36वें स्थापना दिवस पर कृषि वानिकी संस्थान बना राष्ट्रीय नोडल एजेंसी

झांसी : कृषि वानिकी अनुसंधान के क्षेत्र में कार्यरत देश के एकमात्र शोध संस्थान केंद्रीय कृषि वानिकी अनुसंधान संस्थान, झांसी का स्थापना दिवस 8 मई को मनाया गया. इस केंद्र की स्थापना सब से पहले राष्ट्रीय कृषि वानिकी अनुसंधान केंद्र के रूप में 8 मई, 1988 की गई थी, लेकिन 1 दिसंबर, 2014 को इस का नाम बदल कर केंद्रीय कृषि वानिकी अनुसंधान संस्थान कर दिया गया. यह संस्थान भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के अधीन एग्रोफोरेस्ट्री के मसले पर शोध का काम करता है.

उत्तर प्रदेश के झांसी में स्थित यह केंद्र कुल 254.859 एकड़ में फैला हुआ है. यह संस्थान छोटे और मझोले किसानों के लिए विभिन्न कृषि जलवायु स्थितियों के लिए मजबूत कृषि वानिकी मौडल विकसित करने और उस से जुड़ी तकनीकियों के प्रसार को बढ़ावा देने का काम करता है. साथ ही, ग्रामीणों और किसानों के जीवन स्तर में सुधार भी लाना इस केंद्र का मुख्य उद्देश्य है.

कृषि वानिकी आधारित एफपीओ बनाए जाने की आवश्यकता
एग्रोफोरेस्ट्री को बढ़ावा देने के क्षेत्र में काम कर रहे इस संस्थान ने 8 मई को अपना 36वां स्थापना दिवस मनाया. इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि कुलपति, रानी लक्ष्मी बाई केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, झांसी, प्रो. एके सिंह रहे. इस मौके पर उन्होंने कहा कि कृषि वानिकी यानी एग्रोफोरेस्ट्री आज आदर्श गांव की बुनियादी जरूरत बन चुकी है.

उन्होंने आगे कहा कि जलवायु परिवर्तन को देखते हुए पेड़ों की कमी महसूस हो रही है. इसलिए कृषि वानिकी आधारित कृषक उत्पादक संगठन यानी एफपीओ बनाए जाने की आवश्यकता है.

प्रो. एके सिंह ने बताया कि किसानों को कृषि वानिकी की जानकारियां समयसमय पर देने की आवश्यकता है और सजावटी पौधों के साथसाथ बड़े पेड़ भी लगाना जरूरी है, जो पर्यावरण संतुलन बनाए रखने में योगदान करते हैं.

कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि डा. आरबी सिन्हा, आईएफएस, वरिष्ठ नीति सलाहकार, एफएओ कार्यालय, नई दिल्ली ने कहा कि यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि पेड़ लगाने के बाद किसानों की आमदनी में बढ़ोतरी हो. साथ ही, इस बात पर ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है कि किसानों को कौन सा पौधा लगाना है और उस के लिए बाजार की उपलब्धता सुनिश्चित हो, जिस से किसान कृषि वानिकी पद्धतियां आसानी से अपना सकें.

कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि, डा. फ्रैंकलिन एल. खोबुंग, संयुक्त सचिव, कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार ने कहा कि जलवायु परिवर्तन का सामना एवं समाधान कृषि वानिकी द्वारा मुमकिन है.

उन्होंने कृषि वानिकी संस्थान द्वारा किसानों के लिए गुणवत्तायुक्त पौध प्रदान करने की सिफारिश की. साथ ही, यह भी कहा कि जलवायु अनुकूल कृषि को बढ़ावा देने में कृषि वानिकी का महत्वपूर्ण योगदान है.

संयुक्त सचिव ने कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार का पत्र संस्थान के निदेशक को सौंपा, जिस में कृषि वानिकी संस्थान को गुणवत्तायुक्त पौध के लिए राष्ट्रीय नोडल एजेंसी, कृषि वानिकी सूचनाओं का राष्ट्रीय रिपोजिट्री एवं राज्य सरकारों के लिए तकनीकी सहायता प्रदान करने के लिए राष्ट्रीय संस्थान का दर्जा दिया गया है.

कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि भाकृअनुप के सहायक महानिदेशक, डा. राजवीर सिंह ने कहा कि कृषि वानिकी की भविष्य की डगर ऐसी हो, जिस में विकास के लिए विभिन्न विभागों का एकीकृत रूप में काम करने की जरूरत है, तभी परिणाम अच्छे आएंगे. इस प्रकार कृषि, वन एवं पशुपालन विभाग को एकीकृत रूप में काम करने की जरूरत है.

संस्थान के निदेशक, डा. ए. अरुणाचलम ने पावर प्वाइंट प्रिजेंटेशन के द्वारा संस्थान की अनुसंधान, प्रशिक्षण एवं प्रसार गतिविधियों की 35 वर्ष की उपलब्धियों का लेखाजोखा प्रस्तुत किया.

उन्होंने अपने उद्बोधन में बताया कि बुंदेली धरती को हराभरा रखने में कृषि वानिकी का अहम योगदान है. उन्होंने आह्वान किया कि बुंदेलखंड के हर बाशिंदे को अपने खेत, बांध, तालाब इत्यादि का ध्यान रखना होगा.

उन्होंने यह भी कहा कि हम सब मिल कर यह संकल्प लें कि अपने जीवन व दिनचर्या को ऐसा बनाएं कि प्राकृतिक संसाधनों का नुकसान न हो, कार्बन का उत्सर्जन कम हो और जलवायु के बदलते परिवेश में उन्नत तकनीकी का प्रयोग कर जलवायु के कुप्रभावों को दूर करें. उन्होंने संस्थान में चल रहे विभिन्न प्रकार के शोध कार्यों के बारे में भी चर्चा की.

इस अवसर पर संस्थान द्वारा प्रकाशित प्रसार बुलेटिन, सफलता की कहानियां, कृषि वानिकी तकनीकियां और स्ट्राबेरी बुकलेट इत्यादि का विमोचन मुख्य अतिथि एवं विशिष्ट अतिथियों द्वारा किया गया. स्थापना दिवस के अवसर पर प्रदर्शनी का आयोजन किया गया और खेलकूद प्रतियोगिताओं के विजेताओं को सर्टिफिकेट एवं मैडल प्रदान कर उन्हें सम्मानित किया गया.

इस कार्यक्रम में डा. वीपी सिंह, डा. बेहरा, डा. डोबरियाल, डा. निषिराय, डा. पुरुषोत्तम शर्मा, डा. एके सिंह, डा. राजन, विनीत निगम और कृषि विश्वविद्यालय, झांसी के डीन एवं डायरैक्टर, ग्रासलैंड के विभागाध्यक्ष, दतिया अनुसंधान केंद्र के अध्यक्ष एवं संस्थान के वैज्ञानिक, अधिकारी, कर्मचारी एवं बुंदेलखंड के विभिन्न जनपदों से 35 किसान एवं महिलाएं उपस्थित रहे. कार्यक्रम का संचालन डा. आरपी द्विवेदी एवं आभार डा. एके हांडा ने प्रस्तुत किया.

मध्य प्रदेश में मूंग व उड़द खरीदी के पंजीयन की शुरुआत

किसानों को अपनी फसल की पैदावार की वाजिब कीमत मिल सके, इस के लिए सरकार ने उपज खरीद के लिए पंजीकरण की तिथियों का ऐलान किया है.

केंद्र सरकार ने खरीफ मौसम में मूंग के लिए 7,755 रुपए प्रति क्विंटल और उड़द के लिए 6,600 रुपए प्रति क्विंटल का न्यूनतम समर्थन मूल्य तय किया था. इस जायद सीजन में सरकार इसी मूल्य पर मूंग और उड़द खरीदेगी.

पंजीयन की शुरुआती तिथि जारी

मध्य प्रदेश के किसान कल्याण एवं कृषि विकास मंत्री कमल पटेल ने घोषणा की है कि वर्ष 2023-24 में मूंग और उड़द की समर्थन मूल्य पर खरीदी के लिए 8 मई से पंजीयन शुरू होगा.

जो किसान उड़द व मूंग की खेती करते हैं और अपनी उपज को उचित दामों पर बेचना चाहते हैं, वे 19 मई तक ग्रीष्मकालीन मूंग और उड़द फसलों का पंजीयन करवा लें.

सरकार ने मूंग फसलों की खरीद के लिए 32 जिलों और उड़द के लिए 10 जिलों में उपज खरीद करने का निर्णय लिया है. किसानों को अपनी फसल पैदावार का उचित मूल्य मिल सके, इस के लिए सरकार ने यह कदम उठाया है.

मध्य प्रदेश के 32 जिलों में मूंग और उड़द की खेती ज्यादा होती है. इन जिलों के किसान 8 मई से पंजीयन करवा कर अपनी मूंग या उड़द फसलों को बेच सकते हैं.

मूंग खरीद के लिए प्रदेश के 32 जिलों में पंजीयन होगा, जिन में नर्मदापुरम, नरसिंहपुर, रायसेन, हरदा, सीहोर, जबलपुर, देवास, सागर, गुना, खंडवा, खरगोन, कटनी, दमोह, विदिशा, बड़वानी, मुरैना, बैतूल, श्योपुरकलां, भिंड, भोपाल, सिवनी, छिंदवाड़ा, बुरहानपुर, छतरपुर, उमरिया, धार, राजगढ़,
मंडला, शिवपुरी, अशोक नगर, बालाघाट और इंदौर में पंजीयन केंद्र हैं.

उड़द के लिए 10 जिलों में जबलपुर, कटनी, नरसिंहपुर, दमोह, छिंदवाड़ा, पन्ना, मंडला, उमरिया, सिवनी और बालाघाट में पंजीयन करवा सकते हैं.

हाल ही के दिनों में रबी फसल उपज से किसानों को खासा नुकसान उठाना पड़ा था. कारण, बेमौसम बरसात व ओलों से फसल खराब हो गई थी, जिस से पैदावार पर बुरा असर पड़ा और किसानों की आय पर भी बुरा असर पड़ा.

अब उड़द व मूंग की उपज का बेहतर दाम किसानों को मिल जाए, तो किसानों को कुछ राहत जरूर मिलेगी.

मोटेअनाजों को बढ़ावा देने को किसानों में बंटेगा निःशुल्क मिनी किट

बस्ती: इस साल पूरी दुनिया में मोटे अनाजों की खेती को बढ़ावा देने के लिए खाद्य और कृषि संगठन के अनुमोदन के पश्चात संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा साल 2023 को अंतर्राष्ट्रीय पोषक अनाज वर्ष के रूप में घोषित किया है. इस को ले कर संयुक्त राष्ट्र में एक प्रस्ताव पारित किया गया, जिस का नेतृत्व भारत ने किया और 70 से अधिक देशों ने इस का समर्थन भी किया.

इसी को ध्यान में रखते हुए देश के सभी राज्यों की सरकारें मोटे अनाजों की खेती को बढ़ावा देने के लिए तमाम सहूलियतें मुहैया करा रही हैं.

उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा जिलों में मोटे अनाजों के निःशुल्क मिनी किट के जरीए इस की खेती को बढ़ावा दिए जाने की योजना है.

इस मसले में बस्ती मंडल में संयुक्त कृषि निदेशक अविनाश चंद्र तिवारी ने बताया कि खरीफ 2023-24 में धान की नर्सरी तैयार करने का समय शुरू होने वाला है. इसे ध्यान में रखते हुए सरकार द्वारा श्री अन्न यानी मोटा अनाज या मिलेट, जिस में रागी, मडुवा, कोदो, ज्वार, बाजरा जैसी फसलें शामिल हैं का निःशुल्क मिनी किट एवं तिल का बीज किसानों में वितरित किया जाना है.

उन्होंने बताया कि मोटे अनाजों के मिनी किट के अलावा प्रमाणित और आधारीय बीज मंडल के तीनों जनपदों बस्ती, संतकबीर नगर व सिद्धार्थनगर के लिए आवंटित हो गया है. इसी महीने वितरण के लिए यह उपलब्ध करा दिया जाएगा.

उन्होंने यह भी बताया कि धान के साभा सब-1, सीओ-51, एनडीआर – 2064, बीपीटी -5204, एमटीयू-7029, सरजू-52 धान का प्रमाणित और आधारीय बीज भी मिलेगा.
किसान अपने ब्लौक के राजकीय कृषि बीज भंडार से बीज और मिनी किट प्राप्त कर सकते हैं.

उन्होंने आगे बताया कि अगर किसान घर का बीज नर्सरी के लिए प्रयोग करते हैं तो थिरम अथवा कार्बेन्डाजिम का 2.5 ग्राम प्रति किलोग्राम अथवा ट्राइक्रोडर्मा 5 ग्राम प्रति किलोग्राम से बीज शोधित कर के ही प्रयोग में लाएं.

उन्होंने यह भी बताया कि जीवाणुजनित रोग, झुलसा एवं कंडुआ रोग के प्रकोप के नियंत्रण के लिए 4 ग्राम स्ट्रेप्टोसाइक्लिन अथवा 40 ग्राम प्लांटोमाइसीन 25 किलोग्राम बीज को 10 लिटर पानी में 12 घंटे तक भिगोबीकर दूसरे दिन छाया में सुखा कर नर्सरी डालें. भूमि शोधन के लिए ट्राइकोडर्मा 2.5 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर 60 से 70 किलोग्राम सड़ी हुई गोबर की खाद मिला कर छाया में नमी बना कर रखते हुए एक सप्ताह तक रखें और खेत की अंतिम जुताई के समय मिट्टी में मिला दें.

लौंच हुआ बलराम एप : जुड़ेंगे तमाम किसान

केंद्र और राज्य सरकारों का भी खेती पर खास फोकस है कि किस तरह से खेती के जरीए किसानों की आमदनी में इजाफा हो. सरकार खेती में डिजिटलीकरण पर जोर दे रही है. किसानों को औनलाइन सिस्टम से जोड़ा जा रहा है जैसे कि पीएम किसान सम्मान निधि, फसल बीमा योजनाएं, कृषि यंत्रों की खरीद पर सब्सिडी, किसान एफपीओ, घर बैठे खेती से जुड़ी समस्याओं का समाधान व सुझाव, मौसम की जानकारी जैसी अनेक योजनाएं हैं. इन के अलावा पशुपालन के क्षेत्र में भी तमाम योजनाएं औनलाइन संचालित हो रही हैं. किसान खुद अपने मोबाइल फोन के जरीए अनेक जानकारियां ले रहे हैं, योजनाओं से जुड़े अपने डौक्यूमेंट अपडेट भी कर रहे हैं.

बलराम एप लौंच
इसी तरह की जानकारी को ले कर मध्य प्रदेश सरकार ने किसानों के लिए प्रदेश में बलराम एप लौंच किया गया है, जो किसानों की मदद करेगा.

इस एप की मदद से किसानों को खेती से संबंधित मदद मिलेगी.

बलराम एप किसानों के लिए खासतौर पर डिजिटल सुविधाओं को उपलब्ध कराता है, जिस के माध्यम से किसान अपनी फसलों की देखभाल और सलाह ले सकते हैं. साथ ही, इस एप की मदद से किसान अपनी खेती में अनेक तरह की जानकारी कृषि विशेषज्ञों से ले सकते हैं और उन से अपनी समस्याओं का हल जान सकते हैं.

बलराम एप की खास बातें
मध्य प्रदेश सरकार द्वारा लौंच बलराम एप में किसानों को उन के खेत की मिट्टी की सेहत के बारे में जानकारी मिलेगी. इस से किसान अपने खेत की मिट्टी को स्वस्थ बना कर उन्नत फसल उगा सकते हैं.
एप के जरीए किसान खेती की सलाह ले सकते हैं और कृषि विशेषज्ञों से जुड़ सकते हैं.

यह एप हिंदी और अंगरेजी दोनों भाषाओं में है. किसान अपनी सुविधानुसार इस एप को देख सकते हैं और इस्तेमाल कर सकते हैं.

इस एप को खासकर किसानों के लिए बनाया गया है, ताकि वे अपने कृषि व्यवसाय को सफल बनाने के लिए सही और सटीक सलाह प्राप्त कर सकें.

10 जिलों में एप लौंच किया गया
मध्य प्रदेश सरकार ने 10 जिलों में बलराम एप लौंच कर दिया है, जो खरीफ सीजन में किसानों की मदद करेगा.

पहले चरण में मंडला, बालाघाट, सिंगरौली, रीवा, कटनी, छतरपुर, जबलपुर, सागर, शहडोल और दमोह जिलों में यह एप को लौंच किया गया है. इस एप में कृषि संबंधी जानकारी जिला स्तर, पंचायत स्तर, और ब्लौक स्तर पर उपलब्ध होगी.

पहले चरण में 25,000 किसानों को जोड़ा जाएगा
यह एप किसानों को राज्य, जिला, विकास खंड और ब्लौक स्तर पर कृषि से संबंधित जानकारियों से ले कर सकारात्मक सलाह तक प्रदान करेगा.पहले चरण में एप से 25,000 किसानों को जोड़ा जाएगा, जिस से उन की समस्याओं का समाधान किया जा सकेगा.

इस के बाद इस एप को और विस्तार दिया जाएगा, जिस से अधिक से अधिक किसानों को इस आधुनिक एप से जोड़ा जा सके.

राष्ट्रीय कृषि सम्मेलन- खरीफ अभियान 2023: कृषि मैपर एप हुआ लौंच

नई दिल्ली : 3 मई 2023. कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि भविष्य की जरूरतों व चुनौतियों को देखते हुए जरूरी है कि कृषि क्षेत्र में तकनीक को समर्थन मिले. जैसेजैसे टैक्नोलौजी बढ़ेगी, खेती में काम करना आसान होगा, मेहनत कम होगी व ज्यादा मुनाफे की स्थिति बन सकेगी. इस से आने वाली पीढ़ियों का भी खेती के प्रति रुझान बढ़ेगा, इस के लिए भारत सरकार ने कई योजनाएं बनाई हैं..

उन्होंने यह बात खरीफ अभियान-2023 के लिए पूसा, नई दिल्ली में आयोजित राष्ट्रीय कृषि सम्मेलन में बतौर मुख्य अतिथि कही.

कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने यह भी कहा कि खेती राज्यों का विषय है, वहीं केंद्र सरकार फंड का इंतजाम कर सकती है, योजनाएं बना सकती है और बनी योजनाओं को ले कर उन के साथ कंधे से कंधा मिला कर काम कर सकती है, लेकिन परिणाम तभी आएगा, जब राज्यों की गति बढ़ेगी, राज्य अनेक प्रकार के नवाचार करने के साथ ही कृषि के समक्ष चुनौतियों का समयसमय पर समाधान करेंगे.

उन्होंने आगे कहा कि केंद्र और राज्य सरकारों के साथ मिल कर काम करने की वजह से हम खाद्यान्न, दलहनतिलहन के उत्पादन, उद्यानिकी, निर्यात सहित तमाम सैक्टरों में आज बेहतर और अच्छी हालत में खड़े हैं. आज जरूरत इस बात की है कि खेती मुनाफे की गारंटी दें. अगर ऐसा नहीं होगा तो आने वाली पीढ़ियां खेती के क्षेत्र में काम करने नहीं आएंगी और देश के सामने यह बड़ी चुनौती होगी, इसलिए जरूरी है कि खेती में ज्यादा से ज्यादा तकनीक का इस्तेमाल के साथ ही समर्थन भी बढ़े, केंद्र सरकार इस दिशा में लगातार प्रयासरत है.

वैसे, अनेक योजनाओं के माध्यम से नई तकनीकें किसानों तक पहुंचाई जा रही हैं. उन्होंने कहा कि राज्य सरकारों को ऐसी स्कीम बनाना चाहिए, जिन से क्रमबद्ध तरीके से पूरे राज्य में तकनीक पहुंच सकें. इस के साथ ही अनुसंधान की भी जरूरत है.

कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने चिंता जताई कि वर्ष 2050 तक की चुनौती हम सब के सामने है, जब हमारी आबादी बढ़ेगी. दूसरा, आज भारत जिस राजनीतिक परिदृश्य पर खड़ा है, उस में हमारी जिम्मेदारी अपने देश की जनता के प्रति तो है ही, लेकिन दुनिया के बहुत से देश जो हम से अपेक्षा करते हैं, उन अपेक्षाओं को पूरी करने की जिम्मेदारी भी है. इसलिए चाहे फोर्टिफाइड फसलों का सवाल हो, उत्पादकता बढ़ाने या जलवायु परिवर्तन के दौर में उच्च ताप को सहन करने की शक्ति वाले बीजों की प्रचुरता का मामला हो, इन सब विषयों पर हमें एकसाथ काम करने की जरूरत है. भारत सरकार इस दिशा में चिंतित भी है और गंभीर भी.

उन्होंने बताया कि पहले उर्वरक की उपलब्धता को ले कर विसंगतियों के कारण कई तरह की कठिनाइयां होती थीं. जब यूरिया की जरूरत होती थी, तो यूरिया की उपलब्धता नहीं होती थी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दृढ़ संकल्प के परिणामस्वरूप केंद्र सरकार ने इस दिशा में राज्य सरकारों के साथ मिल कर कई ठोस कदम उठाए. यही वजह है कि पिछले 7-8 सालों में इस तरह की विपरीत परिस्थितियां नहीं बनीं व व्यवस्थाएं ठीक प्रकार से चलती रही हैं.

उन्होंने आगे बताया कि आज लगभग ढाई लाख करोड़ रुपए की सब्सिडी फर्टिलाइजर में जा रही है, इस पर विचार करने की जरूरत है. अगर यह सब्सिडी बचेगी तो कृषि सहित अन्य क्षेत्रों के विकास में यह पैसा काम आएगा. इस नजरिए से पीएम प्रणाम जैसी योजनाएं सरकार संचालित कर रही है, जिस से राज्य इस दिशा में प्रेरित हों. वर्तमान में नैनो यूरिया, नैनो डीएपी भी आ गया है. इस की पर्याप्त उपलब्धता है व उपयोग भी हो रहा है. वहीं दूसरी ओर और्गेनिक व नैचुरल फार्मिंग का रकबा भी बढ़ रहा है, ऐसे में खाद की कोई कमी नहीं रहेगी.

कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि वर्तमान में अच्छे बीजों की उपलब्धता, सिंचाई के साधन, बिजली की उपलब्धता आदि की वजह से अच्छे उत्पादन को देख कर खुशी होती है, वहीं अब कृषि का डाटा तैयार करने की दिशा में भी कदम बढ़ाते हुए भारत सरकार डिजिटल एग्री मिशन पर काम कर रही है, एग्रीस्टैक बनाया जा रहा है, ताकि राज्य और केंद्र सरकार एग्रीस्टैक के माध्यम से हर खेत को अपनी नजर से देख सकें. कौन से खेत में कौन सी फसल हो रही है, कहां ज्यादा है, कहां कम. कहां बरबादी है, कहां फायदा, इस का अवलोकन कर सकेंगे. इस के आधार पर किसानों को सलाह दी जा सकेगी कि इस बार किस हिस्से में खेती करना मुनाफे का सौदा है, कहां नहीं. दूसरा फायदा यह होगा कि अगर किसानों का नुकसान होगा, तो एग्रीस्टैक का इस्तेमाल कर के प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के माध्यम से नुकसान का आकलन कर क्लेम राशि शीघ्र ही उस के खाते में पहुंच जाएगी.

उर्वरक व पानी का अपव्यय रोकने के लिए भी तकनीक की आवश्यकता है. इस में राज्य महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे, तभी हम अपना लक्ष्य हासिल कर सकते हैं. जिस तरह से हम उत्पादन व उत्पादकता बढ़ाने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं, राज्यों के स्तर पर विद्यमान विषयों पर भी समयसमय पर विचार किया जाना चाहिए. अगर राज्यों की तरफ से केंद्र के लिए कोई सुझाव आएंगे, तो उन का केंद्र सरकार स्वागत करेगी. हम सब का एक ही लक्ष्य है और उस की पूर्ति के लिए हम एकदूसरे के सुझावों के साथ आगे बढ़ेंगे, तो देश का ज्यादा भला कर सकेंगे एवं किसानों की उन्नति कर सकेंगे.

सम्मेलन में केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण राज्य मंत्री कैलाश चौधरी ने कहा कि हमें इस तरह से काम करना चाहिए कि जब हमारी आजादी के 100 वर्ष पूरे हों, तो भारत विकसित राष्ट्र बनने के साथ ही कृषि क्षेत्र में भी आत्मनिर्भर बन सके. नि:शुल्क बीज मिनी किट वितरण में राज्यों को और काम करने की जरूरत है, ताकि अधिक से अधिक किसानों को इस का लाभ मिल सके.

अरुण बरोका, सचिव (उर्वरक) ने कहा कि खरीफ सीजन के लिए देश में पर्याप्त मात्रा में उर्वरक उपलब्ध है. वहीं, कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के सचिव मनोज अहूजा ने केंद्र की योजनाओं के सुचारु संचालन में राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों से सहयोग का आग्रह किया. डेयर के सचिव व आईसीएआर के महानिदेशक हिमांशु पाठक ने जलवायु अनुकूल किस्मों का अधिकाधिक लाभ किसानों तक पहुंचाने का आग्रह किया.

इस मौके पर कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कृषि मैपर एप लौंच किया. इस से कृषि क्षेत्र की गतिविधियों को सैटेलाइट के माध्यम से मौनीटर किया जा सकेगा. भूमि के किस हिस्से में, कौन सी खेती की जा रही है, इस की जानकारी मिलेगी. एकत्रित डाटा के माध्यम से किसानों को जरूरी सलाह दी जा सकेगी.

नई पीढ़ी खेती की ओर बढ़ेगी, तो बढ़ेगा खेती में मुनाफा

नई दिल्ली : 3 मई 2023. केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने श्रीराम कालेज औफ कौमर्स की दि मार्केटिंग सोसायटी द्वारा आयोजित मार्केटिंग समिट को संबोधित किया.

इस मौके पर उन्होंने कहा कि भारत सरकार का जोर नई पीढ़ी को खेती की ओर आकर्षित करने और किसानों का मुनाफा बढ़ाने पर है.

उन्होंने छात्रों से यह भी कहा कि वे पूरी कृषि व्यवस्था को व्यावहारिक रूप से समझने के लिए पूसा संस्थान, नई दिल्ली सहित देश के प्रमुख संस्थानों का दौरा करें.

भारत कृषि प्रधान देश है, जिस की बहुत महत्ता है. यदि आप के पास पैसा है और खाने के लिए उत्पादों की कमी है तो कैसे काम चलेगा, इसलिए हमारे किसान जो अपनी आजीविका तो कमा रहे हैं, लेकिन पूरे देश के प्रति खाद्यान्न की उपलब्धता के साथ अपना कर्तव्य भी निभा रहे हैं.

उन्होंने आगे कहा कि कृषि क्षेत्र अन्य क्षेत्रों के मुकाबले लंबे समय तक उपेक्षित रहा, लेकिन यह रीढ़ की तरह है, जिस के साथ हमारी ग्रामीण अर्थव्यवस्था के तानेबाने को मुगल व अंगरेज भी नहीं तोड़ सके. उलट हालात में भी कृषि क्षेत्र ने देश में अपनी सार्थकता सिद्ध की है. ऐसे में भारतीय कृषि की अहमियत और भी बढ़ गई है. भारत अब मांगने वाला देश नहीं, बल्कि देने वाला देश बन गया है. दुनिया के अनेक देशों की हम से उम्मीदें बढ़ गई हैं, उन के लिए भी हमें अपनी कृषि को और बेहतर करने की आवश्यकता है.

उन्होंने अपनी बात साझा करते हुए कहा कि कृषि क्षेत्र में एक के बाद एक अनेक ठोस योजनाएं बना कर क्रियान्वित की जा रही हैं. सरकार ने कृषि क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए टैक्नोलौजी का उपयोग भी सुनिश्चित किया है. करोड़ों किसानों को प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि के तहत 6-6 हजार रुपए सालाना उन के बैंक खातों में पूरी पारदर्शिता के साथ जमा कराए जा रहे हैं. इस रूप में अभी तक ढाई लाख करोड़ रुपए जमा कराए जा चुके हैं, जो पूरे के पूरे किसानों को मिले हैं.

कार्यक्रम में कालेज की प्राचार्य प्रो. सिमरत कौर ने कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर को स्मृतिचिह्न भेंट किया. सूर्यप्रकाश व श्रीराम मार्केटिंग सोसायटी के अध्यक्ष जय अंबानी, सचिव तनिष्क ने कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर का स्वागत किया.

छात्रों का हुनर बढ़ाने के लिए मत्स्यपालन एवं मूल्य संवर्धन पर हुआ प्रशिक्षण

निदेशालय प्रशिक्षण एवं सेवा योजन द्वारा पिछले दिनों रोजगार को बढ़ावा देने एवं क्षमता विकास हेतु एक द्विवर्षीय ‘उच्च मूल्य मत्स्य उत्पादन के अवसर और मूल्य संवर्धन’ विषय पर आयोजन किया गया. इस कार्यक्रम का आयोजन कृषि महाविद्यालय के सभागार में किया गया. प्रशिक्षण कार्यक्रम का उद्घाटन डा. विवेक धामा, कृषि अधिष्ठाता महाविद्यालय द्वारा किया गया.

डा. आरएस सेंगर, निदेशक प्रशिक्षण एवं सेवा योजन द्वारा प्रशिक्षण के उद्देषीय और प्रशिक्षण का भविष्य में उपयोग पर जानकारी दी गई. प्रशिक्षण सेल का मुख्य उद्देश्य प्रशिक्षण एवं रोजगार सृजनकर्ता है. साथ ही, क्षमता विकास पर विभिन्न कंपटीशन परीक्षा में अधिक से अधिक सफलता पा सके.

उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय के कुलपति डा. केके सिंह द्वारा उद्यमिता विकास को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न कार्यक्रम आयोजित कराए जा रहे हैं. उन के दिशानिर्देश में छात्रों के हुनर को और मजबूत करने के लिए आगामी माह में कई प्रशिक्षण एवं रोजगार से संबंधित कार्यक्रम किए जाएंगे.

डा. हरिंद्र प्रसाद, उपनिदेशक मत्स्य, मेरठ मंडल द्वारा सरकार द्वारा मत्स्य उत्पादन के लिए चलाई जा रही योजना की जानकारी पर चर्चा करते हुए विस्तार में मत्स्य पट्टा आवंटन और मछली उत्पादन फार्म की शुरुआत कैसे करें, क्याक्या सावधानियां करें, जलाशयों की उत्पादन क्षमता बढ़ाने पर विस्तार से चर्चा की गई और फेज कल्चर (पिछड़ा) पद्धति पर चर्चा कर के बताया गया है कि इस पर 40 से 60 फीसदी तक का अनुदान है.

प्रशिक्षण में डा. आशीष पुरथी, मत्स्य वैज्ञानिक, भारतीय फसल प्रणाली अनुसंधान केंद्र, मेरठ द्वारा मछली उत्पादन के समय विभिन्न तकनीकी पहलुओं पर विस्तृत जानकारी दी गई. साथ ही, मछली के विभिन्न उत्पादनों की जानकारी दी गई.

डा. डीवी सिंह, प्राध्यापक कीट विज्ञान एवं प्रभारी मत्स्य द्वारा मछली उत्पादन के समय आहार प्रबंधक और विसर्जन प्रबंधक पर विस्तृत जानकारी दी. साथ ही, यह भी अवगत कराया गया कि मत्स्यपालन कर के कम जगह से अधिक आय रोजगार सृजन एवं मत्स्य का निर्यात कर विदेशी मुद्रा भी प्राप्त की जा सकती है.

डा. अर्चना आर्य, सहप्राध्यापक मत्स्य द्वारा प्रशिक्षण ले कर कम लागत में अधिक आय प्राप्त करने के लिए मत्स्यपालन तकनीकी पर विस्तार से जानकारी दी गई.

डा. डीवी सिंह, प्रभारी कीट विज्ञान एवं मत्स्य प्रभारी प्रशिक्षण तकनीकी सत्र का संचालन किया गया. डा. सत्यप्रकाश, निदेशक प्रशिक्षण एवं सेवा योजन द्वारा प्रशिक्षण निदेशालय द्वारा धन्यवाद प्रस्ताव दिया गया. इस कार्यक्रम में बीएससी के तकरीबन 240 छात्रछात्राओं ने हिस्सा लिया.

गेहूं खरीद का टूटा रिकार्ड

केंद्र सरकार के अनुसार, इस साल एमएसपी पर गेहूं की सरकारी खरीद के लक्ष्य को पूरा करने में सफलता मिली है. खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्रालय ने बताया है कि रबी मार्केटिंग सीजन 2023-24 के दौरान 26 अप्रैल, 2023 तक 195 लाख मीट्रिक टन गेहूं की खरीद हुई है. इस से पहले आरएमएस 2022-23 में कुल 187.92 लाख मीट्रिक टन गेहूं खरीदा गया था यानी सरकार ने इस बार 26 दिन में पिछले साल के खरीद का रिकौर्ड तोड़ दिया है.

क‍ितने किसानों ने एमएसपी पर बेचा गेहूं

वर्तमान रबी मार्केटिंग सीजन में 26 अप्रैल, 2023 तक 14.96 लाख किसानों ने अपना गेहूं एमएसपी पर बेचा है. इन किसानों को एमएसपी के तौर पर 41,148 करोड़ रुपए का भुगतान किया गया है. केंद्र सरकार ने सभी राज्यों को खरीद केंद्रों के अलावा ग्राम पंचायत स्तर पर खरीद केंद्र खोलने और सहकारी समितियों, ग्राम पंचायतों और आढ़तियों आदि के माध्यम से भी खरीद करने की अनुमति दी है, ताकि किसानों को बेहतर संपर्क के लिए विकल्प उपलब्ध हो सके.

सब से ज्यादा गेहू खरीद वाले राज्य

इस साल के दौरान सब से ज्यादा गेहूं खरीदने वाले राज्यों में पंजाब, हरियाणा और मध्य प्रदेश सब से आगे हैं.

पंजाब में 89.79 लाख मीट्र‍िक टन, हरियाणा में 54.26 लाख मीट्रिक टन और मध्य प्रदेश में 49.47 लाख मीट्र‍िक टन गेहूं खरीदा गया है.

इन तीन राज्यों में एमएसपी पर सब से ज्यादा गेहूं की खरीद होती है. इस साल बेमौसम बारिश के कारण भी गेहूं की क्वालिटी में कमी आई थी, जिस के चलते सरकार ने नियमों में छूट दी है. केंद्र सरकार का दावा है कि इस से किसानों को लाभ होगा और उन की कठिनाई कम होगी. साथ ही, किसी भी मजबूरी में बिक्री को नियंत्रित किया जा सकेगा.

बता दें कि केएमएस 2022-23 की रबी फसल के दौरान 106 लाख मीट्रिक टन धा.

प‍िछले साल किया था टारगेट में बदलाव

पिछले साल यह संशोधित किया गया था कि केंद्र सरकार को रबी मार्केटिंग सीजन 2022-23 में 444 लाख मीट्रिक टन गेहूं खरीदने का लक्ष्य तय किया जाएगा. लेकिन, रूसयूक्रेन युद्ध और हीट वैब के कारण ओपन मार्केट में गेहूं का दाम एमएसपी से अधिक हो गया था, इसलिए अनाज मंडियां सूनी हो गईं.

यही वजह रही कि किसानों ने ज्यादा भाव मिलने के कारण व्यापारियों को गेहूं बेचना शुरू कर दिया था. इस स्थिति में सरकार ने अपना खरीद टारगेट संशोधित कर के 195 लाख मीट्रिक टन का लक्ष्य रखा. लेकिन, संशोधित टारगेट भी पूरा नहीं हुआ. बड़ी मुश्किल से 187.92 लाख मीट्रिक टन गेहूं ही खरीदा जा सका था यानी पिछले साल के संशोधित खरीद टारगेट जितना गेहूं इस साल 26 दिन में ही खरीद लिया गया है.

 

लांच हुआ नैनो लिक्विड (तरल) डीएपी उर्वरक

देश के गृह मंत्री अमित शाह ने 27 अप्रैल, 2023 को इफको के नैनो लिक्विड डीएपी उर्वरक को कामर्शियल बिक्री के लिए लांच किया. इस की 500 मिलीलिटर की एक बोतल की कीमत तकरीबन 600 रुपए होगी. यह कीमत पारंपरिक डीएपी की मौजूदा कीमत से भी कम है. इस उपलब्धि से भारत की आयात निर्भरता कम होगी.

दाम में कम काम में दम

वर्तमान में पारंपरिक डीएपी का एक 50 किलोग्राम का बैग किसानों को 1,350 रुपए में बेचा जाता है.

दुनिया की पहली नैनो तरल डीएपी की एक बोतल (500 मिलीलिटर) पारंपरिक डीएपी के एक बैग (50 किलोग्राम) के बराबर होगी, जिस की कीमत भी महज 600 रुपए होगी.

भारत के गृह मंत्री अमित शाह ने बताया कि इफको के नैनो (तरल) डीएपी उर्वरक को कामर्शियल बिक्री के लिए लांच करने से भारत को आत्मनिर्भर बनाने का एक बहुत महत्वपूर्ण कदम है. इस सफलता से सभी राष्ट्रीय सहकारी समितियों को नए क्षेत्रों में अनुसंधान के लिए प्रेरित किया जा सकता है.

कृषि क्षेत्र में भारत के किसानों को फायदा

गृह मंत्री अमित शाह ने बताया कि इफको नैनो डीएपी (तरल) प्रोडक्ट का लांच किसानों के उत्पादन और फर्टिलाइजर के क्षेत्र में महत्वपूर्ण कदम है.

सरकार के इस प्रयास से कृषि क्षेत्र में खास बदलाव लाने के साथसाथ भारत को निश्चित रूप से आत्मनिर्भर बनाने में मदद मिलेगी। इस से किसानों को भी लाभ होगा.

किसानों को मिलेगा बड़ा फायदा

भारत के कृषि क्षेत्र में नवीनतम तकनीक का उपयोग कर के किसानों को बड़ा फायदा मिलेगा, इस बात को केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह ने बताया कि नैनो तरल डीएपी के उपयोग से सिर्फ पौधे पर छिड़काव के माध्यम से उत्पादन की गुणवत्ता और मात्रा दोनों को बढ़ाया जा सकता है और भूमि को भी संरक्षित किया जा सकता है. इस से भूमि को पूर्ववत करने में काफी मदद मिलेगी और दानेदार यूरिया के उपयोग से भूमि और फसल दोनों को संरक्षित रखा जा सकता है.

लिक्विड नैनो यूरिया व डीएपी का प्रयोग करें

दानेदार यूरिया व डीएपी की जगह लिक्विड नैनो यूरिया व डीएपी का प्रयोग करें, क्योंकि इस से उन्हें अधिक फायदा होगा. दानेदार यूरिया का उपयोग बहुत सी स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बनता है, इसलिए लिक्विड नैनो यूरिया का प्रयोग करने से इन समस्याओं से बचा जा सकता है.

नैनो तरल डीएपी बनाम दानेदार डीएपी

एक बोतल नैनो तरल डीएपी में 500 मिलीलिटर की मात्रा होती है, जो एक बोतल 45 किलोग्राम यूरिया के बराबर फसल पर असर डालती है. नैनो डीएपी से भूमि बहुत कम मात्रा में कैमिकलयुक्त होती है, क्योंकि यह तरल होता है.

किसान तरल डीएपी और तरल यूरिया का उपयोग कर के अपनी भूमि में केंचुओं की तादाद बढ़ा सकते हैं, जो उन के उत्पादन और आय को बढ़ाते हैं बिना फर्टिलाइजर के उपयोग किए, इस से भूमि का संरक्षण भी होता है.

मंत्री अमित शाह ने कहा कि भारत जैसे देशों में जहां कृषि और इस से संबंधित व्यवसायों के साथ आबादी का एक बहुत बड़ा हिस्सा जुड़ा हुआ है, ये कदम कृषि को बहुत आगे बढ़ाने में मदद करेगा और भारत को फर्टिलाइजर उत्पादन व कृषि क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाएगा.

सहकारी समितियों का खास योगदान

गृह मंत्री अमित शाह ने बताया कि देश में फर्टिलाइजर 384 लाख मीट्रिक टन बनाया जाता है, जिस में से 132 लाख मीट्रिक टन का उत्पादन सहकारी समितियों द्वारा होता है. इस में से इफको ने 90 लाख मीट्रिक टन फर्टिलाइजर उत्पादित किया है.

उन्होंने कहा कि इफको, कृभको जैसी सहकारी समितियों का फर्टिलाइजर, दुग्ध उत्पादन और मार्केटिंग के क्षेत्र में भारत की आत्मनिर्भरता में बहुत बड़ा योगदान है.

कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने बस्तर के डा. राजाराम त्रिपाठी को दिया देश का सर्वश्रेष्ठ किसान अवार्ड

केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने बस्तर, छत्तीसगढ़ के “मां दंतेश्वरी हर्बल समूह” के संस्थापक डा. राजाराम त्रिपाठी को देश के “सर्वश्रेष्ठ किसान अवार्ड” से सम्मानित किया.

उल्लेखनीय है कि देश के 5 अलगअलग कृषि मंत्रियों के हाथों 5 बार देश के “सर्वश्रेष्ठ किसान का अवार्ड” प्राप्त करने वाले वे देश के एकलौते किसान हैं.

इस वर्ष का देश का प्रतिष्ठित “सर्वश्रेष्ठ किसान अवार्ड-2023” कोंडागांव, छत्तीसगढ़ के जैविक पद्धति से दुर्लभ वनौषधियों की खेती के पुरोधा कहलाने वाले किसान डा. राजाराम त्रिपाठी को 27 अप्रैल, 2023 को आयोजित भव्य समारोह में प्रदान किया. यह अवसर था जैविक खेती के “बायो- एजी इंडिया समिट व अवार्ड समारोह-2023 के शिखर सम्मेलन के समापन समारोह का.

इस शिखर सम्मेलन में कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर की गरिमामय उपस्थिति के साथ ही देश के किसानों की आय दोगुनी करने के लिए गठित पीएम टास्क फोर्स के अध्यक्ष डा. अशोक दलवई, आईएएस, जीपी उपाध्याय, आईएएस, डा. सावर धनानिया, अध्यक्ष, रबर बोर्ड, रिक रिगनर ग्लोबल वीपी वर्डेसियन (यूएसए), डा. तरुण श्रीधर, पूर्व सचिव, भारत सरकार, डा. एमएच मेहता, अध्यक्ष, जीएलएस, डा. एमजे खान, अध्यक्ष , आईसीएफए और बड़ी तादाद में देशविदेश से पधारी कृषि क्षेत्र की गणमान्य विभूतियां उपस्थित थीं.

डा. राजाराम त्रिपाठी को यह प्रतिष्ठित सम्मान 27 अप्रैल, 2023 को नई दिल्ली में आयोजित एक भव्य कार्यक्रम में दिया गया. इस अवसर पर देश के कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने डा. राजाराम त्रिपाठी द्वारा बस्तर में जैविक और हर्बल खेती में किए गए कामों की सराहना करते हुए इसे भावी भारत का भविष्य बताया.

इस अवसर पर डा. राजाराम त्रिपाठी ने कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर को अपने हर्बल फार्म पधारने का न्योता भी दिया, जिसे स्वीकार करते हुए उन्होंने कहा कि अगली बार वे जब भी छत्तीसगढ़ आएंगे, मां दंतेश्वरी हर्बल फार्म पर अवश्य आएंगे.

वहीं डा. राजाराम त्रिपाठी ने अपना यह सम्मान छत्तीसगढ़, बस्तर को समर्पित करते हुए कहा कि जैविक खेती की बातें तो बहुत होती हैं, लेकिन जब बजट आवंटन का अवसर आता है तो सारा पैसा और अनुदान रासायनिक खेती को दे दिया जाता है और जैविक खेती को केवल झुनझुना थमा दिया जाता है. कृषि क्षेत्र और किसानों की स्थिति अत्यंत सोचनीय है और इस के लिए अभी बहुतकुछ किया जाना शेष है.

डा. राजाराम त्रिपाठी को देश का यह सब से ज्यादा प्रतिष्ठित सम्मान उन के द्वारा जैविक खेती के क्षेत्र में किए गए दीर्घकालीन विशिष्ट योगदान, विशेष रूप से काली मिर्च की नई प्रजाति (एमडीबीपी-16) के विकास एवं बहुचर्चित एटी-बीपी मौडल अर्थात आस्ट्रेलियन-टीक (AT) के पेड़ों पर काली मिर्च की लताएं चढ़ा कर एक एकड़ जमीन से 50 एकड़ तक का उत्पादन लेने के सफल प्रयोग के लिए दिया गया है.

पिछले कई वर्षों से डा. राजाराम त्रिपाठी अपने इस प्रयोग को अन्य किसानों के साथ भी खुले दिल से साझा कर रहे हैं और अन्य किसानों की मदद भी कर रहे हैं. आस्ट्रेलियन टीक और काली मिर्च की खेती करने वाले देशभर के प्रगतिशील किसान प्रतिदिन उन के फार्म पर इसे देखने, समझने, सीखने और अपने खेत पर भी इस खेती को करने के लिए आते हैं.

क्या है आस्ट्रेलियन टीक?

उल्लेखनीय है कि इन की संस्था द्वारा मूलतः बबूल जैसे कठोरतम जलवायु में भी सरवाइव करने वाले मातृ परिवार से विकसित आस्ट्रेलियन- टीक (एटी) की विशेष प्रजाति जो कि देश के लगभग सभी क्षेत्रों में हर तरह की जलवायु में, बिना विशेष सिंचाई अथवा देखभाल के बहुत तेजी से बढ़ता है.

उल्लेखनीय इस के ग्रोथ की गति महोगनी, शीशम, टीक, मिलिया डुबिया यहां तक कि नीलगिरी से भी ज्यादा है. यह पेड़ लगभग 7 से 10 साल में ही काफी ऊंचा और मोटा भी हो जाता है. यह लकड़ी सागौन, महोगनी, शीशम से भी बेहतरीन मजबूत, हलकी, खूबसूरत बहुमूल्य इमारती लकड़ी देता है. इतना ही नहीं, यह पेड़ अन्य इमारती पेड़ों की तुलना में दोगुनी लकड़ी देता है. इस का एक और फायदा यह है कि यह पेड़ वायुमंडल से नाइट्रोजन ले कर फसलों की नाइट्रोजन यानी ‘यूरिया’ की आवश्यकता को जैविक विधि से भलीभांति पूर्ति करता है. यह जल संरक्षण भी करता है. साथ ही, सालभर में प्रति एकड़ 3 से 4 टन बेहतरीन जैविक खाद भी देता है. इन पेड़ों पर चढ़ाई गई काली मिर्च की लताओं से मिलने वाली काली मिर्च के भरपूर उत्पादन से हर साल अतिरिक्त लाभ भी होता है. इसे ही “कोंडागांव का एटी-बीपी मौडल” कहा जाता है.

डा. राजाराम त्रिपाठी का यह सफल मौडल इस समय तकरीबन 25 राज्यों के प्रगतिशील किसानों के द्वारा सफलतापूर्वक अपनाया जा चुका है. बस्तर के कई आदिवासी किसानों के खेतों में भी अब इस नई प्रजाति की काली मिर्च की फसल लहलहाने लगी है.

कैसे काम करता है उन का बहुचर्चित “प्राकृतिक ग्रीनहाउस मौडल”?

दरअसल, इन के द्वारा तैयार आस्ट्रेलियन टीक और काली मिर्च के पौधों का विशेष तकनीक से किया गया प्लांटेशन का यह मौडल एक ‘प्राकृतिक ग्रीनहाउस’ की तरह काम करता है. एक ओर जहां वर्तमान तकनीक के पौलीथिन से कवर्ड और लोहे के फ्रेम वाले पौलीहाउस बनाने में एक एकड़ में तकरीबन 40 लाख रुपए का खर्च आता है, वहीं डा. राजाराम त्रिपाठी के द्वारा विकसित इस “प्राकृतिक ग्रीनहाउस” के निर्माण में कुल मिला कर प्रति एकड़ केवल डेढ़ लाख रुपए का खर्च आता है यानी डेढ़ लाख रुपए में पौलीहाउस से हर माने में बेहतर और ज्यादा टिकाऊ ग्रीनहाउस तैयार हो जाता है. सब से बड़ी बात यह है कि इस 40 लाख रुपए प्रति एकड़ लागत से लोहे और प्लास्टिक से बनने वाले पौलीहाउस’ की आयु ज्यादा से ज्यादा 7 से 10 साल की होती है और फिर तो यह कबाड़ के भाव बिकता है, जबकि डा. राजाराम त्रिपाठी के द्वारा तैयार नैचुरल ग्रीनहाउस बिना किसी अतिरिक्त लागत के 10 साल में करोड़ों रुपए की बहुमूल्य इमारती लकड़ी देने के लिए तैयार हो जाता है. इस के साथ ही यह 25 वर्षों तक काम करता है, साथ ही प्रति एकड़ 5 से 10 लाख रुपए तक काली मिर्च से सालाना नियमित आमदनी भी मिलने लगती है. कुल मिला कर भारत जैसे देश के लिए यह मौडल गेमचेंजर माना जा रहा है.