हाल ही के सालों में किसानों ने अंधाधुंध रासायनिक खादों और कीटनाशकों का इस्तेमाल कर के धरती का खूब दोहन किया है. जमीन से बहुत ज्यादा उपज लेने की होड़ के चलते खेतों की उत्पादन कूवत लगातार घट रही है.

रसायनों के अंधाधुंध इस्तेमाल के चलते मिट्टी में कार्बांश की मात्रा बेहद कम हो गई है. सेहत के नजरिए से भी रासायनिक उर्वरकों से पैदा किए जाने वाले अनाज और फलसब्जियां नुकसानदेह साबित हो रहे हैं.

कई देशों में कीटनाशकों के नुकसान को देखते हुए उन पर पूरी तरह से रोक लगा दी गई है, क्योंकि फसलों में इस्तेमाल किए जाने वाले कीटनाशकों के चलते कैंसर और कई तरह की जानलेवा बीमारियां भी सामने आई हैं. ऐसे में जरूरत है कि जमीन की उत्पादकता को बचाए रखने और सेहत को ध्यान में रख कर खेतों में जैव उर्वरकों का इस्तेमाल किया जाए.

इसी चीज को ध्यान में रख कर उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले के एक युवा ने जैविक खेती में मिसाल कयाम की है. वे बस्ती जनपद के एकमात्र किसान हैं, जो फसल में अलगअलग सूक्ष्म पोषक तत्त्वों को ध्यान में रख कर खाद और उर्वरकों को तैयार करते हैं.

बस्ती शहर से महज 8 किलोमीटर दूर गांव गौरा के रहने वाले शोभित मिश्र ने एमबीए और एलएलबी तक की पढ़ाई कर रखी है. उन की काबिलीयत को देखते हुए उन के पास नौकरियों के तमाम औफर भी आए, लेकिन उन्होंने अपने चाचा राममूर्ति मिश्र की खेती में लगन देख कर नौकरी न कर खेती में ही कुछ करने की ठानी.

इस के लिए सब से पहले उन्होंने मार्केट को सम झा तो पाया कि हर इनसान रासायनिक उत्पादों से पैदा किए अनाज और सब्जियां नहीं खाना चाहता है, लेकिन जैविक उत्पादों की कमी लोगों की मजबूरी बन चुकी है. ऐसे में उन्होंने जैविक खेती से जुड़ी कई जगहों पर जा कर जानकारी हासिल की, कई प्रशिक्षण कार्यक्रमों में भी शामिल हुए. ऐसे किसानों के यहां भी भ्रमण किया, जो जैविक खेती के जरीए मुनाफा हासिल कर रहे हैं.

जब शोभित मिश्र को लग गया कि जैविक खेती को अगर पूरी तैयारी के साथ किया जाए, तो घाटे की संभावना कम होगी. उन्होंने जैविक खेती की शुरुआत कर दी. उन्होंने जैविक खेती एक बार शुरू की, तो इस से मिले फायदे ने उन का हौसला दोगुना कर दिया.

घर पर ही तैयार करते हैं खाद और उर्वरक

शोभित मिश्र जगहजगह जा कर सीखे गए जैव उर्वरकों और जैव कीटनाशकों को तैयार करते हैं. वे अलगअलग तरीकों से जैविक खाद तैयार करते हैं. उन के द्वारा जो जैव उर्वरक तैयार किए गए हैं, उन से उन्हें तमाम तरह के सूक्ष्म पोषक तत्त्व प्राप्त होते हैं, जिन में राख से फास्फोरस, सेंधा नमक से जिंक, मैग्नीज व लोहा गंधक से सल्फर, नीला थोथा से कौपर, सुहागा से बोरोन, सीप और अंडा से कैल्शियम, त्रिफला से लोहा व मैग्नीशियम, त्रिकूट से सल्फर, धान की भूसी से सिलिकन मिलता है.

पहले से तैयार किए गए इन सभी जैव उर्वरकों को वे अलगअलग बोरियों में एकसाथ 20 किलोग्राम की बराबर मात्रा में मिला कर रखते हैं. इस 20 किलोग्राम की मात्रा को प्रति एकड़ की दर से खेत में इस्तेमाल किया जाता है.

इस का इस्तेमाल जोताई व बोआई से पहले किया जाता है, साथ ही खड़ी फसल में घोल बना कर स्प्रे करते हैं. इस के लिए 200 लिटर पानी में पहले से एकसाथ मिला कर रखे गए सभी तरह के 4 किलोग्राम जैव उर्वरक को प्रति एकड़ के हिसाब से छिड़काव किया जाता है.

इन जैव उर्वरकों को बनाने के लिए सभी के लिए अलगअलग एक फुट चौड़ाई, लंबाई और गहराई में गड्ढे खोद लेते हैं. एक दूसरे से गड्ढे की दूरी 6 इंच रखी जाती है.

जैव उर्वरक बनाने के लिए पहले से ही सेंधा नमक, नीला थोथा, चूना, सुहागा, नारियल का छिलका, गंधक, रौक फास्फेट और पत्थर के चूर्ण की खरीदारी कर लेनी ठीक होती है. गड्ढों में इन्हें भरने के पहले इन सब को अच्छी तरह से पीस कर चूर्ण बना लेते हैं. फिर इन सामग्रियों को गाय के गोबर में मिला कर अलगअलग गड्ढों में भर लेते हैं.

गड्ढे में भरने के पहले ही इन सभी सामग्रियों को अच्छे से तैयार किया जाता है. इस के लिए सुहागा को गरम कर फुला लेते हैं, फिर उसे पीस कर गड्ढे में गोबर के साथ भरते हैं. इसी तरह गंधक को भी पीस कर कर गोबर में मिलाते हैं. त्रिफला को भी पीस कर 20 किलोग्राम गोबर में मिला कर गड्ढे में भरते हैं.

नारियल के छिलके को जला कर इस्तेमाल में लाया जाता है और उसे पीस कर अलग गड्ढे में डालते हैं. यह चारकोल पाउडर कहलाता है. धान के 4 किलोग्राम भूसी को लोहे की कड़ाही में गरम कर के पूरा काला कर लेते हैं. औक्सीजन की अनुपस्थिति में गरम करने पर सिलिकन हासिल होता है. इसे सिलिकन भस्म भी कहते हैं. अंडे के चूर्ण से कैल्शियम मिलता है. इसे कैल्शियम भस्म कहते हैं. पत्थर के चूर्ण का भी इस्तेमाल उसी गड्ढे में किया जाता है. इन सभी को गड्ढों में भरने के बाद उस के ऊपर गाय के गोबर के उपले रख देते हैं, फिर उस के ऊपर मिट्टी से लीप देते हैं. ध्यान रखते हैं कि जो गड्ढे बनाए जा रहे हैं, वे छाया में हों.

इन गड्ढों में दबाए गए उर्वरक गड्ढे में 45 दिनों के बाद ऊपर लोहे की छड़ से छेद कर देते हैं. जब इन को दबाए 90 दिन का समय बीत जाता है, तो गड्ढों से इस तैयार उर्वरक को बाहर निकाल लेते हैं, जिन्हें हम अपनी फसल के इस्तेमाल में ला सकते हैं.

पराली नियंत्रण के लिए वेस्ट डीकंपोजर का इस्तेमाल

जहां देशभर के किसान पराली को ले कर हलकान दिखते हैं, वहीं शोभित मिश्र वेस्ट डीकंपोजर के जरीए नियंत्रित करते हैं. यह मात्र 20 रुपए की एक शीशी आती है, जिस में वे गुड़बेसन को एकसाथ मिला कर 500 लिटर पानी का घोल बनाते हैं. 20 दिनों के बाद इस तैयार घोल को अगर पराली या फसल के अवशेष पर छिड़का जाए, तो वह अवशेष पूरी तरह समाप्त हो जाता है.

शोभित मिश्र द्वारा तैयार इस वेस्ट डीकंपोजर घोल को आसपास के किसान भी इन के जरीए अपने खेतों में इस्तेमाल करते हैं.

Organic
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खेतों में लहलहा रही फसल

पिछले 3 सालों में शोभित मिश्र ने जैविक खेती के जरीए कई तरह की व्यावसायिक खेती करने में कामयाबी पाई है. वे मौसम के मुताबिक तमाम तरह की सब्जियों की खेती करते हैं. उन के खेतों में उस समय भी फसल लहलहा रही होती है, जब बाजार में कई तरह की सब्जियों की आवक बहुत कम होती है.

शोभित मिश्र कई तरह की सब्जियों की खेती करते हैं, जिन में लौकी, नेनुआ, पालक, सरपुतिया, सोया, टमाटर, करेला, मटर, गाजर, मूली सहित दर्जनों तरह की फसलें शामिल हैं. इस के अलावा वे अपने अनाज वाली फसलों में भी खुद के द्वारा तैयार किए गए जैविक उत्पादों का ही प्रयोग करते हैं. इस के जरीए वे काला नमक, अलसी, गेहूं जैसी तमाम फसलें भी उगा रहे हैं.

खेतों से सीधे होती है मार्केटिंग

शोभित मिश्र द्वारा उगाई गई जैविक फसलों की मार्केटिंग की अगर बात की जाए, तो आढ़ती इन के खेतों से ही मंडी मूल्य से ज्यादा कीमत पर खरीद कर ले जाते हैं. इस के चलते उन्हें मार्केटिंग के लिए किसी तरह की परेशानी का सामना नहीं करना पड़ता है.

‘हजार’ और्गेनिक फार्म के नाम से पौपुलर

शोभित मिश्र द्वारा शुरू की गई जैविक खेती को ‘हजार’ और्गेनिक फार्म का ब्रांड नाम दे रखा है. ‘हजार’ शब्द में उन के पुरखों का नाम छिपा हुआ है.

इस पर शोभित मिश्र का कहना है कि जिन पुरखों की जमीन ने उन्हें रोजगार दिया है, उन को सम्मान देने का इस से बढि़या जरीया और कुछ हो ही नहीं सकता है.

शोभित मिश्र द्वारा की गई जैविक खेती से मिली कामयाबी के मुद्दे पर उन के चाचा राममूर्ति मिश्र का कहना है कि जैविक खेती से भूमि की उपजाऊ क्षमता में वृद्धि हो जाती है. साथ ही, सिंचाई के अंतराल में वृद्धि होती है. जैविक उर्वरकों के उपयोग से रासायनिक खाद पर निर्भरता कम होने से लागत में कमी आती है और फसलों की उत्पादकता में वृद्धि होती है.

Organic
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जैविक खेती से मिट्टी को होने वाले फायदे पर शोभित मिश्र का कहना है कि अगर मिट्टी की दृष्टि से देखें, तो जैविक खाद के इस्तेमाल से भूमि की गुणवत्ता में सुधार आता है. भूमि की जल धारण की क्षमता बढ़ती है. भूमि से पानी का वाष्पीकरण भी कम होता है.

जैविक खेती की विधि रासायनिक खेती की विधि की तुलना में बराबर या अधिक उत्पादन देती है. जैविक खेती मिट्टी की उर्वरता और किसानों की उत्पादकता बढ़ाने में पूरी तरह सहायक है.

जैविक विधि द्वारा खेती करने से उत्पादन की लागत तो कम होती ही है, साथ ही साथ किसानों को आमदनी भी ज्यादा होती है. बाजार की स्पर्धा में जैविक उत्पाद अधिक खरे उतरते हैं. नतीजतन, सामान्य उत्पादन की अपेक्षा में किसान ज्यादा मुनाफा कमा सकते हैं.

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