मोटे अनाज की खेती को बढ़ावा

बस्ती : विश्व स्तर पर वर्ष 2023 को इंटरनेशनल ईयर औफ म‍िलेट्स के तौर पर मनाया जा रहा है. इसी कड़ी में उत्तर प्रदेश सरकार ने प्रदेश में मोटे अनाज यानी म‍िलेट्स की खेती को बढ़ावा देने के ल‍िए म‍िलेट्स पुनरुद्धार कार्यक्रम शुरू क‍िया है.

इसी को ध्यान में रख कर मिलेट्स का रकबा एवं उत्पादन बढ़ाने के लिए सरकार द्वारा किसानों को प्राकृतिक खेती के गुर सिखाए जा रहे हैं. इस के लिए किसानों को प्रशिक्षित किया जा रहा है.

ये बातें कृषि विज्ञान केंद्र, बंजरिया, बस्ती में उत्तर प्रदेश मिलेट्स पुनरुद्धार कार्यक्रम के अंतर्गत मिलेट्स 2 दिवसीय जनपद स्तरीय क्षमतावर्धन (एक प्री-हार्वेस्ट) कार्यशाला के समापन अवसर पर मुख्य अतिथि जिलाधिकारी प्रियंका निरंजन ने कहीं.

उन्होंने किसानों को मिलेट्स ‘‘श्री अन्न‘‘ (ज्वार, बाजरा, सांवा, कोदो, मड़ुवा/रागी, मक्का आदि) की खेती की उत्पादन/उत्पादकता को बढ़ावा देने के लिए किसानों को प्रोत्साहित किया.

कृषि विज्ञान केंद्र, बस्ती के अध्यक्ष प्रो. एसएन सिंह द्वारा श्री अन्न की खेती के विषय में किसानों को विस्तृत जानकारी दी गई.

Farmingउपकृषि निदेशक, बस्ती अनिल कुमार द्वारा मिलेट्स ‘‘श्री अन्न‘‘ (ज्वार, बाजरा, सांवा, कोदो, मड़ुवा/रागी आदि) से किसानों को होने वाले लाभ एवं जनमानस के स्वास्थ्य लाभ के विषय में जानकारी दी गई.

कृषि वैज्ञानिक बीबी सिंह द्वारा उपस्थित किसानों से प्रश्नोत्तरी कर किसानों को सम्मानित किया गया. नेशनल अवार्डी प्रगतिशील किसान और सिद्धार्थ फार्मर प्रोड्यूसर कंपनी लिमिटेड के निदेशक राम मूर्ति मिश्र ने एफपीओ द्वारा उत्पादित मोटे अनाजों सावा, कोदो, रागी के प्रोसैसिंग से होने वाले लाभ पर जानकारी दी. उन्होंने मोटे अनाज के सेवन से सेहत को होने वाले लाभ से भी अवगत कराया.

इस मौके पर जिला कृषि अधिकारी मनीष सिंह, भूमि संरक्षण अधिकारी डा. राजमंगल चौधरी, जिला कृषि रक्षा अधिकारी रतन शंकर ओझा, डा. डीके श्रीवास्तव, डा. प्रेम शंकर, उप कृषि निदेशक कार्यालय के संकट हरण पांडेय, अमित कुमार सहित प्रगतिशील किसान बृजेंद्र पाल, अवधेश पांडेय, उपस्थित रहे.

‘आत्मनिर्भर भारत’ खादी राखी की शुरुआत

नई दिल्ली : खादी एवं ग्रामोद्योग आयोग (केवीआईसी) के अध्यक्ष मनोज कुमार ने नई दिल्ली में रक्षा बंधन के उपलक्ष्य में खादी-राखी की शुरुआत की. सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम मंत्रालय के तत्वावधान में यह खादी-राखी की शुरुआत की गई. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 7 अगस्त, 2023 को नई दिल्ली के प्रगति मैदान में ‘राष्ट्रीय हथकरघा दिवस’ कार्यक्रम के दौरान अपने संबोधन में नागरिकों से आग्रह किया था कि वे अपने आगामी त्योहारों के लिए खादी एवं ग्रामोद्योग उत्पादों का चयन कर के ग्रामीण कारीगरों का तहे दिल से समर्थन करें, जिस से भारत के सुदूर ग्रामीण भागों में रोजगार के सर्वोत्तम अवसर सुनिश्चित हो सकें.

स्वदेशी गोबर से बनाई राखी से तुलसी, टमाटर और बैंगन के पौधे अंकुरित होंगे

इस अवसर पर अध्यक्ष मनोज कुमार ने कहा कि खादी-राखी की विशिष्टता ग्रामीण भारत की समर्पित स्पिनर बहनों द्वारा इस के निर्माण में निहित है, जो चरखे पर कई सूत कातने का काम करती हैं. यह उत्पाद पूरी तरह से प्राकृतिक है, किसी भी रासायनिक घटक से रहित है. उदाहरण के लिए, उत्तर प्रदेश के अंबेडकर नगर के ग्रामोद्योगिक विकास संस्थान द्वारा तैयार की गई राखी स्वदेशी गोबर से बनाई गई है. इस के अतिरिक्त इस में तुलसी, टमाटर, बैंगन के बीज शामिल करने से इस की संरचना में और बेहतर होती है. इस के निर्माण के पीछे की अवधारणा इस धारणा में निहित है कि जब इसे जमीन पर फेंक दिया जाएगा, तो इस से तुलसी, टमाटर और बैंगन के पौधे अंकुरित होंगे. देश के विभिन्न राज्यों में तैयार की गई ऐसी खादी राखियां अब नई दिल्ली के खादी भवन में खरीद के लिए पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है, जिन में से प्रत्येक की कीमत 20 रुपए से ले कर 250 रुपए तक है.

मनोज कुमार ने सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि इस वर्ष ‘खादी राखी ‘ को एक ‘पायलट परियोजना’ पहल के रूप में शुरू किया जा रहा है, जो विशेष रूप से नई दिल्ली में खादी भवन में उपलब्ध है. आगामी वर्ष में देशभर में खादी राखी लौंच करने के लिए व्यापक तैयारी चल रही है.

 

Khadiउन्होंने जनता से अपील करते हुए कहा कि वे खादी के माध्यम से भारत की राष्ट्रीय विरासत की उल्लेखनीय अभिव्यक्ति खादी राखी को अपनाएं. ऐसा कर के वे न केवल भारत की शानदार विरासत को संरक्षित करेंगे, बल्कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा परिकल्पित ‘आत्मनिर्भर भारत’ के विजन में भी सक्रिय रूप से योगदान देंगे.

न्यू इंडिया की नई खादी

अध्यक्ष मनोज कुमार ने खादी के गहन महत्व पर प्रकाश डाला, जो हमारी राष्ट्रीय विरासत का प्रतीक है और स्वतंत्रता के लिए भारत के संघर्ष के दौरान इस की महत्वपूर्ण भूमिका रही है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में खादी ने पिछले 9 वर्षों में अपने ‘स्वर्ण युग’ में प्रवेश करते हुए पुनर्जागरण का अनुभव किया है. पिछले वित्त वर्ष में, खादी और ग्रामोद्योग उत्पादों से 1.34 लाख करोड़ रुपए से अधिक का राजस्व प्राप्त हुआ. इस के अलावा चालू वित्त वर्ष में खादी ने 9.5 लाख से अधिक नई नौकरियां पैदा कर के एक ऐतिहासिक उपलब्धि प्राप्त की है.

उन्होंने जोर दे कर कहा कि खादी के इस नए जोश के साथ, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘न्यू इंडिया की नई खादी’ को न केवल कपड़ों के प्रतीक के रूप में, बल्कि एक ‘हथियार’ के रूप में भी गढ़ा है. यह हथियार गरीबी के खिलाफ, कारीगरों को सशक्त बनाने, खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने, महिला सशक्तीकरण को बढ़ावा देने और बेरोजगारी को खत्म करने की दिशा में है. मोदी ने साल 2014 से अपने लोकप्रिय रेडियो कार्यक्रम ‘मन की बात’ के माध्यम से देश के नागरिकों को खादी और ग्रामोद्योग उत्पादों को अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया. इस प्रयास का प्रभाव उल्लेखनीय रहा है, खादी उद्योग एक परिवर्तनकारी पुनरुत्थान के दौर से गुजर रहा है. जो वर्ष 2013-14 से पहले एक गिरावट वाला क्षेत्र था, उस ने अब एक नए पुनरुद्धार का अनुभव किया है. ग्रामीण कारीगरों की दक्षता को न केवल मान्यता मिल रही है, बल्कि उन्हें अपने शिल्प कौशल के लिए उचित पारिश्रमिक भी मिल रहा है. कारीगरों को आर्थिक रूप से ऊपर उठाने की इस प्रतिबद्धता के अनुरूप, केवीआईसी ने ‘खादी राखी’ को बाजार में पेश किया है. हम रक्षा बंधन के अवसर के करीब आते हैं. यह न केवल आप की कलाई पर खादी रक्षासूत बांधने का अवसर है, बल्कि ग्रामीण भारत की महिला कारीगरों के चेहरे पर एक नई मुसकान लाने का मौका भी है.

कुम्हारों को विद्युतचालित चाक और कारीगरों को टूलकिट

दौसा : खादी और ग्रामोद्योग आयोग (केवीआईसी), सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम मंत्रालय, भारत सरकार के अध्यक्ष मनोज कुमार ने दौसा की सांसद जसकौर मीणा की उपस्थिति में ग्रामोद्योग विकास योजना के अंतर्गत 120 कुम्हारों को बिजली से चलने वाले चाक और 40 कारीगरों को टर्नवुड क्राफ्ट मशीनों और टूलकिट का वितरण किया.

दौसा के गांव बालाहेडी में आयोजित वितरण कार्यक्रम को संबोधित करते हुए मुख्य अतिथि सांसद, दौसा जसकौर मीणा ने कहा कि खादी और ग्रामोद्योग आयोग ने पिछले 9 वर्षों में ऐतिहासिक काम किया है. ग्रामीण भारत में रोजगार सृजन के क्षेत्र में केवीआईसी महत्वपूर्ण भूमिका निभा कर आत्मनिर्भर भारत के सपने को साकार कर रहा है.

कार्यक्रम में केवीआईसी के उत्तर क्षेत्र के सदस्य नागेंद्र रघुवंशी उपस्थित रहे. केवीआईसी के अध्‍यक्ष मनोज कुमार ने कहा कि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में जिस खादी को महात्मा गांधी ने स्वदेशी आंदोलन के दौरान ब्रिटिश हुकूमत के विरुद्ध संघर्ष का सब से मजबूत हथियार बनाया, उसी खादी को ‘आधुनिक भारत के शिल्पकार’ और ‘आत्मनिर्भर भारत के रचनाकार’ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले 9 वर्षों में गरीबी निर्मूलन, कारीगर सशक्तीकरण, खाद्य सुरक्षा, महिला सशक्तीकरण और बेरोजगारी उन्मूलन का सब से सशक्त, सक्षम और सफल ‘अस्त्र और शस्त्र’ बनाया है. उन्हीं के नेतृत्व में पिछले वित्त वर्ष में इतिहास रचते हुए खादी और ग्रामोद्योगी उत्पादों का कारोबार तकरीबन 1.34 लाख करोड़ रुपए को पार कर गया.

केवीआईसी ने 9 लाख, 54 हजार, 899 नए रोजगार का सृजन किया

अध्यक्ष मनोज कुमार के अनुसार, साल 2014 के बाद सिर्फ 9 वर्षों में खादी आज ‘ग्लोबल ब्रांड’ बन चुकी है. नीति आयोग के आंकड़े का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि पिछले 5 सालों में 13.5 करोड़ लोग भारत में गरीबी से बाहर निकले हैं. गांवों में लोगों को गरीबी रेखा से बाहर निकालने में खादी ने अहम योगदान दिया है. केवीआईसी ने वित्तीय वर्ष 2022-23 के दौरान कुल 9 लाख, 54 हजार, 899 नए रोजगार का सृजन किया है.

पूरे देश में कुम्हारों को बांटे 25,000 से अधिक बिजली से चलने वाले चाक

लाभार्थियों और गांव वालों को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि केवीआईसी द्वारा ग्रामोद्योग विकास योजना के अंतर्गत भारतीय परंपरागत उद्योगों के कामगारों को टूल्स एवं मशीनरी का वितरण किया गया, जिस से परंपरागत उद्योगों के कामगारों की आय में वृद्धि से उन के जीवनस्‍तर में व्‍यापक सुधार हो. अभी तक पूरे देश में कुम्हारों को 25,000 से अधिक बिजली से चलने वाले चाक बांटे जा चुके हैं, जिस से कुम्हारों की आय में तीन से चार गुना की बढ़ोतरी हुई है.

उन्होंने आगे कहा कि हमें मेक इन इंडिया के साथसाथ मेक फौर वर्ल्ड के मंत्र के साथ आगे बढ़ना है, तभी लोकल टू ग्लोबल विजन साकार हो पाएगा.

कारीगरों को बांटे उपकरण

वितरण कार्यक्रम में कुम्हार सशक्तीकरण योजना के अंतर्गत राजस्थान के दौसा, अलवर, भरतपुर और करौली के 120 कुम्हारों को बिजली से चलने वाले चाक प्रदान किए गए. सभी लाभार्थियों को 10 दिन की निःशुक्ल ट्रेनिंग दी गई है. साथ ही, टर्नवुड क्राफ्ट के 40 कारीगरों को 20 दिन की निःशुल्क ट्रेनिंग के बाद मशीनों और टूलकिट का वितरण किया गया है, जिस के माध्यम से अब ये कारीगर 25 से 35 हजार रुपए तक प्रति महीना आजीविका कमा सकेंगे.

लाभार्थियों को संबोधित करते हुए अध्यक्ष मनोज कुमार ने कहा कि राजस्थान में 158 खादी की संस्थाएं कार्यरत हैं, जिस के माध्यम से 30 हजार से अधिक लोगों को रोजगार मिल रहा है. प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम (पीएमईजीपी) के अंतर्गत राजस्थान में अभी तक 30,083 पीएमईजीपी की इकाइयां स्थापित की गई हैं, जिन्हें भारत सरकार की तरफ से 860 करोड़ रुपए की मार्जिन मनी सब्सिडी का वितरण किया गया है.

दौसा में पिछले 6 वर्षों में तकरीबन 670 इकाइयों की स्थापना हुई है, जिन को मार्जिन मनी सब्सिडी के रूप में 17.47 करोड़ रुपए की वित्तीय सहायता दी गई है, जिस के माध्यम से 5360 लोगों को रोजगार मिल रहा है.

अध्यक्ष मनोज कुमार के अनुसार, पीएमईजीपी के अंतर्गत पूरे देश में तकरीबन 22 हजार करोड़ रुपए की मार्जिन मनी सब्सिडी का वितरण किया जा चुका है. वित्त वर्ष 2008-09 से 2022-23 के बीच 8.69 लाख परियोजनाओं की स्थापना कर तकरीबन 50 लाख से अधिक नए रोजगार का अवसर प्रदान किया गया. वितरण कार्यक्रम में राजस्थान सरकार और केवीआईसी के अधिकारी और कर्मचारी मौजूद रहे.

पशुधन की सेहत का रखें ध्यान

नई दिल्ली: केंद्रीय पशुपालन और डेयरी सचिव, भारत सरकार, अल्का उपाध्याय की अध्यक्षता में उत्तरी राज्यों के पशुपालन और डेयरी विभाग के अपर मुख्य सचिवों/प्रधान सचिवों/सचिवों और संबंधित निदेशकों के साथ एक क्षेत्रीय समीक्षा बैठक हुई, जिस में विभाग के कार्यक्रमों/योजनाओं के क्रियान्वयन में हुई प्रगति को ले कर विचारविमर्श किया गया.

समीक्षा बैठक में पशुपालन और डेयरी विभाग, भारत सरकार के अपर सचिव, पशुपालन आयुक्त, संयुक्त सचिवों, मुख्य लेखा नियंत्रक, सलाहकार (सांख्यिकी) और अन्य वरिष्ठ अधिकारियों ने भाग लिया.

अल्का उपाध्याय ने बैठक में विशेषतौर पर इस बात का उल्लेख किया कि पशुधन क्षेत्र वर्ष 2014-15 से 2021-22 के दौरान (स्थिर मूल्यों पर) साल दर साल लगातार 7.67 फीसदी की उच्च मिश्रित वार्षिक वृद्धि दर (सीएजीआर) से बढ़ता रहा है.

उन्होंने आगे कहा कि यह डेयरी, गोवंश, कुक्कटपालन, बकरी/सुअरपालन जैसे पशुधन क्षेत्र के मानदंडों में स्पष्ट देखा जा सकता है. पशुधन क्षेत्र ने वर्ष 2021-22 में समूचे कृषि और संबंधित क्षेत्र के सकल मूल्य वर्धन यानी जीवीए में (स्थिर मूल्यों पर) 30.19 फीसदी के आसपास योगदान किया है.

बीमारी से बचाव के टीकाकरण की समीक्षा

केंद्रीय सचिव अल्का उपाध्याय ने बैठक में भारत सरकार द्वारा राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में अमल में लाई जा रही सभी पशुपालन और डेयरी योजनाओं की भौतिक और वित्तीय प्रगति की समीक्षा की.

उन्होंने राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के पास बकाया पड़ी राशि को खर्च करने पर जोर दिया. साथ ही, पुराने डेटा उन्नयन, भारतकोष के जरीए भुगतान पर ब्याज आदि से जुड़े मुद्दों का समाधान प्राथमिकता के साथ करने पर भी जोर दिया, ताकि राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों को भारत सरकार चालू वित्त वर्ष के दौरान कोष जारी कर सके.

उन्होंने देशभर में पशुओं में खुरपकामुंहपका यानी एफएमडी और ब्रुसेल्ला बीमारी से बचाव के टीकाकरण, चलतीफिरती पशु चिकित्सा इकाई (एमवीयूएस), दूध और चारे की स्थिति आदि को ले कर भी समीक्षा की.

उन्होंने कहा कि स्वास्थ्य सेवा प्रावधानों के जरीए पशुधन की देखभाल और सुरक्षा भी विभाग के लिए गौर करने का विषय है.

उन्होंने राज्यों को एफएमडी, ब्रुसेल्ला और पीपीआर टीकाकरण तेज करने की सलाह दी. पशुधन और डेयरी किसानों को योजनाओं का लाभ बेहतर ढंग से बताने के लिये केंद्र के साथसाथ राज्य सरकारों और जिला अधिकारियों की सक्रिय भागीदारी के साथ जागरूकता अभियान चलाने पर जोर दिया.

पशु आहार में क्रांति

नई दिल्ली : विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग यानी डीएसटी के तहत संचालित प्रौद्योगिकी विकास बोर्ड (टीडीबी), मैसर्स केमलाइफ इनोवेशन प्राइवेट लिमिटेड, जिस का मुख्‍यालय बेंगलुरु, कर्नाटक के साथ अपनी रणनीतिक साझेदारी की घोषणा की है. यह साझेदारी “जानवरों के लिए आहार में उपयोग किए जाने वाले बायो-ट्रेस खनिजों का व्यावसायीकरण और विनिर्माण” नामक परियोजना को आगे बढ़ाने के लिए एक महत्वपूर्ण पहल है. यह एक दूरदर्शी प्रयास, जो प्रभावशाली वैज्ञानिक नवाचार को बढ़ावा देने के लिए प्रौद्योगिकी विकास बोर्ड की प्रतिबद्धता के साथ मेल खाता है.

दीर्घकालिक प्रगति को बढ़ावा देने वाले नवीन समाधानों की वर्तमान आवश्यकताओं के बीच इस सहयोग का एक महत्वपूर्ण आयाम राष्ट्रीय पशुधन मिशन के साथ सामंजस्य पूरी तरह से अनुरूप है और यह भारत के रणनीतिक ढांचे की आधारशिला है. इस मिशन का उद्देश्य पशुधन उत्पादकता को बढ़ाना, चारा और चारा संसाधनों को अनुकूल बनाना और पशुधन प्रबंधन में प्रौद्योगिकी को शामिल करना है.

इस राष्ट्रीय रोडमैप के अनुरूप प्रौद्योगिकी विकास बोर्ड और मैसर्स केमलाइफ इनोवेशन प्राइवेट लिमिटेड ने एक प्रवर्तनकारी यात्रा शुरू की है, जो “जानवरों के भोजन में उपयोग किए जाने वाले बायो-ट्रेस खनिजों के व्यवसायीकरण और विनिर्माण” परियोजना में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है. प्रौद्योगिकी विकास बोर्ड का अटूट समर्थन इस की 84 लाख रुपए की प्रतिबद्धता से प्रमाणित होता है और जो 142.60 लाख रुपए की कुल परियोजना लागत में महत्वपूर्ण योगदान है.

इस अवसर पर बोलते हुए टीडीबी के सचिव राजेश कुमार पाठक ने कहा, “हम इनोवेशन प्राइवेट लिमिटेड को उन के अग्रणी प्रयास में समर्थन मुहैया करा कर बहुत हर्ष महसूस कर रहे हैं. यह परियोजना तकनीकी नवाचार और टिकाऊ विनिर्माण का उदाहरण है, जो टीडीबी के लक्ष्यों के साथ सहजता से संरेखित है. जैसेजैसे यह परियोजना आगे बढ़ती है, यह पशु पोषण को बेहतर करने, पशुधन और मुरगीपालन और डेयरी उत्पादन को बदलाव करने के साथ ही नए पर्यावरण-अनुकूल विनिर्माण मानक स्थापित करती जाएगी. यह सहयोग राष्ट्रीय पशुधन मिशन के उद्देश्यों के अनुरूप है, जो पशु आहार में नवीन जैव-ट्रेस खनिजों के माध्यम से पशु पोषण के महत्वपूर्ण पहलुओं को संबोधित करता है.

नवप्रवर्तन और दीर्घकालिकता से प्रेरित मैसर्स केमलाइफ इनोवेशन प्राइवेट लिमिटेड पशु आहार के लिए बायो-ट्रेस खनिजों के निर्माण में क्रांति लाने का विजन रखता है. यह विशेष रूप से पशुधन और पोल्ट्री/डेयरी क्षेत्रों को लक्षित करता है. अभूतपूर्व ‘त्वरित प्राकृतिक जैव परिवर्तन’ यानी एएनबीओटी प्रौद्योगिकी पर आधारित यह परियोजना एक मालिकाना पोषक माध्यम पेश करती है, जो पर्यावरणीय स्थिरता के सिद्धांतों के साथ सहजता से रेखांकित करते हुए मामूली परिस्थितियों में केलेशन प्रतिक्रियाओं की सुविधा प्रदान करती है.

इस कोशिश के केंद्र में हाईड्राक्सी अमीनो अम्‍ल से भरपूर प्यूपा प्रोटीन का साधारण उपयोग है, जो यीस्ट हाइड्रोलाइजेट और मेथिओनिन हाईड्राक्सी एनालौग (एमएचए) जैसे आयातित लिगैंड का एक किफायती विकल्प प्रदान करता है. यह रणनीतिक बदलाव, न केवल आर्थिक व्यवहार्यता को बढ़ाता है, बल्कि भारत के आत्मनिर्भरता के लक्ष्य के अनुरूप भी है. गुणवत्ता के प्रति इस कंपनी की अटूट प्रतिबद्धता, विश्व स्तर पर मान्यताप्राप्त बेंचमार्क – सम्मानित एफएएमआई-क्यूएस प्रमाणन के साथसाथ पशु चारा योग्य गुणवत्ता और आहार सुरक्षा के लिए वैश्विक प्रमाणन हाईड्राक्सी की प्राप्ति से प्रमाणित होती है. तृतीय पक्ष सत्यापन उन के विकसित उत्पाद ‘मिनबायोजेन’ की प्रभावकारिता की पुष्टि करता है, जो अनुकूलता और आशाजनक परिणाम प्रदर्शित करता है.

नवाचार के दायरे से परे यह परियोजना रेशम कीट प्यूपा भोजन का पुनरुत्पादन कर के चक्रीय अर्थव्यवस्था में योगदान देती है, जिस से रेशम उद्योग द्वारा उत्पन्न अपशिष्ट को कम किया जाता है. फार्मेक्सिल में कंपनी की सदस्यता निर्यात संभावनाओं को बढ़ाती है, जिस से आर्थिक वृद्धि को बढ़ावा मिलता है. रेशम उद्योग से स्थानीय रूप से उपलब्ध उपउत्पादों का लाभ उठाने से आर्थिक व्यवहार्यता बढ़ती है, जो आयात प्रतिस्थापन उद्देश्यों और संभावित विदेशी मुद्रा बचत के साथ संरेखित होती है.

वैश्विक प्रमाणपत्रों द्वारा सुदृढ़ उन का व्यापक दृष्टिकोण, हरित रसायन विज्ञान सिद्धांतों और टिकाऊ संसाधन उपयोग के प्रति उन की प्रतिबद्धता का उदाहरण देता है. मिन बायो जेन जैसे नवोन्मेषी उत्पाद, पशुधन स्वास्थ्य और विकास को अनुकूलित करने में जैव ट्रेस खनिजों – जस्ता, तांबा, मैंगनीज, लोहा और सेलेनियम-अपरिहार्य आवश्यकता को संबोधित करते हैं.

उपयुक्त रूप से मिन बायो जेन नामक यह उत्पाद जैव उपलब्धता और स्थिरता को सहजता से एकीकृत करता है, जो नवाचार और पर्यावरण प्रबंधन के प्रति उन के समर्पण का प्रतीक है.

‘ वेजिटेबल कैफे’ में पहुंचे 3 सौ से ज्यादा किसान

बस्तर : 20 अगस्त, 2023 को ‘वेजिटेबल कैफे’ के भव्य आयोजन में बस्तर संभाग के सब्जियां उगाने वाले 300 से ज्यादा प्रगतिशील किसान शामिल हुए.

बस्तर संभाग के मुख्यालय जगदलपुर में बिनाका हेरिटेज सभागार में आयोजित यह सफल आयोजन बस्तर के प्रगतिशील किसानों के समूह के साथ मिल कर कृषि रिसर्च एवं कृषि रसायन क्षेत्र के अग्रणी संस्थान बायर क्राप साइंस के द्वारा आयोजित किया गया.

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि देश के सब से ज्यादा पढ़ेलिखे और 5 बार देश का सर्वश्रेष्ठ किसान का अवार्ड प्राप्त डा. राजाराम त्रिपाठी थे, कार्यक्रम की अध्यक्षता इंडस वेस्ट मैगा फूड पार्क के सीईओ डा. एसके मिश्रा ने की.

कार्यक्रम के पहले चरण में मृदा स्वास्थ्य व पौधे की सेहत को ध्यान में रखते हुए संस्थान के एग्रोनोमिस्ट विवेकानंद गुप्ता ने नेमाटोड व अन्य मृदाजनित रोगों से बचाव के लिए बायर के आधुनिक तकनीक के उत्पाद वेलम प्राइम व एवर्गोल एक्सटेंड के बारे में विस्तृत रूप से जानकारी दी.

संस्थान के शस्य विज्ञान विशेषज्ञ अभिनंदन कदम ने सब्जियों में आने वाले रोग व कीट के बारे में विस्तृत जानकारी दी. साथ ही, रोग व कीट प्रबंधन के बारे में भी बताया.

क्षेत्र के क्षेत्रीय महाप्रबंधक बीएम सिंह व कैंपेन एक्टिविटी मैनेजर मृत्युंजय शर्मा ने संस्था के द्वारा होने वाली टिकाऊ खेती के प्रयासों के बारे में विस्तृत जानकारी दी.

लंच के बाद कार्यक्रम के दूसरे चरण में इस किसान गोष्ठी में विशेष रूप से आमंत्रित अतिथि भारत के जैविक खेती के पुरोधा विख्यात किसान वैज्ञानिक डा. राजाराम त्रिपाठी ने भी भाग लिया.

Farming Newsसंस्थान के उच्चाधिकारियों द्वारा डा. राजाराम त्रिपाठी का स्वागत किया गया और कृषि क्षेत्र में उन के कामों को देखते हुए सम्मानित किया गया.

अंचल के किसानों द्वारा भी डा. राजाराम त्रिपाठी को देखनेसुनने को ले कर जबरदस्त उत्साह देखा गया. उन्होंने अपने उद्बोधन में कहा कि अब टिकाऊ खेती का युग है. वैज्ञानिकों और खादबीज की दवा बनाने वाली कंपनियों को अब टिकाऊ खेती के अनुरूप उत्पादन बनाने की दिशा में तेजी से काम करना होगा. टिकाऊ खेती में संस्थान के सकारात्मक योगदान की सराहना करते हुए किसानों को खेती की आधुनिक तकनीक एवं डिजिटल टैक्नोलौजी अपनाने की सलाह दी.

डा. राजाराम त्रिपाठी ने कार्यक्रम में भाग लेने आए इलाके के सभी किसानों को कोंडागांव के मां दंतेश्वरी हर्बल फार्म एवं रिसर्च सेंटर’, कोंडागांव पर आ कर एक एकड़ में 10 लाख रुपए तक की सालाना आमदनी देने वाली काली मिर्च (मां दंतेश्वरी काली मिर्च-16) की खड़ी फसल को देखने और एक एकड़ जमीन से 50 एकड़ का उत्पादन कैसे लिया जा सकता है, इस के व्यावहारिक पहलुओं को देखनेसमझने के लिए आमंत्रित किया.

उन्होंने यह भी कहा कि बस्तर के किसानों को वह काली मिर्च और हर्बल की खेती की फ्री ट्रेनिंग और मार्केटिंग की सुविधा देने को तैयार हैं.

इस किसान गोष्ठी में किसानों के लिए छत्तीसगढ़ की सब से बड़ी सब्जी व फल प्रसंस्करण यूनिट इंडस वेस्ट मैगा फूड पार्क की भी महत्वपूर्ण उपस्थिति रही, जिस के सीईओ डा. एसके मिश्रा ने किसानों को भरोसा दिया कि यह प्रोसैसिंग यूनिट अधिक उत्पादन की स्थिति में भी किसानों के उत्पादों को उपयोग कर उन को सुरक्षा मुहैया कराती है.

बस्तर किसान कल्याण संघ के अध्यक्ष राजेश रौय ने आगे भी इस तरह के कार्यक्रमों के आयोजनों पर जोर दिया और किसानों को सही जानकारी के साथ आधुनिक पद्धति से खेती करने की सलाह दी.

कार्यक्रम के अंतिम चरण में बायर संस्थान के क्षेत्रीय महाप्रबंधक बीएम सिंह के द्वारा कार्यक्रम को अभूतपूर्व रूप से सफल बनाने के लिए अतिथियों, प्रतिभागियों, किसानों और अपने संस्थान की पूरी टीम को धन्यवाद दिया. किसान गोष्ठी के इस नए प्रारूप वेजिटेबल कैफे को अंचल के सभी किसानों के द्वारा बहुत सराहा गया.

फार्म एन फूड एग्री अवार्ड में किसानों का हुआ सम्मान

हमारे देश में किसानों को खेतीबारी से जुड़ी तकनीकी और व्यावहारिक जानकारी देने वाली पत्रिकाओं में दिल्ली प्रैस के गौरवशाली प्रकाशनों में शुमार पाक्षिक पत्रिका ‘फार्म एन फूड’ का स्थान सब से ऊपर है. यही वजह है कि इस पत्रिका के लेखक को कृषि पत्रकारिता के क्षेत्र में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद द्वारा साल 2019 में कृषि क्षेत्र में प्रिंट मीडिया हिंदी की श्रेणी में दिए जाने वाले कृषि अनुसंधान और विकास में उत्कृष्ट पत्रकारिता के लिए चौधरी चरण सिंह अवार्ड प्रदान किया जा चुका है.

‘फार्म एन फूड’ को यह सम्मान यों ही नहीं मिला है, बल्कि ‘फार्म एन फूड’ पत्रिका सरल भाषा में अपने शोधपरक व व्यावहारिक लेखों को न केवल किसानों तक पहुंचाने का काम करती है, बल्कि समयसमय पर राज्य लैवल, रीजनल लैवल और नैशनल लैवल के एग्री अवार्ड समारोहों का आयोजन कर खेती में लीक से हट कर अच्छा करने वाले किसानों, कृषि वैज्ञानिकों, कृषि संस्थानों, कृषि पत्रकारों आदि को सम्मानित कर उन के हौसले को आगे बढ़ाने का काम भी करती रही है.

इसी कड़ी में गांधी व लालबहादुर शास्त्री की जयंती के अवसर पर 2 अक्तूबर के दिन आचार्य नरेंद्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय, कुमारगंज, अयोध्या द्वारा संचालित  कृषि  विज्ञान केंद्र, सोहांव, बलिया में और दिल्ली प्रैस द्वारा केंद्र के सभागार में रीजनल लैवल फार्म एन फूड एग्री अवार्ड, 2021 का आयोजन किया गया.

कार्यक्रम की शुरुआत कृषि विज्ञान केंद्र के अध्यक्ष प्रोफैसर रवि प्रकाश मौर्य ने आए हुए अतिथियों का स्वागत करते हुए बताया कि जिन किसानों का चयन रीजनल फार्म एन फूड एग्री अवार्ड के लिए किया गया है, उन्होंने खेती में जोखिम को कम करते हुए कम लागत में अधिक उत्पादन लेने का काम किया है.

उन्होंने बताया कि जिन किसानों ने खेती, बागबानी, मत्स्यपालन, मधुमक्खीपालन, डेरी, मशरूम, बकरीपालन इत्यादि के जरीए अपनी और अपने परिवार के साथ अन्य लोगों की आय में इजाफा करने में कामयाबी पाई है, उन का चयन विभिन्न मापदंडों के आधार पर पूरी पारदर्शिता के साथ किया गया है, जिस से इन किसानों को राष्ट्रीय स्तर पर मिलने वाले विभिन्न पुरस्कारों के लिए प्रोत्साहित किया जा सके.

Farming Awardsअतिथियों ने कहा

इस मौके पर मुख्य अतिथि के रूप में मौजूद आगा खान रूरल सपोर्ट प्रोग्राम इंडिया के बिहार प्रदेश के रीजनल मैनेजर सुनील पांडेय ने कहा कि ‘फार्म एन फूड’ की भूमिका वास्तव में सराहनीय है.

उन्होंने आगे बताया कि ‘फार्म एन फूड’ द्वारा बीते साल समस्तीपुर में आगा खान रूरल सपोर्ट प्रोग्राम इंडिया के साथ मिल कर छोटे और मझोले किसानों के लिए राज्य लैवल का अवार्ड आयोजित किया गया था. इस से अवार्ड में शामिल किसानों का हौसला काफी बढ़ा है.

उन्होंने यह भी बताया कि एकेआरएसपी-आई, बिहार के मुजफ्फरपुर, समस्तीपुर, दरभंगा, वैशाली, सारण, सीतामढ़ी और नालंदा  में पेयजल और स्वच्छता, जल प्रबंधन, बकरीपालन, खेती की गतिविधियों को बढ़ावा देने, सिंचाई, महिला बचत समूहों को बढ़ावा देने, नवीकरणीय ऊर्जा, आंगनबाड़ी, कोविड राहत के काम  व प्राथमिक शिक्षा सहित युवाओं के लिए कौशल विकास के मसले पर काम कर रही है.

उन्होंने यह भी बताया कि बिहार में एकेआरएसपी-आई छोटे और मझोले किसानों की आय बढ़ाने के लिए सभी जरूरी प्रयास कर रही है.

बिहार में एकेआरएसपी-आई के कृषि प्रबधंक डा. बसंत कुमार ने छोटे और मझोले किसानों द्वारा उन्नत तरीके से किए जा रहे बकरीपालन की सफलता से वहां मौजूद किसानों को अवगत कराया.

उन्होंने बताया कि गांव में ही पशु सखियों के जरीए पशुपालकों को स्थानीय लैवल पर सेवाएं मिलने से पशुपालन में आने वाले जोखिम में काफी कमी आई है.

बस्ती जिले के कृषि विज्ञान केंद्र में वैज्ञानिक प्रसार राघवेंद्र विक्रम सिंह ने बताया कि कृषि के क्षेत्र में कृषि विज्ञान केंद्रों की अहम भूमिका है. साथ ही, कृषि की नई तकनीकों के लिए छोटे व मझोले किसानों को बढ़ावा देना है.

दिल्ली प्रैस से ‘फार्म एन फूड’ के प्रभारी भानु प्रकाश राणा ने कहा कि कृषि में नईनई तकनीकियों की जानकारी के लिए सभी को कृषि यानी खेतीकिसानी से संबंधित पत्रपत्रिकाएं जरूर पढ़नी चाहिए. पत्रपत्रिकाएं ही वे सशक्त माध्यम हैं, जो कृषि वैज्ञानिकों/किसानों द्वारा व सरकारी योजनाओं की जानकारी देने का काम करती हैं.

बस्ती के किसानों को भी मिला सम्मान

Farming Awardsबस्ती जिले में खेती में विशेष उपलब्धियों को प्राप्त करने वाले प्रगतिशील किसानों में विजेंद्र बहादुर पाल, अरविंद सिंह, अमित विक्रम त्रिपाठी, राम मूर्ति मिश्र व अहमद अली को भी फार्म एन फूड एग्री अवार्ड से नवाजा गया.

इन संस्थानों और कृषि वैज्ञानिकों को मिला अवार्ड

इस अवसर पर बिहार में खेती के जरीए किसानों की आय बढ़ाने के लिए आगा खान रूरल सपोर्ट प्रोग्राम इंडिया, बिहार के रीजनल मैनेजर सुनील पांडेय व कृषि प्रबंधक डा. बसंत कुमार, सिद्धार्थ फार्मर प्रोड्यूसर कंपनी लिमिटेड, बस्ती को भी सम्मानित किया गया.

नंदनी नगर पीजी कालेज के समाज कार्य विभाग के अध्यक्ष डा. केके. शुक्ल को भी सम्मानित किया गया. डा. केके. शुक्ल ने कहा कि उन्होंने समाज कार्य के विद्यार्थियों में कृषि क्षेत्र के स्थायित्व व सतत विकास के लिए विभिन्न विषयों पर विद्यार्थियों को प्रोजैक्ट का अवसर उपलब्ध कराया है. इस से कृषि क्षेत्र में आने वाले बदलाव के बारे में पता चलता है और उस पर किसानों को आवश्यक सुझाव देने में मदद मिलती है.

इस आयोजन की सफलता में प्रो. डा. रवि प्रकाश मौर्य का विशेष योगदान रहा. उन्होंने इस अवार्ड के लिए पूरी तन्मयता के साथ लोगों से समन्वय कर इसे सफल बनाया.

बलिया के इन किसानों को मिला अवार्ड

  1. अशोक तिवारी, जिराबस्ती, हनुमानगंज, 2. श्रीप्रकाश वर्मा, ब्रह्माइन, हनुमानगंज, 3. नवीन कुमार पांडेय, नसीराबाद, सागरपाली, हनुमानगंज, 4. धीरेंद्र कुमार शर्मा, अमडरिया, रतसर, गड़वार, 5. सुधीर कुमार सिंह, चकरशुल, गड़वार, 6. टुनटुन यादव, रामगढ़, सिंहपुर, गड़वार, 7. अजय कुमार पांडेय, मेढौराकला, टुटवारी, सोहांव, 8. संतोष कुमार सिंह, दौलतपुर, सोहांव, 9. रामाकांत सिंह, रामापुर, सोहांव, 10. अखिलेश सिंह, देउली, बांसडीह रोड, दुबहड़, 11. ब्रह्मानंद तिवारी, वघौली, बांसडीह रोड, दुबहड़, 12. जितेंद्र नारायण सिंह, रुस्तमपुर, बांसडीह रोड, दुबहड़, 13. रंगनाथ मिश्र, सोनवानी, बेलहरी, 14. हरिदेव प्रसाद वर्मा, बिगही, बेलहरी, 15. अजय कुमार पांडेय, समरथपाह, सोनवानी, बेलहरी, 16. मणिशंकर तिवारी, चकगिरधर, बैरिया, 17. राज मंगल ठाकुर, नौरंगा, बैरिया, 18. शंकर दयाल वर्मा, बैरिया, 19. हीरालाल मौर्य, जमीनबटी, मुरली छपरा, 20. सत्येंद्र यादव, भगवानपुर, मुरली छपरा, 21. सत्येंद्र नाथ पांडेय, भोजापुर, सावन छपरा, मुरली छपरा, 22. तारकेश्वर सिंह, हरपुर, डुमरिया, रेवती, 23. संजय वर्मा, उदहा, रेवती, 24. भगवान वर्मा, दिनहा, रेवती, 25. जय प्रकाश पांडेय, मिरगिरी टोला, बांसडीह, 26. रितिका दूबे, मिरगिरी टोला, बांसडीह, 27. किरन सिंह, खरौनी, बांसडीह 28. हरेराम चौरसिया, मनियर, 29. विनोद उपाध्याय, मनियर, 30. सत्यप्रकाश उपाध्याय, मनियर, 31. आनंद प्रकाश सिंह, सुलतानपुर, भरखरा, बेरुआरबारी, 32. सुशील कुमार श्रीवास्तव, करमर, बेरुआरबारी, 33. निर्भय कुमार उपाध्याय, कुनिहा, भरखरा, बेरुआरबारी, 34. ललन वर्मा, खेजुरी, पन्दह, 35. प्रेमचंद्र वर्मा, खेजुरी, पन्दह, 36. गुलाबचंद प्रजापति, खसरा, पन्दह, 37. बाबूराम वर्मा, जजौली, नवानगर, 38. सुरेश चंद प्रसाद, बघुड़ी, नवानगर, 39. हरिनारायण वर्मा, हडसर, दुहाविहरा, नवानगर 40. हवलदार सिंह, नगहर, रसड़ा,41. वीरबहादुर वर्मा, सिसवार खुर्द, सिसवार कला, रसड़ा, 42. राधेश्याम वर्मा, कमतैला, रसड़ा, 43. इंद्रजीत वर्मा, कुकरहा, चुघड़ा, चिलकहर, 44. तारकेश्वर सिंह, हजौली, चिलकहर, 45. सुनील वर्मा, ऊंचेणा, चिलकहर,46. राकेश सिंह, मलप हरसेनपुर, नगरा, 47. डा. राना प्रताप सिंह, सुलतानपुर, नगरा, 48. मनमोहन सिंह, मलप, हरसेनपुर, नगरा, 49. सुरेंद्र कुमार, तिनई खीदीरपुर, पलीया खास, सीपर, 50. कमलेश कुमार सिंह, जजौली, जजौली-2, सीपर, 51. अरविंद सिंह, शाहपुर टिटिहा, किडिहरापुर, सीपर.

Farming Awards ये कृषि विशेषज्ञ हुए सम्मानित

  1. प्रो. रवि प्रकाश मौर्य, सोहांव, बलिया, 2. डा. प्रेमलता श्रीवास्तव, सोहांव, बलिया, 3. डा. सोमेंद्र नाथ, सोहांव, बलिया, 4. डा. मनोज कुमार, सोहांव, बलिया, 5. प्रो. डीके सिंह, कोटवा, आजमगढ़, 6. डा. आरके सिंह, कोटवा, आजमगढ़ 7. डा. आरपी सिंह, कोटवा, आजमगढ़, 8. डा. राजेशचंद्र वर्मा, अंकुशपुर, गाजीपुर-2, 9. डा. जय प्रकाश सिंह, अंकुशपुर गाजीपुर-2, 10. राजीव कुमार सिंह, केवीके, जौनपुर-1, 11. डा. संदीप कुमार, केवीके, हैदरगढ़, बाराबंकी, 12. डा. रामकेवल, केवीके, बक्सर, बिहार, 13. डा. शिव कुमार सिंह, केवीके, गाजीपुर-1, 14. डा. अशोक कुमार सिंह, बलिया, 15. डा. मुनवेंद्र पाल, बलिया, 16. डा. संजीत कुमार सिंह, बलिया.

गाजरघास एक ज्वलंत समस्या

उदयपुर : महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर के अनुसंधान निदेशालय की अखिल भारतीय समन्वित खरपतवार नियंत्रण अनुसंधान परियोजना के तहत गाजरघास जागरूकता सप्ताह का आयोजन 16 अगस्त से ले कर 22 अगस्त, 2023 तक राजस्थान कृषि महाविद्यालय में किया जा रहा है.

कार्यक्रम के पहले दिन यानी 16 अगस्त, 2023 को मुख्य अतिथि डा. अजीत कुमार कर्नाटक, कुलपति, महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर ने अपने उद्बोधन में बताया कि गाजरघास एक अत्यंत ही दुष्प्रभावी पादप है एवं देश की एक ज्वलंत समस्या है. इस के लिए जनजागृति की आवश्यकता है. पूर्व में यह हमारे देश में नही था, परंतु विगत कुछ वर्षों में खाद्यान्न के आयात के माध्यम से ये हमारे देश में आ गया और वर्तमान में एक विकट समस्या के रूप में जड़ें जमा चुका है.

उन्होंने आगे कहा कि गाजरघास से पर्यावरण व सभी तरह की फसलों को नुकसान है. इस की रोकथाम के लिए जनसाधारण को जागरूक करना एवं इस के प्रभावी नियंत्रण के लिए योजनागत निरंतर प्रयास अत्यंत जरूरी है.

Farmingकार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि डा. ज्ञानेंद्र सिंह, निदेशक, भारतीय गेहूं एवं जौ अनुसंधान संस्थान, करनाल ने कहा कि गाजरघास बहुत ही तेज गति से कृषि को प्रभावित कर रहा है. इस की रोकथाम के लिए बहुत अधिक मात्रा में खर्चे, महंगे शाकनाशी व इस के खात्मे के लिए काफी मेहनत भी करनी होती है.

उन्होंने आगे बताया कि गाजरघास से कई प्रकार के रोग होते हैं, जिस में त्वचा एवं सांस संबंधी एलर्जी प्रमुख है. गाजरघास की बढ़वार बहुत तीव्र गति से होती है, जिस के चलते अन्य प्रकार के पौधे, वनस्पति उत्पन्न नहीं हो पाते हैं, जिस से जैव विविधता को बहुत बड़ी हानि होती है.

कार्यक्रम में अखिल भारतीय समन्वित खरपतवार नियंत्रण अनुसंधान परियोजना प्रभारी एवं निदेशक अनुसंधान डा. अरविंद वर्मा ने गाजरघास के हानिकारक प्रभावों का विस्तृत वर्णन किया एवं गाजरघास के नियंत्रण के लिए कई प्रकार के यांत्रिक रासायनिक नियंत्रण के बारे में जानकारी दी.

इस अवसर पर उन्होंने कृषि छात्रों को संबोधित करते हुए कहा कि गाजरघास उन्मूलन के लिए पूरे साल क्रियाशील रहने का आवाह्न किया और कहा कि गाजरघास जागरूकता सप्ताह की जगह अब समय आ गया है, इस के उन्मूलन को अभियान के रूप में लेना चाहिए. साथ ही, उन्होंने बताया कि अल्पकाल में ही गाजरघास पूरे देश में एक भीषण प्रकोप की तरह लगभग 35-40 मिलियन हेक्टेयर भूमि पर फैल चुकी है.

गाजरघास से होने वाले नुकसान के प्रति जागरूक रहने का स्पष्ट संदेश देते हुए उन्होंने कहा कि विगत वर्षों से इस कार्यक्रम को संचालित किया जाता रहा है, जिस के फलस्वरूप महाविद्यालय परिसर में गाजरघास के संक्रमण में सार्थक कमी आई है, पर इस कार्यक्रम की सार्थकता व्यापक क्षेत्र के परिपेक्ष्य में देखी जानी चाहिए. अतः इस दिशा में हमें निरंतर अथक प्रयास करने होंगे.

इस अवसर पर राजस्थान कृषि महाविद्यालय, उदयपुर के अधिष्ठाता डा. एसएस शर्मा, निदेशक प्रसार शिक्षा, डा. आरए कौशिक, सीडीएफटी के अधिष्ठाता डा. लोकेश गुप्ता, डीआरआई डा. बीएल बाहेती, भारतीय गेहूं एवं जौ अनुसंधान परियोजना, करनाल के परियोजना समन्वयक डा. रतन तिवारी, विशेषाधिकारी डा. विरेंद्र नेपालिया, क्षेत्रीय अनुसंधान निदेशक डा. अमित त्रिवेदी एवं उपनिदेशक अनुसंधान डा. रवि कांत शर्मा, महाविद्यालय के समस्त विभागाध्यक्ष, समस्त शिक्षकगण एवं 120 विद्यार्थियों ने भाग लिया.

इस अवसर पर डा. अरविंद वर्मा, परियोजना प्रभारी द्वारा लिखित गाजरघास उन्मूलन एक फोल्डर का विमोचन किया गया. तदनुपरांत प्रसार शिक्षा विभाग व पुस्तकालय के आसपास के क्षेत्र में समस्त उपस्थित अधिकारियों एवं छात्रछात्राओं द्वारा गाजरघास उखाड़ कर श्रमदान किया.

उत्तर प्रदेश के 137 गावों में होगी चकबंदी : क्या है हकीकत

पिछले दिनों उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 29 जिलों के 137 गांवों में चकबंदी की अनुमति दी. इस चकबंदी के आदेश के अनुसार, 74 गांवों में से 51 गांवों में पहली बार और 23 गांवों में दूसरी बार चकबंदी होगी.

यहां यह जानकारी के लिए बता दें कि जमीन की चकबंदी एक ऐसी सरकारी प्रक्रिया है, जिस में खेत की जमीन को नक्शे के अनुसार खेतों को समायोजित किया जाता है, जिस में किसानों के चक के पास चकरोट यानी रास्ता भी निकाला जाता है. चकबंदी सरकारी दस्तावेजों के हिसाब से की जाती है. इस में कई ऐसे किसानों का फायदा भी हो जाता है, जिस की जमीन का हिस्सा किसी अन्य ने अपने कब्जे में ले रखा हो. जिस किसान के खाते में कितनी जमीन सरकारी दस्तावेजों में है, वह नाप कर निशान लगा दिए जाते हैं. कुछ किसान इधरउधर खेतों की मेंड़ काट कर खेतों को गैरकानूनी तरीके से बढ़ा लेते हैं. उन की जमीन को भी सरकारी रिकौर्ड के अनुसार नपत होती है.

ध्यान देने वाली बात है कि जमीन की इस नापजोख में कई गैरकानूनी जमीनें भी पकड़ में आती हैं. इसलिए कुछ जमींदार जैसे लोगों को झटका भी लगता है, तो कुछ रसूखदार लोग पटवारी या चकबंदी अधिकारियों के साथ तालमेल कर उन से गैरकानूनी फायदा भी उठाने की कोशिश करते हैं.

ये बात सभी किसान जानते हैं कि चकबंदी से जहां किसानों के लिए चकरोड, खलिहान, चारागाह आदि के लिए भूमि उपलब्ध हो जाती है, वहीं गांवों के विकास के लिए भी जमीन उपलब्ध हो जाती है. ग्रामीण आबादी के लिए, गांव के विकास की अनेक योजनाओं के लिए भी चकबंदी में जमीन की व्यवस्था की जाती है.

कितने समय बाद होती है चकबंदी

चकबंदी का काम एक लंबे अरसे बाद होता है. इस काम में कई दशक का समय भी लग सकता है. लेकिन ये ग्राम विकास के लिए अच्छी पहल होती है. किसानों की जमीन सरकारी रिकौर्डों में भी दुरुस्त हो जाती है और अपनी जमीन की माप भी पूरी हो जाती है.

हालांकि कुछ किसानों को शिकायत भी रहती है कि उन की जमीन कम हो गई है, जबकि ऐसा नहीं है. सरकारी रिकौर्ड में उन की जमीन का लेखाजोखा दर्ज होता है. उसी के अनुसार नाप होती है. लेकिन चकबंदी के समय किसानों को जागरूक जरूर रहना चाहिए. जरूरत पड़े तो चकबंदी के समय किसी माहिर जानकार को जरूर साथ रखें, जिस से जहां कुछ समझ न आए तो वह चकबंदी अधिकारी या लेखपाल से नापजोख आदि का हिसाब समझ कर आप को समझा सके.

फिलहाल जो चकबंदी का आदेश जारी हुआ है, उस में प्रदेश के मुरादाबाद, बिजनौर, रायबरेली, रामपुर, संतकबीरनगर, बरेली, बस्ती, बदायूं, बलरामपुर, कानपुर देहात, सहारनपुर, सोनभद्र, देवरिया, वाराणसी, जौनपुर, गोंडा के 52 ग्रामों के प्रथम चरण की चकबंदी प्रक्रिया में सम्मलित करने की अनुमति दी गई है.

द्वितीय चरण की चकबंदी प्रक्रिया के लिए मैनपुरी, सिद्धार्थनगर, प्रतापगढ़, शाहजहांपुर, सुल्तानपुर, देवरिया, जौनपुर, अंबेडकर नगर, अमरोहा, अलीगढ़, गोंडा, प्रयागराज, बरेली, बस्ती, बुलंदशहर, मऊ, मथुरा, गोरखपुर, गाजीपुर, सोनभद्र जिलों की विभिन्न तहसील, ब्लौकों के 85 ग्रामों के लंबित चकबंदी प्रस्ताव पर शुरू करने की अनुमति दी गई है.

नैनो यूरिया और डीएपी पर कार्यशाला, किसानों को मिली किट

बस्ती : 17 अगस्त 2023. जनपद बस्ती के विकासखंड बहादुरपुर में नैनो यूरिया एवं नैनो डीएपी आधारित विकासखंड स्तरीय सहकारी कार्यशाला का आयोजन किया गया. इस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में अध्यक्ष प्रधान संघ अरविंद सिंह, विशिष्ट अतिथि विकासखंड अधिकारी, बहादुरपुर सुरेंद्र नाथ चौधरी,सहायक विकास आधिकारी (स) विकासखंड, बहादुरपुर, मिट्ठु राम वर्मा, सहायक विकास अधिकारी (आईएसबी) संतोष कुमार, सहायक विकास अधिकारी, सहकारिता,विकासखंड कुदरहा मनोज कुमार चतुर्वेदी, गुलाब श्रीवास्तव (मंडल अध्यक्ष भाजपा), जियाउद्दीन सिद्दीकी (क्षेत्र प्रबंधक, इफको, बस्ती), इफको बाजार, डुहवा मिश्र से मयंक शुक्ल एवं साधन सहकारी समिति के अध्यक्षगण/सचिवगण समेत 70 की संख्या में प्रगतिशील किसान उपस्थित रहे.

कार्यक्रम में क्षेत्र प्रबंधक, इफको, बस्ती ने पर्यावरण हितैषी इफको नैनो यूरिया और इफको नैनो डीएपी के प्रयोग करने की विधि, मात्रा और सावधानियों के बारे में विस्तार से जानकारी दी. उन्होंने किसानों को नैनो यूरिया 4 एमएल प्रति लिटर की दर से 35 से 40 दिन की फसल में छिड़काव करने का सुझाव दिया और नैनो डीएपी का बीज शोधन 5 एमएल प्रति किलोग्राम बीज की दर से एवं जड़ शोधन 5 एमएल प्रति लिटर पानी में करने का सुझाव दिया. साथ ही, नैनो डीएपी का पत्तों पर छिड़काव 3 से 4 एमएल प्रति लिटर 35 से 40 दिन की फसल होने पर करने का सुझाव दिया.

Nanoउन्होंने आगे बताया कि यूरिया के स्थान पर इफको नैनो यूरिया और डीएपी के स्थान पर नैनो डीएपी का प्रयोग करने से खेत की मिट्टी व पर्यावरण दोनों ही सुरक्षित रहते हैं. इस के साथसाथ उन्होंने जैव उर्वरक एनपीके एवं जैविक उपघटक के बार में विस्तार से जानकारी दी.

सहायक विकास अधिकारी, सहकारिता, बहादुरपुर, मिट्ठू राम वर्मा ने बताया कि सामान्य यूरिया एवं डीएपी मिट्टी के माध्यम से जड़ से अवशोषित हो कर पौधे में जाता है, जिस से उर्वरक कूवत कम होती है, जबकि नैनो उर्वरक सीधे पत्तियों के जरीए अवशोषित होने से उर्वरक की कूवत ज्यादा हो जाती है, जिस से गुणवत्तायुक्त अधिक पैदावार मिलती है.

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि विकासखंड अधिकारी सुरेंद्र नाथ चौधरी ने कहा कि सरकार की नीति के तहत आत्मनिर्भर भारत और आत्मनिर्भर कृषि तभी हो सकती है, जब किसानों को कम लागत लगा कर अच्छी पैदावार मिल सके.

कार्यक्रम के अंत में प्रश्नोत्तरी कार्यक्रम के तहत अनेक किसानों को नैनो यूरिया किट उपहार के रूप में दी गई.