भारत में चमेली की खेती कई इलाकों में की जाती है, लेकिन तमिलनाडु पहले स्थान पर है. उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद, जौनपुर और गाजीपुर जिलों में भी इसे उगाया जाता है. इस के फूल आमतौर पर सफेद रंग के होते हैं, लेकिन कहींकहीं पीले रंग के फूलों वाली चमेली भी पाई जाती है.

चमेली के फूल, पेड़ व जड़ तीनों ही औषधीय चीजें बनाने में इस्तेमाल होते हैं. इस के फूलों से सजावट के अलावा तेल और इत्र भी तैयार किए जाते हैं. भारत से चमेली के फूलों को श्रीलंका, सिंगापुर और मलयेशिया भेजा जाता है.

आबोहवा और मिट्टी : इस की खेती गरम व नम जलवायु में अच्छी तरह से होती है. गरम जलवायु में पानी की अच्छी सहूलियत और लंबे समय तक उजाला चमेली के लिए अच्छा माना जाता है.

चमेली की खेती कई तरह की मिट्टी में की जा सकती है, लेकिन बलुई दोमट मिट्टी, जिस में पानी न रुकता हो और जिस का पीएच मान 6.5-7.5 हो, ज्यादा अच्छी रहती है.

किस्में : भारत में चमेली की तकरीबन 80 किस्में पाई जाती हैं, किंतु कारोबारी खेती के लिए 3 किस्मों को उगाया जाता है :

जैस्मिनम

औरिकुलेटम : यह झाडि़यों वाली किस्म है, जो पूरे साल फूल देती है. इस में सब से ज्यादा फूल मानसून के समय आते हैं. इस के फूलों में महक बहुत होती है और इन से 0.24 से 0.42 फीसदी तक तेल हासिल होता है.

जैस्मिनम सैमबैक : यह किस्म फूल की पैदावार के लिए बेहद अच्छी है.

जैस्मिनम ग्रांडीफ्लोरम : इस के पौधे आधे बेल वाले होते हैं और इन में फूल जून से सितंबर महीने में आते हैं. इस के फूलों से 0.24 से 0.42 फीसदी तेल हासिल किया जाता है.

पौध तैयार करना : चमेली की कलम कटिंग द्वारा तैयार की जाती है. इस की कटिंग जनवरीफरवरी महीने में लगानी चाहिए, क्योंकि इस समय इस में सब से ज्यादा जड़ें निकलती हैं.

खेत की तैयारी : चमेली की खेती के लिए सब से पहले खेत की 2-3 बार गहरी जुताई करते हैं. इस के बाद 1.5×1.5 मीटर की दूरी पर 30×30 सैंटीमीटर आकार के गड्ढे खोद लेते हैं. इन गड्ढों में 10-15 किलोग्राम कंपोस्ट खाद और मिट्टी भर देते हैं.

जड़ निकली हुई कटिंग को इन गड्ढों के बीच में लगा कर सिंचाई कर देते हैं. कटिंग की रोपाई का सब से अच्छा समय जून से ले कर अक्तूबर माह तक होता है. एक एकड़ खेत के लिए तकरीबन 1,800 कटिंग की जरूरत होती है.

खरपतवार खत्म करने के लिए पहली निराई रोपाई के 3-4 हफ्ते बाद करनी चाहिए. पौधों की कटाईछंटाई करने के बाद थालों व पानी की नालियों को अच्छी तरफ साफ कर के 10-15 सैंटीमीटर की गहराई तक खुदाई करनी चाहिए और उस में खाद व उर्वरक मिलाना चाहिए. यह काम हर 2-3 महीने बाद दोहराते रहना चाहिए.

कटाईछंटाई : चमेली की फसल में साल में एक बार कटाईछंटाई की जाती है.

सिंचाई : चमेली को ज्यादा पानी की जरूरत होती है. रोपाई के तुरंत बाद एक सिंचाई कर देनी चाहिए. इस के बाद जरूरत के मुताबिक हफ्ते में 1-2 बार सिंचाई करते रहें. जब फूल आने शुरू हो जाएं, तो नमी बनाए रखने के लिए सिंचाई करते रहें.

फसल सुरक्षा : चमेली पर मिली बग, जैस्मिन बग, बड वर्म, रैड स्पाइडर माइट, पत्ती काटने वाली सूंड़ी और सफेद मक्खी का हमला होता है.

इन कीटों की रोकथाम के लिए मोनोक्रोटोफास व सल्फर का इस्तेमाल करें. सरकोस्पोरा व जड़ विगलन बीमारी के लिए कौपर औक्सीक्लोराइड का इस्तेमाल करें.

फूलों की तुड़ाई व उपज : फूलों की तुड़ाई उस समय करनी चाहिए, जब कलियां पकी हों, लेकिन खिली न हों. फूलों की तुड़ाई हमेशा सुबह सूरज निकलने से पहले ही करें.

वैज्ञानिक तकनीक से चमेली की एक  एकड़ फसल से पहले साल 600 से 800 किलोग्राम, दूसरे साल 1,400 से 1,500 किलोग्राम और तीसरे साल 2,200 से 2,500 किलोग्राम फूल हासिल होते हैं. चौथे साल में यह उपज बढ़ कर तकरीबन 3,500 किलोग्राम तक पहुंच जाती है, जो 7-8 साल तक बनी रहती है.

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