देश के किसान खेत में जितनी मेहनत करते हैं, उतनी ही मेहनत अपने उत्पादन को बेचने के लिए नहीं करते. मेरे कहने का मतलब है कि वे सही से मार्केट नहीं तलाशते और जल्द निराश हो कर बैठ जाते हैं.

‘किसान भाइयों को अपने उत्पादन को सीधे ही उपभोक्ताओं तक पहुंचाने का काम करना चाहिए. ऐसा करने पर निश्चित रूप से खेती में अच्छा मुनाफा कमाया जा सकता है.’

यह कहना है 24 साला किसान विजय गाडरी का, जो गांव बिलोदा, तहसील डुंगला, चित्तौड़गढ़, राजस्थान के रहने वाले हैं. उन का गांव उदयपुर से 70 किलोमीटर की दूरी पर है.

पैसिफिक कालेज औफ एग्रीकल्चर, उदयपुर से कृषि में बीएससी (द्वितीय वर्ष) की पढ़ाई करने वाले इस युवा किसान ने आत्मनिर्भरता की मिसाल पेश की है.

बातचीत के दौरान विजय ने बताया, ‘सब्जियों की फसल में गोबर की सड़ी खाद, वर्मी कंपोस्ट, वेस्ट डी कंपोजर, गोकृपा अमृतम, माइकोराईजा और ह्यूमिक एसिड का प्रयोग किया. फसल को कीटों से बचाने के लिए गोमूत्र, आक, धतूरा, करंज, नीम की पत्तियों से मिला कर बनाए घोल का प्रयोग किया.’

विजय के पिता भेरूलाल बताते हैं, ‘जब  उन्होंने सब्जियों की पहली तुड़ाई की और सब्जी मंडी गए तो भिंडी के 4-5 रुपए किलो, ग्वारफली के 6 रुपए किलो और तुरई के 8 रुपए किलो के भाव बताए, जो मेहनत के मुकाबले बेहद कम थे.’

विजय ने कहा, ‘हम इन सब्जियों को इतने कम दामों में नहीं बेचेंगे. यहां बेचने से बेहतर है कि हम अपने आसपास के कसबों और गांवों में स्थानीय उपभोक्ताओं को ही सीधे इन की डिलीवरी दें. और हम ने ऐसा ही किया. इस सब के लिए हम ने सोशल मीडिया को प्रचार का माध्यम बनाया.

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