हमारे देश में महिलाएं घर चलाने के साथसाथ खेती के कामों में भी पुरुषों का हाथ बंटाती हैं. यहां तकरीबन 60 फीसदी खेती के काम जैसे कि फसलों की कटाई, खरपतवार निकालना, अनाज को ठीक तरह से रखना, पशुओं की देखरेख, उन के चारे का इंतजाम वगैरह अनेक काम महिलाओं द्वारा ही किए जाते हैं.

एक आंकड़े के मुताबिक, ये महिलाएं तकरीबन 3 घंटे प्रतिदिन खेती के काम करती हैं यानी साल में 111 मानव दिन वे खेती के काम पर लगाती हैं.

खासकर खेतों में निराईगुड़ाई का ज्यादातर काम महिलाओं द्वारा किया जाता है. खरपतवार निकालने का काम वे ज्यादातर परंपरागत तरीके से करती हैं. परंपरागत तरीके से काम करने पर महिलाओं को काफी परेशानी होती है. समय और शक्ति भी ज्यादा लगती है और शरीर में काफी थकावट महसूस होती है.

इस से उबरने के लिए हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार के अभियांत्रिकी महाविद्यालय के फार्म पावर और मशीनरी विभाग ने एक उन्नत पहिएदार कसोला तैयार किया है, जिसे विश्वविद्यालय के पारिवारिक संसाधन प्रबंध विभाग में चल रही ‘अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना’ के तहत गांव के लोगों को इस्तेमाल करने को दिया गया और यह बहुत सफल रहा. लोगों द्वारा काफी पसंद भी किया गया.

पहिएदार कसोले (निराईगुड़ाई यंत्र) के प्रयोग पहिएदार कसोले का इस्तेमाल ग्वार और सरसों के खेतों में किया गया जो काफी सफल रहा. इस से महिलाओं और पुरुषों का अतिरिक्त बोझ कम हुआ. पहिएदार कसोले से आम कसोले के मुकाबले 4-5 गुना ज्यादा काम कर सकते हैं. इस के इस्तेमाल से थकान भी कम होती है क्योंकि साधारण कसोले की तुलना में पहिएदार कसोले को चलाना आसान है. मांसपेशियां जैसे कलई, हाथों व कंधों वगैरह में कम थकावट होती है. पहिएदार कसोले से तकरीबन 75 फीसदी समय व कुल काम की लागत में भी बचत होती है.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
सब्सक्राइब करें
अधिक जानकारी के लिए क्लिक करें...