Bastar : आयुर्वेद विश्व परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष डा. राजाराम त्रिपाठी के नेतृत्व में धनवंतरी जयंती-आयुर्वेद दिवस, एक संकल्प के साथ मनाया गया.

कार्यक्रम की शुरुआत के दौरान मां दंतेश्वरी हर्बल समूह के सदस्यों के साथ औषधीय पौधों का रोपण कर वन औषधीय के संरक्षण, संवर्धन और प्रवर्धन का सामूहिक संकल्प लिया गया.

डा. राजाराम त्रिपाठी ने कहा कि  ‘आयुर्वेद केवल चिकित्सा नहीं, बल्कि प्रकृतिपुरुष के संतुलन की जीवनदृष्टि है.

कभी बस्तर (Bastar) जड़ीबूटियों का भरपूर खजाना था, पर अब यह खजाना लूट लिया गया है. बस्तर (Bastar) के वन क्षेत्रों के अधिकांश साप्ताहिक बाजारों में देखा जा सकता है कि कितनी अनमोल जड़ीबूटियां दलाल और बिचौलिए कौड़ियों के भाव खरीद कर बड़ी कंपनियों को भेज रहे हैं.

मंजूर गोड़ी, हिरनतूतया, रसना जड़ी, कुरवां जड़ी आदि कई मुख्य बहुपयोगी जड़ीबूटियां जंगलों से खत्म हो गई हैं.

बचे खुचे औषधीय पौधों पर भी विदेशी कंपनियों, दलालों और स्मगलरों की नजर है. सरकार और वन विभाग अगर सहयोग दे तो मां दंतेश्वरी हर्बल समूह के सदस्य वावैंटियर आगे आ कर इस लूट को रोक सकते हैं.’

उन्होंने आगे कहा कि आज जरूरत है कि हम अपने मूल स्रोत लोक ज्ञान, जनजातीय परंपरा और वन औषधीय धरोहर को दोबारा सम्मान दें और वैज्ञानिक दृष्टि से संरक्षित करें.

एथनो-मैडिको गार्डन : आयुर्वेद की एक जीवित प्रयोगशाला :-

डा. राजाराम त्रिपाठी ने अपनी एक एकड़ भूमि पर 340 से अधिक जड़ीबूटियों वाला एथनो-मैडिको गार्डन स्थापित किया है. इस में 22 विलुप्तप्राय दुर्लभ वनौषधियां और स्थानीय वैद्यों द्वारा उपयोग की जाने वाली परंपरागत प्रजातियां अपने प्राकृतिक रहवास में संरक्षित हैं. इन के संरक्षण के साथ ही इन का संवर्धन व प्रवर्धन भी किया जा रहा है.

यह अनूठा हर्बल गार्डन केवल पौधों का संग्रह नहीं, बल्कि जनजातीय ज्ञान और वैज्ञानिक अध्ययन का सेतु है. यहां स्थानीय गुनिया, सिरहा, गायता और गांडा जनजाति के पारंपरिक ज्ञान को दस्तावेजीकृत किया जा रहा है.

वन औषधीय खेती और वनों के संरक्षण के साथ ही मां दंतेश्वरी हर्बल समूह का मुख्य उद्देश्य है जनजातीय उपचार ज्ञान को संरक्षित कर लोक चिकित्सा और आधुनिक आयुर्वेद के बीच समन्वय स्थापित करना.

डा. त्रिपाठी के वनौषधि, पर्यावरण संरक्षण कार्य :

* दुर्लभ जड़ीबूटियों के लिए बीज बैंक और कलम संवर्धन केंद्र.

* वन औषधीय सर्वेक्षण और पौधों की एथनो-बोटैनिकल मैपिंग.

* युवाओं और किसानों के लिए हर्बल फार्मिंग प्रशिक्षण कार्यक्रम.

* ग्राम स्तरीय औषधीय उद्यान और सामुदायिक भागीदारी मौडल.

* नीतिनिर्माण स्तर पर हर्बल उद्योग और आयुर्वेद संरक्षण प्रस्ताव.

आयुर्वेद विश्व परिषद की स्थापना 1952 में हुई थी.

कुछ खास :

* भारत में लगभग 6,000 औषधीय पौधों की प्रजातियां पाई जाती हैं.

* इन में से लगभग 1,000 प्रजातियां लुप्तप्राय हो चुकी हैं या संकटग्रस्त हैं.

* छत्तीसगढ़, मध्य भारत और बस्तर (Bastar) क्षेत्र में इन का तकरीबन 20 फीसदी भंडार मौजूद है.

* भारतीय हर्बल उद्योग का वार्षिक आकार लगभग 80,000 करोड़ रुपए तक पहुंच चुका है, पर ग्रामीण उत्पादकों का हिस्सा बेहद सीमित है.

धनवंतरी दिवस के इस अवसर पर डा. राजाराम त्रिपाठी ने कहा, “आयुर्वेद और जनजातीय ज्ञान की यह लौ अब कभी बुझनी नहीं चाहिए. बस्तर (Bastar) से ले कर हिमालय तक हर किसान, हर जनजातीय परिवार इसका रक्षक बने.”

पूरे आयोजन में शोधकर्ता, चिकित्सक, किसान नेता, युवा छात्र और स्थानीय गुनियावैद्य बड़ी संख्या में उपस्थित रहे।

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