प्रशिक्षण कार्यक्रम में बताया कैसे है मशरूम (Mushroom) इम्यूनिटी बूस्टर

सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय में मशरूम अनुसंधान एवं प्रशिक्षण केंद्र पर मशरूम निदेशालय, सोलन के निर्देश पर अनुसूचित जाति उपयोजना के अंतर्गत युवाओं और किसानों के लिए तीनदिवसीय मशरूम प्रशिक्षण कार्यक्रम किया गया.

इस कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए वित्त नियंत्रक लक्ष्मी मिश्रा ने कहा कि मशरूम हमारे जीवन के लिए बहुत ही उपयोगी खाद्य पदार्थ है. मशरूम खाने से शरीर की इम्युनिटी बढ़ती है, जिस से मानव जीवन स्वस्थ रह सकता है.

उन्होंने ने आगे कहा कि मशरूम में प्रोटीन के अलावा विभिन्न प्रकार के विटामिन और खनिज लवण मौजूद होते हैं, जिस के कारण इस को इम्यूनिटी बूस्टर भी कहा जाता है.

निर्देशक ट्रेनिंग एवं प्लेसमेंट प्रो. आरएस सेंगर ने कहा कि मशरूम एक प्रकार का सुपरफूड है, इस को खाने से शरीर में प्रोटीन की मात्रा बढ़ती है. साथ ही, भरपूर मात्रा में खनिज लवण भी उपलब्ध हो जाते हैं. अब देश में बायोफोर्टीफाइड मशरूम भी आने लगा है, जिस की मांग धीरेधीरे बढ़ रही है.

विभागाध्यक्ष प्रो. कमल खिलाड़ी ने कहा कि मशरूम को उगने से किसानों को रोजगार मिलता है और कम क्षेत्रफल में मशरूम की खेती प्रारंभ की जा सकती है. इस के लिए अधिक संसाधनों की आवश्यकता नहीं होती, इसलिए किसान इस क्षेत्र में आगे आ कर अपनी आय को बढ़ा सकते हैं.

प्रशिक्षण कार्यक्रम के संयोजक प्रो. गोपाल सिंह ने बताया कि मशरूम खाद्य एवं औषधि प्रजातियों के उत्पादन तकनीकी का प्रशिक्षण कार्यक्रम कराया गया, जिस से पश्चिम उत्तर प्रदेश के युवा मशरूम उत्पादन का काम कर सके और उन को स्वरोजगार मिल सके.

डा. गोपाल सिंह ने आगे कहा कि इस कार्यक्रम के अंतर्गत 50 युवा एवं किसानों ने पंजीकरण कराया और मशरूम उत्पादन की तकनीकी के बारे में प्रशिक्षण दिया गया. इस प्रशिक्षण कार्यक्रम में प्रो. अनिल सिरोही, प्रो. रामजी सिंह, प्रो. रमेश यादव, प्रो. प्रशांत मिश्रा, प्रो. डीबी सिंह, प्रो. राजेंद्र कुमार आदि ने भी व्याख्यान दिए और मशरूम की उपयोगिता और उस के उत्पादन तकनीक के बारे में जानकारी दी.

वैज्ञानिकों ने खोजी मटर की नई बीमारी ( New Disease of Pea)

हिसार : चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने मटर की नई बीमारी व इस के कारक जीवाणु कैंडिडैटस फाइटोप्लाज्मा एस्टेरिस (16 एसआर 1) की खोज की है. अमेरिकन फाइटोपैथोलौजिकल सोसाइटी (एपीएस) पौधों की बीमारियों के अध्ययन के लिए सब से पुराने अंतर्राष्ट्रीय वैज्ञानिक संगठनों में से एक है, जो विशेषत: पौधों की बिमारियों पर विश्वस्तरीय प्रकाशन करती है.

हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक दुनिया में इस बीमारी की खोज करने वाले सब से पहले वैज्ञानिक हैं. इन वैज्ञानिकों ने फाइटोप्लाज्मा मटर में बीमारी पर शोध रिपोर्ट प्रस्तुत की है, जिसे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर संस्था ने मान्यता प्रदान करते हुए अपने जर्नल में छापा है.

बीमारी के बाद इस के प्रसार की निगरानी व उचित प्रबंधन का हो लक्ष्य
विश्वविद्यालय के कुलपति डा. बीआर कंबोज ने वैज्ञानिकों की इस खोज के लिए बधाई दी. उन्होंने कहा कि बदलते कृषि परिदृश्य में विभिन्न फसलों में उभरते खतरों की समय पर पहचान महत्वपूर्ण हो गई है. उन्होंने वैज्ञानिकों से बीमारी के आगे प्रसार पर कड़ी निगरानी रखने को कहा.

उन्होंने यह भी कहा कि वैज्ञानिकों को रोग नियंत्रण पर जल्द से जल्द काम शुरू करना चाहिए. इस अवसर पर ओएसडी डा. अतुल ढींगड़ा, सब्जी विभाग के अध्यक्ष डा. एसके तेहलान, पादप रोग विभाग के अध्यक्ष डा. अनिल कुमार, मीडिया एडवाइजर डा. संदीप आर्य व एसवीसी कपिल अरोड़ा भी मौजूद रहे.

साल 2023 में मटर की फसल में दिखाई दिए थे लक्षण
अनुसंधान निदेशक डा. जीतराम शर्मा ने बताया कि पहली बार फरवरी, 2023 में सेंट्रल स्टेट फार्म, हिसार में मटर की फसल में नई तरह की बीमारी दिखाई दी, जिस में मटर के 10 फीसदी पौधे बौने और झाड़ीदार हो गए थे. एचएयू के वैज्ञानिकों ने कड़ी मेहनत के बाद इस बीमारी के कारक कैंडिडैटस फाइटोप्लाज्मा एस्टेरिस (16 एसआर 1) की खोज की है. उन्होंने कहा कि बीमारी की जल्द पहचान से योजनाबद्ध प्रजनन कार्यक्रम विकसित करने में मदद मिलेगी.

इन वैज्ञानिकों का रहा अहम योगदान
इस बीमारी के मुख्य शोधकर्ता और विश्वविद्यालय के प्लांट पैथोलौजिस्ट डा. जगमोहन सिंह ढिल्लो ने कहा कि अंतर्राष्ट्रीय वैज्ञानिक संगठन अमेरिकन फाइटोपैथोलौजिकल सोसाइटी, यूएसए द्वारा मार्च, 2024 के दौरान इस शोध रिपोर्ट को छापा है. हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक इस बीमारी के सब से पहले शोधकर्ता माने गए हैं.

नैनो यूरिया (Nano Urea) उपयोग से खेती हुई आसान

छिंदवाड़ा : जिले के चौरई विकासखंड के ग्राम चीचगांव के किसान दीपक आढनेरिया ने भी इस वर्ष एक एकड़ में नैनो यूरिया का उपयोग कर लागत निकालने के बाद तकरीबन 80 हजार रुपए का आर्थिक लाभ प्राप्त किया है.

उल्लेखनीय है कि नैनो यूरिया एक लागत प्रभावी उत्पाद है और खेत में इस की कम मात्रा डालने पर ही फसलों को जरूरी नाइट्रोजन प्राप्त हो जाती है. खेती के लिए नैनो यूरिया का उपयोग करने का सब से बड़ा फायदा ये है कि इस से पर्यावरण को कम से कम नुकसान पड़ता है. इस से ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन कम होगा और हवा व पानी की गुणवत्ता में सुधार होगा.

किसान दीपक बताते हैं कि उन के द्वारा पहले यूरिया का उपयोग किया जाता था. अधिक मात्रा में इस का उपयोग करने से लागत भी अधिक लगती थी और परिवहन करने में भी समस्या आ रही थी. माली नुकसान को देखते हुए कृषि विभाग चौरई द्वारा नैनो यूरिया तरल के बारे में बताया गया.

उन्होंने बताया कि नैनो यूरिया तरल की 500 मिलीलिटर की एक बोतल सामान्य यूरिया के कम से कम एक बैग यानी एक बोरी के बराबर होगी. इस के प्रयोग से लागत में कमी आएगी और नैनो यूरिया तरल का आकार छोटा होने के कारण इसे आसानी से पाकेट में भी रखा जा सकता है, जिस से परिवहन और भंडारण करने में लगने वाली लागत में काफी कमी आएगी और फसलों की पैदावार बढ़ती है. इसे पौधों के पोषण के लिए प्रभावी व असरदार पाया गया है. इस का प्रयोग पोषक तत्वों की गुणवत्ता सुधारने एवं जलवायु परिवर्तन व टिकाऊ उत्पादन पर सकारात्मक प्रभाव डालते हुए ग्लोबल वार्मिंग को कम करने में भी अहम भूमिका निभाएगा.

कृषि विभाग द्वारा बताई गई जानकारी के बाद उन के द्वारा इस साल एक एकड़ खेत में नैनो यूरिया का प्रयोग किया गया, जिस में 2 बार नैनो यूरिया का स्प्रे किया, जिस की लागत एक बोतल की कीमत 225 रुपए व 2 बार स्प्रे करने पर 450 रुपए की आई. नैनो यूरिया एवं अन्य खर्च की कुल लागत निकालने के बाद भी लगभग 80 हजार रूपए का आर्थिक लाभ प्राप्त हुआ है.

नैनो यूरिया के उपयोग से किसान दीपक के लिए खेती करना अब बहुत आसान और लाभ का व्यवसाय हो गया है. वह इस के लिए शासन और कृषि विभाग के अधिकारियों को धन्यवाद देते हैं, साथ ही अन्य किसानों को भी नैनो यूरिया का उपयोग करने के लिए प्रेरित कर रहे हैं.

जलवायु परिवर्तन एवं मृदा स्वास्थ्य में जीरो टिलेज तकनीक

छिंदवाड़ा : किसान कल्याण एवं कृषि विकास विभाग के अपर मुख्य सचिव अशोक वर्णवाल और आयुक्त कृषि एम. सेल्वेंद्रन द्वारा बोरलौग इंस्टीट्यूट फौर साउथ एशिया (बीसा), जबलपुर में “जलवायु परिवर्तन एवं मृदा स्वास्थ्य” विषय पर आयोजित कार्यशाला में उपस्थित हो कर जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय के कृषि वैज्ञानिकों व बीसा के कृषि वैज्ञानिकों के साथ ही कृषि विभाग के उपसंचालक कृषि एवं परियोजना संचालक आत्मा के साथ चर्चा कर रणनीति तैयार की गई. साथ ही, बीसा संस्थान द्वारा किए जा रहे फसल अवशेष प्रबंधन कर जीरो टिलेज तकनीक के प्रदर्शन का भी अवलोकन किया गया.

अपर मुख्य सचिव अशोक वर्णवाल ने कहा कि कृषि वैज्ञानिक एवं कृषि विभाग के अधिकारी नवीन उन्नत तकनीक को सरल भाषा में किसानों तक पहुंचाएं और उन को समझाएं.

कृषि आयुक्त एम. सेल्वेंद्रन ने कहा कि प्रत्येक जिले से किसानों को एक्सपोजर विजिट करा कर उन्नत तकनीक दिखाएं और 2-2 क्लाइमेट स्मार्ट विलेज का चयन कर वहां इस नवीन तकनीक को किसानों तक पहुंचाएं.

बीसा के एमडी डा. अरुण जोशी व प्रमुख वैज्ञानिक डा. रवि गोपाल ने चर्चा के दौरान किसानों से जीरो टिलेज तकनीक से फसल अवशेष प्रबंधन कर के मिट्टी की सेहत को सुधारने और फसल विविधीकरण अपना कर टिकाऊ खेती अपनाने पर ज़ोर दिया.

इस अवसर पर जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय के मृदा विभाग के प्रमुख डा. हितेंद्र राय, संचालक विस्तार सेवाएं डा. दिनकर शर्मा, ब्रीडर प्रमुख डा. शुक्ला व संयुक्त संचालक, कृषि, जबलपुर केएस नेताम सहित छिंदवाड़ा जिले के उपसंचालक, कृषि, जितेंद्र कुमार सिंह, सहायक संचालक, कृषि, धीरज ठाकुर, सीडीओ अमरवाडा के सचिन जैन और अन्य जिलों के उपसंचालक, कृषि व परियोजना संचालक आत्मा भी उपस्थित थे.

प्राकृतिक रूप से खेती कर 250 रुपए प्रति किलोग्राम बेच रहे मशरूम

बालाघाट : किरनापुर में कटंगी के रामेश्वर चौरिवार ने प्राकृतिक रूप से मशरूम की खेती करने के लिए अपने ही कुछ अलग ढंग से तैयारी की. कक्षा 8 वीं जमात तक पढ़े रामेश्वर केवीके, बड़गांव में मिले प्रशिक्षण से प्रभावित हुए और अमल में लाने के लिए प्रयास शुरू किए. अब तक उन्होंने 2 बार ढींगरी (औयस्टर) मशरूम की खेती से अच्छा मुनाफा लिया है.

उन्होंने बताया कि आत्मा परियोजना के अंतर्गत समयसमय पर आयोजित किए जाने वाले प्रशिक्षणों से उन्हें काफी लाभ हुआ है. इसी से प्रेरित हो कर इस की खेती की. इस के लिए उन्होंने 10*10 के कमरे में दीवारों पर टाट और सतह पर रेत का उपयोग व सुबहशाम स्प्रे कर कमरे को वातानुकूलित बनाया है, क्योंकि मशरूम की खेती के लिए तापमान का बड़ा महत्व होता है. इस के लिए 16 डिगरी से 25 डिगरी सैल्सियस तक तापमान मेंटेन करना पड़ता है.

200 रुपए प्रति किलोग्राम बिकता है मशरूम
रामेश्वर ने बताया कि 45 से 90 दिनों की फसल होती है. गत वर्ष 30 बैग लगाए थे, जिस से उन्हें 60 से 70 किलोग्राम मशरूम का उत्पादन हुआ, जिसे स्थानीय बाजार और बालाघाट में काफी अच्छा भाव मिला. यहां मशरूम 200 रुपए तक बिकता है. इस वर्ष तापमान के कारण उत्पादन कम हुआ, लेकिन भाव 200 से 250 रुपए प्रति किलोग्राम मिलने से अच्छा मुनाफा हुआ है.

दीनदयाल उन्नत खेती, नरेंद्र उद्यानिकी, हीरेंद्र रेशम और जंगल सिंह को पशुपालन के लिए किया सम्मान
आत्मा परियोजना औन एग्रीकल्चरल एक्सटेंशन वर्ष 2023-24 के अंतर्गत जिले में उन्नत कृषि तकनीक एवं पर्यावरण संरक्षण के उद्देश्य से उत्तम काम करने वाले 5 किसानों को जिला स्तरीय सर्वोत्तम पुरस्कार से सम्मानित किया गया. इस के अलावा 28 किसानों को विभिन्न श्रेणियों में विकासखंड स्तरीय सर्वोत्तम कृषक पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया. जिला स्तरीय सर्वोत्तम किसान को 25-25 हजार और विकासखंड स्तरीय सम्मान के रूप में 10-10 हजार रुपए की राशि प्रोत्साहन के रूप में प्रदान किए गए.

आत्मा परियोजना संचालक अर्चना डोंगरे ने बताया कि इन के अलावा 5 सर्वोत्तम स्वसहायता समूह को विभिन्न श्रेणियों में 20-20 हजार रुपए की प्रोत्साहन राशि बैंक खातों में प्रदान की गई.

ये हैं जिले के 5 सर्वोत्तम किसान
आत्मा परियोजना में जिला स्तरीय सर्वोत्तम कृषक का सम्मान पाने वाले किसानों में कटंगी के रामेश्वर चौरिकर को प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए और आगरवाड़ा कटंगी के दीनदयाल कटरे को उन्नत कृषि के लिए, थानेगांव वारासिवनी के नरेंद्र सुलकिया को उद्यानिकी, बटरमारा किरनापुर के हिरेंद्र गुरदे को रेशमपालन और चिचरंगपुर बिरसा को पशुपालन में सम्मान पाने में शामिल है.

दुधारू पशु (Milch Animals) प्रदाय में अब गाय के साथ भैंस भी शामिल

रायसेन : राज्य शासन ने “मुख्यमंत्री दुधारू पशु प्रदाय कार्यक्रम’’ के रूप में लागू किया है. कार्यक्रम में अब हितग्राही की मंशा के अनुसार दुधारू गाय के अलावा भैंस भी प्रदाय की जा सकेगी. साथ ही, इस का लाभ अब विशेष पिछड़ी जनजाति बैगा के साथ सहरिया और भारिया को भी मिलेगा. जनजातियों की कमजोर माली हालात को देखते हुए हितग्राही अंशदान की राशि 25 फीसदी से घटा कर 10 फीसदी कर दी गई है.

पशुपालकों को प्रति 2 दुधारू पशु गाय/भैंस दी जाएगी. कार्यक्रम में 90 फीसदी सकीय अनुदान और 10 फीसदी हितग्राही अंशदान होगा. खरीदे गए सभी पशुओं का बीमा होगा. मिल्क रूट और दुग्ध समितियों का गठन मध्य प्रदेश दुग्ध महासंघ और पशुपालन विभाग द्वारा किया जाएगा. गाय प्रदाय के लिए 1 लाख, 89 हजार 250 रुपए और भैंस के लिए 2 लाख, 43 हजार रुपए की राशि निर्धारित की गई है. गौ प्रदाय में 1 लाख, 70 हजार, 325 रुपए शासकीय अनुदान और बाकी 18 हजार, 925 रुपए हितग्राही अंशदान होगा. भैंस प्रदाय में 2 लाख, 18 हजार, 700 रुपए का शासकीय अनुदान और महज 24 हजार, 300 रुपए हितग्राही का अंशदान होगा.

कार्यक्रम का उद्देश्य दुग्ध उत्पादन और पशुओं की दुग्ध उत्पादक क्षमता में वृद्धि, रोजगार के नवीन अवसर द्वारा हितग्राहियों की आर्थिक स्थिति में सुधार और उच्च उत्पादक क्षमता के गायभैंस वंशीय पशुओं की उपलब्धता सुनिश्चित करना है.

हितग्राही को आवेदन निर्धारित प्रपत्र में अपने निकटतम पशु चिकित्सा संस्था या दुग्ध सहकारी समिति को देना होगा. चयनित हितग्राहियों को पशुपालन, पशु आहार और पशु प्रबंधन प्रशिक्षण के साथ परिचयात्मक दौरा भी करवाया जाएगा.

ड्रोन तकनीक खेती के लिए खास

हिसार : बदलते समय के साथसाथ अगर हमें कृषि क्षेत्र में कृषि क्रियाओं को समयानुसार क्रियान्वित करने से जुड़ी चुनौतियों व श्रमिकों की कमी को देखते हुए ड्रोन तकनीक को अपनाना होगा. इस तकनीक को अपनाने से कृषि लागत को कम करने के साथसाथ संसाधनों की भी बचत की जा सकती है.

यह विचार चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने व्यक्त किया. वे विश्वविद्यालय की ओर से आयोजित कृषि मेला (खरीफ) के शुभारंभ अवसर पर बतौर मुख्यातिथि संबोधित कर रहे थे.

मेले में विशिष्ट अतिथि के रूप में महाराणा प्रताप उद्यान विश्वविद्यालय, करनाल के कुलपति डा. सुरेश कुमार मल्होत्रा और गुरु जम्भेश्वर विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, हिसार के कुलपति प्रो. नरसी राम बिश्नोई मौजूद रहे.

इस बार मेले का मुख्य विषय खेती में ड्रोन का महत्व है. मुख्यातिथि प्रो. बीआर कंबोज ने आह्वान किया कि किसान समुदाय को नईनई तकनीकों व प्रौद्योगिकियों के बारे में समयानुसार अपडेट करते रहना समय की मांग है. उन्होंने आगे यह भी कहा कि खेती में ड्रोन तकनीक का महत्व तेजी से बढ़ता जा रहा है, क्योंकि आज के दौर में खाद्य सुरक्षा, जलवायु परिवर्तन व पर्यावरण को संरक्षित रखना मुख्य चुनौतियां हैं. साथ ही, किसानों द्वारा फसलों में कीटनाशक दवाओं का अधिक प्रयोग करने से इनसान अनेक बीमारियों की चपेट में भी आ रहा है. हमें उपरोक्त चुनौतियों से निबटना है तो किसानों को ड्रोन तकनीक को अपनाना होगा, क्योंकि ड्रोन के द्वारा कम समय में जल विलय उर्वरक, कीटनाशक, खरपतवारनाशक का छिडक़ाव समान तरीके से व सिफारिश के अनुसार आसानी से किया जा सकता है, जिस से कम लागत होने के साथसाथ संसाधनों की भी बचत होगी.

मुख्यातिथि प्रो. बीआर कंबोज ने कृषि मेला खरीफ में महिलाओं की अधिक भागीदारी पर खुशी जताई. साथ ही कहा कि वर्तमान समय में कृषि क्षेत्र के अंदर महिलाओं की भूमिका दिनप्रतिदिन बढ़ती जा रही है.

प्रो. बीआर कंबोज ने विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों की भी प्रशंसा करते हुए कहा कि वे विभिन्न फसलों की उन्नत 44 किस्में अनुमोदित व विकसित कर किसान समुदाय को माली मजबूती देने का काम कर रहे हैं, जिस की बदौलत हमारा विश्वविद्यालय कृषि क्षेत्र में अनूठी पहचान बना रहा है.

उन्होंने विश्वविद्यालय द्वारा ईजाद की गई अधिक पैदावार देने वाली किस्म, जिन में सरसों की रोग प्रतिरोधी व पाले के प्रति सहनशील किस्म आरएच 725, गेहूं की अधिक उत्पादकता देने वाली किस्म डब्ल्यूएच 1270 का जिक्र करते हुए खरीफ फसलों में चारे वाली ज्वार की अधिक पैदावार देने वाली सीएसवी 53 एफ व एचजे 1514, बाजरे की जिंक व लौह तत्व से भरपूर बायोफोर्टीफाइड किस्म एचएचबी 299 व एचएचबी 311 एवं मूंग की एमएच 421 किस्म के बारे में भी बताया.

महाराणा प्रताप उद्यान विश्वविद्यालय, करनाल के कुलपति डा. सुरेश कुमार मल्होत्रा ने बताया कि हरियाणा का किसान प्रगतिशील किसान है. अपने प्रयासों की बदौलत वह अन्य राज्यों के किसानों, प्रौद्योगिकियों व नवाचारों के मुकाबले में सब से आगे हैं. इसलिए किसान खाद्य सुरक्षा, खाद्य भंडारण, जलवायु परिवर्तन व पर्यावरण संरक्षण जैसी अनेक चुनौतियों का हल निकालने में अपनी अहम भूमिका अदा कर सकता है. तिलहनी व दलहनी फसलों की मांग के मुकाबले उत्पादन कम है, जिस के कारण आयात करना पड़ता है. इस मांग को पूरा करने के लिए हमें खरीफ एवं रबी सीजन के अलावा रबी सीजन के तुरंत बाद आने वाली गरमी के मौसम में एक कम अवधि वाली फसल ले कर खेती को लाभदायक बनाने के बारे में भी प्रेरित किया. हकृवि कृषि अनुसंधान के क्षेत्र में शिक्षा, विस्तार के क्षेत्र सराहनीय काम कर रहा है.

गुरु जम्भेश्वर विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, हिसार के कुलपति प्रो. नरसी राम बिश्नोई ने बताया कि फसलों की अधिक पैदावार लेने के लिए पर्यावरण का अनुकूल होना जरूरी है. उन्होंने यह भी कहा कि हमें फसलों के अवशेष जैसे धान की पराली को नहीं जलाना चाहिए, क्योंकि पराली जलाने से एक ओर भूमि की उपजाऊ शक्ति कम होती है, वहीं दूसरी ओर मित्र कीट एवं लाभदायक जीवाणु भी नष्ट हो जाते हैं. यदि फसल के अवशेष जलाने के बजाय किसान उन्हें खेत में ही समायोजित करें, तो भूमि की उपजाऊ शक्ति बनी रहेगी व पर्यावरण संरक्षण होगा.

मुख्यातिथि सहित अन्य अधिकारियों ने कृषि प्रौद्योगिकी प्रदर्शनी को सराहा
कृषि मेला खरीफ में विश्वविद्यालय के समस्त महाविद्यालयों की ओर से विभिन्न विषयों पर कृषि प्रौद्योगिकी प्रदर्शनी लगाई गई, जिस में विभिन्न फसलों की उन्नत किस्में सहित आधुनिक तकनीकों व कृषि यंत्र शामिल रहे. मुख्यातिथि सहित अन्य अधिकारियों ने प्रदर्शनियों का अवलोकन किया. साथ ही, वैज्ञानिकों व विद्यार्थियों के प्रयासों को सराहा.drone-taknik2

इस प्रदर्शनी में कृषि क्षेत्र से जुड़ी समस्याओं के हल के लिए किसानवैज्ञानिक संवाद का कार्यक्रम भी रखा गया, जिस में किसानों ने फसलों से संबंधित समस्याओं के हल विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों से जाने.
कार्यक्रम के दौरान मुख्यातिथि प्रो. बीआर कंबोज ने कृषि क्षेत्र में उत्कृष्ट प्रदर्शन करने वाले प्रगतिशील किसानों को सम्मानित किया. इस के अलावा उन्होंने 2 पुस्तकों का विमोचन करते हुए संबंधित विभागों के वैज्ञानिकों को बधाई दी.

कृषि मेला खरीफ में पहले दिन हरियाणा व अन्य राज्यों से तकरीबन 40 हजार किसानों ने भाग लिया. मंच का संचालन हरियाणा कला परिषद, हिसार मंडल के अतिरिक्त निदेशक रामनिवास शर्मा ने किया. मेले में उपस्थित किसानों के मनोरंजन के लिए सांस्कृतिक कार्यक्रम का भी आयोजन किया गया.

नई तकनीक से मत्स्यपालन

भिंड : मत्स्य उद्योग एक ऐसा व्यवसाय है, जिसे गरीब से गरीब व्यक्ति अपना सकता है एवं अच्छी आय प्राप्त कर सकता है और समाज में क्रांतिकारी बदलाव लाया जा सकता है. विभिन्न माध्यमों से मत्स्यपालन व्यवसाय में लग कर मानवेंद्र सिंह अपना आर्थिक स्तर सुधार रहे हैं.

भिंड जिले के दबोह क्षेत्र के मानवेंद्र सिंह यादव द्वारा प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना के तहत मत्स्यपालन की नवीन तकनीक बायोफ्लोक यूनिट द्वारा मत्स्यपालन का काम किया जा रहा है.

मानवेंद्र सिंह बताते हैं कि वर्ष 2019-20 में सहायक संचालक मत्स्योद्योग जिला भिंड के अधिकारी की सहायता से बायोफ्लोक पद्धति से 4 मीटर व्यास, 1.5 मीटर ऊंचाई एवं 10 हजार लिटर पानी की क्षमता के 2 टैंकों में मत्स्य उत्पादन किया गया, जिस में 50 हजार की लागत से 1.5 मीट्रिक टन मत्स्योत्पादन किया गया, जिस में एक लाख रुपए का लाभ प्राप्त हुआ.

उन्होंने बताया कि वर्ष 2020-21 में मत्स्य विभाग जिला भिंड से संपर्क कर 7 टैंक 5 मीटर व्यास, 1.5 मीटर ऊंचाई, 20 हजार लिटर पानी की क्षमता एवं 7.5 लाख रुपए की लागत से 7 टैंकों का निर्माण करवाया गया एवं प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना से 3 लाख का अनुदान प्राप्त हुआ.

साथ ही, सभी टैंकों में 20 हजार पंगेशियस मत्स्य बीज का संचयन किया, जिस में एक वर्ष में 2 बार (प्रत्येक 6-6 माह में) मत्स्य उत्पादन का कार्य किया जाता है, जिस में 5 मीट्रिक टन मत्स्य उत्पादन हो चुका है. इस से वर्ष में 5 लाख रुपए का मुनाफा प्राप्त हुआ है. वर्तमान में 5 मीटर व्यास, 1.5 मीटर ऊंचाई, 20 हजार लिटर पानी की क्षमता वाले 14 टैंक हैं, जिन में मछली को  पालने का काम किया जा रहा है.

आईडीबीआई बैंक ने बीएयू में कैंपस प्लेसमेंट ड्राइव का किया आयोजन

भागलपुर : आईडीबीआई बैंक ने अपने कैंपस कनेक्ट प्रोग्राम के हिस्से के रूप में जूनियर असिस्टेंट मैनेजर (जेएएम) की न्युक्ति के लिए विश्वविद्यालय के अंतिम वर्ष के कृषि स्नातक छात्रों के लिए एक कैंपस प्लेसमेंट ड्राइव आयोजित किया. समूह चर्चा और व्यक्तिगत साक्षात्कार सहित कठोर चयन प्रक्रिया से गुजरते हुए, इस पहल में कुल 28 छात्रों ने भाग लिया. कुल 5 विद्यार्थियों का अंतिम रूप से चयन किया गया.

चयनित अभ्यर्थियों को वार्षिक पैकेज के रूप में 6.14 लाख से 6.50 लाख रुपए तक मिलेंगे.

कुलपति डा. डीआर सिंह ने भाग लेने वाले छात्रों को शुभकामनाएं दी और साक्षात्कार आयोजित करने के लिए आईडीबीआई बैंक के प्रति आभार व्यक्त किया.

इस सफल कैंपस प्लेसमेंट ड्राइव को व्यवस्थित करने में डा. जेएन श्रीवास्तव, निदेशक छात्र कल्याण, डा. चंदन कुमार पांडा, प्लेसमेंट सेल के प्रभारी, डा. अनिल पासवान और डा. अपूर्वा पाल द्वारा महत्वपूर्ण भूमिका निभाई गई.

यह प्रयास न केवल छात्रों के लिए कैरियर मूल्यांकन के लिए अवसर प्रदान करता है, बल्कि विश्वविद्यालय और कारपोरेट क्षेत्र के बीच संबंध को भी मजबूत करता है.

कृषि मेले (Agricultural Fair) में पहुंचे हजारों किसान  

हिसार : चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय में 2 दिवसीय कृषि मेला खरीफ 2024 में किसानों की भारी गहमागहमी रही. मेले में हरियाणा सहित दिल्ली, पंजाब, राजस्थान और उत्तर प्रदेश राज्यों से तकरीबन 40 हजार किसान शामिल हुए.

विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बीआर कंबोज के अनुसार, मेले में किसानों ने तकरीबन 21.08 लाख रुपए के खरीफ फसलों व सब्जियों की उन्नत व सिफारिशशुदा किस्मों के प्रमाणित बीज और तकरीबन 46 हजार, 600 रुपए के फलदार पौधे व सब्जियों के बीज खरीदे.

उल्लेखनीय है कि किसानों को आगामी खरीफ मौसम की फसलों व सब्जियों के बीज और फलों की नर्सरी उपलब्ध कराने के लिए विश्वविद्यालय ने मेला स्थल पर सरकारी बीज एजेंसियों के सहयोग से बीज बिक्री की पर्याप्त व्यवस्था की थी. बीज के अलावा किसानों ने 6,500 रुपए के जैव उर्वरक और 13 हजार रुपए का कृषि साहित्य भी खरीदा.

विस्तार शिक्षा निदेशक डा. बलवान सिंह मंडल ने बताया कि मेले में किसानों को विश्वविद्यालय के अनुसंधान फार्म का भ्रमण करवा कर उन्हें वैज्ञानिक विधि से उगाई गई फसलों के प्रदर्शन प्लाट दिखाए जा रहे हैं और उन्हें जैविक व प्राकृतिक खेती, खेती में प्राकृतिक संसाधन संरक्षण, कृषि उत्पादन व गुणवत्ता बढ़ाने व फसल लागत कम करने से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारियां दी जा रही हैं.

इस अवसर पर किसानों ने विश्वविद्यालय की ओर से मिट्टी व पानी जांच के लिए की गई व्यवस्था का भी लाभ उठाया और उन्होंने कुल 168 नमूने टैस्ट करवाए. इन के अतिरिक्त किसानों ने प्रश्नोत्तरी सभाओं में भाग ले कर वैज्ञानिकों से कृषि व पशुपालन संबंधी अपनी समस्याओं एवं शंकाओं को दूर किया और उन के लिए आयोजित हरियाणवी सांस्कृतिक कार्यक्रम में मनोरंजन किया.

संयुक्त निदेशक विस्तार डा. कृष्ण कुमार यादव ने बताया कि मेले में लगाई गई कृषि औद्योगिक प्रदर्शनी किसानों के आकर्षण का विशेष केंद्र रही. इस प्रदर्शनी में कुल 248 स्टाल लगाए गए हैं. इन स्टालों पर विश्वविद्यालय और गैरसरकारी एजेसियों व मल्टीनैशनल कंपनियों द्वारा कृषि प्रौद्योगिकी, मशीनें, यंत्र आदि प्रदर्शित किए गए, जिन पर किसानों की भारी भीड़ रही.