भारत देश किसानों की बदौलत ही है

नई दिल्ली : भारत के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़, डा. सुदेश धनखड़ के साथ अपने एकदिवसीय दौरे पर राजस्थान पहुंचे. जयपुर एयरपोर्ट पहुंचने पर राजस्थान के राज्यपाल, कलराज मिश्र एवं राजस्थान सरकार में मंत्री महेंद्रजीत सिंह मालवीय द्वारा उन का स्वागत किया गया.

इस के बाद उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ केंद्रीय भेड़ एवं ऊन अनुसंधान संस्थान, अविकानगर गए, जहां केंद्रीय विद्यालय के छात्रछात्राओं द्वारा उन का जोशीला स्वागत किया गया.

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने संस्थान द्वारा विकसित की गई उन्नत नस्ल की भेड़ों और उत्पादों का निरीक्षण किया और संस्थान के निदेशक, वैज्ञानिकों और स्टाफ के साथ मुलाकात कर उन्हें संबोधित किया.

FarmingFarmingअपने संबोधन में उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने केंद्रीय भेड़ एवं ऊन अनुसंधान संस्थान के द्वारा किए जा रहे कामों की प्रशंसा की और कहा कि जी-20 में भारत के विकास का डंका देख कर सब दंग रह गए हैं. वर्ल्ड बैंक के अध्यक्ष ने कहा है कि भारत में जो विकास पिछले 6 वर्षों में हुआ है, वह 50 वर्ष में भी नहीं हो सकता था.

उन्होंने आगे यह भी कहा कि इस में सब से बड़ा योगदान किसानों का है और खेती से जुड़ी आप जैसी संस्थाओं का है.

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने यह भी कहा कि भारत देश किसान की बदौलत ही है. हमारे यहां 1 अप्रैल, 2020 से 80 करोड़ लोगों को सरकार की ओर से फ्री चावल, गेहूं और दाल मिल रहे हैं. ये दम हमारे किसानों का है, और ये राशन किसानों की बदौलत ही मिल पा रहा है.

कृषि में बदलावों की आवश्यकता पर बल देते हुए उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहा कि भारत के किसान को बदलने की जरूरत है. उन्होंने खुशी व्यक्त की कि ये बदलाव आ रहा है. उपराष्ट्रपति ने देश के कृषि वैज्ञानिकों से आह्वान किया कि वे इस बदलाव का प्रेरक बनें.

इस अवसर पर टोंक के सांसद सुखबीर सिंह जौनपुरिया, सीएसडब्ल्यूआरआई के निदेशक डा. अरुण कुमार तोमर, संस्थान के वैज्ञानिक, शोधार्थी व अन्य गणमान्य लोग उपस्थित रहे.

किसानों को असाधारण शक्ति और जिम्मेदारी

नई दिल्ली : अपने संबोधन में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने कहा कि दुनिया का कृषक समुदाय इस का अग्रणी संरक्षक है और वे फसल विविधता के सच्चे संरक्षक हैं.

उन्होंने आगे कहा कि किसानों को असाधारण शक्ति और जिम्मेदारी दी गई है. हम सभी को पौधों और प्रजातियों की विभिन्न किस्मों की रक्षा करनी चाहिए और उन्हें पुनर्जीवित करने के किसानों के प्रयास की सराहना करनी चाहिए, ये वनस्पतियां हम सभी के लिए बहुत महत्वपूर्ण है.

इस संगोष्ठी का आयोजन खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ), रोम के खाद्य और कृषि पादप आनुवंशिक संसाधनों पर अंतर्राष्ट्रीय संधि (अंतर्राष्ट्रीय संधि) के सचिवालय द्वारा किया जा रहा है.

केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय पौधा किस्म और किसान अधिकार (पीपीवीएफआर) प्राधिकरण, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर), आईसीएआर-भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई) और आईसीएआर-राष्ट्रीय पादप आनुवंशिक संसाधन ब्यूरो (एनबीपीजीआर) के सहयोग से आयोजित कर रहा है.

Farmingराष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने कहा कि भारत विविधता से भरपूर एक विशाल देश है, जिस का क्षेत्रफल विश्व का केवल 2.4 फीसदी है. विश्व के पौधों की विभिन्न किस्मों और जानवरों की सभी दर्ज प्रजातियों का 7 से 8 फीसदी भारत में मौजूद है.

उन्होंने यह भी कहा कि जैव विविधता के क्षेत्र में भारत पौधों और प्रजातियों की विस्तृत श्रृंखला से संपन्न देशों में से एक है. भारत की यह समृद्ध कृषि-जैव विविधता वैश्विक समुदाय के लिए अनुपम निधि रही है.

उन्होंने बताया कि हमारे किसानों ने कड़े परिश्रम और उद्यमिता से पौधों की स्थानीय किस्मों का संरक्षण किया है, जंगली पौधों को अपने अनुरूप बनाया है और पारंपरिक किस्मों का पोषण किया है, इस से फसल प्रजनन कार्यक्रमों को आधार मिला है और इस से मनुष्यों और पशुओं के लिए भोजन और पोषण की सुरक्षा सुनिश्चित हुई है.

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने कहा कि कृषि अनुसंधान और प्रौद्योगिकी विकास ने भारत को 1950-51 के बाद से खाद्यान्न, बागबानी, मत्स्यपालन, दूध और अंडे के उत्पादन को कई गुना बढ़ाने में योगदान दिया है, इस से राष्ट्रीय खाद्य और पोषण सुरक्षा पर अनुकूल प्रभाव पड़ा है.

उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि कृषि-जैव विविधता संरक्षकों और परिश्रमी किसानों, वैज्ञानिकों और नीति निर्माताओं के प्रयासों ने सरकार के समर्थन से देश में कई कृषि क्रांतियों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि प्रौद्योगिकी और विज्ञान विरासत ज्ञान के प्रभावी संरक्षक और संवर्द्धक के रूप में काम कर सकते हैं.

भारतीय किसान वैज्ञानिकों से बेहतर

नई दिल्ली : राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने किसानों के अधिकारों पर चारदिवसीय वैश्विक संगोष्ठी का उदघाटन पूसा, नई दिल्ली में किया. केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने समारोह की अध्यक्षता की.

इस अवसर पर विभिन्न श्रेणियों में 26 पादप जीनोम संरक्षक पुरस्कार किसानों व संगठनों को प्रदान किए गए.

इस मौके पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने प्लांट अथारिटी भवन का उद्घाटन किया व पौध की किस्मों के पंजीकरण के लिए औनलाइन पोर्टल लौंच किया गया. उन्होंने प्रदर्शनी का शुभारंभ कर मंत्रियों के साथ अवलोकन भी किया.

कार्यक्रम में केंद्रीय कृषि राज्य मंत्री कैलाश चौधरी, सचिव मनोज अहूजा, आईसीएआर के महानिदेशक डा. हिमांशु पाठक, पौधा किस्म और कृषक अधिकार संरक्षण प्राधिकरण (पीपीवीएफआरए) के अध्यक्ष डा. त्रिलोचन महापात्र, आईटीपीजीआरएफए के सचिव डा. केंट ननडोजी, एफएओ के भारत के प्रतिनिधि टाकायुकी, आईसीएआर के पूर्व डीजी डा. आरएस परोधा, राजनयिक, संधि के अनुबंध देशों के प्रतिनिधि, किसान, वैज्ञानिक, कृषि से जुड़े संगठनों के पदाधिकारी भी उपस्थित रहे.

आयोजन में पीपीवीएफआरए, आईसीएआर, भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान व राष्ट्रीय पादप आनुवांशिक संसाधन ब्यूरो सहभागी है.

खाद्य एवं कृषि के लिए पादप आनुवंशिक संसाधनों पर अंतर्राष्ट्रीय संधि

आईटीपीजीआरएफए, खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ), रोम एवं केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा आयोजित वैश्विक संगोष्ठी के अवसर पर अपने संबोधन में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने कहा कि भारत की समृद्ध कृषि जैव विविधता वैश्विक समुदाय के लिए एक खजाना रही है. हमारे किसानों ने कड़ी मेहनत व उद्यमपूर्वक पौधों की स्थानीय किस्मों का संरक्षण किया है, जंगली पौधों को पालतू बनाया है एवं पारंपरिक किस्मों का पोषण किया है, जिन्होंने विभिन्न फसल प्रजनन कार्यक्रमों के लिए आधार प्रदान किया है. इस से मनुष्यों व जानवरों के लिए भोजन और पोषण सुरक्षा सुनिश्चित हुई है. जैव विविधता को संरक्षित व पोषित कर के किसान बिरादरी न केवल मानवता को, बल्कि पूरे ग्रह को बचा रही है.

उन्होंने आगे कहा कि क्षेत्र विशेष की फसलों की किस्में समाज व संस्कृति से गहराई से जुड़ी होती हैं, इन में औषधीय गुण भी होते हैं.

किसान ही असली इंजीनियर व वैज्ञानिक

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने कहा कि जैव विविधता, वन्य जीवन, विभिन्न विदेशी पौधों व प्राणियों की विस्तृत श्रृंखला ने हमेशा हमारे जीवन को समृद्ध किया है और इस ग्रह को सुंदर बनाया है.

उन्होंने आगे कहा कि सभ्यता की शुरुआत से ही हमारे किसान ही असली इंजीनियर व वैज्ञानिक हैं, जिन्होंने मानवता के लाभ के लिए प्रकृति की ऊर्जा व उदारता का उपयोग किया है. एक नोबल पुरस्कार विजेता व अर्थशास्त्री ने बिहार के गांव का दौरा करते समय एक बार टिप्पणी की थी, “भारतीय किसान वैज्ञानिकों से बेहतर हैं.”

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने साफ कहा कि मैं इस कथन से पूर्णतः सहमत हूं, क्योंकि कृषि में हम ने परंपरा को प्रौद्योगिकी के साथ सहजता से मिश्रित किया है. कृषि मानव जाति का पहला ज्ञात व्यवसाय है, यह कृषि-जैव विविधता पर फलाफूला, जो प्रकृति ने हमें दी है. विश्व की किसान बिरादरी इस की अग्रणी संरक्षक है, जो फसल विविधता की सच्ची संरक्षक हैं. हम ने कई पौधों की प्रजातियों को खो दिया है, फिर भी पौधों की प्रजातियों की कई किस्मों की रक्षा व पुनर्जीवित करने के किसानों के प्रयास सराहनीय है, जिन का अस्तित्व आज हम सब के लिए महत्वपूर्ण है.

भारत पौधों व प्रजातियों की विस्तृत श्रृंखला से संपन्न देशों में से एक

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू मुर्मु ने खुशी जताई कि आईटीपीजीआरएफए ने किसानों के अधिकारों पर पहली वैश्विक संगोष्ठी के आयोजन स्थल के रूप में भारत को चुना, यह उचित भी है, क्योंकि भारत प्राचीन सभ्यता है, जहां हमारी परंपराएं, संस्कृति व कृषि एक ही तानेबाने का हिस्सा हैं. यह वह भूमि है, जिस ने युगोंयुगों से “वसुधैव कुटुंबकम” की अवधारणा को आत्मसात किया है. जैव विविधता में, भारत पौधों व प्रजातियों की विस्तृत श्रृंखला से संपन्न देशों में से एक है. हमारे कृषि-जैव विविधता संरक्षकों व मेहनती किसानों, वैज्ञानिकों और नीति निर्माताओं के प्रयासों ने सरकारी समर्थन के साथ मिल कर देश में कई कृषि क्रांतियों को गति देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है.

Farmingउन्होंने कहा कि साल 2001 में हस्ताक्षरित खाद्य व कृषि के लिए पादप आनुवंशिक संसाधनों पर अंतर्राष्ट्रीय संधि, भोजन और कृषि के लिए पादप आनुवंशिक संसाधनों के संरक्षण, उपयोग व प्रबंधन के लिए सदस्य देशों के बीच सब से महत्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय समझौतों में से एक थी. पहली बार इस ने भोजन और कृषि के लिए दुनिया के पादप आनुवंशिक संसाधनों के संरक्षण, विनिमय और टिकाऊ उपयोग के माध्यम से खाद्य सुरक्षा की गारंटी देने की बात की.

भारत ने पौधों की विविधता और किसान अधिकार संरक्षण अधिनियम (पीपीवीएफआर)-2001 को पेश करने में अग्रणी भूमिका निभाई थी, जो हमारे किसानों की सुरक्षा के लिए खाद्य व कृषि के लिए पादप आनुवंशिक संसाधनों पर अंतर्राष्ट्रीय संधि से जुड़ा है.

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने कहा कि हमारा देश किसानों को कई प्रकार के अधिकार देता है. भारतीय किसान खुद की किस्मों को पंजीकृत कर सकते हैं, जिन्हें सुरक्षा मिलती है. ऐसा अधिनियम पूरी दुनिया के लिए अनुकरणीय उत्कृष्ट मौडल के रूप में काम कर सकता है. जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न चुनौतियों के मद्देनजर व मानवता के प्रति सामूहिक जिम्मेदारी के रूप में संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) को पूरा करने के लिए इस का महत्व और बढ़ जाता है. मिलेट्स (श्री अन्न) सहित वे किस्में, जो न केवल हमारे इकोसिस्टम पर विभिन्न तनावों के प्रति अंतर्निहित सहनशीलता से संपन्न हैं, बल्कि पोषण प्रोफाइल भी रखती हैं, जो मानव और पशुधन के एक बड़े हिस्से की भोजन व स्वास्थ्य आवश्यकताओं का समाधान प्रदान करने में महत्वपूर्ण हो सकती हैं. संयुक्त राष्ट्र द्वारा वर्ष 2023 को अंतर्राष्ट्रीय मिलेट्स वर्ष घोषित करना इसी दिशा में एक कदम है.

केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि कृषि-जैव विविधता संरक्षण सिर्फ कर्तव्य नहीं है, बल्कि इकोसिस्टम के अस्तित्व के लिए महती आवश्यकता है, भारत सरकार इस उद्देश्य के प्रति अपनी प्रतिबद्धता पर कायम है. प्रधानमंत्री के नेतृत्व में भारत इस अंतर्राष्ट्रीय संधि (आईटीपीजीआरएफए) के तहत सहमत सिद्धांतों के प्रति प्रतिबद्ध रहा है व इस के अक्षरश: पालन में विश्व में सर्वोपरि काम कर रहा है. यह तथ्य, भारतीय संसद द्वारा पौधों की विविधता व किसानों के अधिकार संरक्षण अधिनियम-2001 के रूप में अधिनियमित राष्ट्रीय कानून से बहुत स्पष्ट रूप से रेखांकित है. इस कानून के अधिनियमन के बाद से भारत सरकार ने कानून में किए प्रावधानों के अनुरूप इस का पालन सुनिश्चित करने के लिए पूरी शिद्दत के साथ काम किया है.

उन्होंने आगे कहा कि भारत के पौधा किस्म संरक्षण ढांचे की विशेषताओं में से एक, इस का किसानों के अधिकारों पर ध्यान केंद्रित करना है. यह अधिनियम किसानों की पीढ़ियों के अनवरत प्रयासों से पौधों के आनुवंशिक संसाधनों के संरक्षण व विकास में किसानों की अमूल्य भूमिका को मान्यता देता है. यह ऐक्ट किसानों को खेत में बचाए गए बीजों के संरक्षण, उपयोग करने, आपस में बांटने, साझा करने व बेचने का अधिकार देता है.

यह प्रावधान किसानों को स्थानीय ज्ञान व नवाचार को बढ़ावा देते हुए उन की स्वायत्तता संरक्षित करते हुए कृषि मूल्य श्रृंखला में सक्रिय रूप से भाग लेने का अधिकार देता है.

केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि हमारी समृद्ध कृषि विरासत, किसानों के प्रयासों के कारण फलीफूली है, जिन्होंने कई पौधों की किस्मों का पोषण व विकास किया है. ये किस्में न केवल जीविका का स्रोत हैं, बल्कि प्रकृति और संस्कृति के बीच गहरे संबंध का जीवंत प्रमाण हैं. सरकार के रूप में हम इन किस्मों की रक्षा करने और यह सुनिश्चित करने के महत्व को समझते हैं कि वे फलतेफूलते रहें. किसानों के अधिकारों की सुरक्षा हमारी कृषि नीतियों का महत्वपूर्ण पहलू है.

उन्होंने यह भी कहा कि किसान हमारी भूमि के संरक्षक हैं, उन के अधिकारों का सम्मान किया जाना चाहिए, उन्हें बरकरार रखना चाहिए, ऐसा हमेशा से भारत का प्रयास रहा है.

मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में हमारी सरकार किसानोँ के सामने आने वाली चुनौतियों को समझती है एवं किसानों को उन की आजीविका सुरक्षित करने व उन के पारंपरिक ज्ञान को संरक्षित करने के लिए आवश्यक उपकरण, संसाधन और कानूनी सुरक्षा प्रदान करने के लिए समर्पित हैं. हम सभी को यह याद रखना होगा कि कृषि-जैव विविधता का संरक्षण, पौधों की किस्मों की सुरक्षा व किसानों के अधिकारों की सुरक्षा अलगअलग लक्ष्य नहीं हैं, बल्कि समृद्ध और टिकाऊ भविष्य के हमारे दृष्टिकोण के अभिन्न अंग हैं. हम इन जिम्मेदारियों को स्वीकार करते हैं और यह सुनिश्चित करने के लिए सतत काम करते रहेंगे, ताकि हमारी समृद्ध कृषि विरासत आने वाली पीढ़ियों तक फलतीफूलती रहे.

उन्होंने उम्मीद जताई कि यह वैश्विक संगोष्ठी, विभिन्न विषयों पर मंथन के साथ ही कार्ययोजना, पारंपरिक कृषि-जैव विविधता संरक्षण, पारंपरिक फसल किस्मों पर दुनियाभर के किसानों के अधिकारों को सुनिश्चित करने के पोषित लक्ष्य की ओर निष्कर्ष निकलेंगे.

गेहूंचावल की साप्ताहिक ई-नीलामी

नई दिल्ली : चावल, गेहूं और आटे के खुदरा मूल्यों को नियंत्रित करने के बाजार उपाय के रूप में भारत सरकार की पहल के अंतर्गत गेहूं और चावल दोनों की साप्ताहिक ई-नीलामी आयोजित की गई है.

वर्ष 2023-24 की 11वीं ई-नीलामी 6 सितंबर, 2023 को आयोजित की गई. पूरे देश में 500 डिपो से 2 लाख मीट्रिक टन गेहूं और 337 डिपो से 4.89 लाख मीट्रिक टन चावल की बिक्री की पेशकश की गई.

ई-नीलामी में 1.66 लाख मीट्रिक टन गेहूं और 0.17 लाख मीट्रिक टन चावल बेचा गया. एफएक्यू गेहूं के लिए भारित औसत विक्रय मूल्य 2,169.65 रुपए प्रति क्विंटल था, जबकि इस का पूरे देश में आरक्षित मूल्य 2,150 रुपए प्रति क्विंटल था. वहीं यूआरएस गेहूं का भारित औसत बिक्री मूल्य 2150.86 रहा, जबकि इस का आरक्षित मूल्य 2125 रुपए प्रति क्विंटल था.
साथ ही, चावल का भारित औसत विक्रय मूल्य 2,956.19 रुपए प्रति क्विंटल था, जबकि देशभर में इस का आरक्षित मूल्य 2952.27 रुपए प्रति क्विंटल था.

ई-नीलामी की वर्तमान किस्त में एक खरीदार के लिए गेहूं की अधिकतम 100 टन और चावल की 1,000 टन तक की पेशकश कर के इन के खुदरा मूल्यों में कमी लाने का लक्ष्य रखा गया है. यह निर्णय छोटे और सीमांत उपयोगकर्ताओं को प्रोत्साहित करने और यह सुनिश्चित करने के लिए लिया गया है, ताकि प्रतिभागी आगे आ सकें और अपनी पसंद के डिपो से आवश्यक मात्रा के लिए बोली लगा सकें.

स्टाक की जमाखोरी रोकने के लिए व्यापारियों को ओएमएसएस (डी) के अंतर्गत गेहूं की बिक्री के दायरे से बाहर रखा गया है और ओएमएसएस (डी) के तहत गेहूं खरीदने वाले प्रोसैसरों की आटा मिलों की नियमित जांच/निरीक्षण किया जा रहा है. 5 सितंबर, 23 तक देशभर में ऐसी 898 जांचें की जा चुकी हैं.

रासायनिक उर्वरकों के स्थान पर वैकल्पिक उर्वरक

नई दिल्ली : “वर्तमान में देशभर में 1.60 लाख से अधिक प्रधानमंत्री किसान समृद्धि केंद्र यानी पीएमकेएसके काम कर रहे हैं. इन केंद्रों का उद्देश्य 2 लाख से अधिक ऐसे केंद्रों का ‘वन-स्टाप शाप’ नैटवर्क तैयार करना है, ताकि किसानों को खेती और कृषि प्रथाओं के बारे में अपना ज्ञान बढ़ाने के लिए गुणवत्तापूर्ण उत्पादों तक पहुंच प्राप्त हो सके,” यह बात डा. मनसुख मांडविया ने 1.60 लाख प्रधानमंत्री किसान समृद्धि केंद्रों पर विभिन्न राज्यों के 3,000 से अधिक किसानों के साथ आभासी रूप से आभासी बातचीत के दौरान कही. यह आंध्र प्रदेश, बिहार, गुजरात, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, राजस्थान और उत्तराखंड राज्यों के किसानों के साथ दोतरफा संवाद था. बातचीत के इस आभासी सत्र के दौरान रसायन एवं उवर्रक राज्य मंत्री भगवंत खुबा भी उपस्थित थे.

डा. मनसुख मांडविया ने कहा कि पीएमकेएसके कृषि के लिए आउटरीच गतिविधियों, कृषि क्षेत्र में नए और विकसित ज्ञान के बारे में जागरूकता बढ़ाने, किसान समुदाय के साथ संवाद और कृषि विश्वविद्यालयों के जरीए विस्तार गतिविधियों के केंद्रीय हब के रूप में तेजी से विकसित हो रहे हैं.

उन्होंने आगे कहा, “यह केवल उर्वरकों, उपकरणों, बिक्री के आउटलेट भर नहीं हैं, बल्कि ये किसानों के कल्याण हेतु संगठन हैं.”

साथ ही, उन्होंने यह भी कहा कि पीएमकेएसके कृषि और खेती से संबंधित सभी गतिविधियों के लिए केवल वन-स्टाप सैंटर भर ही नहीं रहेगा, बल्कि जल्द ही एक संस्थान का रूप ले लेगा.

केंद्रीय मंत्री ने एक अपील के माध्यम से किसानों को नैनो यूरिया, नैनो डीएपी का उपयोग करने और उत्तरोत्तर रूप से रासायनिक उर्वरकों के बजाय वैकल्पिक और जैविक उर्वरकों का उपयोग करने के लिए प्रोत्साहित किया.

उन्होंने जोर देते हुए कहा, “आइए, आगामी रबी सीजन में हम रासायनिक उर्वरकों के उपयोग को 20 फीसदी तक कम करने का प्रयास करें और इस के स्थान पर वैकल्पिक/ और्गेनिक उर्वरकों का उपयोग करें.”

उन्होंने यह बात भी कही कि अध्ययनों ने स्पष्ट रूप से दर्शाया है कि रसायनों, उर्वरकों, कीटनाशकों आदि के अधिक इस्तेमाल के कारण मानव के स्वास्थ्य और कल्याण पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से बुरा प्रभाव पड़ रहा है.

इस संदर्भ में डा. मनसुख मांडविया ने हाल ही में शुरू की गई योजना पीएम-प्रणाम (धरती माता की पुनर्स्थापना, जागरूकता, पोषण और सुधार के लिए पीएम कार्यक्रम) को पुन: रेखांकित किया. इस योजना का उद्देश्य राज्यों को वैकल्पिक उर्वरक अपनाने के लिए प्रोत्साहित करते हुए रासायनिक उर्वरकों के उपयोग में कमी लाना है.

उन्होंने किसानों को आगाह किया कि वे किसानों और कृषि के लिए नियत यूरिया और उर्वरकों को उद्योगों में गैरकृषि कार्यों में उपयोग करने से बचें.

उन्होंने जोर दे कर कहा, “किसानों के उपयोग के लिए नियत यूरिया का औद्योगिक इस्तेमाल कतई बरदाश्त नहीं किया जाएगा. हम ने ऐसी गतिविधियों के लिए जिम्मेदार पाए गए लोगों के खिलाफ सख्त कदम उठाए हैं.”

डा. मनसुख मांडविया से बातचीत में किसानों ने प्रधानमंत्री किसान समृद्धि केंद्रों द्वारा प्रदान की जाने वाली सेवाओं का उपयोग करने के संबंध में अपने अनुभव साझा किए.

गुजरात के पंकज भाई ने कहा, “पीएमकेएसके ने वास्तव में हमें एक छत के नीचे बीजों, उर्वरकों और दवाओं जैसे इनपुट तक उपलब्ध करवाते हुए लाभान्वित किया है, जो पहले हमारे लिए अनुपलब्ध थे. पहले हमें विभिन्न दुकानों से इन सेवाओं और सुविधाओं को प्राप्त करने के लिए लंबी दूरी तय करनी पड़ती थी.”

खेती के लिए अपना व्यवसाय छोड़ने वाले कर्नाटक के रेडियोलौजिस्ट डा. रंगनाथ ने कहा, “पीएमकेएसके मिट्टी और पानी के लिए परीक्षण सुविधाएं प्रदान करने में हमारी मदद करते हैं और किसानों को उन सुविधा केंद्रों से जोड़ने में सहायता करते हैं. यह किसानों के बीच अच्छी कृषि पद्धतियों के बारे में जागरूकता फैलाने में भी मदद करते हैं.”

बिहार के श्रवण कुमार ने कहा, “पीएमकेएसके किसानों का नियमित क्षमता निर्माण सुनिश्चित करता है. यह आसपास के क्षेत्रों के किसानों के साथ बातचीत करने और अपने अनुभव साझा करने के लिए एक समुदाय के रूप में भी काम करता है.”

बैठक में उर्वरक विभाग के सचिव रजत कुमार मिश्रा, अपर सचिव (सीएंडएफ) नीरजा और रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी भी शामिल हुए.

अमेरिकी सेब सभी देशों की तरह ही प्रतिस्पर्धा करेंगे

नई दिल्ली : अमेरिका और भारत के बीच 6 लंबित डब्ल्यूटीओ (विश्व व्यापार संगठन) विवादों को परस्पर सहमत समाधानों के माध्यम से हल करने के लिए जून, 2023 में लिए गए निर्णय को ध्‍यान में रखते हुए भारत ने अधिसूचना संख्या 53/2023 (कस्टम) के जरीए सेब, अखरोट और बादाम सहित अमेरिकी मूल के 8 उत्पादों पर देय अतिरिक्त शुल्क को वापस ले लिया है.

साल 2019 में अमेरिका के उत्पादों पर एमएफएन (सर्वाधिक पसंदीदा राष्ट्र) शुल्क के अलावा सेब एवं अखरोट में से प्रत्‍येक पर 20 फीसदी और बादाम पर 20 रुपए प्रति किलोग्राम का अतिरिक्त शुल्क लगाया गया था, जो कि कुछ विशेष स्टील और अल्युमीनियम उत्पादों पर टैरिफ या शुल्क बढ़ाने के अमेरिकी सरकार के संरक्षणवादी उपाय के खिलाफ जवाबी कार्रवाई के रूप में लगाया गया था.

भारत द्वारा अमेरिकी मूल के उत्पादों पर लगाए गए ये अतिरिक्त शुल्क अब वापस ले लिए गए हैं, क्योंकि अमेरिका अपवर्जन प्रक्रिया के तहत स्टील और अल्युमीनियम उत्पादों को अपने यहां बाजार पहुंच प्रदान करने पर सहमत हो गया है. सेब, अखरोट और बादाम पर देय एमएफएन शुल्क में कोई कटौती नहीं की गई है, जो अभी भी अमेरिकी मूल के उत्पादों सहित सभी आयातित उत्पादों पर क्रमशः 50 फीसदी, 100 फीसदी और 100 रुपए प्रति किलोग्राम की दर से लागू होता है.

इस के अलावा डीजीएफटी ने अपनी अधिसूचना संख्या 5/2023 तारीख 8 मई, 2023 के तहत भूटान को छोड़ सभी देशों से होने वाले आयात पर 50 रुपए प्रति किलोग्राम का एमआईपी (न्यूनतम आयात मूल्य) लागू कर के आईटीसी (एचएस) 08081000 के तहत सेब आयात नीति में संशोधन किया. अत: यह एमआईपी अमेरिका और अन्य देशों (भूटान को छोड़) से आने वाले सेब पर भी लागू होगा. यह उपाय कम गुणवत्ता वाले सेबों की डंपिंग के साथसाथ भारतीय बाजार में होने वाले किसी भी तरह के अत्यधिक प्रतिस्पर्धी मूल्य निर्धारण से संरक्षण करेगा.

इस उपाय से देश के सेब, अखरोट और बादाम उत्पादकों पर कोई भी नकारात्मक असर नहीं होगा, बल्कि इस के परिणामस्वरूप सेब, अखरोट और बादाम के प्रीमियम बाजार खंड में कड़ी प्रतिस्पर्धा होगी, जिस से हमारे भारतीय उपभोक्ताओं को प्रतिस्पर्धी कीमतों पर संबंधित बेहतर उत्‍पाद मिलेंगे. अत: अमेरिकी सेब, अखरोट और बादाम भी अन्य सभी देशों की तरह ही समान स्तर पर प्रतिस्पर्धा करेंगे.
अमेरिकी सेब और अखरोट के आयात पर अतिरिक्त प्रतिशोधात्मक शुल्क लगाए जाने से अन्य देशों को लाभ होने के कारण अमेरिकी सेब की बाजार हिस्सेदारी घट गई.

यह अमेरिका के अलावा अन्य देशों से सेब के आयात में काफी वृद्धि होने से स्पष्ट हो जाता है, जो कि वित्त वर्ष 2018-19 के 160 मिलियन अमेरिकी डालर से बढ़ कर वित्त वर्ष 2022-23 में 290 मिलियन अमेरिकी डालर हो गया है.

तुर्की, इटली, चिली, ईरान और न्यूजीलैंड नए परिदृश्‍य में भारत को प्रमुख सेब निर्यातक के रूप में उभर कर सामने आए, और इस तरह से एक समय अमेरिका के कब्जे वाले बाजार में अपनी हिस्सेदारी प्रभावकारी रूप से हासिल कर ली.

इसी प्रकार से अखरोट के मामले में भी भारत में आयात वित्त वर्ष 2018-19 के 35.11 मिलियन अमेरिकी डालर से काफी बढ़ कर वित्त वर्ष 2022-23 में 53.95 मिलियन अमेरिकी डालर हो गया, और चिली एवं यूएई भारत को सर्वाधिक निर्यात करने वाले देश बन गए.

पिछले 3 वर्षों में लगभग 233 हजार एमटी का बादाम आयात हुआ है, जबकि देश में उत्पादन केवल 11 हजार एमटी का हुआ है, और भारत आयात पर अत्यधिक निर्भर है. अत: अतिरिक्त शुल्क हटा देने से अब उन देशों के बीच उचित प्रतिस्पर्धा सुनिश्चित होगी, जो भारत को इन उत्पादों का निर्यात कर रहे हैं.

खरीफ फसलों में एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन पर प्रशिक्षण

बडवानी : आकांक्षी जिला किसान हब बायोटैक परियोजना के अंतर्गत कृषि विज्ञान केंद्र, बड़वानी द्वारा खरीफ फसलों में एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन पर प्रशिक्षण आयोजित किया गया.

यह प्रशिक्षण कार्यक्रम प्रधान वैज्ञानिक एवं प्रमुख डा. एसके बड़ोदिया के मार्गदर्शन में कृषि विज्ञान केंद्र के सभागार में किया गया. इस औनलाइन/औफलाइन प्रशिक्षण कार्यक्रम में सर्वप्रथम प्रधान वैज्ञानिक डा. एसके बड़ोदिया द्वारा उपस्थित किसानों को वर्तमान में वर्षा की संभावनाओं एवं जलवायु परिवर्तन से होने वाले प्रभावों की जानकारी दे कर खरीफ फसलों में नाशीजीव प्रबंधन विषय की संक्षिप्त जानकारी एंव जल संरक्षण हेतु आधुनिक ड्रिप सिंचाई फर्टिगेशन तकनीकी का उपयोग करने की बात कही.

इस अवसर पर विषय विशेषज्ञ के रूप में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद- राष्ट्रीय समेकित नाशीजीव प्रबंधन अनुसंधान केंद्र, नई दिल्ली से प्रधान वैज्ञानिक डा. मुकेश सहगल औनलाइन गूगल मीट के माध्यम से जुड़ कर खरीफ में कपास, सोयाबीन एवं मक्का फसल में नाशीजीव कीट प्रबंधन के लिए अच्छी किस्मों के बीजों का प्रयोग, बीजोपचार कर बोआई करने की बात कही. कपास/सोयाबीन फसल में बीजोचार हेतु जैव उर्वरकों राईजोबियम कल्चर, ट्राईकोडर्मा विरडी का प्रयोग एवं नाशीजीव प्रबंधन हेतु प्रक्षेत्र पर 2-4 फैरोमौन ट्रैप प्रति एकड लगाने की बात कही, जिस से कीट व रोग के प्रकोप से फसल सुरक्षित रहती है. इस के साथ ही साथ बोआई करते समय पौध से पौध की निश्चित दूरी रखें.

किसानों को कपास/सोयाबीन की फसल में लगने वाले पत्ती धब्बा व झुलसा रोगों व अन्य कीटों/रोगों से बचाव के लिए जैविक एवं रासायनिक दवाओं के अनुशंसित मात्रा के प्रयोग एवं कृषि के मित्र कीटों के संरक्षण हेतु भी जानकारी प्रदान की गई.

इस अवसर पर केंद्र के मौसम वैज्ञानिक रविंद्र सिकरवार द्वारा वर्तमान में जलवायु परिर्वतन आधारित कृषि हेतु केंद्र की इकाई से जुड़ने की बात कही व समयसमय पर केंद्र द्वारा जारी कृषि सलाह की जानकारी दी.

इस प्रशिक्षण कार्यक्रम को सफलतापूर्वक आयोजन में तकनीकी रूप से सहयोग केंद्र के तकनीकी अधिकारी उदय सिंह अवास्या एवं रंजीत बारा कार्यालय अधीक्षक सहलेखपाल द्वारा दिया गया. इस प्रशिक्षण कार्यक्रम में जिले के लगभग 50 किसानों/महिला किसानों ने भागीदारी की.

पशुओं में लंपी बीमारी : रोकथाम के लिए कसी कमर

बस्ती : शासन द्वारा नामित नोडल अधिकारी दुग्ध आयुक्त, उत्तर प्रदेश, शशि भूषण लाल सुशील की अध्यक्षता में कलक्ट्रेट सभागार में पशुओं में हो रही लंपी स्किन डिजीज के संबंध में बैठक की गई. उन्होंन कहा कि इस बीमारी के प्रसार को मुख्यमंत्री ने गंभीरता से लिया है. प्रयास करें कि इस का बहुत ज्यादा असर पशुओं में ना हो, ताकि हम उन की जान बचा सकें. पिछले वर्ष राजस्थान में इस बीमारी से काफी पशुओं की जान जा चुकी है.

उन्होंने यह भी निर्देश दिया कि छुट्टा पशुओं को गोशाला में ले जा कर रखने पर उसे निःशुल्क ना छोड़े और नियमानुसार जिला पंचायत जुर्माना लगाए.

उन्होंने आगे कहा कि प्रभावित गांव में टीकाकरण एवं सैनिटाइजेशन प्राथमिकता पर कराया जाए. किसी भी पशु के बीमार होने पर उस की सूचना तत्काल कंट्रोल रूम को दी जाए. ब्लौक स्तर पर भी कंट्रोल रूम बनाया जाए. गोशालाओं पर विशेष निगाह रखी जाए. उन के निर्देश पर सर्विलांस के लिए पीलीभीत से तैनात किए गए 2 पशु चिकित्साधिकारी डा. उज्जवल कुमार और डा. विश्वास सिंह ने बैठक में इस बीमारी से बचाव के उपायों की जानकारी दी.

आयुक्त ने इन्हें निर्देशित किया है कि 7-7 ब्लौक आपस में चिन्हित कर के निरंतर क्षेत्रीय भ्रमण करें और रिपोर्ट जिलाधिकारी को भी उपलब्ध कराएं.

बस्ती में लंपी डिजीज के 45 केस

बैठक की समीक्षा में उन्होंने पाया कि लंपी डिजीज के जनपद में वर्तमान में 45 केस दर्ज हैं. उन्होंने सभी ईओ नगरपालिका/नगर पंचायत को निर्देश दिया है कि साफसफाई के साथ दवाओं का छिड़काव कराएं.

इस संबंध में डीपीआरओ भी ग्राम प्रधान, बीडीओ के साथ बैठक करें और सूचना प्राप्त होने पर संबंधित को अवगत कराएंगे.

उल्लेखनीय है कि दुग्ध आयुक्त ने विकासखंड विक्रमजोत के ग्राम मलहनी में गौशाला का निरीक्षण किया और ग्राम केशवपुर एवं लालपुर में गोवंशों में एलडीएस संक्रामक बीमारी के रोकथाम के लिए निरीक्षण किया.

निरीक्षण के समय मुख्य विकास अधिकारी डा. राजेश कुमार प्रजापति, संयुक्त निदेशक पशुपालन, मुख्य पशु चिकित्साधिकारी एवं विकासखंड स्तरीय अधिकारी उपस्थित रहे.

बीमारी से बचाव के लिए 23,000 पशुओं को लगी वैक्सीन

जिलाधिकारी अंद्रा वामसी ने निर्देश दिया है कि बीमारी से प्रभावित प्रत्येक गांव के लिए एक जिला स्तरीय नोडल नामित करें, जो टीकाकरण एवं सैनिटाइजेशन पर विशेष ध्यान देंगे.

उन्होंने बताया कि तहसील स्तर पर सर्विलांस के लिए 4 आरआरटी का गठन किया गया है. विकास खंड में टीकाकरण एवं चिकित्सा के लिए 14 टीमों को बनाया गया है, जिस में 24 पशु चिकित्साधिकारी, 23 पशुधन प्रसार अधिकारी एवं 14 अन्य कर्मचारियों की ड्यूटी लगाई गई है.

उन्होंने आगे बताया कि इस बीमारी से बचाव के लिए 23,000 गोवंशीय पशुओं को इस का वैक्सीन लगाया गया है. विशेषज्ञों के अनुसार, यह बीमारी गोवंशीय पशुओं में ज्यादा पाई गई है.

अपर निदेशक पशुपालन डा. विकास साठे ने बताया कि जनपद स्तर पर स्थापित कंट्रोल रूम मो.नं. 9793868800 और 1962 पर बीमारी से संबंधित सूचना दी जा सकती है. जानकारी प्राप्त होते ही पशु चिकित्सक टीम मौके पर पहुचेगी और इलाज करेगी.

लंपी डिजीज के लक्षण

उन्होंने लंपी स्किन डिजीज एक विषाणुजनित रोग है. इस रोग में पशु को तेज बुखार, आंख व नाक से पानी गिरना, पैरों में सूजन, पूरे शरीर में कठोर एवं चपटी गांठ आदि लक्षण पाए जाते हैं. सांस की नली में घाव होने से सांस लेने में कठिनाई होती है, पशु का वजन घट जाता है और अत्यधिक कमजोरी से पशु की मृत्यु हो जाती है.इस रोग से मनुष्य को कोई खतरा नहीं है.

सीबीओ डा. एके कुशवाह ने बताया कि रोग से प्रभावित पशुओं का आवागमन प्रतिबंधित करें. पशु के शरीर पर मच्छर, मक्खी, किलनी से बचाने के लिए कीटनाशक दवा का प्रयोग करें. बीमार पशु को चरने के लिए पशुओं के साथ न भेंजे. प्रभावित क्षेत्र से पशु खरीद कर न लाएं. यदि इस रोग से किसी पशु की मृत्यु होती है, तो शव को वैज्ञानिक विधि से दफनाएं.

बैठक में सीडीओ डा. राजेश कुमार प्रजापति, डीएफओ नवीन कुमार शाक्य, एडीएम कमलेश चंद, पीडी राजेश झा, उपजिलाधिकारी विनोद चंद्र पांडेय, गुलाब चंद्र, जीके झा, खंड विकास अधिकारी और पशु चिकित्साधिकारी उपस्थित रहे.

महिला किसानों ने मंडी समिति की बारीकियों को समझा

बस्ती : महिलाओं को कृषि मंडी की योजनाओं से रूबरू कराने, महिलाओं को मंडियों में कृषि उत्पादों के क्रयविक्रय से जोड़ने व मंडियों की कार्यप्रणाली से रूबरू कराने के उद्देश्य से ग्रामीण फाउंडेशन इंडिया द्वारा सिद्धार्थ फार्मर प्रोड्यूसर कंपनी लिमिटेड से जुड़ी महिला किसानों को बस्ती मंडी स्थल का भ्रमण करा कर जानकारी दी गई.

इस दौरान मंडी सचिव महेंद्र कुमार गुप्त ने महिलाओं को कृषि उत्पादों के क्रयविक्रय हेतु ई-नाम पोर्टल पर पंजीकरण प्रक्रिया के बारे में जानकारी देते हुए महिला किसानों को उक्त पोर्टल पर पंजीकृत होने के लिए आह्वान किया.

ज्येष्ठ कृषि विपणन निरीक्षक संदीप कुमार ने मंडी में उत्पादों की खरीदफरोख्त के लिए एफपीओ और किसानों द्वारा लाइसेंस के लिए किए जाने वाले आवेदन प्रक्रिया के बारे में सहजता से समझाया.

उन्होंने एफपीओ से जुड़ी महिलाओं से कहा कि अगर उन्हें आवेदन में किसी तरह की कोई परेशानी आती है, तो वह निर्धारित कागजात के साथ मंडी स्थल कार्यालय में सीधे संपर्क कर सकती हैं.

सिद्धार्थ एफपीसी के निदेशक राममूर्ति मिश्र ने एफपीओ द्वारा की जा रही गतिविधियों की जानकारी दी. उन्होंने कृषि उत्पादों को एफपीओ के जरीए बेचने की प्रक्रिया पर प्रकाश डाला.

जिला कार्यक्रम प्रबंधक मनीष कुमार और प्रशिक्षिका अनुपमा वर्मा ने महिला किसानों के लिए संचालित योजनाओं के बारे में जानकारी दी.

इस के बाद महिलाओं ने अनाज मंडी, सब्जी मंडी और फल मंडी का भ्रमण करा कर कृषि उपज के वजन, क्रयविक्रय, निर्यात की प्रकिया और लाइसेंस प्रणाली पर पूरी जानकारी दी गई. इस मौके पर अनेकों महिला किसान मौजूद रहीं.

किसानों को दिया जाएगा माली प्रशिक्षण

बस्ती : बेरोजगार युवाओं, बागबानों और किसानों को रोजगार से जोड़ने के लिए औद्यानिक प्रयोग एवं प्रशिक्षण केंद्र, पर एकीकृत बागबानी विकास मिशन (राष्ट्रीय बागबानी मिशन) योजनांतर्गत माली प्रशिक्षण (गार्डनर ट्रेनिंग) कार्यक्रम संचालित किया जाएगा, जहां से ट्रेनिंग ले कर बेरोजगार युवा नर्सरी तैयार करने, पौधों की देखभाल, बीमारियों और कीटों की रोकथाम सहित अलंकृत नर्सरी की देखभाल में निपुण हो सकेंगे. इस प्रशिक्षण के बाद ये प्रशिक्षु पूरी तरह से माली बन जाएंगे.

औद्यानिक प्रयोग द्वारा प्रशिक्षण में प्रशिक्षु मालियों को बागबानी समेत पौधों के रखरखाव आदि की जानकारी दी जाएगी.

प्रशिक्षण लेने वालों को मिलती हैं ये चीजें

उद्यान विभाग एवं खाद्य प्रसंस्करण विभाग के तत्वावधान में माली का प्रशिक्षण प्राप्त कर चुके प्रशिक्षणार्थियों को प्रमाणपत्र व किट भी वितरित किया जाता है. साथ ही, प्रशिक्षणार्थियों को किट के प्रयोग के तौर पर तरीके की जानकारी भी दी जाती है. जो अभ्यर्थी सफलतापूर्वक प्रशिक्षण पूरा कर लेते हैं, उन अभ्यर्थियों को प्रमाणपत्र व माली के किट उपलब्ध कराए जाते हैं.

यह है योग्यता

संयुक्त निदेशक उद्यान जनपद, बस्ती ने बताया कि इच्छुक अभ्यर्थी जिन की उम्र 18-40 वर्ष के मध्य हो और उन्होंने कम से कम 8वीं कक्षा पास की हुई हो, आवेदन के लिए योग्य होंगे.

यहां करें आवेदन

एकीकृत बागबानी विकास मिशन (राष्ट्रीय बागबानी मिशन) योजनांतर्गत माली प्रशिक्षण (गार्डनर ट्रेनिंग) के बारे में जानकारी देते हुए संयुक्त निदेशक उद्यान जनपद, बस्ती ने बताया कि आवेदन पत्र 11 सितंबर से 11 अक्तूबर तक संयुक्त निदेशक उद्यान कार्यालय जनपद बस्ती से किसी भी कार्य दिवस में प्रभारी प्रशिक्षण दुर्गा प्रसाद यादव के मोबाइल नंबर 9792942748 से प्राप्त कर सकते हैं.