ग्वार की खेती को ज्यादा पानी की जरूरत नहीं होती. राजस्थान जैसे अनेक इलाकों में इस की खेती की जाती है. यह बारानी इलाकों के लिए खास फसल है. इस की खेती उन्नत तरीके से करनी चाहिए
राजस्थान के लिए उन्नत किस्में
आरजीसी 936 : यह किस्म जल्दी पकने वाली है. दाने मध्यम आकार के और हलके गुलाबी रंग के होते हैं. 80-110 दिन में पकने वाली यह किस्म अंगमारी रोधक है. इस में झुलसा रोग को सहने की कूवत भी होती है. इस के पौधे शाखाओं वाले झाड़ीनुमा, पत्ते खुरदरे होते हैं. सफेद फूल इस किस्म की शुद्धता बनाए रखने में सहायक है. सूखा प्रभावित इलाकों में जायद और खरीफ में यह किस्म बोने के लिए सही है. यह किस्म 8 से 12 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज देती है.
आरजीएम 112 (सूर्या) : इस किस्म को जायद और खरीफ दोनों में बोया जा सकता है. यह किस्म 85 से 100 दिन में पक कर तैयार हो जाती है. इस के पौधे शाखाओं वाले झाड़ीनुमा, पत्तेखुरदरे और एकसाथ पकने वाली यह किस्म 10 से 12 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज देती है. इस किस्म के फूलों का रंग नीला, फली मध्यम लंबी भूरे रंग की और दानों का रंग सलेटी है और इस में बैक्टीरियल ब्लाइट सहन करने की कूवत होती है.
आरजीसी 1002 : शुष्क और कम बारिश वाले इलाकों के लिए यह खास किस्म है. इस के पौधे 60 से 90 सैंटीमीटर ऊंचे व अत्यधिक शाखाओं वाले होते हैं. इस की पत्तियां खुरदरी होती हैं और पत्ती के किनारों पर स्पष्ट कटाव होते हैं. फली की लंबाई 4.5 से 5.0 सैंटीमीटर (मध्यम) होती है. यह शीघ्र पकने वाली किस्म है यानी 80-90 दिन में पक जाती है. पैदावार तकरीबन 10 से 13 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक है.