पारंपरिक तरीकों से खेती की सिंचाई करने पर अधिक पानी बरबाद होता है. पानी की बचत व अच्छी उपज के लिए अनेक प्रकार की उन्नत सिंचाई प्रणालियां मौजूद हैं. ऐसी ही एक प्रणाली है फव्वारा सिंचाई यानी स्प्रिंक्लर प्रणाली. इस के इस्तेमाल से 25 से 50 फीसदी तक पानी की बचत की जा सकती है.

सिंचाई का तरीका

बौछारी या फव्वारा सिंचाई वह विधि है, जिस में सिंचाई जल को पंप द्वारा पाइप की सहायता से खेत तक ले जाया जाता है और दबाव द्वारा फुहारों, बारिश की बूंदों के समान सीधे फसल पर छिड़का जाता है. इस में खेतों में पाइप लाइन बिछा कर जगहजगह फव्वारे लगा दिए जाते हैं, जिन से छिड़काव द्वारा पानी खेतों के चारों तरफ फैलता है.

इस विधि में शुरुआती दौर में जरूर खर्चा आता है, लेकिन यह विधि असमतल और ज्यादा पानी सोखने वाली जमीनों और सिंचाई जल की कमी वाली जगहों के लिए बहुत ही उपयोगी है. सरकार की तरफ से फव्वारा सिंचाई संयंत्र पर किसानों को सब्सिडी भी दी जाती है.

कुछ खास पुरजे

हारवैल फव्वारा सिंचाई प्रणाली में पंप, मुख्य पाइप, सहायक पाइप, पार्श्व पाइप लाइन व स्प्रिंक्लर मुख्य भाग होते हैं. इस सिंचाई प्रणाली को सुचारु रूप से चलाने के लिए कम गहरी जगहों (8 मीटर से कम) से पानी उठाने के लिए सैंटीफ्यूगल पंप और ज्यादा गहरी जगहों से पानी उठाने के लिए टर्बाइन पंप का इस्तेमाल करते हैं. पंप को चलाने के लिए डीजल इंजन और बिजली की मोटर का इस्तेमाल किया जाता है.

हारवैल फव्वारा सिंचाई से लाभ

* पंप सैट या नहर से सिंचाई करने पर खेत तक पहुंचने में क्रमश: 20 से 50 फीसदी पानी बेकार हो जाता है, जबकि फव्वारा सिंचाई से पानी की खासी बचत होती है.

* जिन इलाकों की जमीन ऊंचीनीची होती है, उन जगहों पर बौछारी सिंचाई वरदान साबित होती है.

* इस विधि में पानी के साथ घुलनशील उर्वरक कीटनाशी और खरपतवारनाशी दवाओं का भी इस्तेमाल छिड़काव के साथ आसानी से किया जा सकता है.

* पाला पड़ने से पहले ही अगर बौछारी सिंचाई की जाए तो तापमान बढ़ जाने से फसल को पाले से नुकसान नहीं होता है.

* पानी की कमी या फिर सीमित पानी उपलब्धता वाले इलाकों में दोगुना से तिगुना ज्यादा क्षेत्रफल सतही सिंचाई की अपेक्षा कवर किया जा सकता है.

* सिंचाई के लिए नाली, मेंड़ बनाने व उन के रखरखाव की जरूरत नहीं पड़ती है. इस प्रकार कृषि जमीन, श्रम व व्यय की बचत होती है.

अधिक जानकारी के लिए हारवैल इरीगेशंस प्राइवेट लिमिटेड के फोन नंबर 011-26413370 और 011-26485365 पर संपर्क कर सकते हैं.

यों करता है काम

इस यंत्र की खासीयत है कि यह वजन में हलका, कम पानी में अधिक सिंचाई, एकसमान पानी का फैलाव और ऊंचीनीची जमीन पर इसे बिछाने में कोई परेशानी नहीं होती. इस के पाइप लचीले होते हैं, जिन्हें आसानी से लगाया जा सकता है और पाइपों में दबाव सहने की अधिक कूवत है. यह संयंत्र जंगरहित और धूप में भी बेकार नहीं होता है.

हारवैल फव्वारा संयंत्र लगाना बहुत ही आसान है. कम वजन के हारवैल पाइपों को अनफिटिंग के साथ जरूरत के हिसाब से लगाया जा सकता है. इस यंत्र के 4 श्रेणियों में पाइप आते हैं. उन के हिसाब से ही दूसरी फिटिंग्स भी साथ में मिलती हैं.

ध्यान रखने योग्य बातें

*  ज्यादा हवा होने पर खेतों में पानी सही से नहीं पहुंच पाता है.

*    पके हुए फलों को फुहारे से बचाना चाहिए.

*    पद्धति के सही उपयोग के लिए लगातार जलापूर्ति की जरूरत होती है.

*    पानी साफ हो, उस में रेत, कूड़ाकरकट न हो और पानी खारा नहीं होना चाहिए.

*    इस पद्धति को चलाने के लिए ज्यादा ऊर्जा की जरूरत होती है. चिकनी मिट्टी और गरम हवा वाले इलाकों में इस पद्धति द्वारा सिंचाई नहीं की जा सकती है.

*    यह विधि सभी तरह की फसलों की सिंचाई के लिए सही है. कपास, मूंगफली, तंबाकू, कौफी, चाय, इलायची, गेहूं, चना वगैरह फसलों के लिए यह विधि ज्यादा फायदेमंद है.

*    यह विधि बलुई मिट्टी, उथली मिट्टी, ऊंचीनीची जमीन, मिट्टी के कटाव की समस्या वाली जमीन और जहां पानी की उपलब्धता कम हो, वहां ज्यादा उपयोगी है.

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