भोपाल : जूनोटिक बीमारियां वे बीमारियां होती हैं जो पशुओं और इनसानों के बीच फैल सकती हैं. ये बीमारियां पशुओं और इंसानों दोनों को प्रभावित कर सकती हैं और कभीकभी गंभीर रूप से ये जानलेवा भी हो सकती हैं. इन से पशुपालकों को अधिक खतरा होता है. पशुओं के साथ ज्यादा समय बिताने से संपर्क बढ़ता है, जिस से जोखिम भी बढ़ता है.
जूनोटिक बीमारियां वास्तव में तब फैलती हैं जब इंसान किसी संक्रमित पशु या उस से जुड़ी वस्तुओं के संपर्क में आता है. कुछ आम जूनोटिक बीमारियों में रेबीज शामिल है, जो पशु के काटने से फैलती है और समय पर टीका न लगवाने पर जानलेवा हो सकती है. ब्रुसेलोसिस संक्रमित पशुओं के दूध या सीधे संपर्क में रहने से फैलती है, जिस से बुखार, जोड़ों में दर्द और गर्भपात हो सकता है.
टीबी (ट्यूबरक्लोसिस) संक्रमित पशुओं के संपर्क, दूध या मांस के सेवन से फैल सकती है. एंथ्रेक्स संक्रमित जीवित या मृत पशुओं और उन के उत्पादों से फैलता है. बर्ड फ्लू बीमार पक्षियों या उन की बीट के संपर्क से फैलता है, जब कि साल्मोनेला कच्चे मांस, दूध या अंडों के जरीए इंसानों में संक्रमण फैला सकता है. इन जूनोटिक बीमारियों से बचाव के लिए सावधानी बरतना बेहद जरूरी है. बीमार या मरे हुए पशुओं से दूरी बनाए रखें और उन्हें बिना सुरक्षा उपकरणों के न छुएं.
पशुओं के शवों का निबटान निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार करें. बच्चों को बीमार पशुओं से दूर रखें. हमेशा दूध को उबाल कर और मांस व अंडों को अच्छी तरह पकाकर ही सेवन करें. पशुओं का नियमित टीकाकरण कराएं, विशेषकर रेबीज और ब्रुसेलोसिस जैसी बीमारियों के टीके जरूर लगवाएं. पशुओं की देखभाल करते समय दस्ताने, मास्क और अन्य सुरक्षात्मक उपकरणों का उपयोग करें. साफसफाई का ध्यान रखें, पशु बाड़ों और उपकरणों को नियमित रूप से कीटाणुनाशक से साफ करें, और संदिग्ध मामलों में तुरंत पशु चिकित्सक या स्वास्थ्य अधिकारी से संपर्क करें.
जुलाई महीने की 6 तारीख को विश्व जूनोटिक दिवस मनाने का उद्देश्य है लोगों को इन बीमारियों के बारे में जागरूक करना और एक स्वस्थ, सुरक्षित समाज की दिशा में कदम बढ़ाना. पशुपालन से जुड़े सभी लोगों की जिम्मेदारी है कि वे स्वयं सुरक्षित रहें और दूसरों को भी सुरक्षित रखने में योगदान दें.