Apple Trees : हिमाचल प्रदेश में हर साल केवल सेब उत्पादन से करीब 2000 करोड़ रुपए से ज्यादा का कारोबार किया जाता है. इस छोटे पहाड़ी राज्य की अर्थव्यवस्था में सेब उत्पादन की खास भूमिका है. आज इसी हिमाचली सेब पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं. सेब बागबान अपने बगीचों के बूढ़े पेड़ों से उत्पादन कर रहे हैं और उन को अभी यह आभास नहीं है कि यह संकट भविष्य में ज्यादा गंभीर बन सकता है.
हिमाचल में कुल फलों के उत्पादन में सेब की पैदावार का 90 फीसदी हिस्सा रहता है. अन्य फलों की भागीदारी महज 10 फीसदी तक रहती है. राज्य में बागबानों की खुशहाली में सेब की खास भागीदारी है. सेब उत्पादक इलाकों के गांवों में कदम रखते ही वहां के पक्के मकानों और लोगों के रहनसहन के तरीके से सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि सेब के कारण ही खुशहाली ने बागबानों के कदम चूमे हैं. सेब उत्पादन से पहले वहां के पहाड़ों में भी अन्य पहाड़ी राज्यों की तरह छोटे स्तर पर खेती की जाती रही है.
सत्यानंद स्टोक्स ने हिमाचल में व्यावसायिक सेब की रायल किस्में शिमला जिले के कोटगढ़ इलाके में उगाईं. सेब से सब से पहले खुशहाली यहीं आई थी. इस के बाद प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री डा. यशवंत सिंह परमार ने प्रदेश में किसानों को सेब उत्पादन की ओर कदम बढ़ाने को प्रोत्साहित किया. इस के बाद से बागबानों ने सेब का व्यावसायिक उत्पादन शुरू किया.
आज प्रदेश में सेब के पेड़ (Apple Trees ) बूढ़े हो चले हैं. बागबानी अधिकारियों का कहना है कि सेब के पेड़ की उम्र करीब 40-50 साल होती है. इस के बाद सेब के पेड़ की उत्पादन शक्ति कम हो जाती है और पैदावार भी कम होती जाती है. यही समस्या सेब उत्पादकों को हिमाचल में हो रही है.
राज्य के शिमला, कुल्लू, मंडी, सिरमौर व किन्नौर जिलों में सेब की भरपूर पैदावार की जाती है. इन जिलों के बागबान भी कहते हैं कि सेब के पेड़ (Apple Trees) बूढ़े हो गए हैं और उत्पादन घट गया है. जितना उत्पादन सेब के पेड़ों (Apple Trees) से पहले होता था, उतना अब नहीं हो रहा है. पुराने सेब के पेड़ों (Apple Trees) में रोग ज्यादा लगते हैं, जिस से पेड़ों की उत्पादन शक्ति कम हो रही है.
बागबानी विभाग के अधिकारी भी कहते हैं कि प्रदेश में सेब के पुराने पेड़ों से उत्पादन घटने की समस्या आ रही है. बागबानों को नए सेब की किस्में उगाने को कहा जा रहा है. इस के लिए बागबानों को आर्थिक मदद भी दी जा रही है.





