हरित क्रांति (श्वेत क्रांति) बनाम गुलाबी क्रांति

यदि हम आजादी के बाद कृषि इतिहास की ओर नजर घुमाएं तो इस हकीकत को मानना पड़ेगा कि नेहरू युग के अंतिम साल में खाद्यान्न को ले कर देश में संकट इसलिए बढ़ा, क्योंकि केंद्र की पंचवर्षीय योजनाओं में कृषि पर कोई खास ध्यान नहीं दिया गया था. इस वजह से राज्यों में दंगे शुरू हो गए थे. अमेरिकी नीति ‘फूड ऐंड पीस’ के हिस्से के तौर पर उस समय भारत में पीएल 480 अनाज का सहारा लिया गया था.

देश को खाद्यान्न संकट से उबारने के लिए जवाहरलाल नेहरू के बाद प्रधानमंत्री के तौर पर लाल बहादुर शास्त्री ने ‘जय जवान जय किसान’ का नारा दे कर किसानों के साथ जवानों को भी हरित क्रांति के लिए तैयार किया.

60 के दशक का यह दौर उत्पादकता को बढ़ाने के मद्देनजर गेहूं  (बाद में धान पर भी) उत्पादन पर खास जोर दिया गया और 80 के दशक तक भारत खाद्यान्न के मामले में आत्मनिर्भर ही नहीं हो गया, बल्कि निर्यात भी करने लगा.

इन में वैज्ञानिक डा. एमएस स्वामीनाथन के प्रयासों का भी हाथ था. इसे देश की पहली हरित क्रांति के रूप में जाना जाता है. यह (हरित क्रांति) 60 के दशक से ले कर 80 के दशक के मध्य तक पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश से ले कर भारत के दक्षिणी राज्यों तक फैल गई. लेकिन वक्त के साथ हरित क्रांति के व्यावसायीकरण करने की बात भी सामने आई. कृषि से जुड़े परंपरागत मूल्य एवं संस्कृति विलुप्त हुए. धरती से जल दोहन और रासायनिक जहरीले उर्वरकों के बेतहाशा इस्तेमाल की वजह से धरती और खाद्यान्न दोनों जहरीले हुए.

यदि उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण पर आधारित आर्थिक नीतियों के कारण भारत की पिछले 30 सालों में आर्थिक विकास की गति तेजी से बढ़ी है, तो साथ में इस हकीकत को भी स्वीकार किया जाना चाहिए कि तथाकथित आर्थिक विकास का फायदा भारत के उस अभिजात्य वर्ग को मिला, जो पहले से ही बेहतर जिंदगी जी रहा था.

गौरतलब है जो आर्थिक विकास उदारीकरण और निजीकरण की नीतियों को लागू करने के बाद हुआ, उस में ऐसी भी नीतियां हैं, जो कई तरह के सवाल खड़ा करती हैं. उन में कुछ ऐसे सवाल भी हैं, जो सीधे आम आदमी, पर्यावरण, पशुधन के खात्मे से ताल्लुक रखते हैं.

कृषि से ताल्लुक रखने वाली श्वेत क्रांति और हरित क्रांति को ले कर भी सवाल खड़े किए जाते रहे हैं. इस के पीछे केंद्र और राज्य सरकारों की गलत नीतियां रही हैं.

भापजा की सरकार ने साल 2014 में सत्ता संभालते ही नई हरित क्रांति की बात कही, वहीं पर मांस निर्यात को बढ़ावा देने के लिए एक बड़ी रकम बूचड़खानों को भी दी. यह भाजपा की उस नीति से मेल नहीं खाती, जो भारतीय परंपरा और संस्कृति को बढ़ावा देने वाली है.

Meat Exportयदि आंकड़ों पर जाएं तो साल 2014 में जब राजग सरकार सत्ता में आई उस ने मांस निर्यात और बूचड़खानों के लिए अपने पहले ही बजट में 15 करोड़ की सब्सिडी दी और टैक्स में छूट का विधिवत प्रावधान किया. इस से समझा जा सकता है कि भाजपा की नीतियां मांस निर्यात के मामले में जैसी कांग्रेस की थीं, वैसी ही हैं.

आंकड़ों की तह में जाएं, तो पता चलता है कि साल 2003-04 में भारत से 3.4 लाख टन गायभैंस के मांस का निर्यात हुआ, जो साल 2012-13 में बढ़ कर 18.9 लाख टन हो गया. यह बढ़ोतरी साल 2014-15 में 24 लाख टन पहुंच गई यानी 14 फीसदी की बढ़ोतरी हुई. वहीं साल 2019-20 में 1,030.41 मीट्रिक टन मांस का निर्यात किया गया, जिस की कीमत तकरीबन 16.32 करोड़ रुपए थी.

आंकड़े बताते हैं कि दुनिया में जितना मांस का निर्यात होता है, उस में भारत अकेले ही तकरीबन 58.7 फीसदी निर्यात करता है. गौरतलब है की भारत 65 देशों को मांस का निर्यात करता है. इन में सऊदी अरब, कुवैत, मिस्र, मलयेशिया, फिलीपींस, म्यांमार, नेपाल, लाइबेरिया और वियतनाम प्रमुख हैं. विदेशों में बढ़ते मांस निर्यात की वजह से भारत में जो मांस कभी 30 रुपए प्रति किलोग्राम बिकता था, वह आज 300 रुपए प्रति किलोग्राम बिक रहा है.

मांस निर्यात से सब से ज्यादा असर दूध उत्पादन से ताल्लुक रखने वाली श्वेत क्रांति पर पड़ा है. जब 13 जनवरी, 1970 को श्वेत क्रांति की शुरुआत हुई, तब इसे आम आदमी के रोजगार, आर्थिक स्थिति में सुधार और बेहतर स्वास्थ्य से जोड़ कर देखा गया.

पिछले 40 सालों में जिस तरह से मांस निर्यात के जरीए विदेशी पैसा कमाने की होड़ लगी हुई है, उस ने श्वेत और हरित क्रांति को रोकने या खत्म करने का काम किया है.

गौरतलब है विदेशों में बढ़ते मांस के निर्यात का सीधा असर दूध उत्पादन और घटते पशुधन पर पड़ रहा है.

गौरतलब है कि पशुधन भारतीय कृषि का आधार रहा है. गैरकानूनी बूचड़खानों की वजह से पशुधन पर सीधे असर पड़ा है जिस से पशुपालन बहुत ही खर्चीला काम हो गया है.

घटते दुधारू जानवरों की वजह से पिछले 20 सालों में दूध का दाम तेजी से बढ़ा है. आम आदमी जो कोई दुधारू जानवर नहीं पाल सकता, वह महंगे दूध खरीदने की हालत में नहीं होता है.

Milkगौर करने वाली बात यह है कि बिना किसी सरकारी मदद के देश में दूध का 70 फीसदी कारोबार असंगठित ढांचा संभाल रहा है. देश में दूध उत्पादन में 96 हजार सहकारी संस्थाएं जुड़ी हुई हैं. 14 राज्यों में अपनी दुग्ध सहकारी संस्थाएं हैं. लेकिन मांस निर्यात की वजह से पशुधन के खात्मे का असर घटते दूध उत्पादन पर साफ दिखाई पड़ रहा है. इस असंगठित क्षेत्र (दूध उत्पादन) में 7 करोड़ से ज्यादा लोग जुड़े हुए हैं, जिस में अशिक्षित कारोबारी ज्यादा हैं.

यदि मांस निर्यात पर सरकारी रोक न लगी या गैरकानूनी बूचड़खानों के खिलाफ कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो संभव है कि कुछ सालों में ही इस असंगठित क्षेत्र से जुड़े लोगों को किसी और क्षेत्र में कारोबार के लिए मजबूर हो कर आना पड़े.

मांस निर्यात के आईसीएआर के आंकड़े बताते हैं कि हर साल तकरीबन 9.12 लाख जो भैंसें बूचड़खानों में कत्ल कर दी जाती हैं, यदि वे भैंसें कत्लखाने में जाने से बच जाएं, तो 2,95,50,000 टन गोबर की खाद बनाई जा सकती है. इस से 39.40 हेक्टेयर कृषि भूमि को खाद मुहैया कराई जा सकती है. इस से जहां जैविक खेती को बढ़ावा मिलेगा, वहीं महंगी रासायनिक खादों से भी छुटकारा मिल जाएगा.

दूसरी तरफ  यदि देखा जाए तो इनसान और जानवर एकदूसरे के पूरक हैं. इनसान यदि एक जानवर को पालता है, तो वह जानवर उस के पूरे परिवार को पालता है. इतना ही नहीं, बंदर, रीछ, घोड़े, बैल, सांड़, भैंसा और गाय इनसान की जिंदगी के अहम हिस्से हैं.

आज भी लाखों लोगों की आजीविका इन जानवरों पर आधारित है. राजस्थान में एक कहावत है, कहने को तो भेड़ें पालते हैं, दरअसल भेड़ें ही इन को पालती हैं. इन के दूध, घी और ऊन आदि से हजारों परिवारों की जीविका चलती है. भेड़ों के दूध को वैज्ञानिकों ने फेफड़े के रोगियों के लिए बहुत ही फायदेमंद बताया है.

‘बांबे ह्यूमैनेटेरियन लीग’ के अनुसार, जानवरों से हर साल दूध, खाद, ऊर्जा और भार ढोने वाली सेवा द्वारा देश को अधिक आय होती है. इस के अलावा मरने के बाद इन की हड्डियों और चमड़े से जो आय होती है, वह भी करोड़ों रुपए में. यांत्रिक कत्लखानों को बंद कर दिया जाए, तो लाखों जानवरों का वध ही नहीं रुकेगा, बल्कि उस में इस्तेमाल होने वाला 70 करोड़ लिटर से अधिक पानी की बचत होगी, जो कत्लखानों की धुलाई में इस्तेमाल होता है.

ऐसे एकदो नहीं, बल्कि तमाम उदाहरण हैं, जिन से मांस निर्यात से होने वाले नुकसान का पता चलता है. आज जरूरत इस बात की है कि दुधारू जानवरों और भार ढोने वाले जानवरों को उन की उपयोगिता के मुताबिक उन का उपयोग किया जाए और उन्हें कत्लखाने भेजने की अपेक्षा उन को परंपरागत कामों में इस्तेमाल किया जाए. इस से जहां दुधारू जानवरों की संख्या बढ़ेगी, वहीं दूध और कंपोस्ट खाद की समस्या से भारत को नजात मिलेगी.

Meatयदि महज भेड़ों को ही बूचड़खानों में भेजने की जगह उन का परंपरागत इस्तेमाल (जब तक वे जीवित रहें) किया जाए, तो 600 करोड़़ रुपए का दूध मिलेगा, 450 करोड़ रुपए की खाद, 50 करोड़ रुपए की ऊन प्राप्त होगी. इसी तरह गाय के वध को रोक देने से सालभर में जो लाभ होगा, वह हैरानी में डालने वाला है.

आंकड़ों के अनुसार, एक गाय के गोबर से सालभर में तकरीबन 17,000 रुपयों की खाद प्राप्त होगी. रोजाना यांत्रिक कत्लखानों में 60,000 गाय कटती हैं जिन के गोबर मात्र से प्रतिवर्ष लगभग एक अरब रुपए की आमदनी हो सकती है. दूध, घी, मक्खन और मूत्र से होने वाले फायदे को जोड़ दिया जाए, तो अरबों रुपए की आय केवल गाय के वध को रोक देने से देश को हो सकती है.

ये आंकड़े और तथ्य यह बताते हैं कि देश की खुशहाली आम आदमी की बेहतरी के साथसाथ पर्यावरण की रक्षा के लिए गुलाबी क्रांति की नहीं, बल्कि निरापद श्वेत और हरित क्रांति की जरूरत है. इस से परंपरागत व्यवसायों को बढ़ावा मिलेगा और मांस निर्यात जैसे अहिंसा प्रधान देश में हिंसा वाले व्यवसाय से छुटकारा भी मिल सकेगा.

स्मार्ट सिंचाई के लिए फ्लेक्सी स्प्रिंकलर किट

नेटाफिम इंडिया ने छिड़काव के जरीए फसलों की सिंचाई से जुड़ी जरूरतों को पूरा करने के लिए ‘फ्लेक्सी स्प्रिंकलर किट’ को बाजार में उतारा है. वर्ष 2022 तक इस उपकरण के जरीए 15,000 हेक्टेयर जमीन को सिंचाई के दायरे में शामिल करने का लक्ष्य रखा है.

यह किट सब्जियों और खेतों में उगाई जाने वाली विभिन्न प्रकार की फसलों के लिए उपयुक्त है. इस में मुख्य रूप से गेहूं, बाजरा, ज्वार, सोयाबीन, मूंगफली आदि फसलें हैं.

फ्लेक्सी स्प्रिंकलर किट भारत में इस प्रकार का पहला उपकरण है, जो फसलों की पैदावार को अधिकतम करने के लिए पूरे खेत में पानी के एकसमान वितरण को सुनिश्चित करता है. यह उपकरण यूवी किरणों के साथसाथ हर तरह की जलवायु का सामना करने में सक्षम है. इसी वजह से यह उत्पाद बेहद टिकाऊ है और लंबे समय तक बिना किसी परेशानी के इस का इस्तेमाल किया जा सकता है. कई नलिकाओं वाला यह पोर्टेबल और सुविधाजनक पाइपिंग सिस्टम सिंचाई के लिए बेहद स्मार्ट और टिकाऊ समाधान है.

इस उत्पाद की प्रमुख विशेषताओं में से एक यह है कि काफी हलके और मजबूत होने के कारण किसानों के लिए इसे इंस्टौल करना और इस्तेमाल में लाना बेहद आसान हो जाता है. इसे खेतों में आसानी से बिछाया जा सकता है और उपयोग के बाद एकदम सुरक्षित तरीके से निकाला जा सकता है.

इस के अलावा इस किट को अपने घर सहित किसी भी स्थान पर उपयोग में लाया जा सकता है और इस्तेमाल के बाद इस के सभी कलपुरजों को खोल कर कहीं भी रखा जा सकता है, क्योंकि इसे रखने के लिए बेहद

कम जगह की जरूरत होती है. इसी वजह से यह किसानों के लिए लंबे समय तक चलने वाला और मेहनत बचाने वाला उत्पाद है.

रणधीर चौहान, मैनेजिंग डायरैक्टर, नेटाफिम इंडिया ने कहा, ‘‘नेटाफिम में हम किसानों को अत्याधुनिक समाधान उपलब्ध कराने की दिशा में लगातार काम करने और पूरी दुनिया में पानी की कमी की समस्या से निबटने के अपने वादे पर कायम हैं. भारतीय किसानों के लिए ‘पोर्टेबल ड्रिप किट’ को सफलतापूर्वक पेश करने के बाद फ्लेक्सी स्प्रिंकलर किट को लौंच करते हुए हमें बेहद खुशी हो रही है. अत्याधुनिक तकनीक वाला यह नया उपकरण उन सभी किसानों के लिए बेहद मददगार है, जो आसान तरीके से खेतों में समान रूप से पानी का वितरण करना चाहते हैं.’’

नेटाफिम के डीलर के माध्यम से यह किट पूरे भारत में उपलब्ध है.

पोर्टेबल ड्रिप सिंचाई किट

भारत के छोटे व मझोले किसानों के लिए स्मार्ट सिंचाई की एक पोर्टेबल ड्रिप सिंचाई किट किफायती दाम पर मौजूद है. पोर्टेबल ड्रिप किट की कीमत 21,000-25,000 रुपए है. किट नेटाफिम के डीलर नैटवर्क के माध्यम से देशभर में उपलब्ध हैं. हलके वजन और पोर्टेबल ड्रिप किट को आसानी से लगाया जा सकता है.

पोर्टेबल ड्रिप किट सब्जियों, खीरा, केला और पपीता सहित सभी प्रकार की फसल किस्मों के लिए उपयुक्त है.

 पानी की खपत होगी कम : किट का प्रमुख पार्ट फ्लेक्सनेट है. यह एक लीक प्रूफ फ्लेक्सिबल मेनलाइन और मैनिफोल्ड पाइपिंग सौल्यूशन है, जो सटीक जल वितरण समाधान प्रदान करता है. इस की वजह से पानी की खपत कम होती है. साथ ही, ड्रिप सिंचाई के माध्यम से फसलों को पूरा पानी मिलता है.

पोर्टेबल ड्रिप किट में फील्ड इंस्टौलेशन और संचालन के लिए सभी आवश्यक पार्ट शामिल हैं, जिस में स्क्रीन फिल्टर, फ्लेक्सनेट पाइप, ड्रिपलाइन और कनैक्टर शामिल हैं.

प्राकृतिक खेती पर प्रशिक्षण

उदयपुर : 4 नवंबर, 2023. महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर के अनुसंधान निदेशालय में संस्थागत विकास कार्यक्रम के अंतर्गत ‘‘प्राकृतिक खेती से स्थायित्व कृषि एवं पारिस्थितिकी संतुलन” पर 2 दिवसीय प्रशिक्षण का समापन हुआ. इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में डा. एसके शर्मा, सहायक महानिदेशक, मानव संसाधन, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली ने अपने उद्बोधन में कहा कि प्राकृतिक कृषि की महत्ता को देखते हुए प्राकृतिक खेती पर स्नातक छात्रों के लिए विशेष पाठ्यक्रम पूरे राष्ट्र में आरंभ किया जा रहा है.

उन्होंने आगे कहा कि प्राकृतिक खेती से मृदा स्वास्थ्य एवं पारिस्थितिकी संतुलन अच्छा रहेगा, जिस से कृषि में स्थायित्व आएगा. इस के लिए सभी विश्वविद्यालयों के वैज्ञानिकों, शिक्षकों, विषय विशेषज्ञों एवं विद्यार्थियों के लिए प्रशिक्षण आयोजित किए जा रहे हैं.

उन्होंने यह भी बताया कि महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय का प्राकृतिक खेती में वृहद अनुसंधान कार्य एवं अनुभव होने के कारण यह विशेष दायित्व विश्वविद्यालय को दिया गया है.

विदित है कि राजस्थान कृषि महाविद्यालय के विद्यार्थियों के लिए गोविंद वल्लभ पंत कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के सस्य विज्ञान विभाग के विभागाध्यक्ष एवं आचार्य डा. महेंद्र सिंह पाल ने विद्यार्थियों को प्राकृतिक कृषि में सस्य क्रियाएं एवं प्राकृतिक खेती के उद्देश्य दृष्टि एवं सिद्धांत पर अपना उद्बोधन दिया.

प्राकृतिक खेती के विषय में पूरे विश्व की दृष्टि भारत की ओर है. ऐसे में पूरे विश्व से वैज्ञानिक एवं शिक्षक प्रशिक्षण के लिए भारत आ रहे हैं. ऐसे में हमारा नैतिक दायित्व बनता है कि हम उत्कृष्ट श्रेणी के प्रशिक्षण आयोजित करें.

कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि डा. पीके सिंह, परियोजना प्रभारी आईडीपी, नाहेप ने रसायनों के अविवेकपूर्ण उपयोग से होने वाली आर्थिक, पर्यावरण व मानव स्वास्थ्य को होने वाली हानियों के बारें में बताया.

उन्होंने आगे यह भी कहा कि सभी को खाद्य सुरक्षा प्रदान करना एवं प्रकृति व पारिस्थितिक कारकों को कृषि में समावेश कर के ही पूरे कृषि तंत्र को ‘‘शुद्ध कृषि’’ में रूपांतरित किया जा सकता है.

डा. पीके सिंह ने कहा कि प्राकृतिक खेती को अपनाने के साथसाथ हमें बढ़ती आबादी के लिए पर्याप्त खाद्य उत्पादन को दृष्टि में रखना चाहिए.

Organic Farmingडा. एसएस शर्मा, अधिष्ठाता, राजस्थान कृषि महाविद्यालय, उदयपुर ने कहा कि भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने प्राकृतिक खेती के महत्व को देखते हुए एवं इसे कृषि में स्थापित करने के लिए पाठ्यक्रम का निर्माण किया गया है, जिसे पूरे राष्ट्र में प्राकृतिक कृषि का 180 क्रेडिट का पाठ्यक्रम स्नातक विद्यार्थियों को पढ़ाया जाएगा.

उन्होंने आगे यह भी कहा कि प्राकृतिक खेती को सफल रूप में प्रचारित व प्रसारित करने के लिए सब से पहले जरूरत है कि इस की गूढ़ जानकारी को स्पष्ट रूप से अर्जित किया जा सके, अन्यथा जानकारी के अभाव में प्राकृतिक खेती को सफल रूप से लागू करना असंभव होगा.

डा. एसएस शर्मा ने बताया कि इस प्राकृतिक खेती के पाठ्यक्रम के द्वारा स्नातक छात्र तैयार होंगे, जो किसानों तक इसे सही रूप में प्रचारित करेंगे.

उन्होंने प्राकृतिक खेती पर विभिन्न अनुसंधान परियोजनाएं चालू करने की आवश्यकता पर जोर दिया, वहीं डा. अरविंद वर्मा, निदेशक अनुसंधान एवं कोर्स डायरेक्टर ने अतिथियों का स्वागत किया. साथ ही, प्राकृतिक खेती एवं जैविक खेती के बारे में विद्यार्थियों को विस्तृत रूप से बताया.

डा. अरविंद वर्मा ने विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए कहा कि प्राकृतिक खेती में प्रक्षेत्र पर उपलब्ध संसाधनों का पूर्ण उपयोग किया जाता है, जबकि जैविक खेती में रसायनमुक्त जैविक पदार्थों का बाहर से समावेश किया जा सकता है. उन्होंने बताया कि प्राकृतिक खेती में जीवामृत एवं बीजामृत के साथ नीमास्त्र एवं ब्रह्मास्त्र का प्रयोग किया जाता है.

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद की मीटिंग में किसानों का हित

अविकानगर : भाकृअनुप-केंद्रीय भेड़ एवं ऊन अनुसंधान संस्थान, अविकानगर में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली की क्षेत्रीय समिति-6 की 27वीं बैठक 3 नवंबर, 2023 को संस्थान के सभागार में सचिव डेयर (डिपार्टमेंट औफ एग्रीकल्चर एजुकेशन एंड रिसर्च) एवं महानिदेशक (डायरेक्टर जनरल) डा. हिमांशु पाठक की अध्यक्षता में आयोजित किया गया.

क्षेत्रीय समिति-6 की बैठक में विशिष्ट अथिति डा. उमेशचंद गौतम, उपमहानिदेशक प्रसार, डा. धीर सिंह, निदेशक, एनडीआरआई, करनाल, जीपी शर्मा, सयुक्त सचिव, (वित्त) आईसीएआर, डा. अनिल कुमार, एडीजी, डा. पीएस बिरथाल, निदेशक, एनआईएपी नई दिल्ली व परिषद के विभिन्न विषय के एडीजी, राजस्थान, गुजरात राज्यों व केंद्र शासित प्रदेश दमन व दीव, दादर एवं नागर हवेली के सेक्रेटरी व कमिश्नर और कृषि वेटरनरी विश्वविद्यालय के कुलपति, गवर्निंग बौडी के सदस्यों, अधिकारी और वैज्ञानिक उपस्थिति रहे.

Rabbitकार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे डा. हिमांशु पाठक अविकानगर में विभिन्न सुविधा जैसे देश के किसानों के लिए फार्मर होस्टल में नवीनीकृत प्रशिक्षण लेक्चर्स हाल, सेक्टर-9 पर नवीनीकृत भेड़ों के शेड, टैक्नोलौजी पार्क में राष्ट्रीय ध्वज उच्च स्तंभ, टेक्सटाइल मैन्युफैक्चरिंग व टेक्सटाइल कैमिस्ट्री विभाग में मोटी या अनुपयोगी भेड़ की ऊन से केरटिन प्रोटीन का विगलन, फार्म सेक्शन के लिए नया ट्रैक्टर और देश के भेड़बकरीपालकों, किसानों के लिए कृत्रिम गर्भाधान हेतु चलतीफिरती वैन/लैब आदि का उद्घाटन करते हुए मोटे पूंछ की डुंबा भेड़, खरगोश की विभिन्न नस्लें, सिरोही बकरी और संस्थान के पशु आनुवांशिकी व प्रजनन विभाग में स्थित विभिन्न भेड़ की नस्लों (अविशान, अविकालीन, मालपुरा, मगरा, चोकला, मारवाड़ी, गरोल और पाटनवाड़ी) के उन्नत पशुओं की प्रदर्शनी का अवलोकन किया.

डा. हिमांशु पाठक ने अविकानगर संस्थान की गतिविधियों की प्रशंसा की व ज्यादा से ज्यादा किसानों तक संस्थान की सेवा को बढ़ाने के लिए संस्थान निदेशक डा. तोमर से आग्रह किया.

डा. हिमांशु पाठक द्वारा क्षेत्रीय समिति के सभागार से पहले जोन के संस्थानों की प्रदर्शनी का अवलोकन करते हुए कृषि कार्य में ड्रोन की भूमिका प्रदर्शन का भी अवलोकन किया. डा. हिमांशु पाठक को गार्ड औफ ओनर के साथ केंद्रीय विद्यालय, अविकानगर के नन्हेमुन्ने बच्चों द्वारा उन का जोरदार स्वागतसत्कार किया गया.

सभागार में निदेशक डा. अरुण कुमार तोमर द्वारा महानिदेशक, उपमहानिदेशक, निदेशक और सभी डेलेगेट्स का स्वागतसत्कार राजस्थान परंपरा से किया गया.

Tractorकार्यक्रम में डा. पीएस बिरथाल द्वारा क्षेत्र की उत्पादन, समस्या और आने वाली चुनौती के बारे में विस्तार से लेक्चर्स दिया गया, जिस का पिछली मीटिंग की सिफारिश को पूरा करने की विस्तृत रिपोर्ट डा. अरुण कुमार तोमर द्वारा प्रस्तुत किया गया. इस के बाद गुजरात, राजस्थान, दमन, दीव, दादर एवं नागर हवेली की कृषि, पशुपालन, पोल्ट्री, फिशरीज, बागबानी, फोरस्ट्री, एजुकेशन, प्रसार गतिविधियों की समस्या, चुनौतियों आदि पर महानिदेशक की अध्यक्षता में एकएक कर के विस्तार से चर्चा की गई.

कार्यक्रम में भौतिक रूप से उपस्थित और औनलाइन माध्यम से जुड़े विषय विशेषज्ञों द्वारा उपलब्ध विकल्प को बताया गया. कुछ मुद्दे पर भविष्य के हिसाब से शोध चुनौती, एग्रीकल्चर उत्पादों के निर्यात की समस्या एवं भविष्य की अपार संभावना के ऊपर चर्चा की गई. पशुपालन, हार्टिकल्चर, राष्ट्रीय पशुधन मिशन, मार्केटिंग, और्गेनिक खेती, जैविक खाद, पोस्ट हार्वेस्टिंग प्रोसैसिंग, समस्या पर उपलब्ध हल के द्वारा जागरूकता कैंप आदि पर क्षेत्रीय मीटिंग में विस्तार से चर्चा की गई.

Sheep

मीटिंग के दौरान महानिदेशक डा. हिमांशु पाठक एवं अन्य मंच पर विराजमान अतिथि ने अविकानगर संस्थान द्वारा भेड़ की महीन ऊन और ऊंट के फाइबर से निर्मित हलकी ऊनी जैकेट और विभिन्न प्रकाशन का विमोचन भी किया.

 

अंत में महानिदेशक डा. हिमांशु पाठक द्वारा संबोधन के क्रम में बताया गया कि जिन समस्या का समाधान यहां उपस्थिति किसी भी संस्थान पर उपलब्ध है, उस को 15 दिन के भीतर संबंधित को उपलब्ध करावा दिया जाए और जिस किसी समस्या का समाधान यदि देश की किसी संस्थान के पास हो, उस को भी एक महीने में संबंधित समस्याग्रस्त संस्थान को उपलब्ध करा दिया जाए. जिन समस्याओं का अभी समाधान नहीं है एवं वर्तमान में उबर रही भविष्य की चुनौती के हिसाब से हल करना है. उन का दोबारा परिषद के माध्यम से अलग से मीटिंग कर के संबंधित संस्थान को जिम्मेदारी देते हुए शोध प्रोजैक्ट तैयार करवा कर हल किया जाए.

इस मीटिंग को पूरा करने में डा. सीपी स्वर्णकार, डा. आरसी शर्मा, डा. अजय कुमार, डा. गणेश सोनावने, डा. रणधीर सिंह भट्ट, डा. एसके संख्यान, डा. अजित महला, डा. अरविंद सोनी, डा. लीलाराम गुर्जर, डा. सत्यवीर सिंह डांगी, मुख्य प्रशासनिक अधिकारी इंद्रभूषण कुमार, राजकुमार मुख्य वित्त अधिकारी, भीम सिंह, तरुण कुमार जैन, सुनील सैनी, मीडिया प्रभारी डा. अमर सिंह मीना आदि संस्थान के सभी कर्मचारियों द्वारा पूरा सहयोग कार्यक्रम को समापन तक करने में दिया. साथ ही, महानिदेशक ने संस्थान के कर्मचारियों को अच्छा कार्य करने के लिए धन्यवाद देते हुए अपने संबोधन से लाभान्वित किया.

किसानों को हर सवाल का मिलेगा जवाब

सबौर : बिहार सरकार के कृषि मंत्री कुमार सर्वजीत ने पिछले दिनों बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर में किसानों को समर्पित एक कार्यक्रम ‘सवालजवाब’ का उद्घाटन किया.

इस कार्यक्रम में पूरे राज्य के किसान विश्वविद्यालय के यूट्यूब और चैनल और वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से जुड़े. यह कार्यक्रम हर माह के प्रथम शनिवार को किसानों के सवालों के जवाब को ले कर आता रहेगा. फसल अवशेष प्रबंधन की थीम पर कार्यक्रम में किसानों के जवाब देते हुए कृषि मंत्री कुमार सर्वजीत ने कहा कि फसल उपजने के उपरांत अवशेष को जलाना नहीं है, बल्कि गलाना है. मजबूरी में हमें ऐसे किसान भाइयों पर दंडात्मक कार्यवाही करनी पड़ती है, जो पराली को जलाते हैं.

इस अवसर पर विश्वविद्यालय के कुलपति डा. डीआर सिंह ने कहा कि हमारा प्रयास रहा है प्रयोगशाला से खेत तक एक बेहतर समन्वय हो और यह कार्यक्रम उसी लक्ष्य के साथ एक कड़ी के रूप में कार्य करेगा.

उन्होंने आगे यह भी कहा कि किसान समस्या में विश्वविद्यालय की ओर देखता है. हम से उम्मीद करता है कि हम उन्हें सही रास्ता दिखाएं. विश्वविद्यालय के प्रसार कार्यक्रम का यही लक्ष्य है कि अंतिम छोर पर खड़े किसानों तक हम सही समय पर तकनीक और वैज्ञानिक सलाह पहुंचा सकें.

इस अवसर पर भागलपुर के सांसद अजय मंडल और सुल्तानगंज के विधायक ललित नारायण मंडल ने भी हिस्सा लिया. कार्यक्रम का संचालन अन्नू ने किया.

मंत्री ने वैज्ञानिकों को किया सम्मानित

इस के उपरांत विश्वविद्यालय के मिनी औडिटोरियम में विश्वविद्यालय का ईमैनुअल तैयार करने वाले 17 वैज्ञानिकों को मंत्री द्वारा प्रमाणपत्र दे कर समान्नित किया गया. वैज्ञानिकों को सम्मानित करते हुए मंत्री कुमार सर्वजीत ने कहा कि यहां 17 युवा वैज्ञानिकों को सम्मानित करते हुए मुझे अति प्रसन्नता हो रही है. देश और दुनिया में विकसित देश के वैज्ञानिक उन्नत हथियार बना रहे हैं, जिस से बड़ी संख्या में इनसानों को खत्म किया जा सके. लेकिन हमें आप पर गर्व है कि आप सभी युवा वैज्ञनिक उन्नत खेती के लिए दिनरात एक कर के शोध कर रहे हैं, ताकि कोई भूखा न सोए.

गौरतलब है कि भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) ने देश में प्रतिभाओं को आकर्षित करने एवं उच्च कृषि शिक्षा को मजबूत करने के लिए राष्ट्रीय कृषि उच्च शिक्षा परियोजना (नाहेप) की शुरुआत की गई थी. इस परियोजना को विश्व बैंक और भारत सरकार द्वारा 50:50 यानी फिफ्टीफिफ्टी के आधार पर वित्तपोषित है. इस परियोजना के अंतर्गत स्नात्तक एवं स्नातकोतर विषयों के सभी पाठ्यक्रम को बनने के लिए देशभर के कृषि वैज्ञानिकों से आवेदन मांगे गए थे और इसी क्रम में बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर के 17 वैज्ञानिकों का चयन 31 पाठ्यक्रम बनाने के लिए आईसीएआर व नाहेप द्वारा किया गया था. इन्हीं वैज्ञानिकों ने इस मैनुअल को तैयार किया है. कुलपति ने मैनुअल तैयार करने वाले वैज्ञानिकों की तारीफ की.

इन वैज्ञानिकों को किया गया सम्मानित

Sawal Jawab

कार्यक्रम में डा. अंशुमान कोहली, डा. रूबी रानी, डा. श्वेता शांभवी, डा. राजीव रक्षित, डा. एच. मीर, डा. शशांक शेखर सोलंकी, डा. मृणालिनी कुमारी, डा. मैनाक घोष, डा. वसीम सिद्दीकी, डा. अनुपम दास, डा. तमोघना साहा, ई. विकास चंद्र वर्मा, डा. मनोज कुंडू, डा. प्रीतम गांगुली, डा. तुषार रंजन, डा. चंदन पांडा एवं डा. कल्मेश मंगवी को सम्मानित किया गया.

बिहार कृषि महाविद्यालय के सौ वर्षों के सफर पर वृत्तचित्र का हुआ लोकार्पण

मंत्री कुमार सर्वजीत ने बीएयू के मीडिया सेंटर द्वारा निर्मित ऐतिहासिक फिल्म का लोकार्पण किया. इस फिल्म में एक ब्रिटिश राज में सबौर में कृषि महाविद्यालय खोलने से ले कर विश्वविद्यालय बनाने तक के सफर को दिखाया गया.

लोकगीत पर आधारित जागरूकता कार्यक्रम का लोकार्पण

सामुदायिक रेडियो एफएम ग्रीन पर एक जागरूकता कार्यक्रम “फसल अवशेष मत जलाना, यह है खेती का गहना” का लोकार्पण मंत्री कुमार सर्वजीत ने किया. यह कार्यक्रम लोकगीत और नाटक के जरीए लोगों से फसल अवशेष और पुआल नहीं जलाने का संदेश देता है. मंत्री कुमार सर्वजीत के लोकार्पण के साथ ही रेडियो पर एक लोकगीत का प्रसारण हुआ, जिस के बोल थे “खेत में अगर जलाया पुआल, मिट्टी हो जाएगी बेहाल…” यह लोकगीत स्थानीय कलाकार ताराकांत ठाकुर ने गया है.

इस मौके पर मंत्री कुमार सर्वजीत ने कहा कि कृषि गीत आजकल लुप्त हो रहे हैं. अतः बीएयू का एक कृषि गीत संकलन करने का एक अच्छा प्रयास है.

गुड प्रैक्टिस एंड एक्स्टेंशन मौडल’ पुस्तक का हुआ विमोचन

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विश्वविद्यालय में किसानों के हितों में किए गए शोध और चलाए गए कार्यक्रमों का संकलन एक पुस्तक में किया गया है, जिस का नाम है, “गुड प्रैक्टिस एंड एक्स्टेंशन मौडल’. मंत्री एवं सभी गणमान्य व्यक्तियों ने पुस्तक का विमोचन किया.

 

इन कार्यक्रमों का स्वागत भाषण प्रसार शिक्षा निदेशक डा. आरके सोहाने ने किया, संचालन डा. स्वेता संभावी ने किया एवं धन्यवाद ज्ञापन अधिष्ठाता कृषि डा. एके साह ने किया. इस आशय की सूचना विश्वविद्यालय के पीआरओ डा. राजेश कुमार ने दी.

भारत की विकास गाथा के स्तंभ छोटे किसान, छोटे उद्योग और महिलाएं

नई दिल्ली : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नई दिल्ली के प्रगति मैदान स्थित भारत मंडपम में मेगा फूड इवेंट ‘वर्ल्ड फूड इंडिया 2023’ के दूसरे संस्करण का उद्घाटन किया. उन्होंने स्वयं सहायता समूहों को मजबूत करने के लिए एक लाख से अधिक एसएचजी सदस्यों को बीज के लिए आर्थिक सहायता का भी वितरण किया. इस अवसर पर नरेंद्र मोदी ने प्रदर्शनी का भी अवलोकन किया.

इस कार्यक्रम का उद्देश्य भारत को ‘दुनिया के खाद्य केंद्र’ के रूप में प्रदर्शित करना और साल 2023 को अंतर्राष्ट्रीय बाजरा वर्ष के रूप में मनाना है.

इस अवसर पर सभा को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्रदर्शित प्रौद्योगिकी और स्टार्टअप मंडप और फूड स्ट्रीट की सराहना करते हुए कहा कि प्रौद्योगिकी और स्वाद का मिश्रण भविष्य की अर्थव्यवस्था का मार्ग प्रशस्त करेगा.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज के बदलते परिप्रेक्ष्‍य में खाद्य सुरक्षा की प्रमुख चुनौतियों में से एक का उल्‍लेख करते हुए विश्व खाद्य भारत 2023 के महत्व को रेखांकित किया.

एग्री इंफ्रा फंड के तहत लगभग 50,000 करोड़ रुपए से अधिक का निवेश

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि वर्ल्ड फूड इंडिया के परिणाम भारत के खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र को ‘सूर्योदय क्षेत्र’ के रूप में पहचाने जाने का एक बड़ा उदाहरण हैं. पिछले 9 वर्षों में सरकार की उद्योग समर्थक और किसान समर्थक नीतियों के परिणामस्वरूप इस क्षेत्र ने 50,000 करोड़ रुपए से अधिक का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश आकर्षित किया है.

Vikas Gathaप्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र में पीएलआई योजना का उल्‍लेख करते हुए कहा कि यह उद्योग में नए उद्यमियों को बड़ी सहायता प्रदान कर रही है. उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि फसल कटाई के बाद के बुनियादी ढांचे के लिए एग्री इंफ्रा फंड के तहत हजारों परियोजनाओं पर काम चल रहा है, जिस में लगभग 50,000 करोड़ रुपए से अधिक का निवेश है, जबकि मत्स्यपालन और पशुपालन क्षेत्र में प्रसंस्करण बुनियादी ढांचे को भी हजारों करोड़ रुपए के निवेश के साथ प्रोत्साहित किया जा रहा है.

कृषि निर्यात में प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों की हिस्सेदारी 13 फीसदी से बढ़ कर 23 फीसदी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि सरकार की निवेशक अनुकूल नीतियां खाद्य क्षेत्र को नई ऊंचाइयों पर ले जा रही हैं. पिछले 9 वर्षों में भारत के कृषि निर्यात में प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों की हिस्सेदारी 13 फीसदी से बढ़ कर 23 फीसदी हो गई है, जिस से निर्यातित प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों में कुल मिला कर 150 फीसदी की वृद्धि हुई है.

उन्होंने आगे यह भी कहा कि आज भारत कृषि उपज में 50,000 मिलियन अमरीकी डालर से अधिक के कुल निर्यात मूल्य के साथ 7वें स्थान पर है. साथ ही, उन्होंने आगे कहा कि खाद्य प्रसंस्करण उद्योग में ऐसा कोई क्षेत्र नहीं है, जहां भारत ने अभूतपूर्व वृद्धि नहीं की हो.

उन्‍होंने आगे कहा कि यह खाद्य प्रसंस्करण उद्योग से जुड़ी हर कंपनी और स्टार्टअप के लिए यह एक स्‍वर्णिम अवसर है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जोर देते हुए कहा कि भारत के खाद्य प्रसंस्करण उद्योग में तीव्र वृद्धि का कारण सरकार के निरंतर और समर्पित प्रयास रहे हैं. भारत में पहली बार कृषि निर्यात नीति के निर्माण, राष्ट्रव्यापी लौजिस्टिक्स और बुनियादी ढांचे के विकास, जिले को वैश्विक बाजारों से जोड़ने वाले 100 से अधिक जिला स्तरीय केंद्रों के निर्माण, मेगा फूड पार्कों की संख्या में 2 से बढ़ कर 20 से अधिक और भारत की खाद्य प्रसंस्करण क्षमता 12 लाख मीट्रिक टन से बढ़ कर 200 लाख मीट्रिक टन से अधिक हो गई है, जो पिछले 9 वर्षों में 15 गुना वृद्धि को दर्शाती है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत से पहली बार निर्यात किए जा रहे उन कृषि उत्पादों का उदाहरण दिया, जिन में हिमाचल प्रदेश से काला लहसुन, जम्मू और कश्मीर से ड्रैगन फ्रूट, मध्य प्रदेश से सोया दूध पाउडर, लद्दाख से कार्किचू सेब, पंजाब से कैवेंडिश केले, जम्मू से गुच्ची मशरूम और कर्नाटक से कच्चा शहद शामिल हैं.

भारत में तेजी से हो रहे शहरीकरण को ध्यान में रखते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किसानों, स्टार्टअप और छोटे उद्यमियों के लिए अनछुए अवसरों के सृजन का जिक्र करते हुए पैकेज्ड फूड की बढ़ती मांग की ओर ध्यान आकर्षित किया. उन्होंने इन संभावनाओं का पूरा उपयोग करने के लिए महत्वाकांक्षी योजना की आवश्यकता पर बल दिया.

‘एक जिला एक उत्पाद’ यानी ओडीओपी जैसी योजनाएं छोटे किसानों को दे रही नई पहचान

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र में भारत की विकास गाथा के तीन मुख्य स्तंभों छोटे किसान, छोटे उद्योग और महिलाओं का उल्‍लेख किया. उन्होंने छोटे किसानों की भागीदारी और मुनाफा बढ़ाने के लिए एक मंच के रूप में किसान उत्पादन संगठनों या एफपीओ के प्रभावी उपयोग की भी जानकारी दी.

उन्होंने आगे कहा कि हम भारत में 10 हजार नए एफपीओ बना रहे हैं, जिन में से 7 हजार पहले ही बन चुके हैं. उन्होंने किसानों के लिए बढ़ती बाजार पहुंच और प्रसंस्करण सुविधाओं की उपलब्धता का उल्‍लेख करते हुए कहा कि लघु उद्योगों की भागीदारी बढ़ाने के लिए खाद्य प्रसंस्करण उद्योग में लगभग 2 लाख सूक्ष्म उद्यमों का संगठित किया जा रहा है.

उन्होंने कहा कि ‘एक जिला एक उत्पाद’ यानी ओडीओपी जैसी योजनाएं भी छोटे किसानों और छोटे उद्योगों को नई पहचान दे रही हैं.

Vikas Gathaभारत में 9 करोड़ से अधिक महिलाएं स्वयं सहायता समूहों से जुड़ी हैं

भारत में महिलाओं के नेतृत्व वाले विकास मार्ग का उल्‍लेख करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अर्थव्यवस्था में महिलाओं के बढ़ते योगदान पर प्रकाश डाला, जिस से खाद्य प्रसंस्करण उद्योग को लाभ हुआ है.

उन्होंने कहा कि आज भारत में 9 करोड़ से अधिक महिलाएं स्वयं सहायता समूहों से जुड़ी हैं. हजारों वर्षों से भारत में खाद्य विज्ञान में महिलाओं के नेतृत्व का उल्‍लेख करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि भारत में भोजन की विविधता और खाद्य विविधता भारतीय महिलाओं के कौशल और ज्ञान का परिणाम है.

उन्होंने कहा कि महिलाएं अचार, पापड़, चिप्स, मुरब्बा आदि कई उत्पादों का बाजार अपने घर से ही चला रही हैं. भारतीय महिलाओं में खाद्य प्रसंस्करण उद्योग का नेतृत्व करने की नैसर्गिक क्षमता है. महिलाओं के लिए हर स्तर पर कुटीर उद्योगों और स्वयं सहायता समूहों को बढ़ावा दिया जा रहा है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस अवसर पर एक लाख से ज्यादा महिलाओं को करोड़ों रुपये की प्रारंभिक वित्तीय सहायता प्रदान करने का उल्‍लेख किया.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि भारत में जितनी सांस्कृतिक विविधता है, उतनी ही खानपान विविधता भी है.

भारत की खाद्य विविधता दुनिया के हर निवेशक के लिए एक लाभांश है. भारत के प्रति बढ़ती जिज्ञासा को ध्यान में रखते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस बात पर जोर दिया कि दुनियाभर के खाद्य उद्योग को भारत की खाद्य परंपराओं से बहुतकुछ सीखना है.

उन्होंने कहा कि भारत की दीर्घकालिक खाद्य संस्कृति उस की हजारों वर्षों की विकास यात्रा का परिणाम है. हजारों वर्षों में भारत की स्थायी खाद्य संस्कृति के विकास का उल्‍लेख करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि भारत के पूर्वजों ने भोजन की आदतों को आयुर्वेद से जोड़ा था. आयुर्वेद में कहा गया है कि ‘ऋत-भुक’ यानी मौसम के अनुसार भोजन, ‘मित भुक’ यानी संतुलित आहार, और ‘हित भुक’ यानी स्वस्थ भोजन जैसी परंपराएं भारत की वैज्ञानिक समझ को दर्शाती हैं.

उन्होंने दुनिया पर भारत से खाद्यान्न, विशेषकर मसालों के व्यापार के निरंतर प्रभाव का भी उल्लेख किया. वैश्विक खाद्य सुरक्षा के बारे में विचार करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खाद्य प्रसंस्करण उद्योग को दीर्घकालिक और स्वस्थ भोजन आदतों के प्राचीन ज्ञान को समझने और लागू करने की आवश्यकता पर बल दिया. उन्होंने स्वीकार किया कि दुनिया साल 2023 को अंतर्राष्ट्रीय बाजरा वर्ष के रूप में मना रही है.

बाजरा भारत के ‘सुपरफूड बकेट’ का हिस्सा

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि बाजरा भारत के ‘सुपरफूड बकेट’ का हिस्सा है और सरकार ने इस की पहचान श्रीअन्न के रूप में की है. भले ही सदियों से अधिकांश सभ्यताओं में बाजरा को बहुत प्राथमिकता दी गई थी, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि यह पिछले कुछ दशकों में भारत सहित कई देशों में इसे भोजन से बाहर कर दिया गया, जिस से वैश्विक स्वास्थ्य, दीर्घकालिक खेती के साथ ही अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान हुआ है.

Vikas Gathaप्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के प्रभाव की तरह ही दुनिया के कोनेकोने में श्रीअन्‍न के पहुंचने का भरोसा जताते हुए कहा कि भारत की पहल पर दुनिया में श्रीअन्‍न को ले कर जागरुकता अभियान शुरू किया गया है.

उन्होंने हाल ही में जी-20 शिखर सम्मेलन के दौरान भारत आने वाले गणमान्य व्यक्तियों के लिए बाजरा से बने व्यंजनों का उल्लेख किया और साथ ही, बाजार में बाजरा से बने प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों की उपलब्धता का भी उल्लेख किया.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस अवसर पर गणमान्य व्यक्तियों से श्रीअन्न की हिस्सेदारी बढ़ाने के तरीकों पर चर्चा करने और उद्योग एवं किसानों के लाभ के लिए एक सामूहिक प्रारूप तैयार करने का आग्रह किया.

नरेंद्र मोदी ने कहा कि जी-20 समूह ने दिल्ली घोषणापत्र में दीर्घकालिक कृषि, खाद्य सुरक्षा और पोषण सुरक्षा पर जोर दिया है और खाद्य प्रसंस्करण से जुड़े सभी भागीदारों की भूमिका का उल्‍लेख किया गया है.

उन्होंने खाद्य वितरण कार्यक्रम को विविध खाद्य केंद्र के रूप में स्‍थापित करने और अंततः फसल कटाई के बाद के नुकसान को कम करने पर जोर दिया.

साथ ही, उन्होंने प्रौद्योगिकी का उपयोग कर के बरबादी को कम करने पर भी बल दिया. उन्होंने बर्बादी को कम करने के लिए उत्पादों के प्रसंस्करण को बढ़ाने का आग्रह किया, जिस से किसानों को लाभ हो और कीमतों में उतारचढ़ाव को रोका जा सके.

अपने संबोधन का समापन करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किसानों के हितों और उपभोक्ताओं की संतुष्टि के बीच संतुलन बनाने की आवश्यकता पर जोर दिया.

उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि यहां निकाले गए निष्कर्ष दुनिया के लिए एक स्‍थायी और खाद्य सुरक्षित भविष्य की नींव रखेंगे.

इस अवसर पर केंद्रीय उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्री पीयूष गोयल, केंद्रीय खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्री पशुपति कुमार पारस, केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री गिरिराज सिंह, केंद्रीय पशुपालन, डेरी और मत्स्यपालन राज्य मंत्री परशोत्तम रूपाला और केंद्रीय खाद्य प्रसंस्करण उद्योग राज्य मंत्री प्रहलाद सिंह पटेल के साथसाथ अन्‍य गणमान्‍य उपस्थित थे.

इस मौके पर स्वयं सहायता समूहों को मजबूत करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक लाख से अधिक एसएचजी सदस्यों के लिए प्रारंभिक पूंजी सहायता वितरित की. इस समर्थन से एसएचजी को बेहतर पैकेजिंग और गुणवत्तापूर्ण विनिर्माण के माध्यम से बाजार में बेहतर मूल्य प्राप्त करने में मदद मिलेगी.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वर्ल्ड फूड इंडिया 2023 के हिस्से के रूप में फूड स्ट्रीट का भी उद्घाटन किया. इस में क्षेत्रीय व्यंजन और शाही पाक विरासत को दिखाया जाएगा, जिस में 200 से अधिक शेफ भाग लेंगे और पारंपरिक भारतीय व्यंजन पेश करेंगे, जिस से यहां एक अनूठा पाक अनुभव हासिल करने का अवसर मिलेगा.

इस कार्यक्रम का उद्देश्य भारत को ‘दुनिया के खाद्य केंद्र’ के रूप में प्रदर्शित करना और साल 2023 को अंतर्राष्ट्रीय बाजरा वर्ष के रूप में मनाना है. यह सरकारी निकायों, उद्योग के पेशेवरों, किसानों, उद्यमियों और अन्य हितधारकों को चर्चा में शामिल होने, साझेदारी स्थापित करने और कृषि खाद्य क्षेत्र में निवेश के अवसरों का पता लगाने के लिए एक नेटवर्किंग और व्यापार मंच प्रदान करेगा. सीईओ गोलमेज सम्मेलन निवेश और कारोबार में आसानी पर केंद्रित होगा.

भारतीय खाद्य प्रसंस्करण उद्योग के नवाचार और क्षमता को प्रदर्शित करने के लिए विभिन्न मंडप स्थापित किए जाएंगे. यह कार्यक्रम खाद्य प्रसंस्करण उद्योग के विभिन्न पहलुओं पर ध्यान केंद्रित करते हुए 48 सत्रों की मेजबानी करेगा, जिस में वित्तीय सशक्तीकरण, गुणवत्ता आश्वासन और मशीनरी और प्रौद्योगिकी में नवाचारों पर जोर दिया जाएगा.

यह आयोजन प्रमुख खाद्य प्रसंस्करण कंपनियों के मुख्‍य कार्यकारी अधिकारियों सहित 80 से अधिक देशों के प्रतिभागियों की मेजबानी करने के लिए तैयार है. इस में 80 से अधिक देशों के 1200 से अधिक विदेशी खरीदारों के साथ एक रिवर्स बायरसेलर मीट की भी सुविधा होगी. नीदरलैंड भागीदार देश के रूप में कार्य करेगा, जबकि जापान इस आयोजन का मुख्‍य देश होगा.

25 रुपए प्रति किलोग्राम की दर से प्याज

नई दिल्ली : सरकार ने उपभोक्ताओं को खरीफ फसल की आवक में देरी के चलते प्याज की कीमतों में हाल में आई वृद्धि से बचाने के लिए 25 रुपए प्रति किलोग्राम की रियायती कीमत पर बफर से प्याज की उत्साहवर्धक खुदरा बिक्री आरंभ की है.

यह घरेलू उपभोक्ताओं के लिए प्याज की उपलब्धता और निम्न लागत सुनिश्चित करने के लिए किए गए उपायों के अतिरिक्त एक और उपाय है, जैसे 29 अक्तूबर, 2023 से 800 डालर प्रति मीट्रिक टन का न्यूनतम निर्यात मूल्य (एमईपी) लगाना, पहले से ही खरीदे गए 5.06 लाख टन के अतिरिक्त बफर खरीद में 2 लाख टन की वृद्धि और अगस्त के दूसरे सप्ताह से खुदरा बिक्री, ई- नीलामी और थोक बाजारों में थोक बिक्री के माध्यम से प्याज का निरंतर निबटान.

उपभोक्ता मामलों के विभाग ने एनसीसीएफ, नाफेड, केंद्रीय भंडार और अन्य राज्य नियंत्रित सहकारी समितियों द्वारा प्रचालित खुदरा दुकानों और मोबाइल वैन के माध्यम से 25 रुपए प्रति किलोग्राम की रियायती कीमत पर प्याज का उत्साहवर्धक निबटान आरंभ कर दिया है.

2 नवंबर तक नाफेड ने 21 राज्यों के 55 शहरों में स्टेशनरी आउटलेट और मोबाइल वैन सहित 329 रिटेल प्वाइंट स्थापित किए हैं. इसी तरह एनसीसीएफ ने 20 राज्यों के 54 शहरों में 457 रिटेल प्वाइंट स्थापित किए हैं.

केंद्रीय भंडार ने भी 3 नवंबर, 2023 से दिल्ली व एनसीआर में अपने खुदरा दुकानों के माध्यम से प्याज की खुदरा आपूर्ति शुरू कर दी है और सफल मदर डेयरी इस सप्ताहांत से आरंभ करेगी. तेलंगाना और अन्य दक्षिणी राज्यों में उपभोक्ताओं को प्याज की खुदरा बिक्री हैदराबाद कृषि सहकारी संघ (एचएसीए) द्वारा की जा रही है.

रबी और खरीफ फसलों के बीच मौसमी मूल्य अस्थिरता को नियंत्रित करने के लिए, सरकार बाद में निर्धारित और लक्षित रिलीज के लिए रबी प्याज की खरीद कर के प्याज बफर बनाए रखती है.

इस वर्ष साल 2022-23 में बफर आकार को 2.5 एलएमटी से बढ़ा कर 7 एलएमटी कर दिया गया है. अब तक 5.06 एलएमटी प्याज की खरीद की जा चुकी है और शेष 2 एलएमटी की खरीद जारी है.

सरकार द्वारा उठाए गए सक्रिय कदमों ने परिणाम प्रदर्शित करना आरंभ कर दिया है, क्योंकि बेंचमार्क लासलगांव बाजार में प्याज की कीमतें 28 अक्तूबर, 2023 को 4,800 रुपए प्रति क्विंटल से घट कर 3 नवंबर, 2023 को 3,650 रुपए प्रति क्विंटल हो गई, जो 24 फीसदी की गिरावट है. आगामी सप्ताह में खुदरा कीमतों में इसी तरह की गिरावट की उम्मीद है.

स्मरणीय है कि जब मानसून की बारिश और सफेद मक्खी के संक्रमण से आपूर्ति में व्यवधान के कारण जून, 2023 के आखिरी सप्ताह से टमाटर की कीमतें बढ़ गईं, तो सरकार ने कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और उत्पादक राज्यों से एनसीसीएफ और एनएएफईडी के माध्यम से टमाटर खरीद कर युक्तिसंगत कदम उठाए और महाराष्ट्र व प्रमुख उपभोग केंद्रों में उपभोक्ताओं को अत्यधिक रियायती दर पर आपूर्ति की.

खरीदे गए टमाटर खुदरा उपभोक्ताओं को रियायती कीमतों पर बेचे गए. शुरुआत 90 रुपए प्रति किलोग्राम से हुई और धीरेधीरे कम हो कर 40 रुपए प्रति किलोग्राम हो गई. खुदरा युक्तियों के माध्यम से टमाटर की खुदरा कीमतों को अगस्त के पहले सप्ताह के शीर्ष, अखिल भारतीय औसत खुदरा मूल्य 140 रुपए प्रति किलोग्राम से घटा कर सितंबर, 2023 के पहले सप्ताह तक लगभग 40 रुपए प्रति किलोग्राम तक ला दिया गया.

अधिकांश भारतीय परिवारों के लिए दलहन पोषण का एक महत्वपूर्ण स्रोत हैं. आम घरों में दाल की उपलब्धता और रियायती कीमत सुनिश्चित करने के लिए सरकार ने 1 किलोग्राम पैक के लिए 60 रुपए प्रति किलोग्राम और 30 किलोग्राम पैक के लिए 55 रुपए प्रति किलोग्राम की रियायती कीमतों पर भारत दाल लौंच की है. भारत दाल उपभोक्ताओं को खुदरा बिक्री के लिए और नाफेड, एनसीसीएफ, केंद्रीय भंडार, सफल और तेलंगाना और महाराष्ट्र में राज्य नियंत्रित सहकारी समितियों के माध्यम से सेना, सीएपीएफ और कल्याणकारी योजनाओं के लिए आपूर्ति के लिए कृषि उपलब्ध कराया जाता है.

अब तक 3.2 एलएमटी चना स्टाक रूपांतरण के लिए आवंटित किया गया है, जिस में से 75,269 मीट्रिक टन की मिलिंग की गई है और 59,183 मीट्रिक टन का आवंटन 282 शहरों में 3010 खुदरा बिंदुओं (स्टेशनरी आउटलेट मोबाइल वैन) के माध्यम से किया गया है.

देशभर में उपभोक्ताओं को 4 लाख टन से अधिक भारत दाल उपलब्ध कराने के लिए आने वाले दिनों में भारत दाल की आपूर्ति बढ़ाई जा रही है.

‘‘मशरूम उत्पादन तकनीक’’ पर प्रशिक्षण

बस्ती : कृषि विज्ञान केंद्र, बंजरिया, बस्ती पर आर्या योजना के अंतर्गत बेरोजगार नवयुवकों/युवतियों को गांव स्तर पर स्वरोजगार सृजन के उद्देश्य से ‘‘मशरूम उत्पादन तकनीक’’ विषय पर 5 दिवसीय प्रशिक्षण आयोजित किया गया.

प्रशिक्षण के अंतिम दिन मुख्य अतिथि भूमि संरक्षण अधिकारी डा. राज मंगल चौधरी ने प्रशिक्षणार्थियों को संबोधित करते हुए बताया कि भारत सरकार एवं उत्तर प्रदेश सरकार की मंशा है कि गांव स्तर पर बेरोजगार नवयुवकों एवं नवयुवतियों को रोजगार उपलब्ध कराए जाएं, जिस से कि उन के शहरों की ओर बढ रहे पलायन को रोका जा सके.

इसी उद्देश्य के तहत आम लोगों को मशरूम उत्पादन तकनीक का प्रशिक्षण कृषि विज्ञान केंद्र द्वारा प्रदान किया जा रहा है, क्योंकि यह भूमिहीन व गरीब किसानों की आमदनी का जरीया है, इसे अपना कर वे स्वरोजगार सृजन कर सकते हैं.

इस अवसर पर उन्होंने प्रशिक्षण प्राप्त 20 प्रशिक्षनार्थियों को प्रमाणपत्र प्रदान किया गया.

Mushroomकोर्स के कोआर्डिनेटर एवं पौध सुरक्षा वैज्ञानिक डा. प्रेम शंकर ने अवगत कराया कि इस योजना के अंतर्गत बकरीपालन एवं मधुमक्खीपालन पर भी स्वरोजगार सृजन हेतु बेरोजगार नवयुवकों एवं नवयुवतियों को प्रशिक्षित किया जाएगा. साथ ही साथ बटन मशरूम की खेती की तकनीक की विस्तार से चर्चा की.

केंद्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक, पशुपालन, डा. डीके श्रीवास्तव ने अपने संबोधन के दौरान प्रशिक्षार्थियों को पशुपालन से संबंधित जैसे बकरीपालन, मुरगीपालन, दुग्ध उत्पादन एवं बटन मशरूम की खेती में कंपोस्ट बनाने की तकनीक के बारे में जानकारी दी.

वैज्ञानिक डा. वीबी सिंह ने प्रशिक्षण के दौरान प्रशिक्षणार्थियों को बताया कि बेरोजगार नवयुवक एवं युवतियां मशरूम उत्पादन कर कम लागत एवं कम स्थान में आसानी से दोगुनी आय अर्जित कर सकते हैं. साथ ही, बटन मशरूम, दूधिया मशरूम, ढिंगरी मशरूम पर विस्तृत जानकारी प्रदान की.

इस अवसर पर केंद्र के कर्मचारी निखिल सिंह, जेपी शुक्ल, बनारसी लाल, प्रिंस यादव, सूर्य प्रकाश सिंह, रंजन, राजू प्रजापति, जहीर, जितेंद्र पाल, आदित्य प्रताप सिंह आदि उपस्थित रहे.

रास नहीं आई शहर की जिंदगी, खेती को बनाया रोजगार

हाल के दशक में युवाओं का खेती में रुझान तेजी से बढ़ा है, इसलिए तमाम बड़ी डिगरियों वाले भारीभरकम तनख्वाह को छोड़ खेती की तरफ रुख मोड़ रहे हैं, जिस से ऐसे लोग नौकरियों से कई गुना ज्यादा खेती से आमदनी ले रहे हैं.

ऐसे ही एक शख्स हैं अमित विक्रम त्रिपाठी, जो सेना में 18 साल की नौकरी करने के बाद जब 36 साल की उम्र में रिटायर हुए, तो उन्होंने लखनऊ जैसे महानगर में बसने का फैसला किया और वहां पर घर बनवाने के लिए 2 प्लौट भी खरीदे, लेकिन वहां की भीड़भाड़ और भागमभाग जिंदगी को देख कर उन का मन उचट गया, इसलिए उन्होंने लखनऊ में बसने के बजाय अपने गांव में रह कर ही खेती करने का फैसला किया और आज वे खेती से न केवल लाखों रुपए की आमदनी हासिल कर रहे हैं, बल्कि दर्जनों लोगों को रोजगार भी दे रहे हैं.

जनपद बस्ती के सल्टौआ गोपालपुर ब्लौक के मनवा गांव के रहने वाले अमित विक्रम त्रिपाठी ने 17 साल की उम्र में सेना की नौकरी जौइन कर 18 वर्षों तक देश के सरहद की रक्षा की और जब उन्हें सेना से रिटायरमैंट मिला, तो उन्होंने शहर में रह कर अपने बच्चों को महानगरीय जीवनशैली में शिक्षा दिलाएंगे. लेकिन उन का मन महानगरों की जीवनशैली में नहीं लगा और अपने गांव लौट कर खेती करने का निर्णय लिया.

केले व सुगंधित धान की आमदनी से बढ़ा हौसला

गांव लौट कर उन्होंने 4 साल पहले खेती की शुरुआत केला और काला नमक धान की फसल से की, जिस में उन के 2 हेक्टेयर केले की फसल में 2 लाख रुपए की लागत आई, जबकि 2 हेक्टेयर काला नमक धान में 60,000 रुपए आई, जिस में उन्होंने लागत छोड़ कर केले की खेती से पहले साल ही लगभग 3 लाख

रुपए का मुनाफा कमाया. इस के अलावा काला नमक धान से भी 2 लाख रुपए की आमदनी हुई.

Village Farmingबढ़ी आमदनी से दूसरों को दे रहे हैं रोजगार

पहली बार में ही खेती से हुई आमदनी से अमित विक्रम त्रिपाठी का हौसला और भी बढ़ गया. इस के बाद उन्होंने काला नमक धान और केले की खेती के रकबे को तो बढ़ाया ही, साथ में शिमला मिर्च, राई सहित सब्जियों की खेती की तरफ भी कदम बढ़ाया.

इस से उन की आय में लगातार इजाफा होने लगा और वर्तमान में वे सालभर में खेती से लगभग 10 लाख रुपए की आमदनी प्राप्त कर रहे हैं. इस के अलावा वे खेतों में काम करने वाले तकरीबन डेढ़ दर्जन लोगों को रोजगार दे रहे हैं.

अमित विक्रम त्रिपाठी का कहना है कि लोग गांव छोड़ कर रोजगार के लिए शहरों की तरफ भाग रहे हैं. ऐसे में शहरों पर बोझ बढ़ रहा है और गांवों में खेती बंजर होती जा रही है. अगर यही हाल रहा, तो दुनिया के सामने खाद्यान्न संकट पैदा होने में देर नहीं लगेगी.

उन का कहना है कि खेती आज के दौर में घाटे का सौदा नहीं रही है. बस जरूरत है खेती को सही ढंग से करने की. उस में उन्नत तकनीकी का उपयोग हो. साथ ही, मार्केट की भरपूर समझ हो.

उन का यह भी कहना है कि अगर खेती को सही तरीके से किया जाता है, तो नौकरियों से यह कई गुना बेहतर नतीजे दे सकती है.

जलवायु परिवर्तन में उन्नत कृषि तकनीकें अपनाएं

हिसार : चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के इंदिरा गांधी सभागार में “21वीं शताब्दी में कृषि का भविष्य” विषय पर व्याख्यान का आयोजन किया गया, जिस में मुख्य वक्ता के रूप में यूनिवर्सिटी औफ इलिनोईस, यूएसए के चांसलर डा. रोबर्ट जे. जौंस रहे, जबकि विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने कार्यक्रम की अध्यक्षता की.

इस व्याख्यान का आयोजन चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय और यूनिवर्सिटी औफ इलिनोईस, यूएसए द्वारा संयुक्त रूप से किया गया.

मुख्य वक्ता डा. रोबर्ट जे. जौंस ने जलवायु परिवर्तन, खाद्य सुरक्षा व सतत कृषि विकास जैसे मुद्दों को चुनौतीपूर्ण बताया.

उन्होंने जलवायु परिवर्तन पर जोर देते हुए कहा कि विश्व में बढ़ती आबादी के लिए जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभाव चिंतनीय हो सकते हैं. जलवायु परिवर्तन से हो रहे दुष्प्रभावों से निबटने के लिए न केवल पौलिसी प्लानर, बल्कि किसानों व आम जनता को भी सतर्क रहने की जरूरत है. कृषि क्षेत्र में उपयुक्त फसल, किस्म का चुनाव, कृषि पद्धतियों का सही इस्तेमाल व नवीनतम तरीके जलवायु परिवर्तन से निबटने में बेहतर भूमिका निभा सकते है. जलवायु परिवर्तन के परिवेश में छोटी जोत वाले किसानों के हितों को ध्यान में रखते हुए खाद्यान्न एवं पोषण की सुरक्षा व स्थिरता को बनाए रखना जरूरी है.

Climate Changeउन्होंने आगे बताया कि जलवायु परिवर्तन किसानों व वैज्ञानिकों के लिए एक चिंता का विषय बन गया है. जलवायु परिवर्तन अब ग्लोबल वार्मिंग तक सीमित नही रहा, इस के मौसम में आने वाले अप्रत्याशित बदलाव जैसे आंधी, तूफान, सूखापन, बाढ़ इत्यादि शामिल है. असमय तापमान का बढऩा कृषि उत्पादन में प्रभाव डालता है, इसलिए जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से निबटने के लिए अनुकूल रणनीतियों जैसे कि बढ़ते तापमान व सूखापन के अनुकूल किस्में, मिट्टी की नमी का संरक्षण, पानी की उपलब्धता, रोगरहित किस्में, फसल विविधीकरण, मौसम का भविष्य आकंलन, टिकाऊ फसल उत्पादन प्रबंधन को अपनाने की आवश्यकता है.

आधुनिक तकनीकों से खाद्य एवं पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करना प्राथमिकता

कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने अपने अध्यक्षीय भाषण में कहा कि तीव्र गति से बढ़ रही जनसंख्या की भोजन और पोषण संबंधी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए कृषि उत्पादन बढ़ाना 21वीं सदी की एक प्रमुख चुनौती है. वैश्विक जलवायु परिवर्तन के खतरे ने वैज्ञानिकों में चिंता पैदा कर दी है, क्योंकि इस से फसल उत्पादन गंभीर रूप से प्रभावित होता है.

उन्होंने कहा कि हरियाणा प्रदेश में कृषि क्षेत्र अर्थव्यवस्था में प्रमुख भूमिका निभाता है, क्योंकि यह राज्य के सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 14.1 फीसदी का योगदान देता है. यह क्षेत्र राज्य की लगभग 51 फीसदी कामकाजी आबादी को रोजगार भी प्रदान करता है. कृषि क्षेत्र की इस स्थिति में हरियाणा सरकार की किसान हितैषी नीतियों, हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय की ओर से तकनीकी सहायता और नवीनतम कृषि प्रौद्योगिकियों को अपनाने के लिए प्रदेश के किसानों की इच्छा का बहुत बड़ा योगदान है.

उन्होंने कृषि विकास के लिए भविष्य की योजना पर प्रकाश डालते हुए कहा कि हमारा दृष्टिकोण पर्यावरण को संरक्षित करते हुए प्रति इकाई क्षेत्र में उत्पादकता क्षमता को बढ़ाने का है.

उन्होंने आधुनिक तकनीकों एवं नवाचारों का प्रयोग करते हुए खाद्य एवं पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करना विश्वविद्यालय की प्राथमिकता बताया.

यूनिवर्सिटी औफ इलिनोईस के कृषि उपभोक्ता एवं पर्यावरण विज्ञान महाविद्यालय के अधिष्ठाता जर्मन बालेरो ने कृषि से जुड़ी चुनौतियों जैसे फसल विविधीकरण, सतत कृषि विकास, उत्पादन में वृद्धि व पर्यावरण परिवर्तन पर चर्चा करते हुए कहा कि इन समस्याओं को प्राकृतिक खेती, कृषि से जुड़ी उच्च स्तरीय तकनीकें, उन्नत किस्में व आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस जैसी आधुनिक तकनीकों का इस्तेमाल कर हल किया जा सकता है.

उन्होंने आगे कहा कि हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय व यूनिवर्सिटी औफ इलिनोईस द्वारा संयुक्त रूप से शोध कार्य कर भविष्य में कृषि के क्षेत्र में बदलाव लाया जा सकता है.

Climate Changeकृषि एवं जैविक इंजीनियरिंग विभाग के प्रो. विजय सिंह ने बताया कि विश्व के सतत विकास के लिए पौष्टिक अनाज व नवीनीकरणीय ऊर्जा पर काम करने की जरूरत है. वहीं स्नाकोत्तर शिक्षा के अधिष्ठाता एवं आईडीपी के प्रमुख अन्वेशक डा. केडी शर्मा ने सभी का स्वागत किया, जबकि मंच संचालन डा. जयंति टोकस ने किया.

इस अवसर पर मुख्य वक्ता डा. रोबर्ट जे. जौंस के साथ शिष्टमंडल में यूनिवर्सिटी औफ इलिनोईस के वरिष्ठ कार्यकारी सहकुलपति शोध एवं नवाचार मेलैनी लूट्स, कारपोरेट एवं आर्थिक विकास मामलों के कार्यकारी सहकुलपति प्रदीप खन्ना, वाइस प्रोवोस्ट फौर ग्लोबल अफेयर एंड स्ट्रेटजी रिटूमेटसे, कृषि एवं उपभोक्ता अर्थशास्त्र विभाग के प्रो. मधु खन्ना, कंप्यूटर विज्ञान विभाग के प्रोफेसर
एवं एसोसिएट हेड महेश विश्वनाथन और ग्लोबल रिलेशन, इलिनोईस इंटरनेशनल के निदेशक समर जौंस मौजूद रहे.