आजकल पूरी दुनिया में लोग अपनी सेहत के बारे में सोचने लगे हैं, जिस के बाद यह पता चला है कि इस से बचने के लिए सब से अहम है कि शरीर की इम्यूनिटी को बढ़ाया जाए, इसलिए ज्यादातर लोग विभिन्न प्रकार के हर्बल का इस्तेमाल कर रहे हैं.

इसी प्रकार हाल ही में काले गेहूं की नई प्रजाति विकसित की गई है, क्योंकि इस में आयरन, जिक और एंटीऔक्सिडैंट आदि तत्त्व भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं. इस गेहूं की मांग लगातार किसानों के बीच में बढ़ रही है. इस समय बाजार में इस का बीज 6,000-9,000 रुपए प्रति क्विंटल तक बेचा जा रहा है. इस की खेती गेहूं की सामान्य प्रजातियों की तरह ही होती है.

काले गेहूं की बोआई समय से और सही नमी पर करनी चाहिए. देर से बोआई करने पर उपज में कमी होती है. जैसेजैसे बोआई में देरी होती जाती है, गेहूं की पैदावार में गिरावट की दर बढ़ती चली जाती है. दिसंबर में बोआई करने पर गेहूं की पैदावार 3 से 4 क्विंटल प्रति हेक्टेयर व जनवरी में बोआई करने पर 4 से 5 क्विंटल प्रति हेक्टेयर प्रति हफ्ते की दर से घटती है.

गेहूं की बोआई सीडड्रिल से करने पर उर्वरक और बीज की बचत की जा सकती है. काले गेहूं का उत्पादन सामान्य गेहूं की तरह ही होता है. इस की उपज 10-12 क्टिंवल प्रति बीघा होती है. सामान्य गेहूं की भी औसत उपज एक बीघा में 10-12 क्विंटल होती है.

बीज दर और बीज शोधन

पंक्तियों में बोआई करने पर सामान्य दशा में 100 किलोग्राम और मोटा दाना 125 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर और छिटकाव बोआई की दशा में सामान्य दाना 125 किलोग्राम और मोटा दाना 150 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करना चाहिए. बोआई से पहले जमाव फीसदी जरूर देख लें. राजकीय अनुसंधान केंद्रों पर यह सुविधा निशुल्क उपलब्ध है.

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