भारत में अनार का कुल रकबा 2018-19 में 2,46,000 हेक्टेयर है और उत्पादन 28,65,000 मीट्रिक टन है, वहीं अगर एक हेक्टेयर की बात करें तो अनार का कुल उत्पादन तकरीबन 11.69 टन प्रति हेक्टेयर है. अनार गरम और गरम व ठंडी जलवायु वाले देशों का काफी लोकप्रिय फल है.

भारत में इस की खेती खासतौर से महाराष्ट्र में की जाती है. राजस्थान, उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, कर्नाटक, गुजरात में छोटे लैवल पर इस के बगीचे देखे जा सकते हैं. इस का रस जायकेदार और औषधीय गुणों की वजह से फायदेमंद होता है.

अनार की खेती के लिए कम लागत, लगातार उच्च तापमान, लंबी भंडारण अवधि जैसी खूबियों के चलते इस का क्षेत्रफल लगातार बढ़ रहा है.

आबोहवा : यह हलकी सूखी जलवायु में बढि़या तरह से उगाया जा सकता है. फलों के बढ़ने व पकने के समय गरम और शुष्क जलवायु की जरूरत होती है. लंबे समय तक ज्यादा तापमान बने रहने से फलों में मिठास बढ़ती है, वहीं नम जलवायु रहने से फलों की क्वालिटी पर बुरा असर होता है.

जमीन  : अनार अनेक तरह की मिट्टी में उगाया जा सकता है, पर बढि़या जल निकास के इंतजाम वाली रेतीली दोमट मिट्टी सब से बढि़या होती है. फलों की गुणवत्ता व रंग भारी

मिट्टी के मुकाबले हलकी मिट्टियों में अच्छा होता है. अनार के लिए मिट्टी लवणीयता 9.00 ईसी प्रति मिलीलिटर और क्षारीयता 6.78 ईएसपी तक सहन कर सकता है.

खास प्रजाति

भारतीय प्रजाति : अर्कता, भगवा, ढोकला, जी 137, गणेश, जलोर सीडलैस, ज्योति, कंधारी, मृदुला, फूले फगवा, रूबी के 1 वगैरह.

प्रजाति इगजोटिक : अगेती वंडरफुल, ग्रांड वंडरफुल वगैरह.

खास किस्म और खूबियां 

गणेश : इस किस्म के फल मध्यम आकार के, बीज मुलायम और गुलाबी रंग के होते हैं. यह महाराष्ट्र की खास किस्म है.

ज्योति : फल मध्यम से बड़े आकार के, चिकनी सतह व पीलापन लिए हुए लाल रंग के होते हैं. एरिल गुलाबी रंग के बीज काफी मुलायम, बहुत मीठे होते हैं. प्रति पौधा 8-10 किलोग्राम उपज ली जा सकती है.

मृदुला : फल मध्यम आकार के, चिकनी सतह वाले लाल रंग के होते हैं. एरिल गहरे लाल रंग का बीज मुलायम, रसदार और मीठे होते हैं. प्रति पौधा 8-10 किलोग्राम उपज ली जा सकती है.

भगवा : इस किस्म के फल बड़े आकार के भगवा रंग के, चिकने चमकदार होते हैं. एरिल मनमोहक लाल रंग की और बीज मुलायम होते हैं. बढि़या देखरेख करने पर प्रति पौधा 30-38 किलोग्राम उपज ली जा सकती है.

अर्कता : यह एक अधिक उपज देने वाली किस्म है. फल बड़े आकार के, मीठे और मुलायम बीजों वाले होते हैं. एरिल लाल रंग की व छिलका मनमोहक लाल रंग का होता है. बढि़या देखरेख करने पर प्रति पौधा 25-30 किलोग्राम उपज ली जा सकती है.

प्रवर्धन

कलम द्वारा : एक साल पुरानी शाखाओं से 20-30 सैंटीमीटर लंबी कलमें काट कर पौधशाला में लगा दी जाती हैं और इंडोल ब्यूटारिक अम्ल (आईबीए) 3,000 पीपीएम से कलमों को उपचारित करने से जड़ें जल्दी व ज्यादा तादाद में निकलती हैं.

गूटी द्वारा : अनार का व्यावसायिक प्रवर्धन गूटी द्वारा किया जाता है. इस विधि में जुलाईअगस्त माह में एक साल पुरानी पैंसिल समान मोटाई वाली स्वस्थ पकी 45-60 सैंटीमीटर लंबाई की शाखाओं को छांटें.

छांटी गई शाखाओं से कलिका के नीचे 3 सैंटीमीटर चौड़ी गोलाई में छाल पूरी तरह से निकाल दें. छाल निकाली गई शाखा के ऊपरी भाग में आईबीए 10,000 पीपीएम का लेप लगा कर नमी वाला स्फेगनम मास चारों ओर लगा कर पौलीथिन की शीट से ढक कर सुतली से बांध दें. जब पौलीथिन से जड़ें दिखाई देने लगें, उस समय शाखा को स्केटियर काट कर क्यारी या गमलों में लगा दें.

पौध की रोपाई : आमतौर पर पौध रोपण की आपसी दूरी मिट्टी की क्वालिटी व जलवायु पर निर्भर करती है. आमतौर पर 4-5 मीटर की दूरी पर अनार को रोप दिया जाता है.

सघन रोपण विधि में 5×2 मीटर (1,000 पौधे प्रति हेक्टेयर), 5×3 मीटर (666 पौधे प्रति हेक्टेयर) 4.5×3 (740 पौधे प्रति हेक्टेयर) की आपसी दूरी पर रोपण किया जा सकता है.

पौध रोपने के तकरीबन एक महीने पहले 60×60×60 सैंटीमीटर (लंबाई × चौड़ाई × गहराई) आकार के गड्ढे खोद कर 15 दिनों के लिए खुला छोड़ दें. इस के बाद गड्ढे की ऊपरी मिट्टी में 20 किलोग्राम सड़ी गोबर की खाद, 1 किलोग्राम सिंगल सुपर फास्फेट, 50 ग्राम क्लोरोपाइरीफास चूर्ण मिट्टी में मिला कर गड्ढों को सतह से 15 सैंटीमीटर की ऊंचाई तक भर दें.

खाद व उर्वरक : पौधों की उम्र के मुताबिक कार्बनिक खाद व नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश का इस्तेमाल करें. नाइट्रोजन व पोटाशयुक्त उर्वरकों को 3 हिस्सों में बांट कर पहली खुराक सिंचाई के समय बहार प्रबंधन के बाद और दूसरी खुराक 3-4 हफ्ते बाद दें, फास्फोरस की पूरी खाद को पहली सिंचाई के समय दें. जिंक, आयरन, मैगनीज और बोरोन की 25 ग्राम की मात्रा प्रति पौधे डालें.

जब पौधों पर फूल आना शुरू हो जाएं, तो उस में नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश 12:61:00 को 8 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से एक दिन के फासले पर एक महीने तक दें.

जब पौधों में फल लगने शुरू हो जाएं तो नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश 19:19:19 को ड्रिप की मदद से 8 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से एक दिन के अंतराल पर एक महीने तक दें.

जब पौधों पर पूरी तरह से फल आ जाएं तो नाइट्रोजन और फास्फोरस 00:52:34 या मोनोपोटैशियम फास्फेट 2.5 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की मात्रा को एक दिन के अंतराल पर एक महीने तक दें.

फल की तुड़ाई के एक महीने पहले कैल्शियम नाइट्रेट की 12.5 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की मात्रा को ड्रिप की सहायता से 15 दिनों पर 2 बार दें.

ऐसे करें सिंचाई 

अनार के पौधे सूखा सह लेते हैं, पर अच्छे उत्पादन के लिए सिंचाई का खास फायदा है. मृग बहार की फसल लेने के लिए सिंचाई मई माह के मध्य से शुरू कर के मानसून आने तक नियमित रूप से करनी चाहिए.

बारिश आने के बाद फलों के अच्छे विकास के लिए लगातार सिंचाई 10-12 दिन के फासले पर करनी चाहिए. ड्रिप सिंचाई अनार के लिए उपयोगी साबित हुई है. इस में 43 फीसदी पानी की बचत और 30-35 फीसदी उपज में इजाफा हुआ है.

संधाई व काटछांट : अनार की 2 तरह से संधाई की जा सकती है. एक, तना विधि द्वारा. इस विधि में एक तने को छोड़ कर बाकी सभी बाहरी टहनियों को काट दिया जाता है. दूसरी, बहु तना विधि द्वारा. इस विधि में 3 से 4 तने छूटे हों, बाकी टहनियों को काट दिया जाता है.

इस तरह साधे हुए तने में रोशनी बढि़या मिलती है. रोगग्रस्त हिस्से के 2 इंच नीचे तक छंटाई करें और तनों पर बने सभी कैंकर को गहराई से छील कर निकाल देना चाहिए. छंटाई के बाद 10 फीसदी बोर्डो पेस्ट को कटे हुए हिस्से पर लगाएं. बारिश के समय में छंटाई के बाद तेल वाला कौपर औक्सीक्लोराइड और 1 लिटर अलसी का तेल का इस्तेमाल करें.

बहार नियंत्रण : अनार में साल में 3 बार जूनजुलाई (मृग बहार), सितंबरअक्तूबर (हस्त बहार) व जनवरीफरवरी (अंबे बहार) में फूल आते हैं. व्यावसायिक तौर पर केवल एक बार ही फसल ली जाती है और इस का निर्धारण पानी की मौजूदगी व बाजार की मांग के मुताबिक किया जाता है.

जिन इलाकों में सिंचाई की सुविधा नहीं होती है, वहां मृग बहार से फल लिए जाते हैं. जिन इलाकों में सिंचाई की सुविधा है, वहां अंबे बहार से फल लिए जाते हैं. बहार नियंत्रण के लिए जिस बहार से फल लेने हों, उस के फूल आने से 2 माह पहले सिंचाई बंद कर देनी चाहिए. रासायनिक बहार नियमन के लिए इथ्रेल की उच्च सांध्रता (1 से 2 मिलीलिटर प्रति लिटर) का इस्तेमाल किया जाता है.

तुड़ाई : अनार बेमौसम वाला फल है. जब फल पूरी तरह से पक जाएं, तभी पौधों से तोड़ना चाहिए. पौधों में फल सेट होने के बाद 120-130 दिन बाद तुड़ाई के लिए तैयार हो जाते हैं. पके फल पीलापन लिए लाल हो जाते हैं.

उपज : पौध रोपण के 2-3 साल बाद फलना शुरू कर देते हैं, लेकिन व्यावसायिक रूप से उत्पादन रोपण के तकरीबन 4-5 साल बाद ही लेना चाहिए. अच्छी तरह से विकसित पौधा 60-80 फल हर साल 25-30 साल तक देता है.

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