Maize: महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के कुलपति डा. अजीत कुमार कर्नाटक ने वल्लभनगर कृषि विज्ञान केंद्र प्रांगण में पिछले दिनों 9 जिलों के प्रगतिशील किसानों को संबोधित करते हुए कहा कि खाद्यान्न के साथसाथ फल, दूध व चीनी के क्षेत्र में भी हम आत्मनिर्भर हो चुके हैं. अब समय कृषि में विविधीकरण और नवाचारों का है. तिलहनदलहन में अभी हम पीछे हैं और तेल का आयात करना पड़ रहा है. ऐसे में बड़ी मात्रा में राजस्व विदेशों में भेजना हमारी मजबूरी है.

“वैज्ञानिक तरीके से मक्का उत्पादन एवं मूल्य संवर्धन’’ विषय पर आधारित इस किसान समागम में प्रतापगढ़, राजसमंद, डूंगरपुर, बांसवाड़ा, चित्तौड़गढ़, भीलवाड़ा आदि जिलों के 300 से ज्यादा किसानों ने भाग लिया.

उन्होंने कहा कि मक्का हमारी फसल नहीं रही है, बल्कि कोलंबस इसे भारत ले कर आया था.    चौड़ी पत्तीदार फसल होने से सब से पहले मक्का का चारे के रूप में इस्तेमाल होता था. फिर वैज्ञानिकों ने गहन शोध अध्ययन कर मक्का को पौपककौर्न के रूप में सिनेमाघरों तक पहुंचा दिया. वैज्ञानिकों की बदौलत आज मक्का बेबी कौर्न व स्वीट कौर्न के रूप में पांच सितारा होटलों की शान है. वर्तमान में मक्का के जर्मप्लाज्म से तेल, अवशेष से स्टार्च और इथेनौल तक बनाया जा रहा जो पेट्रोल में ग्रीन फ्युल के रूप में शामिल किया जा सकेगा.

मक्का उत्पादन बढ़ाने के बताए गुन 

मेज मैन औफ इंडिया के नाम से मशहूर मक्का बीज प्रजनक डा. सांई दास ने कहा कि भारत मक्का उत्पादन में किसी भी सूरत में अमरीका और चीन से पीछे नहीं है. जलवायु परिवर्तन के कारण हमें दिक्कतें आती हैं. लेकिन समय पर बीज पानी दिया जाए तो उत्पादकता बढ़ सकती है.

उन्होंने आगे कहा कि आज कई बड़े उद्योगों जैसे कपड़ा, बायोफ्यूल, जूते, दवा इंडस्ट्री में मक्का का उपयोग हो रहा है. अच्छी मक्का पैदावर के लिए उन्होंने किसानों को बताया कि पहले पानी फिर उर्वरक दें. मक्का में 6-8 पत्ती की फसल, इस के बाद कंधे तक, फिर माजर निकलते समय उर्वरक बेहद जरूरी है. अच्छे उत्पादन के लिए खरपतवार नियंत्रण भी जरूरी है.

कीट विज्ञानी डा. मनोज महला ने कहा कि भारत में पिछले 7 दशक में मक्का का उत्पादन 10 गुना बढ़ा है. 143 करोड़ की आबादी वाले देश में करोड़ों रूपए की मक्का पैदा हो रही है. पिछले 5- 6 साल पहले फौल आर्मी वर्म (फौ) ने मक्का के किसानों को सकते में डाल दिया था. यह कीट मक्का की कोमल पत्तियों को चट करता हुआ भारी नुकसान पहुंचाता है. उन्होंने फेरोमोन ट्रैप व बीजोपचार से इस कीट के नियंत्रण की तरकीब सुझाई.

इस कार्यक्रम में कुलपति डा. अजीत कुमार कर्नाटक ने केवीके बांसवाड़ा के डा. बीएस भाटी, डा. आरएल सोलंकी (चित्तौड़गढ़), डा. सीएम बलाई (डूंगरपुर), डा. योगेश कनोजिया (प्रतापगढ़), डा. पीसी रेगर (राजसमंद), डा. मनीराम (वल्लभनगर), प्रो. लतिका व्यास (प्रसार शिक्षा निदेशालय) को आईएसओ प्रमाणपत्र दे कर व मेवाड़ी पग पहना कर सम्मानित किया.

इस कार्यक्रम में पूर्व प्रसार निदेशक डा. आईजी माथुर, डा. अमित दाधीच, डा. योगेश कनोजिया, धानुका के मयूर आमेटा, गौरव शर्मा, सुशील वर्मा, देवेश पाठक, डा. मनीराम आदि ने मक्का बीज की उन्नत किस्में, प्रमुख कीट व्याधियां व नियंत्रित करने के तरीके, भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ाने आदि की जानकारी दी.

इस कार्यक्रम की शुरुआत में प्रसार शिक्षा निदेशक डा. आरएल सोनी ने कहा कि धरतीपुत्र किसानों के दम पर ही प्रदेश में 11 लाख हेक्टेयर में मक्का की खेती होती है. दक्षिणी राजस्थान के चित्तौड़गढ़, भीलवाड़ा, प्रतापगढ़, राजसमंद में मक्का की खेती बहुतायत में की जाती है जबकि बांसवाड़ा में तो सालभर मक्का बोई जाती है. अगर किसान जागरूक रहेगा तो उत्पादकता खुद बढ़ जाएगी.

इस मौके पर केवीके परिसर में अतिथियों ने बोटल पाम का पौधारोपण भी किया. संचालन प्रो. लतिका व्यास ने किया. समारोह स्थल पर अखिल भारतीय मक्का अनुसंधान परियोजना की ओर से डा. अमित दाधीच के नेतृत्व में प्रदर्शनी भी लगाई गई.

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