3 सालों में फसलों की 44 उन्नत किस्में विकसित

हिसार : चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के कृषि महाविद्यालय में दोदिवसीय कृषि अधिकारी कार्यशाला (खरीफ) 2024 का आयोजन हुआ. इस मौके पर मुख्य अतिथि कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने अपने संबोधन में कहा कि विश्वविद्यालय द्वारा अनुमोदित की गई फसलों की सिफारिश के अलावा प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों में फसल उत्पादन में अलगअलग तरह से काश्तकारी की जा रही है, जिस के कारण अनुमोदित सिफारिश की पैदावार के मुकाबले किसानों की पैदावार में अंतर आ जाता है.

उन्होंने कृषि अधिकारियों से आह्वान किया कि फसल उत्पादन की समग्र सिफारिशों को पूरी तरह से लागू करवा कर पैदावार के इस अंतर को कम कर के, कम लागत पर अधिक से अधिक लाभ किसानों को पहुंचाएं.

उन्होंने आगे बताया कि इस कार्यशाला से विश्वविद्यालय द्वारा विकसित की गई नवीनतम किस्मों व कृषि पद्धतियों को जल्दी से जल्दी किसानों तक पहुंचाने में मदद मिलेगी, जिस से कि फसलों की पैदावार बढ़ेगी.

मुख्यातिथि प्रो. बीआर कंबोज ने वर्तमान समय में कृषि क्षेत्र में आ रही चुनौतियों जैसे भूजल के स्तर का गिरना, भूमि की उर्वराशक्ति में कमी आना, भूमि की लवणता, क्षारीयता व जल भराव की स्थिति, जलवायु परिवर्तन, फसल विविधीकरण और फसल उत्पादन में कीटनाशक एवं रसायनिक उर्वरकों का अधिक प्रयोग शामिल है.

उन्होंने जमीनी स्तर पर किसानों के संपर्क में काम कर रहे कृषि अधिकारियों के फीडबैक से विश्वविद्यालय में चल रहे शोध कार्य को और अधिक तीव्रता से व केंद्रित कर के इन समस्याओं का उचित समाधान जल्दी मिल सकेगा.

उन्होंने यह भी कहा कि विश्वविद्यालय ने किसान समुदाय के उत्थान के लिए हर गांव से 30 किसानों का डाटा एकत्रित कर उसे सीएससी सेंटर से जोड़ा है, ताकि कृषि विज्ञान केंद्रों द्वारा कृषि क्षेत्र से जुड़ी दुरुस्त जानकारियां, नवाचारों, प्रौद्योगिकियों व नई तकनीकों को आसानी से किसानों तक पहुंचाया जा सके.

मुख्यातिथि प्रो. बीआर कंबोज ने कहा कि किसानों तक पहुंचने वाली जानकारियां एकसमान होनी चाहिए. इस के लिए विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों व कृषि एवं किसान कल्याण विभाग के अधिकारियों को एक मंच पर आ कर एकजुट हो कर मंथन करने की आवश्यकता है.

फसलों की उन्नत किस्में

किसानों की जरूरतों को पूरा करने के लिए विश्वविद्यालय कर रहा निजी कंपनियों से समझौते
मुख्यातिथि प्रो. बीआर कंबोज ने कहा कि किसानों के उत्थान के लिए विश्वविद्यालय ने बीते 3 सालों में विभिन्न फसलों की 44 किस्में विकसित की हैं, लेकिन इन किस्मों को किसानों तक पहुंचाना अहम चुनौती है. इस के लिए विश्वविद्यालय ने कई निजी कंपनियों के साथ समझौते किए हैं, ताकि किसानों तक विश्वविद्यालय द्वारा ईजाद की गई फसलों की उन्नत किस्मों को जल्दी से जल्दी पहुंचाया जा सके.

कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने उपस्थित वैज्ञानिकों से आह्वान किया कि वे फील्ड में जा कर किसानों से फीडबैक जरूर लें. उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय ने ओपन डाटा कन्टेंट एप्लीकेशन भी बनाई है, जिस में 300 किसान परिवारों का डाटा जोड़ा है, ताकि हमें पता लग सके कि किसानों की जरूरतें, आवश्यकताएं, मांग, सुविधाएं क्याक्या हैं. साथ ही, हमें जल संरक्षण, प्राकृतिक खेती और साइलेज मेकिंग की दिशा में आगे बढऩे की आवश्यकता है.

कृषि एवं किसान कल्याण विभाग, हरियाणा के अतिरिक्त कृषि निदेशक (सांख्यिकी) डा. आरएस सोलंकी ने कृषि विभाग की ओर से खरीफ फसलों के लिए तैयार की गई विस्तृत रणनीति की जानकारी दी.

विश्वविद्यालय के विस्तार शिक्षा निदेशक डा. बलवान सिंह मंडल ने सभी का स्वागत कर कार्यशाला की विस्तृत जानकारी दी. उन्होंने निदेशालय द्वारा आयोजित की जाने वाली विभिन्न विस्तार गतिविधियों के बारे में अवगत कराया. साथ ही, उन्होंने विभिन्न फसलों की नई किस्मों की जानकारी देते हुए मौजूदा समय में चल रहे अनुसंधान कार्यों के बारे में विस्तारपूर्वक बताया.

किसानों के खेतों के अनुसार तकनीक (Technology) जरूरी

मेरठ: सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय में ‘खाद्य सुरक्षा और पर्यावरण संरक्षण के लिए सतत कृषि पद्धतियों’ विषय पर आयोजित 2 दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का कार्यक्रम हुआ.

मुख्य अतिथि शाकुंभरी विश्वविद्यालय, सहारनपुर के कुलपति प्रो. एचएस सिंह ने अपने संबोधन में कहा कि जलवायु परिवर्तन को देखते हुए सभी लोगों का प्रयास होना चाहिए कि हम जल, जंगल और जमीन का संरक्षण करें.

उन्होंने वैज्ञानिकों से कहा कि कि पहले हम लैंड टू लैब रिसर्च को प्राथमिकता देते थे, लेकिन अब समय की मांग है कि हम को किसानों के खेतों पर जाना होगा और उन की आवश्यकता के अनुसार अपनी लैब में शोध करना होगा. उस के बाद किसानों को तकनीकी देनी होगी.

उन्होंने कहा कि वैज्ञानिकों की कड़ी मेहनत से ही आज हम खाद्यान्न संकट से उबर पाए हैं, लेकिन बढ़ती हुई आबादी एक चुनौती है. वैज्ञानिकों का प्रयास होना चाहिए कि वह अब खाद्यान्न सुरक्षा के साथसाथ पोषण सुरक्षा पर भी ध्यान दें, जिस से लोगों को हाईजीनिक अनाज मिल सके और लोगों की सेहत ठीक रहे.

कुलपति प्रो. एचएस सिंह ने कहा कि यदि हमें साल 2047 तक विकसित भारत का निर्माण करना है, तो हम सभी लोगों को आगे आना होगा और मिल कर नए विकसित भारत का निर्माण करना होगा.

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. केके सिंह ने कहा कि अब सुरक्षित पौष्टिक व किफायती उत्पादन और खाद्यान्न उपलब्ध कराने के साथ खेती को सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय रूप से लाभदायक बनाने के लिए टिकाऊ खेती को बढ़ावा देना होगा. इस के लिए डिजिटल कृषि की बढ़ती उपयोगिता को ध्यान में रखते हुए इस का समावेश करना होगा.

उन्होंने आगे यह भी कहा कि डिजिटल खेती एक क्रांति है, जिस में मशीन जीपीएस आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस जैसी तकनीकों की मदद से भविष्य में खेती को बढ़ावा मिल सकेगा.

आलू अनुसंधान संस्थान, मोदीपुरम के विभागाध्यक्ष प्रो. आरके सिंह ने विशिष्ट अतिथि के रूप में बोलते हुए कहा कि आज उत्पादन बढ़ाने के अलावा मृदा के स्वास्थ्य पर भी ध्यान देना होगा.

उन्होंने कहा कि हमारी प्राचीन कृषि टिकाऊ कृषि प्रणाली थी, जिसमें हम प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग करते थे. हमें इस पर भी ध्यान देना होगा और खाद्यान्न सुरक्षा के साथसाथ पोषण पर भी ध्यान देना होगा.

तकनीक (Technology)

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के एडीजी इंजीनियरिंग डा. केपी सिंह ने अपने संबोधन में कहा कि भारत में जल का 700 क्यूबिक फ्रेश वाटर प्रयोग किया जाता है, जबकि अन्य देशों में इस की मात्रा बहुत कम है. भारत में वाटर की रीसाइकलिंग नहीं हो पा रही है. आज जरूरत इस बात की है कि हम वाटर की रीसाइकलिंग करें. अपनी खेती में कम से कम रासायनिक का प्रयोग करें. ड्रोन और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस ऐसी तकनीक का इस्तेमाल खेती में आने वाले दिनों में किया जाने लगेगा. भारत द्वारा रोबोट विकसित किए जा रहे हैं, जिस से आसानी से पेड़ों से फलों की तुड़ाई और खेत में निराईगुड़ाई की जा सके.

नाबार्ड, डीडीएम देवेंद्र श्रीवास्तव ने कहा कि नाबार्ड द्वारा स्मार्ट फार्मिंग, डिजिटल फार्मिंग और विभिन्न प्रकार के प्रशिक्षण और कृषि में किसानों की आय कैसे बढ़ सके, इस के लिए सहयोग किया जा रहा है. गांव में खेती के विकास और किसान की खुशहाली के लिए नाबार्ड सरकार की योजनाओं को पहुंचाने में महत्वपूर्ण योगदान दे रहा है.

समापन समारोह में छात्रछात्राओं को उन के लोक और पोस्टर प्रेजेंटेशन के लिए सम्मानित किया गया. इस दौरान प्रो. अवनी सिंह, प्रो. आरएस सेंगर, प्रो. एचएल सिंह, प्रो. गजे सिंह, प्रो. कमल खिलाड़ी, प्रो. डीके सिंह, प्रो. एलबी सिंह, प्रो. विनीता, डा. देश दीपक, डा. शैलजा कटोच, डा. आभा द्विवेदी, डा. उमेश सिंह, प्रो. बृजेश सिंह, प्रो. विजेंद सिंह, प्रो. बीआर सिंह, प्रो. सुनील मलिक, प्रो. दान सिंह, आकांक्षा, रजनी आदि का महत्वपूर्ण योगदान रहा.

प्रो. डीबी सिंह ने बताया कि इस कार्यक्रम में 370 से अधिक शिक्षकों, वैज्ञानिकों और छात्रछात्राओं ने हिस्सा किया और उन के द्वारा किए गए शोध कार्यों को प्रस्तुत किया.

“मिशन पाम औयल” के तहत खाद्य तेल (Edible Oil) में आत्मनिर्भर होगा भारत

नई दिल्ली: भारत वर्तमान में खाद्य तेल का शुद्ध आयातक है. कुल खाद्य तेल का 57 फीसदी विदेशों से आयात किया जाता है. खाद्य तेल की अपर्याप्तता हमारे विदेशी मुद्रा भंडार पर नकारात्मक प्रभाव डाल रही है और 20.56 बिलियन अमरीकी डालर इस के आयात पर खर्च होता है.

देश के लिए तिलहन और पाम तेल को बढ़ावा देने के माध्यम से खाद्य तेल के उत्पादन में आत्मनिर्भर बनना अधिक महत्वपूर्ण हो गया है.
अरुणाचल प्रदेश की यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खाद्य तेल उत्पादन में देश की आत्मनिर्भरता को रेखांकित किया. उन्होंने पूर्वोत्तर पर ध्यान केंद्रित करते हुए केंद्र सरकार द्वारा चलाए गए एक विशेष अभियान मिशन पाम औयल पर बात की और इस मिशन के तहत पहली तेल मिल का उद्घाटन किया.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पाम की खेती करने के लिए किसानों के प्रति आभार व्यक्त करते हुए कहा, “मिशन पाम औयल खाद्य तेल क्षेत्र में भारत को आत्मनिर्भर बनाएगा और किसानों की आय को बढ़ावा देगा.”

भारत सरकार ने अगस्त, 2021 में खाद्य तेलों के लिए राष्ट्रीय मिशन – औयल पाम (एनएमईओ-ओपी) लौंच किया. यह मिशन औयल पाम की खेती को बढ़ाने और वर्ष 2025-26 तक कच्चे पाम तेल के उत्पादन को 11.20 लाख टन तक बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध है.

यह योजना वर्तमान में देशभर के 15 राज्यों में जारी है, जो 21.75 लाख हेक्टेयर के संभावित क्षेत्र को कवर करती है. अब तक मिशन के तहत क्षेत्र विस्तार के लिए 1 करोड़ रोपण सामग्री की क्षमता वाली 111 नर्सरी स्थापित की गई हैं और 1.2 करोड़ रोपण सामग्री की क्षमता वाले 12 बीज उद्यान भी स्थापित किए गए हैं.

औयल पाम मिशन को नए भौगोलिक क्षेत्रों में पाम तेल को बढ़ावा देने, रोपण सामग्री में सहायता के लिए किसानों को अंत तक सहायता प्रदान करने और निजी उद्यमियों से खरीद सुनिश्चित की गई है.

तेल में वैश्विक मूल्य अस्थिरता को देखते हुए किसानों की मदद के लिए व्यवहार्यता अंतर भुगतान (वीजीपी) प्रदान किया गया है. सरकार ने समय पर पाम तेल की व्यवहार्यता कीमत को संशोधित किया है और अक्तूबर, 2022 में 10,516 रुपए थी, जिसे नवंबर, 2023 में बढ़ा कर 13,652 रुपए कर दिया गया.

व्यवहार्यता अंतर भुगतान (वीजीपी) लाभ के अलावा सरकार ने राष्ट्रीय मिशन – औयल पाम (एनएमईओ-ओपी) के अंतर्गत रोपण सामग्री और प्रबंधन के लिए किसानों को 70,000 रुपए प्रति हेक्टेयर की विशेष सहायता उपलब्ध कराई है.

पाम तेल की खेती के लिए किसानों को कटाई उपकरणों की खरीद के लिए 2,90,000 रुपए की सहायता दे रहा है. इस के अतिरिक्त कस्टम हायरिंग सैंटर (सीएचसी) की स्थापना के लिए 25 लाख रुपए की सहायता दी गई है.
मिशन के तहत प्रसंस्करण कंपनियां पाम तेल किसानों के लिए वन-स्टाप सैंटर भी स्थापित कर रही हैं, जहां वे इनपुट, कस्टम हायरिंग सैंटर, अच्छी कृषि प्रथाओं की कृषि सलाह और किसानों की उपज का संग्रह की सुविधा दे रहे हैं.

यह दूरदर्शी पहल आर्थिक विकास को बढ़ावा देने, किसानों को सशक्त बनाने और भारत में खाद्य तेल उत्पादन के लिए एक स्थायी और आत्मनिर्भर पारिस्थितिकी तंत्र बनाने की सरकार की प्रतिबद्धता को दर्शाती है. राष्ट्रीय मिशन – औयल पाम (एनएमईओ-ओपी) खाद्य तेलों के महत्वपूर्ण क्षेत्र में आत्मनिर्भरता हासिल करने के लिए भारत के समर्पण का एक प्रमाण है.

अब पशुचारा (Animal Feed) जिले के बाहर नहीं बिकेगा

गुना: कलक्‍टर अमनबीर सिंह बैंस द्वारा दंड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा-144 के अंतर्गत प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए पशुओं के आहार के रूप में उपयोग में लाने वाले समस्त प्रकार के चारे/घास, भूसा एवं पशुओं के द्वारा खाए जाने वाले अन्य किस्म के चारे पर जिले की राजस्व सीमा के बाहर निर्यात प्रतिबंधित करने के आदेश जारी किए गए हैं.

उपसंचालक, पशुपालन एवं डेयरी विभाग द्वारा अपने प्रतिवेदन के माध्‍यम से अवगत कराया गया है कि जिले में वर्तमान में रबी की फसल की कटाई का काम प्रारंभ हो चुका है, जिस के उपरांत चारे/भूसे की उपलब्धता पशुधन के लिए बनाए रखना आवश्यक है.

मध्य प्रदेश राज्य के जिलों को छोड़ कर अन्य राज्यों के जिलों में भूसे के परिवहन और ईंटभट्टों के ईंधन के रूप में चारे/भूसे का उपयोग पूरी तरह से प्रतिबंधित किए जाने का अनुरोध किया गया है. जारी आदेश अनुसार, कोई भी किसान, व्यापारी, व्यक्ति, निर्यातक किसी भी प्रकार के पशुचारे का किसी भी वाहन, मोटर, रेल, यान अथवा पैदल जिले के बाहर कलक्‍टर एवं जिला दंडाधिकारी की अनुज्ञापत्र के निर्यात नहीं करेगा. शासकीय उपयोग के लिए भूसा एवं पशुचारे का परिवहन संबंधित अनुविभागीय अधिकारी (राजस्व) की अनुमति से किया जाएगा.

उक्त आदेश का उल्लंघन करने पर संबंधित के विरुद्ध भारतीय दंड संहिता की धारा 188 के अंतर्गत वैधानिक दांडिक कार्यवाही की जाएगी. जारी आदेश तत्काल प्रभाव से लागू करते हुए आगामी आदेश तक प्रभावशील रहेगा.

प्रशिक्षण आयोजन में कीट व रोग प्रबंधन (Pest and Disease Management) पर फोकस

अशेाक नगर : भारत सरकार के अधीन कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के केंद्रीय एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन केंद्र, मुरैना द्वारा अशोक नगर जिले के कृषि विज्ञान केंद्र में आईपीएम ओरियंटेशन प्रशिक्षण कार्यक्रम एवं राष्ट्रीय कीट निगरानी प्रणाली पर प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन किया गया.

सुनीत के. कटियार, प्रभारी अधिकारी, केंएनाप्रकें, मुरैना ने इस प्रयास की सफल शुरुआत के लिए कार्यालय के योगदान पर प्रकाश डाला.

उन्होंने प्रशिक्षण कार्यक्रम के उद्देश्यों, दृष्टिकोण और सिद्धांतों के बारे में एक संक्षिप्त परिचय भी दिया और अनुरोध किया कि बेहतर परिणाम के लिए सभी को अधिक भागीदारी और उत्साह के साथ सभी सत्रों में भाग ले कर अपने बहुमूल्य समय का उपयोग करना चाहिए.

इस दौरान अशोक नगर जिले के उपसंचालक कृषि केएस केन द्वारा अशोक नगर जिले के कीट व्याधि के बारे में जानकारी दी गई. कृषि विज्ञान केंद्र, अशोक नगर के प्रधान वैज्ञानिक डा. बीएस गुप्ता ने स्थायी कृषि में आईपीएम की भूमिका के बारे में प्रशिक्षुओं से बातचीत की.

डा. एचके त्रिवेदी, वैज्ञानिक (पादप संरक्षण) ने जिले में उगाई जाने वाली फसलों में कीट एवं बीमारियों के बारे में और उन के प्रबंधन के बारे में बताया. डा. वीके जैन ने आईपीएम में कीटनाशक का प्रयोग अंतिम सत्र के रूप में करने की बात कही.

डा. केके यादव, वैज्ञानिक (उद्यान) ने सतत्पोषणीय कृषि के बारे में किसानों से चर्चा की. कार्यक्रम में प्रभारी अधिकारी सुनीत कुमार कटियार द्वारा आईपीएम के महत्व, आईपीएम के सिद्धांत एवं उस के विभिन्न आयामों सस्य, यांत्रिक, जैसे येलो स्टिकी, ब्लू स्टीकी, फेरोमोन ट्रैप, फलमक्खी जाल, विशिष्ट ट्रैप, ट्राईकोडर्मा से बीज उपचार के उपयोग के बारे में और जैविक विधि, नीम आधारित एवं अन्य वानस्पतिक कीटनाशक और रासायनिक आयामों के इस्तेमाल के विषय में विस्तार से बताया गया.

प्रवीण कुमार यदहल्ली, वनस्पति संरक्षण अधिकारी द्वारा जिले की प्रमुख फसलों के रोग और प्रबंधन, चूहे का प्रकोप एवं नियंत्रण और फौल आर्मी वर्म के प्रबंधन, मित्र एवं शत्रु कीटों की पहचान के बारे में बताया गया.

अभिषेक सिंह बादल, सहायक वनस्पति संरक्षण अधिकारी द्वारा मनुष्य पर होने वाले कीटनाशकों का दुष्प्रभाव और कीटनाशकों का सुरक्षित और विवेकपूर्ण उपयोग, साथ ही साथ केंद्रीय कीटनाशक बोर्ड और पंजीकरण समिति द्वारा  अनुमोदित रसायन का कीटनाशकों के लेवल एवं कलर कोड पर आधारित उचित मात्रा में ही प्रयोग करने का सुझाव दिया. साथ ही, भारत सरकार के कृषि मंत्रालय द्वारा विकसित किए गए केएनपीएसएसएस एप के उपयोग एवं महत्व की जानकारी दी गई.

कार्यक्रम के दौरान केंद्र के अधिकारियों द्वारा आईपीएम प्रदर्शनी का भी आयोजन किया गया, जिस में आईपीएम के विभिन्न आयामों का प्रदर्शन किया गया. कार्यक्रम के दूसरे दिन किसानों को खेत भ्रमण करा कर कृषि पारिस्थितिकी तंत्र विश्लेषण के बारे में बताया गया.

कार्यक्रम में अशोक नगर एवं गुना जिले के 70 से अधिक प्रगतिशील किसानों, कीटनाशक विक्रेता और राज्य कृषि कर्मचारियों को प्रशिक्षण दिया गया.

प्रशिक्षण कार्यक्रम में बताया कैसे है मशरूम (Mushroom) इम्यूनिटी बूस्टर

सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय में मशरूम अनुसंधान एवं प्रशिक्षण केंद्र पर मशरूम निदेशालय, सोलन के निर्देश पर अनुसूचित जाति उपयोजना के अंतर्गत युवाओं और किसानों के लिए तीनदिवसीय मशरूम प्रशिक्षण कार्यक्रम किया गया.

इस कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए वित्त नियंत्रक लक्ष्मी मिश्रा ने कहा कि मशरूम हमारे जीवन के लिए बहुत ही उपयोगी खाद्य पदार्थ है. मशरूम खाने से शरीर की इम्युनिटी बढ़ती है, जिस से मानव जीवन स्वस्थ रह सकता है.

उन्होंने ने आगे कहा कि मशरूम में प्रोटीन के अलावा विभिन्न प्रकार के विटामिन और खनिज लवण मौजूद होते हैं, जिस के कारण इस को इम्यूनिटी बूस्टर भी कहा जाता है.

निर्देशक ट्रेनिंग एवं प्लेसमेंट प्रो. आरएस सेंगर ने कहा कि मशरूम एक प्रकार का सुपरफूड है, इस को खाने से शरीर में प्रोटीन की मात्रा बढ़ती है. साथ ही, भरपूर मात्रा में खनिज लवण भी उपलब्ध हो जाते हैं. अब देश में बायोफोर्टीफाइड मशरूम भी आने लगा है, जिस की मांग धीरेधीरे बढ़ रही है.

विभागाध्यक्ष प्रो. कमल खिलाड़ी ने कहा कि मशरूम को उगने से किसानों को रोजगार मिलता है और कम क्षेत्रफल में मशरूम की खेती प्रारंभ की जा सकती है. इस के लिए अधिक संसाधनों की आवश्यकता नहीं होती, इसलिए किसान इस क्षेत्र में आगे आ कर अपनी आय को बढ़ा सकते हैं.

प्रशिक्षण कार्यक्रम के संयोजक प्रो. गोपाल सिंह ने बताया कि मशरूम खाद्य एवं औषधि प्रजातियों के उत्पादन तकनीकी का प्रशिक्षण कार्यक्रम कराया गया, जिस से पश्चिम उत्तर प्रदेश के युवा मशरूम उत्पादन का काम कर सके और उन को स्वरोजगार मिल सके.

डा. गोपाल सिंह ने आगे कहा कि इस कार्यक्रम के अंतर्गत 50 युवा एवं किसानों ने पंजीकरण कराया और मशरूम उत्पादन की तकनीकी के बारे में प्रशिक्षण दिया गया. इस प्रशिक्षण कार्यक्रम में प्रो. अनिल सिरोही, प्रो. रामजी सिंह, प्रो. रमेश यादव, प्रो. प्रशांत मिश्रा, प्रो. डीबी सिंह, प्रो. राजेंद्र कुमार आदि ने भी व्याख्यान दिए और मशरूम की उपयोगिता और उस के उत्पादन तकनीक के बारे में जानकारी दी.

वैज्ञानिकों ने खोजी मटर की नई बीमारी ( New Disease of Pea)

हिसार : चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने मटर की नई बीमारी व इस के कारक जीवाणु कैंडिडैटस फाइटोप्लाज्मा एस्टेरिस (16 एसआर 1) की खोज की है. अमेरिकन फाइटोपैथोलौजिकल सोसाइटी (एपीएस) पौधों की बीमारियों के अध्ययन के लिए सब से पुराने अंतर्राष्ट्रीय वैज्ञानिक संगठनों में से एक है, जो विशेषत: पौधों की बिमारियों पर विश्वस्तरीय प्रकाशन करती है.

हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक दुनिया में इस बीमारी की खोज करने वाले सब से पहले वैज्ञानिक हैं. इन वैज्ञानिकों ने फाइटोप्लाज्मा मटर में बीमारी पर शोध रिपोर्ट प्रस्तुत की है, जिसे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर संस्था ने मान्यता प्रदान करते हुए अपने जर्नल में छापा है.

बीमारी के बाद इस के प्रसार की निगरानी व उचित प्रबंधन का हो लक्ष्य
विश्वविद्यालय के कुलपति डा. बीआर कंबोज ने वैज्ञानिकों की इस खोज के लिए बधाई दी. उन्होंने कहा कि बदलते कृषि परिदृश्य में विभिन्न फसलों में उभरते खतरों की समय पर पहचान महत्वपूर्ण हो गई है. उन्होंने वैज्ञानिकों से बीमारी के आगे प्रसार पर कड़ी निगरानी रखने को कहा.

उन्होंने यह भी कहा कि वैज्ञानिकों को रोग नियंत्रण पर जल्द से जल्द काम शुरू करना चाहिए. इस अवसर पर ओएसडी डा. अतुल ढींगड़ा, सब्जी विभाग के अध्यक्ष डा. एसके तेहलान, पादप रोग विभाग के अध्यक्ष डा. अनिल कुमार, मीडिया एडवाइजर डा. संदीप आर्य व एसवीसी कपिल अरोड़ा भी मौजूद रहे.

साल 2023 में मटर की फसल में दिखाई दिए थे लक्षण
अनुसंधान निदेशक डा. जीतराम शर्मा ने बताया कि पहली बार फरवरी, 2023 में सेंट्रल स्टेट फार्म, हिसार में मटर की फसल में नई तरह की बीमारी दिखाई दी, जिस में मटर के 10 फीसदी पौधे बौने और झाड़ीदार हो गए थे. एचएयू के वैज्ञानिकों ने कड़ी मेहनत के बाद इस बीमारी के कारक कैंडिडैटस फाइटोप्लाज्मा एस्टेरिस (16 एसआर 1) की खोज की है. उन्होंने कहा कि बीमारी की जल्द पहचान से योजनाबद्ध प्रजनन कार्यक्रम विकसित करने में मदद मिलेगी.

इन वैज्ञानिकों का रहा अहम योगदान
इस बीमारी के मुख्य शोधकर्ता और विश्वविद्यालय के प्लांट पैथोलौजिस्ट डा. जगमोहन सिंह ढिल्लो ने कहा कि अंतर्राष्ट्रीय वैज्ञानिक संगठन अमेरिकन फाइटोपैथोलौजिकल सोसाइटी, यूएसए द्वारा मार्च, 2024 के दौरान इस शोध रिपोर्ट को छापा है. हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक इस बीमारी के सब से पहले शोधकर्ता माने गए हैं.

नैनो यूरिया (Nano Urea) उपयोग से खेती हुई आसान

छिंदवाड़ा : जिले के चौरई विकासखंड के ग्राम चीचगांव के किसान दीपक आढनेरिया ने भी इस वर्ष एक एकड़ में नैनो यूरिया का उपयोग कर लागत निकालने के बाद तकरीबन 80 हजार रुपए का आर्थिक लाभ प्राप्त किया है.

उल्लेखनीय है कि नैनो यूरिया एक लागत प्रभावी उत्पाद है और खेत में इस की कम मात्रा डालने पर ही फसलों को जरूरी नाइट्रोजन प्राप्त हो जाती है. खेती के लिए नैनो यूरिया का उपयोग करने का सब से बड़ा फायदा ये है कि इस से पर्यावरण को कम से कम नुकसान पड़ता है. इस से ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन कम होगा और हवा व पानी की गुणवत्ता में सुधार होगा.

किसान दीपक बताते हैं कि उन के द्वारा पहले यूरिया का उपयोग किया जाता था. अधिक मात्रा में इस का उपयोग करने से लागत भी अधिक लगती थी और परिवहन करने में भी समस्या आ रही थी. माली नुकसान को देखते हुए कृषि विभाग चौरई द्वारा नैनो यूरिया तरल के बारे में बताया गया.

उन्होंने बताया कि नैनो यूरिया तरल की 500 मिलीलिटर की एक बोतल सामान्य यूरिया के कम से कम एक बैग यानी एक बोरी के बराबर होगी. इस के प्रयोग से लागत में कमी आएगी और नैनो यूरिया तरल का आकार छोटा होने के कारण इसे आसानी से पाकेट में भी रखा जा सकता है, जिस से परिवहन और भंडारण करने में लगने वाली लागत में काफी कमी आएगी और फसलों की पैदावार बढ़ती है. इसे पौधों के पोषण के लिए प्रभावी व असरदार पाया गया है. इस का प्रयोग पोषक तत्वों की गुणवत्ता सुधारने एवं जलवायु परिवर्तन व टिकाऊ उत्पादन पर सकारात्मक प्रभाव डालते हुए ग्लोबल वार्मिंग को कम करने में भी अहम भूमिका निभाएगा.

कृषि विभाग द्वारा बताई गई जानकारी के बाद उन के द्वारा इस साल एक एकड़ खेत में नैनो यूरिया का प्रयोग किया गया, जिस में 2 बार नैनो यूरिया का स्प्रे किया, जिस की लागत एक बोतल की कीमत 225 रुपए व 2 बार स्प्रे करने पर 450 रुपए की आई. नैनो यूरिया एवं अन्य खर्च की कुल लागत निकालने के बाद भी लगभग 80 हजार रूपए का आर्थिक लाभ प्राप्त हुआ है.

नैनो यूरिया के उपयोग से किसान दीपक के लिए खेती करना अब बहुत आसान और लाभ का व्यवसाय हो गया है. वह इस के लिए शासन और कृषि विभाग के अधिकारियों को धन्यवाद देते हैं, साथ ही अन्य किसानों को भी नैनो यूरिया का उपयोग करने के लिए प्रेरित कर रहे हैं.

जलवायु परिवर्तन एवं मृदा स्वास्थ्य में जीरो टिलेज तकनीक

छिंदवाड़ा : किसान कल्याण एवं कृषि विकास विभाग के अपर मुख्य सचिव अशोक वर्णवाल और आयुक्त कृषि एम. सेल्वेंद्रन द्वारा बोरलौग इंस्टीट्यूट फौर साउथ एशिया (बीसा), जबलपुर में “जलवायु परिवर्तन एवं मृदा स्वास्थ्य” विषय पर आयोजित कार्यशाला में उपस्थित हो कर जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय के कृषि वैज्ञानिकों व बीसा के कृषि वैज्ञानिकों के साथ ही कृषि विभाग के उपसंचालक कृषि एवं परियोजना संचालक आत्मा के साथ चर्चा कर रणनीति तैयार की गई. साथ ही, बीसा संस्थान द्वारा किए जा रहे फसल अवशेष प्रबंधन कर जीरो टिलेज तकनीक के प्रदर्शन का भी अवलोकन किया गया.

अपर मुख्य सचिव अशोक वर्णवाल ने कहा कि कृषि वैज्ञानिक एवं कृषि विभाग के अधिकारी नवीन उन्नत तकनीक को सरल भाषा में किसानों तक पहुंचाएं और उन को समझाएं.

कृषि आयुक्त एम. सेल्वेंद्रन ने कहा कि प्रत्येक जिले से किसानों को एक्सपोजर विजिट करा कर उन्नत तकनीक दिखाएं और 2-2 क्लाइमेट स्मार्ट विलेज का चयन कर वहां इस नवीन तकनीक को किसानों तक पहुंचाएं.

बीसा के एमडी डा. अरुण जोशी व प्रमुख वैज्ञानिक डा. रवि गोपाल ने चर्चा के दौरान किसानों से जीरो टिलेज तकनीक से फसल अवशेष प्रबंधन कर के मिट्टी की सेहत को सुधारने और फसल विविधीकरण अपना कर टिकाऊ खेती अपनाने पर ज़ोर दिया.

इस अवसर पर जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय के मृदा विभाग के प्रमुख डा. हितेंद्र राय, संचालक विस्तार सेवाएं डा. दिनकर शर्मा, ब्रीडर प्रमुख डा. शुक्ला व संयुक्त संचालक, कृषि, जबलपुर केएस नेताम सहित छिंदवाड़ा जिले के उपसंचालक, कृषि, जितेंद्र कुमार सिंह, सहायक संचालक, कृषि, धीरज ठाकुर, सीडीओ अमरवाडा के सचिन जैन और अन्य जिलों के उपसंचालक, कृषि व परियोजना संचालक आत्मा भी उपस्थित थे.

प्राकृतिक रूप से खेती कर 250 रुपए प्रति किलोग्राम बेच रहे मशरूम

बालाघाट : किरनापुर में कटंगी के रामेश्वर चौरिवार ने प्राकृतिक रूप से मशरूम की खेती करने के लिए अपने ही कुछ अलग ढंग से तैयारी की. कक्षा 8 वीं जमात तक पढ़े रामेश्वर केवीके, बड़गांव में मिले प्रशिक्षण से प्रभावित हुए और अमल में लाने के लिए प्रयास शुरू किए. अब तक उन्होंने 2 बार ढींगरी (औयस्टर) मशरूम की खेती से अच्छा मुनाफा लिया है.

उन्होंने बताया कि आत्मा परियोजना के अंतर्गत समयसमय पर आयोजित किए जाने वाले प्रशिक्षणों से उन्हें काफी लाभ हुआ है. इसी से प्रेरित हो कर इस की खेती की. इस के लिए उन्होंने 10*10 के कमरे में दीवारों पर टाट और सतह पर रेत का उपयोग व सुबहशाम स्प्रे कर कमरे को वातानुकूलित बनाया है, क्योंकि मशरूम की खेती के लिए तापमान का बड़ा महत्व होता है. इस के लिए 16 डिगरी से 25 डिगरी सैल्सियस तक तापमान मेंटेन करना पड़ता है.

200 रुपए प्रति किलोग्राम बिकता है मशरूम
रामेश्वर ने बताया कि 45 से 90 दिनों की फसल होती है. गत वर्ष 30 बैग लगाए थे, जिस से उन्हें 60 से 70 किलोग्राम मशरूम का उत्पादन हुआ, जिसे स्थानीय बाजार और बालाघाट में काफी अच्छा भाव मिला. यहां मशरूम 200 रुपए तक बिकता है. इस वर्ष तापमान के कारण उत्पादन कम हुआ, लेकिन भाव 200 से 250 रुपए प्रति किलोग्राम मिलने से अच्छा मुनाफा हुआ है.

दीनदयाल उन्नत खेती, नरेंद्र उद्यानिकी, हीरेंद्र रेशम और जंगल सिंह को पशुपालन के लिए किया सम्मान
आत्मा परियोजना औन एग्रीकल्चरल एक्सटेंशन वर्ष 2023-24 के अंतर्गत जिले में उन्नत कृषि तकनीक एवं पर्यावरण संरक्षण के उद्देश्य से उत्तम काम करने वाले 5 किसानों को जिला स्तरीय सर्वोत्तम पुरस्कार से सम्मानित किया गया. इस के अलावा 28 किसानों को विभिन्न श्रेणियों में विकासखंड स्तरीय सर्वोत्तम कृषक पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया. जिला स्तरीय सर्वोत्तम किसान को 25-25 हजार और विकासखंड स्तरीय सम्मान के रूप में 10-10 हजार रुपए की राशि प्रोत्साहन के रूप में प्रदान किए गए.

आत्मा परियोजना संचालक अर्चना डोंगरे ने बताया कि इन के अलावा 5 सर्वोत्तम स्वसहायता समूह को विभिन्न श्रेणियों में 20-20 हजार रुपए की प्रोत्साहन राशि बैंक खातों में प्रदान की गई.

ये हैं जिले के 5 सर्वोत्तम किसान
आत्मा परियोजना में जिला स्तरीय सर्वोत्तम कृषक का सम्मान पाने वाले किसानों में कटंगी के रामेश्वर चौरिकर को प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए और आगरवाड़ा कटंगी के दीनदयाल कटरे को उन्नत कृषि के लिए, थानेगांव वारासिवनी के नरेंद्र सुलकिया को उद्यानिकी, बटरमारा किरनापुर के हिरेंद्र गुरदे को रेशमपालन और चिचरंगपुर बिरसा को पशुपालन में सम्मान पाने में शामिल है.