किसानों को रोजगार

नई दिल्ली: पैट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने संसद में कहा कि असम राज्य देश में कुल कच्चे तेल के उत्पादन में लगभग 14 फीसदी और कुल प्राकृतिक गैस उत्पादन में लगभग 10 फीसदी का योगदान देता है. असम से पैट्रोलियम और प्राकृतिक गैस के उत्पादन और आयात निर्भरता को कम करने के लिए सरकार द्वारा उठाए गए कदमों से संबंधित प्रश्न का उत्तर देते हुए उन्होंने कहा कि एशिया में पहली रिफाइनरी वर्ष 1889 में डिगबोई में कच्चे तेल के वाणिज्यिक पैमाने पर उत्पादन के बाद वर्ष 1901 में डिगबोई (असम) में स्थापित की गई थी.

उन्होंने सदन को बताया कि पिछले 4 वित्तीय वर्षों अर्थात 2019-20 से 2022-23 के दौरान राज्य सरकार को कच्चे तेल के लिए 9,291 करोड़ रुपए और गैस उत्पादन के लिए 851 करोड़ रुपए की रौयल्टी का भुगतान किया गया है.

उन्होंने विशेष रूप से नुमालीगढ़ रिफाइनरी विस्तार परियोजना, पूर्वोत्तर गैस ग्रिड, पारादीपनुमालीगढ़ कच्चे तेल की पाइपलाइन और एनआरएल बायोरिफाइनरी सहित पूर्वोत्तर क्षेत्र में 44,000 करोड़ रुपए की प्रमुख परियोजनाओं का उल्लेख किया. नुमालीगढ़ में 185 केएलपीडी क्षमता की 2जी रिफाइनरी बांस से इथेनाल का उत्पादन करेगी और स्थानीय किसानों के लिए रोजगार के बड़े अवसर सृजित करेगी.

उन्होंने सदन को यह भी बताया कि सभी पूर्वोत्तर राज्यों को शहरी गैस वितरण नैटवर्क के अंतर्गत शामिल किया जा रहा है, जिस से आम जनता को सस्ता और स्वच्छ खाना पकाने व वाहन के लिए ईंधन उपलब्ध कराया जा सके.

पैट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने सदन को बताया कि सरकार ने अनन्य आर्थिक क्षेत्र (ईईजेड) में ‘‘नो गो‘‘ क्षेत्रों को लगभग 99 फीसदी तक कम कर दिया है, जिस के चलते तकरीबन 1 मिलियन वर्ग किलोमीटर अब अन्वेषण और उत्पादन गतिविधियों के लिए मुक्त है.

सरकार द्वारा किए गए अन्य उपायों में नवीनतम प्रौद्योगिकियों का उपयोग करना, रुग्ण और पुराने कुओं का प्रतिस्थापन और पुनरुद्धार आदि शामिल हैं. सरकार पूंजीगत व्यय कर रही है और आने वाले वर्षों में उत्पादन बढ़ाने के लिए 61,000 करोड़ रुपए का लक्ष्य निर्धारित है.

उन्होंने ई एंड पी क्षेत्र में विदेशी निवेश को आकर्षित करने के लिए उठाए गए परिवर्तनकारी कदमों का भी उल्लेख किया और कहा कि राष्ट्रीय तेल कंपनियों (ओएनजीसी और ओआईएल) ने सहयोग के लिए अंतर्राष्ट्रीय तेल कंपनियों के साथ समझौते किया है.

मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने नियत तिथि से पहले इथेनाल सम्मिश्रण लक्ष्यों को प्राप्त करने में सफलता पर प्रकाश डाला (वर्ष 2014 में 1.53 फीसदी से 2023 में 12 फीसदी तक) और कहा कि देश अब फ्लैक्स ईंधन इंजन वाहनों के लिए आगे बढ़ रहा है. ई20 (20 फीसदी इथेनाल मिश्रित ईंधन) पहले से ही 6,000 से अधिक खुदरा दुकानों पर उपलब्ध है और वर्ष 2025 तक पूरे देश में उपलब्ध होगा.

उन्होंने सीबीजी, ग्रीन हाइड्रोजन और इलैक्ट्रिक वाहनों जैसे वैकल्पिक स्रोतों को बढ़ावा देने के लिए सरकार द्वारा उठाए गए कदमों का भी उल्लेख किया. साथ ही, उन्होंने बताया कि हाल ही में असम के शिवसागर में 483 करोड़ रुपए की कुल लागत से सूई-का-फा मल्टीस्पैशिलिटी (350 बिस्तर) अस्पताल का उद्घाटन करने का भी उल्लेख किया, जिस का खर्च ओएनजीसी ने अपनी सीएसआर गतिविधियों के अंतर्गत किया है, जो ऊपरी असम और अन्य राज्यों के पड़ोसी जिलों की आवश्यकताओं को पूरा करेगा.

हाथियों में रक्तस्रावी रोग बन रहा घातक

नई दिल्ली: भारत में संरक्षित क्षेत्र के साथसाथ मुक्त वन क्षेत्र में देखे गए इस रक्तस्रावी रोग के कारण हाथी के बछड़ों (एलिफैंट काव्स) की बढ़ती मौत काफी चिंता की वजह है.

एशियाई हाथी हमारे देश के राष्ट्रीय सांस्कृतिक विरासत वाले जंतु हैं और विश्व के कुल हाथियों की आबादी का 55 फीसदी हिस्सा हैं.

ईईएचवी-एचडी रोग के बढ़ते प्रकोप के कारण यह आबादी घट रही है. इसलिए उन्हें इस घातक बीमारी से बचाना जरूरी है. वन क्षेत्र और संरक्षित क्षेत्र में इस रोग की स्थिति की पुष्टि के लिए और अधिक गहन जांच की आवश्यकता है.

विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) से संबद्ध संस्थान, विज्ञान और इंजीनियरिंग अनुसंधान बोर्ड (एसईआरबी) द्वारा समर्थित भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद-भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान (आईसीएआर-आईवीआरआई), इज्जतनगर, बरेली द्वारा किए गए एक अध्ययन में भारत में एशियाई हाथियों की आबादी के बीच संचारित हो रहे ईईएचवी और इस के दूसरे प्रकारों की सटीक स्थिति का पता लगाया गया है.

जर्नल माइक्रोबियल पैथोजेनेसिस में प्रकाशित एक शोध में भारतीय हाथियों की आबादी में फैल रहे इस वायरस के जीनोम की विशेषता बताई गई और इस रोग से जुड़ी एंडोथेलियल कोशिकाओं की शिथिलता के आणविक तंत्र का भी पता लगाया गया.

इस काम के आधार पर अब नैदानिक (डायग्नोस्टिक) किट (पेन साइड) और टीके विकसित करने की सुविधा के लिए काम शुरू किया गया है. इस परियोजना के शोध से एकत्रित जानकारी से एक ऐसी मानक संचलन प्रक्रिया (एसओपी) तैयार करने में सहायता मिली है, जिस से महावतों और हाथी संरक्षणवादियों के बीच बीमारी की जानकारी का प्रबंधन किया जा सकता है.

प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना में ढेरों लाभ

नई दिल्ली: मत्स्यपालन विभाग, मत्स्यपालन, पशुपालन और डेरी मंत्रालय 5 वर्षों के लिए सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में 20050 करोड़ रुपए के निवेश के साथ प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (पीएमएमएसवाई) नाम की एक प्रमुख योजना लागू कर रहा है. देश में मत्स्यपालन क्षेत्र के समग्र विकास के लिए यह योजना वित्तीय वर्ष 2020-21 से वित्तीय वर्ष 2024-25 तक प्रभावी रहेगी. इस योजना के तहत पिछले 3 वित्तीय वर्षों (वित्त वर्ष 2020-21 से 2022-23) और चालू वित्तीय वर्ष (2023-24) के दौरान विभिन्न राज्य सरकारों, केंद्र शासित प्रदेशों और अन्य कार्यान्वयन एजेंसियों की मत्स्यपालन विकास परियोजनाएं देश में मछलीपालन और जलीय कृषि क्षेत्र के समग्र विकास के लिए 17118.62 करोड़ रुपए मंजूर किए गए हैं.

प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (पीएमएमएसवाई) मछली उत्पादन और उत्पादकता, गुणवत्ता, प्रौद्योगिकी, फसल के बाद की अवसंरचना एवं प्रबंधन और मूल्य श्रृंखला के आधुनिकीकरण और मजबूती, पता लगाने की क्षमता और गुणवत्ता सुधार में महत्वपूर्ण अंतराल को पाटने के लिए डिजाइन की गई है और इसे कार्यान्वित किया गया है.

मत्स्यपालन मूल्य श्रृंखला को आधुनिक और मजबूत करने के लिए पीएमएमएसवाई फसल कटाई के बाद की अवसंरचना जैसे मछली पकड़ने के बंदरगाह व मछली लैंडिंग केंद्र, कोल्ड स्टोरेज और बर्फ संयंत्र, रेफ्रिजरेटेड और इंसुलेटेड वाहनों सहित मछली परिवहन वाहनों, बर्फ तोड़ने और बर्फ कुचलने वाली इकाइयों, बर्फ व मछली होल्डिंग बक्सों के निर्माण, मोटरसाइकिल, साइकिल और आटोरिकशा, मूल्य संवर्धन उद्यम इकाइयों के साथसाथ सुपरमार्केट, खुदरा मछली बाजार और आउटलेट, मोबाइल मछली और जीवित मछली बाजारों सहित आधुनिक स्वच्छ बाजारों का समर्थन करती है. पिछले 3 वित्तीय वर्षों (वित्तीय वर्ष 2020-21 से 2022-23) और चालू वित्तीय वर्ष (2023-24) के दौरान उपरोक्त गतिविधियों के लिए अब तक पीएमएमएसवाई निवेश के अंतर्गत 4005.96 करोड़ रुपए स्वीकृत किए गए हैं.

पीएमएमएसवाई एक मजबूत मत्स्य प्रबंधन ढांचे की स्थापना की व्यवस्था करती है और मत्स्य प्रबंधन योजनाओं के निर्माण और कार्यान्वयन के लिए राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों को आवश्यकता आधारित सहायता प्रदान करती है. इस के अतिरिक्त पीएमएमएसवाई जलीय कृषि, समुद्री कृषि और फसल कटाई के बाद के प्रबंधन और मत्स्यपालन में विभिन्न आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा देती है, जिस का उद्देश्य आय बढ़ाना और मछुआरों और मत्स्यपालन क्षेत्र से जुड़े अन्य हितधारकों की सामाजिक व आर्थिक स्थिति में सुधार करना है.

पीएमएमएसवाई के अंतर्गत मछली पकड़ने पर प्रतिबंध की अवधि के दौरान पारंपरिक और सामाजिक व आर्थिक रूप से पिछड़े, पात्र सक्रिय समुद्री और अंतर्देशीय मछुआरा परिवारों के लिए आजीविका और पोषण संबंधी सहायता के लिए सालाना 60 लाख वित्तीय सहायता प्रदान की जा रही है, जबकि पीएमएमएसवाई 3320 लाख मछुआरों के बीमा कवरेज का समर्थन करती है और मछली पकड़ने के जहाजों के लिए ब्याज सहायता योजना का भी समर्थन करती है.

इस के अतिरिक्त पीएमएमएसवाई के तहत जलीय कृषि प्रणाली, मैरीकल्चर और पोस्टहार्वेस्ट मैनेजमेंट गतिविधियों को प्रोत्साहित करने के लिए अंतर्देशीय जलीय कृषि के लिए 20823.40 हेक्टेयर तालाब क्षेत्र, 3942 बायोफ्लौक इकाइयां, 11927 पुनःसंचार जलीय कृषि प्रणाली (आरएएस), जलाशयों में 44,408 जलाशय पिंजरे और 543.7 हेक्टेयर पेन, समुद्री शैवाल राफ्ट और मोनोलाइन इकाइयों की 1,11,110 इकाइयां, 1489 बाईवाल्व खेती इकाइयां, 562 कोल्ड स्टोरेज, 6542 मछली भंडारण इकाइयों को मंजूरी दी गई है.

कृषि प्रौद्योगिकी में भारत का खास प्रदर्शन

नई दिल्ली: 6 दिसंबर 2023. केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर व सूरीनाम के विदेश मामले, अंतर्राष्ट्रीय व्यापार और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग मंत्री अल्बर्ट आर. रामदीन के बीच पिछले दिनों कृषि भवन, नई दिल्ली में बैठक हुई. बैठक में मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि भारत ड्रोन और एग्रीस्टैक जैसी कृषि प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में अच्छा प्रदर्शन कर रहा है और हमें सूरीनाम के साथ अपनी विशेषज्ञता साझा करने में खुशी होगी.

उन्होंने सूरीनाम के मंत्री अल्बर्ट आर. रामदीन व उन के साथ आए प्रतिनिधिमंडल का गर्मजोशी से स्वागत करते हुए इस बात पर प्रसन्नता जताई कि कृषि व संबद्ध क्षेत्रों पर संयुक्त कार्य समूह की बैठक 15 नवंबर, 2023 को आयोजित की गई. यह देखना उत्साहजनक है कि हम वर्ष 2023 से 2027 की अवधि के लिए कार्ययोजना के कार्यान्वयन के साथ आगे बढ़ रहे हैं.

मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि भारत की जी20 अध्यक्षता के दौरान शुरू किए “खाद्य सुरक्षा और पोषण के लिए डेक्कन उच्चस्तरीय सिद्धांत” और “मिलेटस (श्रीअन्न) और अन्य प्राचीन अनाज अंतर्राष्ट्रीय अनुसंधान पहल (महर्षि)” जैसे प्रयास खाद्य असुरक्षा, भूख और कुपोषण से संबंधित चुनौतियों का समाधान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे.

उन्होंने सूरीनाम को महर्षि, जिस का सचिवालय भारतीय मिलेट अनुसंधान संस्थान, हैदराबाद में स्थित है, का हिस्सा बनने के लिए आमंत्रित करते हुए कहा कि भारत सूरीनाम दुनिया में मिलेट्स (श्रीअन्न) को लोकप्रिय बनाने के लिए मिल कर काम कर सकते हैं.

उन्होंने प्रसन्नता व्यक्त की कि भारतसूरीनाम द्विपक्षीय संबंध विकास की साझा आकांक्षाओं पर आधारित हैं और हमारे बीच एमओयू और लगातार उच्चस्तरीय बातचीत होती है. उन्होंने श्रीअन्न की खेती और आयुर्वेद के क्षेत्र में सूरीनाम के प्रयासों की सराहना की.

मंत्री अल्बर्ट आर. रामदीन ने कहा कि यह बैठक दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय संबंधों को और मजबूत करने का मार्ग प्रशस्त करेगी. उन्होंने इस पर जोर दिया कि खाद्य व ऊर्जा सुरक्षा के मुद्दे निकट भविष्य में प्रमुख चिंता के रूप में उभरेंगे, दोनों देशों के पास इन क्षेत्रों में सहयोग करने की पर्याप्त गुंजाइश है.

सूरीनाम ने मिलेट्स की खेती के लिए परियोजना शुरू की गई है और महर्षि पहल का हिस्सा बनने में रुचि जताई. उन्होंने कहा कि दोनों देश प्रशिक्षण और अध्ययन दौरों, तकनीकी सहायता, जलवायु परिवर्तन से संबंधित क्षेत्रों में ज्ञान साझा करने, जर्मप्लाज्म विनिमय व खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित कर सकते हैं. सूरीनाम आयुर्वेद स्वास्थ्य केंद्र भी स्थापित कर रहा है और औषधीय पौधे उगाने में भारत के सहयोग की आशा की.

रबी की सब्जियों में जैविक (बिना रसायन) कीट प्रबंधन

रबी की सब्जियों में मुख्य रूप से गोभीवर्गीय में फूलगोभी, पत्तागोभी, गांठगोभी, सोलेनेसीवर्गीय में  टमाटर, बैगन, मिर्च, आलू, पत्तावर्गीय में धनिया, मेथी, सोया, पालक, जड़वर्गीय में मूली, गाजर, शलजम, चुकंदर एवं मसाला में लहसुन, प्याज आदि की खेती की जाती है.

इन सब्जियों में हानिकारक कीटों का प्रकोप फसल की ठीक से देखभाल न करने से होती है. आज सब्जियों में अंधाधुंध कीटनाशकों का प्रयोग सब्जी उत्पादक कर रहे हैं. किसीकिसी सब्जी की फसल पर 7-12 बार कीटनाशी का छिड़काव करते पाया गया है. सब्जी फसलों में कीटनाशक रसायनों का प्रयोग इन के कुल उपयोग का 13-14 फीसदी (तकरीबन 0.678 ग्राम सक्रिय तत्व प्रति हेक्टेयर) है.

ऐसे में जरूरत से अधिक रसायनों का प्रयोग सेहत के लिए हानिकारक साबित हो रहा है. बिना कीटनाशकों के भी कृषि क्रियाएं ए्वं जैविक विधि से कीटों का प्रबंधन किया जा सकता है. इस के लिए कीटों के प्रकोप की पहचान, प्रबंधन की समुचित विधियों की जानकारी होना आवश्यक है.

गोभीवर्गीय सब्जियों में कीट एवं प्रबंधन:
माहू:
यह कीट गोभी के पत्तों पर हजारों की संख्या में चिपके रहते हैं. यह हलके पीले रंग के होते हैं. व्यस्क कीट पंखदार एवं पंखरहित दोनों प्रकार के पाए जाते हैं. यह हमेशा चूर्णी मोम से ढके रहते हैं, जो इन के हरे रंग को छिपाए रखती है.

इस कीट के शिशु व प्रौढ़ दोनों ही रस चूस कर पौधों को नुकसान पहुंचाते हैं. माहू अपने शरीर से श्राव करते हैं, जिस से फफूंद का संक्रमण होता है. इस वजह से गोभी खाने व बिकने योग्य नहीं रहती है. इस कीट का प्रवेश नवंबर से हो कर अप्रैल माह तक सक्रिय रहता है.

प्रबंधन:
– नीम की गिरी 40 ग्राम महीन कर के प्रति लिटर पानी में घोल कर चिपकने वाले पदार्थ के साथ मिला कर छिड़काव करें.
– लेडी बर्ड भृंग परभक्षी कीट के 30 भृंग प्रति वर्गमीटर के प्रयोग से इस कीट का नियंत्रण सफलतापूर्वक किया जा सकता है.
– पीला स्टिकी ट्रैप प्रति एकड़ में 10 लगाएं.

हीरक पृष्ठ:
इस कीट का रंग धूसर होता है. जब यह बैठता है, तो इस की पीठ पर 3 हीरे की तरह चमकीले चिन्ह दिखाई देते हैं, इसलिए इस को हीरक पृष्ठ कीट के नाम से जाना जाता है. सूंड़ी का रंग पीलापन लिए हुए होता है. इस कीट का प्रकोप सब से ज्यादा पत्तागोभी की फसल पर होता है. सूंड़ियां पत्तियों की निचली सतह को खाती हैं और छोटेछोटे छेद बना देते हैं. ज्यादा प्रकोप की दशा में पत्तियां बिलकुल खत्म हो जाती हैं.

प्रबंधन:

– जहां पर इस कीट के प्रकोप की संभावना ज्यादा होती है, वहां अगेती व पछेती रोपण से बचना चाहिए.

– हर 25 लाइन गोभी के दोनों तरफ 2 लाइनें सरसों की बोआई करनी चाहिए. इस में पहली लाइन गोभी की रोपाई के 15 दिन पहले और दूसरी लाइन रोपाई के 15 दिन बाद करें, जिस से इस का मादा कीट आकर्षित हो कर सरसों पर अंडा देते हैं और नीम गिरी का निचोड़ 40 ग्राम प्रति लिटर में घोल कर छिड़काव करने से कीट का प्रकोप कम हो जाता है.

– जैव कीटनाशी बीटी यानी बेसिलस थुरिजिसिंस 500 ग्राम प्रति 500 लिटर पानी में घोल कर प्रति हेक्टेयर में छिड़काव करें. आवश्यकता होने पर 10 दिन के अंतराल पर पुनः छिड़काव करें.

तंबाकू की सूड़ी:

व्यस्क मादा कीट पत्तियों की निचली सतह पर झुंड में अंडे देती हंै, 4 से 5 दिनों के बाद अंडों से सूंड़ी निकलती है और पत्तियों को खाती है. सितंबर से नवंबर माह तक इस का प्रकोप अधिक होता है.

प्रबंधन:
– पत्तियों के निचले हिस्से को झुंड में दिए गए अंडों को पत्तियों सहित तोड़ कर नष्ट कर दें.
– फैरोमौन ट्रैप 30 प्रति हेक्टेयर की दर से 30-30 मीटर की दूरी पर लगाएं.
3- एसएनपीवी 250 एलई, गुड़ 1 किलोग्राम, टीपोल 800 ग्राम, 500 लिटर में घोल कर प्रति हेक्टेयर की दर से सायंकाल छिड़काव करें.

बैगन के कीट व प्रबंधन:
Ravi Prakash Mauryaतना एवं फल बेधक कीट:
इस कीट की संूड़ियां कोमल तने में छेद कर डेड हार्ट के लक्षण पैदा कर इन्हें सुखा देती हैं. इस कीट का प्रकोप पुष्पावस्था से ले कर फलों में अधिक होता है. क्षतिग्रस्त फल खाने योग्य नहीं रहते हैं.

प्रबंधन:
– ज्रूरत से अधिक नाइट्रोजन व फास्फोरस न दें.
– बैगन के अवशेषों को नष्ट कर दें.
– सदैव कीटग्रसित तना एवं फलों को तोड़ कर नष्ट कर दें.
– नीम गिरी का प्रयोग करें.
– फैरोमौन ट्रैप 100 प्रति 10 मीटर की दूरी पर प्रति हेक्टेयर में लगाएं.

हरा फुदका:
इस के शिशु एवं प्रौढ़ दोनों ही बैगन की पत्तियों की निचली सतह से रस चूसते हैं, साथ ही साथ अपनी जहरीली लार उस में छोड़ते हैं, जिस से प्रभावित भाग पीला हो जाता है और पट्टी के किनारे से अंदर की ओर मुड़ने लगती हैं, जिस से पत्तियां कप की आकार की हो जाती हैं. धीरेधीरे पूरी पत्तियां ही पीले धब्बों से भर जाती हैं और सूख कर गिर जाती हैं.
प्रबंधन:
– नीम गिरी का छिड़काव करें.

टमाटर के कीट:
सफेद मक्खी: यह कीट टमाटर के साथसाथ बैगन, भिंडी, लोबिया, मिर्च, कद्दू आदि फसलों को नुकसान पहुंचाता है. यह कीट सफेद एवं छोटे आकार का होता है. शरीर मोम से ढका रहता है, इसलिए इसे ‘सफेद मक्खी’ के नाम से जाना जाता है. इस की मादा पत्तियों की सतह पर 125 से 150 तक अंडे देती है. इस के शिशु एवं प्रौढ़ दोनों ही पौधों की पत्तियों से रस चूसते हैं और विषाणुजनित रोग फैलाते हैं, जिस से पत्तियां सिकुड़ने लगती हैं. इस के बाद पौधों में फूल व फल नहीं लगते हैं.
प्रबंधन:
– पौधों को नायलौन जाली 40 मेश साइज के अंदर तैयार करना चाहिए, जिस से सफेद मक्खी उस के अंदर न जा सके.
– खेत के चारों तरफ मक्का, ज्वार और बाजरा लगाना चाहिए, जिस से सफेद मक्खी का प्रकोप फसल में न हो सके.
– नीम का तेल 2-3 मिलीलिटर के साथ स्टीकर आधा मिलीलिटर प्रति लिटर पानी में मिला कर सायंकाल में छिड़काव करना चाहिए.

फल बेधक कीट:
यह कीट टमाटर, पत्तागोभी ,फूलगोभी, भिंडी, लोबिया, मटर एवं सेम को नुकसान पहुंचाता है. इस कीट का प्रकोप फसल की पुष्पन एवं फली अवस्था में दिखाई देता है. इस कीट से क्षतिग्रस्त फलों में सूंड़ियों का सिर फल के अंदर धंसा एवं बाकी भाग बाहर होता है. क्षतिग्रस्त फलों में सूक्ष्मजीवों के संक्रमण के कारण फल सड़ने लगता है, जो खाने योग्य नहीं रहता है. सूंड़ी कच्चे टमाटर के फल में छेद कर के खाती है. सूंड़ी हरे रंग की होती है. इस के शरीर पर 3 धारियां पाई जाती हैं.

प्रबंधन:
– गरमी में खेत की गहरी जुताई करनी चाहिए.
– टमाटर की 25 दिनों वाली पौध की रोपाई के 16 लाइन के बाद एक लाइन गेंदे की, जो 45 दिन वाली पौध हो लगाएं. दोनों में फूल करीबकरीब एक ही समय में आते हैं. गेंदे का फूल मादा व्यस्क कीट को अंडा देने के लिए ज्यादा आकर्षित करता है.
– गेंदे की पत्तियां पत्ती सुरंगक एवं प्राकृतिक शत्रुओं को भी आकर्षित करती हैं.
– फैरोमौन ट्रैप 15 प्रति हेक्टेयर की दर से पौध से 6 इंच की ऊंचाई पर लगा कर निगरानी करें.
– ट्राईकोग्रामा अंडा परजीवी 50,000 अंडा प्रति हेक्टेयर की दर से फसल में छोड़ दें.
– फूल लगते समय एचएनपीवी 300 एलई 1 किलोग्राम गुड़़ 100 मिलीलिटर इंडोट्रान चिपकने वाला पदार्थ को 500 लिटर पानी में मिला कर प्रति हेक्टेयर की दर से सायंकाल छिड़काव करें. जरूरत समझें, तो 10 दिन बाद पुनः छिड़काव करें.

मिर्च के कीट:
थ्रिप्स:
इस का प्रौढ़ कीट लगभग एक मिलीमीटर लंबा एवं हलके पीले भूरे रंग का होता है. इस का पंख कटाफटा होता है. इस कीट के शिशु व प्रौढ़ दोनों ही कोमल पत्तियों से रस चूस कर नुकसान पहुंचाते हैं, जिस से पत्तियां सिकुड़ कर ऊपर की ओर मुड़ जाती हैं और पौधों की बढ़वार रुक जाती है.

प्रबंधन:
– पीला स्टीकी ट्रैप 30 प्रति हेक्टेयर की दर से खेत में लगाएं.

पीली माइट:
यह अष्टपदी माइट है. इस के शिशु एवं प्रौढ़ दोनों ही मिर्च की पत्ती की निचली सतह से रस चूस कर नुकसान पहुंचाते हैं, जिस में पत्तियां नीचे की ओर मुड़ कर नाव का आकार बना लेती हंै. पौधे का विकास रुक जाता है और फलने व फूलने की क्षमता प्रायः समाप्त हो जाती है.

प्रबंधन:
डायकोफाल 18.5 ईसी 3 मिलीलिटर या सल्फर 80 डब्ल्यूपी 2 ग्राम प्रति लिटर पानी में घोल कर छिड़काव करें.

प्याज व लहसुन के कीट:
थ्रिप्स:
यह कीट प्याज एवं लहसुन की पत्तियों के बीच रह कर रस चूसते हैं, जिस के कारण पत्तियांे पर सफेद या सिल्वर धब्बे बन जाते हैं और पत्तियां सूखने लगती हैं. यह कीट गरम मौसम में ज्यादा सक्रिय रहता है.

प्रबंधन:
– जेट नाजिल से पानी की बौछार करने से थ्रिप्स तेजी से नहीं बढ़ते हैं.
– नीम बिनौला का छिड़काव करें.
– पीला स्टिकी ट्रैप 30 की संख्या में प्रति हेक्टेयर में प्रयोग करें.

सब्जियों में कीटों के जैविक प्रबंधन के लिए जैविक कीटनाशक बनाने की सरल विधि निम्नानुसार है:
नीम की गिरी के 4 फीसदी घोल बनाने का तरीका:
नीम की निंबौला को अच्छी प्रकार से सुखाने के बाद उस के छिलके को बाहर निकालें और गिरी को पुनः सुखा लें. सूखी हुई गिरी को पीसने में सुविधा होती है. 40 ग्राम गिरी को बारीक पीस कर 200 मिलीलिटर पानी में 24 घंटे भिगो दें. उस के बाद महीन कपडे़ से छान कर उस में 800 मिलीलिटर और पानी मिला कर सब्जियों की फसल पर छिड़काव करने से फल बेधक, पत्ती लपेटक, सेमीलुपर, रस चूसने वाले कीट एवं माइट से बचाव किया जा सकता है.

तंबाकू का अर्क बनाने की विधि: 1 किलोग्राम तंबाकू के पाउडर को 10 लिटर पानी में आधे घंटे तक उबालें. इस समय घोल का रंग लाल कौफी की तरह हो जाता है. इस उबले हुए घोल में अतिरिक्त 10 लिटर पानी डाल कर ठंडा होने के बाद महीन कपडे़ से अच्छी तरह छान लें. छने हुए अर्क में अतिरिक्त पानी 80-100 लिटर डाल कर इस में साबुन 200 ग्राम मिला कर छिड़काव करें. तंबाकू का यह घोल पौधे से रस चूसने वाले कीट जैसे सफेद मक्खी, फुदका, माहू इत्यादि के लिए प्रभावशाली होता है. इस अर्क का छिड़काव एक बार से ज्यादा नहीं करना चाहिए, क्योंकि यह मित्र कीटों को नुकसान पहुंचाता है.

गाय के गोबर व मूत्र का अर्क बनाने की विधि: 5 किलोग्राम गोबर, 5 लिटर गोमूत्र को 5 लिटर पानी में अच्छी प्रकार मिश्रण बना कर 25 लिटर क्षमता वाले ड्रम में भर कर 4 दिनों तक रख दें. 4 दिनों के बाद मिश्रण को छान कर 100 ग्राम चूना मिला दें और इस में 100 लिटर अतिरिक्त पानी मिला कर एक एकड़ में छिड़काव कर सकते हैं. यह अर्क टमाटर, बैगन के फल छेदक के अलावा तंबाकू की सूंड़ी इत्यादि प्रौढ़ कीटों को अंडा देने से रोकता है. इस के अलावा यह अर्क कुछ बीमारियों के विरुद्ध काम करता है. पौधे स्वस्थ्य व हरेभरे रहते हैं. सब्जियों की फसल की सदैव निगरानी एवं निरीक्षण करते रहें, खेतों में साफसफाई का ध्यान रखें और कृषि क्रियाएं समयसमय पर करते रहें, तो कीटों का प्रकोप कम होगा. जब आवश्यकता पड़े, तभी जैविक कीटनाशकों का छिड़काव करें. छिड़काव से पहले तैयार सब्जियों की तुड़ाई कर लेनी चाहिए. छिड़काव के 4-5 दिन बाद ही सब्जियों का उपयोग करना चाहिए.

पीएम किसान सम्मान निधि योजना में करोडों का घोटाला, ये हैं असली जिम्मेदार

बिहार के मुजफ्फरपुर जिले में पीएम किसान सम्मान निधि योजना में करोड़ों का फर्जीवाड़ा हुआ है. देश के एक राज्य के एक जिले में कुछ लोगों ने सरकार को 18 करोड़ की चपत लगा दी, अब सोचिए कि इस तरह के फर्जीवाड़े देशभर के लैवल पर कितने होते होंगे.

ऐसे मामलों में कुछ लोगों को पकड़ कर उन से रकम की उगाही कर ली जाती है, पर फिर लीपापोती कर के ठंडे बस्ते में डाल दिया जाता है. मुजफ्फरपुर के फर्जीवाड़े में 11,600 अपात्र लोगों ने इस कांड को अंजाम दिया. नोटिस मिलने के बाद अब तक सिर्फ 22 लाख रुपया ही वापस हुआ है.

दिक्कत यह है कि आम जनता और सरकारी लोगों में भ्रष्टाचार इस कदर जड़ें जमाए हुए है कि वे तिकड़म लगा कर ऐसी करतूतों को आसानी से अंजाम दे कर सरकारी पैसा डकार जाते हैं.

बिहार के ही जहानाबाद जिले के 1,321 फर्जी किसान पीएम किसान योजना का 1.87 करोड़ रुपया डकार गए थे.

आईटीआर दाखिल करने वाले किसान भी इस योजना का लाभ उठा रहे थे. इन के अलावा, पति के साथ पत्नी व बच्चे भी किसान बन कर योजना का लाभ ले रहे थे, जबकि नियम के मुताबिक किसान परिवार में एक घर से एक ही सदस्य को इस योजना का लाभ दिया जाना है.

यह फर्जीवाड़ा कैसे होता है, इस के लिए सतना का उदाहरण लें, तो वहां की सूची में उन भूमिहीन फर्जी किसानों की संख्या ज्यादा है, जिन्होंने स्वपंजीयन किया है, लेकिन स्वपंजीयन के बाद उन की पहचान को तहसीलदार ने सत्यापित किया है, इस के बाद उन के खातों में किसान सम्मान निधि की राशि मिलने लगी.

सवाल यह है कि इतना बड़ा घोटाला तहसीलदार, पटवारी की जानकारी या उन के शामिल हुए बिना संभव है क्या? सरकार फर्जी किसानों से तो पैसा वापस ले लेती है, पर अगर कोई सरकारी मुलाजिम इस कांड में फंसा हुआ है, तो उस पर क्या सख्त कार्यवाही की गई, इस पर गोलमोल जवाब दे देती है या फिर ऐसे भ्रष्टाचारी लोग कानून में खामियां देख कर घपला करते हैं कि जांच की आंच उन तक नहीं पहुंच पाती है, जबकि सजा के तो वे भी बराबर के हकदार हैं.

खेती में काम आने वाली खास मशीनें

फसल की कटाई का ज्यादातर काम हंसिए से किया जाता है. एक हेक्टेयर फसल की एक दिन में कटाई के लिए 20-25 मजदूरों की जरूरत पड़ती है. फसल पकने के बाद के कामों में लगने वाले कुल मजदूरों का 65-75 फीसदी, फसलों की कटाई और बाकी उन्हें इकट्ठा करने, बंडल बनाने, ट्रांसपोर्ट व स्टोर वगैरह में खर्च होता है. इन सभी कामों को पूरा करने में फसल को कई तरह के नुकसान भी होते हैं.

अगर फसल की कटाई समय पर न की जाए तो नुकसान और भी बढ़ सकता है. कटाई से जुड़ी मशीनों के इस्तेमाल से मजदूरों की कमी को पूरा किया जा सकता है और इस से होने वाले नुकसान को कम किया जा सकता है. फसल कटाई की एक खास मशीन वर्टिकल कनवेयर रीपर है.

फसल कटाई यंत्र रीपर

फसलों की कटाई करने के लिए वर्टिकल कनवेयर रीपर बहुत ही कारगर मशीन है. इस के द्वारा कम समय में ज्यादा फसल कम खर्च पर काटी जा सकती है. मजदूरों की बढ़ती परेशानी के चलते यह वर्टिकल कनवेयर रीपर और भी कारगर साबित हो रहा है.

ट्रैक्टर से चलने वाले इस रीपर की अपनी कुछ खासीयतों के चलते यह दूसरी कटाई मशीनों से अलग है.

इस मशीन से फसलों की बाली मशीन के संपर्क में नहीं आती. इस से फसल के टूटने से होने वाला नुकसान कम होता है. यह रीपर कटाई के बाद फसलों को एक दिशा में लाइन में रखता है, जिस से फसलों को इकट्ठा करना व बंडल बनाना आसान हो जाता है.

इस मशीन को ट्रैक्टर के द्वारा जरूरत के मुताबिक ऊपरनीचे किया जा सकता है. खड़ी फसल को एक सीध में पंक्ति बना कर रखा  जाता है और स्टार ह्वील फसलों को कटरबार की तरफ ढकेलता है. उस के बाद कटरबार खड़ी फसल की कटाई कर देता है.

रीपर का इस्तेमाल उन्हीं फसलों की कटाई के लिए किया जाता है, जिन के बीच में कोई दूसरी फसल न बोई गई हो. कटाई के बाद बैल्ट कनवेयर की मदद से कटी फसल को मशीन की दाहिनी दिशा में ले जाया जाता है. उसे लाइन से मशीन की दिशा में जमीन पर रखता जाता है.

आमतौर पर एक हेक्टेयर गेहूं की फसल की एक घंटे की कटाई व मढ़ाई के लिए 48 मजदूरों की जरूरत होती है, जबकि वर्टिकल कनवेयर रीपर द्वारा इस काम के लिए 3-4 मजदूरों की ही जरूरत होती है. इस के इस्तेमाल से किसान फसलों से भूसा भी हासिल कर सकते हैं, जबकि कंबाइन से कटाई के बाद भूसा नहीं मिलता है. किसान इसे अपना कर समय, पैसा और ऊर्जा की बचत कर सकते हैं.

Reaperरीपर का रखरखाव

अगर रीपर चलाने में परेशानी हो तो रीपर के कटरबार पर लंबाई के मुताबिक वजन कम होना चाहिए. छुरी पैनी न हो, तो उन्हें पैना करवाना चाहिए या बदल कर नया लगाना चाहिए. अगर रीपर से कटाई एकजैसी नहीं हो रही हो तो यह देखना चाहिए कि लेजर प्लेट कहीं से टूटी तो नहीं है. और अगर ऐसा है तो प्लेट बदल देनी चाहिए. मशीन को चलाते समय सभी नटबोल्ट अच्छी तरह से कसे होने चाहिए व दोनों कनवेयर बैल्ट और स्टार ह्वील आसानी के साथ बिना रुकावट के चलना चाहिए.

मशीन के सभी घूमने वाले भागों में अच्छी तरह से ग्रीस या तेल डालते रहना चाहिए. छुरों के धार को समयसमय पर तेज करते रहना चाहिए. खेत में काम पूरा करने के बाद कटरबार की सफाई करना बहुत जरूरी होता है. मशीन के काम करते समय इस के नजदीक किसी भी इनसान को नहीं होना चाहिए, वरना दुर्घटना घट सकती है.

कल्टीवेटर

कल्टीवेटर खेती की बहुत ही कारगर मशीन है. नर्सरी की तैयारी के बाद या खेत में फसल बोने से ले कर कटाई के समय तक के सभी काम जल्दी और आसानी से कल्टीवेटर करता है.

कल्टीवेटर का इस्तेमाल लाइन में बोई गई फसलों के लिए ही होता है. यह निराई करने की खास मशीन है. पावर के आधार पर कल्टीवेटर हाथ से चलाने वाला, पशु चलित व ट्रैक्टर  से चलने वाले होते हैं.

बनावट के आधार पर खुरपादार, तवेदार और सतही कल्टीवेटर इस्तेमाल में लाए जाते हैं.

ट्रैक्टर से चलने वाले कल्टीवेटर कमानीदार, डिस्क व खूंटीदार होते हैं. इस की लंबाई व चौड़ाई घटाईबढ़ाई जा सकती है. इस मशीन में एक लोहे के फ्रेम में छोटेछोटे नुकीले खुरपे लगे होते हैं, जो कि निराई का काम करते हैं. निराई के अलावा कल्टीवेटर जुताई व बोआई के लिए तभी किया जाता है, जब खेत अच्छी तरह जुता हुआ हो. कल्टीवेटर से निराई का काम करने के लिए फसलों को लाइन में बोना जरूरी होता है.

लाइनों की चौड़ाई के मुताबिक कल्टीवेटर के खुरपों की दूरी को कम या ज्यादा किया जा सकता है. कल्टीवेटर से काम करने के लिए 2 आदमियों की जरूरत पड़ती है, फिर भी इस के इस्तेमाल से समय, पैसा व मजदूरी की बचत होती है.

Cultivatorकल्टीवेटर का काम

खेत में छिटकवां विधि से बीज बोने के बाद कल्टीवेटर से हलकी जुताई कर दी जाती है, जिस से बीज कम समय में मिट्टी में मिल जाते हैं. जो फसल लाइनों में तय दूरी पर बोई जाती है, उन की निराईगुड़ाई करने के लिए कल्टीवेटर बड़े काम का है.

गन्ना, कपास, मक्का वगैरह की निराईगुड़ाई कल्टीवेटर के खुरपों की दूरी को कम या ज्यादा कर के या 1-2 खुरपों को निकाल कर की जाती है.

जुते हुए खेतों में कल्टीवेटर का इस्तेमाल करने से खेत की घास खत्म होती है. मिट्टी भुरभुरी हो जाती है व मिट्टी में नीचे दबे हुए ढेले ऊपर आ कर टूट जाते हैं.

कल्टीवेटर पर बीज बोने का इंतजाम कर के गेहूं जैसी फसलों को लाइन में बोया जा सकता है. इस में 3 या 5 कूंड़े एकसाथ बोए जाते हैं और देशी हल के मुकाबले कई गुना ज्यादा काम होता है.

खेत में गोबर या कंपोस्ट वगैरह खाद बिखेर कर कल्टीवेटर की मदद से उसे मिट्टी में अच्छी तरह से मिलाया जा सकता है.

मेंड़ों पर मिट्टी चढ़ाने के लिए कल्टीवेटर की बाहर की 2 शावल निकाल कर उन की जगह पर हिलर्स यानी रिजर के फाल का आधा भाग लगा दिए जाते हैं.

शावल अलग कर के हिलर जोड़ने से कल्टीवेटर पीछे की ओर एक मेंड़ बनाता हुआ चलता है. मेंड़ की मोटाई कल्टीवेटर की चौड़ाई घटानेबढ़ाने से कम या ज्यादा की जा सकती है. आलू व शकरकंद जैसी फसलों की मेंड़ इस की मदद से बनाई जा सकती है.

फसल बोने के बाद ही बारिश हो जाती है तो 3 से 5 सैंटीमीटर की गहराई तक कल्टीवेटर की मदद से पपड़ी तोड़ी जा सकती है.

इस्तेमाल का तरीका

कल्टीवेटर टाइनों के बीच की दूरी छेदों पर टाइन कैरियर की बोल्ट को कस कर हासिल की जाती है. ये छेद मुख्य फ्रेम में एक इंच के अंतर पर होते हैं. हर टाइन में एक बदलने के लिए खुरपा लगा होता है, जो टाइन में 2 बोल्ट से कसा होता है. जब खुरपा बिलकुल घिस जाए, तो खुरपे को पलट दें या नया लगाना चाहिए.

कल्टीवेटर का रखरखाव

कल्टीवेटर के सभी नटबोल्टों की जांच करते रहना चाहिए, जिस से वे हमेशा कसे रहें. रोज काम खत्म करने के बाद मशीन की सतहों पर ग्रीस लगाना चाहिए, जिस से कल्टीवेटर में जंग न लगने पाए. जो पार्ट काम के दौरान घिस  गए हैं या खराब हो गए हैं, उन को बदल देना चाहिए. पार्ट हमेशा भरोसेमंद कंपनी व दुकानदार से जांचपरख के बाद ही लेना चाहिए.

इस्तेमाल के दौरान एहतियात

बोआई करते समय फालों के बीच एक तय दूरी होनी चाहिए और फालों की गहराई भी बराबर होनी चाहिए. बीज बोने वाला इनसान होशियार होना चाहिए. खेत की तैयारी करते समय लाइनों के बीच की दूरी इतनी ज्यादा नहीं होनी चाहिए कि खेत बिना जुता हुआ रहे.

खाद डालते समय यह जरूर ध्यान रखना चाहिए कि खाद सूखी व भुरभुरी है या नहीं. अगर भुरभुरी न हो तो उसे सुखा लेना चाहिए. खाद डालने के लिए मशीन में लगने वाले भाग में प्लास्टिक का इस्तेमाल करना चाहिए. मशीन में निराईगुड़ाई करते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि लाइनों में बोए हुए पौधे खराब न हों.

थ्रेशर यंत्र और उसकी देखभाल

अकसर देखा गया है कि गेहूं की दौनी करने के बाद थ्रेशर को खुली जगह पर रख देते हैं. थ्रेशर को भी देखभाल की जरूरत होती है. इस से थ्रेशर के काम करने की उम्र बढ़ जाती है. फसल की दौनी हो जाने के बाद किसानों को इन बातों का ध्यान रखना चाहिए :

*           जब थ्रेशर का काम पूरी तरह से खत्म हो जाए, तो उसे 10-15 मिनट तक खाली चलाना चाहिए, ताकि उस में बचीखुची बालियां या भूसा बाहर निकल जाए. थ्रेशर को बंद करने के बाद उस की कपड़े वगैरह से भी सफाई कर दें.

*           थ्रेशर से ट्रैक्टर, मोटर, इंजन वगैरह को अलग कर देना चाहिए.

*           सभी बैल्ट को निकाल कर उन्हें साफ कर महफूज रखें. थ्रेशर को अच्छी तरह से साफ पानी से धोएं और उसे धूप में सुखा लें.

*           जहांजहां जरूरत हो, वहां रंगाई करें या ग्रीस की पतली परत थ्रेशर पर चढ़ा दें. ग्रीस की जगह काम में लाया हुआ इंजन का तेल भी इस्तेमाल कर सकते हैं. इस से थ्रेशर में जंग कम लगती है.

*           ग्रीस कप व बेयरिंग को डीजल या केरोसीन से धो कर साफ करें और उन में नया ग्रीस और तेल डालें.

*           थ्रेशर को ऐसी जगह रखें, जहां धूप और बारिश से उस का बचाव हो सके. थ्रेशर के पायदानों को लकड़ी के टुकड़े या ईंट के ऊपर रखें.

*           थ्रेशर का इस्तेमाल साल में कुछ समय के लिए ही होता है. 8-10 महीने तक यह बिलकुल भी काम में नहीं आता, इसलिए यह जरूरी है कि इस की देखभाल ठीक से की जाए, ताकि समय आने पर किसान जल्द से जल्द इस का इस्तेमाल कर पाएं.

दिसंबर महीने के जरूरी काम

अब तक उत्तर भारत में सर्दियां हद पर होती हैं. वहां के खेतों में गेहूं उगा दिए गए होते हैं. अगर गेहूं की बोआई किए हुए 20-25 दिन हो गए हैं, तो पहली सिंचाई कर दें.

फसल के साथ उगे खरपतवारों को खत्म करें. चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारों को काबू में करने के लिए 2-4 डी सोडियम साल्ट और गेहूंसा खरपतवार को रोकने के लिए आईसोप्रोट्यूरोन खरपतवारनाशी का इस्तेमाल करें. इन कैमिकलों का बोआई के 30-35 दिन बाद इस्तेमाल करें.

अगर गेहूं की बोआई नहीं की गई है, तो बोआई का काम 15 दिसंबर तक पूरा कर लें.  इस समय बोआई के लिए पछेती किस्मों का चुनाव करें. बीज की मात्रा 125 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर इस्तेमाल करें. साथ ही, कूंड़ों के बीच का फासला कम करें यानी 15-18 सैंटीमीटर तक रखें.

* इस महीने में गन्ने की सभी किस्में कटाई के लिए तैयार हो जाती हैं. अपनी सुविधानुसार कटाई करें. शरदकालीन गन्ने में पिछले महीने सिंचाई नहीं की है, तो सिंचाई करें. गन्ने के साथ दूसरी फसलें यानी तोरिया, राई वगैरह की बोआई की गई है, तो निराईगुड़ाई करने से गन्ने की फसल के साथसाथ इन फसलों को भी बहुत फायदा पहुंचता है.

* वसंतकालीन गन्ने की बोआई के लिए खाली खेतों की अच्छी तरह तैयारी करें. अच्छी तरह सड़ी गोबर की खाद, कंपोस्ट खाद, केंचुआ खाद वगैरह जरूरत के मुताबिक इस्तेमाल करें.

दीमक का प्रकोप खेतों में है, तो दीमक के घरों को ढूंढ़ कर खत्म करें. साथ ही, पड़ोसी किसानों को भी ऐसा करने की सलाह दें.

* जौ की बोआई अगर अभी तक नहीं की है, तो फौरन बोआई करें. एक हेक्टेयर खेत की बोआई के लिए 100-110 किलोग्राम बीज डालें. पिछले महीने बोई गई फसल 30-35 दिन की हो गई है, तो सिंचाई करें. खरपतवार की रोकथाम करें.

* सरसों की फसल में जरूरत से ज्यादा पौधे हों, तो उन्हें उखाड़ कर चारे के तौर पर इस्तेमाल करें. खरपतवार की रोकथाम करें. कीटबीमारी का हमला दिखाई दे, तो फौरन कारगर दवाओं का इस्तेमाल करें.

Farming* मटर की समय पर बोई गई फसल में फूल आने से पहले हलकी सिंचाई करें. मटर में तना छेदक कीट की रोकथाम के लिए डाईमिथोएट 30 ईसी दवा की एक लिटर मात्रा व फली छेदक कीट की रोकथाम के लिए इंडोसल्फान 35 ईसी दवा की एक लिटर मात्रा या मोनोक्रोटोफास 36 ईसी कीटनाशी की 750 मिलीलिटर मात्रा 600 से 800 लिटर पानी में घोल कर छिड़काव करें. मटर की रतुआ बीमारी की रोकथाम के लिए मैंकोजेब दवा की 2 किलोग्राम मात्रा 600 से 800 लिटर पानी में घोल कर खड़ी फसल पर छिड़काव करें.

* आलू की फसल में हलकी सिंचाई करें और मिट्टी चढ़ाने का काम करें. साथ ही, खरपतवारों को खत्म करते रहें. फसल को अगेती झुलसा बीमारी से बचाएं.

* बरसीम चारे की कटाई 30 से 35 दिन के अंतर पर करते रहें. कटाई करते वक्त इस बात का खयाल रखें कि कटाई 5-8 सैंटीमीटर की ऊंचाई पर हो. पाले से बचाने के लिए हर कटाई के बाद सिंचाई करें.

* पिछले महीने अगर मसूर की बोआई नहीं की है, तो बोआई इस महीने कर सकते हैं. अच्छी उन्नतशीत किस्मों का चुनाव करें. बीज को उपचारित कर के ही बोएं. एक हेक्टेयर खेत की बोआई के लिए 50-60 किलोग्राम बीज का इस्तेमाल करें.

* मिर्च की फसल पर डाईबैक बीमारी का प्रकोप दिखाई दे, तो इस पर डाइथेन एम-45 या डाइकोफाल 18 ईसी दवा के 0.25 फीसदी घोल का छिड़काव करें.

* धनिया की फसल को चूर्णिल आसिता बीमारी से बचाने के लिए 0.20 फीसदी सल्फैक्स दवा का छिड़काव करें.

Farming* लहसुन की फसल में सिंचाई की जरूरत महसूस हो रही है, तो सिंचाई करें. खरपतवारों को काबू में करने के लिए निराईगुड़ाई करें.

* प्याज की पौध तैयार हो गई है, तो रोपाई इस महीने के आखिरी हफ्ते में शुरू करें.

* गाजर, शलजम, मूली व दूसरी जड़ वाली फसलों की हलकी सिंचाई करें. साथ ही, खरपतवार की रोकथाम के लिए निराईगुड़ाई करते रहें. जरूरत के मुताबिक नाइट्रोजनयुक्त खाद का इस्तेमाल करें.

* आम के बागों की साफसफाई करें.

10 साल या इस से ज्यादा उम्र के पेड़ों में प्रति पेड़ 750 ग्राम फास्फोरस, 1 किलोग्राम पोटाश से तने से एक मीटर की दूरी छोड़ कर पेड़ के थालों में दें. मिली बग कीड़े की रोकथाम के लिए तने के चारों तरफ 2 फुट की ऊंचाई पर 400 गेज वाली 30 सैंटीमीटर पौलीथिन की शीट की पट्टी बांधें. इस बांधी गई पट्टी के नीचे की तरफ वाले किनारे पर ग्रीस का लेप कर दें.

* अगर मिली बग तने पर दिखाई दे, तो पेड़ के थालों की मिट्टी में क्लोरोपाइरीफास पाउडर की 250 ग्राम मात्रा प्रति पेड़ के हिसाब से तने व उस के आसपास छिड़क दें व मिट्टी में मिला दें. नए लगाए बागों के छोटे पेड़ों को पाले से बचाने के लिए फूस के छप्पर का इंतजाम करें व सिंचाई करें.

* लीची के छोटे पेड़ों को भी पाले से बचाने के लिए पौधों को छप्पर से तीनों तरफ से ढकें. उसे पूर्वदक्षिण दिशा में खुला रहने दें. बड़े पेड़ों यानी फलदार पेड़ों में प्रति पेड़ के हिसाब से 50 किलोग्राम अच्छी तरह से सड़ी हुई गोबर की खाद व 600 ग्राम फास्फोरस दें. बीमारी से ग्रसित टहनियों को काट कर जला दें.

देशदुनिया में श्रीअन्न को बढ़ावा देगा ये शोध केंद्र

नई दिल्ली: 29 नवंबर 2023. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की विशेष पहल पर भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के भारतीय श्रीअन्न अनुसंधान संस्थान, हैदराबाद में स्थापित किया जा रहा ‘‘श्रीअन्न वैश्विक उत्कृष्ट शोध केंद्र’’ सर्वसुविधायुक्त रहेगा, जिस के जरीए देशदुनिया में श्रीअन्न को बढ़ावा मिलेगा.

केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के मार्गदर्शन में इस केंद्र के लिए कार्यवाही चल रही है. उन्होंने संबंधित अधिकारियों से कहा कि हमारे किसानों को इस केंद्र का अधिकाधिक लाभ मिलना सुनिश्चित किया जाना चाहिए, खासकर छोटे व सीमांत किसानों को लाभ पहुंचाने के मकसद से श्रीअन्न को बढ़ावा देने के लिए भारत की पहल पर अंतर्राष्ट्रीय मिलेट्स वर्ष 2023 मनाया जा रहा है.

18 मार्च, 2023 को पूसा परिसर, नई दिल्ली में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय श्रीअन्न सम्मेलन में ‘‘श्रीअन्न वैश्विक उत्कृष्ट शोध केंद्र” की उद्घोषणा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा की गई थी, जिस का मुख्य उद्देश्य श्रीअन्न अनुसंधान एवं विकास के लिए अत्याधुनिक सुविधाओं व उपकरणों से सुसज्जित बुनियादी ढांचे की स्थापना करना है, जिस में मूल्य श्रृंखला, मानव संसाधन विकास, श्रीअन्न के पौष्टिक गुणों के बारे में आम लोगों में जागरूकता फैलाना एवं वैश्विक स्तर पर पहुंच एवं पहचान बनाना है, ताकि किसानों को ज्यादा से ज्यादा लाभ मिल सके.

इन उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए इस केंद्र में जीन बैंक, प्रौद्योगिकी नवाचार केंद्र, श्रीअन्न मूल्य श्रृंखला एवं व्यापार सुविधा केंद्र, अंतर्राष्ट्रीय ज्ञान, कौशल व क्षमता विकास केंद्र और वैश्विक स्तर की अनुसंधान सुविधाओं की स्थापना का प्रावधान किया गया है.

केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर द्वारा “श्रीअन्न वैश्विक उत्कृष्ट शोध केंद्र” की प्रगति की समीक्षा के लिए आयोजित बैठक में बताया गया कि यहां अनुसंधान से संबंधित विभिन्न सुविधाओं में जीनोम अनुक्रमण, जीन संपादन, पोषक जीनोमिक्स, आणविक जीव विज्ञान, मूल्य संवर्धन और जीनोम सहायता प्रजनन के लिए उन्नत अनुसंधान उपकरणों से सुसज्जित प्रयोगशालाओं की स्थापना के साथसाथ स्पीड ब्रीडिंग, फाइटोट्रौन, जलवायु नियंत्रित कक्ष, ग्रीनहाउस व ग्लासहाउस एवं रैपिड फेनोमिक्स सुविधा की भी स्थापना की जा रही है.

इसी क्रम में संस्थान के नवस्थापित बाड़मेर, राजस्थान एवं सोलापुर, महाराष्ट्र स्थित 2 क्षेत्रीय केंद्रों को भी सुदृढ़ बनाया जा रहा है. केंद्र को वैश्विक स्तर का अनुसंधान और प्रशिक्षण परिसर बनाने के लिए उन्नत अनुसंधान प्रयोगशालाओं के साथ आधुनिक प्रशिक्षण सुविधाओं, सम्मेलन कक्षों और अंतर्राष्ट्रीय अतिथिगृह की स्थापना का भी प्रावधान किया गया है. केंद्र की गतिविधियों को समयसीमा में पूरा करने व पूरे देश में लागू करने के लिए आईसीएआर के 15 संस्थान सहयोग करेंगे.

बैठक में कृषि सचिव मनोज आहूजा, डेयर के सचिव एवं भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के महानिदेशक डा. हिमांशु पाठक के साथ अन्य वरिष्ठ अधिकारी उपस्थित थे. श्रीअन्न वैश्विक उत्कृष्ट शोध केंद्र की स्थापना के लिए केंद्रीय बजट में 250 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया है. इस संबंध में केंद्र सरकार के स्तर पर कार्यवाही तेजी से प्रगति पर है, साथ ही नियमित बैठकें भी हो रही हैं.

मेहंदी की खेती

भारत में पुराने जमाने से मेहंदी का इस्तेमाल प्रसाधन के रूप में होता आया है. मेहंदी का प्रयोग शादीविवाह, दीवाली, ईद, क्रिसमस औैर दूसरे तीजत्योहार वगैरह पर लड़कियां और सुहागिन औरतें करती हैं.

ऐसा माना जाता है कि मेहंदी का प्रयोग तो प्राचीन मिस्र के लोग भी जानते थे. यह  समझा जाता है कि मेहंदी का प्रयोग शीतकारक पदार्थ के रूप में शुरू हुआ. प्राचीन काल से मेहंदी की पत्तियां तेज बुखार को कम करने और लू व गरमी के असर को दूर करने में इस्तेमाल होती रही है.

यह पौधा छोटीछोटी पत्तियों वाला बहुशाखीय और झाड़ीनुमा होता है और इस का उत्पादन पर्सिया, मेडागास्कर, पाकिस्तान और आस्ट्रेलिया में भी होता है.

भारत में मेहंदी की खेती आमतौर पर पंजाब, गुजरात, मध्य प्रदेश और राजस्थान में होती है. इस के उत्पादन के महत्त्वपूर्ण केंद्र गुड़गांव, हरियाणा में फरीदाबाद व गुजरात के सूरत जिले में बारदोलीर व माधी है, जहां मेहंदी की पत्तियों के कुल उत्पादन का 87 फीसदी हासिल होता है.

राजस्थान में मेहंदी का उत्पादन पाली जिले की सोजत और मारवाड़ जंक्शन तहसीलों में होता है और सोजत कसबे में मेहंदी पाउडर और पैस्ट बनाने का काम होता है. सोजत की मेहंदी देशविदेश में काफी मशहूर है. इस की खेती रंजक प्रदान करने वाली पत्तियों की वजह से ही की जाती है.

कृषि : मेहंदी का पौधा अकसर सभी तरह की मिट्टियों में रोपा जा सकता है, लेकिन आर्द्रताग्राही भारी मिट्टी में यह अच्छी तरह पनपता है. इस की खेती क्षारीय मिट्टी में नहीं की जा सकती है, पर यह जमीन में मौजूद थोड़़ी क्षारीयता सह लेता है. इस का प्रवर्धन बीजों या कलमों द्वारा किया जाता है.

बीजों को नर्सरी में क्यारियों में बोआई करने से पहले कुछ दिन तक पानी से भर कर रखा जाता है. बीजों को 20-25 दिन तक जल्दीजल्दी पानी बदलते हुए भिगोया जाता है. उस के बाद मार्चअपै्रल माह में बोआई करते हैं. एक हेक्टेयर में 7-12 किलोग्राम तक बीजों की जरूरत होती है. पौधों  की ऊंचाई 45-60 सैंटीमीटर हो जाने पर उन्हें जुलाईअगस्त माह में खेतों में प्रतिरोपित कर देते हैं. खेतों में 2 पौधों के मध्य 3 फुट की दूरी रखी जाती है.

बारिश के पानी से इस की पैदावार अच्छी होती है, पर बारिश न होने पर हर दिन सिंचाई करना जरूरी है. ज्यादा बारिश से फसल में कीड़े लग सकते हैं जो मेहंदी की पत्तियों को खा जाते हैं और तेज धूप में यह कीड़ा अपनेआप ही खत्म हो जाता है.

पहले 2-3 सालों में मेहंदी का उत्पादन कम होता है, पर उस के बाद फसल की कटाई साल में 2 बार अपै्रलमई और अक्तूबरनवंबर माह में की जाती है. अक्तूबरनवंबर माह के दौरान गरमी की फसल कटाई करने पर अच्छी और उत्तम किस्म की फसल हासिल होती है, जबकि अपै्रलमई माह में हासिल दूसरी फसल रंग कम देती है.

Hennaमेहंदी की फसल की कटाई आमतौर पर ट्रेंड मजदूरों द्वारा की जाती है. अक्तूबरनवंबर माह की कटाई में मजदूरों की मांग अधिक होने के चलते फसल की कटाई महंगी पड़ती है, जबकि दूसरी कटाई में औफ सीजन होने से मजदूरी अपेक्षाकृत कम लगती है. एक बार लग जाने पर पौधे कई सालों तक लगातार पनपे रह सकते हैं.

फसल में गुड़ाई यानी निदान करने के बाद फसलों में बारिश का पानी अधिक पहुंचाने के लिए गड्ढे बनाए जाते हैं. फसल की कटाई के बाद उस की कुटाई की जाती है और इस के बाद पत्तियों को बडे़बडे़ बोरों में भर देते हैं.

मेहंदी का औसतन भाव प्रति 40 किलोग्राम 800-1,000 रुपए तक होता है. मेहंदी की परंपरागत घुटाई खरल में करने पर बहुत तेज रंग आता है, पर बढ़ते व्यावसायीकरण के चलते इस की क्वालिटी में कमी आई है.

आजकल पत्तियों से पाउडर बनाने के लिए थ्रेशर मशीन में चरणबद्व तरीके से पिराई कर के फिर प्लोवाइजर नाम की मशीन से इस की बारीक पिसाई की जाती है. इस मशीन में पत्तियों का चूरा डालने से पहले प्रति 40 किलोग्राम मेहंदी में 3 किलोग्राम तेल, 300 ग्राम डायमंड व 100 ग्राम मीठा सोडा मिलाते हैं जिस से मेहंदी के रंग को उड़ने से रोका जा सकता है. इसी वजह से इसे रंग तेल प्रक्रिया भी कहते हैं. इस विधि से तैयार मेहंदी को पैक कर सप्लाई की जाती है.

मेहंदी की किस्में

व्यापार में मेहंदी की 3 किस्में हैं, जिन्हें दिल्ली, गुजराती और मालवा मेहंदी कहते हैं. दिल्ली किस्म चूर्ण के रूप में मिलती है, जबकि गुजराती मेहंदी पत्तियों के रूप में मिलती है. मालवा मेहंदी राजस्थान का उत्पाद है. मेहंदी के प्रमुख खरीदार अल्जीरिया, फ्रांस, बहरीन, सऊदी अरब, सिंगापुर व सीरिया हैं. फ्रांस और यूनाइटेड किंगडम मेहंदी के प्रमुख आयातक देश हैं.

राजस्थान के पाली जिले की सोजत तहसील के बागावास, सोजत, देवली, खोखरा, रूपावास, साडिया वगैरह गांवों में इस की खेती होती है. हर साल एक बड़ी विदेशी मुद्रा इस के निर्यात से हासिल होती है. अगर इस की  शुरुआती मजदूरी कटाई मजदूरी को कम किया जा सकता हो, तो मेहंदी की फसल से करोड़ों रुपए कमाए जा सकते हैं. सोजत की मेहंदी ने देशविदेश में कारोबार के नए आयाम बनाए हैं.