सर्दी के मौसम में पाले से सभी फसलों को नुकसान होता है. टमाटर, मिर्च, बैगन आदि सब्जियों, पपीता व केले के पौधों और मटर, चना, अलसी, सरसों, जीरा, धनिया, सौंफ, अरहर आदि की फसल को पाले से ज्यादा नुकसान हो सकता है.

पौधे व फसल पर पाले के असर से फल मर जाते हैं व फूल झड़ने लगते हैं. प्रभावित फसल का हरा रंग खास हो जाता है और पत्तियों का रंग मिट्टी के रंग जैसा दिखता है. ऐसे में पौधों के पत्ते सड़ने से बैक्टीरिया से होने वाली बीमारियों का प्रकोप ज्यादा बढ़ जाता है. पत्ती, फूल व फल सूख जाते हैं. फल के ऊपर धब्बे पड़ जाते हैं व स्वाद भी खराब हो जाता है.

पाले से प्रभावित फसल, फल व सब्जियों में कीटों का प्रकोप भी बढ़ जाता है. सब्जियों पर पाले का असर ज्यादा होता है.

फलदार पौधे पपीता, आम आदि में इस का असर ज्यादा पाया गया है. शीत ऋतु वाले  पौधे 2 डिगरी सैंटीग्रेड तक का तापमान सहने में सक्षम होते हैं. इस से कम तापमान होने पर पौधे की बाहरी व अंदर की कोशिकाओं में बर्फ जम जाती है. पाला पहाड़ के बीच के क्षेत्रों में ज्यादा पड़ता है.

पाले के चलते ज्यादातर पौधों के फूलों के गिरने से पैदावार में कमी हो जाती है. पत्ते, टहनियां और तने के नष्ट होने से पौधों को ज्यादा बीमारियां लगती हैं.

पाले से फसलों को बचाने के उपाय

लो टनल एक बहुत ही खास तकनीक है, जिस से सब्जियां (आलू, टमाटर, गोभी, मटर आदि) को पाले से बचाने के लिए काम में लेते हैं. इस से किसान एडवांस फसल और सब्जियों को ले कर ज्यादा मुनाफा कमा सकें.

इस तकनीक में अर्द्धचंद्राकार सरिए लगा कर उस पर कपड़ा या पौलीथिन की शीट बिछा कर लगाते हैं. इस तकनीक में किसान बोआई ट्रेच की उत्तर दिशा में सरकने की टाटी बांध दिया करते हैं, जिस का झुकाव दक्षिण दिशा में रखा जाता है, ताकि उत्तर की तरफ से आने वाली ठंडी हवाओं से फसल को बचाया जा सके.

जिस रात पाला पड़ने की संभावना हो, उस रात 12 बजे से 2 बजे तक के आसपास खेत की उत्तरीपश्चिमी दिशा से आने वाली ठंडी हवा की दिशा में खेतों के किनारे पर बोई हुई फसल के आसपास, मेंड़ों पर रात में कूड़ाकचरा या दूसरे घासफूस जला कर धुआं करना चाहिए, ताकि खेत में धुआं हो जाए व वातावरण में गरमी आ जाए. धुआं करने के लिए क्रूड औयल का इस्तेमाल भी कर सकते हैं. इस विधि से 4 डिगरी सैल्सियस तापमान आसानी से बढ़ाया जा सकता है.

पौधशाला के पौधों व क्षेत्र वाले उद्यानों या नकदी सब्जी वाली फसलों को टाट, पौलीथिन या फिर भूसे से ढक दें. वायुरोधी टाटी को हवा आने वाली दिशा की तरफ से बांध कर क्यारियों के किनारों पर लगाएं और दिन में हटा दें.

जब पाला पड़ने की संभावना हो, तब खेत में सिंचाई करनी चाहिए. नमी वाली जमीन में काफी देर तक गरमी रहती है और भूमि का तापमान कम नहीं होता है. इस तरह सही नमी नहीं होने पर शीत लहर व पाले से नुकसान की संभावना कम रहती?है. सर्दी में फसल में सिंचाई करने से 0.5 डिगरी से 2 डिगरी सैल्सियस तक तापमान बढ़ जाता है.

जिन दिनों पाला पड़ने की संभावना हो, उन दिनों फसलों पर गंधक के तेजाब के 0.1 फीसदी घोल का छिड़काव करना चाहिए.

इस के लिए 1 लिटर गंधक के तेजाब को 1,000 लिटर पानी में घोल कर एक हेक्टेयर क्षेत्र में प्लास्टिक के स्प्रेयर से छिड़काव का असर 2 हफ्ते तक बना रहता है. यदि इस अवधि के बाद भी शीत लहर या पाले की संभावना बनी रहे, तो गंधक के तेजाब के छिड़काव को 15-15 दिन के अंतराल पर दोहराते रहें.

सरसों, गेहूं, चावल, आलू, मटर जैसी फसलों को पाले से बचाने में गंधक के तेजाब का छिड़काव करने से न केवल पाले से बचाव होता है, बल्कि पौधों में लौह तत्त्व व रासायनिक सक्रियता बढ़ जाती है, जो पौधों में रोगरोधिता बढ़ाने में और फसल को जल्दी पकाने में सहायक होती है.

?दीर्घकालीन उपाय के रूप में फसलों को बचाने के लिए खेत की उत्तरीपश्चिमी मेंड़ों पर और बीचबीच में उचित स्थानों पर वायु अवरोधक पेड़ जैसे शहतूत, शीशम, बबूल, खेजड़ी, जामुन आदि लगा दिए जाएं, तो पाले और ठंडी हवा के झोंकों से फसल का बचाव हो सकता है.

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