साल 1967 में देश में पड़े भीषण अकाल में बड़ी मात्रा में खाद्यान्न आयात करना पड़ा था. इस वजह से सरकार द्वारा कृषि क्षेत्र में अनुसंधान के काम पर जोर दिया गया. इस से एक तरफ सिंचित जमीन का क्षेत्रफल बढ़ने लगा, तो वहीं दूसरी तरफ कृषि क्षेत्र में विविधता लाने की कोशिश की जाने लगी.
इस काम को संगठित रूप देने के लिए साल 1929 में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद का गठन हुआ. केंद्र सरकार से जुड़े सभी संस्थानों को इस के तहत लाया गया. धीरेधीरे खाद्यान्न, फलसब्जी के साथ ही जानवरों के लिए भी अनुसंधान संस्थान खोले गए. लगातार अनुसंधान द्वारा खाद्यान्नों, फलों, सब्जियों की नई उपजाऊ किस्मों का विकास हुआ.
किसी काम को संगठित रूप देने से अधिक पैसा बनाने में कामयाबी मिली. परिषद की अगुआई में देश में हरित क्रांति आई. देश में खाद्यान्नों का रिकौर्ड उत्पादन शुरू हो गया, तेज गति से बढ़ती आबादी के बावजूद भी न सिर्फ खाद्यान्न, फलसब्जी के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता आई, बल्कि कुछ उत्पादों के निर्यात में भी हमें कामयाबी मिली.
इस समय देश की आबादी 135 करोड़ के पार हो चुकी है. इतनी विशाल आबादी को भी भोजन के लिए खाद्यान्न उपलब्ध है. ऐसी हालत तब है, जब खेती की जमीन धीरेधीरे घटती जा रही है.
शहरों का क्षेत्रफल आजादी के समय 7 फीसदी से बढ़ कर 35 फीसदी हो गया है. यह वृद्धि क्षेत्र में व्यापक काम के चलते हुई है.
देश में किसानों का अनुसंधान संस्थानों से सीधा जुड़ाव हुआ है. इन संस्थानों के वैज्ञानिक नियमित अंतराल पर इलाके और गांवों का दौरा करते रहते हैं और किसानों से रूबरू हो कर उन को तकनीकी जानकारी देते हैं.