Natural Pest Control : केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण राज्यमंत्री भागीरथ चौधरी ने कृषि वैज्ञानिकों का आह्वान करते हुए कहा कि किसानों के लिए हितकारी प्राकृतिक खेती में कीट नियंत्रण (Natural Pest Control)  तकनीक को भी प्राकृतिक तरीके से ही अधिक उपयोगी बनाने पर अनुसंधान करने की महत्ती जरूरत है, ताकि कीटनाशी व कवकनाशी खरीद में किसान की जेब पर अनावश्यक भार न पड़े.

राज्यमंत्री भगीरथ चौधरी राजस्थान कृषि महाविद्यालय में ‘बदलते कृषि परिदृश्य में सतत पौध संरक्षण की उन्नति’ विषय पर आयोजित तीनदिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन के उद्घाटन सत्र को मुख्य अतिथि के रूप में संबोधित कर रहे थे.

महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय व एंटोमोलोजिकल रिसर्च एसोसिएशन ऐंड क्रॉप केयर फैडरेशन औफ इंडिया, नई दिल्ली के संयुक्त तत्त्वावधान में आयोजित इस राष्ट्रीय सम्मेलन में 18 राज्यों के 400 से अधिक कृषि वैज्ञानिक, शोधार्थी और औद्योगिक प्रतिनिधि भागीदारी कर रहे हैं.

कार्यक्रम में औनलाइन जुड़े राज्यमंत्री भगीरथ चौधरी ने कहा कि आज बदलते जलवायु परिदृश्य मे किसानों की सब से बड़ी चिंता यह है कि बीज अंकुरण से ले कर उस की फसल पूर्णतया पक कर सकुशल घर आ जाए. साथ ही पौध संरक्षण में किन महत्त्वपूर्ण बातों का ध्यान रखें कि पर्यावरण संरक्षण भी बना रहे और कीट नियंत्रण के लिए अंधाधुंध दवाओं और कीटनाशकों का प्रयोग भी न हो.

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए विश्वविद्यालय के कुलपति डा. अजीत कुमार कर्नाटक ने कहा कि विकसित भारत के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए आवश्यक नीति निर्माण में यह सम्मेलन सहयोगी साबित होगा.

उन्होंने कहा कि एंटोमोलोजिकल रिसर्च एसोसिएशन की स्थापना साल 1985 में इस राजस्थान कृषि महाविद्यालय के कीट विज्ञान विभाग में हुई थी. यह एक पंजीकृत संस्था है लेकिन यह बताते हुए हर्ष है कि राजस्थान कृषि महाविद्यालय के कीट विज्ञान विभाग की स्थापना साल 1957 में प्रसिद्ध कीट विज्ञानी डा. केएस कुशवाहा के हाथों हो गई थी.

डा. अजीत कुमार कर्नाटक ने कहा कि कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ है, जो लगभग 18 फीसदी जीडीपी में योगदान देती है और 45 फीसदी से अधिक जनसंख्या को आजीविका प्रदान करती है. घटती कृषि योग्य भूमि के बीच 1.46 अरब लोगों के लिए खाद्य पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करना देश की कृषि के लिए बहुत बड़ी चुनौती है. सतत खेती एक अवधारणा नहीं, बल्कि यह आवश्यकता है. हमें विकसित भारत 2047 को लक्ष्य बना कर भविष्य की कृषि के लिए एक सुनियोजित रोडमेप तैयार करना होगा. हमें चावल और गेहूं का मोह छोड़ कर मोटे अनाज, दलहन, बाजरा, तिलहन और सब्जियों की खेती की ओर ध्यान देना होगा. साथ ही सूखा एवं कीट सहिष्णु फसलों को बढ़ावा देने, बेहतर कटाई उपरांत प्रबंधन, उचित भंडारण और परिवहन पर ध्यान देना होगा.

उन्होंने विश्वविद्यालय की ओर से विकसित प्रताप संकर मक्का-6 का उल्लेख करते हुए कहा कि मक्का की औसत उपज 30-35 क्विंटल के मुकाबले इस का उत्पादन 60-65 क्विंटल प्रति हैक्टेयर है. मक्का उत्पादन क्षेत्रों के लिए यह बहुत बड़ा तोहफा है.

विशिष्ट अतिथि डा. जेपी सिंह, पादप संरक्षण सलाहकार, भारत सरकार, डा. एसएन सुशील, निदेशक एनबीएआईआर, बैंगलुरु, डा. हरीश मेहता, वरिष्ट सलाहकार, सीसीएफआई, नई दिल्ली, डा. एसके शर्मा, एडीजी (एचआरडी), आईसीएआर, नई दिल्ली, डा. एससी भारद्वाज, अध्यक्ष, एंटोमोलोजिकल रिसर्च एसोसिएशन, उदयपुर, एनएस बारहट, प्रबंध निदेशक, एरिस्टो बायोटैक लिमिटेड आदि वक्ताओं ने सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि विकसित भारत 2047 के संकल्प प्राप्ति में कृषि उत्पादन बढ़ाने एवं आय में वृद्धि करने मे कीट प्रबंधन की महत्ती आवश्यकता है.

भारत में कुल खेती योग्य जमीन के 53 फीसदी क्षेत्र में रसायनों का, 10 फीसदी में दोनों रसायनों एवं जैविक तत्त्वों, 6 फीसदी में केवल जैविक तत्त्वों और बचे हुए तकरीबन 31 फीसदी क्षेत्र में किसी भी प्रकार के रसायनों व जैविक तत्त्वों का उपयोग नहीं किया जाता है. पूरी दुनिया में हमारे देश में कीटनाशकों का उपयोग अपेक्षाकृत बहुत कम किया जाता है. आज धरातल पर किसानों की खेती को फायदेमंद बनाने के लिए पौध संरक्षण लागत को कम करना सब से बड़ी चुनौती है.

आज के बदलते परिवेश मे जल उपयोग दक्षता एवं नाइट्रोजन उपयोग दक्षता को बढ़ाने की आवश्यकता पर जोर दिया. पिछले एक दशक में 19 नए प्रकार के कीटों को चिन्हित किया गया है, जबकि पिछले 100 सालों में यह केवल 11 की संख्या ही थी, जिस की वजह यह बताई गई कि हमारे देश का अन्य देशों के साथ कृषि वस्तुओं का आयात हो रहा है, इसी के साथ ये कीट भी यहां आ रहे हैं.

कीटनाशक कंपनियों के द्वारा यह देखा गया है कि अभी भी किसानों को कीटनाशकों की कितनी समुचित मात्रा किस समय पर प्रयोग करनी चाहिए की इतनी समझ नहीं है. इस के लिए कंपनी ने अपने वितरकों के द्वारा विभिन्न प्रकार के प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित कर किसानों को कीटनाशकों के उचित प्रयोग के प्रति जागरूक किया जा रहा है.

कीटनाशक कंपनियों द्वारा जीएसटी कटौती का फायदा किसानों को दिया जाएगा. कृषि परिदृश्य बहुत तेजी से बदल रहा है, जिस से नएनए कीटों का आगमन हो रहा है, इसलिए किसानों को इन के प्रति सचेत रहने की आवश्यकता है और ये कीटपतंगे जैसे ही फसल में मिलें, तो इन के बारे में कृषि वैज्ञानिकों को तुरंत अवगत करवाना चाहिए, ताकि कीटों के प्रकोप का जल्द निवारण किया जा सके.

‘पद्मभूषण’ डा. राजेंद्र सिंह परोदा को मिला ‘भारतीय कृषि गौरव पुरस्कार’

सम्मेलन में पौध संरक्षण क्षेत्र में प्रसंशनीय कार्य करने वाले 40 कृषि वैज्ञानिक, शोधार्थी और औद्योगिक प्रतिनिधियों को विभिन्न उपाधि पुरस्कार से नवाजा गया. इस में ‘पद्मभूषण’ डा. राजेंद्र सिंह परोदा अध्यक्ष, टीएएएस, नई दिल्ली को ‘भारतीय कृषि गौरव पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया. कुलगुरु एमपीयूएटी डा. अजीत कुमार कर्नाटक को ‘राजस्थान कृषि रत्न पुरस्कार’ दिया गया. इसी प्रकार डा. अनिल कुमार, डा. जेपी सिंह, डा. एसएन सुशील, डा. एसके शर्मा, डा. ओपी गिल, डा. अमरनाथ शर्मा, डा. पूनम श्रीवास्तव, डा. भागीरथ चौधरी, डा. श्रीनिवास बाबू कुर्रा, डा. अजीत चहल, डा. अजीत कुमार, डा. आनंद झा, डा. हरीश मेहता, डा. केएन सिंह, डा. सुशील कुमार मिश्रा, नरेंद्र सिंह बारहट, डा. आरजी अग्रवाल, डा. रविंदर सिंह, नीरज यादव, डा. पीके चक्रवर्ती, डा. मनीष जैन और केएस त्यागराजन को भी पुरस्कृत किया गया.

तकनीकी पुस्तकों का विमोचन

कार्यक्रम के दौरान वैज्ञानिकों द्वारा लिखित कुल 3 पुस्तकों का विमोचन किया गया. इन में एमपीयूएटी के वैज्ञानिक डा. मनोज कुमार महला एवं टीम द्वारा लिखित 2 तकनीकी बुलैटिन जैविक कीटनाशी एवं जैव नियंत्रक कारकों द्वारा कीट रोग प्रबंधन, टमाटर की उन्नत खेती तथा एक तकनीकी फोल्डर ट्राईकोडर्मा जैव रोगनाशी फफूंद का उत्पादन एवं उपयोग शामिल है.

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