विश्वकर्मा योजना से कारीगरों व शिल्पकारों का जीवन सुधरेगा

नई दिल्ली: विश्वकर्मा जयंती के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नई दिल्ली में विश्वकर्मा योजना लौंच की. इस अवसर पर देश में विभिन्न जगहों पर भी कार्यक्रम आयोजित हुए. केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर भोपाल में इस अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रुप में शामिल हुए. मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कार्यक्रम की अध्यक्षता की.

Yashobhumiप्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नई दिल्ली स्थित द्वारका में इंडिया इंटरनेशनल कन्वेंशन एंड एक्सपो सेंटर (यशोभूमि) राष्ट्र को समर्पित की. विश्वकर्मा जयंती समारोह में अपने संबोधन में उन्होंने कहा कि लाखों कारीगरों, परिवारों के लिए पीएम विश्वकर्मा योजना आशा की किरण बन कर आ रही है.

उन्होंने देश के रोजमर्रा के जीवन में विश्वकर्माओं के योगदान व महत्व को रेखांकित करते हुए कहा कि प्रौद्योगिकी में चाहे कितनी भी प्रगति क्यों न हो जाए, विश्वकर्मा समाज में हमेशा महत्वपूर्ण बने रहेंगे.

उन्होंने आगे कहा कि समय की मांग है कि विश्वकर्माओं को मान्यता दी जाए और उन का समर्थन किया जाए. सरकार विश्वकर्माओं का सम्मान, क्षमता व समृद्धि बढ़ाने के लिए भागीदार के रूप में आगे आई है.

Vishvakarmaउन्होंने यह भी कहा कि दुनिया में बड़ी कंपनियां अपना काम छोटे उद्यमों को सौंप देती हैं. आउटसोर्स का यह काम हमारे विश्वकर्मा मित्रों को मिले, वे वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला का हिस्सा बनें, हम इस के लिए काम कर रहे हैं. योजना विश्वकर्मा मित्रों को आधुनिक युग में ले जाने का एक प्रयास है. बदलते समय में प्रशिक्षण, प्रौद्योगिकी व उपकरण विश्वकर्मा मित्रों के लिए महत्वपूर्ण हैं.

प्रशिक्षण में 500 रुपए प्रतिदिन भत्ता दिया जाएगा, आधुनिक टूलकिट के लिए 15,000 रुपए का वाउचर दिया जाएगा. उत्पादों की ब्रांडिंग, पैकेजिंग, मार्केटिंग में सरकार मदद करेगी. विश्वकर्मा मित्रों को बिना गारंटी बहुत कम ब्याज पर 3 लाख रुपए तक का ऋण मिलेगा. केंद्र वंचितों के विकास को प्राथमिकता देता है.

Vishwakarmaभोपाल में केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने अपने संबोधन में कहा कि प्रधानमंत्री विश्वकर्मा योजना देश के कारीगरों-शिल्पकारों के जीवन स्तर में बदलाव लाने में सफल होगी. प्रधानमंत्री विश्वकर्मा योजना पर 5 साल में 13,000 करोड़ रुपए खर्च कर गुरुशिष्य परंपरा या हाथों व औजारों से काम करने वाले कारीगरों व शिल्पकारों द्वारा पारंपरिक कौशल के परिवार आधारित पेशे को मजबूत करते हुए बढ़ावा दिया जाएगा, जो केंद्र का अत्यंत सराहनीय कदम है.

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि वोकल फौर लोकल जैसे मंत्र व कई योजनाओं के जरीए पीएम मोदी ने भारत को 5वीं सब से बड़ी अर्थव्यवस्था बना दिया है और उन के तीसरे कार्यकाल में भारत दुनिया की तीसरी अर्थव्यवस्था वाला देश होगा. देश ने स्वास्थ्य व शिक्षा सहित हर क्षेत्र में तेजी से प्रगति की, उपलब्धियां हासिल की हैं.

इस योजना का लाभ उठा कर सुविधाओं से हमारे कारीगर अपनी स्किल को और बढ़ा पाएंगे और आने वाली पीढ़ी को भी अपना हुनर सिखा पाएंगे.

उन्होंने यह भी कहा कि अगले महीने के पहले सप्ताह में मध्य प्रदेश में ग्लोबल स्किल पार्क बन कर तैयार हो जाएगा.

भोपाल के समारोह में आईटीआई का दीक्षांत कार्यक्रम भी संपन्न हुआ और विद्यार्थियों को नरेंद्र सिंह तोमर व शिवराज सिंह चौहान ने सम्मानित किया. यहां मध्य प्रदेश के मंत्री ओमप्रकाश सकलेचा व यशोधरा राजे सिंधिया, क्षेत्रीय विधायक एवं अन्य जनप्रतिनिधि व विभिन्न मंत्रालयों के वरिष्ठ अधिकारी मौजूद थे. भोपाल के कार्यक्रम का समन्वय राज्य शासन के साथ ही एमएसएमई और एनएचएआई द्वारा किया गया.

Yashobhumiयोजना में 18 पारंपरिक क्षेत्र शामिल – केंद्र सरकार ने देश के पारंपरिक शिल्प की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित व प्रोत्साहित करने, कारीगरों व शिल्पकारों की सहायता के लिए ‘पीएम विश्वकर्मा’ मंजूर की है. इस के पहले चरण में 18 पारंपरिक क्षेत्रों को शामिल किया गया है. इन में बढ़ई (सुथार), नाव निर्माता, अस्त्र बनाने वाला, लोहार, हथौड़ा व टूल किट निर्माता, ताला बनाने वाला, सुनार, कुम्हार, मूर्तिकार (पत्थर तराशने, पत्थर तोड़ने वाला), मोची, राजमिस्त्री, टोकरी/चटाई/झाड़ू निर्माता/जूट बुनकर, गुड़िया, खिलौना निर्माता (पारंपरिक), नाई, माला बनाने वाले, धोबी, दर्जी, मछली पकड़ने का जाल बनाने वाले शामिल हैं.

कृषि क्षेत्र में रोजगार की कमी नहीं

उदयपुर : पाताल से आकाश तक ही नहीं, बल्कि इस से आगे अंतरिक्ष तक कृषि का साम्राज्य है. कृषि वैज्ञानिक दिनरात इस सच को मूर्त रूप देने में जुटे हैं. युवा और कृषि भारत के लिए चुनौती नहीं, बल्कि एक सुअवसर है. शून्य बजट प्राकृतिक कृषि, कार्बनिक कृषि और व्यापारिक कृषि कुछ ऐसे कृषि के चुनिंदा प्रकार हैं, जो युवाओं को खूब आकर्षित कर रहे हैं. युवा इस क्षेत्र में उद्यमशीलता और नवाचार के द्वारा आमूलचूल परिवर्तन ला रहे हैं.

यदि किसान पढ़ेलिखे हों, तो मौसम, मिट्टी, जलवायु, बीज, उर्वरक, कीटनाशक और सिंचाई संबंधी सटीक जानकारी रखते हुए भरपूर पैसा कमा सकते हैं यानी कृषि एक ऐसा क्षेत्र है, जहां रोजगार की कोई कमी नहीं है और नवागंतुक बच्चों को 10वीं-12वीं में ही कृषि विषय ले कर अपनी और अपने देश की तरक्की का रास्ता अपनाना चाहिए.

यह बात पिछले दिनों यहां शेर-ए-कश्मीर कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, जम्मू के पूर्व कुलपति डा. जेपी शर्मा राजस्थान कृषि महाविद्यालय के नूतन सभागार में एकदिवसीय कृषि शिक्षा मेले में आए कृषि छात्रों को संबोधित कर रहे थे.

महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर के तत्वावधान में राष्ट्रीय कृषि उच्च शिक्षा परियोजना के तहत आयोजित इस मेले में 20 स्कूलों के छात्रछात्राओं के अलावा उन के प्राचार्य व स्टाफ ने भी भाग लिया, ताकि उच्च माध्यमिक स्तर पर विषय चयन में विधार्थियों का बेहतर मार्गदर्शन कर उन्हें कृषि जैसे रोजगारपरक विषय से जोड़ा जा सके.

Agrieducationउन्होंने आगे कहा कि कृषि छात्र आईआईटी, आईआईएम, सिविल सर्विसेज, आईसीएआर, एसएयू, राज्य सरकार एवं बैंकों आदि में अपना भविष्य बना सकते हैं.

उन्होंने कहा कि कोरोना काल हो या आर्थिक मंदी का दौर भारत कृषि आधरित देश होने की वजह से कभी पिछड़ा नहीं, बल्कि इन संकटकालीन स्थितियोें में जहां तकनीकी आधरित देशों में जीडीपी माइनस में चली गई, वहीं भारत ने कृषि में 3.4 फीसदी वृद्धि की.

कृषि में नई क्रांति की जरूरत

उन्होंने कहा कि भारत की 50 फीसदी आबादी कृषि से ही जीविकोपार्जन करती है. कृषि को फिर से एक नई क्रांति की जरूरत है और देश के युवाओं द्वारा कृषि क्रांति का आधार भी तैयार हो चुका है. आज का पढ़ालिखा युवा फूड प्रोसैसिंग, वेल्यू एडिशन, टैक्नोलौजी और मार्केटिंग को भलीभांति जानता है. गांव में ही प्रोसैसिंग हो, पैकेजिंग हो और वहीं से सीधे बाजार तक सामान पहुंचे तो युवाओं को खेतीकिसानी से कोई परहेज नहीं होगा.

अनेक कृषि क्षेत्र हैं युवा किसानों के लिए

युवा किसान ऐसे हैं, जिन का अंतर्राष्ट्रीय बाजार में लिंक स्थापित है और वे अच्छाखासा मुनाफा कमा रहे हैं. उच्च शिक्षा प्राप्त कर रहे युवा, जो कि आईआईटी, आईआईएम आदि के छात्र भी कृषि आधरित उद्योगों की ओर बढ़ रहे हैं.

उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता करते हुए महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के कुलपति डा. अजीत कुमार कर्नाटक ने कहा कि कृषि में पढ़ेलिखे युवाओं के आने से युवा आत्मनिर्भर बनेंगे, युवाओं के आत्मनिर्भर होने से देश आत्मनिर्भर होगा और अंततः राष्ट्र का कल्याण होगा.

उन्होंने आगे कहा कि फलफूलों की खेती, मशरूम की खेती, पशुपालन एवं दुग्ध उत्पादन, मिल्क प्रोडक्ट तैयार करना, ग्राफ्टेड फलों की पौध तैयार करना, खादबीज की दुकान लगाना, कुक्कटपालन, मधुमक्खीपालन, सजावटी पौधों की नर्सरी खोलना, खाद्य प्रसंस्करण और आंवला, तिलहन, दहलन की प्रोसैसिंग यूनिट लगा कर शिक्षित युवा अपना, परिवार का और देश का भविष्य संवार सकते हैं. यही नहीं, कई लोगों को रोजगार भी मुहैया कर सकते हैं.

कृषि विश्वविद्यालयों की अहम भूमिका

Agrieducationकृषि क्षेत्र में अनुसंधान भी बहुत जरूरी है. युवाओं को कृषि से जोड़ने के लिए देशभर में वर्तमान में 73 कृषि विश्वविद्यालय प्रयासरत हैं, जहां कृषि की पढ़ाई गुणवत्तापूर्ण तरीके से हो रही है. भारत का इजरायल के साथ कृषि शोध को ले कर करार हुआ है.

डा. अजीत कुमार कर्नाटक ने कहा कि आज भारत की कुल जनसंख्या में 27.3 फीसदी युवा आबादी है यानी 37.14 करोड़ युवाओं के साथ भारत सब से अधिक युवाओं वाला देश है. यदि वैज्ञानिक पद्दति से कालेज स्तर पर प्रशिक्षण दिया जाए, कुटीर एवं घरेलू उद्योगों को बढ़ावा मिले तो पैसों की चाहत में युवा वर्ग भी कृषि क्षेत्र में पूरे जुनून से जुड़ेगा.

विशिष्ट अतिथि राजस्थान राज्य शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद, उदयपुर की निदेशक कविता पाठक ने भी विधार्थियों को कृषि विषय रोजगारपरक बताते हुए अधिकाधिक विद्यार्थियों को कृषि विषय में अपना भविष्य संवारने का आह्वान किया.

उन्होंने स्कूली पाठ्यक्रम निर्धारण में भी कक्षा-7 व 8 से कृषि संबंधी पाठ का समावेश करने पर जोर दिया, ताकि छात्रछात्राओं को विषय चयन की प्रेरणा शुरू से ही मिल सके.

डा. पीके सिंह, समन्वयक एनएएचईपी ने बताया कि इस वर्ष विश्वविद्यालय के 71 छात्र एवं 11 प्राध्यापकों को प्रशिक्षण हेतु अमेरिका, आस्ट्रेलिया एवं थाईलैंड भेजा गया व दिसंबर, 2023 तक 50 और विद्यार्थियों को भेजा जाएगा.

कार्यक्रम के आरम्भ में डा. मीनू श्रीवास्तव, अधिष्ठाता ने सभी का स्वागत किया और मेले के महत्व को बताया

छात्रों को कुक्कुटपालन प्रशिक्षिण

उदयपुर : 16 सितंबर, 2023 को पशु उत्पादन विभाग, राजस्थान कृषि महाविद्यालय में 6 दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम के समापन समारोह का आयोजन किया गया़. यह प्रशिक्षण कार्यक्रम संस्थागत विकास योजना, राष्ट्रीय कृषि उच्च शिक्षा परियोजना द्वारा वित्त पोषित स्नातक छात्रों के लिए आयोजित किया गया. कुल 30 छात्रों को कुक्कुटपालन में उद्यमिता विकास हेतु प्रशिक्षण प्रदान किया गया.

समापन समारोह के मुख्य अतिथि डा. अजीत कुमार कर्नाटक, कुलपति, महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर ने अपने उद्बोधन में कुक्कुटपालन की उद्यमिता विकास में अपार संभावनाओं के बारे में बताया. साथ ही, विद्यार्थियों के कौशल विकास हेतु रोजगारपूरक प्रशिक्षण कार्यक्रमों के महत्व पर जोर दिया.

इस अवसर पर डा. पीके सिंह, परियोजना प्रभारी संस्थागत विकास योजना, एवं डा. एसएस शर्मा, अधिष्ठाता राजस्थान कृषि महाविद्यालय ने अपने विचार व्यक्त किए.

कार्यक्रम की शुरुआत में डा. सिद्धार्थ मिश्रा, आयोजन सचिव एवं विभागाध्यक्ष, पशु उत्पादन विभाग ने प्रशिक्षण कार्यक्रम के बारे में जानकारी दी. समारोह के दौरान कुक्कुटपालन पुस्तक का विमोचन कुलपति डा. अजीत कुमार कर्नाटक द्वारा अन्य अतिथियों, महाविद्यालय के विभागाध्यक्षों की उपस्थिति में किया गया.

कार्यक्रम के दौरान प्रशिक्षण कार्यक्रम के प्रतिभागी विद्यार्थियों को प्रमाणपत्र वितरित किए गए. इस अवसर पर डा. लोकेश गुप्ता, डा. जगदीश लाल चौधरी और डा. एमसी माथुर ने अपने विचार प्रकट किए. कार्यक्रम का संचालन डा. शालिनी पिलानिया ने किया एवं कार्यक्रम के अंत में डा. लक्ष्मण जाट ने समारोह में उपस्थित सभी सदस्यों का धन्यवाद ज्ञापित किया.

किसानों के विकास के लिए कृषक संगोष्ठी

झाबुआ : खेती के क्षेत्र में किसान समुदाय की आत्मनिर्भरता को बढ़ाने और आय वृद्धि के लिए ग्रामीण विकास विभाग, आजीविका मिशन नाबार्ड, कृषि, उद्यानिकी, पशुपालन, मत्स्यपालन, बैंकर्स, मनरेगा, कृषि विज्ञान केंद्र जैसे ग्रामीण अर्थव्यवस्था से संबद्ध क्षेत्रकों के अधिकारियों की विगत समय से जिला कलक्टर तन्वी हुड्डा द्वारा नियमित रूप से साप्ताहिक समीक्षा बैठक आयोजित की जा रही है.

जिला कलक्टर द्वारा विगत बैठक में ग्रामीण सरोकारों से संबंधित समस्त विभागों को समस्त विकासखंडों में किसानों और गांव वालों की संगोष्ठियां आयोजित करने के निर्देश दिए गए.

कृषिगत क्षेत्रकों के टिकाऊ और समन्वित विकास के लिए किए जा रहे सतत प्रयासों की कड़ी में रानापुर और रामा विकासखंडों में कृषक संगोष्ठियां आयोजित हुईं.

रामा और रानापुर विकासखंड जिले की भौगोलिक और कृषि जलवायवीय परिस्थितियों में अपना विशिष्ट स्थान रखते हैं. यहां पर्यावरण संरक्षणीय खेतीकिसानी के लिए पर्याप्त अवसर सुलभ है. क्षेत्र के किसानों में प्रकृति के प्रति निकटता और इस के संवर्धन का भाव भी जीवंत है.

जनपद अध्यक्ष निर्मला भानू भूरिया ने बड़ी संख्या में कृषक संगोष्ठी में सहभागिता करने वाले महिलापुरुष किसानों को संबोधित करते हुऐ व्यक्त किया.

जिले के उपसंचालक कृषि एनएस रावत ने किसानों को संबोधित करते हुए कहा कि अंचल में फसलों की विभिन्नता और विविधता भी सदियों से विद्यमान है. किसान समुदाय में खेतीकिसानी की बारीक समझ का पारंपरिक बौद्धिक ज्ञान भी है.

बदलते हुए आर्थिक व सामाजिक परिवेश में आवश्यकता इस बात की है कि किसान परंपरागत उन्नत ज्ञान के साथसाथ किसानी के एक से अधिक उद्यमों से एकीकृत स्वरूप में जुड़ कर अपनी आय में वृद्धि की ओर लगातार अग्रसर हो किसानों को फसलों की जलवायु सहिष्णु नवीनतम किस्मों का चयन करना चाहिए, मिलेट्स फसलों और प्राकृतिक उपज की बढ़ती हुई मांग को ध्यान में रखते हुए जिले के किसानों को अपनी खेती की योजना में समुचित परिवर्तन करने की आवश्यकता है.

पशुपालन विभाग के उपसंचालक डा. विल्सन डावर ने खेतीकिसानी में पशुपालन, बकरीपालन, मुरगीपालन की महत्ता को समझाते हुए कहा कि क्षेत्र में पशुपालन खेती का अभिन्न अंग रहा है और हमें इस व्यवस्था को सूझबूझ से आगे बढाने के लिए प्रतिबद्ध होना चाहिए.

उन्नत पशुपालन की वैज्ञानिक बारीकियों से किसानों को अवगत कराते हुए शासन द्वारा पशुओं की आकस्मिक बीमारी की स्थिति में पशु एंबुलेंस सुविधा के बारे में विस्तार से बताया. पशुओं के अकस्मात बीमार होने की स्थिति में 1962 निःशुल्क फोन नंबर पर सूचना देने की सुविधा का लाभ लेने का आग्रह किया.

बड़ी संख्या में उपस्थित महिलापुरुष किसानों को जिले के प्राकृतिक खेती मास्टर ट्रेनर गोपाल मुलेवा ने प्राकृतिक खेती के विभिन्न पहलुओं के बारे में किसानों को व्यावहारिक समझाइश दी गई.

मुलेवा ने खरीफ की फसलों के प्रबंधन के साथसाथ रबी मौसम की कार्ययोजना बनाए जाने के लिए तकनीकी बारीकियों से किसानों को परिचित कराया.

ब्लौक टैक्नोलौजी मैनेजर संतोष पाटीदार ने प्राकृतिक खेती अपनाने के लिए प्रारंभ से लगा कर संपूर्ण पद्धति के विभिन्न चरणों के बारे में विस्तार से किसानों को समझाइश देते हुए व्यावहारिक बोध कराया.

गोष्ठी के दौरान महिला किसान कमला इंदर, संगीता खराडी और पुरुष किसान झितरा सोमला, कमेश डामोर, कमलेश अमरसिंह ने अपने खेतों पर अपनाई जा रही मिलेट फसलों के साथसाथ प्राकृतिक खेती के लाभ और उत्साहजनक परिणामों के अनुभव किसानों के साथ साझा किए.

उद्यानिकी विभाग के डीएस बामनीया और चौबे ने अंचल में उगाई जा रही सब्जी, फल, फसलों के साथसाथ हलदी,अदरक, धनिया, मिर्च जैसी मसाला फसलें, ब्राह्मी, एलोवेरा, लेमनग्रास जैसी सुगंधित और औषधीय फसलों की खेती के बारे में किसानों को जानकारी दी गई.

आजीविका मिशन के संजय सोलंकी ने महिला किसानों और समूहों के माध्यम से संचालित गतिविधियों और उन के उत्तरोत्तर उन्नयन के बारे में प्रेरणादायी उद्बोधन देते हुए उत्पादन के साथसाथ मूल्य संवर्धन और बेहतर दाम पर विपणन व्यवस्था बनाए जाने पर जोर दिया.

रामा विकासखंड के वरिष्ठ कृषि विकास अधिकारी ज्वाला सिंगार द्वारा क्षेत्र के किसानों द्वारा अपनाई जा रही प्राकृतिक खेती और मिलेट फसलों की काश्त के बारे में विस्तार से अवगत कराते हुए प्रयासों और भावी योजना की जानकारी दी गई.

कार्यक्रम का संचालन गोपाल मुलेवा तकनीकी सहायक द्वारा किया गया. किसानों की जिज्ञासाओं का समाधान करते हुए सहायक संचालक कृषि एसएस रावत, उपपरियोजना संचालक आत्मा एमएस धार्वे ने मिलेट्स की खेती आधारित कृषक परिचर्चा की संयुक्त रूप से सूत्रधारिता की.

कृषक संगोष्ठी के अंतिम चरण में वरिष्ठ कृषि विकास अधिकारी, रानापुर, अमरसिंह खपेड ने आभार प्रकट किया. किसान संगोष्ठी में रामा रानापुर विकासखंडों का समस्त कृषि विभागीय अमले द्वारा कार्यक्रम आयोजन में सक्रिय सहभागिता की गई.

माहवारी स्वास्थ्य एवं स्वच्छता पर ट्रेनिंग

झाबुआ : सीईओ जनपद पंचायत मेघनगर की अध्यक्षता में जनपद सभाकक्ष में ‘मिशन महिमा’ कार्यक्रम के अंतर्गत ‘माहवारी स्वास्थ्य एवं स्वच्छता’ विषय पर उन्मुखीकरण प्रशिक्षण आयोजित किया गया.

इस प्रशिक्षण कार्यक्रम में प्रतिभागियों ने माहवारी स्वास्थ्य और स्वच्छता के मुद्दे को संबोधित करने के लिए अपनी ग्राम पंचायत के लिए अपनी कार्ययोजना भी बनाई. बेहतर मासिक धर्म स्वास्थ्य को बढ़ावा देने के लिए उन्होंने एक दूरगामी कार्ययोजना तैयार की और इसे ग्राम पंचायत विकास योजना का हिस्सा बनाने के ऊपर चर्चा की.

जब माहवारी एक वर्जित विषय है, तो सुरक्षित माहवारी प्रबंधन पीछे रह जाता है और ये किशोरी बालिका एवं महिलाओं के लिए हानिकरक साबित होते हैं, बातचीत की कमी से समस्याएं आती हैं. शरीर, स्वच्छता प्रथाओं और संक्रमणों की देखभाल के बारे में गलतफहमियां उभरती हैं. माहवारी स्वच्छता प्रबंधन लड़कियों और महिलाओं के स्वास्थ्य और कल्याण के लिए महत्वपूर्ण है. लड़कियों और महिलाओं को अपने माहवारी को स्वस्थ तरीके से प्रबंधित करने में सक्षम बनाने के लिए कार्यों का एक सेट आवश्यक है, जिस में जागरूकता, आवश्यक स्वच्छता उत्पादों तक पहुंच, गुणवत्ता सेवा और सामाजिक समर्थन जैसी ऐसी सेवाएं, जो स्वच्छ उपयोग और सुरक्षित माहवारी अपशिष्ट प्रबंधन की सुविधा प्रदान करती हैं.

इन सभी को ध्यान में रखते हुए झाबुआ को माहवारी सुलभ जिला बनाने के लिए ‘मिशन महिमा’ कार्यक्रम को माहवारी स्वास्थ्य सेवा श्रृंखला को संबोधित करने के लिए डिजाइन किया गया है, जिस में जागरूकता, उत्पाद पहुंच, उपयोग और सुरक्षित निबटान शामिल है.

झाबुआ कलक्टर तन्वी हुड्डा की अध्यक्षता एवं मार्गदर्शन में मासिक धर्म स्वास्थ्य प्रबंधन पर चरणबद्ध क्षमता निर्माण एवं उन्मुखीकरण कार्यक्रम जिले एवं ब्लौकवार आयोजित किए जा रहे हैं.

आजीविका मिशन झाबुआ इस कार्यक्रम का नोडल विभाग है. मिशन महिमा कार्यक्रम पर हर माह की पहली टीएल मीटिंग के बाद बैठक आयोजित की जाती है. इस बार बैठक सीईओ जिला पंचायत रेखा राठौर की अध्यक्षता में आयोजित की गई और सभी सीईओ जनपद पंचायत को अपने ब्लौक में साझा तिथियों पर माहवारी स्वास्थ एवं स्वछता, सिकेल सेल एनीमिया एवं बाल विवाह विषय पर उन्मुखीकरण प्रशिक्षण आयोजित करने के निर्देश दिए गए.

इस उन्मुखीकरण प्रशिक्षण में बाल विवाह एवं सिकल सेल एनीमिया की रोकथाम पर भी प्रशिक्षण दिया गया. प्रशिक्षण में 50 से अधिक लोगों ने भाग लिया. प्रतिभागियों में आजीविका मिशन के ब्लौक प्रबंधक, पंचायत राज संस्था के सदस्य, आशा कार्यकर्ता, आंगनबाड़ी कार्यकर्ता, जन अभिजान परिषद के जन सेवा मित्र एवं गैरसरकारी संगठन के कर्मचारी भी शामिल थे.

एकदिवसीय कृषि शिक्षा मेला 16 सितंबर को

उदयपुर : माध्यमिक और उच्च माध्यमिक विद्यालयों में कृषि विषय ले कर पढ़ रहे युवाओं को अपने सुनहरे भविष्य के बारे में तनिक भी चिंता करने की जरूरत नहीं है, क्योंकि कृषि एक ऐसा विराट और विहंगम क्षेत्र है, जहां रोजगार के 1-2 नहीं, बल्कि हजारों अवसर हैं. सामुदायिक विज्ञान, मत्स्यपालन, डेरी और खाद्य प्रौद्योगिकी कृषि इंजीनियरिंग आदि कृषि जैसे वट वृक्ष की शाखाएं हैं, जहां एक सफल उद्यमी होने के अलावा सरकारी निजी क्षेत्रों, शैक्षणिक और अनुसंधान संस्थानों में भविष्य के पर्याप्त अवसर हैं.

यह बात महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के कुलपति डा. अजीत कुमार कर्नाटक ने पिछले दिनों यहां पत्रकारों से बातचीत में कही.

उन्होंने कहा कि कृषि की महत्ता 2 साल पहले आई महामारी ने समझाई. खेती एक पुरानी विधा है. महामारी के दौरान सारे उद्योग धंधे प्रभावित हुए, लेकिन खेतीकिसानी कोई प्रतिकूल असर नहीं हुआ. जंगल कट चुके है और इसे मौसम तंत्र गड़बड़ा जाने से उत्पादन प्रभावित हुआ है. हर फसल को जमने के लिए एक निश्चित तापमान की आवश्यकता होती है. जरूरत इस बात है कि कृषि में ’आउट औफ बौक्स’ की सोच रखने वाले युवाओं को कृषि क्षेत्र में आगे आना होगा एवं बदलते मौसम तंत्र के अनुसार खेती में कुछ नवाचार करने होंगे.

उन्होंने कहा कि स्कूली बच्चों का कृषि के प्रति अभी से विजन खुले और कृषि में नए स्टार्टअप से अपनी व अपने देश की तरक्की में एक नया आयाम जोड़ सके. इसी ध्येय से 16 सितंबर को एकदिवसीय ’कृषि शिक्षा मेला’ आयोजित किया जा रहा है.

Farmingराजस्थान कृषि महाविद्यालय के नूतन सभागार में आयोजित इस मेले में उदयपुर जिले में कृषि संकाय में अध्ययनरत साढ़े 3 सौ से ज्यादा छात्रछात्राएं, स्कूलों के प्राचार्य प्रतिभागी बनेंगे, जिन्हें कृषि वैज्ञानिक नई राह दिखाएंगे.

कुलपति डा. अजीत कुमार कर्नाटक ने बताया कि आईसीएआर से संबद्ध राष्ट्रीय कृषि उच्च शिक्षा परियोजना के अंतर्गत होने जा रहे इस आयोजन का मूल उद्देश्य ही छात्रों और शिक्षकों को कृषि शिक्षा के ज्ञान और महत्व से परिचित कराना है. साथ ही, कृषि और संबद्ध क्षेत्रों में उच्च शिक्षा के लिए छात्रों को आकर्षित करना है.

इस कार्यक्रम में देशभर के नामचीन कृषि विशेषज्ञ छात्रों को कृषि में भविष्य अवसरों का दिग्दर्शन कराएंगे. यही नहीं, मप्रकृप्रौविवि से पढ़ कर निकले वे पूर्व छात्र, जो आज न केवल आत्मनिर्भर व सफल उद्यमी हैं, बल्कि सैकड़ों लोगों को रोजगार भी मुहैया करा रहे हैं, स्कूली छात्रों से रूबरू होंगे और कृषि क्षेत्र में असीम संभावनाओं का परिदृश्य प्रस्तुत करेंगे.

कुलपति डा. अजीत कुमार कर्नाटक ने बताया कि राष्ट्रीय कृषि उच्च शिक्षा परियोजना एक विश्व बैंक परियोजना है, जो मप्रकृप्रौविवि 2018 से लागू है. इस का उद्देश्य छात्रों के सीखने के परिणामों में सुधार लाने, कृषि की गुणवत्तापूर्ण शिक्षा पर ध्यान केंद्रित करना है.

आरंभ में प्रौद्योगिकी एवं अभियांत्रिकी महाविद्यालय के अधिष्ठाता प्रोफैसर डा. पीके सिंह ने एकदिवसीय कृषि शिक्षा मेले की उपादेयता पर प्रकाश डाला. आयोजन सचिव सामुदायिक एवं व्यावहारिक विज्ञान महाविद्यालय की अधिष्ठाता डा. मीनू श्रीवास्तव ने बताया कि मेले में उदयपुर जिले के 20 विद्यालयों के लगभग साढ़े 3 सौ छात्रछात्राओं, प्राचार्य एवं स्टाफ को आमंत्रित किया गया, ताकि वे कृषि की महत्ता को समझते हुए विद्यार्थियों को इस विषय के चयन के लिए प्रेरित कर सकें.

एकदिवसीय कृषि मेला के उद्घाटन सत्र के मुख्य अतिथि शेर ए कश्मीर कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, जम्मू के पूर्व कुलपति डा. जेपी शर्मा होंगे, जबकि अध्यक्षता मप्रकृप्रौविवि के कुलपति डा. अजीत कुमार कर्नाटक करेंगे. इस दौरान कृषि शिक्षा मेला आयोजन के 4 सत्र होंगे. विभिन्न सत्रों को जीबी पंत कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, पंतनगर की पूर्व अधिष्ठाता डा. रीटा रघुवंशी, मप्रकृप्रौविवि में कृषि अभियांत्रिकी के पूर्व प्रोफैसर डा. दीपक शर्मा संबोधित करेंगे. इस के अलावा डा. बीके दास, निदेशक, केंद्रीय अंतर्देशीय मत्स्य अनुसंधान संस्थान, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, बराकपुर, पश्चिम बंगाल एवं डा. आरवी प्रसाद, सेवानिवृत्त प्रोफैसर एवं प्रमुख खाद्य सुरक्षा एवं गुणवत्ता विभाग आनंद कृषि विश्वविद्यालय, आनंद (गुजरात) भी छात्रों की जिज्ञासाओं का समाधान करेंगे. इस मौके पर कृषि क्षेत्र में रोजगार की अपार संभावनाओं को रेखांकित करती प्रदर्शनी भी लगाई जाएगी

भारतीय चीनी विश्व में सब से सस्ती

नई दिल्ली : भारत सरकार के समय पर किए गए उपायों से पूरे वर्ष के लिए पूरे देश में उचित मूल्यों पर चीनी की पर्याप्त उपलब्धता सुनिश्चित हुई है. वर्तमान चीनी सीजन (अक्टूबरसितंबर) 2022-23, सितंबर, 2023 की 30 तारीख को समाप्त हो रहा है, भारत ने पहले ही 330 एलएमटी के चीनी उत्पादन को पार कर लिया है, जिस में इथेनाल उत्पादन के लिए लगभग 43 एलएमटी का डायवर्जन शामिल नहीं है.

इस प्रकार देश में कुल सुक्रोज उत्पादन लगभग 373 एलएमटी होगा, जो पिछले 5 चीनी मौसमों में दूसरा सब से अधिक है.

देश के नागरिकों को प्राथमिकता और किसानों को देय गन्ने की निकासी सुनिश्चित करते हुए भारत ने निर्यात कोटा को केवल 61 एलएमटी तक सीमित कर दिया. इस के परिणामस्वरूप अगस्त, 2023 के अंत में लगभग 83 एलएमटी चीनी का इष्टतम स्टाक है. यह स्टा क लगभग साढ़े 3 महीने की खपत को पूरा करने के लिए पर्याप्त है यानी चालू चीनी सीजन 2022-23 के अंत में देश में उपलब्ध इष्टतम स्टाक.

यह तथ्य घरेलू उपभोक्ताओं को आश्वस्त करता है कि भविष्य में भी उन के लिए उचित मूल्य पर चीनी उपलब्ध होने की आशा है.

आईएमडी के पूर्वानुमान के अनुसार, अब तक सितंबर, 2023 में मानसून सामान्य रहा है और महाराष्ट्र व कर्नाटक के गन्ना क्षेत्रों में भी वर्षा हुई है, जिस से बेहतर फसलों की संभावना में सुधार हुआ है और आगामी चीनी सीजन 2023-24 में रिकवरी हुई है.

सभी चीनी उत्पादक राज्यों के राज्य गन्ना आयुक्तों से अनुरोध किया गया है कि वे फसलों की स्थिति पर नजर रखें और गन्ने के रकबे, उपज और प्रत्याशित चीनी उत्पादन के बारे में अपनी जानकारी अद्यतन करें. यह जानकारी अगले सीजन के लिए चीनी निर्यात नीति के संबंध में कोई भी निर्णय लेने का आधार बनेगी.

भारत सरकार ने हमेशा घरेलू खपत के लिए चीनी की उपलब्धता, इथेनाल उत्पादन के लिए डायवर्जन और मौसम के अंत में पर्याप्त क्लोजिंग बैलेंस को प्राथमिकता दी है. निर्यात के लिए केवल अधिशेष चीनी, यदि उपलब्ध हो, की अनुमति है. यह व्यवस्था घरेलू बाजार में मूल्यों की स्थिरता सुनिश्चित करती है.

यह केवल इस नीति का परिणाम है कि भारतीय उपभोक्ताओं को चीनी मिलों को कोई सरकारी सब्सिडी नहीं होने के बावजूद विश्व में सब से कम कीमतों में से एक पर चीनी मिल रही है.

इस के अतिरिक्त भारत सरकार ने एक सक्रिय उपाय के रूप में विभिन्न चीनी मिलों से व्यापारियों से संबंधित सूचना मांगी है, ताकि देश के विभिन्न भागों में चीनी के स्टाक की बारीकी से निगरानी करने के लिए एक व्यवस्था बनाई जा सके.

उद्योग संघों ने भी अपनी पर्याप्त स्टाक की पुष्टि की है और इस बात की सराहना की है कि सीजन के अंत में चीनी के इष्टतम क्लोजिंग बैलेंस की उपलब्धि के परिणामस्वरूप मिलों की वित्तीय स्थिति बेहतर हुई है.

यह सरकार और उद्योग के सभी सामूहिक प्रयासों का परिणाम है कि मिलों द्वारा 1.07 करोड़ रुपए (चालू सीजन के गन्ना बकाया का 94 फीसदी) से अधिक का भुगतान पहले ही किया जा चुका है, जो चीनी क्षेत्र के बारे में किसानों में उत्साह पैदा करता है.

उत्तर प्रदेश में लगेंगे 30 हजार सोलर पंप

लखनऊ : लोकभवन, लखनऊ में कृषि मंत्री सूर्य प्रताप शाही, अपर मुख्य सचिव (कृषि) देवेश चतुर्वेदी, सचिव (कृषि) राज शेखर ने मीडिया से रूबरू हो कर खेतीबारी की योजनाओं पर जानकारी दी.

पीएम कुसुम योजना

कृषि मंत्री सूर्य प्रताप शाही ने बताया कि प्रदेश में सिंचाई की व्यवस्था के लिए प्रदेश सरकार द्वारा पीएम किसान योजना के अंतर्गत कुल 22,514 सोलर पंप की स्थापना कराई गई है. इस वर्ष 30 हजार सोलर पंप स्थापित करने के लिए राज्य सरकार द्वारा 46.20 करोड़ रुपए की व्यवस्था की गई है.

बीज व्यवस्था

कृषि मंत्री सूर्य प्रताप शाही ने बताया कि खरीफ सीजन 2023 में श्री अन्न को बढ़ावा देने के लिए मिलेट्स पुनर्रुद्धार के कार्यक्रम के अंतर्गत 43.975 मिनी किट वितरित कराए गए हैं, जिस में कुल बीज की मात्रा 1,178 क्विंटल रही है. इस के बाबत 56 करोड़ रुपए की धनराशि स्वीकृत की गई है.

इसी क्रम में खरीफ दलहन का कुल मिनी किट 3,68,475 और 6,000 तिलहन के मिनी किट, जिस में मुख्य रूप से मूंगफली बीज का भी वितरण किया गया. प्रदेश में दलहनी फसलों के लिए विशेष प्रयास का परिणाम रहा है कि इस वर्ष प्रदेश में खरीफ दलहन का कुल रकबा 11.5 हेक्टेयर रहा है, जो विगत वर्ष की तुलना में 2.5 हेक्टेयर से अधिक है.

मिनीकिट

उन्होंने बताया कि दलहनी एवं तिलहनी फसलों को विशेष रूप से महत्व देते हुए आच्छादन वृद्धि हेतु इस वर्ष तोरिया, राई/ सरसों एवं अलसी के 2-2 किलोग्राम के मिनीकिट कुल 5,56,578 का वितरण कराया जाएगा, जिस में कुल 11,132 क्विंटल बीज वितरित करने का लक्ष्य है.
इसी प्रकार दलहनी फसलों में चना के 16 किलोग्राम के मिनीकिट कुल 43750 के संख्या द्वारा कुल 70,00 क्विंटल बीज वितरित कराया जाएगा.

मटर 20 किलोग्राम के पैकिंग के 15,265 मिनीकिट, जिस में कुल 3053 क्विंटल बीज और मसूर के 8 किलोग्राम के पैकिंग में 1,84,050 मिनीकिट, जिस में कुल 14,724 क्विंटल बीज का वितरण किया जाएगा. इस प्रकार दलहनी फसलों के कुल 2,43,065 नि:शुल्क मिनीकिट वितरण कराया जाएगा.

उन्होंने बताया कि रबी सीजन 2023 में कुल आच्छादन 123 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल में करने का लक्ष्य है, जिस में गेहूं का बीज 4,96,000 क्विंटल बीज अनुदान पर उपलब्ध कराने की योजना है और निजी क्षेत्र से कुल 47 लाख क्विंटल बीज की उपलब्धता सुनिश्चित कराई गई है.

उन्होंने बताया कि प्रदेश में यूरिया, डीएपी, पोटाश और सूक्ष्म पोषक तत्वों वाले उर्वरकों की कोई कमी नहीं है. यूरिया 44.93 लाख मीट्रिक टन, डीएपी 14.51 मीट्रिक टन, एनपीके 4.66 लाख मीट्रिक टन और पोटाश 0.71 लाख मीट्रिक टन, एमएसपी 4.54 लाख मीट्रिक टन की उपलब्धता सुनिश्चित है.

डिजिटल क्राप सर्वे

Solarमंत्री सूर्य प्रताप शाही नें बताया कि प्रदेश के प्रत्येक गाटा संख्या का सर्वे करने हेतु हमारी सरकार ने इतना ठोस कदम उठाया है, जो पूर्व की कल्पना से परे था. डिजिटल क्राप सर्वे के काम को कृषि एवं राजस्व विभाग के मजदूरों द्वारा पहले चरण में 21 जनपदों में शतप्रतिशत और 54 जनपदों के 10-10 गांव में डिजिटल क्राप का सर्वे इसी माह में पूरा कर लिया जाएगा. अब तक 5 जनपदों में कुल 27,641 गांव का सर्वे किया जा चुका है, जिस में कुल गाटा संख्या 69,530 है और अभी 1,19,12,445 उत्तर प्रदेश का सर्वे किया जाना है. सर्वे का काम गतिमान है.

उन्होंने खरीफ 2023 वर्ष में आच्छादन की स्थिति की जानकारी देते हुए बताया कि जून से सितंबर तक मानक वर्षा 722 मिलीमीटर के सापेक्ष 560 मिलीमीटर हुई है. इस के आधार पर आच्छादन – कुल- 96.24 हेक्टेयर रहा है, जिस में धान – 59 लाख हेक्टेयर, दलहन – 11.12 लाख हेक्टेयर , तिलहन- 5.78 लाख हेक्टेयर, मक्का – 7.63 लाख हेक्टेयर, श्री अन्न -12.70 लाख हेक्टेयर रहा.

उन्होंने बताया कि प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के अंतर्गत खरीफ 2022 मौसम में 21.67 लाख किसानों द्वारा 15.43 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल में बोई गई अधिसूचित फसलों का बीमा कराया गया, जिस में से 8.33 लाख किसानों को 644.54 करोड़ रुपए की क्षति का भुगतान बीमा कंपनियों द्वारा किया गया है.

इस प्रकार रबी सीजन 2022-23 मौसम में 20.01 लाख किसानों द्वारा 13.52 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल में बोई गई अधिक सूचित फसलों का बीमा कराया गया, जिस में से 2.67 लाख किसानों को 168.05 करोड़ रुपए की क्षतिपूर्ति का भुगतान बीमा कंपनियों द्वारा किया गया है.

एलएलएस प्रकार वर्ष 2022-23 के खरीफ हुआ रबी मौसम में कुल 41.68 लाख किसानों द्वारा 28.95 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल में बोई गई अधिसूचित फसलों का बीमा कराया गया, जिस में से 10.34 लाख किसानों को रुपए 763.73 करोड़ रुपए की क्षतिपूर्ति का भुगतान बीमा कंपनियों द्वारा किया गया है.

अफीम पोस्त की खेती के लिए लाइसेंसिंग नीति

नई दिल्ली : केंद्र सरकार ने मध्य प्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश के किसानों के लिए फसली वर्ष 2023-24 में अफीम पोस्त की खेती के संबंध में लाइसेंस की वार्षिक लाइसेंसिंग नीति की घोषणा की है. इस नीति में शामिल सामान्य शर्तों के अनुसार इन राज्यों में लगभग 1.12 लाख किसानों को लाइसेंस दिए जाने की संभावना है. इस में पिछले फसल वर्ष की तुलना में 27,000 अतिरिक्त किसान शामिल हैं. इस लाइसेंस को प्राप्त करने वाले लगभग 54,500 योग्य अफीम किसान मध्य प्रदेश से हैं. वहीं, राजस्थान के लगभग 47,000 और उत्तर प्रदेश के 10,500 किसान हैं. यह आंकड़ा साल 2014-15 को समाप्त होने वाली पांच साल की अवधि के दौरान लाइसेंस दिए गए किसानों की औसत संख्या का लगभग 2.5 गुना है.

यह बढ़ोतरी घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर शारीरिक दर्द कम करने संबंधी देखभाल और अन्य चिकित्सा उद्देश्यों के लिए औषध (फार्मास्युटिकल) तैयारियों की बढ़ती मांग को पूरा करने के उद्देश्य से की गई है. साथ ही, इस से यह भी सुनिश्चित होगा कि अल्केलाइड उत्पादन घरेलू मांग के साथसाथ भारतीय निर्यात उद्योग की जरूरतों को भी पूरा कर सके.

इस वार्षिक लाइसेंस नीति की मुख्य विशेषताओं में पहले की तरह यह प्रावधान शामिल है कि वैसे मौजूदा अफीम किसान, जिन्होंने मार्फिन (एमक्यूवाई-एम) की औसत उपज 4.2 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर के बराबर या उस से अधिक की है, उन के लाइसेंस को जारी रखा जाएगा. इस के अलावा अन्य मौजूदा अफीम गोंद की खेती करने वाले किसान, जिन्होंने मार्फिन सामग्री उपज (3.0 किलोग्राम से 4.2 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर) के साथ गोंद की खेती की है, अब केवल 5 साल की लाइसेंस वैधता के साथ कंसेंट्रेटेड पौपी (पोस्त) स्ट्रा खसखस या भूसा) (सीपीएस) आधारित विधि के लिए योग्य होंगे.

Afeemइस के अलावा, साल 2022-23 के सभी सीपीएस-आधारित किसान, जिन्होंने सरकार को अफीम की आपूर्ति की है, लेकिन किसी भी आदेश या निर्देश के तहत वंचित नहीं किया गया है, उन के लाइसेंस को भी इस साल सीपीएस-आधारित खेती के लिए बनाए रखा गया है. केंद्र सरकार ने इस नीति के दायरे में आने वाले किसानों की संख्या बढ़ाने के लिए सीपीएस पद्धति जारी करने को ले कर सामान्य लाइसेंस शर्तों में और अधिक छूट दी है.

साल 2020-21 से अनलांस्ड पोस्त के लिए लाइसेंस की व्यवस्था सामान्य तरीके से शुरू की गई थी और तब से इस का विस्तार किया गया है, वहीं केंद्र सरकार ने अपने खुद के अल्केलाइड कारखानों की क्षमता में बढ़ोतरी की है. यह इन कारखानों में अच्छे प्रबंधन अभ्यासों को अपनाने के लिए आगे बढ़ रही है और भारत में अफीम प्रसंस्करण क्षमता बढ़ाने को ले कर पहले से ही अफीम गोंद के प्रसंस्करण के साथसाथ पौपी स्ट्रा के प्रसंस्करण के लिए निजी क्षेत्र के साथ जुड़ चुकी है.
सरकार का उद्देश्य अनलांस्ड पोस्त के लिए लाइसेंसिंग को और अधिक विस्तारित करने का है. केंद्र सरकार ने कंसेंट्रेटेड पौपी स्ट्रा के लिए इस के लिए पीपीपी आधार पर 100 मीट्रिक टन क्षमता की एक प्रसंस्करण इकाई स्थापित करने का निर्णय लिया है. इस से भारत न केवल अपनी घरेलू मांग को पूरा करने में सक्षम होगा, बल्कि अल्केलाइड और अल्केलाइड-आधारित उत्पादों का निर्यात भी कर सकेगा.

केंद्र सरकार देश में मांग और प्रसंस्करण क्षमता बढ़ाने पर लगातार काम कर रही है. मांग और प्रसंस्करण क्षमता में बढ़ोतरी के साथ यह आशा की जाती है कि आने वाले 3 सालों में अफीम पोस्त की खेती के लिए लाइसेंसधारी किसानों की संख्या बढ़ कर 1.45 लाख हो जाएगी.

गेहूं की भंडारण सीमा 3000 मीट्रिक टन से 2000 मीट्रिक टन

नई दिल्ली: भारत सरकार ने समग्र खाद्य सुरक्षा का प्रबंधन करने और जमाखोरी व बेईमान सट्टेबाजी को रोकने के लिए सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में व्यापारियों/थोक विक्रेताओं, खुदरा विक्रेताओं, बड़ी श्रृंखला के खुदरा विक्रेताओं और मिलों पर लागू गेहूं पर भंडारण सीमा तय कर दी. वहीं 12 जून, 2023 को निर्दिष्ट खाद्य पदार्थों पर लाइसेंसिंग आवश्यकताओं, भंडार सीमा और आवाजाही के प्रतिबंधों को हटाना (संशोधन) आदेश, 2023 जारी किया गया था. यह आदेश सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के लिए 31 मार्च, 2024 तक लागू रहेगा.

केंद्र सरकार ने गेहूं के मूल्यों में बढ़ोतरी के रुझान को कम करने के लिए व्यापारियों/थोक विक्रेताओं और बड़ी श्रृंखला के खुदरा विक्रेताओं के संबंध में गेहूं भंडार की सीमा को 3,000 मीट्रिक टन से 2,000 मीट्रिक टन तक संशोधित करने का निर्णय लिया है. इस के तहत व्यापारी/थोक विक्रेताओं के लिए 2000 मीट्रिक टन, बड़ी श्रृंखला के खुदरा विक्रेताओं के प्रत्येक आउटलेट के लिए 10 मीट्रिक टन और उन के सभी डिपो पर 2,000 मीट्रिक टन तक भंडारण सीमा निर्धारित किया गया है. अन्य श्रेणियों के लिए भंडार सीमा में कोई परिवर्तन नहीं किया गया है.

Wheatगेहूं का भंडारण वाली सभी संस्थाओं को गेहूं भंडार सीमा पोर्टल (https://evegoils.nic.in/wsp/login) पर पंजीकरण करना होगा. संस्थाओं को प्रत्येक शुक्रवार को भंडार की स्थिति अपडेट करना आवश्यक है. कोई भी संस्था, जो पोर्टल पर पंजीकृत नहीं पाई गई या भंडरण सीमा का उल्लंघन करती है, तो उस के विरुद्ध आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955 की धारा 6 और 7 के अंतर्गत उचित दंडात्मक कार्रवाई की जाएगी.

यदि उपरोक्त संस्थाओं द्वारा रखे गए भंडार उपरोक्त निर्धारित सीमा से अधिक हैं, तो उन्हें अधिसूचना जारी होने के 30 दिनों के भीतर इसे निर्धारित भंडारण की सीमा में लाना होगा.

केंद्र और राज्य सरकारों के अधिकारी इन भंडारण सीमाओं के कार्यान्वयन की बारीकी से निगरानी करेंगे, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि देश में गेहूं की कोई बनावटी कमी पैदा न हो.

खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण विभाग गेहूं के मूल्यों को नियंत्रित करने और देश में आसान उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए गेहूं के भंडार की स्थिति पर कड़ी नजर रख रहा है.