 20.5 मिलियन लोगों के लिए नौकरियां पैदा करता है. स्थायी मत्स्यपालन और जलीय कृषि को बढ़ावा देने का उल्लेख करते हुए उन्होंने छोटे पैमाने पर मत्स्यपालन और जल किसानों द्वारा स्थायी प्रथाओं का समर्थन करने का सुझाव दिया.

विशाखापत्तनम में समुद्री संग्रहालय

विशाखापत्तनम: मत्स्यपालन, पशुपालन और डेरी मंत्री परशोत्‍तम रूपाला और राज्यसभा सांसद जीवीएल नरसिंह राव ने पिछले दिनों भारतीय मात्स्यिकी सर्वेक्षण, विशाखापत्तनम में नवनिर्मित समुद्री संग्रहालय का उद्घाटन किया, जहां 250 से अधिक संरक्षित नमूने रखे गए थे. संग्रहालय में सभी नमूने आधुनिक तकनीक (जैसे क्यूआर कोडिंग) के साथ प्रदर्शित किए गए थे, जिस में केवल एक क्लिक के साथ पूरी जानकारी प्राप्त की जा सकती थी और यह विज्ञान के छात्रों, अनुसंधानकर्ताओं और आम जनता के लिए बहुपयोगी है.

भारतीय मात्स्यिकी सर्वेक्षण, मुंबई के महानिदेशक डा. आर. जयभास्करन और एफएसआई विशाखापत्तनम के एमएमई/कार्यालय प्रमुख डी. भामी रेड्डी ने भारतीय मात्स्यिकी सर्वेक्षण के विशाखापत्तनम बेस पर परशोत्तम रूपाला और जीवीएल नरसिम्हा राव का स्वागत किया.

Fisheriesप्रारंभ में केंद्रीय मंत्री परशोत्तम रूपाला ने मत्स्यपालन विभाग के अधीनस्थ कार्यालयों अर्थात भारतीय मत्स्य सर्वेक्षण (एफएसआई), केंद्रीय मात्स्यिकी समुद्री और इंजीनियरिंग प्रशिक्षण संस्थान (सीआईएफनेट) और राष्ट्रीय मात्स्यिकी पोस्ट हार्वेस्ट टैक्नोलौजी एंड ट्रेनिंग संस्थान (एनआईएफपीएचटीटी) की गतिविधियों की समीक्षा की. बैठक में तीनों विभागों के प्रमुखों के साथ कार्यालय प्रमुख उपस्थित थे. उन्होंने सभी तीन संस्थानों के अधिकारियों के साथ बात की और चर्चा किए गए मुद्दों को तुरंत मंत्रालय को भेजने का निर्देश दिया.

इस के बाद परशोत्तम रूपाला ने सम्मेलन हाल, एफएसआई, विशाखापत्तनम में मत्‍स्‍यपालन उद्योग, समुद्री खाद्य निर्यातक संघों, हैचरी मालिकों, उद्यमियों के कई प्रतिनिधियों और राज्य सरकार के अधिकारियों के साथ चर्चा की, जहां 40 से अधिक प्रतिनिधियों ने भाग लिया और दुनियाभर में मछली उत्पादों के निर्यात के लिए अपनी कठिनाइयों के बारे में बताया.

सी फूड एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष ने उद्योग को निरंतर समर्थन देने के लिए सरकार के प्रति आभार व्यक्त किया. वहीं भारतीय मात्स्यिकी सर्वेक्षण के महानिदेशक डा. आर. जयभास्करन, विशाखापत्तनम बेस के कार्यालय प्रमुख डी. भामी रेड्डी, सिफनेट, कोच्चि के निदेशक एम. हबीबुल्ला और एनआईएफपीएचटीटी के निदेशक, सीएस, डा. शाइन कुमार ने परशोत्तम रूपाला को सम्‍मानित किया.

पालन क्षेत्र में महिलाओं को मिलता रहेगा प्रोत्साहन

इंदौर : केंद्रीय मत्स्यपालन, पशुपालन और डेरी मंत्री परषोत्तम रूपाला ने प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (पीएमएमएसवाई) के कार्यान्वयन के 3 वर्ष सफलतापूर्वक पूरे होने पर एक अनूठा कार्यक्रम ‘मत्स्य संपदा जागृति अभियान’ शुरू किया. सरकार के मत्स्यपालन विभाग द्वारा ब्रिलियंट कन्वेंशन सेंटर, इंदौर में आयोजित कार्यक्रम में मत्स्यपालन, पशुपालन और डेरी राज्य मंत्री डा. संजीव कुमार बालियान और डा. एल. मुरुगन भी उपस्थित थे. पूरे भारत में और ‘अंतिम उपयोगकर्ता तक पहुंच’ सुनिश्चित करने के लिए जागृति अभियान सितंबर, 2023 से फरवरी, 2024 तक यानी 6 महीने चलेगा. इस दौरान 108 कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे.

मत्स्य संपदा जागृति अभियान का मुख्य उद्देश्य भारत सरकार की 9 वर्षों की उपलब्धियों के बारे में जानकारी और ज्ञान का प्रसार करना, लाभार्थियों की सफलता की कहानियों को उजागर करना और 2.8 करोड़ मछली किसानों एवं 3477 तटीय गांवों तक पहुंचना है.

प्रमुख परियोजनाओं का केंद्रीय मंत्री ने किया शुभारंभ

देशभर में आगे बढ़ रही विभिन्न प्रमुख परियोजनाओं का केंद्रीय मंत्री ने शुभारंभ किया. पीएमएमएसवाई के तहत स्वीकृत 239 परियोजनाओं की यह सौगात 103.11 करोड़ रुपए के कुल निवेश के साथ 15 राज्यों अरुणाचल प्रदेश, असम, बिहार, छत्तीसगढ़, गोवा, हरियाणा, झारखंड, लद्दाख, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, मेघालय, मिजोरम, त्रिपुरा, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के लिए थी. लाभार्थी विभिन्न कार्यों जैसे ट्राउट (एक प्रकार की मछली) कल्‍चर, मोती कल्चर, केज कल्चर, कोल्ड स्टोरेज, बायोफ्लौक्स और आरएएस आदि में लगे हुए हैं. लाभार्थियों ने परषोत्तम रूपाला और गणमान्य व्यक्तियों के साथ बातचीत की और प्रधानमंत्री, परषोत्तम रूपाला व मत्स्यपालन विभाग के प्रति अपना आभार व्यक्त किया, क्‍योंकि इन परियोजनाओं से आय, रोजगार, महिला सशक्तीकरण और आत्मविश्वास में वृद्धि हुई है.

केंद्रीय मंत्री परषोत्तम रूपाला ने अपने संबोधन में सभी प्रतिभागियों को धन्यवाद दिया और कार्यक्रम की मेजबानी के लिए मध्‍य प्रदेश प्रशासन को बधाई दी. उन्होंने विशेष रूप से पीएमएमएसवाई और केसीसी जैसी सरकारी योजनाओं के अंतर्गत लाभार्थियों को प्राप्त लाभों के माध्यम से पीएमएमएसवाई के 3 वर्षों में मछली उत्पादन 1 लाख टन से बढ़ा कर 3 लाख टन तक ले जाने में मध्‍य प्रदेश की प्रगति की सराहना की.

उन्होंने आगे बताया कि भोपाल में एक्वा पार्क की स्थापना के प्रस्ताव को 25 करोड़ रुपए के कुल परिव्यय के साथ मंजूरी दे दी गई है, जिस में अनुसंधान केंद्र, प्रसंस्करण सुविधा, जल पर्यटन सुविधाएं, सजावटी मत्स्यपालन आदि जैसी सुविधाएं शामिल होंगी.

उन्होंने इस बात पर भी प्रकाश डाला कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में तटीय जल कृषि कानून (सीएए) में संशोधन कर दिया गया है और उन्होंने प्रोत्साहित किया कि भारत को अपनी वैश्विक रैंकिंग लगातार बनाए रखने के लिए झींगापालन को आगे बढ़ाना जारी रखना चाहिए.

Farming Newsमहिलाओं को मोतीपालन में शामिल होने के लिए किया प्रोत्साहित

उन्होंने उपस्थित सभी महिलाओं का विशेष रूप से स्वागत किया और आशा व्यक्त की कि इस क्षेत्र में महिला सशक्तीकरण जारी रहेगा और महिलाओं को आय बढ़ाने के लिए मोतीपालन में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित किया. इस अवसर पर लाभार्थियों के बीच केसीसी का वितरण भी किया गया.

‘बंजर भूमि को धन भूमि’ में बदलने से झींगापालन को और बढ़ावा मिलेगा

डा. संजीव बालियान ने इस बात पर प्रकाश डाला कि मत्स्यपालन क्षेत्र अत्यंत ही महत्वपूर्ण है और यह इस बात से स्पष्ट है कि वर्ष 2014 के बाद इस क्षेत्र का बजट 300 करोड़ रुपए से बढ़ कर 38 हजार करोड़ रुपए से अधिक हो गया है.

उन्होंने एनईआर में किए जा रहे कार्यों की सराहना की और आशा व्यक्त की कि आने वाले समय में ‘बंजर भूमि को धन भूमि’ में बदलने से झींगापालन को और बढ़ावा मिलेगा.

डा. एल. मुरुगन ने सभी प्रतिभागियों का स्वागत किया और सरकारी पहलों व योजनाओं, विशेषकर पीएमएमएसवाई के माध्यम से भारतीय मत्स्यपालन क्षेत्र की उपलब्धियों पर प्रकाश डाला. मछुआरों और मछलीपालकों के लिए उन्होंने किसान क्रेडिट कार्ड (केसीसी) के लाभों पर जोर दिया.

परषोत्तम रूपाला और अन्य गणमान्य व्यक्तियों ने 9 वर्ष की उपलब्धियों की पुस्तिका जारी की, जो मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय और मत्स्यपालन विभाग (भारत सरकार) की उत्पत्ति के बाद से भारतीय मत्स्यपालन क्षेत्र की प्रगति की यात्रा को दर्शाती है. यह बीआर, एफआईडीएफ, पीएमएमएसवाई के तहत प्रमुख उपलब्धियों और सागर परिक्रमा जैसी पहलों पर भी प्रकाश डालती है.

स्टालों में लगी प्रदर्शनी का भी उद्घाटन

केंद्रीय मंत्री परषोत्तम रूपाला ने अन्य गणमान्य व्यक्तियों के साथ मत्स्यपालन स्टार्टअप, कालेजों, विश्वविद्यालयों, एफएफपीओ, मत्स्य सहकारी समितियों और मत्स्य संस्थानों के स्टालों में लगी प्रदर्शनी का भी उद्घाटन किया. स्टालों में फिशरी सर्वे औफ इंडिया, नेशनल इंस्‍टीट्यूट औफ फिशरीज पोस्‍ट हार्वेस्‍ट टैक्नोलौजी एंड ट्रेनिंग (एनआईएफपीएचएटीटी), सेंट्रल इंस्‍टीट्यूट औफ फिशरीज नौटिकल एंड इंजीनियरिंग ट्रेनिंग (सीआईएफएनईटी) और बंगाल की खाड़ी से लगे सभी 8 आईसीएआर मत्‍स्‍यपालन संस्‍थानों के कार्यक्रम, अंतरसरकारी संगठन (बीओबीपी-आईजीओ) के कार्यों के साथसाथ विभिन्न उद्यमियों द्वारा बेचे जा रहे जाल, चारा, मूल्यवर्धित उत्पाद आदि उत्पादों को प्रदर्शित किया गया.

Farming Newsइस अवसर पर मध्य प्रदेश के मत्स्यपालन और जल संसाधन मंत्री तुलसी राम सिलावट, मध्य प्रदेश के मत्स्य कल्याण बोर्ड के अध्यक्ष सीताराम बाथम, अरुणाचल प्रदेश के कृषि, बागबानी, पशुपालन और पशु चिकित्सा डेरी विकास मत्स्यपालन मंत्री तागे ताकी, इंदौर से सांसद शंकर लालवानी, मत्स्यपालन विभाग के सचिव डा. अभिलक्ष लिखी, मत्स्यपालन विभाग में संयुक्त सचिव सागर मेहरा, डीडीजी, आईसीएआर, डा. जेके जेना और राष्ट्रीय मत्स्य विकास बोर्ड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी डा. एलएन मूर्ति और विभिन्न राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के वरिष्ठ अधिकारी भी उपस्थित थे.

अपने संबोधन में तुलसी राम सिलावट ने सभी प्रतिनिधियों का स्वागत किया और मध्य प्रदेश मत्स्यपालन विभाग को पीएमएमएसवाई की तीसरी वर्षगांठ के महत्वपूर्ण कार्यक्रम की मेजबानी करने का अवसर देने के लिए आभार व्यक्त किया. उन्होंने देश के और मध्य प्रदेश के मछुआरा समुदाय के योगदान की सराहना की और इस बात पर जोर दिया कि मछुआरा समुदाय का विकास जरूरी है और नेतृत्व उन की प्रगति के लिए समर्पित है.

उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि मध्य प्रदेश ने पीएमएमएसवाई कार्यान्वयन के इन 3 वर्षों के दौरान प्रगति की है और मछुआरों और मछली किसानों को केसीसी सुविधा से संतृप्त किया है.

डा. अभिलक्ष लिखी ने सभी गणमान्य व्यक्तियों, मछुआरों, प्रतिभागियों का स्वागत किया, जो स्‍वयं और वर्चुअली शामिल हुए. उन्होंने मछली उत्पादन, निर्यात और झींगा उत्पादन क्षेत्र की उपलब्धियों और देशभर के सभी क्षेत्रों में योजनाओं को बढ़ावा देने के लिए किए जा रहे प्रयासों पर प्रकाश डाला.

उन्होंने यह भी बताया कि मत्स्यपालन विभाग पीएमएमएसवाई के अंतर्गत आजीविका के वैकल्पिक स्रोतों के रूप में समुद्री शैवाल की खेती, सजावटी मत्स्यपालन, मोती की खेती, गुणवत्ता वाले बीज उपलब्ध कराने के लिए अनुसंधान एवं विकास को मजबूत करने, प्रजातियों के विविधीकरण, युवाओं की भागीदारी, स्टार्टअप, एफएफपीओ जैसी गतिविधियों को बढ़ावा देने पर ध्यान केंद्रित कर रहा है.

उन्होंने राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों से जमीनी जानकारी हासिल करने के लिए पहुंच और विस्तार सेवाओं को बढ़ाने पर जोर दिया और उम्मीद जताई कि राज्य और केंद्र मत्स्य संपदा जागृति अभियान को सफल बनाने में सहयोग करना जारी रखेंगे.

एकीकृत एक्वा पार्क

तागे ताकी ने सभी गणमान्य व्यक्तियों का स्वागत किया. उन्होंने यह सुनिश्चित करने के लिए प्रधानमंत्री और यूनियन बैंक का आभार व्यक्त किया कि महिला सशक्तीकरण और युवाओं की भागीदारी के लिए पीएमएमएसवाई योजना का लाभ सीमावर्ती गांवों तक पहुंच रहा है. एकीकृत एक्वा पार्क की स्थापना का काम चल रहा है और मार्च, 2024 तक इस के चालू होने की उम्मीद है.

सागर मेहरा ने सभी प्रतिनिधियों और प्रतिभागियों का स्वागत किया. उन्होंने सभी प्रयासों में उन के मार्गदर्शन और समर्थन के लिए केंद्रीय मंत्री परषोत्तम रूपाला और राज्य मंत्री को धन्यवाद दिया. साथ ही, उन्होंने भारत सरकार की विभिन्न पहलों और योजनाओं अर्थात नीली क्रांति योजना, मत्स्यपालन अवसंरचना विकास निधि (एफआईडीएफ) और प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (पीएमएमएसवाई) के परिणामस्वरूप मत्स्यपालन क्षेत्र की उपलब्धियों और प्रगति पर प्रकाश डाला, जिस से उत्पादन और उत्पादकता में वृद्धि हुई है और प्रौद्योगिकी में जान डाल दी गई है व बुनियादी ढांचे का आधुनिकीकरण हुआ है.

इस कार्यक्रम में कुल 35 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों ने भाग लिया, जिस में 239 परियोजना लाभार्थियों, मत्स्यपालन सहकारी समितियों, सागर मित्रों, आईसीएआर संस्थानों, राज्य मत्स्यपालन संस्थानों और विश्वविद्यालयों, कृषि विज्ञान केंद्रों, राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के अधिकारियों, डीओएफ (भारत सरकार), एनएफडीबी के अधिकारियों आदि की भागीदारी रही. तकरीबन 75,000 प्रतिभागी उपस्थित थे, जिन में 1,000 प्रतिभागी कार्यक्रम के दौरान स्‍वयं उपस्थित थे. डिजिटल और आउटडोर मीडिया अभियानों के माध्यम से 3 लाख लोगों तक पहुंच भी हासिल की गई.

लाभार्थियों ने सफलता की कहानियों को बताया

लाभार्थियों ने अपनी सफलता की कहानियों के बारे में बात की, मिजोरम के एफ. लालडिंगलियाना, जब प्रति वर्ष केवल 30,000 रुपए कमाते थे, उन्‍होंने जलीय कृषि की ओर रुख किया और अब 19 तालाबों के साथ अपनी 2 हेक्टेयर भूमि पर मछलीपालन करते हैं, गोवा में जैश फार्म्स ने आरएएस में कदम रखा और उच्च गुणवत्ता वाली मछली और बीज के लगातार उत्पादन, रोजगार सृजन, स्थानीय और क्षेत्रीय बाजारों में योगदान, क्षेत्र विस्तार और उत्पादकता वृद्धि के साथ बायोफ्लौक मछलीपालन से उन्‍हें 50 लाख रुपए की शुद्ध आय हुई. तमिलनाडु की आर. मुरुगेश्वरी समुद्री शैवाल की खेती करती हैं और पीएमएमएसवाई के अंतर्गत उन्‍हें मिलने वाली सब्सिडी ने उन्हें राफ्ट के रखरखाव, सावधानीपूर्वक जाल की सफाई और स्वच्छ समुद्री शैवाल प्रसंस्करण के लिए सौर ऊर्जा से सुखाने की तकनीक शुरू करने के लिए पैसे देने में मदद की, जिस से उन की वार्षिक आमदनी प्रभावशाली रूप से बढ़ कर प्रति वर्ष 108,000 रुपए हो गई और पारिवार की आय में 40 फीसदी की वृद्धि हुई.

राजस्थान के उद्यमी विनोद कुमार ने मोती की खेती में कदम रखा, आवश्यक ज्ञान प्राप्त किया, मत्स्यपालन विभाग, राजस्थान से मार्गदर्शन लिया और मोती की खेती के लिए तालाबों का निर्माण किया, जिस से उन का वार्षिक कारोबार 39 लाख रुपए तक पहुंच गया.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में कार्यप्रणाली में कुशलतापूर्वक किए गए बहुआयामी सुधारों से भारत का मत्स्यपालन क्षेत्र प्रगति के पथ पर है. प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (पीएमएमएसवाई) भारत सरकार के मत्स्यपालन विभाग, मत्स्यपालन, पशुपालन और डेरी मंत्रालय की प्रमुख योजना है और इसे प्रधानमंत्री ने 10 सितंबर, 2020 को शुरू किया था. इस का उद्देश्य विभिन्न योजनाओं और पहलों के समेकित प्रयासों के माध्यम से ‘सनराइज’ मत्स्यपालन क्षेत्र को गति देना है.

किसानों के विकास के लिए कृषक संगोष्ठी

झाबुआ : खेती के क्षेत्र में किसान समुदाय की आत्मनिर्भरता को बढ़ाने और आय वृद्धि के लिए ग्रामीण विकास विभाग, आजीविका मिशन नाबार्ड, कृषि, उद्यानिकी, पशुपालन, मत्स्यपालन, बैंकर्स, मनरेगा, कृषि विज्ञान केंद्र जैसे ग्रामीण अर्थव्यवस्था से संबद्ध क्षेत्रकों के अधिकारियों की विगत समय से जिला कलक्टर तन्वी हुड्डा द्वारा नियमित रूप से साप्ताहिक समीक्षा बैठक आयोजित की जा रही है.

जिला कलक्टर द्वारा विगत बैठक में ग्रामीण सरोकारों से संबंधित समस्त विभागों को समस्त विकासखंडों में किसानों और गांव वालों की संगोष्ठियां आयोजित करने के निर्देश दिए गए.

कृषिगत क्षेत्रकों के टिकाऊ और समन्वित विकास के लिए किए जा रहे सतत प्रयासों की कड़ी में रानापुर और रामा विकासखंडों में कृषक संगोष्ठियां आयोजित हुईं.

रामा और रानापुर विकासखंड जिले की भौगोलिक और कृषि जलवायवीय परिस्थितियों में अपना विशिष्ट स्थान रखते हैं. यहां पर्यावरण संरक्षणीय खेतीकिसानी के लिए पर्याप्त अवसर सुलभ है. क्षेत्र के किसानों में प्रकृति के प्रति निकटता और इस के संवर्धन का भाव भी जीवंत है.

जनपद अध्यक्ष निर्मला भानू भूरिया ने बड़ी संख्या में कृषक संगोष्ठी में सहभागिता करने वाले महिलापुरुष किसानों को संबोधित करते हुऐ व्यक्त किया.

जिले के उपसंचालक कृषि एनएस रावत ने किसानों को संबोधित करते हुए कहा कि अंचल में फसलों की विभिन्नता और विविधता भी सदियों से विद्यमान है. किसान समुदाय में खेतीकिसानी की बारीक समझ का पारंपरिक बौद्धिक ज्ञान भी है.

बदलते हुए आर्थिक व सामाजिक परिवेश में आवश्यकता इस बात की है कि किसान परंपरागत उन्नत ज्ञान के साथसाथ किसानी के एक से अधिक उद्यमों से एकीकृत स्वरूप में जुड़ कर अपनी आय में वृद्धि की ओर लगातार अग्रसर हो किसानों को फसलों की जलवायु सहिष्णु नवीनतम किस्मों का चयन करना चाहिए, मिलेट्स फसलों और प्राकृतिक उपज की बढ़ती हुई मांग को ध्यान में रखते हुए जिले के किसानों को अपनी खेती की योजना में समुचित परिवर्तन करने की आवश्यकता है.

पशुपालन विभाग के उपसंचालक डा. विल्सन डावर ने खेतीकिसानी में पशुपालन, बकरीपालन, मुरगीपालन की महत्ता को समझाते हुए कहा कि क्षेत्र में पशुपालन खेती का अभिन्न अंग रहा है और हमें इस व्यवस्था को सूझबूझ से आगे बढाने के लिए प्रतिबद्ध होना चाहिए.

उन्नत पशुपालन की वैज्ञानिक बारीकियों से किसानों को अवगत कराते हुए शासन द्वारा पशुओं की आकस्मिक बीमारी की स्थिति में पशु एंबुलेंस सुविधा के बारे में विस्तार से बताया. पशुओं के अकस्मात बीमार होने की स्थिति में 1962 निःशुल्क फोन नंबर पर सूचना देने की सुविधा का लाभ लेने का आग्रह किया.

बड़ी संख्या में उपस्थित महिलापुरुष किसानों को जिले के प्राकृतिक खेती मास्टर ट्रेनर गोपाल मुलेवा ने प्राकृतिक खेती के विभिन्न पहलुओं के बारे में किसानों को व्यावहारिक समझाइश दी गई.

मुलेवा ने खरीफ की फसलों के प्रबंधन के साथसाथ रबी मौसम की कार्ययोजना बनाए जाने के लिए तकनीकी बारीकियों से किसानों को परिचित कराया.

ब्लौक टैक्नोलौजी मैनेजर संतोष पाटीदार ने प्राकृतिक खेती अपनाने के लिए प्रारंभ से लगा कर संपूर्ण पद्धति के विभिन्न चरणों के बारे में विस्तार से किसानों को समझाइश देते हुए व्यावहारिक बोध कराया.

गोष्ठी के दौरान महिला किसान कमला इंदर, संगीता खराडी और पुरुष किसान झितरा सोमला, कमेश डामोर, कमलेश अमरसिंह ने अपने खेतों पर अपनाई जा रही मिलेट फसलों के साथसाथ प्राकृतिक खेती के लाभ और उत्साहजनक परिणामों के अनुभव किसानों के साथ साझा किए.

उद्यानिकी विभाग के डीएस बामनीया और चौबे ने अंचल में उगाई जा रही सब्जी, फल, फसलों के साथसाथ हलदी,अदरक, धनिया, मिर्च जैसी मसाला फसलें, ब्राह्मी, एलोवेरा, लेमनग्रास जैसी सुगंधित और औषधीय फसलों की खेती के बारे में किसानों को जानकारी दी गई.

आजीविका मिशन के संजय सोलंकी ने महिला किसानों और समूहों के माध्यम से संचालित गतिविधियों और उन के उत्तरोत्तर उन्नयन के बारे में प्रेरणादायी उद्बोधन देते हुए उत्पादन के साथसाथ मूल्य संवर्धन और बेहतर दाम पर विपणन व्यवस्था बनाए जाने पर जोर दिया.

रामा विकासखंड के वरिष्ठ कृषि विकास अधिकारी ज्वाला सिंगार द्वारा क्षेत्र के किसानों द्वारा अपनाई जा रही प्राकृतिक खेती और मिलेट फसलों की काश्त के बारे में विस्तार से अवगत कराते हुए प्रयासों और भावी योजना की जानकारी दी गई.

कार्यक्रम का संचालन गोपाल मुलेवा तकनीकी सहायक द्वारा किया गया. किसानों की जिज्ञासाओं का समाधान करते हुए सहायक संचालक कृषि एसएस रावत, उपपरियोजना संचालक आत्मा एमएस धार्वे ने मिलेट्स की खेती आधारित कृषक परिचर्चा की संयुक्त रूप से सूत्रधारिता की.

कृषक संगोष्ठी के अंतिम चरण में वरिष्ठ कृषि विकास अधिकारी, रानापुर, अमरसिंह खपेड ने आभार प्रकट किया. किसान संगोष्ठी में रामा रानापुर विकासखंडों का समस्त कृषि विभागीय अमले द्वारा कार्यक्रम आयोजन में सक्रिय सहभागिता की गई.

302.8 लाख रुपए की धनराशि का अनुदान

वाराणसी : केंद्रीय मत्स्यपालन, पशुपालन और डेरी मंत्री परषोत्तम रूपाला वाराणसी में संत रविदास घाट पर राज्यमीन चिताला की एक लाख मत्स्य बीज रिवर रैंचिंग कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में शामिल हुए.

इस कार्यक्रम की अध्यक्षता उत्तर प्रदेश सरकार के कैबिनेट मंत्री, मत्स्य विभाग, डा. संजय कुमार निषाद ने की. कार्यक्रम में उत्तर प्रदेश सरकार के राज्य मंत्री स्टांप न्यायालय शुल्क एवं पंजीयन, महापौर, नगरनिगम, वाराणसी, अशोक कुमार तिवारी, वीरू साहनी, सभापति, उत्तर प्रदेश मत्स्य जीवी सहकारी समिति, विधायक कैंट, सौरभ श्रीवास्तव, मुख्य विकास अधिकारी, वाराणसी, हिमांशु नागपाल भी उपस्थित रहे.

सीआरपीएफ एवं एनडीआरएफ के अधिकारी एवं जवानों द्वारा भी कार्यक्रम में हिस्सा लिया गया.

कार्यक्रम में केंद्रीय मत्स्यपालन, पशुपालन और डेरी मंत्री परषोत्तम रूपाला द्वारा प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना के अंतर्गत 10 लाभार्थियों को 302.8 लाख रुपए की धनराशि का अनुदान मिला, वहीं मुख्यमंत्री मत्स्य संपदा योजना के अंतर्गत 10 लाभार्थियों को 12.32 लाख रुपए की धनराशि का अनुदान दिया गया. इतना ही नहीं, कृषि क्रेडिट कार्ड के 10 लाभर्थियों को 18.1 लाख रुपए की धनराशि के ऋण का वितरण किया एवं 10 मछुआ दुर्घटना बीमा योजना के लाभार्थियों को भी पत्रक वितरित किया गया.

कार्यक्रम के प्रारंभ में निदेशक मत्स्य, प्रशांत शर्मा ने सभी अतिथियों का स्वागत करते हुए कार्यक्रम की रूपरेखा के बारे में विस्तार से अवगत करवाया. कार्यक्रम में विभागीय गतिविधियों का वीडियो द्वारा भी प्रदर्शन किया गया एवं कार्यक्रम में प्रदर्शनी का भी आयोजन हुआ, जिस में मत्स्य विभाग के साथसाथ अन्य संस्थाओं के द्वारा अपनीअपनी सेवाओं एवं उत्पादों का भी प्रदर्शन किया.

कार्यक्रम में वाराणसी मंडल के अतिरिक्त मंडल प्रयागराज, मिर्जापुर एवं आजमगढ़ के लगभग 1,000 मत्स्यपालकों द्वारा प्रतिभाग किया गया. कार्यक्रम का संचालन संयुक्त निदेशक, लखनऊ, उत्तर प्रदेश, एनएस रहमानी द्वारा किया गया.