धान, ज्वार एवं बाजरा उपार्जन के लिए 12 पंजीयन केंद्र

सीहोर : खरीफ समर्थन मूल्य पर धान, ज्वार एवं बाजरा उपार्जन के लिए पंजीयन 20 सितंबर से प्रारंभ हो चुके हैं. समर्थन मूल्य पर फसल खरीदी के लिए जिले में 12 पंजीयन केंद्र बनाए गए हैं. इन पंजीयन केंद्र पर 5 अक्तूबर से फसल खरीदी के लिए पंजीयन किए जाएंगे.

बता दें कि गत वर्षों की तरह ही किसान पंजीयन भूअभिलेख के डाटाबेस आधारित ही होगा. किसानों को पंजीयन के लिए समस्त आवश्यक दस्तावेज, समग्र आईडी, आधारकार्ड नंबर, बैंक खाता पासबुक और मोबाइल नंबर उपलब्ध कराना होगा.

समर्थन मूल्य पर धान, ज्वार एवं बाजरा के उपार्जन के लिए जिले में कुल 12 पंजीयन केंद्र बनाए गए हैं. भैरूंदा तहसील में किसान विपणन सहकारी समिति, भेरूंदा, बुधनी में प्राथमिक कृषि साख सहकारी समिति, बुधनी, प्राथमिक कृषि साख सहकारी समिति, शाहगंज, प्राथमिक कृषि साख सहकारी समिति, जवाहरखेड़ा, प्राथमिक कृषि साख सहकारी समिति, बनेटा प्लाट, प्राथमिक कृषि साख सहकारी समिति, कुसुमखेड़ा, प्राथमिक कृषि साख सहकारी समिति, नांदनेर, प्राथमिक कृषि साख सहकारी समिति, रेहटी, प्राथमिक कृषि साख सहकारी समिति बोरदी, प्राथमिक कृषि साख सहकारी समिति, बायां, प्राथमिक कृषि साख सहकारी समिति, माथनी और प्राथमिक कृषि साख सहकारी समिति, सीहोर में किसान पंजीयन केंद्र बनाए गए हैं.

Farmingइन पंजीयन केंद्रों पर किसानों द्वारा पंजीयन केवल उसी स्थिति में हो सकेगा, जब किसान के भूअभिलेख के खाते एवं खसरे में दर्ज नाम का मिलान आधारकार्ड में दर्ज नाम से होगा. भूअभिलेख और आधारकार्ड में दर्ज जानकारी में विसंगति यानी कमी होने पर पंजीयन का सत्यापन कराया जाएगा. सत्यापन होने की स्थिति में ही उक्त पंजीयन मान्य होगा.

सिकमी, बंटाईदार, वनाधिकारी पट्टाधारी किसानों का पंजीयन सहकारी समिति एवं सहकारी विपणन संस्था द्वारा संचालित पंजीयन केंद्र पर किया जाएगा. इस श्रेणी के किसानों का सत्यापन राजस्व विभाग द्वारा किया जाएगा. सिकमी, बंटाईदार, पट्टाधारी किसान का आधार नंबर प्रविष्ट किया जाएगा. आधार नंबर प्रविष्टि के उपरांत किसान के पंजीकृत मोबाइल नंबर पर ओटीपी प्राप्त होगा, जिस के माध्यम से सत्यापन के उपरांत आधार डाटाबेस में दर्ज पूरी जानकारी यूआईडीएआई से ईउपार्जन पोर्टल पर प्राप्त होगी. मोबाइल न होने पर बायोमेट्रिक डिवाइस से भी सत्यापन किया जा सकेगा. किसान द्वारा बोई गई फसल की किस्म, रकबा और विक्रय योग्य मात्रा की जानकारी एवं उत्पादित फसल का भंडारण किन स्थानों पर किया गया है या किया जाएगा, इस की जानकारी भी आवेदन में दर्ज की जाए.

‘कोंडागांव मौडल’ को अपनाएंगे प्रदेश के किसान

हाल ही में छत्तीसगढ़ के अलगअलग क्षेत्रों के तकरीबन 2 दर्जन अग्रणी किसान नेताओं का एक दल पिछले दिनों ‘मां दंतेश्वरी हर्बल फार्म एवं रिसर्च सेंटर’ कोंडागांव पहुंचा. इस दल में तेजराम साहू, मदनलाल साहू, रुद्रसेन सिंहा, श्रवण यादव,उत्तम, मनोज, बृज, हरख राम,छन्नूराम सोनकर, काशीराम, नवली, गेंदूराम पटेल,रमेश सोनकर, राजकुमार बांधे, सुरेश सिंहा, सागर सेन आदि किसान नेता और प्रगतिशील किसान सम्मिलित थे.

‘मां दंतेश्वरी हर्बल समूह’ के निदेशक अनुराग कुमार और जसमती नेताम के द्वारा इस दल को आस्ट्रेलिया टीक के पेड़ों पर सौसौ फुट की ऊंचाई तक काली मिर्च के फलों से लदी फसल से रूबरू कराया गया और विभिन्न प्रकार के औषधीय पौधों की जैविक खेती की जानकारी दी गई. हर्बल फार्म पर लगे स्टीविया के पौधों की शक्कर से लगभग 25 गुना ज्यादा मीठी पत्तियों को चख कर किसान आश्चर्यचकित रह गए. उन्हें बताया गया कि ये पत्तियां इतनी ज्यादा मीठी होने के बावजूद जीरो कैलोरी होती हैं, इसलिए डायबिटीज के मरीज भी इसे बड़े आराम से शक्कर की जगह उपयोग कर सकते हैं और भरपूर मात्रा में खा सकते हैं.

भ्रमण के पश्चात किसान नेताओं के दल को “बईठका हाल” में समूह के संस्थापक डा. राजाराम त्रिपाठी ने संबोधित किया.

उन्होंने कहा कि अब वक्त आ गया है कि किसान केवल सरकार की जिंदाबाद अथवा मुरदाबाद करने के बजाय अपनी तरक्की का रास्ता खुद ढूंढें.

डा. राजाराम त्रिपाठी ने जानकारी देते हुए बताया कि कैसे छत्तीसगढ़ के किसान उच्च लाभदायक बहुस्तरीय खेती अपना कर अपनी आमदनी बढ़ा सकते हैं. इस के साथ ही नईनई फसलों की महत्वपूर्ण जानकारी और मार्केटिंग के कारगर टिप्स भी दिए.

Kondagaonडा. राजाराम त्रिपाठी की उपस्थिति में प्रगतिशील किसान नेताओं के दल के सभी किसानों ने अपने खेतों पर भी ‘ काली मिर्च- 16’ आस्ट्रेलियन टीक, औषधीय पौधों की जैविक खेती अपनाने का संकल्प लिया.

इस अवसर पर डा. राजाराम त्रिपाठी ने “मां दंतेश्वरी हर्बल समूह” की ओर से किसानों के मुद्दे पर सदैव मुखर रहने वाले अग्रणी किसान नेता तेजराम, मदन साहू और दूसरे प्रदेश के अन्य अग्रणी किसान साथियों का अंगवस्त्रम से सम्मानित किया गया. सभी किसान नेताओं और प्रगतिशील किसानों को “मां दंतेश्वरी हर्बल समूह” के पेड़ों पर पकी हुई विश्व की नंबर वन जैविक “काली मिर्च” भी भेंट की गई.

बैठक के अंत में बैठक में सभी प्रगतिशील किसानों ने एक सुर में कहा कि “मां दंतेश्वरी हर्बल फार्म एवं रिसर्च सेंटर” के भ्रमण के लिए इस बार उन्हें पर्याप्त समय नहीं मिल पाया, जिस के कारण बहुत सी चीजें भलीभांति अभी नहीं देख पाए, जिस का उन्हें खेद है. शीघ्र ही अपने अंचल के प्रगतिशील किसानों के एक बड़े दल के साथ कोंडागांव आएंगे और 1-2 दिन रुक कर खेती की जानकारी विस्तार से प्राप्त करेंगे और उच्च लाभदायक बहुस्तरीय खेती की इस पद्धति को पूरे प्रदेश में आगे बढ़ाएंगे.

देश के उत्थान के लिए महिला सशक्तीकरण जरूरी

हिसार : 22सितंबर, 2023. समाज को सशक्त बनाने में महिलाओं की अहम भूमिका होती है. यदि परिवार, समाज व देश का उत्थान करना है, तो महिलाओं को आगे आ कर शिक्षित होना होगा. महिलाओं के सशक्तीकरण के बिना विश्व का कल्याण संभव नहीं है.

ये विचार चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने रखे. वे विश्वविद्यालय के मौलिक विज्ञान एवं मानविकी महाविद्यालय में एकदिवसीय ‘अनुसूचित जाति की महिलाओं के सशक्तीकरण में शिक्षा की भूमिका’ विषय पर आयोजित कार्यशाला के शुभारंभ अवसर पर बतौर मुख्य अतिथि संबोधित कर रहे थे, जबकि मुख्य वक्ता के रूप में राजकीय महिला महाविद्यालय, हिसार में कार्यरत सहायक प्रो. मंजू लता उपस्थित रही.

यह कार्यक्रम मौलिक विज्ञान एवं मानविकी महाविद्यालय के समाजशास्त्र विभाग द्वारा आयोजित किया गया था.

मुख्य अतिथि प्रो. बीआर कंबोज ने कार्यशाला में उपस्थित ग्रामीण इलाकों से आई अनुसूचित जाति की महिलाओं की अधिक संख्या होने पर खुशी व्यक्त की.

उन्होंने कहा कि आज का समय तेजी से बदल रहा है. महिलाओं को बदलते समय के साथ कदम ताल मिला कर चलने की जरूरत है. किसी भी समाज की उन्नति के लिए हर वर्ग को समानता का अधिकार देना जरूरी है.

अगर समाज का कोई भी हिस्सा पीछे रह गया तो देश के विकास की दर स्वत: ही कम हो जाएगी. इसलिए हमें महिलाओं को डिजिटल शिक्षा से जोड़ कर उन्हें समानता का अधिकार देने का प्रयास करना चाहिए. तभी वे हर क्षेत्र में आगे बढ़ सकेंगी.

Women Empowermentमुख्य अतिथि बीआर कंबोज ने विशेषकर महिलाओं के उत्थान के लिए सरकार व विश्वविद्यालय द्वारा चलाई जा रही विभिन्न स्कीमों से सभी को जानकारी दी.

उन्होंने यह भी कहा कि किसी भी कार्य को सफलता की दिशा में ले जाने के लिए सब से पहले इच्छाशक्ति का होना जरूरी है.

मुख्य अतिथि बीआर कंबोज ने आगे यह भी कहा कि पहले के समय में महिलाओं को वंचित रखा जाता था, चाहे शिक्षा हो या फिर व्यवसाय, या फिर अन्य क्षेत्र. लेकिन बदलते दौर के साथ महिलाओं की सोच बदली है. वे अब साक्षर हो कर अपनी खुद व परिवार की स्थिति को मजबूत करने का प्रयास कर रही हैं, जो कि परिवार, समाज व देश के उत्थान का अच्छा संकेत है.

मुख्य अतिथि बीआर कंबोज ने संसद में महिला आरक्षण बिल पास होने पर सभी को बधाई दी. उन्होंने अनुसूचित जाति की महिलाओं से आह्वान किया कि वे विश्वविद्यालय में शुरू की जाने वाली क्षमता निर्माण प्रयोगशाला में प्रशिक्षण ले कर अपने कौशल को बढ़ाएं.

इस अवसर पर मुख्य अतिथि बीआर कंबोज ने उपरोक्त विभाग में नवस्थापित क्षमता निर्माण प्रयोगशाला का उद्घाटन किया. साथ ही, पौध रोपित भी किया.

मुख्य अतिथि ने खुद का मोमेंटो कार्यशाला में उपस्थित सब से उम्रदाज महिला आर्य नगर निवासी धोली देवी को भेंट दे कर सम्मानित किया. वहीं मुख्य वक्ता मंजू लता ने अपने संभाषण में कहा कि धरती पर सब से सुंदर रचनात्मक वस्तु है तो वह एकमात्र महिला है, जो खुद व परिवार को संभाल रही है.

उन्होंने आगे कहा कि शिक्षा के क्षेत्र में महिलाएं आगे बढ़ रही हैं, लेकिन जो किसी कारणवश पीछे छूट गई हैं, उन्हें प्रेरित करने की जरूरत है.

उन्होंने कहा कि बदलते समय के अनुसार महिलाओं के प्रति हमें संकीर्ण विचारों से छुटकारा पाने की जरूरत है. साथ ही, महिलाओं के उत्थान में संविधान निर्माता डा. भीमराव अंबेडकर के योगदान का भी उल्लेख किया.

अनुसंधान निदेशक डा. जीतराम शर्मा ने कहा कि इस कार्यशाला का आयोजन भारत सरकार की राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के अंतर्गत किया गया है, जिस में क्षमता निर्माण प्रयोगशाला एक मुख्य प्रोजैक्ट है. इस लैब से खासकर अनुसूचित जाति की महिलाओं में स्किल पैदा कर उन्हें व्यावहारिक जनकारी से जोड़ा जाएगा, ताकि वे अपना स्वरोजगार शुरू कर स्वावलंबी बन सकें. उन्होंने डिजिटल शिक्षा को समय की मांग बताया और उपस्थित महिलाओं को डिजिटल शिक्षा से जुड़ने का आह्वान किया.

उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय के मौलिक विज्ञान एवं मानविकी महाविद्यालय में उक्त प्रयोगशाला में प्रशिक्षित महिलाओं को ट्रेनर बनाया जाएगा, ताकि वे अपना खुद का रोजगार शुरू कर खुद व परिवार की स्थिति को मजबूत बना सकें.

मौलिक विज्ञान एवं मानविकी महाविद्यालय के अधिष्ठाता डा. नीरज कुमार ने सभी का स्वागत किया, जबकि समाजशास्त्र विभाग की विभागाध्यक्ष डा. विनोद कुमारी ने धन्यवाद ज्ञापित किया.

इस कार्यशाला में मंच का संचालन डा. रश्मि त्यागी ने किया, जबकि डा. जतेश काठपालिया ने प्रोजैक्ट की विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत की. इस अवसर पर विश्वविद्यालय के कुलसचिव डा. बलवान सिंह मंडल सहित विभिन्न महाविद्यालयों के अधिष्ठाता, निदेशक, विभागाध्यक्ष, वैज्ञानिक, शिक्षाविद व विद्यार्थी उपस्थित रहे.

7 करोड़ रुपए की लागत से 7 लाख पौध लगाने का लक्ष्य

छत्तीसगढ़ : बस्तर में इन दिनों एक खामोश क्रांति करवट ले रही है. प्रायः नक्सली हिंसा के लिए कुख्यात बस्तर इन दिनों ‘मिशन ब्लैक गोल्ड’ और ‘मिशन केसरिया’ के लिए चर्चित है. पहली नजर में इन सुर्खियों को पढ़ने पर ऐसा लग सकता है कि शायद यह किसी सरकारी मिशन, अभियान या योजना से संबंधित होगा, पर हकीकत यह है कि इन मिशन का सरकारी योजनाओं से कोई लेनादेना नहीं है.

दरअसल, यह अनूठी पहल बस्तर के जनजातीय समुदायों के उत्थान के लिए पिछले 3 दशकों से लगातार काम कर रही जैविक किसानों की संस्था “मां दंतेश्वरी हर्बल समूह”, समाजसेवी संस्थान “संपदा” एवं स्थानीय मीडियासंगठनों के संयुक्त तत्वावधान में की गई है.

इस समूह के संस्थापक डा. राजाराम त्रिपाठी ने इस महत्वाकांक्षी अभियान में स्थानीय मीडिया को भी शामिल करते हुए विगत 23 अगस्त को बैठक भी की थी.

उक्त बैठक के एक महीने पूरे होने पर डा. राजाराम त्रिपाठी ने प्रैस वार्त्ता में बताया कि इस बीच संस्था के द्वारा इस एक महीने में 17 गांवों में तकरीबन 500 किसानों की बाड़ी और खेतों में तकरीबन 7 हजार काली मिर्च एवं अनाटो के पौध लगा दिए गए हैं.

कोंडागांव जिले के चयनित गांव

1. चलका, 2. मालगांव, 3. सुआ डोंगरी, 4. सोना बाल, 5. कबोंगा, 6. मालाकोट, 7. बूढ़ा कशा, 8. कुमारपारा, 9. बुना गांव, 10 उमरगांव, 11. दाढिया,12 केंवटी,13. जोबा,14. सोहंगा,15. बंजोड़ा,16. लभा ,17. कनेरा आदि में ये पौध लगवाए गए हैं.

उन्होंने मिशन के बारे में जानकारी देते हुए कहा कि “मिशन बस्तरिया ब्लैक गोल्ड” के तहत ‘मां दंतेश्वरी हर्बल फार्म एवं रिसर्च सेंटर’, कोंडागांव द्वारा पूरी तरह से बस्तर में ही विकसित की गई और देश की अन्य प्रजातियों की तुलना में तिगुना तक ज्यादा उत्पादन देने वाली और बेहतरीन गुणवत्ता के कारण पूरे देश में नंबर वन मानी जा रही काली मिर्च की वैरायटी “मां दंतेश्वरी काली मिर्च- 16 (एमडीबीपी -16)” के पौधे एवं “मिशन केसरिया” के तहत इसी संस्थान द्वारा विकसित केवल 2 सालों में बहुपयोगी फल देने वाले और दूसरी वैरायटी की तुलना में दोगुना उत्पादन देने वाले “अनाटो (सिंदूरी) की वैरायटी “एमडीएबी -16” के पौधे, जिन की लागत सौ रुपए प्रति पौधा है. आसपास के गांवों में चयनित किसानों को निःशुल्क उपलब्ध कराया जा रहा है और उन्हें इसे लगाने की ट्रेनिंग भी दी जा रही है.

Mission Black Goldहमारा लक्ष्य है कि गांवों में “हर पेड़ पर काली मिर्च चढ़ाएं – खेतीबारी की खाली जगहों में अनाटो लगाएं”. एक बार ये पौधे लगा लेंगे, तो 2-3 साल में अतिरिक्त आमदनी होनी शुरू हो जाएगी और कम से कम 50 साल तक आमदनी बढ़ते क्रम में प्राप्त करेंगे और घर बैठे बस्तर के सभी परिवारों को समृद्ध बनाएंगे. इस से बस्तर के हमारे आदिवासी भाइयोंबहनों को और उन की आगे आने वाली पीढ़ियों को भी बिना अपना गांव, घर और जंगलजमीन को छोड़े, घर पर ही बिना किसी अतिरिक्त खर्च के पर्याप्त आमदनी वाला रोजगार मिल जाएगा. इस से पेड़ों का कत्ल भी रुक जाएगा और पर्यावरण की रक्षा भी होगी.

इस अभियान की सब से खास बात यह है कि ये पौध मुफ्त दिए जा रहे हैं. इस को लगाने की ट्रेनिंग भी मुफ्त दी जाती है और इस के उत्पादन की शतप्रतिशत मार्केटिंग सुविधा भी दी जा रही है.

इस के अलावा इच्छुक किसानों को जड़ीबूटियों की खेती की जानकारी, बीज और विपणन भी उपलब्ध कराया जा रहा है.

औषधीय पौधों के साथ ही “काली मिर्च” की खेती कोंडागांव में धीरेधीरे परवान चढ़ रही है. लगभग 3 दशक पूर्व यहां के स्वप्नद्रष्टा किसान वैज्ञानिक डा. राजाराम त्रिपाठी ने जैविक खेती व हर्बल खेती के जो नएनए प्रयोग शुरू किए थे, तभी से उन का सपना था कि छत्तीसगढ़ की जलवायु के लिए उपयुक्त ‘काली मिर्च’ की नई प्रजाति का विकास और उसे छत्तीसगढ़ के किसानों के खेतों पर और बचेखुचे जंगलों में सफल कर के दिखाना.

डाक्टर राजाराम त्रिपाठी की 25 सालों की मेहनत अब धीरेधीरे रंग दिखाने लगी है. आज क्षेत्र के कई छोटेछोटे आदिवासी किसान अपने घरों की बाड़ियों में खड़े पेड़ों पर सफलतापूर्वक काली मिर्च की फसल ले रहे हैं और नियमित अतिरिक्त कमाई करने में सफल हुए हैं.

इस मिशन के बारे में डा. राजाराम त्रिपाठी ने आगे बताया कि इसे क्रमशः उत्तरोत्तर बढ़ते क्रम में लगभग 7 करोड़ रुपए के यह पौध आगामी 7 वर्षों में सभी गांवों में किसानों के यहां निःशुल्क लगवाया जाएगा. अगर सबकुछ सही रहा, तो इन 7 वर्षों में कोंडागांव क्षेत्र कालीमिर्च, मसालों व हर्बल्स का देश का एक बड़ा हब बन कर उभरेगा. इस से पर्यावरण भी सुधरेगा.

कार्यक्रम के सफल क्रियान्वयन के लिए समूह में मिशन लीडर अनुराग कुमार, जसमती नेताम, शंकर नाग, कृष्णा नेताम और बलई चक्रवर्ती का सम्मापत्रकार संगठन के अध्यक्ष इसरार खान और पत्रकार संगठनों के अन्य पदाधिकारी विश्वप्रकाश शर्मा, नीरज उइके, अंजय यादव, मिलन राय, मनोज कुमार, गिरीश जोशी, हरीश देवांगन के करकमलों से किया गया.

इस अवसर पर सभी प्रमुख समाचारपत्रों और इलेक्ट्रानिक मीडिया के पत्रकारों की गौरवशाली उपस्थिति रही.

कृषि के क्षेत्र में अत्याधुनिक तकनीकें विकसित करने की जरूरत

हिसार : 21 सितंबर. चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के मौलिक विज्ञान एवं मानविकी महाविद्यालय में 10 दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय कार्यशाला का समापन हुआ. कार्यशाला के समापन समारोह के दौरान विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बीआर कंबोज मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित रहे.

इस कार्यशाला का आयोजन राष्ट्रीय कृषि उच्च शिक्षा परियोजना-संस्थागत विकास योजना (एनएएचईपी-आईडीपी) प्रोग्राम के तहत डिपार्टमेंट औफ बौटनी एवं प्लांट फिजियोलौजी द्वारा किया गया था, जिस का मुख्य विषय ‘‘बेहतर फसल प्रजनन के लिए फिजियोलौजी, फिनोमिक्स और जीनोमिक्स का अनुप्रयोग’’ रहा.

मुख्य अतिथि प्रो. बीआर कंबोज ने बताया कि यह बदलाव और सीखने का समय है, जिस में कोई भी एकांत में रह कर काम नहीं कर सकता. हम संसाधनों को एकदूसरे के साथ साझा कर के अच्छी तकनीकों को विकसित कर सकते हैं. इस के लिए एआई (आर्टीफिशियल इंटेलिजेंस), मशीन लर्निंग और इमेजिज जैसी तकनीकों का इस्तेमाल कर के शोध को उच्च स्तर तक ले जा सकते हैं.

उन्होंने कहा कि यह समय की मांग है कि कृषि के क्षेत्र में ऐसी तकनीकें विकसित की जाएं, जिस से कृषि में आने वाली गंभीर समस्याओं का समय से पहले पता लगा कर कम समय में उस का निवारण किया जा सके.

उन्होंने कहा कि आजकल तेजी से बदलती पर्यावरण गतिविधियां जैसे बाढ़, बढ़ता तापमान जैसी समस्याओं से निबटने के लिए संसाधनों का संरक्षण व सही प्रयोग आवश्यक है. इसी प्रकार ज्यादा मात्रा में गुणवत्ताशील अनाज पैदा करने के लिए पोषक तत्व, उपयोग क्षमता, संसाधनों का एकीकरण और उच्च स्तर की तकनीकों का इस्तेमाल करना बहुत जरूरी है.

उन्होंने खेती में श्रमिकों की कमी और युवाओं की खेती में कम रुचि पर भी चिंता जताई. इस के लिए उन्होंने सेंसर जैसी उच्च स्तर की तकनीकों का इस्तेमाल कर युवाओं को खेती की तरफ आकर्षित करने का भी आह्वान किया.

उन्होंने दिसंबर माह में होने वाले अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन का जिक्र करते हुए कार्यशाला में विदेशों में पहुंचे मेहमानों को आमंत्रित किया और ज्यादा से ज्यादा वैज्ञानिकों व विद्यार्थियों को भाग लेने के लिए प्रेरित किया.

इस अवसर पर कुलपति द्वारा कार्यशाला के मैनुअल का विमोचन किया गया.

कार्यशाला में आस्ट्रेलिया से आए वैज्ञानिक डा. सूर्यकांत ने इस कार्यशाला को बहुत महत्वपूर्ण बताया और कहा कि यह कार्यशाला विद्यार्थियों में नई ऊर्जा का संचार करेगी. साथ ही, उन्हें नई दिशा भी दिखाएगी.

उन्होंने ‘शेयरिंग इज केयरिंग’ स्लोगन का इस्तेमाल करते हुए कहा कि ज्ञान की कोई सीमा नहीं होती, हमेशा उसे बांटने का प्रयास करना चाहिए.

Agriculture Educationउन्होंने एआई (आर्टीफिशियल इंटेलिजेंस) तकनीक को कृषि का भविष्य और इमेजिज, सेंसर, कैमरा व सांख्यिकी विश्लेषण को महत्वपूर्ण विषय बताया. उन्होंने अपनेआप को सौभाग्यशाली मानते हुए कहा कि हमेशा इस विश्वविद्यालय में आना गर्व की बात है.

उन्होंने आगे यह भी कहा कि विश्वविद्यालय कुलपति प्रो. बीआर कंबोज के नेतृत्व में नई ऊंचाइयां छू रहा है. इस अवसर पर इजराइल से आए डा. राइबिन डेविड और फ्रांस से आए डा. पेजमान व डा. रोमन फर्नेडेज ने भी कृषि के क्षेत्र में अत्याधुनिक तकनीकों बारे में व्याख्यान दिए.

कार्यशाला में मंच संचालन डा. विनोद गोयल ने किया. साथ ही, कार्यशाला के दौरान बीते 10 दिनों में हुई गतिविधियों की रिपोर्ट प्रस्तुत की.

इस कार्यशाला के पाठ्यक्रम निदेशक व मौलिक विज्ञान एवं मानविकी महाविद्यालय के अधिष्ठाता डा. नीरज कुमार ने सभी का स्वागत किया, जबकि स्नातकोत्तर शिक्षा अधिष्ठाता व आईडीपी इंचार्ज डा. केडी शर्मा ने धन्यवाद ज्ञापित किया.

गौ उत्पाद से बनने वाली सामग्रियों पर जोर

ग्वालियर: गौशालाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए गौ उत्पाद दूध, दही, घी के साथ ही गौ काष्ठ से दीपक बनाने एवं गोबर से लकड़ी बनाने की गतिविधियां गौशाला में प्रारंभ की जाएं. इस के लिए प्रशिक्षण सत्र भी आयोजित किए जाएं.

मुख्य कार्यपालन अधिकारी जिला पंचायत विवेक कुमार ने जिले में संचालित 33 गौशालाओं के संचालकों की बैठक में यह बात कही.

जिला पंचायत के सभाकक्ष में आयोजित बैठक में गौशालाओं के संचालक गौ संवर्धन बोर्ड के सदस्य, उपसंचालक, पशु चिकित्सा विभाग, पंच, सचिव, अशासकीय संस्थाओं के प्रतिनिधि और रानीघाटी गौशाला एवं कृष्णायन गौशाला के संचालक भी उपस्थित थे.

मुख्य कार्यपालन अधिकारी जिला पंचायत विवेक कुमार ने कहा कि ग्रामीण क्षेत्र में जो भी गौशालाएं बन गई हैं, उन के संचालन का काम तत्काल प्रारंभ किया जाए.

साथ ही, उपसंचालक, पशु चिकित्सा विभाग को भी निर्देशित किया गया कि गौशालाओं के संचालन के लिए शासन स्तर से प्राप्त जो राशि दी जाती है, उसे तत्काल जारी किया जाए. जिन ग्राम पंचायतों में गौशाला संचालित हैं, वहां पर ग्रामीणों को भी गौशालाओं से जोड़ने का कार्य किया जाए. ग्रामीण क्षेत्र के बेरोजगार युवकयुवतियों को भी समूह बना कर गौ उत्पाद से निर्मित सामग्री के निर्माण में जोड़ा जाए, ताकि उन की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ हो सके.

बैठक में रानीघाटी गौशाला एवं कृष्णायन गौशाला के संचालकों ने भी गौशाला संचालन के संबंध में महत्वपूर्ण सुझाव दिए. उपसंचालक, पशु चिकित्सा विभाग ने भी शासन स्तर से गौशालाओं के संचालन के लिए दी जाने वाली सहायता एवं सहयोग के संबंध में विस्तार से जानकारी दी.

उत्तर प्रदेश गन्ना प्रतियोगिता के विजेताओं को मिला इनाम

लखनऊ : राज्य गन्ना प्रतियोगिता वर्ष 2022-23 के लिए अनुमन्य संवर्ग यथाशीघ्र पौधा, पेड़ी, सामान्य पौधा, ड्रिप विधि से सिंचाई (पौधा व पेड़ी) एवं युवा गन्ना किसान संवर्ग (पौधा व पेड़ी) के तहत पूरे प्रदेश से कुल 432 आवेदनपत्र प्राप्त हुए थे.

विभाग द्वारा नामित कटाई अधिकारियों से प्राप्त परिणामों के आधार पर किसानों को विजयी घोषित किया गया है.

आयुक्त, गन्ना एवं चीनी प्रभु एन. सिंह ने बताया कि शीघ्र ही पौधा संवर्ग में नागेंद्र सिंह पुत्र बृजपाल सिंह, ग्राम-पाटकुआं, जोन-हरियावां, जिला-हरदोई ने प्रदेश में सर्वाधिक 2,758 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज प्राप्त कर प्रथम स्थान प्राप्त किया, वहीं सत्यनारायण पुत्र सीताराम, ग्राम-तरया हंसराज, जोन-सेवरही, जिला कुशीनगर ने 2446.75 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज प्राप्त कर द्वितीय स्थान व श्याम बहादुर सिंह पुत्र हरिहर सिंह, ग्राम-उतरा, जोन-हरियावां, जिला-हरदोई ने 2370.50 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज प्राप्त कर तृतीय स्थान प्राप्त किया है.

इस प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार विजेता को 15,000 रुपए , द्वितीय को 10,000 रुपए और तृतीय को 7,500 रुपए की धनराशि एवं प्रशस्तिपत्र प्रदान किया जाएगा.

उन्होंने बताया कि घोषित परिणामों के अनुसार पेड़ी संवर्ग के अंतर्गत जोगेंद्र सिंह पुत्र ओम प्रकाश, ग्राम-शामली, जोन-शामली, जिला-शामली ने 1993.05 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज प्राप्त कर प्रथम स्थान प्राप्त किया है, वहीं योगेंद्र सिंह पुत्र रामप्रसाद सिंह, ग्राम-चरौरा, जोन-अनूपशहर, जिला- बुलंदशहर द्वारा 1970 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज प्राप्त कर द्वितीय स्थान एवं अशोक पाल सिंह पुत्र हरपाल सिंह ग्राम- ब्यौंधा, जोन- सेमीखेड़ा, बरेली द्वारा 1857.25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज प्राप्त कर तृतीय स्थान प्राप्त किया गया है.

इस प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार विजेता को 15,000 रुपए, द्वितीय को 10,000 रुपएऔर तृतीय को 7,500 रुपए की धनराशि एवं प्रशस्तिपत्र प्रदान किया जाएगा. उन के द्वारा यह भी बताया कि इस विधि से सिंचाई-पौधा संवर्ग में रोहित कुमार, पुत्र कृष्ण पाल, ग्राम-सुल्तानपुर, जोन- खाईखेड़ी, जिला- मुजफ्फरनगर ने 1,979 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज प्राप्त कर प्रथम स्थान प्राप्त किया है, वहीं शोभा राम, पुत्र मान सिंह, ग्राम-ढासरी, जोन-टिकौला, जिला- मुजफ्फरनगर द्वारा 1475 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज प्राप्त कर द्वितीय स्थान एवं महेंद्र सिंह, पुत्र होशियारा, ग्राम-कवाल, जोन-मंसूरपुर, जिला- मुजफ्फरनगर द्वारा 1468 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज प्राप्त कर तृतीय स्थान प्राप्त किया गया है.

इस प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार विजेता को 15,000 रुपए, द्वितीय को 10,000 रुपए और तृतीय को 7,500 रुपए की धनराशि एवं प्रशस्तिपत्र प्रदान किया जाएगा.

ड्रिप विधि से सिंचाई-पेड़ी संवर्ग में कमलकांत शर्मा, पुत्र जय नारायण शर्मा, ग्राम-शाहजहांपुर, जोन- अनूपशहर, जिला- बुलंदशहर ने 1,754 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज प्राप्त कर प्रथम स्थान प्राप्त किया है, वहीं हरवीर आर्य, पुत्र बलवीर सिंह, ग्राम- रसूलपुर जाटान, जोन- मंसूरपुर, जिला- मुजफ्फरनगर द्वारा 1,640 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज प्राप्त कर द्वितीय स्थान एवं विजय पुत्र जवाहर सिंह, ग्राम- भटीपुरा, जोन- नंगलामल, जिला- मेरठ द्वारा 1524 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज प्राप्त कर तृतीय स्थान प्राप्त किया है.

इस प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार विजेता को 15,000 रुपए, द्वितीय को 10,000 रुपए और तृतीय को 7,500 रुपए की धनराशि एवं प्रशस्तिपत्र प्रदान किया जाएगा.

इसी प्रकार युवा गन्ना किसान संवर्ग-पौधा के अंतर्गत मनप्रीत कौर, पत्नी अमरजीत, ग्राम- इंद्रराज रूपपुर, जोन- खाईखेड़ी, जिला- मुजफ्फरनगर ने 1917 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज प्राप्त कर प्रथम स्थान पाया है, वहीं वैभव निरवाल, पुत्र जगेंद्र सिंह, ग्राम- शामली, जोन- शामली, जिला- शामली द्वारा 1827 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज प्राप्त कर द्वितीय स्थान एवं पंकज कुमार पुत्र लाल सिंह, ग्राम- खानूजट, जोन- धामपुर, जिला- बिजनौर द्वारा 1669 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज प्राप्त कर तृतीय स्थान हासिल किया है. इस प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार विजेता को 15,000 रुपए। द्वितीय को 10,000 रुपए और तृतीय को 7,500 रुपए की धनराशि एवं प्रशस्तिपत्र प्रदान किया जाएगा.

युवा गन्ना किसान संवर्ग-पेड़ी के अंतर्गत मोहित पुत्र अशोक कुमार, ग्राम- बढ़पुरा, जोन- अनूपशहर, जिला- बुलंदशहर ने 1949 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज प्राप्त कर प्रथम स्थान पाया है, वहीं बलराम, पुत्र राधेश्याम, ग्राम-नयागांव, जोन- खाईखेड़ी, जिला- मुजफ्फरनगर द्वारा 1712.50 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज प्राप्त कर द्वितीय स्थान एवं कुलवंत, पुत्र अजय, ग्राम- अलीपुरा, जोन- सरसावां, जिला- सहारनपुर द्वारा 1638.50 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज प्राप्त कर तृतीय स्थान हासिल किया है. इस प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार विजेता को 15,000 रुपए, द्वितीय को 10,000 रुपए और तृतीय को 7,500 रुपए की धनराशि एवं प्रशस्तिपत्र प्रदान किया जाएगा.

उन्होंने यह भी बताया कि सभी संवर्गों के प्रतियोगी गन्ना किसान, जिन्होंने राज्य गन्ना प्रतियोगिता वर्ष 2022-23 के पौधा गन्ना संवर्ग में 2,000 क्विंटल प्रति हेक्टेयर या अधिक और पेड़ी गन्ना संवर्ग में 1,500 क्विंटल प्रति हेक्टेयर या अधिक गन्ना उत्पादकता प्राप्त की है, उन्हें भी अच्छी गन्ना उपज प्राप्त करने के लिए प्रशस्तिपत्र दिए जाने की घोषणा की गई है.

गन्ना आयुक्त ने यह भी बताया कि राज्य गन्ना प्रतियोगिता आयोजन का मुख्य उद्देश्य प्रदेश के चीनी मिल क्षेत्रों में गन्ने की प्रति हेक्टेयर उपज को बढ़ाने के लिए गन्ना किसानों में स्वस्थ प्रतियोगी भावना का संचार कर उपज बढ़ाने की प्रतिस्पर्धा कायम करना है.

गन्ना आयुक्त द्वारा गन्ना प्रतियोगिताओं के वृहद स्तर पर प्रचारप्रसार हेतु विभागीय अधिकारियों को निर्देश भी दिए गए. जिस से सभी गन्ना किसानों को राज्य गन्ना प्रतियोगिता के संबंध में समय से जानकारी प्राप्त हो सके और अधिक से अधिक गन्ना किसान प्रतियोगिता में प्रतिभाग कर सकें, जिस से प्रदेश के विजयी घोषित होने वाले गन्ना किसानों से प्रेरणा ले कर अन्य गन्ना किसान भी गन्ने की खेती में अच्छी उपज प्राप्त कर सकें

7 किसानों से शुरू हुई संरक्षित खेती, आज 105 किसान

खरगोन : संरक्षित खेती एक नवीनतम तकनीक है, जिस के माध्यम से फसलों की मांग के अनुसार सूक्ष्म वातावरण को नियंत्रित करते हुए मूल्यवान सब्जियों की खेती का प्राकृतिक प्रकोपों एवं अन्य समस्याओं से बचाव किया जाता है. इस में कम से कम क्षेत्रफल में अधिक से अधिक गुणवत्तायुक्त उत्पादन प्राप्त किया जाता है.

साथ ही, संरक्षित खेती की दिशा में किसानों का रुझान अब बहुत तेज गति से बढ़ रहा है. इस का एक कारण बढ़ते तापमान और वायरस से बचाव कर कृषि में उत्पादन बढ़ाते हुए मुनाफा कमाना है.

इस के लिए मध्य प्रदेश शासन ने संरक्षित खेती को प्रोत्साहित करने के लिए वर्ष 2009-10 में शेडनेट अपर पौलीहाउस के साथ शुरू किया था. इस में मुख्य रूप से सब्जियों से ले कर पौध तैयार करने में रुचि दिखा रहे हैं.

संरक्षित खेती को प्रोत्साहन देने के लिए राज्य के बाहर प्रशिक्षण कराया जाता है. 16 सितंबर को जिले के 30 किसान एक ऐसा ही प्रशिक्षण पुणे के तलेगांव से ले कर आए हैं.

उद्यानिकी विभाग के एसडीओ पीएस बड़ोले ने बताया कि प्रशिक्षण में शेडनेट व पौलीहाउस के प्रबंधन और उस में उपचार पर केंद्रित था. जिले में वर्ष 2009-10 में 6,000 से 7,000 वर्गमीटर से शुरू हुआ था. आज जिले के किसानों में इस के प्रति ज्यादा जागरूकता आई है.

कपूरचंद ने शासकीय सहयोग से मिले लाभ का अवसर उठाया निजी तौर पर आगे बढ़ाई संरक्षित खेती

महेश्वर के नांदरा गांव के कपूरचंद को उद्यानिकी विभाग द्वारा वर्ष 2012-13 में एक एकड़ में पौलीहाउस प्रदान किया गया. तकरीबन 10 वर्षों तक पौलीहाउस के अच्छे प्रबंधन के बाद आज भी वे पौलीहाउस का उपयोग कर मुनाफा ले रहे हैं.

हालांकि अब वे इस कृषि को आगे बढ़ा कर 3.50 एकड़ में खेती कर रहे हैं. अभी वे टमाटर, मिर्च और कई प्रकार की सब्जियां इस नवीन तरीके से कर रहे हैं.

निजी संसाधनों से प्रदेश में पहचान बनाई

बड़वाह के सिरलाय गांव के किसान लक्ष्मण काग ने अपने प्रयासों से नर्सरी से टिशू कल्चर बायो लैब तक का सफर तय किया है. हर साल लगभग एक करोड़ केले के पौधे जिले व प्रदेश में भेज कर उन्होंने अपनी एक अलग पहचान बनाई है. टिश्यू लेब से 8 माह बाद सामान्य माहौल में ला कर वे रोपाई को भेज देते हैं. ये 9-10 माह में फल देने लगते हैं, जबकि सामान्य पौधे 12-14 महीने का समय लेते हैं.

तिरुपति नर्सरी के डायरैक्टर लक्ष्मण काग बताते हैं कि लगभग 41 एकड़ में फैली यह मध्य भारत की सब से बड़ी नर्सरी है.12 राज्यों में वानिकी, औषधीय, सजावटी, फलदार पौधों की 200 वैरायटी सहित केला व अन्य टिश्यू कल्चर विकसित कर भेज रहे हैं. स्थानीय स्तर पर किसानों को पौध संरक्षण व उत्पादन प्रशिक्षण भी मिल रहा है.

ऐसी है टिश्यू की लैब प्रक्रिया

बायो लैब ऐक्सपर्ट विक्रम सिंह बताते हैं कि कंद से फूटे केला टिश्यू के टुकड़े को पोषक तत्व व प्लांट हार्मोन की बाटल या जैली में रखते हैं. हार्मोन पौधे के ऊतकों में कोशिकाओं को तेजी से विभाजित कर कई कोशिकाओं का निर्माण कर देते हैं. एक बार में 500 से 1,000 पौधे तैयार किए जाते हैं. यहां 1000 बाटल या जैली में कई पौधे तैयार होते हैं. एक माह तक 27 डिगरी तापमान मेंटेन करना होता है. आगे उन में 35 डिगरी व 40 डिगरी की प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर नेटशेड हाउस में शिफ्ट कर देते हैं. 4 चरण की प्रक्रिया में 8 माह लग जाते हैं.

105 किसानों को नेटशेड व पौलीहाउस पर मिला अनुदान

उद्यानिकी उपसंचालक केके गिरवाल के मुताबिक, जिले में अब तक विभिन्न योजनाओं में 105 किसान हितग्राहियों को अनुदान उपलब्ध कराया गया है. एकीकृत बागबानी मिशन, राज्य पोषित योजना में 3,28,908 वर्गमीटर एरिया में नेटशेड व पौलीहाउस के माध्यम से किसान खेती कर रहे हैं. इस की शुरुआत 7 किसानों से 7,000 वर्गमीटर में हुई थी. यहां की तैयार पौध स्वस्थ होने से उद्यानिकी उत्पादन भी तेजी से बढ़ रहा है.

कीटनाशकों का छिड़काव कम करने पर जोर

रायसेन : आत्मा परियोजना के अंतर्गत किसानवैज्ञानिक परिचर्चा का आयोजन कृषि विज्ञान केंद्र, नकतरा, रायसेन में किया गया. इस परिचर्चा में एनपी सुमन, उपसंचालक कृषि, रायसेन, दुष्यंत धाकड़, सहायक संचालक कृषि, डा. एचबी सेन, कृषक सहयोग संस्थान, कृषि विज्ञान केंद्र, रायसेन के वरिष्ठ वैज्ञानिक व प्रमुख डा. स्वप्निल दुबे, वैज्ञानिक डा. प्रदीप कुमार द्विवेदी एवं सुनील केथवास उपस्थित थे.

परिचर्चा में एनपी सुमन, उपसंचालक, कृषि, रायसेन ने कहा कि खरीफ फसलों में किसान अनुशंसित एवं संतुलित मात्रा में कीटनाशकों का उपयोग करें, ताकि कम लागत में अधिक उत्पादन प्राप्त किया जा सके.

वैज्ञानिक डा. स्वप्निल दुबे ने चर्चा के दौरान कहा कि इस समय सोयाबीन की फसल में सेमीलूपर व तंबाकू की इल्ली, धान की फसल में सफेद माहू एवं अरहर की फसल में पत्ती लपेटक कीट का प्रकोप देखा जा रहा है.

 

Keet Nashakवैज्ञानिक प्रदीप कुमार द्विवेदी द्वारा सेमीलूपर व तंबाकू की इल्ली के नियंत्रण के लिए वीसी ब्रोफानिलिडे 300 एससी की मात्रा को 42-62 ग्राम प्रति हेक्टेयर या नोबाल्यूरौन 5.25 फीसदी + इंडो एलक्साकार्ब 4.50 एससी 825-875 मिलीलिटर प्रति हेक्टेयर या टेट्रानिलिप्रोल 12.8 एससी 250-300 प्रति हेक्टेयर या स्पाइनेटोरम 11.70 एससी 450 मिलीलिटर प्रति हेक्टेयर में से किसी एक दवा का छिड़काव करें.वहीं धान की फसल में सफेद माहू के नियंत्रण के लिए इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एसएल 250 मिलीलिटर प्रति हेक्टेयर या विप्रोफेंजिन 25 एससी 750 मिलीलिटर प्रति हेक्टेयर या पाइमेट्रोजाइन 300 मिलीलिटर प्रति हेक्टेयर में से किसी एक दवा का छिड़काव करें.

इस किसानवैज्ञानिक परिचर्चा में सातों विकासखंड के ग्राम देहगांव, कमका भूतपलासी, कारीतलाई, खनपुरा, हिनौतिया बाड़ी, सिलवानी आदि के लगभग 50 किसानों एवं महिला किसानों सहित जिले में पदस्थ बीटीएम सुरेश कुमार परमार, डा. गोविंद नामदेव, हीरालाल मालवीय, रघुवीर सिंह, योगेश शर्मा ने भाग लिया.

इस कार्यक्रम में उन्नत किसान राजेश ठाकुर, जगन्नाथ शर्मा, मानव राय एवं महिला किसान आशा उईके ने अपने अनुभव साझा किए