हिमाचल प्रदेश सेब उत्पादक राज्य के रूप में अपनी अलग पहचान रखता है. हिमाचल प्रदेश को फलों के कटोरे के रूप में भी जाना जाता है. इस पहाड़ी राज्य में सेब के अलावा आम, खुमानी, नाशपाती, स्ट्राबेरी व चेरी आदि फलों की भी काफी अधिक पैदावार की जाती है. लेकिन हिमाचल की खास पहचान सेब उत्पादक के रूप में ही की जाती है.
फलों की पैदावार के साथसाथ राज्य में बेमौसमी सब्जियां भी काफी उगाई जाती हैं. पहाड़ी राज्य होने की वजह से हिमाचल को बागबानी और बेमौसमी पैदावार के लिए सही पाया गया है.
सेब की पैदावार के लिए जहां सत्यानंद स्टोक्स को हमेशा याद किया जाता है, ठीक उसी तरह प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री यशवंत सिंह परमार को भी हिमाचल में सेब की व्यावसायिक खेती और बागबानों को प्रोत्साहित करने के लिए याद किया जाता है. पहले हिमाचल में परंपरागत तरीके से कृषि फसलों की पैदावार की जाती थी यानी किसान केवल गेहूं, मक्का, महुआ, जौ, मटर, गोभी, टमाटर व फ्रांसबीन वगैरह की पैदावार करते थे. लेकिन डा. परमार ने पहल की कि यदि इस प्रदेश के किसानों को सेब और अन्य फलों की पैदावार के लिए प्रोत्साहित किया जाए तो राज्य में खुशहाली लाई जा सकती है.
इसी बात को ध्यान में रख कर परमार ने जब शुरू में सेब के पेड़ लगाने के लिए लोगों को प्रोत्साहित किया तो उस समय लोगों ने उन की आलोचना की. किसान यहां तक कहने लगे थे कि पहले तो खेतों में थोड़ाबहुत अनाज और सब्जी पैदा हो जाती थी, लेकिन अब सेब के पेड़ लगाने से फसली नुकसान उठाना पड़ रहा है.
जैसेजैसे समय निकलता गया और पेड़ों पर सेब लगने शुरू हुए तो यह देख कर बागबानों ने चैन की सांस ली और धीरेधीरे खुशहाली की तरफ कदम बढ़ाने लगे. इस के बाद सेब की पैदावार में बड़ी क्रांति आई और देखादेखी प्रदेश के ऊंचाई वाले इलाकों में भी किसानों ने बागबानी को अपनाना शुरू कर दिया. इसी वजह से भारत में आज हिमाचल सेब राज्य के रूप में जाना जाता है.
प्रदेश की प्रति व्यक्ति आय बढ़ाने में सेब का मुख्य योगदान रहा है. सेब के कारोबार से लाखों लोगों को रोजगार मिला है. लोगों की आर्थिक हालत मजबूत करने में भी सेब की खास भूमिका रही है. सेब से प्रदेशवश क` की खुशहाली काफी बढ़ी है.
प्रदेश के बागबान पहले सेब की बिक्री के लिए बाहरी राज्यों की बड़ी मंडियों पर निर्भर रहते थे ताकि सेब खराब होने से पहले मंडियों में पहुंचाया जा सके. प्रदेश के बागबान पहले देश की सब से बड़ी मंडी आजादपुर, दिल्ली में काफी सेब भेजा करते थे. बागबानों की पसंदीदा मंडी आजादपुर ही हुआ करती थी, लेकिन आजादपुर मंडी में भी बिचौलए धीरेधीरे सेब बागबानों का आर्थिक शोषण करने लगे और बागबानों से सेब बेचने पर कमीशन वसूला जाने लगा. इस के चलते सरकार पर हिमाचल के भीतर छोटीछोटी मंडियां विकसित करने का दबाव डाला जाने लगा. नतीजतन सरकार ने उन जिलों में मंडियां तैयार करनी शुरू कर दीं, जहां फलों और सब्जियों की पैदावार ज्यादा होती थी.
आज प्रदेश के अंदर कई मध्यम और छोटी मंडियां हैं. इन मंडियों का इस्तेमाल किसान और बागबान खुल कर कर रहे हैं. आज किसान और बागबान अपनी फसलों को बेचने के लिए इन छोटी मंडियों को ज्यादा पसंद कर रहे हैं. छोटे और मध्यम दर्जे के किसान और बागबान तो अपने घरों के नजदीक की मंडियों में ही सेब और सब्जियां बेच रहे हैं.
बागबानों और किसानों का लंबे समय तक जो शोषण बड़ी मंडियों में हो रहा था, अब उन्हें उस से नजात मिल गई है. अब बागबान और किसान खुल कर कहते हैं कि प्रदेश की मंडियों में फल और सब्जियां बेचने से उन को दूसरे राज्यों की सिरदर्दी से राहत मिली है. उन्हें प्रदेश की मंडियों में फलसब्जियां बेचने का काफी ज्यादा फायदा मिल रहा है. साथ ही वे अन्य खर्चों से भी बच गए हैं.
प्रदेश के तमाम हिस्सों में छोटीछोटी मंडियां खुलने से किसानों को घरों के पास ही सुविधा मिल गई है. बागबानों और किसानों को सब से बड़ा फायदा यह हुआ है कि अब उन के घरों के पास ही उन की फसलों के खरीदार पहुंच रहे हैं.