Carrot Cultivation : गाजर की खेती कर के कई किसान अपने जीवन में मिठास घोस रहे हैं. यह सर्दियों के मौसम में पैदा की जाने वाली फसल है. इस फसल को तकरीबन हर तरह की मिट्टी में उगाया जा सकता है, लेकिन इस के लिए सब से सही बलुई दोमट मिट्टी होती है.

मिट्टी उपजाऊ हो साथ ही जल निकासी भी सही हो, तो गाजर की खेती से अच्छी पैदावार ली जा सकती है. 15-20 डिगरी सेल्सियस तापमान इस की बढ़ोतरी के लिए अच्छा होता है. इस फसल पर पाले का असर भी नहीं होता है.

गाजर की खेती की तैयारी

जिस खेत में गाजर बोनी है उस की जुताई कर के छोड़ दें, जिस से मिट्टी को तेज धूप लगे और कीड़ेमकोड़े खत्म हो जाएं.

उस के बाद ट्रैक्टर हैरो या कल्टीवेटर से 3-4 बार जुताई करें. अच्छी तरह से पाटा चलाएं, जिस से मिट्टी भुरभुरी हो जाए. देशी गोबर वाली खाद मिला कर खेत को तैयार करें. इस के बाद गाजर के बीजों की बोआई करें. खेत में चाहें तो क्यारियां भी बना सकते हैं.

गाजर की मुख्य किस्में

पूसा केसर : यह एक उन्नतशील एशियाई किस्म है, जिस की जड़ें लालनारंगी सी होती हैं. जड़ें लंबीपतली व पत्तियां कम होती हैं. यह अगेती किस्म है, जिस में अधिक तापमान को सहन करने की कूवत होती है.

पूसा यमदिग्न: यह अधिक उपज देने वाली किस्म है. इस की जड़ों का रंग हलका नारंगी (बीच के हिस्से में हलका पीला) होता है. गूदा मुलायम व मीठा होता है.

पूसा मेधाली : यह किस्म अच्छी मानी जाती है. किसान अपने इलाके के हिसाब से कृषि जानकारों से राय ले कर इस के बीज बो सकते हैं. यह किस्म भी अच्छे गुण वाली है.

पूसा रुधिर : यह पूसा की खास किस्म है. आकर्षक लंबी लाल जड़ें, चमकता लाल रंग, समान आकार और ज्यादा मिठास इस प्रजाति की खासीयतें हैं.

बीज की मात्रा व बोने का समय

अगेती किस्मों को सितंबरअक्तूबर में ही बो दें. मध्यम व पछेती किस्मों को नवंबर के आखिरी हफ्ते तक बोया जाता है. गाजर की बोआई के लिए 6-7 किलोग्राम बीजों की प्रति हेक्टेयर जरूरत होती है. बोआई लाइनों में मेंड़ बना कर करें. इन मेंड़ों की आपस में दूरी 40-45 सेंटीमीटर रखें या छोटीछोटी क्यारियां बना कर बोएं.

खाद व उर्वरक

गाजर की अच्छी खेती के लिए देशी गोबर की खाद 15 से 20 ट्राली प्रति हेक्टेयर के हिसाब से खेत में डालें. नाइट्रोजन 30 किलोग्राम, फास्फोरस 40 किलोग्राम और पोटाश 80 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से बोआई से 15-20 दिनों पहले मिट्टी में अच्छी तरह मिलाएं. 30 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से नाइट्रोजन बोआई से 35-40 दिनों बाद छिड़कें, जिस से जड़ें अच्छी विकसित हो सकें.

सिंचाई : बोआई के लिए पलेवा करें या नमी होने पर बोएं. बोआई के 10-15 दिनों के बाद नमी न होने पर हलकी सिंचाई करें. सिंचाई अधिक पैदावार लेने के लिए जरूरी है, इसलिए हलकीहलकी सिंचाई करें. खेत में नमी रहना जरूरी है.

खरपतवार : खेत में खरपतवार न पनपने दें. समय रहते ही खरपतवार निकालते रहें. साथ ही गाजर के पौधे ज्यादा घने महसूस हों तो उन्हें कम कर दें.

कीड़े व बीमारियां : गाजर में ज्यादातर पत्ती काटने वाला कीड़ा लगता है, जो पत्तियों को नुकसान पहुंचाता है. इस की रोकथाम के लिए जरूरी उपाय करें. फसल को अगेती बोएं. गाजर की फसल में एक पीलापन वाली बीमारी लगती है, जो पत्तियों को खराब करती है. बीजों को 0.1 फीसदी मरक्यूरिक क्लोराइड से उपचारित कर के बोने पर यह बीमारी नहीं लगती?है.

खुदाई : जब गाजर की मोटाई व लंबाई ठीकठाक और बाजार भेजने लायक हो जाए, तो खुदाई करनी चाहिए. खुदाई के लिए खेत में नमी होनी चाहिए. खुदाई के समय ध्यान रखें कि जड़ों को नुकसान न पहुंचे. जड़ों के कटने से भाव घट जाता है.

उपज : गाजर की फसल का ठीक तरह से ध्यान रखा जाए, तो 250 से 300 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज होती है. वैसे उपज किस्मों पर अधिक निर्भर करती है.

गाजर से हो रही अच्छी कमाई

यों तो गाजर की मांग सभी इलाकों में बढ़ रही है, लेकिन राजस्थान के श्रीगंगानगर जिले में पिछले कुछ सालों से गाजर का व्यापार जोरों पर है. इस का कारण यहां की गाजर की राज्य से बाहर की मंडियों में अच्छी मांग होना भी है. कृषि वैज्ञानिकों की मानें तो यहां की गाजर में रस भरपूर मात्रा में होता है. इस से गाजर पूरी तरह रसीली हो जाती है. इस के ट्रांसपोर्ट करने पर भी इस का रस कई दिनों तक इसे सूखने नहीं देता. यह श्रीगंगानगर से दूर दूसरे राज्यों जैसे पंजाब, हरियाणा, गुजरात व उत्तर प्रदेश में बेची जा रही है.

पश्चिम उत्तर प्रदेश के हापुड़ जिले में स्थित सूदना गांव में भी गाजर की खेती में इजाफा हो रहा है. यह गांव ‘गाजर गांव’ के रूप में मशहूर है. इस का श्रेय भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली द्वारा विकसित एक उन्नत किस्म ‘पूसा रुधिर’ को जाता है. माडल गांव के रूप में विकसित करने के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान ने साल 2010 में 4 गांवों को चुना, जिन में से सूदना गांव एक है. गांव के किसान सब्जियों में गाजर भी उगाया करते थे, लेकिन उतना फायदा नहीं ले पाते थे, जितना अब पूसा रुधिर से ले पा रहे हैं. साल 2011-12 में भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान ने इस गांव के एक सीमांत किसान चरण सिंह के 1.75 एकड़ खेत में पूसा रुधिर गाजर उगाने की शुरुआत की.

गाजर की फसल के लिए नियमित सलाह दी गई. किसान को पूसा रुधिर गाजर की 393.75 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की दर से उम्दा फसल मिली, यह आम प्रचलित किस्म से 10 क्विंटल प्रति हेक्टेयर अधिक थी.

ज्यादा पैदावार और फायदे के साथ पूसा रुधिर के बेहतर प्रदर्शन से उत्साहित हो कर गांव के दूसरे किसानों ने भी इस में रुचि दिखाई.

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