Maize : मक्का उत्पादन में अमरीका और चीन से पीछे नहीं है भारत

Maize: महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के कुलपति डा. अजीत कुमार कर्नाटक ने वल्लभनगर कृषि विज्ञान केंद्र प्रांगण में पिछले दिनों 9 जिलों के प्रगतिशील किसानों को संबोधित करते हुए कहा कि खाद्यान्न के साथसाथ फल, दूध व चीनी के क्षेत्र में भी हम आत्मनिर्भर हो चुके हैं. अब समय कृषि में विविधीकरण और नवाचारों का है. तिलहनदलहन में अभी हम पीछे हैं और तेल का आयात करना पड़ रहा है. ऐसे में बड़ी मात्रा में राजस्व विदेशों में भेजना हमारी मजबूरी है.

“वैज्ञानिक तरीके से मक्का उत्पादन एवं मूल्य संवर्धन’’ विषय पर आधारित इस किसान समागम में प्रतापगढ़, राजसमंद, डूंगरपुर, बांसवाड़ा, चित्तौड़गढ़, भीलवाड़ा आदि जिलों के 300 से ज्यादा किसानों ने भाग लिया.

उन्होंने कहा कि मक्का हमारी फसल नहीं रही है, बल्कि कोलंबस इसे भारत ले कर आया था.    चौड़ी पत्तीदार फसल होने से सब से पहले मक्का का चारे के रूप में इस्तेमाल होता था. फिर वैज्ञानिकों ने गहन शोध अध्ययन कर मक्का को पौपककौर्न के रूप में सिनेमाघरों तक पहुंचा दिया. वैज्ञानिकों की बदौलत आज मक्का बेबी कौर्न व स्वीट कौर्न के रूप में पांच सितारा होटलों की शान है. वर्तमान में मक्का के जर्मप्लाज्म से तेल, अवशेष से स्टार्च और इथेनौल तक बनाया जा रहा जो पेट्रोल में ग्रीन फ्युल के रूप में शामिल किया जा सकेगा.

मक्का उत्पादन बढ़ाने के बताए गुन 

मेज मैन औफ इंडिया के नाम से मशहूर मक्का बीज प्रजनक डा. सांई दास ने कहा कि भारत मक्का उत्पादन में किसी भी सूरत में अमरीका और चीन से पीछे नहीं है. जलवायु परिवर्तन के कारण हमें दिक्कतें आती हैं. लेकिन समय पर बीज पानी दिया जाए तो उत्पादकता बढ़ सकती है.

उन्होंने आगे कहा कि आज कई बड़े उद्योगों जैसे कपड़ा, बायोफ्यूल, जूते, दवा इंडस्ट्री में मक्का का उपयोग हो रहा है. अच्छी मक्का पैदावर के लिए उन्होंने किसानों को बताया कि पहले पानी फिर उर्वरक दें. मक्का में 6-8 पत्ती की फसल, इस के बाद कंधे तक, फिर माजर निकलते समय उर्वरक बेहद जरूरी है. अच्छे उत्पादन के लिए खरपतवार नियंत्रण भी जरूरी है.

कीट विज्ञानी डा. मनोज महला ने कहा कि भारत में पिछले 7 दशक में मक्का का उत्पादन 10 गुना बढ़ा है. 143 करोड़ की आबादी वाले देश में करोड़ों रूपए की मक्का पैदा हो रही है. पिछले 5- 6 साल पहले फौल आर्मी वर्म (फौ) ने मक्का के किसानों को सकते में डाल दिया था. यह कीट मक्का की कोमल पत्तियों को चट करता हुआ भारी नुकसान पहुंचाता है. उन्होंने फेरोमोन ट्रैप व बीजोपचार से इस कीट के नियंत्रण की तरकीब सुझाई.

इस कार्यक्रम में कुलपति डा. अजीत कुमार कर्नाटक ने केवीके बांसवाड़ा के डा. बीएस भाटी, डा. आरएल सोलंकी (चित्तौड़गढ़), डा. सीएम बलाई (डूंगरपुर), डा. योगेश कनोजिया (प्रतापगढ़), डा. पीसी रेगर (राजसमंद), डा. मनीराम (वल्लभनगर), प्रो. लतिका व्यास (प्रसार शिक्षा निदेशालय) को आईएसओ प्रमाणपत्र दे कर व मेवाड़ी पग पहना कर सम्मानित किया.

इस कार्यक्रम में पूर्व प्रसार निदेशक डा. आईजी माथुर, डा. अमित दाधीच, डा. योगेश कनोजिया, धानुका के मयूर आमेटा, गौरव शर्मा, सुशील वर्मा, देवेश पाठक, डा. मनीराम आदि ने मक्का बीज की उन्नत किस्में, प्रमुख कीट व्याधियां व नियंत्रित करने के तरीके, भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ाने आदि की जानकारी दी.

इस कार्यक्रम की शुरुआत में प्रसार शिक्षा निदेशक डा. आरएल सोनी ने कहा कि धरतीपुत्र किसानों के दम पर ही प्रदेश में 11 लाख हेक्टेयर में मक्का की खेती होती है. दक्षिणी राजस्थान के चित्तौड़गढ़, भीलवाड़ा, प्रतापगढ़, राजसमंद में मक्का की खेती बहुतायत में की जाती है जबकि बांसवाड़ा में तो सालभर मक्का बोई जाती है. अगर किसान जागरूक रहेगा तो उत्पादकता खुद बढ़ जाएगी.

इस मौके पर केवीके परिसर में अतिथियों ने बोटल पाम का पौधारोपण भी किया. संचालन प्रो. लतिका व्यास ने किया. समारोह स्थल पर अखिल भारतीय मक्का अनुसंधान परियोजना की ओर से डा. अमित दाधीच के नेतृत्व में प्रदर्शनी भी लगाई गई.

Employment Opportunities :कृषि क्षेत्र में रोजगार की अपार संभावनाएं

Employment Opportunities : विश्व में सब से बड़ी अर्थव्यवस्था वाला भारत चौथा देश होने के साथ ही 140 करोड़ आबादी वाला देश भी हो चुका है. ऐसे में बेरोजगारी का रास्ता भी इस जमीन से ही निकलेगा यानी कृषि क्षेत्र और इस में अपार संभावनाएं भी हैं आवश्यकता बस नजरिया बदलने की है. खेती के साथ चलने वाले व्यवसाय को पहचानने की जरूरत है वरना इतने बड़े मैनपावर को हम कहां खपाएंगे? यह बात पंजाब के राज्यपाल गुलाब चंद कटारिया ने कही.

पंजाब के राज्यपाल गुलाब चंद कटारिया राजस्थान कृषि महाविद्यालय परिसर में नवनिर्मित परीक्षा सभागार के उद्घाटन के बाद नूतन सभागार में समारोह को संबोधित कर रहे थे. कीट विज्ञान विभाग में बने इस परीक्षा सभागार के लिए उन्होंने खुद अपने विधायक फंड से 20 लाख रुपए दिए थे.

गुलाब चंद कटारिया ने कहा कि भारत को अन्न की दृष्टि से हमारे कृषि वैज्ञानिकों ने ही आत्मनिर्भर बनाया वरना हम अमेरिका से आयातित पीएन 48 गेहूं पर आश्रित थे. यह लाल गेहूं भी कंट्रोल की दुकानों से लाना पड़ता था. हमारे कृषि वैज्ञानिकों की क्षमताएं अपार हैं. उपज को बढ़ातेबढ़ाते आज हम अपना पेट ही नहीं भर रहे हैं, बल्कि कई देशों की भूख को भी शांत कर रहे हैं.

उन्होंने आगे कहा कि उदयपुर आदिवासी बहुल इलाका है. यहां किसानों के पास छोटीछोटी जोत है. आदिवासी बारिश होने के बाद खेत में मक्का बीज डालकर मजदूरी के लिए गुजरात चला जाता है. फिर बाद में फसल पशु चट कर जाते हैं या हरे भुट्टे लोग तोड़ ले जाते हैं. छोटी जोत वाले किसानों की मानसिकता को बदलना होगा. एमपीयूएटी वैज्ञानिकों को ऐसा मौडल तैयार करना होगा जिसे अपनाकर छोटी जोत के किसान परिवार अपना भरण पोषण कर सकें. वो चाहे नीबू, आम, आंवले का बगीचा हो या फूल की खेती. खेती का पेटर्न बदलने की जरूरत है.

आज दुख इस बात का है कि हमने खेती करने वाले को हमेशा अपमानित किया है. विश्वविद्यालय अभियान चलाकर एक गांव एक किसान का चयन कर बगीचा लगाएं, ताकि आसपास के किसान भी देख कर आत्मनिर्भर बन सकें. आज कीटनाशकों के दुष्प्रभाव सामने है. हर तीसरे घर में कैंसर मरीज है. प्रयास यह हो कि आदमी की सेहत भी ठीक रहे और अच्छी आमदनी भी हो.

गुलाब चंद कटारिया ने समारोह में मौजूद कृषि विद्यार्थियों से आह्वान किया कि देश तुम्हें देख रहा है. तीसरी अर्थव्यवस्था से भारत को प्रथम पायदान पर लाने की क्षमता आप सभी में है और पूरे मनोयोग से डटे रहे तो यह उपलब्धि भी जल्दी हासिल कर लेंगे.

इस कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि डा. अजीत कुमार कर्नाटक ने कहा कि नई शिक्षा नीति के आलोक में 2 साल पहले ही राजस्थान कृषि महाविद्यालय में 60 सीटें बढ़ाई गईं. वर्तमान में एक ही परीक्षा हाल होने से 192 छात्रों की तीन पारियों में परीक्षाएं लेनी पड़ती थी. अब नया परीक्षा सभागार बनने से विद्यार्थियों को बेहतर सुविधाएं मिलेगी.

डा. अजीत कुमार कर्नाटक ने कहा कि इस क्षेत्र का पहला कृषि महाविद्यालय की स्थापना 1960 में हुई. जबकि उदयपुर का कृषि महाविद्यालय 5 साल पहले यानी 1955 में ही शुरू हो चूका था.

उन्होंने आगे कहा कि इस महाविद्यालय से निकले छात्र आज देशदुनिया में ऊंचे पदों पर आसीन है. देशभर में कुल 73 कृषि विश्वविद्यालयों में एमपीयूएटी का नाम शीर्ष में गिना जाता है. अनुसंधान, नवाचारों पर यहां खूब काम हुए हैं. एमपीयूएटी को अब तक 58 पेटेंट मिल चुके हैं, इन में 2 साल 8 माह के उन के कार्यकाल में ही 41 पेटेंट हुए हैं. अनुसंधान का इंडेक्स आज 37 से बढ़कर 81 हो चुका है.

डा. अजित कुमार कर्नाटक ने कहा कि विश्वविद्यालय वैज्ञानिकों ने प्रताप संकर मक्का 6 विकसित की है, जिस की उपज 60-65 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है. जबकि वर्तमान में 30-35 क्विंटल प्रति हेक्टेयर ही उपज मिल रही थी. विश्वविद्यालय ने 6 कंपनियों से समझौता कर संकर मक्का 6 का ब्रीडर सीड तैयार करने को कहा है, ताकि किसानों को लाभ मिल सके. इस के अलावा सौर ऊर्जा, ग्रीन एनर्जी, खरपतवार प्रबंधन, जैविक व प्राकृतिक खेती के साथसाथ अनुसंधान, कौशल विकास में भी विश्वविद्यालय ने उल्लेखनीय कार्य किए  हैं.

शुरुआत में राजस्थान कृषि महाविद्यालय के अधिष्ठाता डा. आरबी दुबे ने कहा कि साल 1987 में उदयपुर कृषि विश्वविद्यालय, बीकानेर चला गया तो जन आंदोलन में गुलाब चंद कटारिया के प्रयासों से ही 1999 में महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय की नींव रखी गई. राजस्थान कृषि महाविद्यालय देश का सब से पुराना कृषि महाविद्यालय है. अब तक यहां से 4,441 बी.एससी, 3,815 एम.एससी और 2,528 छात्रछात्राएं पी.एच.डी. उपाधि ले चुके हैं.

इस कार्यक्रम में विश्वविद्यालय प्रबंध समिति के सदस्य, डीन डायरेक्टर डा. अरविंद वर्मा, डा आरएल सोनी, डा. सुनील जोशी, डा. आरए कौशिक, डा. कविता जोशी, डा. एस रमेश बाबू सहित बड़ी संख्या में छात्र छात्राएं उपस्थित थे. इस कार्यक्रम का संचालन डा. कपिल देव आमेटा ने जबकि डा. एसएस लखावत ने धन्यवाद ज्ञापित किया.

Employment Opportunities

जल संरक्षण में उदयपुर की अनोखी मिसाल

राज्यपाल पंजाब एवं प्रशासक चंड़ीगढ़ गुलाब चंद कटारिया ने कहा कि मैं भी देशदुनिया घूमा हूं लेकिन जल संरक्षण का उदयपुर जैसा उदाहरण कहीं भी देखने को नहीं मिला. तब न तो विज्ञान ने इतनी तरक्की की थी और न ही पढ़ाईलिखाई थी. उस जमाने में महज 200 मीटर पाल बांध कर उदयपुर ने एशिया की सब से बड़ी मीठे पानी की झील बना दी जो सालभर भरी रहती है. यहां के महाराणाओं की पैनी सोच का ही परिणाम यह है कि तालाब के पास तालाब बना कर जल का संरक्षण किया गया.

उन्होंने देवास परियोजना का जिक्र करते हुए तत्कालीन मुख्यमंत्री मोहन लाल सुखाड़िया को याद करते हुए कहा कि 1965 में ही सुखाड़िया ने देवास परियोजना के 4 चरणों के खर्च का एक मौडल तैयार कर लिया था. पहला और दूसरा चरण पूरा होने के बाद केवल उदयपुर ऐसा शहर है, जहां अप्रैल में आकोदड़ा बांध से पानी छोड़कर झीलों को भरा जाता है. तीसरा व चौथा चरण पूरा होने पर देवास पूरे मेवाड़ को  हराभरा रखने के साथ ही बीसलपुर तक पानी पहुंचाने में सक्षम है.

उन्होंने आगे बताया कि मेवाड़ में सब से अधिक बारिश गोगुंदा में होती है, लेकिन वहां के लोग प्यासे हैं. गोगुंदा का पानी उदयपुर के लोग पी रहे हैं. ऐसे में जल संरक्षण की दिशा में हमें प्रभावी प्रयास करने होंगे.

Fertilizer Retailer: सफल खुदरा उर्वरक विक्रेता के लिए महत्वपूर्ण 5 ‘आर’

Fertilizer Retailer : डा. अजीत कुमार कर्नाटक प्रसार शिक्षा निदेशालय, उदयपुर द्वारा आयोजित 15 दिवसीय खुदरा उर्वरक विक्रेता प्राधिकार पत्र प्रशिक्षण के समापन अवसर पर बतौर मुख्य अतिथि के रूप में संबोधित कर रहे थे.

जहां उन्होंने कहा “वर्तमान में जमीन धीरेधीरे घट रही है और आबादी बढ़तेबढ़ते आज 140 करोड़ हो चुकी है. ऐसे में फसल उत्पादन बढ़ाने की गति को बनाए रखना बहुत जरूरी है. अब समय आ गया है कि शोध का शिक्षण हो. वैज्ञानिकों को किसान के खेत पर जा कर कार्य करना होगा ताकि, तकनीक को किसान हाथोंहाथ सीख सकें.” इस प्रशिक्षण कार्यक्रम में उदयपुर, राजसमंद, चित्तौड़गढ़, डूंगरपुर, बांसवाड़ा और सलूंबर के 51 खुदरा उर्वरक विक्रेताओं ने भाग लिया जिन में 7 महिलाएं भी शामिल थी.

उन्होंने आगे कहा कि एक अच्छा खाद उर्वरक विक्रेता बनने के लिए कृषि उत्पादों के बारे में संपूर्ण जानकारी का होना बहुत जरूरी है और जानकारी सुनियोजित और स्तरीय प्रशिक्षण से ही संभव है, जो एमपीयूएटी की नियमित गतिविधि है. आज भी दुख इस बात का है कि आम आदमी खाद के नाम पर केवल यूरिया को जानता है जबकि, ऐसा नहीं है. उर्वरक के प्रमुख घटक, नाइट्रोजन, फास्फोरस व पोटाश का प्रतिनिधित्व करने वाले अनेक उर्वरक आजकल चलन में हैं. डा. अजीत कुमार कर्नाटक ने सलाह दी कि खुदरा उर्वरक विक्रेताओं को प्राकृतिक खेती से जुड़ी सामाग्री भी अपने स्टोर में रखनी चाहिए ताकि, प्राकृतिक खेती को बढ़ावा मिल सके.

प्रसार शिक्षा निदेशक डा. आरएल सोनी ने कहा कि एक सफल खुदरा उर्वरक विक्रेता के लिए व्यापार में फाइव ‘आर’ की काफी महत्ता है. ये पांच आर हैं – रिस्क, रिलेशन, रेग्यूलेटरी, रेप्युटेशन और रेट. इन्हें आत्मसात कर व्यापार किया जाए तो सफलता पक्की है.

उन्होंने आगे कहा कि उर्वरक विक्रेताओं को किसानों से सीधा संपर्क स्थापित कर विभिन्न प्रकार की नवीनतम एवं आधुनिक कृषि तकनीकों को अपनाने के लिए भी प्रेरित करना चाहिए और उन की आमदनी को बढ़ाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभानी चाहिए. डा.आरएल सोनी ने उर्वरकों के संतुलित उपयोग एवं मृदा परीक्षण के महत्व पर प्रकाश डालते हुए मृदा स्वास्थ्य कार्ड, पोषक तत्व प्रबंधन , समन्वित पोषक तत्व के लाभ, जैविक खेती और उस के लाभ, कार्बनिक खेती आदि के बारे में भी चर्चा की.

इस कार्यक्रम के विशिष्ठ अतिथि छात्र कल्याण अध्यक्ष डा. मनोज महला ने प्रशिक्षणार्थियों को उर्वरक उपयोग दक्षता बढ़ाने के उपाय सुझाए. टिकाऊ खेती, समन्वित कृषि पद्धति की फसल विविधीकरण आदि विषयों पर जानकारी दे कर उन का ज्ञानवर्धन किया.

प्रशिक्षण समन्वयक एवं कार्यक्रम संचालक डा. लतिका व्यास, प्राध्यापक ने बताया कि इस प्रशिक्षण में 15 दिन तक विश्वविद्यालय के विभिन्न कृषि वैज्ञानिकों एवं राज्य सरकार के कृषि अधिकारियों ने प्रशिक्षणार्थियों को उर्वरक प्राधिकार पत्र की महत्ता एवं इस से जुड़ी सभी तरह की जानकारियां प्रदान की. सभी ने प्रशिक्षण का लाभ किसानों तक पहुंचाने की अपील की.

इस समारोह में खुदरा उर्वरक विक्रेता प्रशिक्षण में भाग लेने वाले सभी प्रशिक्षणार्थियों को कार्यक्रम के मुख्य अतिथि द्वारा प्रमाणपत्र एवं प्रशिक्षण संबंधी साहित्य प्रदान किए गए. साथ ही, प्रशिक्षणार्थियों ने प्रशिक्षण के अनुभव भी साझा किए.

नवाचारों को बढ़ावा देने में अग्रणी एमपीयूएटी : उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय के साथ हुआ समझौता

उदयपुर : 21 नवंबर, 2024. महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर के कुलपति डा. अजीत कुमार कर्नाटक ने कहा कि सौर ऊर्जा दोहन, पेटेंट्स, आईएसओ प्रमाणित लैब, आईएसओ प्रमाणित केवीके, कालेज, स्कूप्स एच इंडेक्स, क्राप केफेटेरिया, सभी केवीके में मिलेट वाटिका विकसित करने जैसी दर्जनों गतिविधियां एमपीयूएटी को प्रदेश के कृषि विश्वविद्यालयों में शीर्ष पर रेखांकित करती है.

कुलपति डा. अजीत कुमार कर्नाटक ने पिछले दिनों हल्द्वानी, उत्तराखंड में कृषि वैज्ञानिकों को संबोधित करते हुए यह बात कही. कार्यक्रम में राजस्थान के महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर एवं उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय के बीच शोध व नवाचार को ले कर एक समझौतापत्र पर हस्ताक्षर हुए, जिस में यह तय किया गया कि दोनों विश्वविद्यालयों के बीच शोध व नए प्रयोगों का आदानप्रदान होगा. इस से दोनों विश्वविद्यालयों के विद्यार्थियों को लाभ मिल सकेगा.

डा. अजीत कुमार कर्नाटक ने इस मौके पर विस्तारपूर्वक देश के कृषि परिदृश्य पर बात रखी और कहा कि बीजों से पैदावार बढ़ाने को ले कर देशभर में बहुत काम हो रहा है, लेकिन कीटनाशकों के अधिक इस्तेमाल को हमें रोकना होगा. यही नहीं, हमें हरित क्रांति के दुष्प्रभावों को देखना होगा और उसी के अनुरूप रणनीतियां बनानी होंगी.

उन्होंने आगे कहा कि एमपीयूएटी ने 14 से अधिक विदेशी विश्वविद्यालयों के साथ करार किया हुआ है, जिस का लाभ विद्यार्थियों को मिल रहा है. एमपीयूएटी ने वर्ष 2024 में 25 पेटेंट हासिल किए व कुल पेटेंट 54 हैं. एमपीयूएटी ने सौर ऊर्जा के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य किया है. एमपीयूएटी में सौर ऊर्जा से हर साल एक करोड़ रुपए से ज्यादा के बिजली बिल का खर्च बचाया जा रहा है.

उन्होंने बताया कि विश्वविद्यालय के 5 महाविद्यालयों और एक विभाग को मिला कर 1100 किलोवाट (1.1 मेगावाट) का औन ग्रिड प्लांट लगा हुआ है. यह प्रदेश के सभी विश्वविद्यालया में लगा सब से बड़ा प्लांट है. राजस्थान कृषि महाविद्यालय में 500 किलोवाट, जबकि अभियांत्रिकी एवं प्रौद्योगिकी महाविद्यालय में 465 किलोवाट का प्लांट लगा है.

कुलपति डा. अजीत कुमार कर्नाटक ने कहा कि मोटा अनाज व आईएसओ के क्षेत्र में बेतहरीन कार्य के लिए उन के विश्वविद्यालय को राज्यपाल अवार्ड से सम्मानित किया गया है. उन्होंने कहा कि देश की 65 फीसदी आबादी आज भी सीधेतौर पर खेती से जुड़ी है. ऐसे में कृषि के क्षेत्र में शोध एवं नवाचार की बहुत आवश्यकता है.

उन्होंने उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय की सराहना करते हुए कहा कि यहां पर आईसीटी व शिक्षार्थियों के लिए पाठ्य सामग्री बहुत अच्छी गुणवत्तायुक्त तैयार की जा रही है, जिस का लाभ निश्चय ही उन के विश्वविद्यालय के विद्यार्थी ले पाएंगे.

कार्यक्रम में उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. ओपीएस नेगी ने विश्वविद्यालय के कार्यों को निरूपित करते हुए एक पीपीटी प्रेजेंटेशन प्रस्तुत किया.

विशिष्ट अतिथि विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो. होशियार सिंह धामी ने कहा कि इस तरह के करार से शिक्षार्थियों को एक बड़ा फलक मिल पाएगा, जिस से उन के लिए रोजगार के अवसर भी बढ़ेंगे. उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय में विज्ञान शाखा के निदेशक प्रो. पीडी पंत ने व विश्वविद्यालय कुलसचिव खीमराज भट्ट ने सभी का आभार व्यक्त किया.

कार्यक्रम में विश्वविद्यालय के प्रो. मंजरी अग्रवाल, प्रो. डिगर सिंह फरस्वाण, डा. कल्पना लखेड़ा पाटनी, डा. रंजू जोशी, प्रो. राकेश चंद्र रयाल आदि ने भी विचार रखे.

एमपीयूएटी विश्वविद्यालय नवाचार और शोध पर कार्य कर रहा काम

उदयपुर : 23 सितंबर, 2024. क्षेत्रीय अनुसंधान एवं प्रसार सलाहकार समिति संभाग चतुर्थ-अ की बैठक अनुसंधान निदेशालय के सभागार में महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर के कुलपति की अध्यक्षता में 23 सितंबर, 2024 को कृषि अनुसंधान केंद्र, अनुसंधान निदेशालय, उदयपुर में आयोजित की गई.

महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर के कुलपति डा. अजीत कुमार कर्नाटक ने बैठक को संबोधित करते हुए कहा कि महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय ने गत वर्षों में विभिन्न प्रौद्योगिकी पर 54 पेटेंट प्राप्त किए, जिस में से 25 पेटेंट वर्ष 2024 में प्राप्त किए.

उन्होंने आगे कहा कि औषधीय एवं सुगंधी फसलों एवं जैविक खेती इकाई ने पिछले वर्ष राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाई. विश्वविद्यालय अध्यापन, अनुसंधान, प्रसार एवं उद्यमिता पर काम कर रहा है. साथ ही, यह विश्वविद्यालय नवाचारयुक्त आधुनिक शोध पर काम कर रहा है. अपनी तकनीकियों का वाणिज्यकरण की दिशा में काम करते हुए मक्का की उन्नत किस्म प्रताप मक्का-6 का देश की 7 कंपनियों के साथ समझौता किया.

उन्होंने यह भी बताया कि मक्का की इस किस्म से इथेनोल तैयार हो सकता है, जो कि ग्रीनफ्यूल में उपयोग किया जाएगा. उन्होंने सभी वैज्ञानिकों को आह्वान किया कि सभी फसलों की जलवायु अनुकूलित नई किस्में विकसित की जाएं, ताकि किसानों को अधिक से अधिक लाभ मिल सके.

कुलपति अजीत कुमार कर्नाटक ने अपने संबोधन में कहा कि जैविक खेती के साथ प्राकृतिक खेती पर जोर देना चाहिए, जिस से गुणवत्तायुक्त उत्पाद कम लागत में तैयार हो सके, जिस से कि किसान की जीविका में बढ़ोतरी होगी.

डा. अजीत कुमार कर्नाटक ने कहा कि इस विश्वविद्यालय के 2 वैज्ञानिक देशभर के 2 फीसदी वैज्ञानिकों में शामिल हैं. इस विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने किसानों की जरूरतों के लिए छोटेछोटे कृषि उपकरण, बायोचार उपचार के लिए छोटी इकाई का निर्माण आदि किया.

पिछले वर्ष अफीम की चेतक किस्म, मक्का की पीएचएम-6 किस्म के साथ असालिया एवं मूंगफली की किस्में विकसित की. आज कृषि में स्थायित्व लाने के लिए कीट व बीमारी प्रबंधन एवं जल प्रबंधन पर काम करना होगा.

उन्होंने आगे कहा कि विश्वविद्यालय ने जैविक/प्राकृतिक खेती में राष्ट्रीय पहचान बनाई है. उन्होंने बताया कि भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के महानिदेशक ने विश्वविद्यालय से कहा कि भारतीय कृषि प्रणाली अनुसंधान संस्थान के साथ मिल कर अपने भाषण के दौरान उन्होंने कृत्रिम बुद्धिमत्ता, डिजिटल इंजीनियरिंग एवं यंत्र अधिगम पर उत्कृष्टता केंद्र पर बल दिया. साथ ही, उन्होंने सभी वैज्ञानिकों से कहा कि विश्वविद्यालय की आय विभिन्न तकनीकियों द्वारा बढ़ाई जाए.

महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर के निदेशक अनुसंधान डा. अरविंद वर्मा ने बैठक की शुरुआत में सभी अतिथियों का स्वागत करते हुए कहा कि क्षेत्रीय अनुसंधान एवं प्रसार सलाहकार समिति की बैठक विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों द्वारा विकसित की गई तकनीकों का कृषि विभाग के आधिकारियों के साथ मिल कर पैकेज औफ प्रैक्टिस में सम्मिलित की जाती है. विश्वविद्यालय में तकनीकी विकसित करने के लिए 27 अखिल भारतीय समन्वित परियोजना एवं 3 नैटवर्क परियोजनाएं चल रही हैं. साथ ही, राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के तहत 2 परियोजनाएं चल रही हैं.

उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय ने गत वर्ष विभिन्न फसलों की 4 किस्में विकसित की गईं. मक्का परियोजना द्वारा विकसित प्रताप संकर मक्का- 6 देश के 4 राज्यों- राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ एवं गुजरात के लिए उपयुक्त है. यह किस्म जल्दी पकने वाली (82-85), फूल आने के बाद डंठल का सड़ना रोग मुक्त एवं 65-70 क्विंटल उपज देती है.

डा. आरबी दुबे, राजस्थान कृषि महाविद्यालय के अधिष्ठाता ने बीज की समस्या पर कहा कि देश में 51 हजार टन बीज की आवश्यकता है, जिस में से 40 हजार टन बीज ही उपलब्ध है और इस में भी 80-90 फीसदी हिस्सा निजी संस्था उपलब्ध कराती है.

उन्होंने अपने उद्बोधन में कहा कि कम उपयोग में आने वाली फसलों विशेषकर किकोडा, बालम काकडी, टिंडोरी आदि पर अनुसंधान की आवश्यकता है. विश्वविद्यालय द्वारा विकसित मक्का की किस्म प्रताप संकर मक्का-6 में एक टन से 380 लिटर इथेनोल प्राप्त किया जा सकता है, जिस की कीमत 55-65 लिटर होती है. प्रताप संकर मक्का चरी- 6 से 300-400 क्विंटल हरा चारा प्राप्त किया जा सकता है. साथ ही, बेबीकार्न मक्का भी प्राप्त किया जा सकता है.

डा. आरए कौशिक, निदेशक, प्रसार शिक्षा निदेशालय ने अपने उद्बोधन में कहा कि अनुसंधान निदेशालय द्वारा विकसित तकनीकों को कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिकों द्वारा किसानों के खेतों पर पहुंचाया जाता है. विश्वविद्यालय द्वारा विकसित मूंगफली छीलने वाली मशीन एवं सौर ऊर्जा आधारित मक्का छीलने की मशीन किसानों के यहां बहुत अच्छा प्रदर्शन कर रही हैं. उन्होंने जनजाति क्षेत्र में गुणवत्तायुक्त बीज एवं पौध के वितरण पर जोर दिया.

इस बैठक में अतिरिक्त निदेशक कृषि विभाग, भीलवाड़ा डा. राम अवतार शर्मा और संयुक्त निदेशक, उद्यान, भीलवाड़ा एवं संयुक्त निदेशक कृषि, भीलवाड़ा, संयुक्त निदेशक, कृषि, चित्तौडगढ़, राजसमंद एवं अन्य अधिकारी एवं एमपीयूएटी के वैज्ञानिकों ने भाग लिया.

बैठक के प्रारंभ में डा. राम अवतार शर्मा, अतिरिक्त निदेशक कृषि विभाग, भीलवाड़ा ने गत रबी में वर्षा का वितरण, बोई गई विभिन्न फसलों के क्षेत्र एवं उन की उत्पादकता के बारे में विस्तार से जानकारी दी. उन्होंने संभाग में विभिन्न फसलों में रबी 2023 के दौरान आई समस्याओं को बताया और अनुरोध किया कि वैज्ञानिक इन के समाधान के लिए उपाय सुझावें. साथ ही, किसानों की आमदनी बढ़ाने के लिए उन्नत बीज, वैज्ञानिक एवं प्रसार अधिकारियों द्वारा तकनीकियों का प्रसार, फसल विविधीकरण एवं मूल्य संवर्धित उत्पाद के बारे में बताया.

क्षेत्रीय अनुसंधान निदेशक डा. अमित त्रिवेदी ने सभी अतिथियों का स्वागत करते हुए बैठक को संबोधित करते हुए विश्वविद्यालय में चल रही विभिन्न परियोजनाओं की जानकारी दी और कृषि संभाग चतुर्थ अ की कृषि जलवायु परिस्थितियों व नई अनुसंधान तकनीकों के बारे में प्रकाश डाला.

डा. अमित त्रिवेदी ने संभाग की विभिन्न फसलों में आ रही समस्याओं के निराकरण के लिए प्रतिवेदन प्रस्तुत किया.

बैठक में डा. मनोज कुमार महला, निदेशक, छात्र कल्याण अधिकारी, डा. बीएल बाहेती, निदेशक, आवासीय एवं निर्देशन एवं गोपाल लाल कुमावत, संयुक्त निदेशक कृषि, भीलवाड़ा, महेश चेजारा, संयुक्त निदेशक उद्यान, भीलवाड़ा, दिनेश कुमार जागा, संयुक्त निदेशक कृषि, चित्तौड़गढ, ग्राह्य अनुसंधान एवं प्रशिक्षण केंद्र, चित्तौड़गढ़, डा. शंकर सिंह राठौड़, पीडी, आत्मा, भीलवाड़ा, रमेश आमेटा, संयुक्त निदेशक, शाहपुरा, रविंद्र वर्मा, संयुक्त निदेशक उद्यानिकी एवं डा. रविकांत शर्मा, उपनिदेशक, अनुसंधान निदेशालय, उदयपुर उपस्थित थे.

इस बैठक में विभिन्न वैज्ञानिकों व अधिकारियों द्वारा गत रबी में किए गए अनुसंधान एवं विस्तार कार्यों का प्रस्तुतीकरण किया गया और किसानों को अपनाने के लिए सिफारिशें जारी की गईं. कार्यक्रम के अंत में अनुसंधान निदेशालय के सहायक आचार्य डा. बृज गोपाल छीपा ने सभी का धन्यवाद ज्ञापित किया.

पर्यावरण प्रबंधन (Environmental Management) में प्लास्टिक अभियांत्रिकी पर कार्यशाला

उदयपुर: 22 फरवरी, 2024. कृषि संरचना और पर्यावरण प्रबंधन में प्लास्टिक अभियांत्रिकी पर अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना की 19वीं दोदिवसीय वार्षिक कार्यशाला का शुभारंभ हुआ.

कार्यशाला का आयोजन एमपीयूएटी, उदयपुर एवं सीफेट, लुधियाना के संयुक्त तत्वावधान में किया गया. कार्यशाला में परियोजना के देशभर में 14 केंद्र अपनी सालभर का प्रतिवेदन प्रस्तुत किया. कार्यशाला के मुख्य अतिथि डा. अजीत कुमार कर्नाटक, कुलपति, महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर ने बताया कि प्लास्टिक का विवेकपूर्ण उपयोग कृषि के क्षेत्र में खासा मददगार साबित हो रहा है. निश्चित ही प्लास्टिक का पर्यावरण पर विपरीत प्रभाव रहता है, परंतु इस का विवेकपूर्ण उपयोग अन्य पदार्थों का एक सस्ते विकल्प के रूप में अपनी पहचान पूरे विश्व में बन चुका है.

डा. अजीत कुमार कर्नाटक ने कहा कि भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद एवं राज्य कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक संयुक्त रूप से उत्कृष्ट काम कर रहे हैं, जिस के परिणामस्वरूप भारत आज खाद्य पदार्थों के उत्पादन में आत्मनिर्भर तो हो ही चुका है और निर्यात में भी नए कीर्तिमान स्थापित कर रहा है.

कार्यशाला के अध्यक्ष डा. एसएन झा, उपमहानिदेशक, अभियांत्रिकी भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली ने वैज्ञानिकों को अपने अनुसंधान में आर्टिफिशियल इंटैलिजैंस एवं इंटरनैट औफ थिंग का समावेश करने के लिए प्रेरित किया. उन्होंने आगे बताया कि वैज्ञानिकों को वर्तमान समस्याओं पर आधारित अनुसंधान करना चाहिए एवं रोज नए नवाचारों को अपने के लिए सक्षम बनना चाहिए.

डा. के. नरसिया, अतिरिक्त निदेशक, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली ने वैज्ञानिकों से तकनीकी नवाचार करने एवं उस के आर्थिक पक्ष को संज्ञान में रखते हुए लागत कम करने आह्वान किया. डा. नचिकेत, निदेशक सीफैट, लुधियाना ने सदन को संबोधित करते हुए कहा कि जनमानस में प्लास्टिक को ले कर काफी भ्रांतियां हैं, जबकि विवेकपूर्ण उपयोग प्लास्टिक की उपयोगिता बढ़ाता है.

डा. नचिकेत ने वैज्ञानिकों को बहुआयामी अनुसंधान कार्यों को एक छत के नीचे ला कर सामूहिक प्रयास करने के लिए प्रेरित किया. कार्यालय में डा. राकेश शारदा, परियोजना समन्वयक सीफैट, लुधियाना ने परियोजना का वार्षिक प्रतिवेदन प्रस्तुत किया, जिस में उन्होंने नई तकनीकियों की जानकारी दी.

कार्यशाला में टीबीएस राजपूत, पूर्व परियोजना निदेशक, भारतीय जल प्रबंधन संस्थान, नई दिल्ली एवं इंजीनियर आनंद झांबरे, कार्यकारी निदेशक, एनसीपीएएच, नई दिल्ली विशेषज्ञ के रूप में भाग लिया, जो कि नई परियोजनाओं एवं वार्षिक प्रतिवेदन की समीक्षा की गई.

डा अरविंद वर्मा, अनुसंधान निदेशक, महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर ने अतिथियों का स्वागत किया एवं उदयपुर केंद्र की वर्षभर की उपलब्धियों का संक्षिप्त विवरण दिया. साथ ही, उन्होंने प्लास्टिक का खेती में संभावित उपयोगों पर चर्चा की.

प्रगतिशील किसानों का किया सम्मान

उदयपुर: 26 जनवरी, 2024. महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के प्रशासनिक भवन परिसर के खेल मैदान पर देश का 75वां गणतंत्र दिवस समारोह उत्सापहपूर्वक मनाया गया. इस मौके पर प्रगतिशील किसानों के अलावा उत्कृष्ट काम करने वाले शैक्षिक, तकनीकी, कार्मिकों एवं विद्यार्थियों को सम्मानित किया गया.

कार्यक्रम में विश्वविद्यालय के अधीन 7 जिलों के डीन व डायरैक्टर व कृषि विज्ञान केंद्र के प्रभारियों ने भाग लिया. इस अवसर पर डा. अजीत कुमार कर्नाटक ने कहा कि गणतंत्र दिवस स्वतंत्र और एकीकृत भारत की मूल भावना का प्रतीक है. 26 जनवरी, 1950 वह गौरवशाली दिन था, जब हम ने भारत के संविधान को लागू किया. आज भारत हर क्षेत्र में विश्व का नेतृत्व कर रहा है. हमारा विश्वास है कि प्रत्येक क्षेत्र में आने वाला समय भारत का है.

उन्होंने खुशी जताते हुए कहा कि साल 2023 हमारे विश्वविद्यालय के सफलतम वर्षों में से एक रहा है, जिस में शिक्षण, शोध, प्रसार और उद्यमिता विकास के नए आयाम स्थापित किए हैं.  उन्होंने वर्षपर्यंत विश्वविद्यालय व संघटक महाविद्यालयों में हुए विविध कार्यक्रमों का हवाला देते हुए कहा कि अंतर्राष्ट्रीय मिलेट वर्ष मनाने में भीे इस विश्वविद्यालय ने राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाई है.

डा. अजीत कुमार कर्नाटक ने बताया कि विश्वविद्यालय ने विभिन्न अनुसंधान परियोजनाओं द्वारा साल 2023 में 76 तकनीकों का विकास कर किसानों के उपयोग के लिए सिफारिश की गई है. एमपीयूएटी को विगत एक वर्ष में 13 टैक्नोलौजी और मशीन हेतु प्राप्त करने पर पेटेंट गौरवान्वित करने का अवसर है. इस के अलावा बीजोत्पादन, मत्स्य, मुरगीपालन, मशरूम  उत्पादन, तकनीक हस्तांतरण में भी विश्वविद्यालय ने उल्लेखनीय काम किए. यही नहीं, प्राकृतिक खेती में भी विश्वविद्यालय ने कदम रखा है और अच्छे नतीजे आने की उम्मीद है.

प्रगतिशील किसानों सहित कृषि वैज्ञानिकों व छात्रछात्राओं का सम्मान

कार्यक्रम के आयोजक छात्र कल्याण अधिकारी डा. मनोज महला ने बताया विगत वर्ष में उल्लेखनीय कामों के लिए विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों, विद्यार्थियों व शैक्षणेत्तर कर्मचारियों को कुलपति ने प्रशस्तिपत्र दे कर सम्मानित किया.

सम्मानित होने वाले प्रगतिशील किसान: हीरालाल चरपोटा, रतन लाल खांट (बांसवाड़ा), अंबालाल जाट, रामेश्वर लाल जाट, परमेश्वर लाल व कालूलाल माली (सभी भीलवाड़ा), राम सिंह मीणा, जगदीश लाल धाकड़ (चित्तौड़गढ़), हितेश पटेल, अमृत लाल परमार (डूंगरपुर), केसूलाल मीणा, भैरूलाल मीणा (प्रतापगढ़), छोगालाल सालवी, महेंद्र प्रताप सिंह पंवार (राजसमंद) और शंकर लाल जणवा, भैरूलाल जाट (उदयपुर).

उत्कृष्ट कार्यों के लिए सम्मानित: डा. पीके सिंह, डा. रतन लाल सौलंकी (चित्तौड़गढ़), डा. पीसी चपलोत, हनुमान सिंह सौलंकी, कौशल सिंह, तुलसीराम डांगी, रमेश कुमावत. इन के अलावा केवीके, भीलवाड़ा के वरिष्ठ वैज्ञानिक व हैड डा. सीएम यादव व टीम एआरएसएस, वल्लभनगर के डा. केके यादव व उन की पूरी टीम, प्राकृतिक खेती के लिए भीलवाड़ा के डा. एलएल पंवार व टीम डा. एनएल पंवार व टीम को सम्मानित किया गया. साथ ही, विश्वविद्यालय के विभिन्न संकायों में अध्ययनरत 15 छात्रछत्राओं को भी सम्मानित किया गया.

जनसंपर्क अधिकारी डा. लतिका व्यास ने बताया कि परेड का नेतृत्व अंडर अफसर हर्षवेंद्र सिंह राणावत ने किया. आरंभ में कुलपति डा. अजीत कुमार कर्नाटक व अतिथियों ने  फूलों  की खेती (फ्लोरल गाइड) पर आधारित निर्देशिका का विमोचन किया. संचालन डा. विशाखा बंसल ने किया.

डा. रेखा व्यास को वरिष्ठ वैज्ञानिक पुरस्कार- 2024

डा. रेखा व्यास, एमेरिटस प्रोफैसर, महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर को सामुदायिक विज्ञान महाविद्यालय, तुरा, केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, इंफाल द्वारा उमियाम, मेघालय में 17-19 जनवरी, 2024 को आयोजित 35वें द्विवार्षिक सम्मेलन में होम साइंस एसोसिएशन औफ इंडिया द्वारा वरिष्ठ वैज्ञानिक पुरस्कार 2024 से नवाजा गया. यह पुरस्कार उस वैज्ञानिक को दिया जाता है, जिस ने अनुसंधान के माध्यम से समाज के उत्थान में अपना योगदान दिया.

 

Dr. Rekha Vyas

 

डा. रेखा व्यास ने ‘कार्यस्थल के अप्रकट हत्यारे: स्वास्थ्य जोखिम एवं मांसपेशियों संबंधी विकार’ पर अनुसंधान प्रस्तुति दी, जिस में 7 व्यवसाय करने वाले यानी किसान, सब्जी उत्पादक, डेयरी कर्मचारी, निर्माण श्रमिक, टेलर, दरी बुनकर एवं कार्यालय कर्मचारियों को कार्यस्थल पर होने वाले जोखिम पर किए गए शोध व उन से बचाव की तकनीक व उपाय बताए.

इस सम्मेलन में देश के 27 राज्यों से 400 से अधिक प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया. यह पुरस्कार उन्हें नागालैंड की संसद की सदस्या एस. फांगनोन कोन्याक ने कुलपति व अन्य पदाधिकारियों की उपस्थिति में प्रदान किया.

वेस्टर्न सिडनी यूनिवर्सिटी और एमपीयूएटी के मध्य नया समझौता

नई दिल्ली/ उदयपुर : 18 सितम्बर, 2023. वेस्टर्न सिडनी यूनिवर्सिटी, आस्ट्रेलिया और महाराणा प्रताप यूनिवर्सिटी औफ एग्रीकल्चर एंड टैक्नोलौजी, उदयपुर के बीच दिल्ली में एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गए.

वेस्टर्न सिडनी यूनिवर्सिटी के कुलपति प्रो. वर्ने ग्लोवर एवं एमपीयूएटी के कुलपति डा. अजीत कुमार कर्नाटक ने एमओयू पर हस्ताक्षर किए. इस समझौते में पिछले वर्ष हुए समझौते को अगले 5 वर्ष के लिए बढ़ाया गया है.

कुलपति डा. अजीत कुमार कर्नाटक ने बताया कि यह हम सभी के लिए एक अभूतपूर्ण पल है, जिसे संजोया जाना चाहिए.

Agreementउन्होंने आगे कहा कि इस एमओयू के मध्यम से एमपीयूएटी और वेस्टर्न सिडनी विश्वविद्यालय के मध्य शोध और विधार्थियों के उच्च अध्ययन को नए आयाम मिलेंगे. इस समझौते के द्वारा हमारे विद्यार्थियों को आस्ट्रेलिया के श्रेष्ठतम शिक्षण संस्थान में अध्ययन एवं शोध का अवसर मिलेगा. इस वर्ष मृदा एवं जल अभियांत्रिकी विभाग सीटीआई के 2 छात्रों का चयन पीएचडी के लिए डुएल डिगरी प्रोग्राम के अंतर्गत हो चुका है, जिस का पूरा खर्च वेस्टर्न सिडनी विश्वविद्यालय देगा. अभी पिछले माह ही एमपीवीटी के 14 छात्र वेस्टर्न सिडनी विश्वविद्यालय में भारतीय कृषि उच्च शिक्षा परियोजना के अंतर्गत प्रशिक्षण प्राप्त कर वापस लौटे हैं.

सीटीआई के डीन डा. पीके सिंह ने बताया कि इस समझौते के तहत पीएचडी के छात्रछात्राओं को आस्ट्रेलिया आवास के दौरान 30,000 आस्ट्रेलियन डालर प्रति वर्ष की छात्रवृत्ति प्रदान की जाएगी. इस के अलावा उच्च लागत वाली परियोजनाओं में 6,000 आस्ट्रेलिया डालर एवं कम लागत वाली परियोजना के लिए न्यूनतम राशि प्रदान की जाएगी.