खाद्यान्न आपूर्ति में रबी फसलों का अच्छा खासा योगदान है, क्योंकि वे कुल सालाना खाद्यान्न उत्पादन में तकरीबन 40 फीसदी योगदान करती हैं. उस में गेहूं व सरसों की खास भागीदारी होती है.

इस में कोई शक नहीं कि फसल उत्पादन में खाद और उर्वरकों का अहम रोल होता है. फसल की बढ़वार के लिए जरूरी पोषक तत्त्वों का सही मात्रा में मुहैया होना जरूरी होता है. मिट्टी इन सभी पोषक तत्त्वों की सही मात्रा में आपूर्ति करने में असमर्थ होती है व हर फसल को पोषक तत्त्वों की अलगअलग मात्रा की जरूरत होती है. साथ ही, ज्यादा पैदावार देने वाली किस्मों में पोषक तत्त्वों की मांग कुछ ज्यादा होती है.

इन पोषक तत्त्वों की आपूर्ति के लिए कार्बनिक व कैमिकल खाद डालने की जरूरत होती है. लेकिन किसानों द्वारा अकसर गलत तरीके से खेती करना, गलत मिट्टी प्रबंधन, कैमिकल खादों की पूरी मात्रा न देना व जैविक खादों का कम इस्तेमाल करना वगैरह होता है, जिस के चलते फसल के उत्पादन पर बुरा असर पड़ता है.

दूसरी तरफ रबी सीजन में नाइट्रोजन वाली कैमिकल खादों, जैसे यूरिया, डीएपी वगैरह की बाजार में उपलब्धता काफी कम हो जाती है और जो मुहैया होती है, उसे महंगे दामों में खरीदना पड़ता है. इसलिए यह जरूरी हो जाता है कि खादों का संतुलित मात्रा में सही समय पर इस्तेमाल किया जाए.

ज्यादातर किसान नाइट्रोजन व फास्फोरस वाली कैमिकल खादों के इस्तेमाल पर तो ज्यादा ध्यान देते हैं, लेकिन पोटाश वाली खादों को नजरअंदाज करते हैं, जो गलत है. नाइट्रोजन व फास्फोरस की तरह पोटाश की भी पूरी मात्रा खेतों में डालनी चाहिए. इस से पौधों की पानी की उपयोग करने की कूवत बढ़ने के चलते पैदावार में बढ़वार होती है.

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